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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 21 - आस्था
सुधा शर्मा
नाटक
आस्था
पात्र परिचय प्रवेशानुसार
नाम लगभग उम्र वर्ष
भगवान " चिरयुवा "
ननारद " चिरयुवा "
रीमा " 38 "
सत्या " 30 "
जनसमूह " विभिन्न आयु वर्ग
कीर्तन मंड़ली " 20 से 28 आयु वर्ग
चमन " 32 वर्ष
चिराग/ पप्पू " 8 माह
बसंती " 9 वर्ष
रमन " 40 वर्ष
जया - " 38 वर्ष
तान्त्रिक " 45 वर्ष
बाबा " 50
दो स्त्रियाँ " 35 व 40 वर्ष
पुरू ष " 42 वर्ष
प्रथम दृश्य
मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। स्वर्ग का दृश्य। चारों ओर हरियाली, सुन्दर फव्वारे, रंग- बिरंगे फूल खिले हैं। ईश्वर बड़े उदास बैठे हैं। तभी मंच पर नारद उपस्थित होते हैं।
नारद- भगवन! प्रणाम( हाथ जोड़कर ) हे परमपिता! आप तो सर्वशक्तिशाली, सौख्यसिंधु, दयावान, सर्वदृष्टा और सर्वज्ञ हैं फिर आप आज क्यों चिन्तित हैं?
ईश्वर- हाँ पुत्र! यह सत्य है मैं इस सृष्टि का रचयिता,पालनकर्ता और संहारकर्ता हूँ। मैं अपने बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ। मैंने सुंदर नदी झरने,सर्दी गर्मी, बरसात इत्यादि मौसम दिए, मन में परिवर्तन हेतु छ: रीतुएँ दी, मनमोहक पशु पक्षी,रंग- बिरंगे फूल दिए। बच्चे अपना हर तरह का शौक पूरा कर सके इसलिए हीरे पन्ने, मोती माणिक दिए लेकिन वही इंसान मुझे भूल गया, मुझसे दूर हो गया, मैं अकेला बैठा रहता हूँ।
नारद- नहीं भगवन! ऐसा नहीं है । इंसान तो अब भी बहुत पूजा- पाठ करता है।
भगवान- नारद! पहले मेरा पुत्र मेरा सान्निध्य चाहता था। मुझे प्राप्त करने हेतु सारा जीवन समर्पित कर देता था। उनकी भक्ति, त्याग, तपस्या से अभिभूत होकर मुझे उनके सामने जाना ही पड़ता था
नारद- हाँ भगवन! यह तो आप सही कह रहे है।
भगवान- जो अधिक आज्ञाकारी होता है उसको माता- पिता का विशेष प्यार मिलता है। हे! नारद मेरी सर्वश्रेष्ठ संतान इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है?
नारद- हे ईश्वर! आप तो सर्वज्ञाता है,घट घटवासी है मैं क्या बता सकता हूँ।
ईश्वर- मैं जानना चाहता हूँ कि क्या मेरे अधिक लाड- प्यार से मनुष्य बिगड़ गया है।
नारद - हे परम पिता ! इंसान अब अधिक चतुर और चालाक हो गया है। जो आपने समझाया था उसका वो अपनी तरह से अर्थ निकालता है। और अन्त में ' पत्ता भी उसकी मर्जी से हिलता है ' कहकर अपने को निर्दोष सिद्ध कर देता है।
ईश्वर- ( मुस्कराकर ) नादान है।
नारद - वह असामाजिक, अनैतिक, आपराधिक और कर्तव्यहीनता के कार्य करता है और कह देता है कि ' बुद्धि तो उसी ने दी थी ।'
ईश्वर- जानता हूँ। निष्काम कर्म की परिभाषा नहीं जानता लेकिन निष्कामी होने का दम्भ भरता है।
नारद- उसका दम्भ ही तो उसे परेशान करता है।
ईश्वर- ( क्रोध से ) मैंने उसे बल, बुद्धि और विवेक दिया है। समय समय पर मैं उसे गलत कार्य करने से रोकता भी हूँ लेकिन वो सुनता ही नहीं।
नारद- ( हाथ जोडकर ) हे परम पिता शांत हो जाइए। यह कलयुगी मानव स्वयं को पारंगत मानकर आपकी आँखों में धूल झोंकना चाहता है। लेकिन उसे पता नहीं वह स्वयं की आँखों में ही धूल झोंक रहा है। बस पाखँड़ी हो गया है। उसे आप ही रास्ते पर ला सकते है।
ईश्वर- ठीक है पुत्र, हम पहले मानव के सारे कार्यों को निकटता से देखेंगे। उसके छोटे से छोटे कार्य पर भी हमारी दृष्टि होगी।
नारद- आईए परमपिता! सर्वप्रथम इस बड़े शहर की बड़ी कॉलोनी में ठहरते है और यहाँ की हर गति विधि को ध्यानपूर्वक देखते हैं।
पर्दा गिरता है।
द्वितीय दृश्य
पुन: पर्दा उठता है।
( भगवान और नारद साधारण वेश में मंच के अग्रभाग में दो- तीन चक्कर लगाते है। )
मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। एक सुन्दर पॉश कॉलोनी
( सड़क पर बहुत बड़ा टेंट लगा है। ट्रक में सुंदर आकर्षक मूर्तियाँ आती है। सामने एक विशाल मंच लगा है। माँ का भव्य दरबार लगा है। साथ में गणेश, शिव, राम, कृष्ण,सांई इत्यादि की भी मूर्तियाँ लगी हैं। घर के सारे कार्य नौकर- चाकर कर रहे है। टोकरी भरकर फल आये हैं। जागरण के मध्य समय हेतु गोला, किशमिश, मिश्री का प्रसाद बनाया गया है। )
एक कामवाली -( मन में ) पप्पू की तबीयत बहुत खराब है ।अब घर जाने की आज्ञा माँगकर देखती हूँ। शायद मालकिन छुट्टी दे दें।( तीव्रगति से सेठानी के पास जाती है ) मालकिन पप्पू की तबीयत बहुत खराब है बस मुझे तीन घंटे की छुट्टी दे दो।
रीमा- सत्या ! कुछ तो सोच कर बात किया कर। घर में इतने मेहमान आए हुए है। मुहल्ले -पडौस के भी आए है । इन्हें पानी कौन पिलाएगा।
सत्या- मैडम ,बस तीन घंटे की ही तो बात है, इतने इमरती काम देख लेगी। मैं फटाफट आ जाऊँगी।
रीमा- अरे, घर में तेरा हस्बैंड तो हेागा ।
सत्या- अच्छा दो ही घंटे में आ जाऊँगी।
रीमा- अरे आज ही की तो बात है। जागरण कौन सा रोज - रोज होता है।
सत्या मन मसोसकर पुन: काम में लग जाती है।
दरबार में जागरण चल रहा है । सबसे पहले परिवार जनों को बैठाकर विधिवत पूजा कराई गई। फिर देवी को तिलक लगाया गया। सभी ने तिलक में श्रद्धानुसार रुपये चढ़ाए भगवान और नारद भी जागरण में बैठे हैं। बारह बज चुके है । मुहल्ले वाले एक डेढ़ घंटे बैठ कर चले गए। धीरे - धीरे रिश्तेदार भी जाकर सो गए। बस दो- तीन प्रोढ़ बैठे ऊँघ रहे है। सारी रात मंडली अकेली कीर्तन करती रही। सुबह चार बजे से फिर भीड जुटनी प्रारम्भ हो गई।
मंडली का एक व्यक्ति- अब आपके सामने शेरा वाली मैया आ रही है।( तभी एक लड़की माँ की पोशाक में लाल चुन्नी ओढे हुए शेर की मूर्ति पर सवार होकर आती है )
मंडली- जय शेरा वाली की
जनसमूह- जय हो।(दोनों हाथ उठाकर )
मंडली का व्यक्ति- जोर से बोलो
जनसमूह- जय माता की।
मंडली का व्यक्ति- अगले बोलो
जनसमूह- जय माता की।
व्यक्ति- पिछले बोलो
जनसमूह- जय माता की।
व्यक्ति- सारे बोलो
जनसमूह-जय माता की।
व्यक्ति- आवाज नी आई
जनसमूह- जय माता की।
व्यक्ति- शेरा वाली
।जनसमूह- जय माता की।
व्यक्ति- पहाडा वाली
जनसमूह- जय माता की
व्यक्ति- माँ कष्ट हरेगी
जनसमूह- जय माता की।
व्यक्ति- भंडार भरेगी
जनसमूह- जयमाता की
व्यक्ति- मेरी माँ भोली, माँ भ र दे झोली .़
तभी कीर्तन मंडली ने मूर्ति की चुनरी उतारी और उसे पति पत्नी के हाथ में दी वह युगल उस चुनरी को लेकर हर भक्त के पास गए और सभी ने श्रद्धानुसार धनराशि डाली।
( एक भजन गाने के बाद ही अरदास की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई और उस प्रक्रिया में भी काफी पैसे बटोर लिए।)
ईश्वर- अरेऔर लोग ये तो मेरे नाम पर बहुत पैसा बटोरते है। पैसा देते भी है। मेरा पैसे से क्या सम्बन्ध। मैं तो मानव को सब कुछ देता हूँ ,लेकिन मानव ने मुझे ही देने का भ्रम पाल लिया है।
नारद- भगवन! अभी तो बहुत कुछ देखना बाकी है
(मंच से माता का दरबार हटाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई । तभी बसंती का पति भागकर मंच पर आता है और सीधे मालकिन के पास जाता है।)
चमन- ( हाथ जोड़ता )। मालकिन सत्या को भेज दो ।
रीमा- अरे ऐसी क्या जल्दी आ रही है एक दिन दरबार में सेवा क्या कर दी आसमान धरती पर आ गया। दरबार की सेवा के लिए तो लोग तरसते रहते हैं। तुम छोटे लोग क्या जानो क्या होता है भगवान बस जमीन पर आए सूअर की तरह से खाया- पिया और चल दिए।
चमन- वो मालकिन ! ऐसी बात नी है। बेटे की बहुत तबीयत खराब है। सारी रात चील की तरह से चिल्लाया है। उसकी पसलियाँ चल रहीं है। शायद निमोनिया है।
रीमा- जा, प्रसाद ले और चली जा। और हाँ एक या दो घंटे बाद आ जाना। इतना काम पड़ा है इसे कौन करेगा?
( पति पत्नी दोनों चुप खड़े रहते हैं )
रीमा- अब जल्दी जा और जल्दी आ। या नहीं जाती तो कुछ काम निबटा दे। खाली खड़ी खड़ी क्या सेहत बना रही है।
सत्या- मैडम कुछ पैसे दे दो। बच्चे को दिखाने डॉ. के पास जाना है।
रीमा- अरे इतने बच्चे नहीं सँभलते तो पैदा क्यों करते हो। देख नहीं रही अभी जागरण हुआ है। मेरे पास क्या पैसों का पेड़ लगा है।
चमन- मैडम! मेरी तनखा अभी नहीं मिली है 200 रू. दे दो इसकी तनखा में से काट लेना।
रीमा- ( पर्स में से पैसे निकालकर ) ये 150 रू. है अभी तो ये ही ले जा।
चनन- मैडम! दवा भी तो आएगी । पता नहीं कितने की दवा आए।)
पर्दा गिरता है
( दोनों जल्दी जल्दी भागकर मंच से उतर जाते हैं )
तृतीय दृश्य
पुन: पर्दा उठता है।
मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। एक गरीब बस्ती। छोटे- छोटे घर।
मंच पर एक लगभग नौ - दस वर्षीय लड़की बैठी है गोद में बच्चा है । चमन और सत्या मंच पर आते हैं।
बसंती- देखो पापा, पप्पू तुमसे चुप नी हुआ । मैंने चुप कर दिया ।
सत्या पप्पू को तुरन्त बढ़कर गोद में ले लेती है। (चीखकर) पप्पू के पापा जल्दी चलो ,मझे पप्पू की हालत ठीक ना लगरी।
चमन- तू तैयार हो बस मैं जरा मांगे से साईकिल मांग लाऊँ।
सत्या- तुम्हारी साईकिल कहाँ गई ?
चमन- कल पंचर हो गया था उसमें तो, पंचर लगवाने कू पैसे ई न थे। इस समय तो कोई डॉ. ना मिलने का चल पास के नर्सिंग होम चलते हैं।
( दोनों साईकिल पर बैठने का अभिनय करतें हैं। )
पर्दा गिरता है
चतुर्थ दृश्य
पुन: पर्दा उठता है
नर्सिंग होम। मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। एक कुर्सी पर रिशेप्सनिस्ट बैठी है दूसरी जगह डॉ. बैठा है। चमन और सत्या मंच पर प्रवेश करते हैं।
सत्या - (रिशेप्सनिस्ट के पास जाती है)बच्चे को दिखाना है।
रिशेप्सनिस्ट- ( लैटर हैड व पेन हाथ में लेकर ) किसको दिखाना है? नाम
सत्या- चिराग
रिशेप्सनिस्ट- उम्र
सत्या- आठ महीने का
रिशेप्सनिस्ट- 200रू. जमा कराओ
सत्या- (रू. दिखाते हुए )मेरे पास तो 150 रू. है।
रिशेप्सनिस्ट- 200 रू. दो।मैं तो यहाँ जॉब करती हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ।
चमन- ( जेब में हाथ डालता है ) लो मैडम 50 रू.
रिशेप्सनिस्ट- रूम न. 4 में चले जाओ।
( दोनों डॉ. के पास जाते हुए । )
चमन- अच्छ हुआ । मांगे से 50 रू. ले आया था, उसके पीस भी 50 रू. ई पड़े थे।
डॉ. स्टेथिस्कॉप से चैक- अप करता है )
डॉ.- अब लाए हो इसे मेरे पास । अब तो बहुत देर हो चुकी है । यह इतनी दूर चला गया, मैं कुछ नहीं कर सकता।
चमन- ऐसा मत कहो डॉ. साहब ! हमारा यही एक बेटा है। यही जीने का सहारा है।
डॉ. - अरे ठीक समय पर तो लाना था। मैं भी डॉ. हूँ ।भगवान नहीं मैं मरे हुए में जान नहीं डाल सकता।
( दोनों रोते हुए बाहर निकलते है। रिशेप्सनिस्ट के पास जाकर )
सत्या- मैडम ! हमारे 200रू. वापिस कर दो हमारा तो बच्चा ई न रहा।
रिशेप्सनिस्ट- अरे फीस कैसे वापिस हो सकती है। वो तो डॉ. की फीस थी।
पति- अरे न कोई इलाज, न कोई दवा न दारू। पैसे कैसे?
रिशेप्सनिस्ट- 'बच्चा नहीं रहा' यह किसने बताया ?
सत्या- डॉ. साहब ने
रिशेप्सनिस्ट- तो फिर कैसे कह सकते हैं कि डॉ. साहब ने चैक- अप नहीं किया
चमन- ( हाथ पकड़कर खींचते हुए )चलो सत्या! यहाँ सब पत्थर के लोग है।
पर्दा गिरता है
पंचम दृश्य
पुन: पर्दा उठता है।
गरीब बस्ती। मंच पर चमन व सत्या बच्चे को गोद में लिए हुए आते हैं। दोनों जोर - जोर से रोते हैं। शोरगुल सुनकर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए। मालकिन भी आती है। सब उन्हें साँत्वना दे रहे हैं।
एक स्त्री- (आवाज लगाती है) बसंती! पानी लाईयो बेटा ( गिलास हाथ में लेकर) ले पानी पी ले सत्या। उसके आगे क्या कर से कोई। उसकी खेती ,जब चाहे काट ले।)
रीमा- चुप हो जा सत्या ! उसका और हमारा यहीं तक का साथ था अब भगवान की मर्जी के सामने किसकी चली है।और कल घर आ जाना । मन कुछ और सा हो जायेगा । ध्यान हटेगा तो कुछ राहत सी मिलेगी।
सत्या ने रोते- रोते मोटी- मोटी आँखों से मालकिन को देखा और स्वीकृति में गर्दन हिला दी।
भगवान- अरे परमपुत्र! ये क्या हो रहा है। कितनी चतुरता से इस रीमा ने अपना सारा दोष मुझपर लगा दिया और अपनी क्रूरता पर पर्दा डाल दिया। मानव के लिए सब कुछ पैसा ही है। ये कार्य तो मानवता के विरूद्ध है, दया के बिना तो मुझे पूजा पाठ भी स्वीकार नहीं।
नारद- हे परम पिता ! आप दुखी मत होइये। मैं मानव का दूसरा रूप दिखाता हूँ। आपको आपके परम भक्त के पास लेकर चलता हूँ।
( भगवान और नारद मंच के अग्रभाग में चक्कर लगाते हैं। पर्दा खुलता है। मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। बाहर सांई बाबा का मंदिर ।)
भगवान व नारद मंच पर घूम रहे हैं । नेपथ्य से आवाज आती रहती है-' ये है गुफा का द्वार, अंदर विशाल भव्य इमारत,
भगवान - अरे यह क्या,बाबाजी तो सुरा और सुंदरी में लिप्त हैं। एक नहीं अनेक बालाएँ इनके चारों ओर नृत्य कर रही हैं।
नारद- भगवन्! आप देखकर हैरान मत होइए। आओ बाबाजी से बात करते हैं। पर इनसे बात करनी है तो किसी सुन्दरी का ही रूप बना लेते है।
पर्दा गिरता है।
षष्ठम दृश्य
पुन: पर्दा उठता है।
भगवान और नारद स्त्री के रूप में
नारद- ( हाथ जोडकर ) प्रणाम बाबा, हम दोनों सुंदरी बैकुण्ठ लोक से आई है।
बाबा दिव्यानंद- हाँ सुंदरी ! बैकुंठ लोक से तो सब आये है ।और अब हमारे पास आ गये हो तो बैकुंठ लोक को जाओगे भी। बस यह लोक तो विश्राम स्थल है । यहाँ तो सब अपने अपने कर्मों का फल भोगने के लिए आते है।
भगवान- बाबा! आप बात तो अच्छी करते हो पर ------
बाबा- पर क्या सुंदरी?
नारद- हम एक बात पूछना चाहते है बाबा!
बाबा- निसंकोच होकर पूछो सुंदरी
नारद- आपने भगवा वस्त्र धारण किये हैं, बाहर आश्रम हैं लेकिन अंदर सब उल्टा- पुलटा है।
बाबा- शांत सुंदरी शांत। हमारे सारे कार्य धर्मानुसार है। यह सोमरस है। इसका पान तो देवता भी करते हैं, शिव हमारे देव हैं ,और वो भांग का पान करते हैं, हम तो उनके भक्त हैं। रास लीला तो हमारे कन्हैया भी करते हैं, तो बताईए कौन सा कार्य धर्मविरूद्ध है हमारा । ईश्वर का नाम सर्वानंद और परमानंद भी है अर्थात सबको आनन्द देना,और आनन्द लेना।
भगवान- आप अनर्थ कर रहे हैं।
बाबा- क्या अनर्थ कर रहे हैं। ये विवाहित सुन्दरिया स्वेच्छा से आई है। और ये बालाएँ माता- पिता के अनुरोध पर यहाँ है।
भगवान- यदि ऐसा है तो सब गलत है। आप अपनी परिभाषा से धर्म का रूख मोड़ रहे हैं । उस काल में कृष्ण जैसा कोई ऎसा दूसरा महापुरुष नहीं हुआ।
बाबा- खा-----मोश। जो तूने उन्हें पुरूष कहा तो ; वो भगवान थे स्वयं विष्णु आये थे धरा पर।
भगवान- अरे तू उन्हें भगवान कह रहा है, फिर भी उनपर लाँछन लगा रहा है; मैं उन्हें मनुष्य कह रहा हूँ, फिर भी सर्वश्रेष्ठ और चरित्रवान होने का प्रमाणपत्र दे रहा हूँ।
बाबा- तू तो उन्हें इंसान कह रहा है यही गलत है।,आगे तुझसे क्या बात करें?
भगवान- वो न रास रचाते थे न चोरी करते थे,न ही उनकी सोलह हजार छ: सौ पचास रानियाँ थी। वे वेदों के महान ज्ञाता थे,न उनकी कोई राधा नाम की प्रेमिका थी। केवल एक पत्नी थी उनकी। उनकी महानता के कारण चित्रकार ने या कवियों ने अलंकारिक और प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग किया है।
बाबा- तू यहाँ से चला जा ,नहीं तो हम तुझे भस्म कर देंगे।
भगवान- तू हमें भस्म करेगा या हम तुझे भस्म करेंगे तू ये भी नहीं जानता ; तो जानता क्या है।
बाबा- तूने हमारे क्रोध को जगा दिया है,अब तुझे कोई बचा नहीं सकता। स्वयं ईश्वर भी नहीं
भगवान- ओह ईश्वर भी नहीं, ऐसा क्यों?
बाबा- अरे नादान! हम ही ईश्वर है। हमने अपनी सिद्धि से ईश्वर को प्राप्त कर लिया है कृष्ण के समान हमारी 16650 रानियाँ हैं।
भगवान- कृष्ण की सद्वृत्ति, सद्बुद्धि, अत्यधिक बुद्धिमान होने के कारण जग उन्हें पूजता है। अत्यधिक सहज, सरल, मृदुभाषी, व्यवहारिक होने के कारण वे जन जन के प्रिय थे। तू ढ़ोंगी है, स्वाधु है,मानवता के नाम पर कलंक है। तुझे तो मैं अवश्य ही दंड दूँगा। तू समाज को गर्त में ले जा रहा है।
बाबा- निकल जाओ तुम दोनों मेरे आश्रम से। तुम जैसे नास्तिकों की तो मैं परछाई भी पसंद नहीं करता
भगवान- तुम जैसे पाखंडियों को मैं कठोर दंड दूँगा। धर्म प्रकाश-स्तम्भ होता है ,जो मानव को कर्तव्य-पथ पर ले जाता है। तुम सारे अनैतिक कार्य धर्म की आड़ में करते हो,जबकि साधु- संतों का काम समाज में नैतिकता स्थापित करना होता है।
बाबा- ( इंटरकॉम पर कॉल करता है क्रोध में चिल्लाते हुए) हजारी और धर्मा ! मेरे पास आओ और इन दो कीड़ों को मसल दो।
( तभी मंच पर अँधेरा फैल जाता है और भगवान और नारद मंच से लुप्त हो जाते हैं। बाबा बौखलाहट में इधर- उधर टहलता है)
भगवान- हमें इन जैसे मनुष्यों की सजा और कड़ी करनी होगी
नारद- परमपिता! शांत आओ सामने के घर में क्या हो रहा है; देखते हैं
भगवान- हाँ पुत्र! चलो, वैसे भी अपनी रचना के कुकृत्य देखकर हम बहुत उद्विग्न हैं।
पर्दा गिरता है
सप्तम दृश्य
पर्दा उठता है
मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। एक सम्पन्न घर का एक कमरा। पति- पत्नी। उम्र लगभग 38 और 40 वर्ष।
पति रमन- मुझे एक लड़का चाहिए जया!
जया- हाँ रमन! यह तो हम दोनों का सपना है आखिर हमारी शादी को 12 वर्ष बीत गए; पर मेरी गोद अभी तक सूनी है।
रमन- अरे जया! मुझे एक बाबा के बारे में पता चला है , मैं उससे मिल भी आया हूँ। उसका कोई उपाय खाली नहीं जाता। बस, तुम मेरा साथ दो। सब ठीक हो जायेगा।
जया- तान्त्रिक या बाबा की क्या आवश्यकता है रमन! आज तो टेस्ट ट्यूब बेबी का जमाना है।
रमन- 12 वर्ष से इलाज ही करा रहा हूँ। मेरा तो इलाज से ही विश्वास हट गया है। उस बाबा के लिए कुछ भी असम्भव नहीं।
मुझे दो बच्चे चाहिए- एक लड़का, एक लड़की।( रमन ने जया के बाँहों में भरते हुए कहा। )
जया- ठीक है मैं तुम्हारे साथ हूँ।
रमन- वादा
जया- हाँ वादा
रमन- तो ठीक है मैं पूजा के लिए प्रबन्ध करता हूँ।
पर्दा गिरता है
अष्ठम दृश्य
मंच के अग्रभाग में रमन दो तीन चक्कर लगाता है।
पर्दा उठता है
मंच सज्जा प्रतीकात्मक। एक स्कूल, रमन गाड़ी में। वह गाड़ी से उतरने का अभिनय करता है। और मंच पर चॉकलेट टॉफी डालता हुआ चलता है। तभी मंच पर एक 6/ 7 साल की एक बालिका आती है। टॉफी, चॉकलेट देखकर खुश होती है उठाती चलती है। तभी रमन उसके पास जाता है । बड़े प्यार से बच्ची से बातें करता है और बहला फुसलाकर कार में बैठा लेता है।
वह दो चक्कर मंच के लगाता है । तभी मंच पर उसकी पत्नी प्रवेश करती है । दोनों बहुत खुश हैं।
रमन- जया यह एक बच्ची है। समझो ये हमारी अपनी बच्ची है।
जया- वैसे कौन है यह ?
रमन- अरे आ खाओ, पेड़ मत गिनो। इसे अपनी औलाद से भी ज्यादा प्यार करना है।
जया- हाँ हाँ, समझ गई। ये तो वैसे भी बहुत प्यारी बच्ची है इससे तो किसी को भी प्यार हो जायेगा
पर्दा गिरता है
नवम दृश्य
पुन: पर्दा उठता है
रमन का घर । उसकी पत्नी बैठी है । तभी रमन प्रवेश करता है।
रमन- जया खुशबू को यहाँ आए पूरा सवा महीना हो गया । बाबाजी के आदेश का पालन करते हुए हमने बच्ची को अपनी औलाद से भी अधिक प्यार दिया । आज संकल्प पूरा करने का दिन आ गया है।
जया- मुझसे यह बिल्कुल भी नहीं होगा। मुझे इसमें बेटी ही दिखाई देती है। मैं अपने हाथों से इसकी बलि नहीं चढ़ा सकती।
रमन- मुझे अपना बच्चा चाहिए ; वो भी बेटा।
जया- इतने कठोर कैसे हो सकते हो? इसके माँ-बाप के बारे में तो सोचो
रमन - जया! ये बहादुरी दिखाने का समय है। अर्जुन को युद्ध के मैदान में अपने रिश्तेदारों को देखकर मोह हो गया था तब कृष्ण ने उनके मोह को दूर करने के लिए युद्ध के लिए प्रेरित किया था। तुम भी आज मोह में आ रही हो। यह बच्ची, जिसको सवा महीने इतने प्यार से पाला,भगवान को समर्पित करने जा रहें हैं,त्याग करने जा रहें हैं। बदले में हमें चाँद सा बेटा मिलेगा।
जया- नहीं ये पाप है,अनर्थ है,मैं ऐसा नहीं कर सकती।
रमन- भगवान के लिए भी नहीं कर सकती। देखो इस बच्ची से हम दोनों को इतना प्यार हो गया है । इसकी बलि चढ़ाते हुए जितना दुख तुम्हें हो रहा है,उतना मुझे भी। लेकिन मैं इस त्याग के लिए तैयार हूँ।
जया- रमन! भगवान को कुछ नहीं चाहिए। सब कुछ उसी का तो दिया हुआ है। ये रूप, ये रं ग, ये शक्ल, ये सूरत, ये धन - दौलत सभी कुछ उसी का तो दिया हुआ है। उसे हम श्रद्धा के अलावा क्या दे सकते हैं । बस श्रद्धा ही तो अपनी है।
रमन- मैं तेरी बकवास सुनने वाला नहीं हूँ । मुझे अपना बच्चा चाहिए और वो तान्त्रिक हमें अपना बच्चा देगा।
जया- वो तान्त्रिक एक आदमी है, भगवान नहीं। भगवान से माँगते तो शायद अब तक मिल भी जाता।
रमन- (थप्पड मारता है ) आगे बोली तो तुझे भी काटकर चढ़ा दूँगा।
( पति बलात ही बालिका को तान्त्रिक के पास ले गया। यज्ञ प्रारम्भ हुआ। पत्नी ने पुलिस को फोन किया। पुलिस ने रंगे हाथों रमन और तांत्रिक दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।)
नारद- परमपिता! आपने इस निर्दोष बालिका की रक्षा क्यों नहीं की ?
भगवान- हे पुत्र! मैं न्यायधीश भी हूँ। मैंने व्यक्ति को बल, बुद्धि के साथ- साथ विवेक देकर कार्य करने के लिए स्वतन्त्र छोड़ा है । मैं व्यक्ति की नीचता या महानता की पराकाष्ठा देखना चाहता हूँ। भोले भाले मासूम लोगों के लिए मेरा प्रेम, मेरी दया सदैव सुरक्षित रहती है।
नारद- किन्तु इस बच्ची की रक्षा तो(-----)
भगवान- ( मुस्कराते हुए) देखो वो मासूम बच्ची और भी अधिक संस्कारित, सम्पन्न और प्रतिष्ठित परिवार में जा रही है। आत्मा तो अजर,अमर है । तान्त्रिक इस बालिका को बलि चढ़ाकर न मेरी कुछ हानि की है, न मेरी कृति को नष्ट किया है । लेकिन अपने लिए लोक- परलोक दोनों में सजा सुनिश्चित की है। मेरा प्रेम पाना तो बड़ा सहज और सरल है। जैसे माँ का प्रेम पाने के लिए मानव को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता वैसे ही मेरा प्रेम सरल सहृदय व सहज लोगों के लिए सुरक्षित है।
नारद- हे परमपिता ! मानव ने एक यंत्र बनाया है। जिसके माध्यम से साधु संत निरन्तर मानव का पथ प्रदर्शन करता है।
भगवान- कहाँ है साधु- संत मुझे तो कोई नजर नहीं आता।
नारद- इस यंत्र को मानव टेलीविजन कहता है । इसके माध्यम से एक ही बार में पूरे विश्व को सूचना पहुँचाई जा सकती है।
भगवान- यह तो हर्ष का विषय है कि मेरे पुत्र उन्नति कर रहें हैं। चलो इनका व्याख्यान सुनते हैं।
नारद- हाँ प्रभु! यह हैं मंगल बाबा।
पर्दा खुलता है
( मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। एक बहुत बड़ा हॉल। हॉल में कुर्सियों पर असंख्य लोग बैठे है। मंच पर एक स्वर्ण जड़ित सिंहासन पर एक मोटा सा व्यक्ति बैठा है )
एक स्त्री- ( खड़े होकर हाथ जोड़कर ) बाबा ,मैं हरिद्वार से आई हूँ। आपको कोटि कोटि प्रणाम । बाबा मेरे पास एक सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं थी आपकी कृपा से अब मेरे पास 1000 वर्ग मीटर की कोठी है, कार है ( रोने लगती है ) बस बाबा मुझपर ऐसे ही कृपा बनाए रखिये।
बाबा- ( चुपचाप आराम से बैठे है, हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में )
एक लड़का- ( हाथ जोड़कर ) बाबा कोटि कोटि प्रणाम। मैं राजस्थान से आया हूँ। मेरा ये दूसरा सत्र है । मैं आई आई टी खड़गपुर की बी टेक की डिग्री लिए घूम रहा था। आपकी कृपा से अब दो साल बाद मेरी सरकारी जॉब लग गई है। बस अपनी कृपा ऐसे ही बनाए रखना।
नेपथ्य से आवाज आती है ( अगला सत्र अति शीघ्र पंजाब के चंडीगढ़ में होने जा रहा है। पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इन नंबरों पर फोन कीजिए,या हमारी वेबसाइट पर लॉग ऑन कीजिए। या मेल द्वारा भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। )
भगवान- हे परमपुत्र! मैं कहाँ हूँ ? असली प्रभु तो यह बाबा है। विध्नहर्ता, सर्वज्ञ,अन्तर्यामी सब उपाधियाँ इसके लिए उपयुक्त है। मैं तो न्याय करते हुए दंड भी देता हूँ । यह तो केवल कृपावृष्टि करता है । इसीलिए लोगों की दयायाचना मेरे पास तक नहीं आती।
नारद- हे परमपिता ! यह बाबा एक ही सत्र की फीस कई कई हजार लेता है
भगवान- पुत्र ! इसके एक सत्र में और चलेंगे।
नारद- जैसी आज्ञा परमपिता
पर्दा गिरता है
( भगवान और नारद मंच के अग्रभाग में दो- तीन चक्कर लगाते हैं)
दशम दृश्य
पर्दा खुलता है। मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। बाबा का दरबार। भीड़ )
एक पुरुष- बाबा की जय। बाबा मेरा बेटा दसवीं में दो बार फेल हो गया। कृपा कीजिए ।
बाबा- सांई के दरबार में कब गये थे। वहाँ दान पेटिका में क्या चढ़ाया था?
पुरुष- अभी जून में गया था वहाँ 50 रू. चढ़ाये थे।
बाबा- अब फिर जाओ और 5000 रु. चढाओ। हाथ से कुछ छूटता नहीं तो कृपा कहाँ से आएगी। ये उपाय करो, सब ठीक हो जाएगा।
एक स्त्री- बाबा मेरी लड़की 32 वर्ष की हो गई है। दहेज की मांग के कारण बात नहीं पा रही।
बाबा- मैया के दरबार में गई थी?
स्त्री- हाँ बाबा! गई थी और मैया को कपड़े भी चढ़ाये थे।
बाबा- यही तो गलती करते हो। मैया को पाँच स्वर्ण के आभूषण चढ़ाओ। सब ठीक हो जाएगा।
भगवान- परमपुत्र! ये क्या हो रहा है ? मुझे भी लालची बना दिया । और मंदिर में केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए जा रहे हैं लोग। ये स्वर्ण- चाँदी, हीरे- मोती मैंने सब पृथ्वी के नीचे छिपा दिए ताकि मनुष्य मेहनत करके निकाले ,उपयोग करे। इससे श्रम की कीमत समझेगा उसी स्वर्ण का लालच मुझे देता है। मनुष्य मेरे साथ भी व्यापार करना चाहता है, मुझे रिश्वत देना चाहता है।
नारद- हाँ परमपिता यह मनुष्यों को केवल पलायनवादी, लालची बना रहा है न प्रभुप्राप्ति का साधन बता रहा न कोई ज्ञान नहीं दे रहा।
परमपिता- हे पुत्र! ये लोग मेरे में श्रद्धा नहीं रखते , बस दुखों से डरते हैं।
नारद- हे परमपिता! मानव केवल चित्र की पूजा करने लगा चरित्र की पूजा बिलकुल नहीं करता । वो राम को भगवान मानता है लेकिन राम के जीवन से सीख नहीं लेता।
भगवान - यही समस्या हो गई है। सीता के हरण होने पर राम भरत से सहायता ले सकते थे लेकिन चक्रवर्ती साम्राज्य होने पर भी उन्होंने दलित, उपेक्षित, जंगली लोगों की सेना तैयार की और लंका के बलशाली रावण से टक्कर ली। जबकि रास्तें में समुद्र होने के कारण भौगोलिक परिस्थितियाँ विपरीत थी फिर भी हिम्मत नहीं हारी । लेकिन उनके प्रयासों से सबक लेने के बजाय ' वो तो भगवान थे ' ऐसा कहकर टाल देते है।
नारद- परमपिता ! आप सत्य कहते है । कृष्ण को भगवान मानते हैं लेकिन ना गीता पढ़ते हैं न उसके सिद्धांतों को जीवन में उतारते हैं। भगवन इन सबकी क्या गति होगी?
भगवान- सकल पदारथ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत नाहि।चलो अब अपने धाम चलते हैं।
नारद- परमपिता! बस एक बाबा के दर्शन कर लो
पर्दा गिरता है
भगवान और नारद मंच पर इधर- उधर चक्कर लगाते हैं।
अंतिम दृश्य
पर्दा उठता है
मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। बाबा का दरबार। सभी देवी देवताओं की प्रतिमा,786 का एक बड़ा सा ताबीज, यीशु, बुद्ध, महवीर की प्रतिमा।
भगवान- अरे ये तो अच्छा है। मानव ने मेरे नाम पर जितने भी धर्मों,और देवी देवताओं की कल्पना की है
उन सबकी प्रतिमा एक साथ। अर्थात सबने धर्म के नाम पर लड़ना छोड़ दिया है।
नारद- हे परमपिता ! आप तो चींटी के पैरों की आवाज भी सुन लेते है, इनकी मूल भावना तो आप भी जानते हैं।
( भगवान केवल व्यंगात्मक हँसी हँसते हैं) मैं जानता हूँ पुत्र ये इनके व्यापार का साधन है।
● नारद - हाँ परमपिता! ये सभी धर्म के भोले भाले लोगों की भावनाओं का लाभ उठाते हैं । वास्तव में तो साधारण आदमी का तो कोई धर्म ही नहीं होता धर्म के ठेकेदार जो उल्टा सीधा सिखाते हैं वही उनके लिए शिरोधार्य होता है।भगवन! इनका क्या दंड होगा ?
भगवान- जनता की सजा इन गुरूओं से कम होगी क्योंकि ये धर्मभीरू है, अज्ञानी है, लेकिन यह सोचना गलत है कि इन्हें सजा नहीं मिलेगी क्योंकि ये भी स्वार्थ, मेाहमाया में लिप्त हैं।विवेक, तर्कशक्ति, बल, बुद्धि मैंने सबको दी है। ऐसा नहीं कि धर्मशास्त्रों में ज्ञान नहीं हैं। लेकिन ये स्वार्थ में अँधे है। लेकिन ऐसे लोगों को, जो धर्मगुरू के नाम पर जनता को भटका रहे हैं, उन्हें तो कड़ी से कड़ी सजा दी जायेगी।
नारद- हे परमपिता ! थोड़ा सा रहस्य तो खोल दीजिए मेरी जिज्ञासा शांत करने हेतु( कहकर हाथ जोड़ लेता है ) क्या सजा मिलेगी इन्हें ?
भगवान- नारद ! तुम स्वयं जानते हो। मैंने सजा के लिए कोई अलग से लोक नहीं बनाया, न अलग से केाई व्यवस्था की। जो जैसे कर्म करता है उसे वैसी ही योनि प्राप्त हो जाती है। जीव अपने कर्मों के अनुसार योनि में सजा भुगतता रहता है। देखते नहीं सब जीवों के अलग- अलग कष्ट हैं।
नारद- मानव जाति का उद्धार कैसे होगा ?
भगवन- जीवन जीना तो बड़ा आसान है मुझ तक पहुँचना भी आसान है। धर्म का रास्ता सीधा है, चलकर तो देखो, अधर्म का रास्ता बड़ा टेढ़ा- मेढ़ा है बहुत दिमाग लगना पड़ता है।
पर्दा गिर जाता है।
इति
सुधा शर्मा
557/6, पीर वाली गली
शिव शक्ति नगर,मेरठ- 250002
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