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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 12 - हाहाकार
सीताराम पटेल 'सीतेश'
हाहाकार
पात्र परिचय
अमर :-किसान रेवती :- अमर की पत्नी
सुखू :- अमर के बड़ा बेटा सोना :- सुखू की पत्नी
रसा :- अमर के छोटे बेटा रसमलाई :- रसा की प्रेमिका
धनेश :- रसा का दोस्त निनी :- अमर के बेटी
गड़बड-बड़बड़ :- जुड़े हुए भाई पंचाली :- गड़बड़-बड़बड़ की पत्नी
राहू :- सोना का भाई केतू :- सोना का छोटा भाई
अंत में
विकराल :- चार मुख वाला रोबोट
पूर्वार्द्ध
दृश्य :- 1
{एक रोबोट है, जिसका विधाता जैसे चार मुख है, वह मशीन का प्रतीक है, उसका नाम विकराल है, वह जो चाहता है, मनमानी करता रहता है, वह अपने चतुर्मुख में किसी को भी ग्रास बना सकता है, सबसे पहले गाँव के परती जमीन पर अपना डेरा लगाता है, आहिस्ता आहिस्ता पूरा गाँव ही चपट कर जाता है, गाँव अब औद्योगिक नगर बन जाता है, चारों मुँह से एक साथ बोलता है, तो ऐसा लगता है चार आवाज, चारों दिशाओं से आ रहे हैं।}
पार्श्व से ये गीत बज रहा है ।
गीत नं.-1
हाहाकार, हाहाकार , चारों ओर मची है हाहाकार।
आज आम आदमी खा रहा है, मँहगाई की फटकार।।
मजदूर और किसान कर रहे हैं, प्रतिदिन आत्मघात,
इनको कैसे नहीं देख रही है, हमारी अँधी सरकार।।
अहिंसा के इस देश में ,घूम रहे हैं हिंसक भेड़िए कार।
दोनों हाथों से खा रहे हैं लड्डू ,करे जो भ्रष्टाचार।।
लील लिया है सारी धरती, आज प्रौद्योगिक विकास,
संभल के रहना मेरे यारों, आज उन्हीं की है सरकार।।
क्षिति जल पावक गगन समीर,सब पर उनका अधिकार।
जब चाहें तब किसी को ,कर सकते हैं ये बलात्कार।।
कालाधन, मंहगाई,आतंकवाद,की नैया में सवार होकर,
करना चाह रहे हैं सफेद, भ्रष्टाचार की वैतरणी पार।।
गोरों के बीजों से ले रहे हैं ,यहाँ एक से एक अवतार।
खुले आम घूम रहे हैं यहाँ ,सब साले नरभक्षी खूँखार।।
अपने लोगों को ही नहीं छोड़ते, ये व्यभिचारी ,अन्यायी,
रिश्ते नाते सभ्यता संस्कृति, सब इनके लिए व्यापार।।
दृश्यः-2
{यह हीरागाँव, जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य भरपूर था, अब धुआँ के कालिमा में कोयलानगर बन गया है, इसी हीरागाँव में अमर नाम का एक किसान रहता था, उसके बेटे और बेटी के साथ खुशी से रहता था, चार बजे से उठकर अमर गाय, भैंस ,बैल, भैंसा को चारा पानी दे रहा है, रेवती चाय बना रही है, चाय बनाकर अपने बेटे और बेटी को जगाती है।}
रेवती :- सुबह हो गई, सूर्यनारायण उदित हो गए हैं और तुम लोग सोते रहोगे, आज तुम लोगों को हल जोतने नहीं जाना है।
सुखू :- अम्मा, ये तुम्हारा सूर्यनारायण भी बहुत जल्दी उदित हो जाते हैं।
{ फिर आँख मलते हुए जागता है।}
रसा जल्दी जाग, चाय बन गया है।
रसाः- बन गया है तो बनने दो, चाय तो रोज जल्दी ही बन जाती है, भैया सोने दो न, रात बहुत देर बाद नींद लगी थी, मैं जाग रहा हूँ, अम्मा की बात सुन रहा हूँ, मुँह ओढ़कर पड़ा हूँ।
सुखू :- रसा तू सो जाएगा, तो हल जोतने कौन जाएगा, हमारा अन्न खा खाकर हमारा देश विकास करेगा, रसा जाग और निनी को जगा।
निनी :- मैं अम्मा के साथ जाग गई हूँ, मैंने ब्रश भी कर लिया है।
सुखू :- हमारी बहन तो बहुत होशियार निकली, जा बहन चाय पानी ला दे।
निनी :- आज चाय पानी तो ला दूँगी, पर भैया उसे तू कब लाएगा?
सुखू :- किसकी बात कह रही है, मेरी बहना।
निनी :- अँगना में आए हमार भाभी, भाभी की और किसकी?
सुखू निनी का कान पकड़ता है।
सुखू :- क्या बोली ? फिर से बोल तो।
निनी :- मैं क्या बोलूँगी, किसको बोलूँगी, मेरे कान जो पकड़े हो, मेरे कान छोड़ो, फिर बोलती हूँ।
सुखू :- लो अब छोड़ दिया, अब बोलो।
निनी :- अब ठेंगा, जा नहीं बोलती।
ख्अँगूठा दिखाकर भाग जाती है।,
अमर :- निनी बेटी किसको नहीं बोलेगी?
सुखू :- कुछ नहीं पापा।
रसा :- भैया झूठ बोल रहे हैं पापा, बता दूँ भैया?
सुखू :- खींच के दूँगा।
रसाः- किसको खींच के दोगे हमारी भाभी को।
सुखू :- तुझे खींच के मारूँगा और किसे खींच के मारूँगा?
रसा :- हमारी भाभी को।
रेवती :- उसे मारेगी तो बेचारी किसलिए आएगी?
अमर :- अब रोटी खा लिए, चाय पानी पी लिए, अब हल निकालो।
दृश्यः-3
[गड़बड़ बड़बड़ दोनों कमर से उपर जुड़े हुए हैं, उनके पास चार शेर है, उसे कुत्ता के समान अपने महल में खुला छोड़ देता है, वे महल के उपर घूमते रहते हैं, और जोर जोर से दहाड़ते रहते हैं, कोई थोड़ा सा भी गलती करे, तो उसे महल के उपर छोड़ देते हैं, उनके लिए रोज एक पशु वहाँ छोड़ देते हैं, यहाँ जो भी दो नंबर का काम होता है, इसी के इशारे पर होता है, वही जुआघर चला रहा है, वही चरस का व्यापार कर रहा है, वही शराब बनवा रहा है, वही सोना का व्यापार करता है, वही डकैती भी करवाता है, उसके राहू और केतू नाम के दो बॉडीगार्ड हैं। जुआघर में रसमलाई नाच रही है।]
गीत नं : 2
कोरस :-
छोरी रसमलाई ओ, छोरी रसमलाई ओ
देख के तुझे सभी ललचाई ओ
लगे सभी चाट चाट खाई ओ
ख्चाशनी के कढ़ाई से रसमलाई निकल कर बाहर आती है,
रसमलाईः-
मैं हूँ छोरी रसमलाई रे, मैं हूँ छोरी रसमलाई रे
देख के मुझे सभी ललचाई रे
लगे सभी चाट चाट खाई रे
कोरस :-
रसगुल्ला अँखियाँ तेरे, चिनीलाई हंसियाँ ओ
राजभोग के उपर गुलाबजामुन छतिया ओ
रसमलाई :-
रसगुल्ला अँखियाँ मेरे, चिनीलाई हंिॅसयाँ रे
राजभोग के उपर गुलाबजामुन छतिया रे
सभी के खाओं खाओं कहाई रे
मैं हूँ छोरी रसमलाई रे, मैं हूँ छोरी रसमलाई रे
देख के मुझे सभी ललचाई रे
लगे सभी चाट चाट खाई रे
कोरस :-
छोरी रसमलाई ओ, छोरी रसमलाई ओ
देख के तुझे सभी ललचाई ओ
लगे सभी चाट चाट खाई ओ
अइरसा ओंठ, मठली नाक, पैठा के दाढ़ी ओ
लवंगलता नाभि, बटासा जाँघ, जलेबी साढ़ी ओ
रसमलाई :-
अइरसा ओंठ, मठली नाक, पैठा के दाढ़ी रे
लवंगलता नाभि, बटासा जाँघ, जलेबी साढ़ी रे
देख के मुझे सभी के लार टपकाई रे
मैं हूँ छोरी रसमलाई रे, मैं हूँ छोरी रसमलाई रे
देख के मुझे सभी ललचाई रे
लगे सभी चाट चाट खाई रे
कोरस :-
छोरी रसमलाई ओ, छोरी रसमलाई ओ
देख के तुझे सभी ललचाई ओ
लगे सभी चाट चाट खाई ओ
ठेठरी कान, बारा माथ, भजिया गाल ओ
पेट चीला, पीठ अंगाकर, करी है बाल ओ
रसमलाईः-
ठेठरी कान, बारा माथ, भजिया गाल रे
पेट चीला, पीठ अंगाकर, करी है बाल रे
मैं हूँ छोरी नमकीन सेवाई रे
मैं हूँ छोरी रसमलाई रे, मैं हूँ छोरी रसमलाई रे
देख के मुझे सभी ललचाई रे
लगे सभी चाट चाट खाई रे
कोरस :-
छोरी रसमलाई ओ, छोरी रसमलाई ओ
देख के तुझे सभी ललचाई ओ
लगे सभी चाट चाट खाई ओ
गुझिया अंजुरी, पपड़ी नाखून, पेड़ा पाँव ओ
बूँदी सनडाईल पेड़ा है तेरे छाँव ओ
रसमलाईः-
गुझिया अंजुरी, पपड़ी नाखून, पेड़ा तरपाँय रे
बूँदी सनडाईल पेड़ा है मेरे छाँव रे
मैं हूँ छोरी ढाबा मिठाई रे
मैं हूँ छोरी रसमलाई रे, मैं हूँ छोरी रसमलाई रे
देख के मुझे सभी ललचाई रे
लगे सभी चाट चाट खाई रे
कोरस :-
छोरी रसमलाई ओ, छोरी रसमलाई ओ
देख के तुझे सभी ललचाई ओ
लगे सभी चाट चाट खाई ओ
रसमलाई :-
मैं हूँ छोरी रसमलाई रे, मैं हूँ छोरी रसमलाई रे
देख के मुझे सभी ललचाई रे
लगे सभी चाट चाट खाई रे
कोरस :-
छोरी रसमलाई ओ, छोरी रसमलाई ओ
देख के तुझे सभी ललचाई ओ
लगे सभी चाट चाट खाई ओ
दृश्य :- 04
[अमर रेवती को बाँहों में भरता है।]
रेवती :- सुखू के पापा निनी देख रही है।
अमर :- कहाँ देख रही है?
रेवती :- मैंने झूठ बोली, लड़के बड़े हो गये हैं और आप ऐसे कर रहे हैं।
अमर :- बड़े हो गए हैं, इसका मतलब हमें प्यार नहीं करना चाहिए?
रेवती :- तो क्या आजकल के लड़को के समान खुल्लम खुल्ला करेंगे।
अमर :- तू बोली और निनी बेटी आ गई।
रेवती :- आ बेटी तेरे पापा कह रहे थे।
निनी :- पापा क्या कह रहे हो?
अमर :- मैं कह रहा था बेटी, तू पढ़ाई में खूब ध्यान लगाना।
निनी :- पापा मैं कक्षा में प्रथम आई हूँ।
अमर :- शाबास बेटी, आखिर बेटी किसकी है?
रेवती :- मेरी है और किसकी है?
अमर :- मेरा है।
रेवती :- मेरी है पूछ लो अपनी लाडली से।
अमर :- पूछ लो मेरी निनी बेटी से।
रेवती :-तू ही बता तू किसकी बेटी है?
अमर :- निनी बेटी तू ही बता दे, किसकी बेटी है?
निनी :- बताउँ, बताउँ।
दोनों :- हाँ हाँ बताओ।
निनी :- मैं वाल्मीक की बेटी हूँ।
दोनों :- वाल्मीक के?
निनी :- हाँ हाँ वाल्मीक के।
अमर :- किसने कहा?
निनी :- आप ही ने तो कहा था ,उस दिन, पापा आप भूल गए।
अमर :- हमने झूठ बोला था निनी बेटी
निनी :- तो कौन मैं सच बोल रही हूँ?
ख्तीनों के आँखों में आँसू निकलता है।,
रेवती :- फिर कभी भी ऐसी नहीं बोलेगी, बेटी, मैं तुझे नौ माह कोख में रखी थी, मैने ही तुझे जन्म दिया है।
निनी :- जानती हूं अम्मा, इस धरती में आप लोगों जैसा कोई नहीं होंगे।
अमर :- तेरे समान भी यहाँ बेटी कोई नहीं होंगे।
रेवती :- तू मेरी लाडली बेटी, धनलक्ष्मी है।
अमर :- तू ठीक कहती है रेवती, हमारी बेटी धनलक्ष्मी है।
दृश्य :- 05
अमर और रेवती सो रहे हैं,
रेवती :- सुखू के पापा।
अमर :- क्या है, रसा की अम्मा।
रेवती :- हमारे घर में भी एक बेटी होती।
अमर :- लवकुश जैसे दो बेटे हैं, बेटी की चाहत तुम्हारे मन में कैसे आई?
रेवती :- बेटी घर का उजियाला होती है, बेटी के बिना घर में लक्ष्मी नहीं आते हैं, बेटा बेटी दोनों के रहने पर घर शोभा पाता है।
अमर :- मैं भूल गया था, बेटी अपने माँ बाप को कभी नहीं भूलती है। बेटा बहू माँ बाप को भूला देंग,े पर बेटी अपने नैहर को कभी भी नहीं भुलाएगी। मैं तुम्हारा कहना जरूर मानूँगा, हमारे घर में बेटी जरूर आयेगी, हमारी धनलक्ष्मी होगी।
दृश्य :- 06
[गड़बड़ बड़बड़ अपने महल में बैठे हैं, पंचाली उनके बीच में बैठी है।
जमीन पर राहू और केतू बैठे हुए हैं।]
गड़बड़ बड़बड :- ख्डबल आवाज में, राहू हमारा विकराल क्या कर रहा है?
विकराल :-ख् चार आवाज में ,तुमने मुझे पुकारा आका, मैं आ गया, क्या हुक्म है मेरे आका।
गड़बड़ बड़बड :- अभी तुम्हारी जरूरत नहीं है, अभी तो हमारे लिए राहू केतू ही काफी है, हम खाली जानना चाह रहे थे कि आप कहाँ है?
विकराल :- मैं अभी नदी किनारे का उपजाउ जमीन को खा रहा हूँ, जितना भी खाउँ मेरे आका मेरा पेट नहीं भर रहा है।
गड़बड़ बड़बड :- भरेगा, भरेगा, बहुत जल्दी ही भरेगा, राहू और केतू मेरे पास बहुत जल्दी ही अच्छे आदमी का लिस्ट चाहिए, उन लोगों को हमारे गिरोह में शामिल करना है, फिर हमारा विकराल का पेट बहुत जल्दी ही भर जाएगा।
केतू :- लिस्ट है हमारे नजर में, उसमें सबसे पहले नंबर अमर परिवार है।
राहू :- वे लोगों के यहाँ सुमति है, वे लोग बड़े सुख चैन से जी रहे हैं।
गड़बड़ बड़बड :- उनका सुख चैन तोड़ने का दिन आ गया, सोना को लाओ और अमर के बड़ा लड़का सुखू को उसके प्रेमजाल में फँसाओ।
राहू केतू :- जी हुकुम हमारे मालिक।
दृश्य :- 07
अमर :- रेवती इतना प्रेम करो, कहीं नजर न लग जाए।
रेवती :- नजर क्यों लगेंगे, नजर मेरे दुश्मन को लगे।
अमर :- कितने मजा से हमारा जिन्दगी कट रहा है, राम लक्ष्मण के समान हमारे दोनों बेटा, धनलक्ष्मी के समान हमारी बेटी।
रेवती :- आप तो कविता कर रहे है, सुखू के पापा।
अमर :- कविता सुनाउँ, सुनोगी।
रेवती :- मुझे लाज लगती है जी।
अमर :- किसको लजा रही है? हम दोनों ही तो हैं।
रेवती :- आप उसी कविता को बार बार सुनाते रहते हैं।
अमर :- यही कविता है, तो पगली हम अभी तक जवान है, वरना कब के हम खाट पकड़ दिए होते।
पीसा जाता है सील लोढ़ा में, लाल लाल टमाटर।
लालचटनी को देखकर,लार चुचवाते है सारा घर।
गोल गोल टमाटर, लेकर आती है नई बहुरिया।
लंबा लंबा मिर्च,उसमें डालती है नई बहुरिया।
सील लोढ़ा खेले होली ,भींग गई नई बहुरिया।
लाल मुख देखकर,सभी हँसते हैं नई बहुरिया।।
दृश्य :- 08
[अमर पैदल जा रहा है , केतू पेड़ के नीचे रो रहा है।]
अमर :- क्यों रो रहे हो भैया?
ख्केतू और जोर से रोता है।,
केतू :- तुम जानकर क्या करोगे भैया ,मेरा दुःख बहुत भारी है।
अमर :- चाहे कितना भी भारी दुःख हो, कहने से हल्का हो जाता है, भैया बताओ, हल्का हो जाएगा।
केतू :- आप पूछ रहे हो तो बता रहा हूँ, और किसी से मत बताना।
अमर :- नहीं बताउँगा और किसी से। बताओ अब मुझे।
केतू :- मेरी पत्नी का 50 ग्राम सोना का चंपाकली माला गुमा डाला।
अमर :- कैसे भैया?
केतू :- कैसे भैया बोल रहे हो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ।
अमर :- नाराज कैसे हो रहे हो भैया, मैं कह रहा था, कैसे गुमा डाले भैया।
केतू :- अभी दुकान से नया खरीद कर ला रहा था, यहाँ पर थोड़ा सुस्ताया, आँख लग गई और ये हादसा हो गया।
अमर :- बहुत भारी दुख है भैया, चलो खोजते हैं।
केतू :- चोर ले गया, उसे अब कहाँ पाएँगे, मेरे नसीब में जो था, वो हो गया।
ख् रोता है, अमर आगे चला जाता है, राहू एक पेड़ के नीचे हँस रहा है।,
अमर :- तुम किसलिए हँस रहे हो भैया।
राहू :- मैं क्या बताउँ भैया, मुझे आज एक बहुत भारी चीज मिला है।
अमर :- क्या चीज मिला है, भैया?
राहू :- मुझे एक चंपाकली मिला है।
अमर :- कहीं तुमने उसका चोरी तो नहीं किया है। मैंने अभी अभी एक आदमी को वहाँ रोते हुए देखा है।
राहू :- तुम्हें उससे मतलब, क्या वह तुम्हारा भाई है?
अमर :- नहीं तो।
राहू :- फिर तुम्हें क्यों लग रहा है?
अमर :- नहीं भैया ,मुझे क्यों लगेगा।
राहू :- तुम्हें मालूम हो गया है, चलो फिफ्टी फिफ्टी कर लेते हैं।
अमर :- कैसे फिफ्टी फिफ्टी करोगे?
राहू :- ये 50 ग्राम का है,इसे बाँट लेते हैं।
अमर :- बुरा न मानोगे तो, मैं कुछ कहना चाह रहा हूँ।
राहू :- अब तो हम लोग सहयात्री हो गए बुरा क्यों मानूँगा।
अमर :- ये मेरे पास 25 ग्राम का माला है, इसे तुम ले लो।
राहू :- ठीक कह रहे हो भैया, मैं इसमें बुरा क्यों मानूँगा?
ख्अमर अपना गहना दे देता है, राहू का गहना लेकर चला जाता है। राहू और केतू मिलकर खूब हँसते हैं।,
दृश्य :- 09
गड़बड़ बड़बड :- राहू और केतू आज कौन सा तीर मारे हो कि खुशी से उछल रहे हो।
राहू :- मालिक सुनेंगे तो आप भी खुशी से उछल जाएँगे।
गड़बड़ बड़बड :- पहेली न बुझाओ, मुझे जल्दी बताओ।
केतू :- आप बहुत जल्दी ही गुस्सा हो जाते हैं, आप ही के प्लान के अनुसार हो रहा है, हमने आज सुखू के पापा को उल्लू बनाया है,।
राहू :- वह सीधा किसान अपने 25 ग्राम सोना के लिए कितना तड़फता रहेगा।
गड़बड़ बड़बड :- ऐसे लोगों को अपनी सच्चाई का ईनाम देते जाओ, इन जैसे लोभी लोगों को हमेशा तुम लोग लूटते रहो और मेरा जेब भरते रहो।
राहू केतू :- जो हुकुम मेरे मालिक।
गड़बड़ बड़बड :- क्या हम बहरे हैं जो इतने जोर से चिल्ला रहे हो।
राहू केतु :- नहीं मालिक।
दृश्य :- 10
[अमर आकर रेवती को बता रहा है।]
अमर :- रेवती , रेवती, कैसे नहीं सुन रही हो?
रेवती :- आज कैसे बहुत ही खुश लग रहे हो? निनी के पापा।
अमर :- बहुत ही खुशी की बात है। निनी के मम्मी।
रेवती :- कुछ बोलोगे कि पहेली बुझाते रहोगे।
अमर :- रेवती के मम्मी! आज मुझे दो के जगह चार मिला है।
रेवती :- कैसे?
अमर :- मैं निनी के लिए दो तोला सोना का चार फोकला बनवा रहा था, वो मुझे चार तोला का मिल गया।
रेवती :- साफ साफ बताओ क्या बात है? कहीं तुम्हें राहू केतू ठग तो नहीं लिए?
अमर :- उन्हें तुम कैसे जानती हो?
रेवती :- उनको मैं कैसे नहीं जानूंगी, वो लोग हमारे चाचा को भी ठगे थे। एक आदमी रो रहा था।
अमर :- हाँ हाँ रो रहा था।
रेवती :- फिर एक आदमी हँस रहा था।
अमर :- हाँ हाँ हँस रहा था।
रेवती :- हम बचपन से उन्हें जान रहे हैं।
ख्रेवती चिल्ला चिल्ला कर रोती है। हमारा कर्म फूट गया। हमें ठग लोग लूट लिए। उनके रोने को सुनकर निनी आती है।,
निनी :- क्यों रो रही हो ,मम्मी?
ख्रोते रोते चुप हो जाती है।,
रेवती :- तुम्हारे पापा को ठग लोग ठग लिए, बेटी।
निनी :- कौन लोग ठग लिए मम्मी?
रेवती :- राहू और केतू दोनों भाई।
अमर :- मैं उन दोनों को नहीं छोड़ूँगा।
निनी :- वो लोग पूरा ठग है, उनके चर्चे हर जगह होते हैं। उस नंगे आदमी से लड़कर क्या करेंगे, पापा।
रेवती :- ठीक कह रही हो निनी बेटी। उनका तो मान मर्यादा नहीं है, तो क्या हमारा भी नहीं है। नंगे के साथ हम भी क्यों नंगे होंगे।
दृश्य :- 11
गड़बड़ बड़बड :- सुखू तुम आजकल नहीं दिख रहे हो।
सुखू :- कहाँ भैया, खेत की तरफ पानी देखने जाना पड़ता है, उसी की तरफ ज्यादा रहना पड़ता है।
गड़बड़ बड़बड :- इतना पट्ठा जवान हो गए हो और खेत को ही देखते रहोगे।
सुखू :- हम किसान है भैया, खेती हमारी जीविका है, नौकरी वाले होते तो अलग बात है।
गड़बड़ बड़बड :- हम कहाँ कह रहे हैं कि तुम नौकरी वाला हो, खेत को ही देखते रहोगे कि अपने लिए भी कोई खेत लाओगे।
सुखू :- मैं नहीं समझ पाया भैया।
गड़बड़ बड़बड :- तू बहुत ही बेवकूफ हो, सुखू तूझे शादी विवाह करना है कि नहीं।
सुखू :- उसे तो मेरे अम्मा पापा सोचेंगे, भैया।
गड़बड़ बड़बड :- अब वो जमाना नहीं रहा सुखू, शादी विवाह को माँ बाप सोचेंगे, तू जवान हो गया है और तुम लोग अच्छा खा पी रहे हो, तेरे लिए लड़की की कोई कमी नहीं है तू अभी कहेगा तो तेरे लिए लड़की ला दूँगा, सोना चाय लेकर आना, मेरी मौसी की लड़की है, कहोगे तो अभी बाजा बजवा दूँगा।
ख्सोना चाय लेकर आती है, उसके रूप को देखकर मोहित हो जाता है, उसे एकटक देखते रहता है। ,
सोना :- चाय।
ख्सुखू नहीं सुनता है।,
गड़बड़ बड़बड :- तीर निशाना पर लगा है, सुखू ए सुखू, सोना चाय दे रही है सुखू।
ख्सुखू हड़बड़ाता है, उसके हाथ से चाय गिर जाता है, सुखू संकुचाता है।,
गड़बड़ बड़बड :- कोई बात नहीं, हड़बडी में गड़बड़ी हो ही जाता है, सोना पोंछा मार दे, तेरे भाभी को चाय बनाने के लिए कहता हूँ।
ख्वह चला जाता है, सोना पोंछा मारती है, उसका आँचल गिर जाता है, उसके वक्ष दिखते रहते हैं, उसे देखकर उसका धड़कन बढ़ जाता है, सोना मुस्कुराती रहती है, वह अपने वक्ष को और ज्यादा दिखाती है, पास आकर अपनी छाती से छू देती है, सुखू उसे बाँहों में ले लेता है, उसका माथा, गाल को को चूमने लगता है, सोना उसके ओठों को चूमने लगती है।,
गीत नं :- 3
सुखू :- गुम हो गया, गुम हो गया
सोना :- क्या
सुखू :- मेरा जीव
सोना :- चल हट पागल, क्या कोई जीव को गुमाएगा, झूठ बोलता है।
सुखू :- झूठ नहीं बोल रहा हूँ पगली, सोलह आना सच कह रहा हूँ,
मेरे नयन से निकला और तुम्हारे नयन में समा गया।
सोना :- चल झूठा मेरे नयन में समाता तो पता नहीं चलता।
सुखू :- तेरे नयन में समाकर तेरे दिल में छिपा है।
सोना :- चल झूठा मेरे दिल में छिपता तो पता नहीं चलता।
सुखू :- देखो तुम्हारा छाती कैसे कबूतर सा फड़फड़ा रहे है?
सोना :- फड़फडा कहाँ रहे हैं, मैं तो सांस ले रही हूँ।
सुखू :- चल झूठी मेरा जीव मर रहा है।
सोना :- क्या कह रहे हो मेरे समझ के बाहर है।
सुखू :- समझ के बाहर चल दोगी तो मेरे जीव का क्या होगा?
उसे पानी पिलाओ और उसे जिलाओ।
सोना :- पानी पानी रट रहे हो, कहाँ रखी हूँ पानी?
सुखू :- पगली तू अपने आप को नहीं जान पा रही है,
तू गंगाजल है, प्रेम का गंगाजल, तुझे पीकर मैं तर जाउँगा।
तेरे होंठ पिलाने को लपलपा रहे हैं।
ख्दोनों एक दूसरे चूमते है।,
मुझे पिलाई और मुझे मार दी।
सोना :- मैं भी जीउँगी और तुम्हें भी जिलाउँगी।
सुखू :- हाँ पगली हम जीएँगे, हम मिलेंगे।
गड़बड़ बड़बड :- सुखू, ये क्या हो रहा है,ये हमारी बहन है, जो हमारी बहन की तरफ आँख उठाकर देखता है, उसकी हम आँखे नोच लेते हैं, तुम विवाह कर लो, फिर ये सब रोज करते रहना, शादी में मिलन की आजादी है।
दृश्य :- 12
सुखू :- अम्मा
रेवती :- क्या कह रहे हो बेटा।
सुखू :- अम्मा मैं कह रहा था, तू कितने दिन खाना पकाएगी।
रेवती :- मैं कहाँ खाना पकाती हूँ, खाना तो निनी पकाती है।
सुखू :- अम्मा वो कितने दिन खाना पकाएगी, फिर वो परगोत्र में भी तो चली जाएगी।
रेवती :- मेरी धनलक्ष्मी बेटी जितने भी दिन घर में रहे।
सुखू :- वो तो ठीक है अम्मा, घर में एक और धनलक्ष्मी आ जाएगी तो नहीं बनेगा,
रेवती :- मैं नहीं समझ पा रही हूँ, क्या कहना चाह रहा है, साफ साफ कह ना।
सुखू :- साफ साफ ही तो कह रहा हूँ, अम्मा, तू नहीं समझ पा रही है, तेरे काम में मदद करने के लिए बहुरानी लाने के लिए कह रहा था।
रेवती :- बहू लाने के बाद हम बहा थोड़े जाएँगे।
सुखू :- ऐसी कैसी बोल रही हो अम्मा, वो भी तो किसी की बेटी होगी, तू भी तो किसी की बेटी है, नारियाँ सृजन का आधार है अम्मा, भूमि के सार और सुन्दरता में अपार हैं, तेरी ममता के छाँव में जो अपार सुख मिला है, वैसे ही अपार सुख उसे भी मिलेगा, सुख में झगड़ा का स्थान कहाँ है, अम्मा तू तो देवी है देवी।
रेवती :- बेटा मुझे अम्मा ही रहने दे,कहीं, देवी बनकर पत्थर न बन जाउँ।
सुखू :- पत्थर तुम्हारे दुश्मन बने अम्मा, गड़बड़बड़बड़ कह रहे थे ।
ख्अमर आता है।,
अमर :- क्या कह रहे थे बेटा?
सुखू :- ख्डरते हुए , आप कब आए पापा?
अमर :- अभी ही तो आया हूँ।
सुखू :- अपने मौसी के बेटी से मेरा रिश्ता करना चाह रहे हैं।
अमर :- तुमने क्या कहा?
सुखू :-मैं क्या कहा? मैंने कहा अम्मा पापा की मर्जी, वो जहाँ चाहें वहाँ मेरी रिश्ता पक्की कर सकते हैं।
अमर :- तूने बिल्कुल ठीक कहा,बेटा, मैं तेरे लिए सिरीआगर की गौटिया के बेटी से रिश्ता करूँगा।
सुखू :- गौटिया के बेटी से रिश्ता करोगे कि गौटिया के धन से।
अमर :- बेटी से ही विवाह करेंगे बेटा।
सुखू :-फिर धन की बरसात होगी।
अमर :- मैंने ऐसे कहा।
सुखू :- ऐसे ही कहा है, अगर ऐसे नहीं कहते तो सोना से मेरी शादी नहीं कर देते।
अमर :- सोना कौन है सोना, जो हमारे सोना बेटा को घायल कर दिया है।
सुखू :- उनकी बहन सोना और कौन सोना।
अमर :- बात इतनी बढ़ गई है, तो हमसे नाटक करने की क्या जरूरत है।
सुखू :- बहुत ही खुबसूरत है पापा।
अमर :- जवानी में सभी खुबसूरत लगते हैं, चार दिन की चाँदनी में मत भूला बेटा, हमारे पास रिश्ते की कमी नहीं है बेटा, उन्हें तू अच्छी तरह से जानता है, उनकी बात में चलोगे तो बाद में बहुत पछताओगे।
सुखू :- रिश्ता तो उपर से बन कर आते हैं पापा, जो वो करेगा वही होगा, विधाता के लेख को कौन मिटा सकता है।
अमर :- तुम ठीक कह रहे हो बेटा, जो होहिहै, सो राम रचि राखा।
रेवती :- ठीक कह रहे हो सुखू के पापा, लड़का बढ़ गया है, अपना लाभ हानि सब समझ रहा है, हमारा जितना फर्ज था, उसे निभा दिए, सोना सुन्दर है, रूप रंग हमारे निनी से बीस होगें। गुण को हमारा सुखू जान ही रहा है और जोड़ी उपरवाला बनाता है।
उत्तरार्द्ध
दृश्य :- 13
[विकराल रोबोट गाँव के गाँव उजाड़ दे रहा है, गाँव वाले अपने गाँव में विस्थापित की जिन्दगी जी रहे हैं, कोई घर बना रहे हैं तो कोई उसे रोकने के लिए एड़ी चोटी एक कर रहे हैं, पर इस विकराल दानव को कोई रोक नहीं पाते हैं, जो कोई भी इसका सामना करना चाहे, वो काल का ग्रास बन जाता है। यह छोटा से छोटा आकार हो सकता है, जिसे कोई नहीं देख सकते हैं, यह इतना विशाल भी हो जाता है, इसके मुख में हर कोई समा जाते हैं, सारा गाँव श्मशान नजर आता है। इसका धुआँ सारा विश्व में फैल रहा है, और सभी पेड़ पौधे मनुष्य पशु पक्षी सभी इसके प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। दूसरी तरफ सोना और सुखू का विवाह हो रहा है, दोनों विवाह के बाद सुहागरात क कमरे में आते हैं, सुखू सोना का हाथ छूना चाहता है।]
सोना :- तुम मुझे छू नहीं सकते हो।
सुखू :- ये क्या कह रही हो, मेरी सोनी, तुम मेरी पत्नी हो, तुझे कैसे नहीं छू सकता हूँ। शादी के पहले छुआ तो कुछ नहीं बोली और आज सुहागरात को नहीं छूने को कह रहे हो।
सोना :- मुझे इन भिखमंगों के साथ रहना पसंद नहीं आ रहा है।
ख्उधर विकराल एक नए मकान को तोड़ डालता है।,
सुखू :- तू ये क्या कह रही है सोना, ये लोग मेरे माँ -बाप, भाई-बहन हैं, मैं माँ के दूध पीकर बड़ा हुआ हूँ।
सोना :- तो जाओ, अपनी माँ का दूध पीते रहो, मुझसे शादी करने की क्या जरूरत थी।
ख्उधर विकराल एक माँ को मार डालता है।,
सुखू :- पापा का प्यार पाकर मैं जवान हुआ हूँ, उन्हें तुम छोड़ने के लिए कह रही हो,़ जिन्होंने खाने से पहले अपना पहला कौर मुझे खिलाया है, मैं अपने भाई बहन से सबसे बड़ा हूँ, सबका मैनें प्यार और सम्मान पाया हूँ, उन्हें तुम छोड़ने के लिए कह रही हो, सोनी मैं उन्हें मैं कैसे छोड़ सकता हूँ।
सोना :- बस ऐसे ही वाक्य अर्जुन ने कहा था। तब जानती हो योगेश्वर ने क्या कहा था।
सुखू :- तुम घर एक मंदिर को महाभारत बनाना चाहती हो।
सोना :- ये लोग तुम्हारे क्या क्या हैं, मैं नहीं जानती, पर मुझे ये लोग अच्छे नहीं लगते, तुम्हें जो भी पसंद हो उसे चुन लो, फिर ये न कहना मैंने तुम्हें चेताया नहीं।
ख्विकराल पेड़ पौधों की अँधाधुँध कटाई करने लगता है।,
सुखू :- सोना तू तो सचमुच का सोना हो गई।
सोना :-सोना हूँ तो सोना कैसे नहीं होउँगी।
सुखू ::- तू मेरी अ़र्द्धांगिनी और मैं तुम्हारा कहना कैसे नहीं मानूँगा। अब तो छू सकता हूँ मेरी रानी।
सोना :- अभी कहाँ छू सकते हो, मेरे राजा,अभी तो आधा हुआ है, इनसे बँटवारा लो, अलग से घर लो, वहीं अपना सुहागरात मनाएँगे मजा से।
ख्विकराल नदी पर बाँध बना देता है ,और नदी का सब पानी पी जाता है।,
सुखूः- आदमी क्या कहेंगे मेरे रानी?
सोना :- क्या कहेंगे?
सुखू :- मेरे सोना रानी को बदनाम करेंगे, कहेंगे आते ही घर का बँटवारा करा दिया।
ख्विकराल सड़क को तोड़ डालता है, और नहर बना देता है,आदमियों का आना जाना बंद हो जाता है।,
सोना :-सोना आदमियों से नहीं डरती, सोना जो करती है अपने मन से करती है।
सुखू :- तू ठीक कह रही है सोना रानी। विकास के लिए आदमियों से डरेंगे तो हो गया विकास। मैं भी तेरे पीछे पीछे चलूँगा, तभी हमारा अपना घर चल पाएगा। तुझे पाने के लिए मैं एक क्या सौ घर का बलिदान दे सकता हूँ।
सोना :- सोना के आने पर तुम्हारे घर में चमक आएगा, मेरे राजा।
दृश्य 14
रसमलाई जुआघर में नाच रही है,
गीत नंः-4
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी।
गोदरी मा दूनों सूते बर गिन।
एक दूसर अपन नजर मिलाइन।
ठकुरदे देवे बों बों भेरी भेरी।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी।
सूते ला छाँड़ खेदे बर आईन।
छेरी जमो में में नरियाईन।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी।
जमो छेरी हावय बड़ लपरही।
नी मानय कतको सूंटी परही।
में में कर गिराईन लेड़ी लेड़ी।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी।
तुमन ला खवोंव बोईर पान।
अउ खवावों पीपर पान।
बने रहंय मेंहर तुंहर चेरी चेरी।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी
रतिहा सूद साद सूता।
बिहनिहा जाबो कमाय बूता।
में में नरियाथा घेरी घेरी।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी,
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी
छेरी चराई मा हावय बड़ मजा।
नी जानन कतका हामन बजा।
चढ़थन गेड़ी खेलथन गेरी गेरी।
छेरकिन चराये छे छेरी, छे छेरी।
रतिहा सूतय ना बिहनिया, में में नरियाये घेरी घेरी।
दृश्य :- 15
रसा :- रसली, तुम्हारा नाचना मुझे अच्छा नहीं लगता।
रसमलाई :- क्यों अच्छा नहीं लगता, मैं तो बहुत अच्छी नाचती हूँ।
रसा :- मैं नहीं जानता, पर मुझे अच्छा नहीं लगता।
रसमलाई :- सभी को तो अच्छा लगता है।
रसा :- लगता होगा।
रसमलाई :- सभी मेरे पास परवाने जैसे खींचे चले आते हैं।
रसा :- वो तेरे जवानी को चाटने आते हैं, शायद यही है जो मेरे को अच्छा नहीं लगता।
रसमलाई :- रसा तुझे अच्छा नहीं लगता, तो क्या अपनी जीविका को छोड़ दूँ।
रसा :- जीविका, जीविका, जीविका, रसली तेरी और कोई जीविका नहीं है।
रसमलाई :- तू तो जानता है रसा, हमारी जाति क्या है, हम केंवार जाति के हैं, हमारे पास और कोई जीविका नहीं है, हमारे जाति में बेटी होने पर खुशी मनाते हैं, थाली बजाकर नाचते गाते हैं, जानते हो क्यों?
रसा :- नहीं जानता बता।
रसमलाई :- बेटी नाच गाकर पूरा परिवार का पालन पोषण करेगी, मैं अपने माँ बाप की एकलौती बेटी हूँ, मैं नहीं नाचूँगी तो वे लोग भूखे मर जाएँगे।
रसा :- तू कुछ भी बोल रसली, उनका दाँत निपोरना मेरे दिल में आग लगा देते हैं।
रसमलाई :- दिल में आग लगाएँ कि दिमाग में, पर मैं क्या करूँ?
रसा :- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ रसली।
रसमलाई :- तू प्यार करता है, अच्छी बात है।
रसा :- रसली तेरे बिना मैं जी नहीं सकता।
रसमलाई :- जी नहीं सकता तो मैं क्या करूँ। मैं तो तुझे प्यार नहीं करती, रसा आग दोनों तरफ लगी होने चाहिए।
रसा :- ऐसे तू कैसे कह सकती है,मैं रसदेव हूँ, मैं अपना रस तुझे देता रहता हूं, मेरे रस तुझमें मिला हैं, मेरे रस में मिलकर ही तू रसमलाई है, वरना तू खाली मलाई है, फिर मुझमें क्या कमी है।
रसमलाई :- कमी तुझमें नहीं कमी मुझमें है, मैं समाज से नहीं लड़ सकती हूं रसा।
रसा :- ये कहो न, मुझे नाचना गाना अच्छा लगता है। लड़के घूरते हैं तो और भी अच्छा लगता है, तुम्हें इन सब की लत हो गई है रसली।
रसमलाई :- तू मुझे कुझ भी गाली दे दे, कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, हम लोग गाली को बचपन से पानी की तरह पीते आ रहे हैं।
रसा :- क्यों नहीं पीओगी।मैं भिखारिन को रानी बनाना चाहता था, भिखारिन रानी बन जाएगी तो भीख कौन माँगेगी?
ख्रसा रूठकर चला जाता है।,
रसमलाई :- मुझे माफ कर देना मेरे देवता, जब तक जीउँगी मैं तुम्हारी हूँ, मेरा दिल तुझे ही पूजा करते हैं, मैं तुम्हारे पास मेरे दिल को कमजोर करूँगी, तो खाप में हम दोनों को जिंदा जला देंगे। प्रेम मिलन का नाम नहीं है राजा, प्रेम तो न मिलने का नाम है।
दृश्य :- 16
रसा :- पापा, मैं शादी करना चाहता हूँ।
अमर :- ठीक है, बेटा लेकिन पहले निनी बेटी की रिश्ता पक्का हो जाता, तो दोनों का एक साथ शादी कर देता।
सुखू :- तुम लोगों को शादी की पड़ी है, मैं तुम लोगों से अलग रहना चाहता हूँ, मुझे मेरा बंटवारा चाहिए।
रेवती :- तू ए क्या कह रहा है, बेटा पहले अपने भाई बहन की शादी हो जाने दे, फिर बंटवारा ले लेना।
सोना :- कब आम लगाओगे, कब फल लगेगा, हमें पसंद नहीं है माँ जी।
रसा :- भाभी ये तुम क्या कह रही हो?
सुखू :- क्या कह रहे हैं, तुम्हारा समझ नहीं आ रहा है, जाओ तुम केंवारिन से शादी रचाओ और हम जाति विरादरी में नाक नहीं कटवाने वाले।
अमर :- रसा, क्या सुखू ठीक कह रहा है?
रसा :- पापा ऐसी बात नहीं है, जहाँ आप लोग मेरा रिश्ता करेंग,े वही शादी करने को तैयार हूँ।
सुखू :- रसमलाई का रस बासी हो गया रसा।
अमर :- क्या तुम अपनी बहन को भी नहीं देख रहे हो?
रसा :- मैं तो कह ही रहा हूँ पापा, आप लोग जिससे तय करते हैं, वहीं शादी करने को तैयार हूँ।
रेवती :- सुखू बेटा कुछ दिन के लिए रूक जा, अपनी बहन की शादी के लिए धनेश कैसा रहेगा।
रसा :- ये बात मेरे दिमाग में कैसे नहीं आया, हाँ उसे कल ही पूछकर बताता हूँ।
सुखू :-कल क्यों अभी क्यों नहीं, जा और जल्दी पूछकर बता, उसके घर वाले क्या कहते हैं?
सोना :- पर मुझे आप लोगों से कोई दिलचस्पी नहीं, मुझे अभी और इसी वक्त घर का बँटवारा चाहिए।
रसा :- भाभी, हमारे बातों में दखल अंदाजी मत करो वरना।
सोना :- वरना क्या कर लोगे, सुखू देख रहे हो अपने भैया का बात, ये क्या कह रहा है, अपनी भाभी को हाथ उठा रहा है।
रसा :- अभी मैं कहाँ उठा रहा हूँ।
सुखू :- वरना का क्या मतलब होता है। चल सोना, कल ये लोग बुलाकर अपना बँटवारा दे देंगे।
[ वे दोनों घर से निकल जाते हैं।]
दृश्य :- 17
[अमर ,रेवती ,रसा, निनी को अपने पहले की बात याद आ रहा है। घर में पहले खुशियाँ बसती थी, सभी में एकता था, तीनों अपने अपने बैलों और भैंसो को जुआ में फाँदकर, हल उठाकर एक पंक्ति में गाते हुए जा रहे हैं।]
गीत नंः-5
आ रहा नया जहान, जागो जागो रे किसान।
हो धरती के शान, हो देश के प्राण।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
मुर्गा बोले कुकड़ूूं कूँ, जाग सुबह जल्दी तू।
पशुओं को चारा दे तू, खली भूसी सारा दे।
खाँस रहा खोखी सियान, जागो जागो रे किसान।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
आ रहा नया जहान, जागो जागो रे किसान।
हो धरती के शान, हो देश के प्राण।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
खेती हमारा है करम, खेती हमारा है धरम।
खेती हमारा है चरम, खेती हमारा है परम।
खेती हमारा है मान, जागो जागो रे किसान।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
आ रहा नया जहान, जागो जागो रे किसान।
हो धरती के शान, हो देश के प्राण।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
खेती हमारा है देवधामी, खेती हमारा है पूजा नामी।
बैल भैंसा हमारा है देवता, हरेली पोला दें नेवता।
हल हमारा है पहचान, जागो जागो रे किसान।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
आ रहा नया जहान, जागो जागो रे किसान।
हो धरती के शान, हो देश के प्राण।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
धरती के बेटा हैं हम, प्रेम का रास्ता बनाएँ हम।
पेट सभी का भरें हम, भूख से मरें सब हम।
गोमाता के हम संतान, जागो जागो रे किसान।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
आ रहा नया जहान, जागो जागो रे किसान।
हो धरती के शान, हो देश के प्राण।
जागो जागो रे किसान, जागो जागो रे किसान।
दृश्य : 18
[रेवती सबके लिए बासी लाई है। उसे प्यार से खिला रही है।]
अमर :- रेवती जल्दी बासी खाने के लिए लाओ।
रेवती :- सुखू और रसा हड़बड़ी नहीं कर रहे हैं और तुम कर रहे हो।
सुखू :- अम्मा बड़े जोरों से भूख लगी है।
रसा :- और मुझे भी अम्मा।
निनी :- और मुझे भी अम्मा।
सुखू :- दूँगा खींच के, जाकर अम्मा के काम में मदद करो।
रेवती :- तुम्हें चिढ़ाने से इसे अच्छा लगता है सुखू,निनी बेटी मेरे काम में मदद कर रही है।
[तीनों मजा से खा रहे हैं, सुखू आपानवायु छोड़ता है।]
रसा :- मैं नहीं खाउँगा माँ, भैया खाना खाते वक्त ही आपानवायु छोड़ता है।
रेवती :- आज भर के लिए खा दे बेटा, कल से ये नहीं पादेगा।
अमर :- सुखू, खाना खाने वक्त क्यों आपानवायु छोड़ता है, किसी को भी अच्छा नहीं लगता है।
सुखू :- मैं जान बुझकर थोड़े आपानवायु छोड़ता हूँ, पवन है निकल ही जाएगा तो मैं क्या करूँ, वैसे विज्ञान कहता है, पवन को नहीं दबाना चाहिए, वरना बीमारियां होने की संभावना होती है।
रसा :- तेरा बीमारी तेरे पास रख, मैं चलता हूँ।
सुखू :- क्या आपानवायु से वो तेरे मुँह में चला जाता है।
रसा :- मुँह में नहीं चला जाता, तो दूसरों के आपानवायु पर थूकता क्यों है।
निनी :- भैया पवन पुराण बंद करो, जल्दी से खाओ, हमें भी भूख लग रही है।
रसा :- तुम्हे कौन रोक रहा है, खा ले ना।
निनी :- खाउँगी पर और थाली रहेगा तब तो खाउँगी।
रसा :- तो कटोरा में खा ले ना।
निनी :- मैं क्यों कटोरा में खाउँगी, तुम क्यों नहीं खा लेते?
अमर :- मैं खा चुका बेटी, ले थाली और मांजकर अपने लिए भी निकाल ला।
ख्निनी थाली माँजती है, अपने लिए निकाल कर लाती है, सुखू और रसा के खाने के बाद रेवती माँजती है और अपने लिए खाना निकालती है, माँ और बेटी बड़े मजे से खाते हैं।,
दृश्य :- 19
[ धनेश और निनी की शादी हो रही है। अमर और रेवती गा रहे हैं।]
गीत नं :- 06
पिता के प्यारी, माता के दुलारी।
बेटी है आदि शक्ति, सृजनहारी।
बेटी के प्रेम,दुनिया में अपरम्पार।
नैहर के कुत्ता तक करे प्यार।
बेटा भूल जाते माता पिता को।
बेटी कैसे भूले, अपने जाया को।
बेटी की महिमा दुनिया में न्यारी।
पिता के प्यारी, माता के दुलारी।
बेटी है आदि शक्ति, सृजनहारी।
बचपन को याद कर कर रोती।
उत्सव में पिता का राह जोती।
बार बार द्वार में आकर देखती।
पिता को देख वो पसिया पीती।
बेटी के प्रेम में जाउँ बलिहारी।
पिता के प्यारी, माता के दुलारी।
बेटी है आदि शक्ति,सृजनहारी।
बाप बेटी का प्रेम है बेमिसाल।
माँ पूछती है सब बेटी का हाल।
बेटी के नयना हो रहे झरना।
सात जनम के पाप है भरना।
भर भर नयना बेटी निहारी।
पिता के प्यारी, माता के दुलारी।
बेटी है आदि शक्ति, सृजनहारी।
सभी फँसे है नमक तेल लकड़ी।
कभी न करें हम प्रेम की कड़की।
प्रेम ही बेटी है, बेटी ही है प्रेम।
प्रेम से प्रेम मिले, करें हम प्रेम।
शक्ति को जाने दुनिया सारी।
पिता के प्यारी, माता के दुलारी।
बेटी है आदि शक्ति, सृजनहारी।
दृश्य :- 20
[धनेश, निनी, अमर और रेवती सो रहे हैं, निनी और रेवती साथ साथ में सो रहे हैं। धनेश निनी को जगाना चाहता है, पर रेवती के पैर को छूता है।]
रेवती :- क्या कर रहे हो?
धनेश :- पानी माँग रहा था, गला सूख रहा है।
रेवती :- निनी बेटी, दमाद बाबू पानी माँग रहे हैं।
निनी :- मम्मी, तुम ही दे दो न।
रेवती :- मुझसे नहीं, तुमसे माँग रहे हैं। जा जल्दी उठ और पानी दे दे।
ख्निनी उठती है और पानी देती है, उसके पीछे पीछे धनेश भी जाता है और उसे बाँहों में भर लेता है।,
धनेश :- पानी का कौन प्यासा है, मुझे तो प्रेम का प्यास लग रहा है।
निनी :- मैं क्या नहीं जसन रही हूँ, प्रेम को चुराने से और ज्यादा आनंद आता है।
धनेश :- तुम ठीक कह रही हो। प्रेम को छिपाकर करने से और ज्यादा बढ़ता है।
निनी :- आप पानी पी लिए, चलिए अब सोते हैं।
धनेश :- मेरे निनी प्रेम कैसे है, जितना पीता हूँ और ज्यादा प्यास लगता है। मेरा प्यास जा ही नहीं रहा है।
निनी :- प्रेम ऐसा है मेरे धनेश ! मरते तक नहीं जाता है। चलो छोड़ो न! मम्मी क्या कहेगी?
धनेश :- क्या कहेगी ? बेटी दामाद को खूब पानी पिला रही है, कहेगी और क्या कहेगी।
ख्फिर दोनों रसोईघर में ही सो जाते हैं। सोते सोते सपने में नाच गा रहे हैं।,
ख् धनेश और निनी गा रहे हैं।,
गीत नंः- 07
ओ मेरे घनश्याम, बंशी न बजाओ।
मेरा तन मन, वृन्दावन न जलाओ।
बादल बरसा बरसाओ, हमें न ज्यादा तरसाओ।
लता को तरू से मिलाओ, रूठे साजन को मनाओ।
ओ मेरे घनश्याम, बंशी न बजाओ।
मेरा तन मन, वृन्दावन न जलाओ।
अभी मेरी बाली है उमर, मुझको अब लगता है डर।
मुझे नींद नहीं आती रैन, मैं दिन नहीं पाती चैन।
क्या जादू किया रे घन, आकर मुझे बतलाओ।
ओ मेरे घनश्याम, बंशी न बजाओ।
मेरा तन मन, वृन्दावन न जलाओ।
ख्सुबह उनको रेवती जगाती है।,
रेवती :-निनी बेटी! उठो भोर हो गया है।
दोनों सहमकर जगते हैं, फिर धनेश और रसा काम करने को जाते हैं।
दृश्य :- 21
[धनेश नाटक लिखता है, अपनी पहली नाटक हाहाकार को प्रकाशन कर मोटरसाईकिल से घर ले जा रहा है। वो अच्छे से नहीं बंधे रहते हैं। पूल के पास आकर बिखर जाते हैं। चार पाँच लोग देखते हैं। एक साधु भी देखता है। उसे आशीर्वाद देता है। वह पुस्तक को मुफ्त में सभी को बाँट देता है।]
समाप्त
सीताराम पटेल सीतेश
sitarampatel.reda@gmail.com
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