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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 30 - कृष्ण, कर्ण और कबीर
सीताराम पटेल "सीतेश"
कृष्ण, कर्ण और कबीर
दृश्य: 01
स्थान: स्वर्गपुरी
कबीर और कर्ण आपस में बातें कर रहे हैं।,
कबीर:- मैं अभागा हूँ कि भाग्यवान आज तक समझ नहीं पाया, कर्ण।
कर्ण:- तू भाग्यवान है कबीर, तेरा जन्म कलयुग में हुआ, मैं भी आज तक नहीं समझ पाया हूँ, मैं अभागा हूँ कि भाग्यवान हूँ, कबीर।
कबीर:- तू भाग्यवान है, कर्ण, तुझे कम से कम दुर्योधन जैसे दोस्त तो मिला, मुझे तो दोस्त ही नसीब नहीं हुआ। मेरे माँ बाप कौन है आज तक मालूम नहीं हो पाया, तुम्हें तो कम से कम अपने माँ बाप कौन है, मालूम है।
कर्ण:- यही तो दुःख है, कबीर! सब कुछ जानते हुए भी मैं उन्हें माँ बाप नहीं बोल सकता।
कबीर:- ओ कौन सी पीड़ा है, जिसे माँ को अपने बेटे से अलग कर देता है।
कर्ण :- यह एक सामाजिक भय है, कबीर। मेरी माँ, जो कृष्ण की बुआ है, को दुर्वासा ने जप माला का वरदान दिया। ये वरदान था या श्राप आज तक समझ नहीं पाया। एक क्वांरी कन्या को ये सब देने की क्या आवश्यकता थी।
कबीर:- मेरी कानों में उड़ती खबर आई है, मेरी माँ विधवा ब्राह्मणी थी।
कृ
ष्ण आता है।,
कृष्ण:- दोस्तों तुम लोग किन विचारों में खोये हो।
कबीर:- हम अपने जन्म से नाखुश है, कृष्ण।
कर्ण:- हाँ कृष्ण! हम अपने जन्म से नाखुश है। हमें लगता है हमें एक कायर मां ने जन्म दिया है।
कृष्ण:- मां कभी कायर नहीं होती कर्ण, न प्रेम कभी गलत होता है। पर ये पुरुष सामाजिक व्यवस्था ने औरत को कमजोर करने के लिए ऐसा चाल चला है।
कबीर:- मैं समझ नहीं पाया कृष्ण। मेरी माँ तो बाल विधवा थी, फिर उसे वासना की क्यों सूझी।
कृष्ण:- वासना तन की माँग है, यौवन में तन अपने विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होता है। वह नहीं देखता ये सामाजिक सत्य है कि गलत है। हम वास्तविक सत्य को मानते हैं। कर्ण मेरी बुआ ने भी कोई गलती नहीं की है, वह एक अविवाहित स्त्री की माँग थी। माँग तो माँग होता है, कर्ण। कबीर अपने मन में अपनी मां के प्रति कभी भी बुरा विचार मत लाना। प्रेम प्रेम है, प्रेम के सिवा कुछ भी नहीं है। प्रेम तो परमात्मा तक पहुँचने का द्वार है। फिर वह कहाँ गलत हो सकता है। प्रेम मिलने का नहीं न मिलने का नाम है कबीर। जब मिला तो फिर मृत्यु है, मृत्यु चाहे तन का हो , चाहे मन का हो, चाहे वह स्वयं प्रेम का ही क्यों न हो।
कर्ण:- टोकरी में रखकर हमें बहा दिया गया, हम मर जाते , तो कम से कम आज अपमानित तो नहीं होते।
कबीर:- हाँ कृष्ण हम मर जाते तो अच्छा रहता, हम अपवाद से तो बच जाते।
कृष्ण:- जाको राखे सांइयाँ, मार सके ना कोय। जिसे ईश्वर बचाना चाहता है, उसे कोई नहीं मार सकते। कर्ण अगर तुम मर जाते तो इस संसार को दानवीर कहाँ मिलता। कौन कहता इस संसार में दानवीर कर्ण जैसा कोई दानवीर हुआ ही नहीं और कबीर संसार को तुम जैसा ज्ञानी कहाँ मिलता बोलो।
कबीर:- मैं तंग आ गया हूँ, कृष्ण। छह सौ साल से नरिया नरिया कर थक रहा हूँ, पर अभी तक मेरी आवाज को कोई नहीं सुन रहे हैं, मैं जो भी कहता हूँ, उसका उल्टा ही लोग कर रहे हैं।
कृष्ण:- मेरे भी जमाने में तो लोग उल्टा पुल्टा ही कर रहे थे। सोचों मैं कौन सा सुखी था, मेरा जन्म भी कारावास में हुआ था, मेरे सगे मामा मुझे मारना चाहता था, क्यों मारना चाहता था, मुझे पता नहीं है, उसने मेरे सात भाइयों को पत्थर में पटक पटक कर मार दिया। मुझे बड़ी मुश्किल से बचाया। मेरे सगे माँ बाप छूट गये। मुझे भी तुम जैसे यशोदा और नंदबाबा ने पाला है।
कबीर:- पर तुम्हें पता तो है, तुम्हारे माँ बाप कौन है।
कर्ण:- तुम वही बात फिर से करने बैठ गए कबीर।
कबीर:- कैसे न करूँ कर्ण, इस दुनिया में लाने वाले उस अभागे पिता को कैसे भूल जाऊॅं। कैसे किस प्रकार उसने मेरे माँ को बरगलाया होगा।
कृष्ण:- तुम क्या कह रहे हो कबीर, तुम्हारी ज्ञान क्या घास छिलने गई है। प्रेम दोनों ओर पलता है, सखी शमाँ जलता है, तो पतंगा भी जलता है। प्रेम कभी भी एक ओर से नहीं हो सकता है, कबीर!
कर्ण:- मैं सूतपुत्र सूतपुत्र सुनकर तंग आ गया था, अगर दुर्योधन मुझे अंग देश का राजा न बनाया होता, तो मैं तो मर ही गया होता।
कृष्ण:- तुम जैसे साहसी कभी भी ऐसा गलती नहीं कर सकते। तुमने इस अहसान का बदला जिन्दगी रहते तक निभाया, तुम जानते थे दुर्योधन गलत रास्ते पर है, तो पर भी जीवन भर उसका साथ निभाया। तुम्हारी दोस्ती और दानवीरता दुनिया के लिए मिसाल है।
कबीर:- पढ़कर कोई नहीं सीख रहे हैं, देखकर भी नहीं सीख रहे हैं, जब अपने पर गुजरता है, तभी सब समझते हैं, बिना अनुभव किए शब्द खाली शब्द भर रहते है, शब्द का अर्थ ही उसकी आत्मा है, कृष्ण ! अनुभव किए बिना कोई भी शब्द का अर्थ नहीं समझता है। अनुभव से ही उसमें आत्मा आ जाती है।
कर्ण:- कृष्ण! प्रेम दोनों ओर पलने पर भी तो नहीं मिलता है।
कृष्ण:- तुम ऐसे कैसे कह सकते हो, कर्ण!
कर्ण:- तुम्हारी और राधा का प्रेम तो जगजाहिर है। फिर भी तुम कहाँ मिले। तुम्हारी शादी कहाँ हुई।
कृष्ण:- शादी के लिए दो का होना जरूरी है, हम दो कहाँ थे, कर्ण! हम दोनों तो एक ही थे, कर्ण! कर्ण और कबीर अच्छी तरह से जान लो प्रेम में दो नहीं होते हैं, हमेशा एक होते हैं, इसलिए उन दोनों का शादी नहीं होता है। प्रिय जहाँ भी रहे सुखी रहे, यही उसकी चाहत होती है। प्रेम में शरीर नहीं आत्मा जुड़ी रहती है। आत्मा अजर अमर है, शरीर तो मरती है। इसलिए शरीर से नहीं आत्मा को प्रेम करो, प्राण सभी प्राणियों का एक समान होता है। चाहे वो चींटी हो , चाहे वो हाथी हो।
कबीर:- साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।
कर्ण:- तुम सत्य कह रहे हो कबीर।
कृष्ण:- कबीर कब झूठ बोलता है, कर्ण! वो सदा सत्य बोलता है, इसीलिए तो वो मुझे प्रिय है, इसका मतलब ये नहीं है, कर्ण! तुम मुझे कम प्रिय हो, तुम भी मुझे अत्यधिक प्रिय हो। तुम दोनों ही मुझे प्रिय हो। चूँकि हम तीनों की प्रकृति एक जगह पर आकर मिलती है। हम तीनों सत्य को चाहते हैं। सत्य को मानते हैं और सत्य में जीते हैं। सत्य मेव जयते, सत्य की हमेशा विजय होती है।
परदा गिरता है।,
सीताराम पटेल 'सीतेश'
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