भाग 1 / भाग - 2 / संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) यशवंत कोठारी भाग 3 - संस्थान का अधूरा राउंड यह संस्थान इस महानगर के अंतिम छोर पर एक...
संस्थानोपनिषद
(व्यंग्य –उपन्यास )
यशवंत कोठारी
भाग 3 -
संस्थान का अधूरा राउंड
यह संस्थान इस महानगर के अंतिम छोर पर एक पुराने किले में बना हुआ है. पुराने कर्मचारी बताते हैं की पहले यहाँ पर राजाओं के घोड़े, हाथी आदि बंधते थे. आज़ादी के बाद जब सरकारों ने ये किले महल ले लिए तो उपयोग करने के नाम पर कोई न कोई संस्थान खोलने का कर्म कांड होने लगा. इसी क्रम में केंद्र ने यह संस्थान खोला था. वैसे बाहरी दुनिया में इस सन्सथा की बड़ी इज्जत थी यहाँ पर प्रवेश नौकरी की गारंटी होता है. इसके अलावा यहाँ पर घुसने के बाद छात्र या छात्रा कुछ बन कर ही निकलता था. प्रवेश में बडी मारामारी थी मगर मेरिट के नाम से सब चलता था.
परिसर राजा के महल की तरह लम्बा चौडा था. एक सिरे पर मंदिर था. दूसरे कोने पर यू. जी. होस्टल, तीसरे कोने पर कन्या छात्रावास जिसमें युवतियां रहती थी. परिसर के एक अँधेरे कोने में लव पॉइंट था, जहाँ लड़के लड़कियां चूमा- चाटी कर मन बहलाते थे, बाद में परिसर के पास में बने एक होटल पर भी यदा कदा कृपा कर दी जाती थी. होस्टल का एक कोना बदनाम भी था इसे सुसाइड पॉइंट कहते थे. परिसर में रात्रि चर्या के माकूल इंतजाम थे. बीच की जगह में प्रशासनिक खंड, बैंक, बड़ा सा आडीटोरियम, लेक्चर थियेटर भी थे, मगर अधिकांश शिक्षक अपने चैम्बर में बैठ कर ही पी.जी. की क्लास लेने का नाटक पूरा कर देते थे. यू. जी. की क्लास में पीजी छात्र को भेज कर खाना पूर्ति कर दी जाती थी. डिप्लोमा आदि की क्लास की नोटंकी भी चलती रहती थी क्योंकि इस क्लास के पैसे वेतन के अलावा मिलते थे. परिसर में लॉन थे, कई पुराने पैड थे. कुछ पुराने क्वार्टर भी थे, मगर एक रात को इन पुराने मकानों का मलबा एक छोटे अफसर के मकान में काम में आ गया, किसी को पता भी नहीं चला. आज तक इस मलबे की खोज जारी है.
परिसर के चारों तरफ रास्ते थे, कोई कभी भी कहीं से भी प्रवेश कर सकता था वापस भी जा सकता था. सरकार की बायोमेट्रिक हाजरी का कोई असर नहीं था. आउट डोर व् इनडोर भी थे. सरकार के कागजों में यहाँ पर पांच सो बेड थे, मगर वास्तव में इनडोर खा ली ही पड़ा रहता था. कभी दिल्ली से या काउन्सिल का शैक्षणिक निरीक्षण होता तो आस पास के मंदिरों से बीमार, बूढ़े, ला चर अपाहिज भिखारी लोगों को लाकर इनडोर का कोटा पूरा किया जाता था. मान्यता के लिए जो निरीक्षण होते थे उन को संभालने- करने के लिए एक पूरी टीम अलग से का म करती थी. संस्थान मे हरियाली थी, स्टाफ था, वेतन भत्ते थे. प्रोजेक्ट थे. बा हरी दुनिया में इज्जत थी, मगर इस छोटे संस्थान में राजनीति बड़ी थी कब निदेशक का तख्ता पलट हो जाये, कब दिल्ली की सरकार किसी अन्य को चार्ज दे दे किसी को कोई पता नहीं रहता था. मगर ऊपरी शांति, ट्रांसफर नहीं हो सकता था इसलिए एक जमीनी भाई चारा था. तू भी खा मुझे भी खाने दे. बा हर दुकानें थी जो स्टाफ के सदस्यों के परिजनों की थी इस कारण सब एक दूसरे के हितों की रक्षा करते थे.
परिसर काफी बड़ा था, सरकार का लोक निर्माण विभाग इसकी देख रेख करता था. बजट के लिए हर फूल दिल्ली मुखी था. दिल्ली किसी को निराश नहीं करती थी, बस हर का म की कीमत लेती थी.
इसी शानदार संस्थान के राउंड पर डायरेक्टर सर, अपने अमले के साथ निकल पड़े है. अमले में प्रशासनिक अधिकारी, पि ए, संपदा अधिकारी, एक दो विभागाध्यक्ष, एक दो चतुर्थ श्रेणी अधिकारी, यूनियन के नेता शामिल हैं, जहाँ से भी यह लवाजमा गुजरता, तीज की सवारी की छटा देता था. लोगों को गणगौर व् तीज की सवारी की या द् आती थी. आगे आगे निशान के हाथी की तरह पी ए और उसके पीछे सवारी. कुछ के हाथ में नोट बुक भी थी साहब का हुक्म हो तो तुरंत लिख ले. मगर साहब इतने मूर्ख न थे वे अभी अभी दिल्ली से डाट फटकार खा कर आये थे. हिसाब बराबर करना था. संस्थान का राउंड एक आवश्यक कर्म कांड की तरह सम्पन्न होता था.
सबसे पहला शिकार सफाई व्यवस्था का मामला था. कूड़े के ढेर देख कर डायरेक्टर को डायरेक्टरी चढ़ गई, मन में सोचा मैं भी झाड़ू हाथ में लेकर फोटो खिंचवा लूँ, मगर तुरंत समझ में आ गया की लोग बेवकूफ समझेंगे, ये तो मंत्रियों के चोचले हैं, यह समझ में आते ही वो दहाड़े
-सफाई क्यों नहीं हुई?
सर सफाई का काम ठेके पर दिया था.
तो?
ठेकेदार भाग गया
अपना स्टाफ क्या करता है? बड़ी अजीब बात है अपना स्टाफ हजारों रूपये वेतन लेता है और का म नहीं करता, यहीं स्टाफ बाद में ठेकेदार के पास कम पैसे में पूरा काम करता है. क्यों भाई? क्यों
साथ के चमचों ने चुप रहने में ही भलाई समझी.
मुझे कल तक पूरा परिसर साफ सुथरा चाहिए. पि ए सब नोट करो.
जी सर.
और देखो कचरे का निस्तारण भी नियमों के अनुसार ही होना चाहिए, नहीं तो ये पर्यावरण वाले एन जी ओ वाले गर्दन पकड़ते देर नहीं करते.
जी सर.
समवेत स्वर में कोरस गूंजा. सब समझ गए सर का मूड ऑफ़ हो गया है. अब कुछ न कुछ जरूर होगा.
पूरा अमला विभागों की और मुड गया. पहला विभाग विपक्ष के रूप में कुख्यात सक्सेना जी का था. सक्सेना जी नियम से अपना क्लिनिक बंद कर के एक बजे बाद आते थे, यह बात निदेशक को पता थी इसी कारण वे यहाँ इस समय आ गये थे ताकि कोई कुकर भुसायी नहीं हो, वैसे भी विभाग में सब का म काज ठीक था. फिर भी वे पूछ बैठे
-सक्सेना क्लिनिक से नहीं आया उसकी क्लास कब है, हाजरी रजिस्टर लाओ, इतने प्रश्नों के बाद नव नियुक्त बंधुआ अध्यापक का हार्ट फेल होने की पूरी सम्भावना थी सो मोर्चा महिला तकनीशियन पार्वती बाई ने संभाला
-डायरेक्टर सर, हेड सर नियमित समय से आ जाते हैं.
क्लास भी लेते हैं.
मगर यह सब तुम क्यों बता रही हों उसे बोलना समय पर आये, मुझ से चैम्बर में मिले, वे जानते थे पार्वती बाई के मुंह लगने पर मुंह की खानी पड सकती है, पार्वती बाई का इतिहास व् भूगोल बड़ा ख़राब था. एक पूर्व मंत्री की कृपा द्रष्टि के कारण वे यहाँ जमी हुई थी. कोई माई का लाल पार्वती बाई को कमरा नम्बर तीन से चार में स्थानान्तरित करने की हिम्मत नहीं रखता था. संस्थान इकलौता था, अन्य शहर भेजने का तो सवाल ही नहीं उठता था.
निदेशक ने पी ए से कहा
-नोट करो सक्स्सेना जी नहीं मिले. उनको मेमो दो. बायो मेट्रिक हाजरी शुरू करो.
-मेमो पर कौन साइन करेगा सर?
प्रशासनिक अधिकारी ने पूछा
तुम कर देना.
सर मुझे क्यों मरवाते हो, आप तो दो साल रहेंगे वो तो बाद में दस साल तक छाती पर मूंग दलेंगे. हो सकता है डायरेक्टर बन जाये.
सर कच्ची नौकरी में पक्की रिस्क नहीं लेनी चाहिए –चमचा उवाच
इस तरह डरने से प्रशासन नहीं चलता शर्माजी. बनाओ मेमो मैं दस्तखत कर दूंगा.
जी सर. अधिकारी ने अपनी बला टलती देख कर राहत की साँस ली.
लवाजमा भाषा विभाग की और बढा, इस विभाग के पास केवल एक काम था राजभाषा दिवस, अधिकारी को फालतू समझ उनसे कोई भी काम लेने कि स्थायी परम्परा थी अनुवाद एक नियमित काम था. कक्ष में निदेशक के घुसते ही राजभाषा विभाग को ओक्सिजन मिल गयी. अधिकारी ने आंकड़ों का ऐसा माया जाल फैलाया की निदेशक एंड कम्पनी चारों खाने चित्त हो गयी. मौका मुनासिब देख कर अधिकारी ने एयर कंडीशनर की मांग रख दी, जिसे लेखा अधिकारी ने ही यह कह कर टर्न डाउन कर दिया की आपकी वेतन श्रंखला में ए सी नहीं मिल सकता है. राजभाषा अधिकारी ने प्रति प्रश्न दाग दिया
-आपके कैसे लगा? आपकी वेतन श्रंखला तो मेरे से भी कम है, निदेशक समझ गए मामला पटरी से उतरने वाला है सो तुरंत पुस्तकालय की और बढ़ गए. पुस्तकालय पुराना था, ढेरों किताबें थी, जर्नल्स थे, पुरानी दुर्लभ पांडुलिपियाँ थी, मगर पाठक नहीं थे, खा ली पड़ा वाचनालय पूरी व्यवस्था का मुंह चिढ़ा रहा था. निदेशक अंदर बने बाथरूम को देखने घुस गए, अंदर से पारदर्शी प्रशासन स्पष्ट दिख रहा था. झाले लगे हुए थे, पॉट गंदे पड़े थे, पानी नहीं आ रहा था. नैपकिन इधर उधर बिखरे पड़े थे.
निदेशक चिल्ला ये-ये सब क्या है?
सफाई वाले नहीं आते सर क्या करे.
आप लिख कर दीजिये.
उससे क्या हो जायगा –एक मुंहफट बोल पड़ा. यहाँ ही नहीं पूरे संस्थान के टॉयलेट्स का यहीं हाल है.
निदेशक उवाच -
पी ए नोट करो मेमो बनाओ. नहीं माने तो ससपेंड कर दो
सर सस्पेंड करने की पॉवर आपको नहीं है,
पॉवर क्या होती है? तुम कागज लाओ मंन्त्रालय को मैं जवाब दे दूंगा.
कोई कुछ नहीं बोला. बारात आगे खिसकी, भवानी की कृपा हुई, तभी एक बाबु दौड़ता हुआ आया और प्रशासनिक अधिकारी से कुछ कहा, अधिकारी ने निदेशक को बताया
सर मंत्रालय से फेक्स आया है –संसदीय लोक लेखा समिति की विजिट फिक्स हो गयी है. जानकारी मिलते ही पूरी टीम कक्ष नंबर एक में आ गई. निदेशक ने फेक्स को दो तीन बार पढ़ा. पानी पिया, अपना रक्तचाप ठीक किया और बोल पड़े.
वहां दिल्ली में क्या समस्या है जो समिति यहाँ आ रही है?
कोई कुछ नहीं बोला.
पिछले बरस भी तो कमेटी आई थी.
सर वो राज भाषा कमेटी थी. इस बार वाली कमेटी ज्यादा पावरफुल है, बजट, ग्रांट व् अनियमितताओं की जाँच यहीं कमेटी करती है.
ठीक है ठीक है, यहाँ कोई घपला नहीं है, यह तो पीड़ित मानवता की सेवा शिक्षा व् प्रबंधन का मंदिर है, यहाँ काहे की अनियमितता?
ठीक है विभागाध्यक्षों का उपवेशन आहूत करो, सभी अधिकारियों को भी मीटिंग में बुला लेना. कल ग्यारह बजे.
यह कह कर निदेशक ने सामान्य कामकाज शुरू किया. तभी डीन अकेडमिक ने प्रवेश किया व्, बोला
सर सुना है कमेटी आ रही है.
हाँ आ रही है, तुम अपने कागज –पत्र ठीक कर लो नहीं तो हो सकता है बलि का बकरा तुम को ही बना दिया जाये, वैसे भी पिछली प्रवेश परीक्षा में तुम सब मॉल अकेले ही डकार गए थे.
नहीं सर, सब को बाँटने के बाद बचा खुचा मेरे हिस्से में आया था.
मुझे सब पता है, ऑडिट वाले मेमो बना कर ले गए थे.
डीन का सर नीचे हो गया, वो चुपचाप चलते बने. निदेशक के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई. मन में बोले -
साले, सबके सब चोर, बेईमान उठाई गिरे. दिखायेंगे ऐसे जैसे सत्यवादी हरीश चन्द्र की औलाद हो.
लेकिन मेरा का म सबको बचाना है, इसीलिए बैठा हूँ यहाँ पर. बेटी की डिग्री हो जाये, बहु की डाक्टरेट बस फिर सब छोड़ छाड़ कर गंगा जी चला जाऊंगा, लेकिन तब तक?
उन्होंने शीतल जल का सेवन किया, और अपना माथा फाइलों के महा समुद्र में डुबो दिया.
मीटिंग का आयोजन -
जैसा की सरकार में नियम है किसी भी महत्वपूर्ण काम के लिए मीटिंग बुला ली जाती है. अब तक यह अफवाह या समाचार जो भी आप कहना चाहे संस्थान के पेड़ों पर बैठी चिड़ियाओं को भी मालूम हो गया था की संस्थान में संसदीय लोकलेखा समिति आ रही हैं. इस के अध्यक्ष भू त पूर्व वित्त मंत्री है तथा कई अन्य संसद सदस्य भी आ रहे हैं. सब से बड़ी समस्या आने वाली कमेटी के आवास, भोजन, यातायात व् प्रोटोकोल की थी. महिला सांसदों की भी व्यवस्था की जानी थी. समिति के अध्यक्ष याने पूर्व वित्त मंत्री को ज्यादा तव्वजो दी जानी थी, उनके नाराज़ हो जाने पर किसी के भी उपर गाज गिर सकती थी. माहौल तनाव पूर्ण मगर निदेशक के कंट्रोल में था. सभी विभाग के अध्यक्ष तथा अधिकारी पहली रो में विराजमान थे. साइड में निदेशक के पी ऐ, बाबू थे. चपरासी मुस्तैद खड़े थे.
निदेशक उवाच-संसद की लोक लेखा समिति दौरे पर आ रही हैं, अपने अपने विभागों को सुसज्जित करे. डिप्टी साहब आप नयी वार्षिक रिपोर्ट छपवाले, उसी में ऑडिट रिपोर्ट भी हो.
-लेकिन सर डिप्टी बीच में बोल पड़े –पिछला भुगतान नहीं होने से प्रेस वाले ने कुछ भी छापने से मना कर दिया है.
पिछला भुगतान क्यों नहीं हुआ? निदेशक के इस प्रश्न का जवाब लेखाधिकारी ने दिया –सर, फ़ाइल् पर ऑडिट ने पेरा बना दिया था सो भुगतान रोकना पड़ा.
लेकिन यह का म तो अर्जेंट है, होना ही हैं.
सर आप चिंता न करे, हम को ई रास्ता निकाल लेंगे. -एक अन्य अधिकारी बोल पड़े.
क्या रास्ता होगा? निदेशक ने पूछा.
सर एकल टेंडर ले लेंगे, थोडा खर्च ज्यादा होगा, सब हो जायगा सर. -लेखाधिकारी बोल पड़े.
शर्माजी आप वार्षिक रिपोर्ट व् ऑडिट रिपोर्ट को तैयार कर छपवाने की व्यवस्था देखो, कागज़ बढ़िया लो, कवर शानदार हो. समिति देख कर ही खुश हो जा ये. -निदेशक ने निर्णय दिया.
प्रोटोकोल के लिए श्री मति राघवन समिति के अध्यक्ष के लिए प्रोटोकोल अफसर रहेंगी.
सर ! मुझे किसी महिला सांसद के साथ रख दे.
नहीं यह संभव नहीं है.
सर पिछली बार भी मुझे बड़ी परेशानी आई थी.
-ये वैसे नहीं हैं
-आप को क्या पता?
बाकी के सदस्यों के लिए कनिष्ठ अध्यापक लगाये जायंगे, जिसकी सूची आपको यथा समय मिल जायगी. आवास व भोजन तथा भ्रमण आदि की व्यवस्था प्रशासन से जुड़े लोग करेंगे.
इस काम के लिए जिन्हें अग्रिम राशि की आवश्यकता हो वे नोट प्रस्तुत करे. हर का म शालीनता के साथ हो, संस्थान की प्रतिष्ठा का प्रश्न है, किसी भी प्रकार की कोताही का परिणाम निलम्बन या बर्खास्तगी हो सकता है.
-चलिए साहब चाय मंगवाइये.
माहौल को कुछ हल्का फुल्का करते हुए निदेशक बोले.
चाय के बाद निदेशक अपनी स्टाफ कार में सायंकालीन आचमन के लिए चले गए.
अध्यापक अपने अपने विभाग में जाकर गपशप करने लगे.
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