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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 17 -
गांधी गिरी
अर्चना राय
पात्र- 1. रसीद 2. हैदर 3. हमीदा 4. गंगाराम 5. नेताजी 6. पंडितजी
पहला दृश्य- (शाम का)
शहर के चौराहे पर बने सिग्नल पर, अपाहिज रसीद हाथों में पेन का बंडल पकडे, बैसाखी के सहारे चलते हुए, सिग्नल पर रुकती कारों पर लोगों को पेन खरीदने की कोशिश करता हुआ
"साब, दस रूपए के चार पेन है, ले लीजिए"- कार के काँच पर ठोकते हुए, वह विनती करता है।
, पर सभी उसको अनसुना कर निकलते जाते हैं। पेन बेचने की हड़बड़ी में, एक कार से टकराकर गिर जाता है। उसके हाथ में पकडे सारे पेन गिरकर टूट जाते हैं। और सिर से खून बहने लगता है।
दूसरा दृश्य- (रात का)
, एक टूटी फूटी झोपड़ी के अंदर दिये कि मध्यम रोशनी में जमीन पर बिछी चटाई पर एक सात- आठ साल का कृष्काय बच्चा (हैदर) अपनी अम्मी हमीदा की गोद में सिर रखकर सोने की कोशिश कर रहा है। और उसकी अम्मी उसके सिर को सहला कर सुलाने की कोशिश कर रही है। और उसका अब्बा अपाहिज रसीद (बनियान और लुंगी के साथ सिर पर टोपी पहने हुए है। तथा चेहरे पर हल्की दाढी है, तथा माथे की चोट पर पट्टी बांधे है) झोपड़ी की देहरी पर खड़ा बारिश को देखते हुए कुछ सोच रहा है। उन तीनों के चेहरे पर भूखे रहने की लाचारी साफ झलक रही है।वहीं ठंडा पडे चूल्हे जिसे हमीदा फटी आखो से देखते हुए, बेटे को सुलाने की कोशिश कर रही है।
हैदर बार-बार जीभ को सूखे होंठ पर फिराकर गीला करते हुए, करवटें बदल कर सोने की कोशिश करता है। और असफल होने पर वह अपनी अम्मी से कहता है
हैदर - "अम्मी नींद नहीं आ रही, पेट में जलन हो रही है"- कहते हुए पेट पर हाथ फेरता है।
अम्मी - " सो जा बेटा, सब ठीक हो जाएगा"- कहते हुए हैदर को गले से लगा लेती है, और अपने शौहर रसीद की तरफ देखने लगती है। दोनों की आंखें मिलती है और दर्द का एक अथाह सागर दोनों की आंखों में उतर आता है।
तीसरा दृश्य- (दिन का)
शहर के गाँधी- चौक, जिस पर गाँधी जी की आदम कद प्रतिमा स्थापित है, के बाजू में बने मंदिर पर, अलसुबह से ही गरीब, लाचार और भिखारियों की काफी भीड़ जमा रहती है। वह सब बेसब्री से किसी के आने का इंतजार करते हुए, आपस में वार्तालाप करते रहते हैं। और उसी मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों का सरदार गंगाराम घूम- घूम कर लोगों को डंडे से हड़काते हुए लाइन में चुप रहने की घुड़की देकर, अपनी दादागिरी दिखाता रहता है।
कुछ देर बाद वहाँ कारों का एक काफिला आकर रुकता है। और सभी खड़े होकर
भीड - " नेता जी की जय"
" नेताजी की जय हो"- आदि के नारे लगाने लगते हैं।
और एक विदेशी कार से सफेद कुर्ता पजामा पहने नेताजी अपनी पत्नी सहित उतर कर हाथ जोड़कर मुस्कुराकर सबका अभिवादन करते हुए, सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के अंदर चले जाते हैं।
चौथा दृश्य- (मंदिर के भीतर)
नेताजी के सपत्नी मंदिर के अंदर पहुंचने पर वहां उपस्थित पुजारी जी, मुस्कुरा कर उनका स्वागत करते हुए कहते हैं
पंडित जी- " आइए यजमान... आइए आपका ही इंतजार था" कहते हुए वे नेताजी का स्वागत करते हैं।
और नेता जी हाथ जोडकर मुस्कुरा कर पंडित जी द्वारा कराई विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा करने लगते हैं।
साथ ही नेता जी के आदमी मंदिर के अंदर फल, मिठाई और खाने की बहुत सारी चीजों की बड़ी-बड़ी टोकरी ला कर रख देते हैं।
पांचवां दृश्य- (मंदिर के बाहर)
जमा भीड नेताजी के इंतजार में खडी है। रसीद भी बैसाखी के सहारे चलते हुए अपने परिवार के सहित आकर वही भीड़ के साथ खड़ा हो जाता है। उसे वहाँ आया देखकर गंगाराम उसके सामने जमीन पर डंडे को ठोकते हुए घूर कर उसे देखते हुए, उसके चारों तरफ चक्कर लगाकर वापस मुड जाता है। पर कुछ कहता नहीं है।
रशीद और गंगाराम की नजरें जब एक -दूसरे से मिलती हैं, तो रसीद नजरें नीची कर लेता है। दोनों की आपस में ज्यादा बनती नहीं थी। गंगाराम के देखने के अंदाज से पता चल जाता है।
नेताजी को आने में देर होती देख उसका बेटा हैदर भूख और प्यास से व्याकुल होकर अपने अब्बू से कहता है
हैदर - "अब्बू हम कब तक खड़े रहेगें और नेताजी हमें खाना कब देंगे"
रसीद - "बस बेटा अभी नेताजी पूजा करके आते ही होंगे, फिर हम सब को अपने हाथ से खाना देंगे"
हैदर - "नेताजी को इतनी देर क्यों लग रही है पूजा में?"
हमीदा - " बेटा आज उनका जन्म दिन है तो पंडित जी लंबी पूजा करा रहे होगें" अम्मी हमीदा ने उसे समझाते हुए प्यार से हाथ फेरकर कहा
अभी वे अपने बेटे को समझा ही रहा होता है, कि मंदिर के अंदर से घंटियों के संग आरती की आवाज आनी शुरू हो जाती है। पूजा समाप्ति की सोच, सभी जल्दी जल्दी से लाइन लगाकर सीधे खड़े हो जाते हैं।
छटवां दृश्य- (मंदिर के भीतर)
नेताजी आरती पूजा समाप्त कर पंडित जी से आशीर्वाद लेने उनके पैर छूते हैं।
पंडित जी- "सदा सुखी रहें, लंबी आयु हो ,सदा जनता की सेवा में लगे रहे"-( सिर पर हाथ रखकर पंडित जी आशीर्वाद देते हुए कहते हैं।)
नेताजी साथ खडे अपने आदमियों को खाने का सामान बाहर ले जाने का आदेश देते हैं।
"लल्लन, परशु चलो जल्दी से खाने का सामान बाहर रखो, ताकि मैं सभी को बाँट सकूं।"
"जी नेताजी।"- टोकरियाँ उठाते हुए उन्होंने कहा।
सातवां दृश्य - (बाहर )
अभी नेताजी आने वाले ही होते हैं कि, अचानक मौसम खराब होने लगता है।। तेज हवाओं के साथ बारिश होना शुरू हो जाती है। इससे वहाँ खड़े सभी लोगों में अफरा-तफरी मच जाती है। जिसे जहाँ जगह मिलती है, छुपने की कोशिश करने लगता है। पर रसीद और उसका परिवार वहीं बारिश में भीगते, खड़े रहते हैं।
नेताजी मंदिर के द्वार पर आकर खडे हो जाते हैं। और बारिश न रुकते देख बार बार बेचैनी से कभी घडी तो कभी सिर ऊपर कर आसमान की ओर देखने लगते हैं।
फिर सोचने लगते हैं
"ऐसे ही खड़ा रहा तो अपने जन्म दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में मैं लेट हो जाऊँगा।"
फिर भी कुछ निर्णय लेते हुए, गंगाराम को अपने पास बुलाते हैं।
नेताजी- " सुनो गंगाराम, यह खाने का सारा सामान अपने पास रखो और पानी रुक जाने के बाद यहाँ उपस्थित सभी लोगों को बाँट देना , मुझे जरूरी काम से जाना है।"
गंगाराम- "जी नेताजी, आप निश्चिंत रहें, मैं सब को ठीक तरीके से बांट दूंगा।"( गंगाराम हाथ जोड़कर कहता हैं।)
नेताजी के आदमी खाने का सारा सामान, उसके हाथों सौंप कर नेताजी सहित कार में बैठकर धुआं उड़ाते हुए निकल जाते हैं।
थोड़ी देर बाद बारिश रुक जाती है। और गंगाराम लोगों को संबोधित करते हुए कहता है
गंगाराम- " चलो भाइयों जल्दी करो, सब लाइन लगाकर खड़े हो जाओ।" और सभी लाइन लगाकर जल्दी- जल्दी उम्मीद से खिले चेहरे लेकर खड़े हो जाते हैं।
परंतु रसीद लाइन में खड़ा नहीं होता और निराश होकर एक हाथ से वैशाखी और दूसरे हाथ से अपने बेटे का हाथ पकड़ कर, हमीदा के साथ ह वापस घर की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ाने लगता है।
हैदर - "क्या हुआ अब्बू, वहाँ चलो न जहाँ खाना मिलने वाला है।"-( हैरान होकर हैदर अपने अब्बू का चेहरा देखते हुए कहता है।)
रशीद- " नहीं बेटा..." एक ठंडी गहरी सांस लेकर उसे कहता है।
रशीद- " हम कहीं और चलते हैं।"
हैदर- "पर अब्बू? ..."
गंगाराम उनको दूर से देख रहा था और साथ ही लाइन में खडे लोगों को खाना भी देता जा रहा है।
हैदर एक आस भरी निगाह, वहाँ रखी मिठाई और खाने के सामान पर डालता है। और सूखे होठों पर जीभ फेरकर अब्बू के साथ चलने मुड़ जाता है। वे चार कदम आगे बढे ही थे कि तभी
गंगाराम- "रुको रसीद कहाँ जा रहे हो?"-( पीछे से गंगाराम आकर कहता है। उसके हाथ में फल और मिठाई, आदि खाने का सामान था।)
गंगाराम- "अपने हिस्से का खाना, तो लेते जाओ"- (गंगाराम हाथ आगे बढ़ा कर कहता है।)
सुनकर रसीद चुपचाप खड़ा, प्रश्नवाचक निगाहों से गंगाराम की ओर देखने लगता है।
गंगाराम- " ले लो, इस पर तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का हक है।" -( गंगाराम फिर उससे मुस्कुरा कर कहता है।)
अब रसीद चुप्पी तोड़ते हुए कहता है
रसीद - "पर मुझे क्यों?.... मैं तो तुम्हारा ....!"
अभी आगे के शब्द बोल भी ना पाया था कि गंगाराम बीच में बोल पड़ा
गंगाराम- "दोस्त,.. यह खाना जरूर नेताजी का है, पर मैं नेतागिरी नहीं करता।" हँसकर खाने का सामान उसको देकर, बेटे हैदर के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर, वापस जाकर, वह दूसरे लोगों को खाना बाँटने में व्यस्त हो जाता है। और कैमरा का फोकस चौक पर लगी गाँधी जी के चेहरे पर टिक गया, और लगा जैसे गांधीजी की प्रतिमा अचानक मुस्कुरा उठी हो।
(समाप्त)
अर्चना राय
आदर्श होटल, पंचवटी
भेड़ाघाट,जबलपुर (म 0 प्र 0) 483053
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