विश्व पर्यावरण दिवस 5जून विश्व पर्यावरण दिवस विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। संयुक्त र...
विश्व पर्यावरण दिवस
5जून विश्व पर्यावरण दिवस
विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता जागृति लाने हेतु वर्ष 1972में पहल की ,और 5 जून 1974 को विश्व में पहला पर्यावरण दिवस मनाया गया ।
पर्यावरण दो शब्दों के योग से बना है।
परि+आवरण
परि का अर्थ चारों ओर के लिए होता है।
आवरण का अर्थ घेरा होता है।
इस प्रकार से पर्यावरण का अर्थ चारों ओर उपस्थित वातावरण से है।
पर्यावरण की परिभाषा:-
पर्यावरण से आशय हमारे चारों ओर के वातावरण और उसमें निहित,व उसमें रहने वाले प्राणियों से है।
हम अपने चारों ओर उपस्थित वायु, भूमि,जल, पशु,पक्षियों, पेड़ पौधे आदि अनेक तरह के फसलों सहित जीव और जंतुओं से जुड़े है।
यही जुड़ाव पर्यावरण है।
पृथ्वी हमारा घर है, और पर्यावरण इसकी छत है। दोनों को सुरक्षित रखना हमारा कर्त्तव्य है।
हरियाली एक प्राकृतिक दृश्य है।
पर्यावरण की आत्मा है।
हमें इसे संतुलित, सुरक्षित और प्रदूषण से मुक्त रखने हेतु प्रतिदिन पर्यावरण दिवस मनाया जाने की आवश्यकता है।
पर्यावरण से तात्पर्य केवल आस -पास के भौतिक पर्यावरण से नहीं अपितु सामाजिक एवं व्यवहारिक वातावरण भी सम्मिलित है।
पर्यावरण के मुख्य घटकों के नाम:-
भौतिक पर्यावरण,
जैव पर्यावरण,
सांस्कृतिक पर्यावरण।
""""भौतिक पर्यावरण"'''' की रक्षार्थ हमें हमारे चारों ओर उपस्थित वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल आदि का बचाव एवं संरक्षण वायु, वन,जल,एवं भूमि को प्रदूषण मुक्त वातावरण का निर्माण कर करना होगा।
""""जैव पर्यावरण""'' विश्व में उपस्थित सभी जीवित प्राणियों का समूह है। जिसमें पौधों एवं जंतुओं सहित विभिन्न प्रकार के प्राणियों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पर्यावरण में मानवीय एवं प्राकृतिक परिघटनाओं के सम्मिश्रण को संतुलित और अक्षुण्ण बनाने की आवश्यकता है।
"""'सांस्कृतिक पर्यावरण"''' मानव के द्वारा निर्धारित की गई विभिन्न संरचनाओं का सम्मिश्रित, सम्मिश्रण है। समाज, शासन,नैतिकताओं, मान्यताओं, धर्म और मानवीय सम्पूर्ण आपसी व्यवहार क्रियान्वयन क्रियाकलापों को परस्पर सहयोग पूर्वक निर्वहन कर वातावरण में सामंजस्य बैठाकर प्रलयकाल आगमन को रोककर प्रदूषण मुक्ति विधियों को अपनाने से पर्यावरण को सुरक्षित रखने के रास्ता है।जैव मंडल की सभी प्रजातियों जो कि सूक्ष्म जीवों, बैक्टीरिया आदि से लेकर बडे़ स्तनधारियों का समूह है सभी में परस्पर प्राकृतिक तालमेल बैठाने से स्वतः ही पर्यावरण संतुलन निर्माण होता रहेगा।
"""""जल""""':-जल पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक मात्र कार्बनिक पदार्थ है।
जल का पृथ्वी पर सर्वाधिक विस्तार पाया जाता है।
सबसे पहले जीव की उत्पत्ति जल में ही हुई थी।
पृथ्वी पर फैले विशाल जल के स्त्रोंतों के समूहों का नाम ही जलमंडल है।
जल स्थलमंडल तथा वायुमंडल में भिन्न- भिन्न रुपों में पाया जाता है।
जल के विभिन्न रुपों में रुपांतरण तथा पून:जल के रूप में परिवर्तन का होना जलचक्र कहलाता है।
पृथ्वी पर सर्वाधिक विस्तार जलमंडल का है, तथापि जल का वितरण और उपलब्धता एक समान नहीं है।
जल का97.3%खारा पानी पानी की आपूर्ति को कम करता है।
मीठे पानी की कमी ही जल संरक्षण का जव्लंत मुद्दा है।
जल के मुख्य स्त्रोत:-
खारे पानी का प्रमुख स्त्रोत:-
महासागर, समुद्री जल धारा,झीलों और तरंगों में है।
मीठे जल स्त्रोतों का समूह:-नदियों ,हिमनदों एवं वर्षा का जल , झीलों एवं तालाबों ,बर्फ के रूप में दोनों ध्रुवों पर एवं बर्फ से ढके पहाड़ों में संचित है।
जल संरक्षण हेतु वर्तमान में भारत सरकार के द्वारा अनेक प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं।
जल संरक्षण के लिए स्थानीय निकाय, राज्कीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक प्रयास किए जा रहे हैं।
मानव शरीर के रक्त में लगभग 80% भाग जल है। जल अमूल्य है।
इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की संकल्पना एवं संभावना असंभव है।
जल के कार्य:-
संसाधन, पारिस्थितिकी और आवास के रूप में कार्य करता है।
समस्त जलीय तंत्रों में आक्सीजन, कार्बनडाई आक्साइड तथा अन्य गैसें जल में आंशिक तौर पर घुलनशील रहती है।
साधारण गहरी झीलों में व भारी मात्रा में कार्बनिकपदार्थों वाले जलाशयों में पादपप्लावकों तथा जलीय जीवों की वृद्धि के लिए आक्सीजन सीमाकारी कारकों का काम करती है।
"""''जंगल"''':-वृक्षों के सघन समूहों को जंगल कहा जाता है। अनेक प्रकार के कारकों जैसे:-तापमान, वर्षा, मृदा, वायु, जल और प्राकृतिक उपहार स्वरूप प्रकाश की उपस्थिति में जंगल का निर्माण होता है। पर्यावरण को सुरक्षित एवं संतुलित बनाने के लिए हमें वृक्षों को कटने से बचाने और सदैव वृक्षारोपण कर प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखने में योगदान करना होगा।
वायु:-वायु अनेक गैसों का मिश्रण है। वायु साधारणतया पदार्थों की गैसीय अवस्थाओं का नाम है। वायु का विशाल समूह पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल के रूप में फैला है। वायुमंडल का अस्तित्व गुरुत्वाकर्षण बल के कारण होता है। पृथ्वी की मौसमी दशा और जलवायु को वायुमंडल व्यापक स्तर पर प्रभावित करता है। अतः हमें पर्यावरण को संतुलित करने के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि के रोकने के उपाय ढूंढने के साथ साथ शुद्ध वायु के लिए घनघोर प्रदूषण रोकने एवं जल,जंगल की सुरक्षा की ओर कदम उठाने की आवश्यकता है।
वायुमंडलीय गैस, जलवाष्प एवं धूलकणों का मिश्रण वायुमंडल में उपस्थित समस्त गैसें पौधों के प्रकाश संश्लेषण, ग्रीन हाउस प्रभाव तथा जीव जगत व जन्तुओं के जीवित रहने का आवश्यक स्त्रोत है। इसे सुरक्षित रखने का दायित्व सम्पूर्ण मानव जाति का है।
भूमि तथा मृदा:-भूमि तथा मृदा प्रमुख संसाधन है। मृदाही मानव एवं जीवों का निवास स्थान है। मनुष्य के सारे क्रियान्वित क्रियाकलापों का स्थान मृदा है। भूमि संसाधनों का संरक्षण ही पर्यावरण संरक्षण है।।
पर्यावरण और जीवन का अपूर्व एवं अटूट संबंध होता है।
फिर भी हमें पर्यावरण के प्रति संरक्षण और संवर्धन विकास की संकल्प की आवश्यकता है ये चिंता का विषय है।
पर्यावरण का मानवीय जीवन में विशेष महत्व है।
सभी यह जानते हैं।
प्रकृति में पर्यावरण की ही वजह से यह मानव जीवन का आधार एवं अस्तित्व निहित है।
विश्व पर्यावरण दिवस एक अभियान के तहत है।
हर वर्ष पांच जून को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकृति को समर्पित दुनियाभर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के दौरान सन् 1972 में पृथ्वी ग्रह पर्यावरण दिवस या विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने की घोषणा की गई।
आधिकारिक तौर पर विश्व पर्यावरण दिवस पहली बार 5 जून 1974को मनाया गया। तब इसकी थीम थी """ओनली सेभ अर्थ"""। प्रदूषण से वातावरण को मुक्त रखना पर्यावरण दिवस का प्रथम और प्रमुख उद्देश्य है। हम सभी देशवासियों, धरावासियों का पर्यावरण के प्रति ग्रह का वासी होने के नाते जिम्मेदारी है कि हम सभी ईश्वर के द्वारा प्रदत्त धरती को स्वच्छ, सुंदर और प्रदूषण मुक्त बनाने में सहयोग करें।
हमें एक बेहतर पर्यावरण के निर्माण के लिए स्वयं पहल करने का संकल्प लेना होगा।
पर्यावरण प्रदूषण:-पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार:-।
★जल प्रदूषण,
★वायु प्रदूषण,
★थल प्रदूषण,
★ध्वनि प्रदूषण,।
★पर्यावरण प्रदूषण के कारण है ★कारखानों से निकलने वाला धुआं।
★घर एवं उघोग की गंदगी।★तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजना,
★नदी तालाब में कुड़ाकरकट और गंदा पानी डालना।
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के उपाय:-
★जनसंख्या नियंत्रण। ★कारखाना का शहरों से दूर रहना।
★वृक्षारोपण अभियान चला कर अधिक वृक्षारोपण कार्य करना।
★घर एवं आस -पास साफ सुथरा और स्वच्छ रखना।★सरकार के नीतिगत योजनाओं के पहले पर्यावरण को सुरक्षित रखने एवं प्रदुषण मुक्त बनाने के लिए
स्वयं अभियान की शुरुआत करनी होगी।
सर्वप्रथम आस- पास की जगह को साफ -सुथरा और प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रयास प्रारंभ करना होगा।
यदि हर इंसान अपने आस- पास की जगह को साफ,
स्वच्छ बनाने में लग जाएंगे तो निश्चित ही दुनिया गन्दगी से मुक्त हो जायेगी।
हम सभी पृथ्वी वासियों के माध्यम से एक बेहतर प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का निर्माण स्वत:हो जायेगा।
मानव और पर्यावरण का अटूट संबंध है फिर भी हमें अलग से यह दिवस मनाकर पर्यावरण के , संवर्धन और विकास का संकल्प लेने की आवश्यकता है।
यह बात चिंताजनक ही नहीं, शर्मनाक भी है।
विश्व में हो रहे अनेक प्रकार के पर्यावरण संकट के कारण
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया।
इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य तय किया गया। विश्व के सभी देशों का ध्यान पर्यावरण जागरूकता की ओर आकृष्ट किया गया।
इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था।
विश्व समुदाय के लोगों से अपील की गई पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर संतुलन बनाए रखने में सहयोग करने की बात कही गई थी।
उस समय उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 'पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव' विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक कदम था। तभी से हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम :-
19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। उसके अनुसार जल, वायु, भूमि - इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि के अंतर्गत आते हैं।
जीव जंतुओं के संरक्षण की जिम्मेदारी , जवाबदेही और दया भाव रखने के संकल्प से सभी को अवगत कराया गया।
पर्यावरण दिवस का महत्व:-पर्यावरण के प्रति सभी को जागरूक बनाने के लिए प्रति वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। विश्व में सकारात्मक पर्यावरणीय कार्रवाई को सुचारू रूप से निर्धारित एवं लागू करने के लिए विश्र्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
विश्व में व्याप्त पर्यावरण के मुद्दों को सुलझाने के लिए पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। मानव जीवन में स्वास्थ्य एवं हरित पर्यावरण के महत्त्व को वैश्र्विक जागरूकता के लिए जन -जन तक पहुंचाने के लिए दिवस मनाया जाता है। यह संकल्प जन जागृत का है। सिर्फ सरकार का या निजी संगठनों की नहीं अपितु पूरे विश्व समुदाय की पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी है।
यह दिवस 5से 16जुन के बीच विशेष रूप से मनाया जाता है। पूरे विश्व समुदाय के लिए पर्यावरण का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है यह सोचनीय तथ्य है पर्यावरण का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। पर्यावरण सभी दिवसों में अत्यंत महत्वपूर्ण है ,क्योंकि यदि पर्यावरण सुरक्षित नहीं रहेगा ।तो हम सुरक्षित नहीं रहेंगे ।
भविष्य का आधार पर्यावरण पर टिका हुआ है।
यदि हमारा पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे। मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा। बाकी दिवसों को हम तभी मना सकते हैं जब पृथ्वी पर जीवन सुरक्षित रूप से जियेंगे। इस लिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। प्रदूषण नियंत्रण कर ,पर्यावरण को स्वच्छ और निर्मल बनाने का फैसला लेना होगा। विश्व पर्यावरण दिवस का प्रयोजन पर्यावरण को बचाने का बेहतरीन कदम है।
एक कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में।
संकल्प अटल बने पर्यावरण प्रदूषण मुक्त,स्वच्छ और चमकदार निर्मल।
"""""पर्यावरण संतुलन क्यों आवश्यक:-।""""""
"""क्योंकि"" धरती मां आज ह्रदय से """"रो""''रहीं है।
कारण है विलुप्त हो रहे जीव- जंतुओं की प्रजाति।
मनुष्यों के वजह से प्रदूषण के कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के कगार पर है।
20,000से अधिक जीव जंतुओं की प्रजाति विलुप्त हो रही है।
मोबाइल टावरों के रेडिएशन,
इंसेक्टिसाइड,
पेस्टिसाइड के अंधानुकरण और अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण प्रदूषण और ऐसी अन्य जीवों की संख्या कम हो जाती है।
पूरे विश्व में हर साल करीब 55लाख लोगों की मृत्यु दुषित हवा के कारण हो जाता है।
यह आंकड़ा कुल मृत्यु का 10%है।
बेहिसाब पानी बर्बादी के कारण भू-जल स्तर गिर रहा है।
विश्व जल स्त्रोतों के कमी के चलते जल संकट से जूझ रहा है।
लगातार बढते हुए प्रदूषण के कारण समुद्र भी प्रदूषित होने के कगार पर है।
कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस की अधिकता के कारण समुद्र का जल भी एसिडिक होता जा रहा है।
किसानों के द्वारा बेहिसाब फर्टिलाइजर के उपयोग से खेतों को जहरीला बनाया जा रहा है। उगने वाले फूल ,फल और सब्जियों की पौष्टिकता समाप्त होती जा रही है।
पर्यावरण एक जरूरी सवाल ही नहीं बल्कि ज्वलंत मुद्दों की बहसों का स्वरूप है। आज महासागरीय जीवन में नगरों में पर्यावरण के संरक्षण के प्रति खास उत्सुकता नहीं पाई जाती है।पर्यावरण का संबंध बहुत ही घनिष्ठता के साथ पूरे समाज में संरक्षित पर्यावरण अस्तित्व के स्वरूप का सवाल बना हुआ है। तकनीकी द्वारा मानव आर्थिक उद्देश्यों और जीवन में विलासिता के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रकृति के साथ व्यापक छेड़छाड़ के क्रियान्वयन क्रियाकलापों ने प्राकृतिक पर्यावरण का संतुलन नष्ट कर दिया है। समस्त प्राकृतिक व्यवस्था के असित्त्वों परही संकट उत्पन्न होता हुआ नजर आ रहा है।इस प्रकार की सारी समस्याओं को पर्यावरणीय अवनयन का नाम दिया गया है।
जलवायु परिवर्तन जीवन के शैली के विषय में पुनर्विचार के लिए प्रेरित करती नजर आ रही है।
चर्चा का विषय पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन है। आज समस्त विश्व में ज्वलंत प्रश्न यह है कि मनुष्य वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से अपने द्वारा किए गए परिवर्तनों से नुकसान को कितना कम करने में सक्षम है।सभी प्रकार के मानवाधिकार मानवीय हितों के टकराव में सम्पूर्ण मानवजाति की मनुष्यता अपने पर्यावरण के प्रति कितनी जागरूक है:-? """"''यही ज्वलंत मुद्दों का प्रश्न है।""'''
बचाव केउपाय:-पृथवी को सुरक्षित रखने के लिए हमें अपने आदतों में अपेक्षित सुधार करना होगा।
महात्मा गांधी जी ने कहा था कि:-पृथवी सभी मनुष्यों की जरूरत पूरी करने के लिए प्रर्याप्त संसाधन प्रदान करती है।, लेकिन लालच पूरी करने के लिए नहीं।
जरूरत से ज्यादा किसी भी वस्तु का उपयोग नहीं करना चाहिए। चाहे वो जल, बिजली, लकड़ी, ईंधन, मोबाइल, गाड़ी,या विश्व में उपस्थित कोई भी वस्तु चाहे राकेट या हवाईजहाज ही क्यों ना हो। हम सभी बहुत कुछ कर पर्यावरण संतुलन बनाए रख सकते हैं:-सर्वप्रथम जल संसाधन का संरक्षण। पानी जीवन दायिनी के रूप में है।
जल का एक -एक बूंद बचाने का संकल्प लें कर। ★प्लास्टिक का बहिष्कार करने का फैसला लेकर।
प्लास्टिक बैंग को हमेशा के लिए """ना""' कहकर। प्लास्टिक का रीसायकल करके।
क्योंकि यदि प्लास्टिक को जलाते हैं ,तो डायोक्सिन एवं फ्यूरौन रसायनों का शरीर में प्रवेश हो सकता है ।
जो स्वास्थ्य की दृष्टि से घातक है।
★वृक्षारोपण के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के उचित कदम होगा।
★यदि घर में बच्चों का जन्म दिवस है तों उनके द्वारा उस दिन एक पेड़ लगाने का पवित्र संकल्प लेकर पृथ्वी संरक्षण का उचित कदम होगा।
बेटी एवं बेटे के विवाह के शुभ अवसर पर पेड़ लगाने के द्वारा।
बिहार के भागलपुर जिले में बेटी के जन्म के समय खुशी से झूम कर वहां के लोग एक बेटी के जन्म पर 10वृक्ष लगाते हैं। बेटी और वृक्ष दोनों को साथ -साथ सींचते एवं पालते हैं।
★बिजली बचाकर उपयोगी क़दम उठा सकते हैं।
क्योंकि बिजली के इस्तेमाल से वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस और सल्फर डाई ऑक्साइड गैस अधिकता से फ़ैल जाती है। कम बिजली के उपयोग से उत्पादन में कमी होगी। वातावरण स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त रहेगा।
★हैंडपंप का उपयोग कर के अन्य जीवों के प्रति दया एवं करूणा का भाव रख कर। अपने घरों के छतों पर पक्षियों के लिए पीने का पानी और दाना रखकर। यदि संभव हो तो पक्षियों के लिए बर्ड नेस्ट कृत्रिम खरीदकर। पुरानी चीजों के भी बर्ड नेस्ट बनाया जा सकता है। स्टीट डांग और गाय के लिए घर के सामने पानी की व्यवस्था कर के।
★कूड़ा-करकट एक स्थान पर रख कर।
खाना बचाकर:-अन्न की बर्बादी रोककर प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव को रोककर पृथ्वी का संरक्षण करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं।
★पैदल चलने के कारण वाहन प्रदूषण को रोकने का प्रयास किया जा सकता है। पर्यावरण का संरक्षण हम खत्म हो रहें जंगलों को बचाने के प्रयास में कर सकते हैं। जंगलों में पर्यावरण की आत्मा बसती है। जंगल हमारे ज़मीन के फेफड़ों की तरह है। हवा को शुद्ध करने के साथ लोगों को नयी ऊर्जा देते हैं। वन संरक्षक बन पर्यावरण संरक्षण बना जा सकता है। जंगल हमारे मित्र हैं। हम सभी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं। अत: भगवान को प्रकृति में, जानवरों में, पक्षियों में,जल में, जंगल में और पर्यावरण में खोजी के रूप में खोज कर, सम्मान देकर पर्यावरण संरक्षण की ओर आकृष्ट होकर कदम बढ़ा सकते हैं। हमें पर्यावरण को बचाने की मुहिम की खुद से ही शुरू आत करनी चाहिए ।
प्राकृतिक संसाधनों, संपदाओं के संरक्षण बन प्राकृतिक आपदाओं के निवारक के रूप में मानव भूमिका निभाकर:-
प्राकृतिक घटनाएं:-क्यों, कहाँ और कैसे मानवीय संवेदनाओं और प्राकृतिक क्रियान्वयन का उद्भव है।
ये क्रियाकलाप परस्पर मानव जीवन एवं पर्यावरण का अनत:संबंध स्थापित करता है।
कालांतर से मानव और पर्यावरण का अन्नोयाश्रय संबंध रहा है।
पर्यावरण की सुरक्षा व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाये रखने में हम सभी धरावासी पर्यावरण संरक्षक बन आपदाओं के निवारक की भूमिका बखुबी निभा सकते हैं।
जल संरक्षण एवं प्रदूषण उन्मूलन के द्वारा प्राकृतिक वैभव युगल बंदी कायम रखने में योगदान दे सकते हैं।
मानवीय वैभव अनुपम युगल बंदी प्राकृतिक विराट सौन्दर्य का प्रतीक है।
मानव सदैव प्रकृति का अराधक रहा है।
कालांतर में ही प्रकृति के स्नेह से आप्लावित होकर सुर से सुर मिलाकर मधुर मानव जीवन की शुरुआत की।। परंतु आश्चर्य यह है कि आज मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं, गुणवत्ता युक्त गुणात्मक जीवन की लालसा, क्षणिक सुखद अनुभूति के लिए अमूल्य धरोहर प्राकृतिक संसाधनों, संपदाओं का दोहन कर प्राकृतिक वातावरण को अव्यवस्थित रूप दे रहा है। मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों, संपदाओं का संरक्षक बन संरक्षण करने के बजाए निजी स्वार्थों की पूर्ति करने हेतु दोहन करने में लगा है।
घोर लिप्सा के कारण मनुष्य प्राकृतिक पांचों तत्वों सहित पारिस्थितिकी तंत्र के साथ छेड़खानी करने में लगा है।
परिणाम स्पष्ट है।:-
प्रकृति न तो पाषाणी है और ना ही मूकदर्शणि है। वस्तुतः प्रकृति की त्योरियां प्राकृतिक दोहन का बदला लेने पर उतारू है।
यूं लगता है कि मानव व अनुपम प्रकृति विराट के बीच युद्ध का मोर्चा खुलचुका है।
अतः प्रकृति में संतुलन को स्थापित रखने हेतु, हमें प्राकृतिक संसाधनों, संपदाओं और अनुभूतियों का असीमित एवं अप्राकृतिक दोहन को रोकने में एक जुट होकर मिलकर सहयोग देने का संकल्प लेना होगा।
विश्व के सभी राष्टों को जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों को एक साथ मिलकर आपसी मतभेदों को मिटाकर ईमानदारी पूर्वक दृढ़ संकल्पित संकल्प लेकर विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर पर्यावरण संरक्षण की ओर कदम बढाना होगा। विश्व में व्याप्त अरण्य रोदन के जगह अरण्य संरक्षण कर वृक्षारोपण करना होगा।
वन विनाश, अंधाधुंध प्रदूषण, संसाधनों का अनर्गल दोहन, नाभिकीय अस्त्रों का अंधाधुंध प्रयोग, हवा, पानी और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का दूरुपयोग रोककर ,संकल्पित होकर पर्यावरण संरक्षण आंदोलन को सफल बनाना होगा।
जल संरक्षण हेतु कड़े नियम एवं कानून का सहारा लेना होगा। अनावश्यक जल का दुरूपयोग करनेवालोंके लिए सजा का प्रावधान जल संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत विद्यमान है। जल का दुरुपयोग करने दोषियों को सजा देने के साथ भयंकर विश्वव्यापी जल संकट को कम किया जा सकता है।
जल संरक्षण,प्रदूषण उन्मूलन विश्व बंधुत्व बंधन अद्भुत।
वन है तो हम हैं, पर्यावरण अद्भुत प्रकृति विराट अनुपम है।
प्रदूषण मुक्ति के लिए प्लास्टिक के सभी उत्पाद पर रोक के साथ-साथ उपयोग करने वालों के लिए सजा का
प्रावधान रखा जाए ताकि भविष्य में पर्यावरण संकट से बचा जा सके।
आत्म रक्षा हेतु पृथ्वी की रक्षा करनी होगी।
भावी पीढ़ी को संपूर्ण मानव जाति की ओर से अनुपम पर्यावरण घरोहर भेट स्वरूप होगी।
हर-भरा हो जीवन सब का।
खुशहाली की बहे बयार।
पर्यावरण संरक्षण सब का हक सब का अधिकार। प्रतिदिन विश्व में पर्यावरण दिवस मनायेंगे। जल संरक्षण अधिनियम
अपनायेंगे । एक पेड़ लगायेंगे।
जीव जंतुओं की सुरक्षा कर, प्रदूषण मुक्त वातावरण में विश्व पर्यावरण दिवस मनायेंगे।
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नाम:-कुमारी पिंकी
पता:-कुमारी पिंकी,
करजापट्टी,दरभंगा, बिहार।
स्वरचित एवं मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित
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