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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 24 - छोटी सी बातचीत
मिन्नी शर्मा
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भूमिका(सूत्रधार)
दो कज़न जो कि एक पारिवारिक आयोजन में बहुत सालों बाद मिल रहें हैं। उनकी एक लंबी बातचीत का मंचन दिखाया गया है। उनकी इस बातचीत में सालों से न मिलने के कारण कुछ अजनबीयत है पर मातृक रिश्ता होने के कारण एक विश्वास तथा छुपा हुआ प्रेम है। जो उनकी बातचीत बढ़ने के साथ-साथ और निखरता जाता है। एक छूटा हुआ रिश्ता जुड़ते हुए दिखाई पड़ता है। आजकल के वरच्युल रिश्तों के दौर में ऐसी ही छोटी सी बातचीत से वंचित हम इंसान अपने परिवार की बड़ी-बड़ी बातों से अनजान रह जाते हैं। परिवारों में कैसे-कैसे रहस्य पनप जाते हैं,जिनका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा पाते। ये जटिलता दिखाने की भी कोशिश की है।
पहला दृश्य
(मंच पर बहुत सी भीड़ जमा है और सब के सब आपस में गुट बनाकर बातें करने में लगे हैं। और साथ ही पाश्र्व में तेज़ संगीत बज रहा है। बुरी तरह से शोर मचा हुआ है। वहीं कोने में इस एकांकी के मुख्य नायक तथा नायिका निलय और मिली खड़े हैं। दोनों की उम्र में कुछ खास फर्क नहीं है। निलय मिली से थोड़ा ही बड़ा है। दोनों एक-दूसरे से बात करने को उन्मुख हैं। बड़े होने के नाते निलय ही शुरुआत करता है।)
निलय- और बताओ क्या कर रही हो?
मिली- वैसे तो मैं बहुत कुछ कर रही हूं, पर मैं जो करती हूं दुनिया की नजरों में वह कुछ ना करना है। तो मैं आपको क्या बताऊं ;जो मैं कर रही हूं या वह जो मैं नहीं कर रही!
निलय- अरे तुम तो बड़ा बोलने लगी हो। पिछली बार जब तुम हमारे घर आईं थीं तो कुछ बोलती ही नहीं थी।
मिली- तब मैं आपसे नाराज थी।
निलय- नाराज किस लिए?
मिली- आपको शायद याद नहीं होगा। बचपन में आपकी वजह से मुझे थप्पड़ पड़ा था । आपने आपके भैया के बर्थडे पर जो खाने का सामान आया था उसमें से कुछ खा लिया था और जब आपकी मम्मी ने पूछा था तो मेरा नाम लगा दिया था और फिर मौसी ने मुझे ज़ोरदार थप्पड़ मारा था। तब से ये बात मुझे याद है। मुझे आप पे बहुत गुस्सा आया था ।
निलय- तो अब भी गुस्सा हो। मुझे ऐसा कुछ याद तो नहीं, फिर भी सॉरी....
मिली- नहीं-नहीं !मैं तो मज़ाक कर रही थी।(कुछ बनावटी सी हंसी हंसते हुए)..
..वैसे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। अब मैंने लोगों को बिना माफी मांगे भी माफ करना सीख लिया है।
निलय- क्या बात है! बड़ी समझदार हो गई हो।
मिली- मैं तो बचपन से ही समझदार हूं । बस कोई समझता नहीं।
निलय- हूं , हूं !
मिली- अ... हां!
थोड़ी देर चुप रहने के बाद...
निलय- तुम कभी फोन नहीं करती।
मिली- हां मेरा मन तो करता है पर सोचती हूं.. सिर्फ सोचती तो चल जाता पर मैं कुछ ज्यादा ही सोच लेती हूं हद से ज्यादा...
निलय- क्या सोचती हो? ये तो बताओ।
मिली- यही कि आपको अच्छा लगेगा कि नहीं। आपके पास टाइम हो! फिर लगता है कि आपको मेरी बातें समझ आएंगी; आपका हमारा लाइफस्टाइल कितना अलग है.....फिर आप भी तो कभी फोन नहीं करते। "वो नहीं करता, तो मैं भी ना करूं" बस यही सोच कर इंसान कुछ नहीं करता। आप भी तो यही सोचते हैं ना...
निलय- नहीं ....वह मेरे पास तुम्हारा नंबर नहीं है।
मिली- अब बस..करो । आपने कभी मांगा ही नहीं।(गंभीर होते हुए) पर मैं समझती हूं इसमें आपकी गलती नहीं है आजकल लोगों की ज़िंदगी ही अजीब हो गई है। अपनों से बात करने का ख्याल नहीं आता और अनजान लोगों से घंटों - घंटों चैट करते रहते हैं और हमारा तो रिश्ता भी कुछ बस नाम को ही है। बचपन से कभी साथ तो रहे नहीं। कभी ज़्यादा मिलना नहीं हुआ । बस इस बात के अलावा कि आप बड़ी मौसी के बेटे हो ; हम अजनबी ही तो हैं।
निलय-(कुछ उदास और बेचैन होते हुए) अब देखो ऐसे मत कहो। मैं तुम्हें दिल से अपनी बहन मानता हूं ।तुम हो.... मुझे तुम्हारी फिक्र है तुम्हारी। ऐसा मत सोचा करो ।
मिली(अपनी आंखों में आते आंसुओं को संभालते हुए)- ओ... मैंने तो आपको दुखी कर दिया यह तो मेरा स्पेशल टैलेंट है। इसके बारे में किसी और दिन बात करेंगे अभी तो आप मेरे एक और टैलेंट से रूबरू होना चाहेंगे! बताइए, चाहेंगे?
निलय- मुस्कुरा कर हामी भरते हुए ।
मिली- ऐसे नहीं पूरे जोश में जवाब दीजिए। बोलिए जोर से बोलिए 'हां भाई हां '!
निलय- हंसते हुए ....हां भाई हां ।
मिली- तो बात ये है कि आपको शायद पता नहीं होगा। कैसे पता होगा मैंने बताया ही नहीं कि आपकी बहन एक कमाल की जासूस है। आप मेरे शक्की मिजाज़ की दाद देंगे क्योंकि मेरे सारे शक सच में बदल जाते हैं।
निलय- अच्छा..?
मिली- तो और क्या! सुनिए ज़रा कान लगा कर।
मैंने ठीक पिछले साल की बेहतरीन ताजा तरीन मिस्ट्री सॉल्व कर ली है ; सुनकर एकदम सरप्राइज़ हो जाएंगे । पर एक मिनट,( इधर-उधर देखते हुए) यहां नहीं बता सकती दीवारों के और यहां मौजूद लोगों के कान मिलाकर ना जाने कितने कान होंगे यहां! एक-आध तो सुन ही लेगा ।
सामने वाले पार्क में चलते हैं । चलिए मेरे पीछे।
दोनों मुस्कुराते हैं । और पार्क की ओर चल देते हैं।
दूसरा दृश्य
(मंच पर बाग़ का दृश्य है। पेड़ के नीचे पड़ी बैंच पर दोनों बैठ जाते हैं। )
मिली- आहा !क्या मौसम है यहां का ! वहां तो ऐसा लगता था जैसे प्रलय ही आ गई हो। खुशी का फंक्शन हो रहा है या मौत का तमाशा ; समझ ही नहीं आता! ऐसा भयंकर शोर मचाया हुआ है।
निलय- तुम्हें शोर पसंद नहीं !
मिली- भला शोर भी कोई पसंद करने वाली चीज है। पसंद करना है तो सीआईडी के इंस्पेक्टर दया को पसंद कीजिए। इसको कहते हैं 'बात'। खुशी अपने आप आ जाती है देखने वाले को।
निलय- हा हा! तुम्हारा तो सैंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है। मुझे तो पता ही नहीं था ।
मिली- आजकल तो लोगों को सच मजाक ही लगता है और सच बोलने वाले कॉमेडियन ।
निलय- अच्छा ! मेन बात तो बताओ जिसके लिए यहां आए हैं।
मिली- हां, तो सुनिए ध्यान से भाई साहब। पिछले साल की बात है जब हमारे नाना मरे थे। सबको लगा था कि ये है ट्रैजेडी पर गौर करने पर निकली मिस्ट्री! वह भी कोई ऐसी वैसी नहीं.. मर्डर मिस्ट्री! समझे कुछ !
निलय- तुम यह क्या कह रही हो ? पागल तो नहीं हो गई!(कुछ कुछ चिल्लाते हुए)
मिली- श..श.. मैंने यह बात किसी को नहीं बताई। आपको सिर्फ इसलिए बता रही हूं कि मुझे लगा कि आप यकीन करेंगे। आपको यकीन नहीं तो कोई भी केस सोल्व करवा कर देख लीजिए सच ना बताया तो आपको ।
निलय- मेरा वो मतलब नहीं था। (कुछ संभलते हुए) तुम ऐसा कह रही हो.. अपने खानदान के बारे में!
अजीब लगता है तो बस.. ।
मिली- तो बस क्या ? आपको कुछ पता नहीं कि कैसा मिस्टीरियस और डेंजरस खानदान है आपका।
निलय- मेरा.. क्या मतलब है ; तुम्हारा नहीं है क्या? भाई जासूसों का खानदान-वानदान नहीं होता। सिर्फ सच और सच! आगे सुनिए..
..तो आपको पता है कि नाना बीमार हो गए थे और बिस्तर से उठ नहीं पाते थे । तो उनका काम कौन करता? मामा-मामी को तो उनके आप जानते ही हैं उन्हें तो बस उनकी पैंशन से मतलब था। सेवा-वेवा कौन करे। तो उन्होंने उन्हें छोटी मौसी के पास भेज दिया गया वहां वह ठीक से रहे थे ।मौसी कहती हैं कि थोड़ा-थोड़ा ठीक भी हो रहे थे। और उन्हें ऐसा कुछ हुआ ही क्या था ? बस अंदरूनी चोट थी। डॉक्टर ने कहा था, धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी। कोई सीरियस बीमारी नहीं थी। और पता है जिस दिन वह मरे उस दिन मामा उन्हें अपने घर ले गए थे ।पता नहीं, उन्होंने उनके साथ क्या किया?
लोगों से कहते हैं कि कोई घर पर नहीं था।
मामा-मामी और उनके बच्चे नाना को अकेला छोड़कर किसी शादी में गए थे।आए तो मरे पड़े थे। भला! यह क्या बात हुई ? छोटी मौसी के पास तो अच्छे भले थे। यहां आते ही मर गए। सोचने वाली बात है कि नहीं!
सबसे बड़ा प्रूफ तो यह है कि मामा पहले भी नाना को मारने की कोशिश कर चुके थे। नाना ने खुद छोटी मौसी को बताया था कि मामा ने , एक दिन जब वह सो रहे थे उनका गला दबाने की कोशिश की थी । बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को बचाया था।
मामा तो है ही निकम्मे। काम-धाम तो कुछ है ही नहीं;बस उन्हें नाना के पैसे से मतलब था।
वैसे भी वो उन पर बोझ बन गए थे। मामी भी नाना की हरकतों से परेशान थी। बुढ़ापे में इंसान सठिया ही जाता है तो क्या उसे मार दिया जाए। क्या सोच रहे हैं ?
निलय- पता नहीं! मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है!
मिली- मुझे भी बहुत अजीब लगा था। पर क्या करें सच तो अजीब ही होता है । हम कुछ कर भी नहीं सकते। उनके मरने पर हम तो वहां थे नहीं,जो उनसे पोस्टमार्टम करने को कहते। कहते ना, तो भी हमारी सुनता कौन!
नाना को अपनी लड़कियों से तो सख्त नफरत थी शायद उन्होंने अपनी करनी का फल भुगतना था। बहुत प्यार था अपने लड़के से और लड़के ने ही.. मुझे पूरा यकीन है कि ये सब उन्हीं का किया-धरा है। जरूर कुछ खिला दिया होगा!
वैसे भी मामी का तो फैमिली बैकग्राउंड ही गुंडों वाला है। और मामा भी तो ड्रग एडिक्ट रह चुके हैं।
आप को यह बात पता थी... मुझे पता थी।
मुझे पता है आपको तो यह भी नहीं पता होगा। वैसे आपको तो अभी बहुत कुछ है जो नहीं पता। वक्त मिला तो जरूर बताऊंगी।
तो भैया.. कैसा लगा? जासूस मिली के पहले केस का धमाकेदार खुलासा!(दांत दिखाते हुए)
निलय- तुम्हें हंसी सूझ रही है। यह तो डरने वाली बात है।
मिली- हां, डरने वाली बात तो है। पर आपको क्या? आप कौन सा यहां रहते हो। मामी वहां आपके पास विदेश नहीं आने वाली। इतना भी मत डरो अब।
निलय- मिली तुम तो बड़ी शैतान निकली।चलो अब यहां से। सब लोग ढूंढ रहे होंगे।
वैसे.. बड़ा शॉकिंग सरप्राइज दिया तुमने।
हंसते हुए दोनों पार्क से घर की ओर चल दिए।
मिली- अरे यह तो कुछ भी नहीं मुझे तो आए दिन बस शॉकिंग सरप्राइज़ मिलते रहते हैं। जासूस जो ठहरी।
वैसे आपके बारे में भी एक शाकिंग सरप्राइज मिला है मुझे..!
निलय- हे..बस करो! बहुत जासूसी हो गई आज के लिए।
दोनों हंसते हुए दोनों घर के अंदर दाखिल होते हैं।
जहां अभी भी पहले जैसी ही तबाही और शोर मचा हुआ है।
और तभी पर्दा गिर जाता है।
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-मिन्नी शर्मा
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