अरुण कुमार झा “विनोद” की कविताएँ .... शुभोदय वह जानती थी कि मैं उसे चाहता हूँ। इसलिए उसने शर्तें रखीं -पासा फेंका। मैं भी कहां माननेवाला था।...
अरुण कुमार झा “विनोद” की कविताएँ ....
शुभोदय
वह जानती थी कि मैं उसे चाहता हूँ।
इसलिए उसने शर्तें रखीं -पासा फेंका।
मैं भी कहां माननेवाला था।
जी भर कर उसे छकाया,
कुछ कह कर नहीं,
कुछ सह कर नहीं,
कुछ दिखा कर नहीं,
कुछ लुटाकर नहीं,
बस यूं ही –
मेरी एक चुप्पी,
जो उसके हठ को तोड़ेगी
मुझे उससे जोड़ेगी।
मेरी भी तो यही हठ है,
और यह हठ ही प्यार है,
गूंगे के लिए गुड़ का स्वाद है।
यूँ ही एक दिन अनायास -
हम पिघल जाएंगे,
आपस में घुल मिल जाएंगे।***
आँसू
तुम्हारे आँसू -
पहले,
मुझे रुला दिया करते थे।
फिर,
सहलाने लगे,
थोड़े दिन बाद …
बहलाने लगे।
और अब तो …
भरमाते भर हैं।
अब यह सब सुनकर कोई भले सोचे कि -
मैं सठिया गया हूँ।
मगर तुम तो जानती हो,
इसी प्यार के तोल-मोल के भरोसे,
मैं आज शालीन औ’ सभ्य हुआ हूँ।
***
जिंदगी
इन गुजरे वर्षों में मैंने देखा यही है जिंदगी,
तुम जब साथ रहती हो, सब ठीक रहता है।
तुम जब दूर जाती हो, सब बिखड़ जाता है ॥
जन्नत -ए -नूर, ख्याल तेरा खुद मेरा भरोसा है,
जब तुम साथ रहती हो, भरोसा संबल होता है।
जब तुम दूर जाती हो,यही भरोसा टूट जाता है॥
मोतियों के थाल भरकर, दिया मैंने तुम्हें प्यार,
तुम जब साथ रहती हो,उनकी माला पहनती हो।
तुम जब दूर जाती हो, मोतियाँ बिखड़ा देती हो॥
जन्नत के कारिंदे,मैंने तुम्हें सौंपा सब मेरा अपना,
तुम जब साथ होती हो, उन्हें छूकर लौटा देती हो।
तुम जब दूर जाती हो, उन्हें बाहर लुटा देती हो॥
मेरे अपने, जो तेरा है - वही तो मेरा सपना है,
जब तुम साथ रहती हो, सब खुशनुमा लगता है।
जब तुम दूर जाती हो, बुझा-बुझा समाँ लगता है॥
शिकवा तुमसे मगर कोई नहीं, तू मुझमें है दोस्त,
मेरी तो दुनिया उलट जाती, जब तुम दूर जाती हो।
***
चाहत
मैंने हमेशा चाहा -
तुम खुश रहो,
तुम्हारी तबीयत भली रहे,
और...
तुम्हारे सपने सच होते चले जाएँ।
हाँ, मैंने चाहा –
तुम्हारा दिल जब जो चाहे,
तुम्हें मिल जाए।
जिंदगी की हर जंग में...
तुम्हारी ही जीत हो।
और यह भी कि-
तुम्हारे पेशानी की जरा सी शिकन
बला को बुलबुला बना दे...
जो अनायास यूँ ही फिसल जाए।
और,जब मुझे लगा कि-
तुम्हारी ऐसी तमाम इच्छाएँ पूरी हो जाएंगी ।
तो तुम्हारी खातिर एक चाहत मैंने और की,
जो मुझे जरूरी लगा...
वह यह कि –
तुम्हारी ‘हाँ’ में मेरी भी ‘हाँ’ शामिल रहे।
मैं रहूँ, हर पल - तुम्हारे पास।
चाहे कभी हो जाए कोई बात।***
शुक्रिया
हकीकत को मिटा देने का शुक्रिया,
कोंपल को भुला देने का शुक्रिया।
दिया की साँस डूबायी हवा ने,
बिजली साथ लाए आप, शुक्रिया।
बौर की चाह थी, बड़ा हो फाँक बने।
कार्बाइड लाए आप, शुक्रिया।
दूब को फिक्र कब थी पत्थरों की,
कंक्रीट जंगल बनाए आप, शुक्रिया।
जिंदगी मेरी कोई सीढ़ी न थी,
शिखर पर चढ़ गए आप, शुक्रिया ।
****
तुम अपना ख्याल रखना
मुझे नींद नहीं आती है
और जगा मैं रह नहीं सकता हूँ।
अब तो साफ-साफ कहना पड़ेगा
कि तुम्हारी याद भूत बन कर
मेरे भविष्य को डरा रही है।
वह वर्तमान तो खैर गुजर जाएगा
जिसका कोई क्षण मेरे साथ तुम्हें न पाकर
मेरा उपहास कर जाता है।
यह भी नहीं सोचता कि
प्यार के लिए ग्यारह नहीं एक बनना पड़ता है ।
याद है न?
बरसों तुम मेरे आगे डोलती थी।
तब, तुम्हारी ही तो चलती थी।
नैन मटक्का, ऐंचातानी के बिला,
कोई राज भी तो नहीं खोलती थी।
माफ करना,
अब मैं नहीं आ पाऊँगा
मेरी लुटिया डूब जाएगी।
तुम्हारा बेटा - जिसे मैंने अभी तक तुम्हारा परिचय नहीं दिया,
अब, तुम्हारी ही तरह,
अपनी मरजी का मालिक होने का सबूत पेश करने लगा है।
खबर मिल जाएगी तुम्हें भी
कि वह अकेले कितना खून-खराबा कर सकता है।
पर, कभी उल्टा हुआ तो
मैं दिल पर सिल रख लूंगा।
तुम अपना ख्याल रखना।***
तलाश
वह मुकाम –
जिसकी तलाश में
मैं भटकता रहा - दिन-रात,
सोचता रहा - आदि-अंत,
घोख़ता रहा, ज्ञान-विज्ञान
गढ़ता रहा - नई जमीन-नया आसमान,
अब ढह गया है।
उसे मैं मंजूर न था
तो उसने कह तो दिया होता
चोरी उसने की है
झूठ उसने बोला है
मैं तो आज भी झोली फैलाए प्रतीक्षारत हूँ।
दिमाग मेरा अब काम नहीं करता
इसलिए,
दिल की बात दिल से कह रहा हूँ ।
.........
राज की बात
राज की बात थी, आपसे भी कही न गई,
आपके सिवा जमाने में मेरे कोई और न था।
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कठिन शिला
कठिन शिला हो तुम,
करुणा नहीं है तुझमें,
दिल है तुम्हारा पत्थड़,
मालूम नहीं तुम्हें प्यार,
ओ परवरदिगार !!
उस पत्थड़ को देवता समझ,
रोज पूजता हूँ मैं।
मौत
मरना मैं नहीं चाहता,
मौत से मुझे बड़ा डर लगता है।
जीना भी अब नहीं चाहता,
जीवन का दर्द अब बेपर्द हो चला है।
अब तो बस खौलते रहना चाहता हूँ,
कभी तो मेरे आँसू भाप बनकर,
उनकी आँखों से आँसू बन उतरेंगे।
प्यार तो मैंने अब तक किया ही नहीं।----
बड़े बड़े घर रोज बनते चले जा रहे हैं, और परिवार पर दिनों – दिन छोटा होता जा रहा है। सुख - सुविधाओं की हो रही है भरमार, दिल का सुकून पर छिनता जा रहा है। हर रुचि के समान हर जगह मिलने लगे हैं, क्या लें - न लें, यह विवेक कमता जा रहा है। ज्ञान का अथाह सागर हर तरफ लहराता है, थोड़े ईमान के लिए जग हलकान हुआ जाता है। विशेषज्ञों की संख्या में हर रोज इजाफा हो रहा है, छोटी - छोटी बातों से बस, सबका दिल घबराता है। हौसला देखिए कि मानव चाँद पर टहल आया है, मुसीबत देखिए कि रोड पार करने में वह भरमाया है। हर प्रचार माध्यम में उसकी ही तूती बोलती है, प्रकृति उसके तेवर देख, रोज मगर खौलती है। कंप्यूटर की पिटारी में उसने ज्ञान-विज्ञान को कैद कर लिया है, पर इन्होंने तो उसके लिए एक नया महाभारत ही रच दिया है। वफा का इजहार प्रेयसी से कैसे करे, समय की है किल्लत, कंप्यूटर मजे लेते हुए कहता है- मैं हूँ न, तुम्हारी जरूरत। तन की हर बीमारी का इलाज है अस्पतालों में, दिल का मर्ज मगर, रोज बेकाबू हुआ जाता है । लाभ लेने में हमारा कोई नहीं है सानी, संबंधों के दायरे पर, हो गए हैं बेमानी। दिमागी दाँव तले जीने की इच्छा प्रबल होती जा रही है, दिल पर गमी का साया, पर जिंदगी मुस्कुराती जा रही है? *** |
रचनाकार:- अरुण कुमार झा ‘विनोद’ पता:- 018, डी.एस.मैक्स सॉलिटेयर एपार्टमेंट, होर्मावु-अगाड़ा, के.आर.पुरम, बेंगलूरु-560043 इ-मेल: arunjha03@gmail.com |
बहुत सुन्दर
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