अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक / टैप करें - रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 प्रविष्टि क्र. 26 ...
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक / टैप करें -
रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 26 - ''कब्रगाह''
- नवनीता कुमारी
पात्र-परिचय
देवा-एक गरीब आम आदमी, उम्र-45 वर्ष
बिरजु-देवा के बचपन का साथी, उम्र -35 वर्ष
सेठ धर्मचंद्र रामानंद मनोहर लोहिया दास -स्वर्गीय त्रिपुरारी के पिता और गांव के सबसे धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति, उम्र -50 वर्ष
भुवन मनोहर त्रिपुरारी -सेठ धर्मचंद्र रामानंद मनोहर लोहिया के स्वर्गीय बेटा, उम्र-35 वर्ष
दुखिया -देवा की धर्मपत्नी , उम्र -35वर्ष
गुड़िया -देवा की स्वर्गवासी बेटी, उम्र -12वर्ष
मुन्ना -देवा का स्वर्गीय बेटा, उम्र -10वर्ष
बदरी -शराबी (जिसका मदिरालय ही घर -संसार है)
प्रथम दृश्य
(सुबह जाड़े की कुनकुनाती धूप का दृश्य)
गाँव का दृश्य। ईंट और गारे की बना देवा का घर जिसमें एक छोटा सा आँगन जिसमें एक अधटूटा खटोला जिस पर देवा जाड़े की कुनकुनाती धूप में बैठा ऊँघ रहा है, यूँ तो खुले आसमान के नीचे देवा ने अपनी आधी जिंदगी बिता दी।
पास में रात में बनी दाल की पतीली रखी हुई है।
(देवा अभी -अभी खाकर जाड़े की कुनकुनाती धूप में बैठा ऊँघ रहा है। जाड़े की कुनकुनाती सुहानी धूप उसे मदिरालय में मदिरा पान करते शराबी की भाँति झपकियाँ लेने पर मजबूर कर रही है। वह बैठा -बैठा ऐसे झपकियाँ ले रहा है मानो उस पर अभी- अभी मदिरा का हल्का -हल्का नशा चढ़ा हो। झपकी लेने के क्रम में देवा का सिर मिट्टी की दीवार से टकराता है और उसकी नींद खुल जाती है)
दृश्य -परिवर्तन
देवा अनमयस्क -सा उठता है और पास पड़े टूटे खटोले पर कटे वृक्ष की भाँति पसर जाता है।
(नेपथ्य दृश्य -ध्वनि )
(स्वप्नो की देवी अपना मायाजाल फैलाना प्रारंभ कर रही है, परंतु देवा को क्या मालूम कि सपना उसके नसीब में नहीं, वह तो चुटकी भर जादू की पुड़िया है जिसका यर्थाथ के धरातल पर कोई अस्तित्व ही नहीं, जिससे जादूगर जब चाहे किसी की भावनाओं से खेल ही नहीं सकता अपितु उससे खेल दिखाने का साध्य भी मान लेता है। भले ही देवा का सामना कागज -कलम से नहीं हुआ है और ना ही वह इसके महत्व के विश्लेषण का मंतव्य ही समझ पाया है लेकिन अनुभव जैसी निजी संपत्ति उसके पास है और तर्जुबे के मामले में भी वह भाग्यशाली है। देवा संसार की लहरों से खूब खेल चुका है, वह खूब जानता है कि दुःख की पीड़ा कैसी होती है और दुःखि़या का दर्द कहाँ तक ऊँचा उठ पाता है। सहनशीलता के अंतराल में जो दर्द के आँसू छिपे रहते हैं ---जिस आह की बुनियाद मिलती है उसे कोई समझ पाता तो जानता कि सहना भी, जीवन की एक कठिन साधना है और जिंदगी ख्वाहिशों के पुलिंदे को धीरे-धीरे तपाने की एक क्रिया है। आकाश से सितारे तोड़ना आसान नहीं -------------। ये तो सितारे अनायास रोज ही टूटते रहते हैं, पर देवा जैसे गरीब को उन तारों को छूने की आकांक्षा पालना भी तो तारों से भरा एक आसमान ही है। जाने कितनी ख्वाहिशें, कितना दर्द, कितनी तड़प, आशा के कितने बेल-बूटे सदा नाचते रहते हैं, मगर जीते-जी किसी भी गला टीप देना मुमकिन नहीं ,हाँ नाचते -नाचते अगर ये खुद टूटकर बिखर जाएँ, तो किसी को पता भी ना चले। ये कब जगे ,कब मरे--यह तो खुद जिंदगी भी नहीं बता पाती। आखिर ये ख्वाहिशें जिंदगी के चिराग के परवाने ही तो ठहरी। आज देवा स्वप्नों की बुने सतरंगी इन्द्रधनुषी मायाजाल में पूरी तरह ऐसे फंस चुका है मानो शहद में पड़ा पतंगा शहद से निकलने के लिए पंख फड़फड़ाकर कुचेष्टा कर रहा है)
दूसरा दृश्य
बिरजु- तभी बिरजु दौड़ता हुआ आता है और अधटूटे खटोले पर कटे वृक्ष की भाँति पड़े देवा को झिंझोड़ता हुआ बोलता है --''अरे ओ देवा! ओ देवा !अबे उठना। केवल सोने से नहीं मिलेगा मेवा। अबे उठना, अबे घोड़ा बेच के सो रहा है क्या ?उठ चल, तेरे लिए एक नया मुर्गा फंसा है। आज मुद्दतों बाद फिर किसी को दफनाने के लिए कब्र खोदना है। किसी के जनाजे उठे तो तेरे लिए रूठी खुशियाँ घर लौटे। समझ, आज की रोटी का इंतजाम हो ही गया ----ताना मारता हुआ बिरजु देवा से बोलता है।
तीसरा दृश्य
देवा -अबे! ओ गंजे की औलाद , मसखरी करता है। खटोले से उठने के उपक्रम में थोड़ा गुस्सा दिखाता हुआ देवा बोलता है।
(बिरजु को ऐसा लगा मानो खिसयानी बिल्ली अभी खंभा नोचेगी। यों तो बिरजु कमाऊ पुत है उसके खेत पर ऐसा लगता मानो किसी ने हरी दोशाला चादर बिछा दी हो, झुकी हुई सोने सी पीलापन ली बालियाँ देखने वालों की आँखों में अजीब समा बाँधती है, बिरजु डटकर काम करता और सबके प्रशंसा का पात्र बना रहता लेकिन इन सबके बावजूद उसमें एक खामी है, वह नशेड़ी है पर वह पीकर बवंडर खड़ा करने वालों में से न है, फिर भी इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है ,वह 35 वर्ष की आयु में भी पचास साल का अधेड़ मालूम पड़ रहा है।
देवा -देवा उठा तो देखा कि रात की बनी दाल की पतीली झपकी लेने के क्रम में उसके हाथो से गिर जाती है ,वह अपने पेट पर खुद ही लात मार लिया है, जो दाल उसने सुबह के नास्ते के वास्ते रखा था, ताकि वह रोटी ना सही कम-से -कम रात की बची दाल पीकर ही काम की तलाश में निकलेगा,लेकिन अब उसे कुछ करने के बाद ही अन्न -पानी का दर्शन होगा। खैर छोड़िए। इन सभी बातों को! सस्ते जान बची जो सुबह उठते उसे काम मिल गया, सो वह मरने वाले का शक्रिया अदा किया, मानो मरने वाला मृतक न साक्षात् कामनाओं पूर्ण करने वाले कामदेव हो। उसे पहले ही विश्वास था कि मारनेवाला भगवान ही है और बचानेवाला भी भगवान ही है 'जाको राखे साईयाँ मार सके ना कोय '। जब बिरजु ने बताया कि सेठ धर्मचंद्र रामानंद मनोहर लोहिया दास जी के बेटे भवन मनोहर त्रिपुरारी की इहलीला समाप्त हो गई है तो देवा हमदर्दी जताने के बजाय खुश होकर बोला' चलो! एक समय की रोटी के लिए कम-से -कम सिर तो धुनना नहीं पड़ेगा, फिर आगे जो होगा सो देखा. जाएगा---देवा बिरजु से लम्बी गप्पें हाँकने लगा। (यद्यपि बिरजु को तो क्या पूरे गांववालों को उसका डींगें हाँकना बिल्कुल पसंद नहीं था, लेकिन क्या करे। उससे उलझना काल के गाल में समाने जैसा है।
देवा -देवा गदगद् होता हुआ बोलता है -'' चलो यार! अच्छा हुआ इसी बहाने धरती का भार कुछ तो कम हुआ(मानो सारी धरती का बोझ वो बेचारा सेठ का बेटा ही बना हुआ था) यकीन मानो तो इसी बहाने हमारे लिए एक समय की रोटी का इंतजाम हो ही गया, वरना हम जैसों को कौन पूछता है? कितने दिन हमारे चूल्हे में आग सुलगी या नहीं। जिसने मुँह चीरा है आहार भी वही देगा। बात में तो दम था, लेकिन किसी को इस यथार्थता पर तरस आ भी जाता तो उस निक्कमे देवा पर कभी नहीं
बिरजु -बिरजु मन ही मन बुदबुदाता हुआ सोचता, बात तो ऐसे करता है मानो ऐलाने-जंग जीतने के एवज में अवार्ड पाने की मांग कर रहा है।
चरित्र -विश्लेषण (नेपथ्य ध्वनि गुंजन)
(देवा यर्थाथ में गरीब कम स्वभाव और मन का गरीब कही ज्यादा है, कामचोर औरआलसीपना
उसके चरित्र की जन्मजात विशेषता नहीं थी, लेकिन कालचक्र के कारण यह विशेषता दृष्टिगोचर होने लगी थी, यो तो हालात ने उसे कम झुकाया लेकिन वह उससे कहीं ज्यादा झुकने को खुद ही तैयार हो गया। परिस्थितियाँ आदमी से सबकुछ मनवा लेती है। जिंदगी समयरूपी नदी की वह धारा है जो खुद तो बहती है और दूसरों को भी बहने के लिए मजबूर करती है, अगर किसी ने इसके खिलाफ बगावत की तो वह उसे. खंगालकर कंगाल बनाकर ही दम लेती है। देवा के लिए आलोचना करना और सहना नियत दिनचर्या बन चुका है। यद्यपि उसका हृदय साफ है सबके सुख-दुःख में शामिल होना उसके लिए ईश्वर की इनायत है।
चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा वह अपनी ही धुन में जिये जा रहा है।
वह कभी जीते जी ईश्वर के सामने हाथ नहीं पसारा, वह कभी किसी भी परिस्थिति में रोया -गिड़गिड़ाया नहीं कि एक उसके साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा है। उसे जिंदगी जिधर मोड़ती वह
उधर मुड़ता जाता, वह स्वतंत्र ख्यालातो वाला आदमी है, उसे जीविका बाँध नहीं सकती थी इसीलिए वह एक काम पर ज्यादा दिन टिक नहीं पाता था या फिर उसके निक्कमेपन को देखकर लोग काम पर टिकने नहीं देते।
चौथा दृश्य
देवा -देवा पुरानी बातों को याद करता है कि कैसे उसके जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी आयी। उसे आज भी याद है कि कैसे वह पक्का निर्णय लिया कि अब कोई भी काम ठीक से मन
लगाकर करेगा। आखिर कब तक एक पैर पर खड़ा रहता, पर कौन सा काम करे जिसमे मेहनत भी ना हो और कमाई भी हो जाए।
जबतक उसकी लुगाई(दुखिया) और बच्चे (मुन्ना और गुड़िया ) जिंदा रहे 'मा कसम ' एक दिन भी बेकार नहीं रहा जी-तोड़ काम करता रहा। देवा का एक लड़का और लड़की था, जिसका नाम मुन्ना और गुड़िया था। एक दिन सड़क पर खेलते समय दोनों की बस से ठोकर लगने से घटनास्थल पर ही मौत हो जाती है। कुछ दिन बाद डॉक्टर से पता चला कि वह अब कभी माँ नहीं बन सकेगी। एक साथ इतना वज्रपात बेचारी कैसे सहती, वह भी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाती है और अल्लाह को प्यारी हो जाती है। इसलिए कहा जाता है कि देने वाला जब भी देता है छप्पर फाड़ के देता है ,लेकिन इसके ठीक व्युत्क्रम में ऊपरवाले ने देवा की झोली में खुशियों के बजाय गमों का अंबार लगा दिया। लोग कहते है कि मर्द को दर्द नहीं होता, लेकिन अक्ल के दुश्मन लोगों को कैसे समझाया जाए ,कि हृदय में संवेदनशीलता भी कोई चीज होती है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। ये बात और है कि शुरू से ही लड़कों को यह सिखाया जाता है कि तुम लड़के हो ,तुम्हें लड़कियों की भाँति रोकर अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना है, भले ही उन पर पहाड़ ही क्यों न टूट पड़े। चाहे उन्हें अंदर ही अंदर कोई दर्द क्यों न बेध रहा हो, फिर देवा भी तो उन्हीं पुरानी परंपराओं से जकड़ा 'लकीर का फकीर 'है, तो वो भला अपने पूर्वजों के पुराने लीक से अलग हटकर रोकर अपने हृदय की भड़ास निकाल कर जी हल्का करने के बजाय मन पे भारी बोझ ढ़ोना ही मंजूर हैं, लेकिन पुरानी रूढ़िवादिताओं के खिलाफ बगावत करने की हिम्मत उसमें कहाँ हैं।
पाँचवां दृश्य
(देवा अपने अतीत को जितना भुलाने की कोशिश कर रहा है वह उतना ही उन यादों के गिरफ्त में बुरी तरह जकड़ता चला जा रहा है, आखिर वह अब कमाये तो किसके लिए। पापी पेट का सवाल न होता तो उसे इतना सोचना नहीं पड़ता। वह इसी उधेड़बुन में माथापच्ची कर रहा है कि तभी कुछ लोग एक शव के पीछे 'राम नाम सत्य है 'बोलते हुए गुजरते है। एकाएक देवा के दिमाग मे बिजली -सी कौंध जाती हैं मानो उसे महात्मा बुद्ध की भाँति जीवन का सारतत्व मिल गया है। वह सोचता है क्यों न वह मरे हुए लोगों के लिए कब्र खोदे।
इसी बहाने कुछ पुण्य का कार्य भी हो जाएगा और पापी पेट की लंका भी बनी रहेगी।
कुछ समय बाद उसे यह काम मिल जाता है, भले ही उसकी मेहनत किसी की नजर नहीं भॉप रही है लेकिन उसे अपने मेहनत के रंग लाने का अहसास हो रहा है, सो वह अब इस काम को अपना ध्येय मानकर पूरे लगन से करने लगता है। रोज- रोज कमाई नहीं हो पाती फिर भी जितना होता है उतना उसे संतुष्टि का अहसास दिला रहे हैं।
दृश्य परिवर्तन
(एक दिन देवा यूँ ही बैठा विचारों में खोया रहता है, विचारों के लहरें आकर बार-बार उसके मनरूपी समुंद से टकरा कर वापस जा रहा है, आज न जाने क्यूँ उसका मन उदिग्न है, कोई द्वन्द है जो उसके मन के तार को छू रहा, आज उसके साथ पहली बार ऐसा हुआ कि उसका हाथ कब्र खोदते वक्त थम सा गया था और उसके हाथ में कंपन सा महसूस हो रहा था, ना जाने क्यूँ एक छोटी बच्ची का कब्र खोदते वक्त उसे अपने मासूम बच्चों की याद सता रहा था।
उसका जमीर उसे बार-बार कोस रहा था। आज स्वत: अपने आप पर घृणा हो रही थी।
यूँ तो यह काम करते उसे तीन साल बीत गया, लेकिन उसके साथ ऐसा पहली बार हो रहा है कि उसका हाथ उसका साथ नहीं दे रहा है, उसे संसार के उसूलों से घृणा हो रहा था। क्या पापी पेट के लिए कोई इतना कैसे नीच बन सकता है कि उसे किसी की मृत्यु खुशियाँ प्रदान कर सकता है! आज पहली बार ऐसे हजारों सवाल उसके मन को वेध रहे हैं कि कैसे अपनी पत्नी और बच्चों की मौत पर फूट-फूट कर रोया था, कैसे अपने मुन्ना और गुड़िया के शव को सीने चिपकाए हुए था और उसे कब्र में डालने नहीं दे रहा था।
इसी विचारों में उलझा देवा झटके से उठता है और कब्रगाह की तरफ कब्र खोदने वाला फावड़ा लेकर चल पड़ता है और कब्रगाह पहुँच कर अपने लिए एक कब्र खोदता है और दार्शनिक भाव से कब्र की मिट्टी को चूमता है और मिट्टी का तिलक लगाकर अपने घर की तरफ चल पड़ता है।
छठा दृश्य (रात का समय) स्थान-मदिरालय
देवा रात के 9.00बजे कब्र खोदने के लिए मिले बारह आने अपनी बटुए से निकालता है और अपनी पूरी ज़िन्दगी की कमाई लेकर मदिरालय की तरफ चल पड़ता है और मदिरालय पहुँचकर चार आने का चिखना और दो आने का मदिरा का ऑडर बड़े शान से देता है मानो वो दुनिया का सबसे बड़ा अमीर है। चिखना और मदिरा टेबल पर आने का बड़े दार्शनिक भाव से अपनी स्वर्गीय पत्नी दुखिया और अपने बेटे मुन्ना और बेटी गुड़िया को याद करता है। कुछ देर में मयखाने में शराबियों की एक टोली झूमती हुई नजर आती है ,और कुछ शेरो-शायरी करते हैं तो कुछ झूमते हुए मयखाने की शान में चार चाँद लगा रहे हैं। देवा अपनी दुःख -विषाद को भूल कर चखने और मदिरा का आनंद लेते हुए उसी माहौल में ढ़लने लगा, वो मदिरा का प्याला लेकर उसे छलकाते हुए वही अपनी पुरानी गीत गुनगुनाने लगा जो वह अपनी लुगाई दुखिया के लिए गाया करता था।
धीरे -धीरे पूरा मदिरालय मदहोशी के आगोश में चला गया और देवा भी अपना चखना और मदिरापान खत्म कर मदिरालय से बाहर निकलता है तो देवा को एक भिखारी (बदरी) मिलता है, जो बड़ी करूणदृष्टि से उसे देख रहा था। देवा लड़खड़ाते हुए भिखारी के पास पहुँचता है और मुस्कुराते हुए अपने बचे छह आने भिखारी को देते हुए बोलता है -'ये लो! मेरी पूरी ज़िन्दगी की कमाई। जाओ। भूल जाओ दुनिया के हर प्रपंच को और अपनी रात को सबसे अलग बना लो। भिखारी वो पैसे लेकर देवा को मन -ही-मन दुआ देता है।
फिर अचानक देवा को ना जाने क्या सूझता है, वह कब्रगाह की तरफ चल पड़ता है और अपनी खोदी हुई कब्र पर लुढ़क जाता है और कुछ ही देर में उसकी आँखें सदा के लिए बंद हो जाती है।
पर्दा गिरता है
सुबह का समय
सुबह नित्यकर्म के लिए जाते हुए गाँववाले उसके मृतक शरीर को देखकर पूरे गाँव वालों को इस बात की जानकारी देते हैं।
(फुसफुसाहट की आवाज आती है। गांववाले आपस में बात कर रहे हैं कि बेचारे ने जीते -जी किसी से सेवा नहीं लिया और मरते बखत भी किसी को सेवा-टहल का मौका नहीं दिया। सभी की जुबान पर एक ही बात है कि कब्रगाह का रखवाला आज इसी कब्रगाह में दफन हो गया।
हाय रे! कब्रगाह! हाय रे! कब्रगाह!
सभी गांववाले मिट्टी देकर अपने -अपने घर लौट जाते हैं।
(सभी दर्शकगण भावविभोर हो उठते है, किसी आँखों में आँसू हैं तो, कोई कुछ समय के लिए निस्तब्ध नाटकशाला में बैठा रह जाता है )
पर्दा गिरता है है और नाटक का पटाक्षेप होता है।
---
नवनीता कुमारी (दंत-चिकित्सक)
(हजारीबाग कॉलेज ऑफ डेन्टल साइंसेस एण्ड हॉस्पीटल)
जिला -पं. चंपारण
राज्य-बिहार
COMMENTS