व्यंग्य अपने हमाम में सब गरीब हैं प्रभात गोस्वामी इस अजब-गजब दुनिया में जिस प्रकार किस्म –किस्म के जीव –जन्तु पाए जाते हैं. ठीक उसी प्रकार अ...
व्यंग्य
अपने हमाम में सब गरीब हैं
प्रभात गोस्वामी
इस अजब-गजब दुनिया में जिस प्रकार किस्म –किस्म के जीव –जन्तु पाए जाते हैं. ठीक उसी प्रकार अलग –अलग आदमी मिलते हैं. आदमी की जूण में सबसे ज्यादा प्रजाति के राय चंद होते हैं, जिनका सारा दिन लोगों को नई –नई राय(सलाह) देने में गुज़र जाता है. फिर टल्लू प्रसाद, हर कार्य को टालना इनकी फितरत होती है. राय चंद ज्यादा घातक नहीं होते पर टल्लू तो कांच से सपनों को ऐसे तोड़ते हैं कि आवाज भी नहीं आती और टूटे हुए सपने कांच के किरचों सरीखे जिस्म को चुभते रहते हैं . इन टल्लू प्रसादों को लेकर कोई परेशानी नहीं आती बल्कि ये तो परेशानी टालने के लिए रखे जाते हैं ।
टल्लू प्रसाद बेरोजगारी के आलम में भी रोजगारी का सुख भोगते हैं. बाजार में इनकी टीआरपी भी सदा सातवें असमान पर रहती है. इन्होंने मास्टर ट्रेनर के रूप में सरकारी कार्यालयों में भी ट्रेनिंग दी है. फाइल को बेवजह या खास वजह से रोक कर पीड़ित को टल्ला देने में इनका कोई जवाब नहीं. पीड़ित को टालते रहने की गजब की कला में पारंगत टल्लू प्रसाद इसीलिए अपने बॉस से लेकर मंत्री जी की आँखों के तारे होते हैं. अब हर क्षेत्र से आने वाले फकीर चंद अपनी-अपनी जूतियाँ घिस-घिस कर परेशान होते रहें, इनका काम उन्हें टालते हुए टल्ला देने का रहता है जिसे ये 360 डिग्री के साथ पूरी शिद्दत से करते हैं.
ऐसे ही, हमारे एक दोस्त फकीर चंद अपने एक काम के लिए विगत छह माह से गाँव से शहर आकर रोज ही कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं इतने चक्कर किसी मन्दिर में अपने प्रिय भगवान के इर्द-गिर्द लगाते तो शायद काम बन जाता ! अभी तो वो घनचक्कर ही हो रहे हैं . बाबूजी से लेकर बड़े बाबूजी , अधिकारी से लेकर बड़े अधिकारी के द्वार तक मिन्नतों के साथ गिडगिडा आए पर नतीजा वही ढाक के तीन पात. व्यवस्था के गलियारों में इतनी अव्यवस्था होती है, ये तो सोचा भी नहीं था ! इस बीच कुछ राय चन्दों की खुशामद कर उनसे भी राय ले ली कि आखिर इस भीषण सर्दी में ये बर्फ कब और कैसे पिघलेगी ? सभी कोशिशों के बाद भी काम हुआ ही नहीं. आजकल कुछ किये बिना ही जय-जयकार हो रही है शायद इसीलिए कोशिश करने वालों की हार हो रही है ?
अब गरीब दास अपनी अंतिम कोशिश के तहत मंत्री जी की जनसुनवाई में पहुँच गए. वहां पहले मुख्य द्वार पर सिक्यूरिटी गार्ड से अंदर जाने की अनुमति लेने के लिए मिन्नत की ,"साब जी, गरीब आदमी हूँ , बहुत दूर से आया हूँ मंत्रीजी से मिलना है" गार्ड बेरुखी से उसे टल्ला देते हुए बोला," अबे किसे बता रहा है, यहाँ सब गरीब ही हैं. मैं अमीर होता तो यहाँ गेट के बाहर थोड़े ही खड़ा होता ? अंदर मंत्रीजी अपने पड़ोस वाले खास महकमे के मंत्री जी से गरीब हैं. इनके पास मात्र "अभाव –अभियोग" जैसा छोटा-सा महकमा है. लोगों के अभाव-अभियोग सुन-सुन कर इनके कान जरूर पक गए हैं पर, इनकी "बगिया" में मीठे "आम" अभी- तक नहीं "पके" हैं. पीए की हालत भी यही है उसके जूनियर्स अच्छे –अच्छे महकमों के मंत्रियों के पास हैं. बंगले में तैनात सब लोग गरीब हैं. यह हाल ऊपर से नीचे तक सब का है तभी तो यहाँ गरीबों का मेला लगता है. जा घुस जा पर आगे मत बोलना गरीब हो . अपने-अपने हमाम में हम सब "ग़रीब" हैं , समझे ?" गरीब दास सिक्यूरिटी गार्ड से प्राप्त इस दिव्यज्ञान से अभिभूत हुआ. उसके पैर छू कर बंगले में अंदर प्रवेश किया ,उसे लगा मानों जन्नत मिल गई .
गरीबों की भीड़ के बीच गरीब दास ने अपने पास बचे हुए दस रुपए से दरख्वास्त लिखवाई. तीन घंटे के इंतजार के बाद मंत्रीजी से सामना हुआ. तेज़ सर्दी में बारिश की फुहारों से सवाल बरसने लगे. मंत्री जी ने ओले गिराने की मुद्रा में पूछा ," गाँव से इतनी दूर क्यों आ गए ? सरपंच, प्रधान ,जिला प्रमुख से मिले क्या ? उप खंड अधिकारी से ले कर कलेक्टर तक जन सुनवाई करते हैं , वहां क्यों नहीं गए ? सीधे मंत्री के पास चले आए क्या हम तुम्हारे लिए ही बैठे हैं ? गाँव की पंचायत फिर किस लिए है ? वगैरह –वगैरह, ग़रीब दास सवालों की बारिश में ठिठुर कर गिर पड़ता. उसने जैसे-तैसे अपने को सम्हाला. फिर लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया," हुकुम ,सब टल्ला मार रहे हैं. सब जगह घूम लिया चार –पांच जूतियाँ घिस चुकी हैं, पर सब टाल ही रहे हैं. आखिरी उम्मीद आप ही हैं हुकुम. " मंत्रीजी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "भाई इतनी घुमाई के बाद भी तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं हो पाया ? ऐसी कौनसी समस्या है ये ? अब तो देवता ही कुछ कर सकते हैं. एक चक्कर स्वर्ग के द्वार पर भी लगा आते ?" मंत्रीजी के श्रीमुख से इतना सुनते ही पीए ने गरीब दास को टल्ला दे कर पीछे धकेल दिया.फिर गार्ड ने उसे बाहर का रास्ता दिखाया .
निराशा के भंवर में चकरघिन्नी होता गरीब दास मंत्री जी के बंगले से बाहर आ गया . थक कर चूर हुआ बदन, खाली पेट, टंगा खाते हुए वह फुटपाथ पर गिर पड़ा और उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला . गहरी नींद में उसने स्वप्न लोक में प्रवेश किया. धरती से सैकड़ों सीढियां चढ़ कर वह देवताओं के दरबार में पहुँचता है. उसे लगा कि शायद "समस्याओं का आखिरी पड़ाव" आ गया है. उसके चेहरे पर "अच्छे दिन" आने की ख़ुशी तैरने लगी, बदन से थकान "प्याज" की तरह गायब हो गई. आँखों में सुनहरे सपने हिलोरे लेने लगे . आखिर देवों के द्वार में जो प्रवेश मिल गया था .
गरीब दास अपने हाथ में कागज लिए देवताओं के दरबार में हाज़िर हुआ. बड़ी उम्मीद के साथ बोला," सभी देवों को प्रणाम, पृथ्वी लोक में हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है. गरीबों की थाली से प्याज गायब है, मंहगाई की मार जिस्म में कोड़ों-सा दर्द दे रही है. मंदी से घर की बंदी परेशान है. स्कूल की फीस हिमालय की चोटी को छू रही है. बेरोजगारी के बीच युवा अपराध की गलियों में भटक रहे हैं. समस्याओं का निराकण नहीं हो रहा. बेटियों से बलात्कार कर उन्हें मौत के घाट उतारने वाले दोषी कोर्ट में दया याचिकाएं लगा कर सजा टालने की जुगत में लगे हुए हैं. पाप व अधर्म बढ रहा है. अब आप ही बचाएं देव. "
ग़रीब दास की अभ्यर्थना सुनने के बाद देवता बोले," वत्स ! भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जब –जब पृथ्वी पर अधर्म और पाप बढेगा तब-तब उसे नाश करने के लिए मैं किसी न किसी रूप में जन्म लूंगा . चिंता न करो जल्द ही भगवान पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में अवतरित होंगे, पाप, अन्याय दूर कर सब कुछ अच्छा कर देंगे .और, तब हम अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए स्वर्ग से धरती पर फूलों की वर्षा करेंगे, हमारा कार्य सदियों से यही रहा है. सभी धार्मिक हिंदी फिल्मों में हमारे इस कार्य को प्रमुखता से दिखाया भी जाता है. जाओ वत्स, पृथ्वी पर लौट जाओ. जल्द ही तुम्हारे जैसे दीन-दुखियों, गरीबों के प्रति होने वाला अन्याय, अधर्म और पाप का नाश होने वाला है " इतना कह कर देवता अंतर्ध्यान हो गए ।
ग़रीब दास की पीठ पर पड़ी कांस्टेबल के डंडे की "सटाक" से उसकी नींद टूट गई . दिन के समय फुटपाथ पर सोना मना है . जिंदगी सड़कों पर दौड़ रही थी. कांस्टेबल बोला," जीना चाहता है तो तू भी तेज़ी से दौड़ जा." गरीब दास मारे डर के वहां से दौड़ लिया. उसे समझ में आ गया कि समस्याओं का आखिरी पड़ाव तो गाँव में ही होता है. शहर में तो समस्याओं का पहाड़ बनाया जाता है, जिसके नीचे गाँव वालों को दबना ही पड़ता है. यही उनकी नियति है. उसे लगता था टल्लू प्रसाद सिर्फ धरती पर ही होते हैं आज उसका यह भ्रम भी टूट गया ।
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प्रभात गोस्वामी ,
15/27, मालवीय नगर, जयपुर (राजस्थान)
ईमेल – prabhatgoswami59@gmail.com
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