नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 23 - स्वमुक्ति - सीताराम पटेल सीतेश

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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020

प्रविष्टि क्र. 23 - स्वमुक्ति

सीताराम पटेल सीतेश


पार्श्व से

मुक्ति/स्वमुक्ति/प्रेम है

सत्यम्/शिवम्/सुन्दरम् /प्रेम है

पात्र-परिचय

नवेक :- उम्र 21 वर्ष, फटेहाल कपड़ा, दाढ़ी बढ़ी अव्यवस्थित/ यही युवक पुत्र और युवक एक है

पापा :- उम्र 60 वर्ष, यही व्यापारी है, यथार्थ संसार सब कुछ सिखा देता है/यही बड़ेसाहब भी है

छोटेसाहब :- उम्र 40 वर्ष, पर अपने आप को बहुत अनुभवशील मानता है।

अंगूठा छाप :- उम्र 60 वर्ष, तिलक लगाए, पाजामा कुर्ता पहने, सोने की जंजीर गले में लटकाए, पान चबाते, नमस्कार की मुद्रा में हाथ रखे, बात करते समय पान की पीक थूकते रहता है।

चमचा :- उम्र 40वर्ष, बांया नाक खुजलाते हुए, बांया हाथ में थूकदान, दांया हाथ में छतरी, कभी तंबाखू खाते हुए, कभी बीड़ी पीते हुए, तंबाखू और बीड़ी किसी से मांगते हुए, फूलपेंट आगे से फटा हुआ, बेल्ट की जगह पुआल की रस्सी बांधा हुआ, गले में बड़ी घंटी पहना हुआ, जो हिलाने पर बजता रहता है।

युवक दो :- उम्र 25 वर्ष,रोबदार चेहरा, टॉई ,पेंट शर्ट पहने, आभिजात्य वर्ग का प्रतीक है।

युवती :- उम्र 18 वर्ष

विकलांग युवक/ युवक तीन/ युवक चार/ युवक पांच :- उम्र35वर्ष

दृश्य :- 01

'व्यापारी तस्वीर के आगे पूजा कर रहा है।'

व्यापारी :- साला भिखारी, बोहनी के टेम आया है। तुझे आने को दूसरा टेम नहीं मिला।

न्वेक :- मैं भिखारी नहीं नवेक हूँ। तुम्हारे पूजा से प्रसन्न होकर आया हूँ। नया ईश्वर हूँ। ईश्वर का आधुनिक संस्करण हूँ। समझे न आप।

व्यापारी :- साला भिखमंगा, अपने को नया ईश्वर बताता है, क्या ईश्वर तेरे जैसा फटीचर है।

नवेक :- नहीं ईश्वर तो आईना है, तुम उसमें अपना प्रतिबिम्ब देखते हो।

व्यापारी :- तो क्या मैं----।

नवेक :- हाँ तुम।

व्यापारी :- नहीं-----नहीं -----------नहीं।

नवेक :- तुम जोंक हो, अपने भाइयों का रक्त पीकर मोटे हो गए हो। मंदिर बनाकर, पुजारी खरीदकर ,पूजा कर, खरीदार बन चुके हो। अपने आप को ईश्वर समझ रहे हो। मुझे मंदिर में कैद कर लिए, तुम मुझे क्या कैद करोगे व्यापारी, जबकि स्वयं पैसे के पिंजरे में कैद हो।

व्यापारी :- मैं नहीं समझा प्रभु।

नवेक :- तुम समझोगे भी नहीं, जबकि मैं स्वयं नहीं समझ सका, तुम्हें समझानेलायक शब्द ही नहीं बना है। जो शब्द मैं तुम्हें दूंगा। उसमें मुक्ति नहीं, जो भाव शब्द बनेंगे, शब्द बनने वाले भाव ग्रस्त हैं, अत्यधिक ग्रस्त ही मुक्ति है, जहाँ ग्रस्त की सीमा समाप्त होती है, वहीं से मुक्ति प्रारंभ होती है।

दृश्य :- 02

ग्रस्त-मुक्त/ मुक्त-ग्रस्त/ एक सिक्का के / दो पहलू है

मुक्ति में ग्रस्त,ग्रस्त में मुक्ति

यही है सफल जीवन, जीने की युक्ति

पुत्र :- पापा, मैं शाला नहीं जाउंगा।

पापा :- बेटा शाला ज्ञान का मंदिर होता है। बिना ज्ञान मानव पशु समान है। ज्ञान के बिना प्रेम उपजता नहीं है। प्रेम मुक्ति है।

पुत्र :- पापा शाला ग्रस्त है। मैं भूख से ग्रस्त हूँ। जब मैं शाला पहुंचता हूँ। मेरा विभुक्षित चेहरा देखकर शिक्षक डांटते हैं। पापा भूखा को पढ़ते वक्त एक एक अक्षर चावल नजर आता है। पर उससे उसका पेट नहीं भरता है।

पापा :- अशिक्षा अंधकार है बेटा, अशिक्षित मुर्दा के समान है।

पुत्र :- इस संसार में तुम्हें कहीं जिन्दा मानव नजर आतें हैं। पापा, मुर्दा मानव ही यहाँ बसते हैं। उनमें मानवता नहीं पाखंड पाया जाता है।

पापा :- ज्ञान का मंदिर रोटी कपड़ा मकान दे न दे पर मुक्ति का साधन अवश्य देता है।

पुत्र :- मानता हूँ पापा, पर अर्थ ही विश्व की जननी है। अर्थहीन मानव चाहे कितना ही क्यों न ज्ञानवान हो, आज उसे मान्यता देने को कोई तैयार नहीं, आज की शिक्षा हमें अपंग बना रही है। नौकरी हमारा लक्ष्य है।

दृश्य :- 03

पार्श्व से

कालीनाग सा मूंह फैलाए, खड़ा है भ्रष्टाचार।

जो हलाहल को निकाल दे, वो कृष्ण का अवतार।।

कार्यालय का दृश्य

'आज साक्षात्कार है।

मंच के मध्य में एक कुर्सी है, जिसमें बड़े साहब, उसके बगल दाहिने तरफ छोटे साहब, फिर रिश्वत सीट, फिर अजजा, फिर अजा का सीट है। बड़े साहब के बाएँ तरफ, महिला सीट, पि वर्ग सीट, फिर विकलांग सीट है।

बड़े साहब और छोटे साहब आते हैं और अपने अपने सीट पर बैठ जाते हैं।

युवक एक प्रवेश करता है।'

बड़े साहब :- कौन है रे, बिना पूछे अंदर चला आया, चपरासी इस युवक को धक्के मारकर बाहर निकाल दो।

युवक एक :- 'हकलाते हुए ,सॉ सॉहब।

छोटे साहब :- क्या है बे, ढंग से बोल।

युवक एक :- सॉहब मैं साक्षात्कार के लिए आया हूँ।

छोटे साहब :- 'सीटों को दिखलाते हुए, इन सीटों में तुम्हारा कौन सा सीट है।

युवक एक :-मैं नहीं समझा सर।

छोटे साहब :- महिला सीट, पिछड़ा वर्ग सीट, विकलांग सीट, अजजा सीट, अजा सीट, रिश्वत सीट, समझे बे एम ए हिन्दी बेरोजगार।

युवक एक :- रिश्वत सीट का मतलब नहीं समझा सर।

छोटे साहब :- इतना भी नहीं समझता बे, शार्ट एण्ड स्वीट में कहूँ, इसकी कीमत 5 लाख रूपया है, है तुम्हारे पास तो बैठ जा, रिश्वत सीट को तुम्हारा इंतजार है।

युवक एक :- यहां तक बड़ी मुश्किल से बर्तन बेचकर आया हूँ।

बड़ेसाहब :- हमें भावुकता पसंद नहीं, युवक तुम जा सकते हो।

युवक एक :- घर से जुगाड़ कर लाता हूँ।

'चला जाता है।,

छोटे साहब :- साले फटीचर कहां कहां से चले आते हैं।

'युवती का प्रवेश,

छोटे साहब :- नाम।

युवती :- षोडशी

बड़े साहब :- बगल में बैठिए।

युवती :- क्या?

छोटे साहब :- बगल के सीट से है।

'युवती बैठ जाती है। युवक दो का प्रवेश।,

छोटे साहब :- तुम्हारा नाम?

युवक दो :- जलेबीश्वर, पेड़ाश्वर, खोआश्वर, बर्फीश्वर, रसमलाईश्वर, रसगुल्लाश्वर, चमचमेश्वर, सोनेश्वर, हीरेश्वर।

छोटे साहब :-नव नामेश्वर जी, अब बंद कीजिए, मुंह में पानी आ रहा है, काम की बात पर आ जाएं, लाए हो।

युवक दो :- क्या?

बड़े साहब :- रिश्वत।

युवक दो :- वो तो हमारी घूट्टी में मिल्ला है जी, लाया हूँ रिश्वतखोर।

बडेसाहब :- क्या बोले?

युवक दो :- कुछ नहीं रिश्वतखोर।

छोटे साहब :- बहुत अच्छा नाम है।

'बड़ेसाहब, छोटे साहब को आंखें तरेरता है। युवक दोअटैची खोलकर रूपया की गड्डी बताता है। बड़ेसाहब मुस्कुराते हैं, उसकी ओर अटैची बढ़ाता है, बड़े साहब, छोटे साहब की ओर इशारा करता है, छोटे साहब अटैची अंदर ले जाता है।,

बड़े साहब :-बैठ जाओ, माई बाप, अपने सीट पर।

'युवक दो पिवर्ग सीट पर बैठना चाहता है, इशारे से बड़े साहब रिश्वत सीट की ओर इशारा करते हैं। उसमें वह बैठ जाता है, छोटे साहब आकर अपने सीट में बैठ जाते हैं।,

'युवक तीन का प्रवेश,

छोटे साहब :- युवक तुम्हारा नाम क्या है?

युवक तीन :- अनारलाल, आमलाल, इमलीलाल, ईखलाल, उल्लूलाल, उनलाल, अंगूरलाल, अः।

बड़े साहब :- कौन सा सीट है लालजी।

युवक तीन :- पिछड़ावर्ग है जी हमारा, हम काम करते हैं जी सारा।

छोटे साहब :- उस पिछड़ावर्ग सीट पर बैठो।

'युवक तीन बैठता है, युवक चार आता हैं।,

छोटे साहब :- युवक तुम्हारा नाम क्या है?

युवक चार :- पेराचंद, भूसाचंद, खलीचंद, कुटी चंद, पसियाचंद, घासचंद, जूठाचंद, घोंघीचंद।

बड़े साहब :- हां चंद जी स्टाप, रूकिए, इनमें तुम्हारा कोई सीट है।

युवक चार :- हां है न सर, अजजा।

बड़े साहब :- बैठ जाओ।

'युवक चार अपने सीट पर बैठ जाता है। विकलांग युवक का प्रवेश।

उसे भी इशारा कर बैठा देता है। युवक पांच का प्रवेश।,

छोटे साहब :- तुम्हारा कांतिहीन चेहरा देखकर लग रहा है, तुम दलित हो , तुम्हें दबाया गया है, फिर भी दलित युवक तुम्हारा नाम क्या है?

युवक पांच :- मोचीराम, खुरपीराम, रांपीराम, खालराम, नहनाराम, जूताराम, भैंसाराम, बैलाराम।

बड़े साहब :- बैठ जाओ अपनी सीट पर।

'युवक पांच बैठ जाता है। युवक एक आता है, देखता है सीट फूल है, बेहोश होकर गिर जाता है। उसका रूपया बिखर जाता है।,

पुत्र :- पापा नाटक देखे।

पापा :- हां देखा बेटा।

पुत्र :- चलो तुम्हें एक और नाटक दिखाता हूँ।

दृश्य :- 04

पार्व से आवाज

इन बुद्धिजीवियों के उपर अंगूठा छाप।

कर रहा है वह सबका पत्ती साफ।।

अंगूठा छाप :- हा हा आक थू, मैं मैं अंगूठा छाप, हा हा आक थू, मैं देश का कर्णधार, हा हा आक थू, मैं शाला देखा नहीं मुख, हा हा आक थू, मैं फिर भी शिक्षा मंत्री, हा हा आक थू, शिक्षक देश के निर्माता, हा हा आक थू, मैं उनका विधाता, हा हा आक थू, समझे कुछ, हा हा आक थू, शिक्षक चींटी बरोबर, हा हा आक थू, मैं जब चाहूँ, उसे मसल सकता हूं।

चमचा :- सच कहूं, मैं इनका छतरी रखने वाला चमचा, ये मेरा छत है, इनका मैं छतरी, ये लोकसभा क्षेत्र है, तो मै इनका लखपति क्षत्रिय हूँ।

अंगूठा छाप :- चमचा, मुझे बोलने देगा, कि तू ही बोले जाएगा टनाटन, हा हा आक थू, साला उससे रूपया देकर मैं संवाद लिखवाता हूं। और तू है सब असली संवाद बोले जा रहा है। हा हा आक थू, इतना तो समझ रहा हैं कि नहीं, चमचा हा हा आक थू, तू चमचा है तो मैं कटोरी, तू कटार है तो मैं तलवार, हा हा आक थ,ू मैं किसी को भी गाजर मूली की तरह काट सकता हूँ, हा हा आक थू।

'बड़े साहब और छोटे साहब हाथ जोड़े आते हैं और इनके पैर नीचे गिर जाते हैं।,

अंगूठा छाप :- क्यों बे, बड़े पेटवाला, चिकना घड़ा, हा हा आक थू। साक्षात्कार का पुरस्कार कहां है, हा हा आक थू।

छोटे साहब :- उसी को देने आए हैं सर।

अंगूठा छाप :- साला, तू कब से जुबान खोलने लगा है, हा हा आक थू।

'छोटे साहब के मूंह पर थूक देता है।,

इतना भी शिष्टाचार नहीं जानता साला, दो बड़े बात कर रहें हैं।

बड़े साहब :- इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूँ सर,।

चमचा :- आइंदा गलती न हो, अब बोलिए हुजूर, मालिक आगे का संवाद।

अंगूठा छाप :- मैं कहां पे आया था?

चमचा :- भगवान को प्रसाद चढ़ाने वाले थे।

अंगूठा छाप :- हां सियार के खाल पहने खरगोश, कितना प्रसाद लाए हो, तुम्हारा इस भगवान पर चढ़ाने?

बड़े साहब :- तीन।

अंगूठा छाप :-साला कुत्ता तीस जूते मारूंगा, हा हा आक थू, एक माह में हमारे कुत्ते इतने खा जाते हैं।

बड़े साहब :- लीजिए मालिक 5 लाख।

अंगूठा छाप :- ये हुई न बात।

चमचा :- साले अब आए हो लाइन में, रूपया रखो और फूटो यहां से।

'बड़े साहब और छोटे साहब जाते हैं।,

रिश्वतखोरों को हमारे यहां कोई जगह नहीं।

अंगूठा छाप :- वो जगह ढ़ूढ़ कहाँ रहे हैं।

चमचा :- नहीं जानते हमारे देश में लोग हमें भगवान कहते हैं।

अंगूठा छाप :- भगवान नहीं, सब भड़ुवा कहते हैं।

चमचा :- जगह जगह पुष्पमालाएँ पहनाई जाती है, जगह जगह हमें मुद्राओं से तौली जाती है,

देश रत्न से सुशोभित किया जाता है, हमारी मूर्तियाँ चौराहों पर लगाई जाती है।

अंगूठा छाप :- कुत्ता को भी मूतने के लिए जगह चाहिए कि नहीं, साला सब मेरा संवाद चोरी कर तू बोल रहा है, अब चुप हो जा, वे कब के जा चुके हैं हा हा आक थू।

'दोनों का प्रस्थान,

पुत्र :- समझ गए न पापा, पढ़ लिख कर क्या करूंगा? मुझे देश की सेवा करना है, पढ़े लिखे देश की सेवा नहीं करते पापा, विदेश चले जाते हैं, एक निरक्षर ही देश की सच्ची सेवा करता है। प्रेम स्वयं पाठशाला है। जिसे सभी लोगों में फैलाना है। इसी में सभी की मुक्ति है।

पार्श्व से

मुक्ति/स्वमुक्ति/प्रेम है

सत्यम्/शिवम्/सुन्दरम् /प्रेम है

सीताराम पटेल सीतेश

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रचनाकार: नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 23 - स्वमुक्ति - सीताराम पटेल सीतेश
नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 23 - स्वमुक्ति - सीताराम पटेल सीतेश
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