संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) -6 : यशवंत कोठारी

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संस्थानोपनिषद

(व्यंग्य –उपन्यास )

यशवंत कोठारी


भाग 6 -  

आना ऑडिट पार्टी का-

संस्थान अस्त व्यस्त था.

दफ्तर में जलजला आया हुआ था। बडे़ साहब तमतमाये हुए थे छोटे साहब की सिट्टीपिट्टी गुम थी। लेखाधिकारी को सांप सूंघ गया था। बाबू लोग चुपचाप सिर झुकाये हुए फाइलों के कागजों में आकड़ों की खेती में व्यस्त थे या व्यस्त दिखने का बहाना कर रहे थे। दफ्तर में आडिट पार्टी आई हुई है। एक ए . ओ. दो डबल ए . ओ. और कर्मचारी। सब के सब मिलकर दफ्तर के कागजों में अन्दर की बाल की खाल निकाल रहे हैं। छोटे साहब दुलत्ती मार रहे हैं और बाकी के लोग कराह रहे हैं। वास्तव में किसी भी दफ्तर में आडिट पार्टी का आना एक सरकारी कर्म काण्ड है। केन्द्र की आडिट, राज्य की आडिट, सी.ए . की आडिट, इन्टरनल आडिट तथा स्वंयसेवी संस्थाओं की आडिट। आडिट एक आवश्यक सरकारी कर्मकाण्ड हो गया हैं। कभी-कभी किसी गरीब इमानदार कर्मचारी का श्राद्ध भी आडिट के बहाने कर दिया जाता हैं। आडिट पार्टी मेमो देती है। जवाब लेती हैं। फिर मेमो देती हैं। फिर जवाब लेती हैं, यह मेमो और जवाब का सिलसिला एक दो महीनों तक चलता है, फिर आडिट रिपोर्ट बनती हैं। पेरा बनते हैं, पेरा ड्रोप होते हैं, नई रिपोर्ट बनती हैं और आडिट पार्टी किसी दूसरे दफ्तर में हडकम्प मचाने के चल पडती हैं। यह सतत चलने वाली प्रक्रिया हैं।

आडिट पार्टी के लोग बहुत जानकार, विशेषज्ञ होते हैं, वे लिफाफा देखकर मजमून भांप लेते हैं। कई बार वे ऐसे ऐसे मेमो देते है कि दफ्तर में साहब की नाक में दम हो जाता है। अफसरों द्वारा दिये गये स्पष्टीकरण को वे असंतोष जनक करार देकर नये मेमो बना देते हैं। आडिट पार्टी के रहने, खाने, ठहरने, नाश्ते, लाने ले जाने की माकूल व्यवस्था नहीं होने पर मेमो को पेरा में बदल दिया जाता हैं। हर दफ्तर में इस कार्य हेतु विशेष बजट रखा जाता है।, खाना-चाय, नाश्ता, सांयकालीन आचमन, तंदूरी मुर्गा, महंगी शराब, सिनेमाए कभी कभी शबाब भी से आडिट पार्टी का सत्कार करने वाले दफ्तरों पर आडिट पार्टी की गाज ज्यादा नहीं गिरती हैं।

जो दफ्तर मुर्ग मुस्सलम, शराब व शवाब की व्यवस्था नहीं करते हैं, उन दफ्तरों की आडिट रिर्पोट खराब हो जाना लाजिमी होता हैं। हमारे दफ्तर के भी बुरे दिन आ गये थे। एक मीटिंग में बडे साहब के कक्ष में मिठाई, नमकीन, काफी, आदि के बिलों के आधार बनाकर मेमो टिका दिया गया था। उस मीटिंग में कुल सदस्य पांच थे मगर मिठाई पांच किलो आई थी। आडिट पार्टी ने स्पष्ट कह दिया पांच आदमी पांच किलो मिठाई नहीं खा सकते। वैसे आडिट पार्टी भी सच ही कह रही थी, क्योंकि कि मिठाई का सेवन तो बाबुओं और चपरासियों ने किया था, अफसोस केवल इस बात का था कि बाबू चपरासी मीटिंग के सदस्य नहीं थे। मामला बडे साहब तक पहुँचा, बडे साहब ने आडिट पार्टी के मुखिया को अपने कक्ष में बुलाया, सम्मान से बिठाया और दोनों में पता नहीं क्या बात हुई कि यह मेमो निरस्त हो गया। हां कुछ दिनों बाद उस आडिट पार्टी के मुखिया के लडके को दैनिक श्रमिक के रूप में कुछ समय के लिए लगा दिया गया।

आडिट पार्टी कभी कभी ऐसे बिन्दु ढूंढकर लाती हैं कि न भूतो न भविष्यति। एक बार दफ्तर की आडिट पार्टी ने मेमो दिया कि मिनरल वाटर की दस बोतलें एक व्यक्ति एक दिन में कैसे पी सकता हैं ? बात ठीक थी, मगर क्या करे, एक व्यक्ति के लिए जो पानी आता है उसे पूरा दफ्तर पीता है। आडिट पार्टी को भी मिनरल वाटर पिलाया गया तब जाकर बात बनी।

लोग बुक का अध्ययन आडिट वाले बडे ध्यान से करते हैं। अक्सर साहब के घर से दफ्तर की दूरी को सेन्टीमीटरों में नाप कर लोग बुक में गड़बडी निकालते हैं। आडिट वाले रिकवरी के मामलों में बडे उस्ताद होते हैं। व्यक्तिगत रिकवरी करने के बजाय वे सामूहिक रिकवरी में ज्यादा रूचि रखते हैं।

आप पूछ सकते है आखिर आडिट की आवश्यकता क्या है ? भाईजान सीधा सा जवाब ये है कि आडिट से ही तो पता चलता हैं कि सरकार का रूपया सही जगह पर खर्च हुआ है या नहीं। योजना का पैसा गेर योजना में चला जाता है और आडिट वाले देखते ही रह जाते, वैसे ऑडिट वाले प्रक्रिया –गत गलतियाँ पहले पकड़ते हैं फिर इन गलतियों को माफ़ कर देते हैं, बजट का दुरूपयोग या एक मद के बजट का दूसरे मद में उपयोग भी एक सामान्य प्रक्रिया मानी जाती है, मगर ऑडिट वाले अपनी टांग अडाए बिना नहीं मानते.

आडिट के द्वारा ही देश की प्रगति, विकास आदि का पता चलता है। आडिट वाले ही संसद को बताते है कि देश में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा हैं, कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हैं मगर हर दफ्तर का अधिकारी जानता है कि गडबड़ कहा है क्यों है और कैसे हैं ?

हर छोटा साहब बड़े साहब को सब ठीक है, कहता है और देश की प्रगति का आडिट होता रहता है। कुछ दफ्तरों में बडे साहब आडिट के आते ही दौरे पर निकल जाते है और कुछ साहब लोग छुट्टी ले लेते हैं। एक अधिकारी तो प्रतिवर्ष आडिट के आते ही हास्पिटल में भरती हो जाते थे और हस्पताल से तभी आते थे जब आडिट चली जाती थी, वे आडिट में कभी नहीं फंसे। तो ऐसे है आडिट की माया सरकार।

लोकल ऑडिट पार्टी के मेमो से निपटे ही थे की महालेखाकार की ऑडिट पार्टी के पांव पड़ने का समय हो गया. ये सबसे खतरनाक पार्टी होती है ऐसा निदेशक ने बताया तो सब लोग और भी सचेत हो गए. महा लेखाकार की ऑडिट रपटों से सरकारें तक गिर जाती है ऐसा सयानों का कहना है.

लोगों ने लेखा शाखा की और जाना ही बंद कर दिया. मगर रेत में गर्दन छुपा लेने से क्या होता है?

यह ऑडिट अपनी रपट सीधे संसद को देती है. इस बार तो एक बड़ी सेमिनार करी गयी थी, सो बड़े पेरे बनने की पूरी उम्मीद थी. सब डरे हुए थे.

यूनियन के अध्यक्ष इस पवित्र अवसर पर अपने दल बल के साथ ऑडिट पार्टी के अफसर से गुफ्तगू करने के लिए चले.

वे व उनके साथी अफसर को ज्ञानदान करने लगे. ज्ञान बाँटने के कारण लोगों को मज़ा आने लगा.

सर, क्या बताएं यहाँ तो कुएं में ही भांग पड़ी हुयी है. संस्थान छोटा है मगर यहां की पोलिटिक्स बड़ी हैं, गन्दी है हम तो छोटे कर्मचारी है, बच्चे पाल रहे हैं बाकि रखा क्या है यहां? इत्ती बड़ी सेमिनार दिल्ली में करने का क्या औचित्य था? फिर वहां पर एक आफिस खोल दिया. पि आर एजेंसी का ठेका बिना टेंडर के दे दिया. कई लोगो को अनियमित भुगतान कर दिए. सर पूरी और इमानदार जाँच की जरूरत है, हमें आप पर पूरा विश्वास है. हम गरीबों के तो वेतन आयोग के फिक्सेशन भी नहीं हुए और ये लोग विदेशी मेहमानों को के साथ गुलछर्रे उडा के आ गये. वेतन के अलावा कमीशन, रिश्वत, और न जाने क्या क्या? पूरे संस्थान को चूहे कुतर रहे हैं हर पत्रावली को दीमक लगी हुयी है, चारों तरफ इल्लियों का साम्राज्य है सर. आप न्याय करना साहब. ऑडिट अफसर ने उनको आश्वस्त किया. और केश बुक पर लाल, पीले, हरे निशान लगाने में व्यस्त हो गया. निदेशक को यह खबर मिल गई थी की यूनियन का पग फेरा हो चूका है, सो उन्होंने अपने लेखा अधिकारी को बुला कर यूनियन के अध्यक्ष की एक पुराणी रिकवरी का नोट ऑडिट को दिखाने को कह कर अपना पैंतरा फेंका. अब ऑडिट पार्टी को मज़ा आने लगा पार्टी ने निदेशक की जन्म तारीख के कागज़ मांग लिए. निदेशक का नियुक्ति पत्र भी मांग लिया गया जो कभी निकला ही नहीं, उनके पास तो अतिरिक्त चार्ज ही था.

ऑडिट पार्टी मज़े ले रही थी. संस्थान के लोगों को लग रहा था की उनको गरम तेल में पकोड़ा बनाया जा रहा हैं. निदेशक ने ऑडिट के मुख्य आफिस में ताल मेल बिठाने के लिए अपने विश्वस्त चमचे को लगाया. चमचे ने अपना खेल खेला और ऑडिट पार्टी के कडक अफसर के बजाय एक नए सॉफ्ट अफसर को लगवा दिया. ये भाई साब जल्दी सेवानिवृत्त होने वाले थे सो सज्जनता से शालीन तरीके से अपना बुढ़ापा काट कर इज्जत के साथ पेंशन के लाभ लेकर घर जा ना चाहते थे. उन्होंने कई बड़े पेरे ड्राप कर दिए जिनमें निदेशक की जन्म तारीख का मामला भी था.

ऑडिट पार्टी ने नव नियुक्तियों का भी मामला चेक किया. यूनियन के अध्यक्ष अपने ही मामले में ऐसे फंसे की कई दिन तक संस्थान आये ही नहीं.

संस्थान में नियमित निर्माण काम भी चलते थे. ऑडिट ने इस का पेरा बनाने की पूरी कोशिश की मगर केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के कामों में वे कोई खोट नहीं निकल सके. वेतन आयोग के फिक्सेशन भी सही पाए गए. लेकिन कुछ तो करना ही था सो कुछ छोटे पदों को सरप्लस किये जाने का पेरा लिया गया. जिसे आगे सी ए जी से निरस्त करने के लिए निदेशक को खुद जाना पड़ा.

लगभग एक मास के गहन ऑडिट के बाद पार्टी चली गयी, कोई बड़ी गडबडी नहीं पायी गयी. प्रधान मंत्री जी के सेमिनार में आ जाने के कारण सब ठीक ठाक मान लिया गया. रिपोर्ट आने पर यथा समय मंत्रालय को भेज कर कर्तव्य की इतिश्री कर दी गयी. ओडिट पार्टी के अफसर को ए जी आफिस से रिटायर हो ने के बाद संस्थान में संविदा पर रख लिया गया. अब इतना सा तो करना ही पड़ता है. जैसे उनके दिन फिरे सब के फिरे.

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होना रेप का....

साँझ का समय. हवा धीरे धीरे चल रही थी. पेड़ो की छायाएं लम्बी होने लगी थी. सर्दी के कारण दिन छोटे थे. संस्थान के नियमानुसार लंच के बाद वाली कर्मचारियों की जमात घर जाने की तैयारी में थी. चतुर्थ श्रेणी अधिकारी भवन के ताले लगाकर चाबियाँ सेकुरिटी वालों को देकर घर जाने से पहले की गपशप में व्यस्त थे, तभी यह अघट घटा.

शुरू में तो कोई कुछ समझ ही नहीं पाया, लेकिन धीरे धीरे राज खुलने लगा. परिसर में कोई सामूहिक दुष्कर्म का मामला बताया जाने लगा. जितने मुंह उतनी बातें.

अफवाहें हवाओं में तैरने लगी. जिस महिला के साथ अघट घटा था वो निदेशक कक्ष की ओर दौड़ पड़ी. भाग्य से वे वहां नहीं थे, मामला उपनिदेशक ने संभाला. आनन फानन में एक जाँच कमिटी बना दी गयी. महिलाओं के शोषण के मामलों को देखने वाली समिति की अध्यक्ष को काम मिल गया. मामला पेचीदा था.

अफवाहों के आधार पर पता चला की संस्थान के लव पॉइंट के पास सुनसान रहता है, इसी सुनसान इलाके में एक दलित मंद बुद्धि महिला जो संस्थान में संविदा पर काम करती थी पर कुछ लड़कों की नज़र पड गयी, वो संभलती, समझती तब तक कुछ नए नए युवा बने छात्रों ने अपना काम पूरा कर दिया. मामला पुलिस में न जाये इसकी व्यवस्था के लिए छात्रों का एक तबका पहले से ही तैनात था. चूँकि मामला दलित महिला का था सो कर्मचारी यूनियन भी ज्यादा कुछ नहीं करना चाहती थी. मगर दलित वर्ग ने झंडा उठा लिया और लगातार धरना, प्रदर्शन, शुरू कर दिया. मंत्रालय को ज्ञापन दिए जाने लगे. मंत्रालय से फोन आने लगे. निदेशक हैरान परेशान हो गए. छात्रों पर कार्यवाही करे तो जबर्दस्त खतरा, कर्मचारियों को तो बहला फुसलाया जा सकता है लेकिन छात्र शक्ति तो युवा शक्ति, इसे काबू में करना मुश्किल.

इस मुश्किल माहौल को हल किया जाँच समिति की चेयर परसन ने. पीडिता के बयानों व् अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर मामला गेंग रेप का नहीं बन रहा था. छात्रों का कहना था यह सब गलत आरोप है. पूरा मामला सहमति से सहवास का था.

फिर ये आरोप क्यों?

इसके जवाब ने छात्रों का कहना था मामला भुगतान को लेकर था और ऐसा अक्सर होता रहता है.

चेयर परसन सब समझ गई, उन्होंने बातचीत को इसी कोण से शुरू किया. महिला के घर वाले व सम्बन्धित ठेकेदार को भी समझाया गया. एक बड़ी नकद राशि मुआवजे के रूप में दी गयी. महिला संतुष्ट हो कर काम छोड़ कर चली गयी. आगे भी ऐसे वाकये न हो इसकी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की गयी. हाँ बजट में मुआवजे का प्रावधान रखा गया ताकि इस प्रकार की घटनाओं पर पर्दा डाला जा सके.

लव पॉइंट और गर्ल्स हॉस्टल के बीच में एक बड़ी दीवार बनाने का भी प्रस्ताव आया, मगर छात्राओं के जबरदस्त विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका.

कुछ बूढ़े प्रोफेसर स्त्री –पुरुष संबंधों की व्याख्या करने लग गए. कक्षाओं में इस विषय पर प्रस्तुतियां दी जाने लगी. एक कर्मचारी उवाच-

यह सब तो वैदिक का ल से ही चल रहा है, पौराणिक साहित्य भरा पड़ा है. द्वापर में भी था. और अब तो कलयुग है जनाब. ये सब ऐसे ही चलेगा. संस्थान से मुआवजा लो और बात को ख़त्म करो.

हर युग में निर्भया थी, है और रहेगी. यहीं युग सत्य है. फिर यह संस्थान तो भारतीय विद्याओं को समर्पित हैं. यहाँ तो वात्स्यायन को भी पढाया जाता है और कुट्टनीमतम भी., भारतीय वैदिक साहित्य, उपनिषदों, पुराणों व् संस्कृत साहित्य में इस पाशविक प्रवृत्ति के हजारों उदाहरण है. रामायण, महाभारत व् अन्य ग्रंथों में भी विशद विवेचना है. इंद्र ने देव गुरु ब्रहस्पति की पत्नी के साथ छद्म से विहार किया, चंद्रमा ने ऋषि गोतम-पत्नी अहल्या के साथ कुकर्म-प्रसंग किया. राम ने उसका उद्धार किया. विदेशी साहित्य में भी इस प्रकार के विवरण थोक में है. आखिर क्या कारण है की हर तरफ अनादि काल से यह सब चल रहा है? कब रुकेगा? शायद ही कोई दिन गुजरता होगा जब अख़बार या मीडिया में ऐसे समाचार नहीं आते हो. सत्ता और विपक्ष दोनों अपनी अपनी रोटियां सेंकने में लग जाते हैं. आम आदमी ठगा सा रह जाता है. पीड़िता या उसका घर परिवार जिन्दगी भर यह बोझ उठाते रहते हैं. बुजुर्ग प्रोफेसर अपनी भड़ास निकाल कर लघु शंका करने चले गए सो दूसरे दिन ही नमूदार हुए.

छात्र यदि प्रायोगिक कर लेते हैं तो आश्चर्य किस बात का. ये तो इन्नोसेंट क्राईम है. इसे न तो छोड़ा जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है. एक अन्य टीचर उवाच.

विज्ञान के एक जवान अध्यापक ने बड़ी मार्के की बात कहीं –होमो सेपयिंस क्लास मेमेलिया में आता है और इस क्लास का केरेक्टर ही पोली गेमी है जो मानवीय समाज नहीं बद्ल सकता. यह केरेक्टर ऐसे ही रहेगा ज्ञान –बाँटने का सिल सिला कई दिनों तक चलता रहा, छात्रों के मौज हो गयी.

लेकिन वो संस्थान ही क्या जो शांति से चलता रहे, कुछ न कुछ तो होना ही था और हुआ.

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छात्रों की सभा में इस बलात्कार या गेंग रेप की अच्छी तरह मलामत के बाद यह तय किया गया की लगातार पढाई से बोर हो गए हैं थीसिस के सिनोप्सिस बनाते करते भ्रमित हो गए हैं. पीएच. डी. के छात्र भी कुछ दिनों के लिए अपनी बंधुआ मजदूरी से मौज शौक चाहते थे. सो सर्व सम्मति से सांस्कृतिक पखवाड़े की योजना बनाई गयी जिसे लेकर निदेशक के पास हर वर्ग का एक प्रतिनिधि लेकर छात्र अध्यक्ष चले. उनकी सज धज निराली थी. अद्ध्यापकों का मौन समर्थन था. देवताओं ने दुन्दुभी बजायी. त्रिदेवों ने पुष्प वर्षा की. इस आयोजन के लिए पुरे देश के कालेजों से प्रतियोगिता में भाग लेने वालों को बुलाया जाना था. बजट बड़ी समस्या थी लेकिन युवा राजनीतिज्ञ जिन्हें निदेशक गुंडे कहते थे आश्वस्त थे, क्योंकि वे खुद को भविष्य का कैबिनेट मंत्री मानते थे. वैसे भी इस संस्थान के लगभग सभी पूर्व नेता विधान सभा या लोक सभा में थे. कुछ तो वास्तव में मंत्री बन गए थे, अस्तु छात्रों ने एक लम्बी रूप रेखा प्रस्तुत की. उद्घाटन के लिए वे बालीवूड के हीरो रणवीर सिंह व् दीपिका पादुकोण को बुलाना चाहते थे. निदेशक इसे खतरे की घंटी मानते थे. डीन अकादमिक ने अमिताभ का नाम सुझाया जिसे छात्र –नेता ने तुरंत रिजेक्ट कर दिया. वे तो और भी आगे जाना चाहते थे. माहौल ज्यादा गरम न हो इसलिए निदेशक ने डीन की अध्यक्षता में एक आयोजन समिति बना दी. छात्र नेताओं ने निदेशक को छोड़ा और डीन को कस के पकड़ लिया, वे रोज़ डीन कक्ष में मीटिंग करने लगे डीन लम्बे मेडिकल अवकाश पर जाने की सोचने लगे मगर गए नहीं क्योंकि एक बार ऐसा करने पर सेकंड मेडिकल बोर्ड बैठा दिया गया था और तत्कालीन डीन को काम पर लौट आना पड़ा था. छात्रों ने एक लम्बा चौड़ा कार्यक्रम बनाया, फ़ाइल पर डीन के हस्ताक्षर लेकर निदेशक के कक्ष का रुख किया. पुरे देश की संस्थाओं को बुलाने का विचार तो अच्छा था मगर व्यवस्था का प्रश्न गंभीर था, छात्रों ने आर्थिक व्यवस्था हेतु मंत्रालय में स्वयं सम्पर्क करने की सूचना दी साथ ही यह भी कह दिया की हम अपनी व्यवस्था कर लेंगे. इधर लेखा शाखा के किसी कर्मचारी ने छात्रों को फूंक मार दी की कई वर्षों से छात्र-संघ का बजट ऐसे ही पड़ा था बस छात्रों को और क्या चाहिए था.

एक भावी कवि जो स्वयं को बहुत आला दर्जे दार्शनिक समझता था ने घोषणा कर दी की इस आयोजन में एक कवि सम्मेलन –कम –मुशायरा भी रखा जायगा. मगर छात्र संघ अध्यक्ष को मनाने के लिए भावी कवि को पसीने आ गये. अंत में बात इस पर सुलझी की कवयित्रियों व् शायराओं को ही बुलाया जायगा. संस्थान के कवि भी का व कांव कर लेंगे. सांस्कृतिक दिन धीरे धीरे नजदीक आ रहे थे. क्लासेस बंद थी शोध कार्य ठप थे. सभी व्यस्त थे. कुछ प्रेक्टिस कर रहे थे. कुछ ने क्रिकेट का बल्ला था म लिया था. कुछ क्रिकेट कमेंट्री कर जसदेवसिंह बन्ने की फ़िराक में थे. सर्वत्र उत्सव का वातावरण बन गया था. पुरे देश से टीमों की आने सम्भावना बन गयी थी. होस्टलों को तैयार कर लिया गया था. खाने पीने के ठेके दे दिए गए थे, सारा पैसा छात्र कोष से जा रहा था सो ज्यादा चिंता की बात नहीं थी. कुछ बुद्धिजीवी छात्रों ने चुपचाप एक स्मारिका छाप कर बाज़ार से विज्ञापन ले लिए. प्रशासन कुछ न कर सका, कुछ ज्यादा समझदार छात्रों ने आसपास की दुकानों, छोटी फेक्टरियों से चंदा कर लिया था, वे इस यज्ञ में माँल कमा बैठे. ऐसा मज़ा, ऐसा आनन्द क्या कहने.

सांस्कृतिक सचिव अपना राग अलग बजा रहा था, उसने कार्यक्रम के कार्ड छापने में कौशल दिखाया, एक सूट सिल्वा लिया. कवियों व् शायराओं के रेट्स सुनकर इस प्रोग्राम को मुल्तवी कर दिया गया, एक स्थानीय कवि ने बताया की इस पैसे में तो एक आईटम सोंग कराया जाना अच्छा विकल्प होगा, एक स्थानीय राखी सावंत यह काम निशुल्क करने को तैयार थी. केवल ड्रेस का खर्चा मांग रहीं थी. वैसे लोकल काव्य पाठ तो रोज़ ही होता है, सो यहीं फाइनल रहा. सब तरफ अपनी अपनी ढपली अपना अपन राग का अल्गोंजा बज रहा था. आज़ादी अराजकता में बदल रहीं थी.

अध्यापक कक्षाओं की चिंता से मुक्त होकर अपने अन्य धंधों में व्यस्त हो गए थे. जो किताबें लिख रहे थे वे कुंजियों में रम गए, जिनके पत्नियों , प्रेमिकाओं, सालियों, आदि के नाम से धंधे चल रहे थे वे उसमें व्यस्त हो गए. निदेशक की आवाज़ पड़ने पर दूसरे या तीसरे दिन नमूदार होते. सांस्कृतिक सप्ताह के दिन आ पहुंचे. चारों तरफ शहनाई की आवाजें आने लगी. छात्रों ने अपने अपने होस्टलों में बाहर से आने वाले प्रतिनिधियों को ठहरा दिया. भोजन की व्यवस्था उत्तम थी. किट व् कार्यक्रम के फोल्डर, पोस्टर बांटे गए. शानदार उदघाट्न हुआ. अतिथि, मुख्य अतिथि, अध्यक्ष, आदि के भाषण हुये जो नयी पीढ़ी के अलावा सबने गंभीरता से सुने. मीडिया में शानदार जानदार धारदार कवरेज करवाया गया. प्रतियोगितायें शुरू हुईं, छोटे मोटे झगड़े हुए मगर कोई बड़ी बात नहीं हुईं. निर्णायकों ने पक्षपात किये लेकिन शांति व् सौहार्द के साथ मामले निपटते चले गए. महिला टीमों को कुछ ज्यादा मिला, मगर किसी ने शिकायत नहीं की.

सब कुछ ठीक ठाक था मगर जिन स्थानों पर महिला टीमों को ठहराया गया था वहां पर छात्र व् बाहर के युवा मधुमखियों की तरह भिन-भिनाते थे. इस खतरे की घंटी को सब समझ रहे थे, मगर कुछ कर पाने में असमर्थ थे. इसी दौरान फिर अघट घटा.

सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हुआ, जिसमें एक महिला खिलाड़ी एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी, वैसे यह सब युवा समारोहों में चलता रहता है, मगर सोशल मीडिया से मामला प्रिंट व् ऑडियो मीडिया तक चला गया. कार्यक्रम को बदनामी से बचाने के लिए तुरत फुरत एक कमिटी बनाई गयी. जाँच हुयी. जाँच का निष्कर्ष क्या था. इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि दोनों लोगों ने शादी कर ली और विवाह का पंजीकरण करा लिया. वे पढाई लिखाई छोड़ कर हनीमून पर चले गए. बाकी के लोग जीत हार का हिसाब लगाकर ट्रोफ़ियां ले कर अपने अपने कालेज चले गए

यह तो बहुत बाद में पता चला की लड़के ने लड़की पटाने के लिए फोटो शॉप की मदद से लड़की के अश्लील फ़ोटो बनाकर किला जीत लिया था याने बिल्ली मार दी थी.. एक गुनाह तो भगवान भी माफ़ करता है.. जिस कपल ने शादी कि थी उस कपल के कुछ दिनों के बाद ही ट्रॉफी हुयीं और दोनों को एक संविदा नौकरी का बोनस दिया गया, उनकी मेहनत का कुछ तो फल मिलना ही था. बेरोज़गारी से बेगार भली, ऐसा सयानों ने कहा है. जैसे उनके दिन फिरे सबके फिरे.

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(समाप्त)

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यशवन्त कोठारी: जीवनवृत्त

नाम: यशवन्त कोठारी

जन्म: 3 मई, 1950, नाथद्वारा, राजस्थान

शिक्षा: एम.एस.सी. -रसायन विज्ञान ‘राजस्थान विश्व विद्यालय’ प्रथम श्रेणी - 1971 जी.आर.ई., टोफेल 1976, आयुर्वेदरत्न

प्रकाशन: लगभग 2000 लेख, निबन्ध, कहानियाँ, आवरण कथाएँ, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, राजस्थान पत्रिका, भास्कर, नवज्योती, राष्ट्रदूत साप्ताहिक, अमर उजाला, नई दुनिया, स्वतंत्र भारत, मिलाप, ट्रिव्यून, मधुमती, स्वागत आदि में प्रकाशित/ आकाशवाणी / दूरदर्शन ...इन्टरनेट से प्रसारित । pocketfm .in पर ऑडियो बुक्स व् matrbharati पर बुक्स

प्रकाशित पुस्तकें

1 - कुर्सी सूत्र (व्यंग्य-संकलन) श्री नाथजी प्रकाशन, जयपुर 1980

2 - पदार्थ विज्ञान परिचय (आयुर्वेद) पब्लिकेशन स्कीम, जयपुर 1980

3 - रसशास्त्र परिचय (आयुर्वेद) पब्लिकेशन स्कीम, जयपुर 1980

4 - ए टेक्सूट बुक आफ रसशास्त्र (मलयालम भाषा) केरल सरकार कार्यशाला 1981

5 - हिन्दी की आखिरी किताब (व्यंग्य-संकलन) -पंचशील प्रकाशन, जयपुर 1981

6 - यश का शिकंजा (व्यंग्य-संकलन) -प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1984

7 - अकाल और भेड़िये (व्यंग्य-संकलन) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990

8 - नेहरू जी की कहानी (बाल-साहित्य) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990

9 - नेहरू के विनोद (बाल-साहित्य) -श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990

10 - राजधानी और राजनीति (व्यंग्य-संकलन) - श्रीनाथ जी प्रकाशन, जयपुर 1990

11 - मास्टर का मकान (व्यंग्य-संकलन) - रचना प्रकाशन, जयपुर 1996

12 - अमंगल में भी मंगल (बाल-साहित्य) - प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1996

13 - साँप हमारे मित्र (विज्ञान) प्रभात प्रकाशन, दिल्ली 1996

14 - भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता चौखम्भा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली 1999

15 - सवेरे का सूरज (उपन्यास) पिंक सिटी प्रकाशन, जयपुर 1999

16 - दफ्तर में लंच - (व्यंग्य) हिन्दी बुक सेंटर, दिल्ली 2000

17 - खान-पान (स्वास्थ्य) - सुबोध बुक्स, दिल्ली 2001

18 - ज्ञान-विज्ञान (बाल-साहित्य) संजीव प्रकाशन, दिल्ली 2001

19 - महराणा प्रताप (जीवनी) पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2001

20 - प्रेरक प्रसंग (बाल-साहित्य) अविराम प्रकाशन, दिल्ली 2001

21 - ‘ठ’ से ठहाका (बाल-साहित्य) पिंकसिटी प्रकाशन, दिल्ली 2001

22 - आग की कहानी (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004

23 - प्रकाश की कहानी (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004

24 - हमारे जानवर (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004

25 - प्राचीन हस्तशिल्प (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004

26 - हमारी खेल परम्परा (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004

27 - रेड क्रास की कहानी (बाल-साहित्य) - पिंकसिटी प्रकाशन, जयपुर 2004

28 - कब्ज से कैसे बचें (स्वास्थ्य) - सुबोध बुक्स, दिल्ली 2006

29 - नर्शो से कैसे बचें (बाल-साहित्य) सामयिक प्रकाशन, दिल्ली 2006

30 - मैं तो चला इक्कीसवीं सदी में - (व्यंग्य) सार्थक प्रकाशन, दिल्ली 2006

31 - फीचर आलेख संग्रह -सार्थक प्रकाशन, दिल्ली 2006

32 - नोटम नमामी (व्यंगय-संकलन) - प्रभात प्रकाशन 2008

33 - स्त्रीत्व का सवाल - (प्रेस)

34 - हमारी संस्कृति - वागंमय प्रकाशन-2009

35 -तीन लघु उपन्यास-सन्जय प्रकाशन-2009,अमेज़न पर भी

36 - योगासन और नेतासन नेशनल पब्लिशिंग हाउस.२०१२ दिल्ली

37-असत्यम अशिवम असुन्दरम-व्यंग्य उपन्यास-रचना प्रकाशन 2011

38 Introduction to Ayurveda- Chaukhamba Sansskrit Pratishthan, Delhi 1999

39 Angles and Triangles (Novel) –abook2read.com-london,रचना प्रकाशन जयपुर

40 Cultural Heritage of Shree Nathdwara bodhi prakashan ,jaipur-2017

सेमिनार - कांफ्रेस:--देश .विदेश में दस राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में आमंत्रित / भाग लिया राजस्थान साहित्य अकादमी की समितियों के सदस्य 1991-93, 1995-97 , ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार की राजभाषा समिति के सदस्य-2010-14

पुरस्कार सम्मान-

1. ‘मास्टर का मकान’ शीर्षक पुस्तक पर राजस्थान साहित्य अकादमी का 11,000 रू. का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार -१९९९-२०००

2. साक्षरता पुरस्कार 1996

3. तीस से अधिक पी.एच.डी. /डी. लिट् शोध प्रबन्धों में विवरण -पुस्तकों की समीक्षा आदि सम्मिलित ।

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एवं जर्नल ऑफ आयुर्वेद तथा आयुर्वेद बुलेटिन के प्रबंध सम्पादक. पद से सेवा-निवृत्त।

सम्पर्क: 86, लक्ष्मीनगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर - 302002, राज.

अमेरिका के १० विश्व्विद्ध्यालयों का भ्रमण दिस्म्बेर२०१३ से मई २०१४ विदेशों में हिंदी के पाठ्यक्रम पर चर्चा ,२०१९-२० में अमरीका भ्रमण

२०१७,२०१८, २०१९,२०२० में पद्मश्री हेतु नामित गृह मंत्रालय की साईट पर देखे

विश्व कविता समारोह २०१७ में भाग लिया

फेसबुक पर इ पत्रिका साहित्यम् के संपादक ०

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संपर्क –ykkothari3@gmail.com

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद 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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र 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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) -6 : यशवंत कोठारी
संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) -6 : यशवंत कोठारी
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https://www.rachanakar.org/2020/02/6.html
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