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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 25 - - एक दोस्ती का नाम .....अलीश्वर !!
- शिक्षा धारिया
ये नाटक एक फौजी और पोते के संवाद के विषय को दर्शाता है । जिसमें फौजी पोते को , उसके पिता से सम्बंधित एक किस्सा, एक कहानी के माध्यम से बताता हैं।
इस नाटक के मुख्य किरदार , एक रिटायर्ड फौजी ( केप्टन रघुनाथसिंह ) , उनकी बहू ( समिता) , बेटा ( ईश्वर) , पोता ( अलीश्वर ) , पड़ोसी नफीज का बेटा ( अली )..!
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....रात गहराई सी , कुछ काली सी हो चली थी , हवाओं का रूख बड़ा अजीब हो रहा था । मैं ( रघुनाथ सिंह ) अपने कमरे की पस्त हो चुकी चारपाई पर लेटा था , नींद आंखों से कोसों दूर गायब थी , आज न तो सूरज का उजाला था और न ही चांद अपनी चांदनी आसमां में बिखेरने उतरा था ।
दादाजी .......दादाजी ....मां दादाजी कहाँ हैं , मुझे कहानी सुननी है ....दादाजी ..
( अली तेज स्वर में पुकारते हुए आता हैं । )
समिता ( अली की मां ) - अलीश्वर ...बेटा इतना तेज कौन चिल्लाता है , रात बहुत हो गई ...ले दूध पी ले और टाइम से सो जा और दादाजी अपने कमरे हैं ....उन्हें आराम करने दे बेटा , क्यों परेशान करता रहता हैं उनको ...।
अलीश्वर - मां ये क्या बोल रहे हो आप , मैं उन्हें परेशान थोड़ी न करता हूँ ...मैं तो उनसे कहानी सुनकर चुपचाप सो जाता ..अच्छे बच्चे की तरह।
समिता - हां मेरे अच्छे बच्चे , ये ले दूध पी ले ।
अलीश्वर - और वैसे भी मां दादाजी को मुझे कहानी सुनाए बिना नींद कहा आती हैं ।
दादाजी ....दादाजी ....आप सो गए क्या .....
दादाजी .....
( अली फिर से तेज स्वर में चिल्लाते हुए बोलता है )
रघुनाथ सिंह - मैं एक रिटायर्ड आर्मी आफीसर केप्टन रघुनाथ सिंह हूँ , जो अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटता ।
( रघुनाथ सिंह बाहर के कमरे से आते हुए बोलते हैं )
कहाँ था अली तू ...मैं तेरी कब से राह देख रहा हूँ और बहु तूने इसे खाना खिलाया कि नहीं ....
समिता - बाबूजी खाना भी खिला दिया और दूध भी पिला दिया ।
....क्या हुआ बाबूजी आज आप कुछ उदास से दिख रहे , सब ठीक हैं न ...।
रघुनाथ सिंह - अरे नही बहु , सब ठीक हैं तू जा सो जा , वैसे भी कितना काम करती हैं , थक गई होगी ....और अली को आज अपने ही साथ सुला लूंगा , कहानी सुनते ही सो जाएगा , अब जा बेटा ...आराम कर ले ।
सुमिता - जी बाबूजी ...जाती हूं , लेकिन ये जरा भी परेशान करें तो बुला लेना और दादू पोता दोनों , टाइम से सो जाना ( कहते हुए अपने कमरे में चली जाती हैं ) ।
अलीश्वर - दादाजी , आप बहुत अच्छे से मां को समझा देते हो ..लेकिन वो मेरी बात सुनती ही नहीं ।
अच्छा दादाजी .....
रघुनाथ सिंह - हां बोलो अली ....
अलीश्वर - आप आज उदास हो कुछ तो बात हैं , जो आपने मां को नहीं बताई ...मैं तो आपका सीक्रेट वाला दोस्त हूँ न ...आप मुझे बता सकते हो , पक्का प्रोमिस मैं किसी को नहीं बताऊंगा , मां को भी नहीं .....।
रघुनाथ सिंह ( हंसते हुए ) - हा हा हा.....
तू आजकल बहुत बोलने लगा है...सही कहती है तेरी मां , .....पता है अली , तू हमेशा ऐसे ही मुस्कराते रहना कभी खुद को मत खोना बेटा , ये नि:स्वार्थ मुस्कान बचपन का सबसे मासूम तोहफा होती हैं, जो भगवान जी सभी को देते हैं तू अपनी मुस्कराहट को हमेशा संम्भाल के रखना, क्योंकि जैसे - जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी हंसी खोखली सी होने लगती हैं ,
जलाने लगती हैं , जैसे जब सूर्य ज्यादा तेज चमकता हैं तो जलाता हैं राहत नहीं पहुंचाता .....समझा अली ।
अलीश्वर - दादाजी आप भी न....पता नहीं क्या क्या बोलते हो , मुझे कुछ पल्ले नही पड़ा उल्टा मैं तो कन्फ्यूज हो गया ।
रघुनाथ सिंह - अरे बेटा कोई बात नहीं , इस बार तुझे आसान भाषा में समझाता हूं ।
अलीश्वर - नहीं दादाजी , आप ये सब मुझे बाद में समझा देना , अभी तो आप बस कहानी सुनाइए ...प्लीज दादाजी .....।
( मैं भी न इस छोटे से बच्चे को न जाने क्या- क्या समझाने में लगा रहता हूँ , रघुनाथ सिंह मन में सोचते हुए बड़बड़ाते हैं )
रघुनाथ सिंह - आज मैं तुझे तेरे पिता का एक बचपन का किस्सा सुनाता हूँ ....उसकी दोस्ती का कहानी , उस किस्से को आज भी याद करता हूँ , तो गर्व महसूस करता हूँ ।
अलीश्वर ( उदास मन से ) - दादाजी , पापा इस बार भी नहीं आयेंगे मेरे स्कूल , मेरी पेरेंट्स टीचर्स मींटिंग में , मैंने सबको बोला है कि इस बार मेरे पापा भी आयेंगे लेकिन पापा ......
.....मैं पापा से इस बार बात ही नहीं करुंगा , गुस्सा रहूंगा ।
रघुनाथ सिंह - नहीं अली , ऐसा नही बोलते ...तेरा पिता देश की सेवा कर रहा है , अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हैं ।
अलीश्वर - दादाजी कर्तव्य क्या होता हैं ।
रघुनाथ सिंह - अली कर्तव्य का मतलब कर्म से होता हैं , जो पूरी ईमानदारी से किया जाता हैं जैसे तेरी मां समय से पढ़ाने जाती हैं फिर घर का काम करती हैं और जैसे तू प्रतिदिन स्कूल जाता है ।
अपने काम को बिना किसी भेदभाव मतलब बिना ये देखें कि कौन हिन्दू हैं और कौन मुसलमान हैं , कौन सिक्ख या बिना किसी जाति को महत्व दिए और बिना ये सोचे कि ये अमीर हैं या वो गरीब हैं , अपने कर्तव्यों का निर्वाह पूरी ईमानदारी से करना ही कर्तव्य हैं ।
जो हर व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है ।
कुछ समझे बच्चे ......
अलीश्वर - हां दादाजी ,, बस अब कहानी सुनाइए ....नहीं तो पापा की फिर से याद आ जाएगी ....।।
रघुनाथ सिंह - ( धीरे स्वर में ,, मुझे तो मेरे ईश्वर की न जाने क्यों आज बहुत याद आ रही है...फिर हंसते हंसते हुए )
हा हा हा ....,,,ठहर सुनाता हूँ कहानी , आज मैं तुझे तेरे पापा का बचपन का किस्सा सुनाता हूँ .....,,, ।
अलीश्वर - पापा की कहानी ...,,, सुनाइए दादाजी ; क्या बचपन में पापा मुझसे भी ज्यादा शैतानी करते थे..? ( अली उत्साह से पूछते हुए )
रघुनाथ सिंह - हा हा हा ..,,, हा करता तो था ईश्वर शैतानी लेकिन दिल को भा जाए , ये कहानी हिंदुस्तान के बंटवारे के काफी बाद की है , पता है अली जब हमें आजादी मिली तो लगा , कि सूर्य चमकने के साथ - साथ मुस्कान बिखेर देता हो....सुखी घास हरी हो जाती और तो और चांद की चांदनी खुशहाली के गीत गाती , हर तरफ खुशियों भरा माहौल था , तारे तो मानो सुकून बिखेर कर ही गुम होते ....,,, हम सब आशाओं के गीत गा रहे थे ।
''वक्त मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह होता हैं , न रूकता है , न ठहरता है , आज को कल में , सुख को दुख में , खुशनुमा पल को यादों में कब बदल देता हैं ....,, कुछ पता ही नहीं चलता ,,, गुजरे हुए लम्हों को आंखों में छिपाकर कहां गुम हो जाता हैं , कौन जाने ...., कुछ पता नहीं " । खुशियों की
चौखट पर गमों ने दस्तक दी .....हिंदुस्तान का बंटवारा हो गया था , चारों तरफ आतंक भरा माहौल था । भारत दो भागों में बंट चुका था - हिंन्दुस्तान और पाकिस्तान ...,,,और इसके साथ ही हमारे अपने लोग आपस में लड़ने लगे ,हिन्दू ...मुसलमान करने लगे । आज धर्म बंटा था या फिर भगवान , नहीं पता ...,,, कौन जाने ये हिन्दू और मुसलमान आजादी के पहले शुरू हुआ या बाद में ...।
अलीश्वर - फिर क्या हुआ दादाजी ....?
रघुनाथ सिंह - फिर ये चिंगारी कभी बुझी नहीं , सुलगती रही और क्या पता शायद देश के किसी कोने में अब भी सुलग रही हो ...खैर !
ये चिंगारी कब लगी नहीं पता , किसने लगाई नहीं पता , लेकिन आग का रूप नहीं ले पाई ...,,पता है क्यों ...!
अलीश्वर - क्यों दादाजी ...?
रघुनाथ सिंह - क्योंकि कुछ लोग अंजाने में ही सही हमें सही - गलत का पाठ पढ़ा देते हैं , नासमझ होकर बहुत कुछ समझा देते हैं ।
बंटबारे के बाद ये चिंगारी सुलग रही थी , हर गली , हर मोहल्ले में धुएं का आसमान बना रही थी ...,,,या यूं कहूँ कि लोगों की सोच धुंधला रही थी और ये धुआं हमारे मोहल्ले में भी छाने लगा । उस समय मैं सरहद पर अपनी ड्यूटी कर रहा था....,,तुम्हारे पिता, अपनी मां और अपने दादाजी यानी मेरे पिताजी के साथ बनारस में रहते थे और पता हैं जिस मोहल्ले में हम रहते थे वहाँ सिर्फ एक मुस्लिम परिवार था ,, "मोहम्मद नफीज भाई का परिवार " , नफीज बाबूजी का बहुत आदर करता था और बाबूजी भी तो मेरे न रहने पर कोई भी जरूरी काम नफीज से ही कराते थे , आखिर वे उसे अपना बेटा ही समझते थे । नफीज का एक बेटा था , जिसका नाम अली थी ...वो तेरे पिता का सबसे अच्छा मित्र था , वो अंग्रेजी में क्या कहते .....
( तभी अलीश्वर उत्साह से बोल पड़ता है बेस्टफ्रेंड दादाजी )
हां वही बेस्टफ्रेंड ....,,, बड़ी गहरी दोस्ती थी दोनों में , दोनों साथ स्कूल जाते , साथ खेलते , साथ खाना खाते और कभी कभी तो साथ में ही सो जाया करते ...कभी अली हमारे यहां नफीज के साथ सो जाता तो कभी ईश्वर अली के घर उसके साथ सो जाता ...., ,,बहुत ही प्यारी दोनों की दोस्ती थी ।
लेकिन एक दिन दंगे की चिंगारी न जाने कहां से हमारी गली में आकर ठहर गई ,हिन्दू - मुस्लिम का धुआं उठने लगा , मोहल्ले के लोग नफीज भाई के परिवार को निकालना चाहते थे , वे लोग चाहते कि नफीज का परिवार ये घर छोड़कर कहीं और चला जाए ।
अलीश्वर - लेकिन क्यों दादाजी , वे घर क्यों छोड़े ...क्या नफीज अंकल कोई गलती की थी.....?
रघुनाथ सिंह ( कुछ सोचते हुए ) - हा...,,शायद ये उसकी गलती थी कि उसका बेटा मंदिर चला गया था , गलती थी कि उसके अली ने खुदा की बंदगी भगवान के घर कर ली थी , हम्म्म....!
दरअसल हुआ ये था ...,,,कि अली और ईश्वर दोनों साथ में पढ़कर आ रहे थे , जुमे का दिन था वो , उस दिन नफीज और अली दोनों मस्जिद में जाते थे , खुदा की बंदगी के लिए , लेकिन उस दिन अली को आते आते देरी हो गई ।
उसने ईश्वर से कहा - ईशु आज मस्जिद जाना था , पर मैं लेट हो गया अब क्या करूं और घर पहुंचने में अभी देर लगेगी , यहां कोई मस्जिद भी नहीं कि नमाज पढ़ सकूं ,, बता ईशु क्या मैंने कभी जुमे की नमाज नही छोड़ी ।
मेरे ईश्वर भी बड़ा भोला था , उसने कहा - अरे अली तेरी समस्या का समाधान हैं मेरे पास , "मेरे दादाजी कहते हैं कि अल्लाह और ईश्वर एक है और टीवी में भी तो सांई बाबा कहते हैं कि सबका मालिक एक मतलब भगवान जी एक हैं , रूप अनेक हैं ", हा ईशु मेरे अब्बू भी यही कहते हैं कि खुदा एक हैं , जो सबकी सुनता हैं ...,,,अली ने कहा । फिर ईश्वर अली से कहता हैं , कि मेरा मंदिर तेरी मस्जिद वाली समस्या
का समाधान हैं ....,, देख यहां एक भी मस्जिद नहीं लेकिन मंदिर तो चारों तरफ हैं न ।
हा ईशु तूने सही कहा अली ईश्वर से कहता हैं और दोनों मंदिर की तरफ चले जाते हैं ।
वहां मेरा ईश्वर हाथ जोड़कर सर को झुकाए अपने भगवानजी को याद करता हैं और प्यारा अली घुटने पर बैठे , दोनों हाथ खोलकर सर उठाए अपने खुदा की बंदगी करता हैं । सच में कितना सुंदर दृश्य रहा होगा वो , क्यों बेटा ...क्या लगता हैं तुमको ....।
अलीश्वर - हा दादाजी ..,सही में ...,,लेकिन इसमें गलती क्या थी और अगर गलती थी तो क्या भगवानजी मना करते होंगे करने को या फिर अल्ला ...?
रघुनाथ सिंह - नहीं बेटा , भगवान और अल्ला सब एक ही हैं , बस उनके पते अलग - अलग हैं ।जिससे लोग आराम से उन तक पहुंच सके । बच्चे मैं तुम्हें एक उदाहरण देकर समझाता हूँ ....,,,जैसे कोई पेड़ कई शाखाओं में बंटा होता हैं और उस पर कई तरह के पक्षी अपना घोंसला बनाते हैं , उसी तरह भगवान जी की भी कई शाखाएं है जहां जाकर हम उन्हें याद कर सकते हैं ।
पेड़ तो कभी मना नहीं करता चिडिय़ों को कि तुम यहाँ अपना घोंसला मत बनाओ या किसी और पक्षी को वह तो सबको अपनी शाखाओं में समेट लेता है , उसी तरह भगवान जी हैं , जो सारी दुनिया , हर व्यक्ति को अपनी छाया में समेट लेते हैं फिर चाहे जो भी पता हो ।
लेकिन जिस प्रकार माली पेड़ पर अपना अधिकार समझ लेता हैं , उसी तरह कुछ लोग भगवान के घरों पर अपना अधिकार समझ बैठे हैं ,जबकि वास्तव में उनका कोई अधिकार हैं ही नहीं !
ये सब कहने का क्या हक था लोगों को कि अली ने मन्दिर में नमाज पढ़कर गलती की थी , क्या हक था ये कहने का कि मन्दिर में खुदा नहीं बसते ......,,,, ये खबर मोहल्ले में आग की तरह फैल गई और लोगों ने तिल का ताड़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उस बच्चे को पता ही नहीं था कि उसका क्या अपराध किया है वाकई ये तो हम जैसे बड़े लोगों का अपराध था जो ऐसी सोच को जन्म दे रहा था , विकसित कर रहा था, न कि उस मासूम का ....उसने तो अनजाने में सीख दी थी हम बड़ों लोगों को .....,,, लेकिन लोगों की आंखों पर हिन्दू मुस्लिम की सोच का परदा पड़ा हुआ था कि वे उस बच्चे से सीखने के बजाय उसकी गलती निकाल रहे थे , मोहल्ले वालों ने निर्णय लिया कि नफीज का परिवार ये मोहल्ला छोड़ दे ,कहीं और बस जाए ।
अलीश्वर - फिर क्या दादाजी , पापा के दोस्त चले गए .....?
रघुनाथ सिंह - नहीं बेटा , कोई कहीं नहीं गया।
अलीश्वर ( लगभग तेज स्वर में ) - कैसे दादाजी , क्या हुआ फिर ....?
रघुनाथ सिंह - सुन तो सही .......,,, तेरे पापा मतलब ईश्वर और अली की वजह से ।
तेरे पापा ने अपने दादाजी से कहा कि ईश्वर , अली कभी नहीं जाने देगा ,उसने बाबूजी से कहा - कि मैंने बोला था अली से कि वो मन्दिर में नमाज पढ़ ले और इसमें उसकी कोई गलती नहीं हैं , दादाजी आप आज शाम को सारे मोहल्ले वालों को घर बुलाइए , मुझे कुछ कहना है अगर सबको तब भी कुछ गलत लगे तो हम मान लेंगे कि वाकई हमने गलती की हैं ।
क्या कहना हैं ईश्वर तुम्हें , मुझे नहीं पता लेकिन कुछ ऐसा करना बेटा कि लोगों की सोच बदल जाए , मुझे तुझ पर और अपनी शिक्षा पर पूरा विश्वास है , मैं हमेशा तेरे साथ हूँ , बाबूजी ये कहते हैं ।
.......जी दादाजी , मैं सब ठीक कर दूंगा बस आप मेरे साथ हो तो सब ठीक होगा तेरे पापा ने कहा !
......,,,, सुरज अपनी लालिमा को समेटते हुए बादलों के बीच गुम होने लगा था , शाम हो चुकी थी । मोहल्ले के सभी लोग हमारे घर इकट्ठा हो गए थे । .....,,देख सब आ गए ईश्वर कहां है तू ....ईश्वर ....ईश्वर ...(बाबूजी ऊंचे स्वर में कहते हैं )
मैं यहाँ हूँ , दादाजी आप सब बैठ जाइए ।
मैं आप सब से कुछ कहना चाहता हूं , आप बड़े मुझसे लेकिन फिर एक बार मेरी बात सुन लीजिये ,,बस एकबार , मैं उसके बाद कुछ नहीं कहूंगा ।
रघुनाथ सिंह - उसके बाद मेरे ईश्वर ने जो कहा उसे सुनकर सबके होश उड़ गए , उसने हाथ जोड़ कर कहा कि मैं आपको हमारे संविधान के विषय में कुछ बताना चाहता हूं .....
★ संविधान ★
क्या बतलाऊं उसकी भाषा ,
सबसे अलग जिसकी परिभाषा
इसमें हैं नारी का मान ,
जिसमें बसता सभी का सम्मान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान ।।
धर्मनिरपेक्ष के गीत गाता ,
न्याय की रीत सिखलाता
हर व्यक्ति की है पहचान ,
हर भारतवासी का ये अभिमान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान ।।
देश की मिट्टी में बसती इसकी जान ,
हिन्दुस्तानियों की है ये शान
हर वर्ग की पहचान कराए इसका विधान,
शहीदों की यादों का ये गुलिस्तां
कुछ ऐसा है हमारा संविधान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान ।।
हर भाषा , हर धर्म की स्वतंत्रता दिलाता ,
आपसी मतभेद भुलाकर एकता के गीत गाता
हर वर्ग , हर समुदाय का है ये मान ,
हर समस्या का है ये समाधान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान ।।
हर धर्म से ऊपर का हैं ये मंत्र ,
भारतमाता का है ये पवित्र ग्रंथ
इसमें बसते गीता और कुरान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान
कुछ ऐसा है हमारा संविधान ।।
संविधान , मतलब सभी धर्मों का एक ही डोर से बंधे होना , सभी का सम्मान होना ....,,, हमारा संविधान हमें मिलजुलकर रहने की सीख सिखाता हैं तो फिर आप लोग क्यों नहीं समझते।
जब आपको दवाई की जरूरत होती हैं तो आप सब डाक्टर नफीज चाचा के यहाँ ही क्यों जाते है , तब क्यों कोई ये नहीं देखता कि वे मुस्लिम हैं।
अच्छा आप सब मुझे एक बात का जवाब दीजिए कि सरहद पर तो सारे जवान अलग अलग धर्मों के होते हैं न , तो भारतमाता भी यही बोलती हैं कि जो हिन्दू है वही मेरी रक्षा करेगा , वही मेरे लिए खून बहाएगा नहीं न .....,,, आजादी हमें सिर्फ हिन्दुओं ने नहीं दिलाई , उसमें तो हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख , ईसाई सभी धर्मों के लोग शामिल थे , सभी ने अपना रक्त बहाया था ।
......,,,,,और "हमारा तिरंगा वो तो ये भेदभाव नहीं करता न , उसका केसरिया रंग हिंन्दुओं का सम्मान हैं तो हरा रंग मुस्लिमों का स्वाभिमान हैं और सफेद रंग हिन्दू और मुसलमान के बीच एकता और शांति का प्रतीक हैं " ।
....,,तो आप कैसे हमारे संविधान , हमारी मिट्टी , हमारे तिरंगे के खिलाफ जा सकते है ।
आप सबने हिन्दू - मुस्लिम करके धरती तो बांट ली , अब क्या इंसानों को भी बांटना चाहते हैं ।
मैं ईश्वर और मेरा दोस्त अली, हम भले ही
अलग - अलग धर्मों के हो लेकिन हमारी दोस्ती एक हैं , जिसका नाम अलीश्वर हैं जिसमें ईश्वर का आशीर्वाद भी हैं और अल्लाह की इबादत भी हैं, इसमें प्रेम भी है और त्याग भी ,, ......अब बताइए आप सब कि आप क्या , अली और ईश्वर की पाक और पवित्र दोस्ती को भी बाटोगे ।
अलीश्वर - दादाजी ये तो मेरा नाम है ,अच्छा पापा ने तभी मेरा नाम अलीश्वर रखा ....,,, फिर क्या हुआ दादाजी नफीज अंकल को जाना पड़ा कि नहीं , मोहल्ले वालों ने क्या कहा .....?
रघुनाथ सिंह -अरे तेरे पापा ने अपने तीखे प्रश्नों से सबकी बोलती बंद कर दी और मेरा सीना तो गर्व से चौड़ा कर दिया था ।
किसी के पास कोई जवाब नहीं था , बस सब अपराधबोध और नफीज की तो आंखें भींग गई , उसने तो ईश्वर को कसकर गले लगा लिया , और बाबूजी तो गर्व और खुशी से फूले नहीं समा रहे थे ।
आज एक नई सोच का जन्म हुआ था , जो वातावरण को स्वस्छ और सुन्दर बना रही थी ।
और इस दोस्ती के यादस्वरूप ही तेरे पिता ने तेरा नाम अलीश्वर रखा ।
अच्छा बताओ तो सही कैसी लगी कहानी अपने पिता ....?
अलीश्वर - बहुत अच्छी थी दादाजी , अब मैं भी पापा की तरह बनूंगा और कर्तव्य का पालन भी करूँगा ।
रघुनाथ सिंह - हां बिल्कुल अली , अपने पापा की तरह बनना और हमेशा सही का साथ देना ।
अब सो जा बेटा ..देख बहुत रात हो गई
अलीश्वर - जी दादाजी ।
( रघुनाथ सिंह और अली दोनों सो जाते हैं ।)
> ......पर्दा गिरता है ।।।।
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- ● Writer - Shiksha Dhairya
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