नर्मदा परिक्रमा रिपोर्ताज नर्मदा के तीर भूल चले सब पीर... (परिक्रमा रिपोर्ताज) अखिलेश सिंह श्रीवास्तव सन दो हज़ार की शीत | सिवनी स्थित मेरे घ...
नर्मदा परिक्रमा रिपोर्ताज
नर्मदा के तीर भूल चले सब पीर...
(परिक्रमा रिपोर्ताज)
अखिलेश सिंह श्रीवास्तव
सन दो हज़ार की शीत | सिवनी स्थित मेरे घर-आँगन का तुलसीकोट | मैं अपने माता-पिता के साथ गुनगुनी धूप का आनंद ले रहा था तभी माँ नर्मदा की परिक्रमा के विचार नें हौले से हमारे मन में दस्तक़ दी | मैं गृहस्थी के ना-ना विध जाला से विमुक्त, स्वच्छंद विचरण करता पंछी, फिर भी योजना पूर्ण न कर सका | दो हज़ार दो में शहनाई की मधुर धुन मेरे जीवन में, कविवर चंद्रप्रकाश वर्मा द्वारा रचित “पाणिग्रहण की बेला है यह पाणिग्रहण की बेला” गीत पिरो गई पर ‘नरबदा माई की परकम्मा’ प्रतीक्षारत ही रही | अब तो प्रतिवर्ष योजना पर चर्चा ही एक योजना बन गई | अठारह वर्ष बाद उन्नीस मार्च दो हज़ार अठारह को अचानक विचार बना कि एक दिवसीय धुरी अनुकूल जबलपुर की घाट परिक्रमा करें | इस शुभ-यात्रा में मेरी सासु जी भी सहयात्री बनीं | इस परिक्रमा-से मेरी माँ इतनी संतुष्ट थीं मानों उन्होनें पूर्ण परिक्रमा कर ली हो | इसी वर्ष अक्टूबर माह में परिक्रमा पर पुनर्विचार हुआ पर एक विषाद दुःख हमारे जीवन में अपूर्णीय क्षति दे गया | मेरी माता जी करवाचौथ की प्रभात बेला में श्री राम के श्री चरणों में समा गईं | क्या कहूँ इस दुखद विषय में छोड़िए...! वर्ष बीत गया और मार्चान्त स्वतः सर्व बाधा विनिर्मुक्त, नर्मदा परिक्रमा सुनिश्चित हो गई |
इकत्तीस मार्च को मम् भार्या प्रतिमा, बेटियाँ-माही,नौमीं, पिताजी- दादू निवेन्द्र नाथ सिंह और मैं, बतौर परिक्रमा वासी नगरपालिका एवं विधायक प्रमाण-पत्र, सभी अनिवार्य दस्तावेज़ों के साथ मेरी माँ की एक सुंदर फ़ोटो और उनकी यादें लिए, नगर के प्रमुख मंदिरों को प्रणाम करते निकल पड़े परिक्रमा उठाने नर्मदा उदगम, अमरकंटक के लिए | अठारह वर्षों से प्रतीक्षित यात्रा का योग बन ही गया | दिनांत हम अमरकंटक के महेन्द्रं गेस्ट हाउस में रुके जिसका उल्लेख मैंने पूर्व प्रकाशित अमरकंटक पर रिपोतार्ज में किया है |
पंडित नरेंद्र द्विवेदी सभ्राता न केवल इस विश्राम स्थली के संचालक हैं अपितु उदगम मंदिर के पुजारी भी हैं | यहाँ के नर्मदा सेवी और साहित्यकार संजय श्रीवास हर परिक्रमा वासी के लिए तन-मन-धन से समर्पित हैं | अप्रैल माह के प्रथम दिन, वनाच्छादित अमरकंटक के उदगम मंदिर के शीतल, पुण्यदायी वातावरण में पंडित रवि द्विवेदी नें उदगम जल के साथ विधि, विधान-से पूजा करवा परिक्रमा उठवाई | अब इस प्रणीत तपस्या जल की पूरी परिक्रमा में सुबह-शाम पूजा करनी है | अहा ! अवर्णित आनंद की अनुभूति हो रही है | हमनें दक्षिण तट-से दर्शन मात्र से कल्याण करने वाली, त्री-राज्य गामिनी, पापनाशिनी, पश्चिम वाहिनी, कुल तारिणी, माँ नर्मदा की परिक्रमा का शुभारंभ किया | प्राचीन मंदिरों से लगे आम्रकूट के वन्यमार्ग-से होकर हम नर्मदाष्टक, शिव तांडव स्त्रोत, हनुमान चालीसा, सुंदर काण्ड और भजनों का श्रवण-आनंद उठाते, नर्मदे हर के जयकारे के साथ बढ़ चले, महाराजपुर की ओर |
समक्ष हैं हमारे सर्पीले घाट, सतपुड़ा के ऊँघते अनमने जंगल, मार्ग मध्य मैदान, छोटे-बड़े गाँव जिनमें छिपे हैं लोक साहित्य के अनगिनत विषय और पंथीय सीमाओं को लाँघते परिक्रमा वासियों के प्रति लोगों का अपनापन ; यही तो है हमारे भारत की पहचान ; सर्वस्व रेवा साम्राज्य | विचार कौंधा-“ आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये तो प्रत्येक जीव के गुण हैं फिर मनुष्य में क्या विशेष ? क्या देह की पार्थिव बनावट ही मानवता की पूर्णता है ? नहीं ! जब तक उसमें धर्माश्रित जीवन, विवेक,बुद्धि और मानवता की भूति सम्मिलित न हों |” हम चले जा रहे हैं ‘नर्मदा के तीर-तीर बिसरा अपनी सभी पीर |’ आने वाले पाँच सौ अट्ठाईस घंटे हमें बस चलते जाना है | गड़ासराई के राय ढाबा में हमनें परिक्रमा का प्रथम अन्न प्राशन किया | जबलपुर-रायपुर राजमार्ग में पद्मनी चौराहे से बाएँ, एकल मार्ग में मुड़, एक कच्चा पुल पार कर सीधा महाराजपुर पहुँचा जाता है | यहाँ नर्मदा का बंजर नदी के साथ संगम है | हम किरार क्षत्रीय समाज धर्मशाला में रुके | यहाँ हमारी सहायता नर्मदा सेवी लालाराम चक्रवर्ती नें करी | संध्या को जब नर्मदा अर्चना के समय जीवन आशा रूपी जल राशी को देख मुझे प्रतिमा कृत रेवा समर्पित पंक्तियाँ याद आ गईं –
“मुना, मुरंदला, मुरला, तमसा, मंदाकिनी, बिपाशा,
बालूवाहिनी, शांकरी, करभा तुम जीवन की आशा ”
यहाँ का सुंदर घाट, विशिष्ट तट दृश्य का सजीव उद्धरण है | रात्री में मंदिर के एक सेवादार भाई नें अपनें घर भोजन का आग्रह किया | हम सहर्ष तैयार थे पर बच्चों की भूख की तीव्रता के समक्ष भोजन बननें की प्रतीक्षा कठिन लगी सो उनसे थोड़ा प्रसाद ले हम सीधा लकी फ़ैमिली रेस्टोरेंट गए और उन्हीं सज्जन के नाम से भोजन प्रसादी पाई | अप्रैल माह के ऋतु परिवर्तन चिह्न साफ़ दिखनें लगे हैं | ग्रीष्म अनुभूति सुबह-शाम हो र ही है | प्रातः पूजा-पाठ के साथ नर्मदा दर्शन कर, हम निकल पड़े छोटे बरमान के लिए | बरमान संक्रांति के मेले के लिए प्रसिद्ध है पर आज सामान्य दिवस में भी इसकी धार्मिक समृद्धि उतनी ही सजीव है | हम जिस मार्ग में हैं वह कह रहा है प्राकृतिक सौंदर्य हरितमा मात्र में नहीं अपितु झरे पत्तों वाले वृक्षों में और सूखे मैदानों में भी समान है, वैसा ही जैसा सौंदर्य मात्र गौर वर्ण में नहीं अपितु शयामल वर्ण भी समान रहता है | पोंडी, बड़ार में ग्रामीण ताम्बूल का मज़ा लेते हुए हम पहुँच गए घंसौर | यहाँ साहित्यिक मित्र अजय बोपचे-से चलभाष वार्ता की और बढ़ चले अपनी मंज़िल की ओर | “ऊँचे-नीचे रास्ते और मंज़िल तेरी दूर |” लीजिए सामनें लखनादौन का पैट्रोल पम्प चौराहा पड़ा | यहाँ जलपान ले हम आगे बढ़े तो आया बचई | मेरे पिता जी नें बताया, “सत्रह सौ बाईस में जब हमारा दादू परिवार रायबरेली-से यौद्धिक गतिविधियों के चलते यहाँ आया तो कुछ समय बचई में रहा और यहाँ की गढ़ी में शिव मंदिर निर्माण करवाया |” उन स्मृतियों को नमन कर हम आगे बढ़ गए | सामनें दूल्हा देव और नृसिंह भगवान् की स्थली नरसिंहपुर है | रात्री विश्राम के विचार से कवि विवेक सक्सेना के माध्यम से एक होटल का पता लिया, परंतु यात्रा जारी रखी | गाडरवाड़ा में क़लम सखा भाई विजय बेशरम-से दुआ-सलाम करते प्रस्थान किया | देखिए ! सूर्य देव निशा को दयित्व सौंप अस्तांचल पहुँच गए और हम होशंगाबाद | नर्मदा सेवी अखिलेश खंडेलवाल और विवेक भट्ट-से चर्चा उपरांत हमारा परिक्रमा वाहन सीधा सेठानी घाट की निर्देशित धर्मशाला के समक्ष मुश्किल-से पार्किंग ढूँढ कर रुका |यहाँ व्याप्त अस्वच्छता के कारण हम श्री कृष्णा लॉज में ठहरे, अच्छी जगह है यह | परिक्रमा का एक मंत्र है- ‘कम सामान यात्रा आसान |’ अतः प्रति टेक, प्रतिमा अपनी बिटिया-टीम के साथ वस्त्र प्रक्षालन करती | इस दौरान उन तीनों की मस्ती को देख सोचता हूँ यदि हम अपने कार्य को ऐसे ही आनंद लेते करें तो कभी भी वह बोझिल और नीरस नहीं हो सकता |
अगली प्रभाती के साथ हम टिमरनी होते हुए हरदा आए यहाँ तेली की सराय देखी और सुंदर हंडिया घाट में शांकरी आरती करी और मिश्रा पैलेस (गेस्ट हॉउस) में डेरा डाला | समय कह रहा है, “ढल गया दिन हुई रात चलो सो जाएँ |” मुझे और प्रतिमा को छोड़ सभी इसका पालन करनें लगे | संजोग है कि हम दोंनों लेखन क्षेत्र-से हैं और मार्ग में हुए सत्संग मोतियों को एक माला में पिरो रहे हैं, जो सौंदर्य बनेंगे हमारे उपन्यास ‘रुद्रदेहा’ के | इस अक्षर माला के निर्माण का उत्स नर्मदा पुत्र अमृतलाल जी वेगड़ के घर में है जहाँ उन्होनें अपनी कृति हमें भेंट की, हाँ जी उसी समय जब चाची जी संभवतः अचार के लिए अदरक छील रहीं थीं | उन्होनें कहा था, “ तुम लोग भी नर्मदा संतानें हो, लिखते हो तो दो कुछ अक्षर भेंट माई को, लिखो इस पावन जलधार पर |” याद है, हमनें आश्वासन प्राप्त किया था कि जो भी हम लिखेंगे वे उसमें आशीष वचन लिखेंगे, अफ़सोस ! असमय उन्होंने चिर विदा ले-ली |
सुभोर नई ऊर्जा लिए आई और हम चल पड़े उसके साथ फ़िर एक बार रुद्र्देहा के अद्भुत संसार-दर्शन के लिए | “मैं सारथी हूँ उस परिक्रमा रथ का | दयित्व है मेरे ऊपर सभी की सुरक्षा का | वो भी तो सारथी ही थे जिस पर दायित्व था श्री राम को नदी पार करने का ; पार्थ के रथ को उसके अग्निवर्शक शरों के साथ सम-आयोजित करने का ; दानवीर कर्ण को पथ दिखलाने का अथवा जलप्लावन के हा-हाकार में विशाल नौका-से जीव-जीवन रक्षण का | हर स्थिति में सारथी को जाग्रत, सतर्क और निर्भीक रहना पड़ता है ; इसी में सार्थकता है उसके सारथ्य की |” हरदा-से सीधा धूनी वाले दादा जी के आश्रम खंडवा पहुँचे जो किसी समय खांडव वन कहलाता था | ग्रीष्म की इस तपती दुपहरिया में आश्रम-भूमि तन-मन को शीतलता प्रदान करनें वाली है | सांय पाँच-से छः तक हम ॐकार्मान्धाता की नगरी ॐकारेश्वर में गजानंद महाराज भक्त निवास में शरण पा चुके थे | बहुत ही श्रेष्ठ स्थान है यह | गहरी साँझ के समय हम पैदल परिक्रमा वसियों के लिए बने कक्ष में भेंट के लिए गए | परिक्रमा मूर्तियों से मिलना अलग ही अनुभव था, श्रद्धा और आनंद की मनआहलादन जुगलबंदी | मार्ग में वृद्ध सियाराम बाबा का आश्रम पड़ता है अतः हम कसरावद के पहले बेडिया-से दाहिने मुड़, नर्मदा के तीर-तीर हनुमान भक्त सियाराम बाबा के आश्रम पहुँचे | पशु और मानव दोनों साथ-साथ उनके दरबार में बैठते हैं यहाँ से विदा के साथ हम पाँचों को सदाव्रत मिला | सच ! बहुत ही अच्छा लगा यहाँ | मार्ग में सक्षम ढाबा में हमनें कलेवा लिया | अगला स्थानक बड़वानी है जो मध्यप्रदेश-महराष्ट्र का सीमा जिला है | यहाँ हम नर्मदा सेवी और राजघाट मंदिर के संरक्षक सचिन शुक्ल के साथ तट-दर्शन के लिए गए | राजघाट मार्ग में स्थित, होटल साँईं प्लाज़ा को हमनें एक दिवसीय बटुक निवास बनाया | प्रातः शीघ्र नर्मदा आरती कर यात्रा आरंभ करी | लूट के लिए चर्चित शूलपाणि क्षेत्र अब विकास की धारा में आ गया है अतः पता ही नहीं चला हम कब उस स्थान से निकल गए | हाँ मार्ग में एक जगह गंगा, जमुना, सरस्वती बनीं छोटी-छोटी कन्याओं नें चुनरी-से मार्ग रोक कर कुछ चंदा माँगा | मैनें उनसे नर्मदे हर के जयकारे लगवा, उनकी इच्छानुरूप भेंट दे-दी, अभी भी याद है उनका वो मुस्कुराता बाल-मुख | क़ाश ! हमारी नदियाँ भी ऐसे ही मुस्कुरा ऐसे ही दें...!
अगली मुना नगरी है अंकलेश्वर, जिसे लक्ष्य किये हम महराष्ट्र के अल्पावधि भू-भाग में मुना-जल को प्रणाम करते जब दगडू महाराज के आश्रम क्षेत्र प्रकाशा-शाहदा पार कर रहे थे तब पहली बार केले की विस्तृत खेती देखी | मन बोला, “केले ले-ले पर बढ़ लिए हम अकेले, बिन लिए केले...!” इस क्षेत्र में पता बताने के लिए बोला जाता है- “आगे एक गाँव गिरेगा...|” यह लोक भाषा का सौंदर्य है | डोडीपार को पार करने के बाद हम उस राज्य क्षेत्र में हैं जहाँ नर्मदा अपने कल-कल निनाद रूप-से सौम्य रूप धारण कर प्रणयन करती है, सागार-संगम के लिए | एक अबोला मौन जो वियोग के पहले दिख जाता है | यहाँ वो शाँत है कि सागर में मिलाना है पर पूर्व में वो इतनी निनाद कारी थी कि स्वयं शिव को कहना पड़ा-“नर्मदा ! धैर्य धारण करो |“ अंकलेश्वर में होटल मोनार्क रुकनें के लिए अच्छी जगह है | अंकलेश्वर महादेव, अंतर्नाद मंदिर,रामकुंड, बलबला कुंड ( इस नर्मदाकुंड की विशेषता है कि नर्मदे हर चिल्लानें से इसके बुलबुलों में तेज़ी से वृद्धी होती है ), सूरज कुंड इत्यादी | इसी मार्ग में बढ़ते हम हनुमान टेकरी-से कठपुरा पहुँचे, जहाँ से किसी समय नाव-से संगम जाया जाता था, पर अब विमलेश्वर घाट-से व्यवस्था है | यहाँ से भारता का भू-क्षेत्र विदा प्रणाम करता है और जल-सीमा सविनय भार ग्रहण करती है | नाव घाट पर जब हम पहुँचे तो देखा सागर-से नमक निकाला जा रहा था ; चारों ओर नमक के टीले ही टीले | मेरे देश का नमक, जिसके प्रति हमें हर हाल में ईमानदार होना चाहिए, परंतु कुछ स्वार्थी इसका हक़ अदा नहीं कर रहे हैं, विश्वास है उन्हें दंड अवश्य मिलेगा |
चित्त को शांत करने वाला क्षेत्र है यह | एक बात दुखी कर गई आश्रम के महाराज जी नें दक्षिणा के प्रति जो दृष्टि अपनाई वो अनुचित थी | परिक्रमा श्रद्धा है व्यापार नहीं | हम तो प्रथम दिवस-से पद परिक्रमा वासियों को जल-भोजन, बच्चों को खाद्य पदार्थ, दान-पुण्य इत्यादी करते आ रहे हैं | हमारे साथ पिताजी और छोटी बेटी थे अतः तट परिवर्तन गोल्डन ब्रिज-से करने का निर्णय लिया | (आज काल बहुतेरे ब्रिज-से पार करते हैं) हम वपस अंकलेश्वर आए और रामकुंड में बापू गंगाराम जी के आश्रम में रुके | इस स्थली का और बापू के सरल, सहज और अपने पन का वर्णन शब्दों में मेरे लिए संभव नहीं | ‘मानव सेवा ही प्रभु सेवा है’ अवधारणा वाले इस आश्रम का मानवता ही केंद्रीय भाव है |
प्रातः हम गोल्डन ब्रिज स्थित नर्मदा घाट पहुँच गए | समीप, शिव मंदिर के महाराज नें बताया थोड़ी देर पहले ही जल तट को छोड़, नीचे उतर गया है | हमें जल पूजा के लिए नदी में काफ़ी पैदल चलन पड़ा ; दल-दली और चिकनी भूमि थी | यहाँ से नाव द्वारा और आगे जा कर जल परिवर्तन किया | पश्च्यात एकल वाहन निकलने वाले संकरे पुल-से हम नर्मदाष्टक के बंधों को हृदयसात करते, दक्षिण तट-से उत्तर तट में प्रवेश कर गए | इस तट परिवर्तन के साथ हमनें अपनी अर्ध परिक्रमा पूर्ण कर ली, मन में अद्भुत आनंद था | अब हमें सीधा भरूच के औद्द्योगिक क्षेत्र को पार कर, मीठी तलाई आश्रम जाना था | चरों और खारे पानी के स्रोतों के मध्य यहाँ ऐसा जल-कूप है जहाँ मीठा पानी उपलब्ध है, इसीलिए जनवाणी इसे मीठी तलाई पुकारती है |
समीप एक बंदरगाह है जहाँ नावें आ कर रुकतीं हैं | भाटे के कारण कई जहाज और तट परिवर्तन नावें, जल प्रतीक्षा करतीं मिट्टी में फँसी खडीं थीं | बड़ा सौम्य-विराट रूप है संगम जल का | नर्मदा और सागर एक जल, दूर-दृष्टिसीमांतार्गत अथाह जल और उसमें तैरती अनगिनत श्रद्धालुओं की श्रद्धाएँ जो अमरकंटक-से यहाँ नर्मदा मुख तक आ रहीं हैं | “अहा...! मेरी प्रबोधनी नर्मदा, संस्कृति-सभ्यता परिवर्धनी नर्मदा, सागर को समृद्ध करने वाली नर्मदा, भोजन दायनी नर्मदा, आश्रय दात्री नर्मदा, शुष्क धरा की आस नर्मदा, लोक जीवन को एक सूत्र में बाँधनें वाली नर्मदा, धर्म रक्षक नर्मदा, दर्शन मात्र से दुःख हारणी नर्मदा, क्षीरवाहिनी नर्मदा, ग्रंधों की प्रणयन स्थली नर्मदा, शिव तनया नर्मदा, मेकलसुता नर्मदा, रुद्रदेहा नर्मदा, वर्ष भोग्य आजीविका प्रदायनी नर्मदा, उदीयमान सौभाग्य दायनी नर्मदा, जिसकी प्रदिक्षणा प्रतीक्षा अष्टादश वर्षों पश्चयात पूर्ण हो रही है, वो पवित्र जल धार, नर्मदा...नर्मदा... नर्मदा...शत-शत बार प्रणाम माँ...!”
आज रात्री भरूच राल्वे स्टेशन के पास होटल क्लासिक रेजेंसी में विश्राम किया | प्रातः नीलकंठ महादेव, झाड़ेश्वर महादेव के दर्शन कर हम जा पहुँचे पीपल वृक्षों की समृद्ध स्थली शुक्ल तीर्थ | यहाँ एक रेस्टोरेंट में हमने कुछ पता पूछा तो उसके संचालक स्नेहिल भावों के साथ अपने पोते को लिए, हमारे साथ हो लिए और सकथा हमें घुमाया | प्रोफ़ेशनलिज्म में डूबे लोगों के लिए सामाजिकता का यह सुंदर उद्धरण है | आगे हम नारेश्वर, मालसर होते हुए मंगलेश्वर पहुँचे जहाँ पीढ़ियों से नर्मदा सेवी परिवार की ज्योति बेन से भेंट हूई | यहाँ से हमें आगे के मार्ग की विस्तृत जानकारी प्राप्त हूई | हमारा परिक्रमा-जात्रा अंगारेश्वर की महिमा को प्रणाम कर सीनौर के आगे मौलिता पुलिया से बाँए नीचे उतर कर बढ़ा | बद्रिका आश्रम, धधनघाट होते हुए प्राचीन मठों की नगरी चांदोद पहुँचे | युवा सन्यासी, बापू विवेकानंद जी महराज के ज्ञान साधना आश्रम में हमें रात्री विश्राम का सुअवसर मिला | अनाथ बच्चों के प्रति बापू का स्नेह मिसाल है उन व्यापारिक संतों के समक्ष जो भगवा के पीछे धन अर्जन को लक्ष्य किये हैं | बापू की प्रधान शिष्या अर्चना दीदी सरस्वती का कथा वचन अंतर्राष्ट्रीय मान प्राप्त कर रहा है | नौमी की यहाँ खुशिया के साथ अच्छी मित्रता हो गई | अगली सुबह समीप के मठों के दर्शन करते हम आगे बढ़ गए | वाहन पार्किंग यहाँ एक समस्या है |
सुंदर स्मृतियों को समेटे हमारी धारा कुबेर भंडारी, तिलकवाड़ा, गरुड़ेश्वर में प्रभु संमुख नत मस्तक होते हुए, सरदार सरोवर क्षेत्र में स्थित लोह पुरुष, वल्लभ भाई पटैल की विशाल प्रतिमा के सम्मुख बहते आ गई | दोपहर तपन में भी पटैल प्रतिमा की विशालता के सागर में डूबे हम मंत्र मुग्ध उन्हें निर्निमेष निहार रहे थे | क्या पता, सरदार सरोवर हमारी इस डूब-से थोड़ी देर के लिए अपनी डूब भूल गया हो ! इसी मार्ग में वापसी के समय राजमार्ग स्थित होटल गैलेक्सी में शुद्ध गुजराती थाली-से अपनी क्षुधा तृप्त की | नसवाडी, बोदली होते हुए हम छोटा उदयपुर की रिंग रोड स्थित होटल सिल्वर क्लासिक स्टोन में रात्री विश्राम हेतु रुके |
प्रातः प्रस्थान के साथ हमनें गुजरात सीमा के भेट गाँव में गुजरात भूमि को नमन किया और कुक्षी, मनवर, कालीबाड़ी, धामनोद होते हुए पुनः मध्यप्रदेश में प्रवेश किया | इधर बीच में लोग माँडू भी जाते हैं पर हमने मार्ग-से ही वहाँ के जल कुंड को प्रणाम कर गंतव्य की राह पकड़ी | कोटेश्वर तीर्थ, हरसिद्धी मंदिर, चौंसठ योगनी मंदिर दर्शन करते हुए जा रुके महेश्वर धाम के होटल हिमालय में | हमारी विश्राम स्थली, चतुरस्त्र मार्ग संगम पर है, जिसके सामने श्री राम-हनुमान मंदिर है | आज रामनवमी है | “आज की विभावरी मानवीय भावनाओं के बहुविध लास्य की प्रवाहनी बनेगी, बंटेगा सभी को श्री राम का प्रसाद, बुझेगी सभी की बुभुक्षा जो स्रोत है, सुकर्म और कुकर्म का, कोई भूखा नहीं सोएगा, संतोष की चादर तन जाएगी वेदनाओं को बिसरा कर, स्मरण होंगे श्री राम, समादृत होंगे स्वयं हम कि उत्सव है उसका जिसके नाम स्मरण-से मिट जाते हैं सब कष्ट-बाधाएँ, बहेगी भावनाओं की सरयु श्रद्धा के साथ मिल, पर शायद वही राम चिंतित भी होंगे बैकुंठ में कि आज के बाद कल क्या होगा...? जो मस्तक झूम रहे हैं श्रद्धा में वे फिर लिप्त हो जाएंगे छल-छिद्रं में और प्रतीक्षा करेंगे अगले त्यौहार की कि सामूहिक रूप-से मनाएँ, भंडारा करें, प्रसाद बाँटें |”
परिक्रमा ध्रुवण पर अनावश्यक तर्क करने वाले क्या समझें हमारी भावनाएँ ? कितनी समुज्ज्वलाता है मई-पथ पर ! मंडलेश्वर में नर्मदा और छप्पन देव के दर्शन करने के बाद थोड़ा मार्ग परिवर्तित कर सुमुत्सुक इंदौर के नवलखा बस स्थानक में स्थित, होटल श्रीनिवास में रुके | उद्देश्य था मेरी दीदी के जन्मोत्सव पर भेंट | रात्रि भोज विजय नगर स्थित एक प्रतिष्ठित होटल में रखा गया (जान-बूझ कर नाम नहीं लिख रहा हूँ ) हम अपनी बैनर-पताका लगी कार-से जब वहाँ पँहुचे तो सुरक्षा गार्ड नें हमें रोका, पता नहीं उसे क्या असुरक्षा लगी, पर अंततः हमने प्रवेश किया | यहाँ हमने सिद्धेश्वर हनुमान जी के श्री चरणों में माथा टेका | भगनी भेंट के लालित्य चित्त पर विजय उपरांत पुनः अनजाने मार्गों से जल-सखी की परक्रमा हेतु बाल चापल्यता भाव-से नूतनं-नूतनं पदे-पदे बढ़ चले | देवगुड़िया के गुटकेश्वर महादेव को दीप प्रज्ज्वलित कर आ पँहुचे हम नर्मदा परिक्रमा पथ के नाभि स्थल, नेमावर सिद्ध घाट | स्रोतवाहिनी की आरती कर सीधा नासिरुल्लागंज, कौशल्या-रेवा संगम नीलकंठेश्वर, देवी स्थल सलकनपुर होते हुए बुदनी आ गए | यहाँ रुकना चाह रहे थे पर दृष्टि-से विश्राम स्थली की अदृश्यता के कारण, थकान पर क़ाबू पाते अगले गंतव्य बाड़ी-बरेली के लिए निकल पड़े | वाहन में शांति है सिर्फ़ एंजिन की आवाज़ आ रही है क्यों कि सभी सो गए हैं, बस मैं सारथ्य बोध से बंधा, अपलक, निशा आगमन में भी अत्युष्णता-से अविचलित, नियंत्रित गति-से गंतव्य का संधान कर रहा हूँ |
जो अभी तक न हुआ वो होने लगा | मार्ग में गड्ढ़े नहीं हैं अपितु गड्ढ़ों से ही निर्मित मार्ग है | थका देने वाली लघु दूरी यात्रा का समापन जब बाड़ी-बरेली की होटल राजश्री में हुआ तब चैन मिला | प्रातः की लालिमा के साथ छींद वाले श्री हनुमान जी के दर्शन कर और भंडारे का प्रशाद पा हम बड़े बरमान की पावन भूमि आ पहुँचे | बच्चों की इच्छा के कारण आज रात्री विश्राम हमनें प्रतिमा के ननिहाल, बेलखेड़ा में किया जबकी अगला पड़ाव उसका मायका, जबलपुर रहा | आप समझ रहे होंगे, वह कुछ अधिक ही प्रसन्न है ! मायका फिर मायके में दो की घात...! यहाँ के तट दर्शन के समय मेरी सासू जी भी हमारे साथ रहीं | हमनें आगे बढ़ने के लिए मंडला-से जाना तय किया वैसे लोग शहडोल-से भी जाते हैं | मंडला में हम मुख्य मार्ग स्थित होटल एम के में रुके, इत्तेफ़ाक़ से चुनावी कार्यों के चलते हमारी नेहा भाभी भी बेटे अपूर्व के साथ वहाँ ठहरीं थीं । घर-से दूर घर वालों का मिलना उर्जादायी रहा | यहाँ रपटा घाट में संध्या दीप-सर्जन करते समय प्रतिमा का पाँव रपट गया और वह जल में जा गिरी, उसकी दाहिनी भुजा में उठी तीव्र पीड़ा आगे चार-पाँच माह तक रपटा घाट के नाम की सार्थकता याद दलाती रही | मंडला में साहित्यिक मित्र श्रीमती प्रतिमा संत बाजपेई से विमर्श हुआ |
मंडला-से हमारा अगला पड़ाव था यात्रा प्रारंभ स्थली अमरकंटक | प्रतिमा की लिखी पंक्तियाँ कितनी प्रासंगिक हैं यहाँ, “अंत तुम बने सदा प्रारंभ ” निवास, शाहपुरा होते हुए जोगी टिकरिया आ पंहुचे | यहाँ जिस छोटी सी होटल में हमनें चाय पी उसके संचालक का परिक्रमा वासियों के लिए आत्मीय भाव कभी न भूलनें योग्य है | परिक्रम वासियों के लिए इधर अलग पथ निर्मित है पर इसकी स्थिति इस समय अत्यंत ख़राब है यहाँ से राजेन्द्र ग्राम पहुँचते-पहुँचते रात हो गई | हर पग नया, हर डगर नवीन देखते-चलते हम जब अमरकंटक के प्रवेश द्वार पर पहुँचे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हमनें माँ नर्मदा की परिक्रमा कर ली है | मेंन रोड में पहुँचने के बाद संजय जी मिलने आए और कल परिक्रमा समाप्ति पूजा और भंडारे के लिए आवश्यक सामग्री खरीदवाई | जैसे ही हम वापस महिन्द्रम पहुँचे, द्विवेदी जी नें सस्नेह मुझे गले लगते हुए स्वागत किया और हिदायत दी कि अभी परिक्रमा में हो जल्दबाज़ी में नर्मदा पार न कर लेना ! असल में अमरकंटक में तनिक सी लापरवाही परिक्रमा खंडन कर सकती है |
अमरकंटक की भोर और साँझ दोनों ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ के स्पर्श से अनुपम छटा बिखेरती है | बीस अप्रैल को हमने पैदल अमरकंटक-से माई की बगिया अंतिम परिक्रमा यात्रा करी |
हनुमान धारा में स्थित एक पगडंडी के माध्यम से पुनः उत्तर तट-से दक्षिण तट का तट परिवर्तन किया और माई की बगिया में पूजा करी | उदगम मंदिर के श्री राम मंदिर में पूजा पश्चात उदगम कुंड-से जल परिवर्तन किया, कन्या भोजन कराया और प्रसाद वितरण कर यथा योग्य दान-पुण्य किया | मन में बहुत शांति थी, मेरी माँ सशरीर अवश्य साथ नहीं थीं पर उनकी उपस्थिति सदैव रही | यह मेरा विश्वास है | नौ माह बाद, छब्बीस जनवरी दो हज़ार बीस में हम सभी पुनः ॐकारेश्वर गए और तपस्या जल, श्री ॐकरेश्वर महादेव को चढ़ाया तथा वहाँ जलपरिवर्तन किया | इस प्रकार आज हमारी ‘नर्मदा प्रदिक्षणा का विधान’ पूर्ण हुआ । श्री राम वल्लभ आचार्य की पंक्तियाँ हैं- “धन्य-धन्य वे जीव जन्तु, जो रहते इसके जल में । धन्य मनुज वे जिनका मन,रमता इसकी कल-कल में।" इस पवित्र जल-धारा में मन रमाए प्रातः हम लौट चले अपने गृह मंदिर को जो प्रतीक्षारत था मानों माँ अपनें बच्चों की बाट जोह रही हो | चलिए साथ बोलें, ‘नर्मदे हर...नर्मदे हर...!!
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अखिलेश सिंह श्रीवास्तव (कथेतर लेखक)
अणुडाक : akhileshvwo@gmail.com
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