डॉ. शारदा मेहता शिवरात्रि - शिवजी से एकात्मकता का पर्व शिव की आराधना का पर्व है- महाशिवरात्रि इस दिन बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक अपने सामर्थ...
डॉ. शारदा मेहता
शिवरात्रि - शिवजी से एकात्मकता का पर्व
शिव की आराधना का पर्व है- महाशिवरात्रि इस दिन बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक अपने सामर्थ्यानुसार भगवान शिव का पूजन अर्चन करते हैं। इस संसार के सर्जनहार भगवान शिव ही हैं। शिव जी ने अमृत मंथन के समय देव-दानव युद्ध में हलाहल को अपने कंठ में धारण कर मानवता की रक्षा की थी। दैवीय शक्तियों की रक्षा को जीवित रखा और आसुरी शक्तियों को न्यून किया।
शिव के विभिन्न स्वरुपों के दर्शन भक्तजनों को प्राप्त होते हैं यथा- जहाँ एक ओर शिव भोले भंडारी के रूप में पूजे जाते हैं, वहीं दूसरी ओर वे तांडव नृत्य कर सम्पूर्ण जगत में हाहाकार मचा देते हैं। शिवजी का क्रोध भी विकराल है। उनके ससुराल में उनके ससुर दक्ष प्रजापति यज्ञ का आयोजन करते हैं। भगवान शंकर तथा सती को निमंत्रित नहीं किया जाता है। सती शंकरजी से विशेष आग्रह कर यज्ञ स्थल पर उपस्थित होती है। यज्ञ में सती को शिवजी का भाग नहीं दिखाई देता है। पारिवारिक सदस्य भी सती से सम्मानजनक रूप से चर्चा नहीं करते हैं। सती योगाग्रि में प्रवेश करती है। चारों ओर हाहाकार मच जाता है। शिवजी के गण यज्ञ में विध्वंस करते हैं और दक्ष प्रजापति का शिरोच्छेदन कर देते हैं। यहाँ हम शिवजी के क्रोध की पराकाष्ठा का दर्शन करते हैं।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व भी हैं। एक आध्यात्मिक साधक के लिए महाशिवरात्रि अनेक संभावनाओं से युक्त एक पर्व है। विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि आकाश गंगा, तारामंडल आदि नाभिकीय पिंड एक असीमित ऊर्जा के स्रोत हैं। एक साधक को एकान्त साधना करने के उपरान्त असीम ऊर्जा की उपलब्धि होती है जिसकी अनुभूति एक सच्चा साधक ही प्राप्त कर सकता है। शिवजी ने कैलास पर्वत पर जाकर एकान्तवास किया। वहाँ वे तपस्या में लीन हो गए। वहाँ रहते हुए वे पर्वत के समान स्थिर हो गए। उन्होंने पर्वत के साथ एकात्म स्थापित कर लिया और युगों-युगों तक स्थिर रहे। इसी दिन की स्मृति में महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। एक योगी इस असीम विस्तार को जानने के लिए योग का आश्रय लेता है। वह उसमें एकात्म हो जाता है। महाशिवरात्रि पर वह इस परम शिव तत्व को जानने की उत्कंठा रखता है। वह लालायित है, बेचैन है। ग्रहों की स्थिति इस रात विशेष रहती है। मानव शरीर में स्थित ऊर्जा उर्ध्वगामी होती है। यह आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यावश्यक है। अपनी बुराइयों को इस अँधेरी रात्रि में हम दूर करें और अपनी आत्मा का नई ऊर्जा के साथ विकास करें।
फरवरी-मार्च माह (फाल्गुन) में आने वाली महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन एक साधक ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करने के लिए एकान्त साधना करता है और अपनी सूक्ष्म दृष्टि से शिवतत्व को प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है। वह इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को थामने वाली अदृश्य शक्ति को खोजने में तत्पर है। आध्यात्मिक रूप से प्रकृति और पुरुष में एकात्म स्थापित करने की रात्रि ही महाशिवरात्रि है।
महाशिवरात्रि पर्व को मनाने के कई कारण हमारे धार्मिक और पौराणिक ग्रंथ बतलाते हैं। मान्यता है कि इस दिन सृष्टि का प्रारंभ शिवलिंग के विशालकाय स्वरूप के साथ हुआ था। यह भी कथन है कि महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। यह पर्व भारत में ही नहीं वरन् विश्व के अनेक देशों में मनाया जाता है, जहाँ भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। एक मान्यता यह भी है कि विष्णु भगवान तथा ब्रह्माजी ने शिवलिंग का पूजन किया था, उसकी स्मृति में महाशिवरात्रि का यह पर्व जन साधारण में भी बड़ी श्रद्धापूर्वक मनाया जाने लगा।
ईशान संहिता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन शिव का निराकार से साकार रूप में अवतरण हुआ था। महाशिवरात्रि व्रत काम, क्रोध, मत्सर, मद और लोभ पर विजय प्राप्त करने का त्यौहार है। इससे सभी विकारों से मुक्ति प्राप्त होती है। सुख, शान्ति तथा वैभव की प्राप्ति का साधन यह पर्व है। शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग के समीप ज्योति प्रज्ज्वलित करने के कारण ही कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है। आशुतोष का अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले। भगवान शिव अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी मनोकामना पूर्ण कर देते हैं। महिलाएँ सुखी जीवन के लिए, अविवाहित युवतियाँ सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए, युवक मनोवांछित आजीविका प्राप्त कर एक सुखी गृहस्थ का जीवन यापन करने के लिए तथा प्रौढ़ एवं वृद्ध सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवार्चन करते हैं।
शिव पूजन में बिल्व पत्र, धतूरा तथा मंदार पुष्प का विशेष महत्व है। बिल्व वृक्ष को महादेव का स्वरूप माना गया है। बेर फल तथा ऋतु फल भी शिव पूजन में अर्पित किए जाते हैं। शिवरात्रि के दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं। शिव आराधना के उपरान्त फलाहार किया जाता है। दिनभर फलाहारी व्यंजन बना कर खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उपवास करने से हमारा पाचन तंत्र सुधरता है। शरीर की अनावश्यक चर्बी नष्ट होती है। हमारा मेटाबॉलिज़म सिस्टम सुधरता है। दूध, दही, फल तथा हल्का फलाहार ही उचित खाद्य पदार्थ है। अत्यधिक वृद्ध लोगों को उपवास से बचना चाहिए। भक्तजन रात्रि-जागरण करते हैं और शिव भजनामृत का आनंद लेते हैं। भगवान शिव का जल, दूध, दही, शहद तथा पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। जलाभिषेक से मानसिक शांति, दुग्धाभिषेक से परिवार का उत्तम स्वास्थ्य, शहद से वाणी में माधुर्य, धतूरा तथा हल्दी वाले दूध से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। ऐसे भोले भंडारी, आशुतोष भगवान शिव अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थना को स्वीकार करें-
कर्पूरगौरं करुणावतारं,
संसारसारं भुजगेन्द्रहारं।
सदा वसतं हृदयारविन्दे,
भवं भवानीं सहितं नमामि।।
तथा
नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय,
भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नम: शिवाय।
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डॉ. शारदा मेहता
सीनि. एमआईजी-१०३, व्यास नगर,
ऋषिनगर विस्तार, उज्जैन (म.प्र.)
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