कविताएँ राजेश गोसाईं 1......धरती हिन्दुस्तान की लहराती रहे बलखाती रहे ये फसलें खेत खलिहान की युगों युगों तक मुस्काती रहे ये धरती हिन्दुस...
कविताएँ
राजेश गोसाईं
1......धरती हिन्दुस्तान की
लहराती रहे बलखाती रहे
ये फसलें खेत खलिहान की
युगों युगों तक मुस्काती रहे
ये धरती हिन्दुस्तान की ...3
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
मिल के रहें सदा ये भाई
भेदभाव सब मिट जायें
उंच नीच जात पात सब हट जायें
और मिट जायें दूरियां जहान की
मुस्काती रहे युगों युगों तक गाती रहे
ये धरती हिन्दुस्तान की
हो राष्ट्रभक्ति दिलों में सबके
राष्ट्र के सम्मान की
शान न जाने पाए कभी
भारत देश महान की
अमर रहे गणतंत्र हमारा
ये गाती रहे धरती हिंदुस्तान की
ये धरती हिंदुस्तान की
ये धरती हिंदुस्तान की
राजेश गोसाईं
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2.....गोदी
बड़ी तमन्ना थी कि
सेवा वतन की मिले
मैंने जब कदम बढ़ाया
मुझे हम-वतन मिले
भरोसा जिन्दगी का तो
कुछ भी नहीं है
ये सौभाग्य होगा मेरा
मुझे तिरंगे का कफन मिले
पैदा हुआ जब से
इक लाश बन के रह गया
ज़िन्दगी के सफ़र में
मुसाफिर ही रह गया
उम्र वतन से ज्यादा ना हो किसी की
दामन में लेकर मौत चल दिया
ये सौभाग्य होगा मेरा
मुझे तिरंगे का कफन मिले
आंचल में मां का प्यार
मिले ना मिले
मगर वतन का प्यार
मुझे हर पल मिले
सोया रहा था मां की
ठण्डी छांव में
गोदी मुझे
मां भारती की बार बार मिले
ये सौभाग्य होगा मेरा
मुझे तिरंगे का कफन मिले
राजेश गोसाईं
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3.....भारत मां
सज रही भारत मां
हरे भरे खेतों में
ओढ़ के चुनर केसरिया
हरे भरे खेतों में
देखो इसकी अनुपम छटा है आज पांव में समंदर की पायल
और सर पे पर्वत का ताज
बन रही सुंदर छवि आज
तेरे खेतों में
यह केसर घाटी ....वाह वाह
यह हल्दी घाटी ...वाह वाह
यह पर्वत चोटी ....वाह वाह
यह सूर्य ज्योति... वाह वाह
अमृत का झरना ..वाह वाह
भारत तेरे दर्शन की
अद्भुत है बात
सोने जैसा दिन है
और चांदी जैसी रात
ऊंची शान ...वाह वाह
भारत महान ......वाह वाह
मुझे अभिमान ....वाह वाह
मंदिर देखा ...वाह वाह
मस्जिद देखा ......वाह वाह
देखी चर्च और गुरुद्वारे की शान
सब जगह मिला मुझे
केवल एक हिंदुस्तान
राजेश गोसाईं
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4..... जिन्दगी
.ए जिंदगी तू ही बता
तुझे मौत कब आएगी
दर्द और गम की कोई
रात बता कब आएगी
सांसो ने किया था वादा
उम्र भर साथ निभाने का
गर्दिशों में फिर क्यों रहा
सितारा बेदर्द जमाने का
ऐ सुख की नींद तू ही बता
पलकों में कब गहरायेगी
डूबा हुआ दिन है
रातों में वीरानी है
हर लम्हे में मिलती
इक अजब कहानी है
ऐ महकी हुई फिजा
तुझे खिजां कब आयेगी
ज़िन्दगी तेरे बिन जिंदगी
कुछ भी नहीं है
ढोंग और पाखण्ड के
खंजर में ही चुभी हुई है
सुनहरे ख्वाबों में फैली हुई ज़िन्दगी
यह तो बता कब उजड़ जाएगी
राजेश गोसाईं
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5..... पुस्तक
मैं पुस्तक जहान की
इंसान के नाम की
पंचतत्व में बनी हुई
आंसू और मुस्कान की
मुख्य पृष्ठ पर जन्म सार
और अंत में शमशान की
शुभ अशुभ कर्म में
मानवता के काम की
संसार के मेले में सजी
रिश्तों की दुकान की
ईश्वरी रचना में इंसान और अमानवीय क्रम में हैवान की
सांसों के क्रम में बंधी
मौत के पैगाम कि
मैं पुस्तक जहान की
राजेश गोसाईं
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6......शमशान
मैं चला शमशान की ओर
कफन अर्थी पे अपनी ओढ़
ले के चार कंधों का सहारा
सोया हुआ हूं मैं थका हारा
है ये अंतिम यात्रा का दौर
चला मैं शमशान की ओर
थम गया मेरी सांसों का रेला
रुका नहीं जिन्दगी का मेला
चला मैं अकेला चला मैं अकेला
ना कोई संगी ना साथी ओर
इक भीड़ ले जा रही है
मुझको शमशान की ओर
फूलों में सज के
ये अर्थी चली
जग को तज के
मौत की मर्जी चली
ज़िन्दगी के अंतिम पड़ाव की ओर
रुक गया सांसों का दौर
और चला मैं शमशान की ओर
राजेश गोसाईं
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7.......रेला
चार दिनों का
खेल है ज़िन्दगी
पांचवां दिन कोई
होता नहीं है
जो जग में आया
रोता ही आया
हंसता हुआ कोई
आया नहीं है
सांसों का खेल है ज़िन्दगी
हार जीत कोई
यहां होता नहीं है
चार दिनों का
मेल है ज़िन्दगी
फिर बिछुड़ जाता
यहां हर कोई है
टूटे हुये फूल सभी हैं
सज जाते हैं मेले में
दर पे लगा लें या
चढ़ जाता अर्थी पे कोई है
आया ले के सांसों का रेला
रुक गया तो चला अकेला
खुशी हो या गम
संग कोई जाता नहीं है
राजेश गोसाईं
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8......रोटी के रंग
बोटी बोटी होती रोटी
राजनीति में रोती
मजहब में बंटती
जेबों में चलती
गरीबों में मरती
आतंकी को पालती रोटी
निर्भया में तड़पती
दरिंदों को छोड़ती
लाशों पर सिंकती रोटी
खेल में फिसलती
सब कुछ देती
जेब तो भर देती
बस पेट नहीं भरती रोटी
क्यों होती है
बोटी बोटी रोटी
आज की हवा में
उड़ती रोटी
कहीं ठिठुरती सहमी
सिसकती
अपनों से बिछुड़ती
रोटी
शायद दम तोड़ती
यही है आज की
सच्ची रोटी
नहीं है कहीं
निस्वार्थ की रोटी
ये रंग बदलती
चूल्हे से निकल
देश की आग में
जलती रोटी
चन्द सिक्कों की महफिल में
थिरकती
कानून से निकल कानून
तोड़ती नियम की रोटी
राजनीति के तीन निशान
पेट कानून और संविधान
स्त्रीलिंग राजनीति का
रूप पीड़ित रोटी
जान देने वाली
जान लेती रोटी
राजेश गोसाईं
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9.....
नन्ही किताबों की कब्र
क्यूं सजा देते हैं
सेहरे की लड़ियां
नन्ही उम्र में
बेरहम लोग
किताबों की कब्र पर
नई दुनिया बसा देते हैं
थमा कर औजार
ईंट-गिलासों की बेड़ियां
मासूम कोमल हाथों से
बस्ते की उम्र को
नई बस्ती बना देते हैं
तमन्नाओं के टूटते पंख
नर्म आँखों के नन्हे स्वप्न
मानवता की मृत आत्माओं पर
क्यों मौन है
कानून संसद मीडिया
क्या कागज में ही दफन
रह गया है बाल शोषण विरोध
सामाजिक संस्थायें व
आम जिम्मेदार नागरिक
करें मिल कर अबोध जिन्दगी
का यह विरोध
नन्हे सपनों को वृहद आसमान
मासूम कदमों को सुन्दर
भविष्य की राह दो
खुल कर हंसने के लिये
मिट्टी में खेलते होंठों पर
मुस्कान दो
राजेश गोसाईं
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10.....
सहारा
है कुर्बान इसपे जान सदा
हर सांस भारत से आता है
भारत है प्राण हमारा
भारत ही अन्न दाता है
ये मेरा सौभाग्य है
या मैं किस्मत वाला हूं
लिया जन्म भारत में
मैं भारत का रखवाला हूं
बहा कर अपने लहू की बूंदे
जिन्होंने वतन को संवारा है
बलिदान उनका भी
हमको जान से प्यारा है
हर सांस में
हर दिल में
हर जान ओ तन में
भारत का ही सहारा है
राजेश गोसाईं
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11.....
अजनबी
यह गीत मैंने लिखा है
तेरे लिए ही लिखा है
तेरा नाम लेते लेते
चेहरा तेरा लिखा है
देखा है जबसे तुमको
इक गीत नज़र आया
इन झील सी आंखों में
बादल प्यार का लिखा है
.
ये मेरा गीत मेरी
ज़िन्दगी का आखरी तराना है
दिल मेरा तेरे लिये
अब तो बेगाना है
रुका हुआ हर कदम है
चाहत दिल की भी कम है
राह में मिल भी जाये
तो अजनबी लिखा है
राजेश गोसाईं
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12....
आज की रात
ना छेड़ो बात आज की रात फूलों की
जख्म भरी है आज की रात फूलों की
जुल्म तो खूब ही ढ़हाया था फूलों ने
शूल की तरह नज़र आती है
पंखुड़ियां भी आज फूलों की
सज रही थी सेहरे में
जमाने को रिझाने में
इन्हें मालूम था आयेगी
बहार भी वीराने में
सज गई मगर अर्थी पे
लड़ियां आज की रात फूलों की
मैंने देखी है रातों की हत्या
फूलों से जो होती है
लहू दिल से नहीं निकलता
मगर चोट गहरी होती है
घुट रही हैं सांसें खुद ही
फूलों की फूलों
क्योंकि आज की रात है फूलों की
राजेश गोसाईं
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