वर्तमान देश की स्थिति पर कटाक्ष करने वाला हास्य-व्यंग्य अथः श्री ‘ जूँ ’ पुराण कथा डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त सरकारी पाठ्यपुस्तक लेखक,...
वर्तमान देश की स्थिति पर कटाक्ष करने वाला हास्य-व्यंग्य
अथः श्री ‘जूँ’ पुराण कथा
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त
सरकारी पाठ्यपुस्तक लेखक, तेलंगाना सरकार
Email: jaijaihindi@gmail.com
जूँ पुराण आरंभ करने से पहले दुनिया के समस्त जुँओं को मैं प्रणाम करता हूँ। मुझे नहीं लगता कि लेख समाप्त होने-होने तक वे मुझे बख्शेंगे। आज मैं उनसे जुड़े कई रहस्य की परतें खोलने वाला हूँ। जैसा कि सभी जानते हैं कि हम सब समाज पर निर्भर प्राणी हैं। हम जितना दुनिया के संसाधनों का हरण करते हैं, शायद ही कोई करता हो। किंतु इस मामले में जुँओं की दाद देनी पड़ेगी। वे हमसे भी ज्यादा पराश्रित हैं। जिस तरह हमारे लिए हमारा सिर महत्वपूर्ण होता है, ठीक उसी तरह हमारा सिर जुँओं के लिए जरूरी होता है। वे हमेशा हमारे साथ रहते हैं। हमारा साथ नहीं छोड़ते। सोते-जागते, खाते-पीते, उठते-बैठते, खेलते-कूदते, पढ़ते-लिखते, सिनेमा देखते चाहे जहाँ चले जाएँ हम, वे हमें बख्शने वाले नहीं हैं। जुँओं को हमारे वैध-अवैध संबंध, शराब-सिगरेट की लत, पसंद-नापसंद जैसी सारी बातें पता होती हैं। यदि उन्हें खुफिया एजेंसी में नौकरी मिल जाए तो कइयों की जिंदगी पल में तबाह कर सकते हैं। इसीलिए ‘ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे, तोडेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे’ की तर्ज पर हमारे साथ चिपके रहते हैं। वे इतने बेशर्म, बेहया, बेगैरत होते हैं कि हम उन्हें जितना भगाने की कोशिश करेंगे वे उतना ही हमसे चिपके रहने का प्रयास करेंगे। बड़े ही ‘चिपकू’ किस्म के होते हैं।
जूँ बड़े आदर्शवान होते हैं। उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। वे बड़े मेहनती होते हैं। वे हमारी तरह ईर्ष्यालु अथवा झगड़ालु नहीं होते। वे अत्यंत मिलनसार तथा भाई-चारा का संदेश देने वाले महान प्राणी होते हैं। इस सृष्टि की रचना के आरंभ से उनका और हमारा साथ फेविक्विक से भी ज्यादा मजबूत है। वे जिनके भी सिर को अपना आशियाना बना लेते हैं, उसे मंदिर की तरह पूजते हैं। ‘तुम ही मेरे मंदिर, तुम ही मेरी पूजा, तुम ही देवता हो’ की तर्ज पर हमारी खोपड़ी की पूजा तन-मन से करते हैं। जुँएँ बाहुबली की तरह शक्तिशाली होते हैं। उनकी पकड़ अद्वितीय है। उनकी चाल-ढाल और गतिशीलता बिजली की भांति तेज होती है। हम तो उनके सामने फेल हैं। पलक झपकते ही सिर में ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे उनके पंख लगे हों। वे बड़े संघर्षशील तथा अस्तित्वप्रिय होते हैं। वे हमारी तरह डरपोक नहीं होते। बड़ी-बड़ी मुसीबतों का सामना हँसते-हँसते करते हैं। वे धूप, बरसात, आंधी, बाढ़ सबका सामना ‘खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आंधी पानी में, खड़े रहो तुम अविचल होकर, सब संकट तूफानी में’ की तर्ज पर करते हैं। किसी की मजाल जो उन्हें भगा दें। जब तक उनके बारे में खोपड़ी वाले को पता न चले, तब तक वे बाहर नहीं निकलते। बेचारे अपने सभी काम उस छोटी सी खोपड़ी पर करते हैं। कभी जगह की कमी की शिकायत नहीं करते। जो मिला उसे भगवान की देन मानकर उसी में अपना सब कुछ लगा देते हैं। स्थान और समय प्रबंधन के महागुरु हैं। हमारे नहाने के साथ वे नहा लेते हैं। त्यौहार का दिन हो तो उनका जीना मुश्किल हो जाता है। उस दिन शैंपू, हेयर क्लीनर के नाम पर न जाने कितने रासायनिक पदार्थों का सामना करते हैं। फिर भी जुँएँ संघर्ष का परचम फहराने से नहीं चूकते। ये सब तो उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उनकी शामत तो सिर पर तौलिया रगड़ने से आती है। जैसे-तैसे प्राण बचाने में सफल हो जाते हैं। हेयर ड्रायर की जोरदार गर्म हवा से इनके शरीर का तापमान गरमा जाता है और अपनों से बिछुड़ जाते हैं। फिर भी अपने आत्मविश्वास में रत्ती भर का फर्क नहीं आने देते। आए दिन उन पर खुजलाने के नाम पर, कंघी के नाम पर हमले होते ही रहते हैं। सबका डटकर सामना करते हैं। यदि वे हमारे हत्थे चढ़ भी जाते हैं, तो नाखूनों की वेदी पर हँसते-हँसते ‘कर चले हम फिदा जानो-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले ये ‘सिर’ साथियों’ की तर्ज पर प्राण त्याग देते हैं।
वैसे जुँओं से नुकसान ही क्या है? केवल खुजली ही तो पैदा करते हैं। इस एक अपराध को छोड़ दें तो वे बड़े भोले-भाले होते हैं। वे इतने शांतप्रिय होते हैं कि उनके होने का आभास भी नहीं होता। उनके इसी गुण के कारण ‘कान पर जूँ न रेंगना’ मुहावरे की उत्पत्ति हुई है। वे हमारा थोड़ा-सा खून ही तो पीते हैं। भ्रष्टाचार, धांधली, धोखाधड़ी, लूटखोरी, कालाबाजारी के नाम पर चूसे जाने वाले खून की तुलना में यह बहुत कम है। जुँएँ अपने स्वास्थ्य व रूप से बड़े आकर्षक होते हैं। हम खाने को तो बहुत कुछ खा लेते हैं और तोंद निकलने पर व्यायाम करने से कतराते हैं। इस मामले में जुँएँ बड़े चुस्त-दुरुस्त और स्लिम होते हैं। वास्कोडिगामा ने भारत की खोज क्या कर दी उसकी तारीफ के पुल बाँधते हम नहीं थकते। जबकि जुँएँ एक सिर से दूसरे सिर, दूसरे सिर से तीसरे और न जाने कितने सिरों की खोज कर लेते हैं। वे वास्कोडिगामा जैसे यात्रियों को यूँ मात देते दिखायी देते हैं। वे तो ऐसे उड़न छू हो जाते हैं जैसे सरकार ने गब्बर पर नहीं इन पर इनाम रखा हो।
सरकार नौकरी दे या न दे, किंतु जुँएँ कइयों को रोजगार देते हैं। इन्हें मारने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियाँ टी.वी., समाचार पत्रों, सामाजिक माध्यमों में आए दिन प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। इनके नाम पर करोड़ों-अरबों रुपयों का तेल, शैंपू, साबून, रासायनिक पदार्थ, हेयर ड्रायर लुभावने ढंग से बेचे जाते हैं। यदि उनकी उपस्थिति न हो तो कई कंपनियाँ रातोंरात बंद हो जाएँगी, सेंसेक्स मुँह के बल गिर जाएगा और हम नौकरी गंवाकर बीवी-बच्चों के साथ दर-दर की ठोकर खाते नजर आएँगे। उनकी बदौलत कई परिवार रोटी, कपड़ा और मकान का इंतजाम कर पाते हैं। इसलिए हमें उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।
हमने अपने अस्तित्व के लिए पर्यावरण की हत्या की। आज भी बदस्तूर जारी है। असंख्य प्राणियों की विलुप्तता का कारण बने। हमारे जैसा स्वार्थी प्राणी शायद ही दुनिया में कोई हो। इतना होने पर भी सृष्टि के आरंभ से लेकर अब तक जुँएँ ‘अभी मैं जिंदा हूँ’ की तर्ज पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुए हैं। उनकी संघर्ष भावना के सामने नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सकते। कई बातों में वे हमसे श्रेष्ठ हैं। वे बड़े निस्वार्थ तथा अपनी कौम के लिए हँसते-हँसते जान गंवाने के लिए तैयार रहते हैं। वे हमारी तरह जात-पात, लिंग, धर्म, भाषा के नाम पर बिल्कुल नहीं लड़ते। उनके लिए ‘जूँ’ बने रहना बड़े गर्व की बात होती है और एक हम हैं जो इंसान छोड़कर सब बनने के लिए लड़ते-झगड़ते रहते हैं। उनके गुणों की प्रशंसा की जाए तो कागज और स्याही की कमी पड़ जाएगी। इसलिए उनसे बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। विशेषकर उनके ‘जूँ’ बने रहने की तर्ज पर हमारा ‘इंसान’ बने रहने की सीख।
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