भरत से हारकर राम ने मनाई जीत की खुशी आत्माराम यादव पीव राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सहित अपने बाल स...
भरत से हारकर राम ने मनाई जीत की खुशी
आत्माराम यादव पीव
राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सहित अपने बाल सखाओं की टोली लिए राजमहल से बाहर आते हैं और अयोध्या की गलियों में भमरा, लट्टू डोरी का खेलते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने गीतावली में भगवान के अनेक ललित लीलाओं उनके रूपमाधुर्य ओर उच्च चरित्र का चित्रण किया है। राम सात वर्ष की उम्र में जब यह भौरा लट्टू डोरी खेलते हैं। अहा –
सुभग सकल अंग , अनुज बालक संग ,
देखि नर-नारि रहे ज्यों कुरंग दियरे ।
खेलत अवध-खोरि, गोली भौंरा चक डोरि
मूरति मधुर बसे तुलसी के हियरे ॥ (गीतावली 1/43/3)
अपने सभी मित्रों के साथ अयोध्या की गलियों को छोड़कर वे सरयू के तीर पर पहुचते हैं। अयोध्यावासी उनकी बाल लीलाओं का आनंद लेने पीछे होते हैं और राजा के बेटे होने के नाते उनके अंगरक्षक का दल भी होता है जो दूर से ही उनकी निगरानी करता है। तुलसीदास जी ने निर्मल-सलिला सरयू ओर रामचन्द्र सहित सभी कुमारों के कोमल अंगों का मधुर चित्रण किया है। राजा दशरथ ने राजकुमारों के खेलने के लिए सरयू के तट पर विशेष खेल प्रांगण तैयार किया है जहां छोटे छोटे धनुष, छोटे छोटे बाण ओर तूणीर सजे हुये है। राम खेल प्रांगण में अपने सखाओ से गोल घेरा बनाने को कहते है तब गोले के बीच में राम विराजते हैं। राम के दक्षिण में कुमार लक्ष्मण तथा बायीं ओर भरत ओर शत्रुघ्न हैं। शेष मित्र गोले में बैठे हुये हैं। राम मित्रों से पूछते हैं -आज कौन सा खेल खेला जाये ? इसी निर्णय के लिए राम अपने भाइयों सहित रथों को त्याग कर अपने मित्रों के साथ राजमहल से मैदान तक पैदल आए ओर मित्रों को पैदल चलने का श्रम करने का संदेश भी दिया।
राम ने पूछा बताओ भाइयों कौन सा खेल खेले ? किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया, सभी राम की खुशी से तय किए गए खेल के प्रति निष्ठावान थे। राम ने फिर कहा अगर सहमति हो तो आज पदकन्दुक क्रीडा हो जाये। उनके सखा मणिभद्र ने राम के प्रस्ताव को सहमति दे दी जिसका सभी मित्रों ने अनुमोदन किया। इस खेल के लिए दो दल चाहिए थे इसके लिए बालकों की जोड़ियां बनानी थी जिसे राम ने शुरुआत की ओर एक दल के वे नायक बन गए ओर दूसरी टीम तैयार कर दी । अब समस्या आ गई की एक दल के नायक राम है तो प्रतिपक्ष का नायक कौन होगा ? अब राम ने लक्ष्मण की ओर निहारा , लक्ष्मण तपाक से बोले –भैया मैं तो आपके ही पक्ष में खेलूँगा ओर अगर अपनी टीम में नहीं रख सकते तो दर्शक बन कर खेल देखूंगा। श्रीराम ने मुस्कुराते हुये लक्ष्मण को अपनी टीम मेँ रख लिया।
अब राम ने भरत की ओर प्रेम से निहारा। शील, संकोची, समर्पित ओर धर्ममूर्ति भरत की आंखों से अनुरोध किया – भरत क्या तुम भी लक्ष्मण के तरह सोचते हो ? भरत ने भगवान के नेत्रो मेँ आग्रह को पढ़ लिया ओर विनती कर बोले प्रभु आदेश कीजिये। खेल शुरू करने के लिए में प्रतिपक्ष के नायक बनना स्वीकार करता हूँ। राम ने भरत को दूसरी टीम का नायक बनाने के साथ दोनों टीमों को घोषणा कर दी ।
राम-लखन एक ओर, भरत-रिपुदवन लाल एक ओर भये।
सरजूतीर समसुखद भूमि थल , गनि गनि गोइयाँ बांटि लये।
कंदुक केलि कुसल हय चढ़ि चढ़ि ,मन कसि कसि करी ठोंकि ठोंकि खये।
करि कमलनी विचित्र चौगाने, खेलन लगे खेल रिझाये ॥ (गीतावली 1/45/1 )
दोनों दल मैदान पर डट गए। गेंद को मैदान के बीच में रखा गया। राम ने गेंद पर पहला पद प्रहार करके खेल की शुरुआत की। गेंद भरत की पाली मेँ आ गया ओर दोनों टीमें अपनी अपनी जीत के लिए लग गयी। जैसे ही गेंद भरत की ओर आती तो भरत पूरी ताकत से गेंद पर प्रहार कर दुतकारते कि अरी अभागिन प्रभु श्रीराम के चरणों को चूम जहां तुझे शाश्वत शांति प्राप्त होगी, यहां क्या रखा है । गेंद को जीवात्मा की संज्ञा दी गई है जो राम के चरणों में होने पर अपना कल्याण कर पाएगी वही राम समझ चुके है कि भरत के मन में क्या चल रहा है ओर वे गेंद को अपने पदों से प्रहार कर भरत की ओर भेजते है ओर गेंद को कहते है कि सुन गेंद भरत संत है ओर वे ही शाश्वत शांति के देने वाले है। इसलिए भरत के ही चरण छू। प्रभु राम के चरण छू कर गेंद भरत के पा पहुंच गई। भरत ने गेंद पर इतनी ज़ोरों से प्रहार किया कि गेंद वापिस नहीं आई । दर्शकदीर्घा से ज़ोरों की आवाज आई कि कुमार भरत जीत गए।
एक क़हत भई हारि रामजुकि
एक क़हत भईया भरत जये ॥
प्रभु वकसत गज-बाजि, बसनि-मनी
जय-धुनि गगन निसान हये ॥
भरत की जीत के साथ ही खेल का पटाक्षेप हुआ। इधर राम ने अयोध्या पहुंचते ही भरत कि जीत पर दान देना शुरू कर दिया। वे किसी को हाथी,किसी को घोडा,किसी को वस्त्र तो किसी को आभूषण का दान अपने नन्हे कोमल हाथों से करने लगे ओर जीत का पर्व शुरू हो गया। लक्ष्मण से यह देखा नहीं गया ओर उन्होंने राम से पूछ लिया यह दान क्यों किया जा रहा है? राम ने कहा देखा नहीं आज भरत खेल में जीत गए हैं इसलिए मैं दान कर रहा हूँ? लक्ष्मण ने उलाहना दी प्रभु भरत दान करे तो बात समझ आती है कि वह जीत के लिए दान कर रहा है परंतु आप हारने के बाद दान करे तो यह समझ से परे लगती है। राम ने लक्ष्मण से कहा खेल मेँ हार ओर जीत तो होती है , लेकिन खेल का मुख्य लक्ष्य मनोरंजन है ओर भरत के बड़े भाई होने से मुझे उसके जीतने पर खुशी हुई है इसलिए मेँ उससे हारकर भी उसके जीतने कि खुशी तो मनाऊँगा ही। राम ने लक्ष्मण को समझाया हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए ओर जो जीवन में सम्मान देना सीख जाये तो जीवन के अनेक विवाद खुद ही समाप्त हो जाएंगे। दूसरी ओर भरत भी दोनों हाथों से गाय-बैल, घोडा,हाथी ओर रत्नों का दान करने लगे ओर प्रभु श्रीराम कि जय जय कर करने लगे-
गोधन गजधन बाजिधन ओर रतन धन दान
तुलसी क़हत पुकार के ,बड़ों दान सम्मान ॥
तुलसीदास जी भरत के चरित्र का एक उज्ज्वल पक्ष रखते है । राम दान दिये जा रहे है वही भरत के दान देने से लोगों को कौतूहल जागा ओर शंका हुई कि उन्हें जीत का मद हो गया है इसलिए वे राम से जीतने की खुशी में दान कर रहे है । दान लेने वालों ने भरत जी से पूछ लिया कि आप किस लिए यह दान कर रहे है । भरत का जबाव था आज खेल मेँ मेरे प्रभु श्रीराम भले ही शरीर से मुझसे हारे हो परंतु स्वभाव से वे विजयी हुये हैं। प्रभु हमेशा अपने छोटों को बड़ाई देते आए है, मेरी जीत मेरे प्रभु राम की कृपा है, उनका बड़प्पन है जो उन्होंने मेरा मान सम्मान रखने के लिए मुझे जिताया। जब वे अपने उदात्त भाव से अपने सेवकों का इतना ख्याल रखते है ओर उन्हें बड़ाई देते है तो यह मेरे प्रभु श्रीराम के शीलस्वभाव की जीत है ओर में उनकी इस महाविजय के लिए यह दान दे रहा हूँ।
बहुत सुन्दर
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