लक्ष्मण जी हर के लाये रावण की बेटी को - डॉ. विजय चौरसिया

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  लक्ष्मण जी हर के लाये रावण की बेटी को राजा रामचंद्र जी बदन महल में निवास करते हैं डुंड़ा महल में लक्ष्मण जी और झिंझरी महल में सीता जी निवा...

 

लक्ष्मण जी हर के लाये रावण की बेटी को

राजा रामचंद्र जी बदन महल में निवास करते हैं डुंड़ा महल में लक्ष्मण जी और झिंझरी महल में सीता जी निवास करती हैं। उनके महल में बाघ और भालुओं का पहरा लगा है।

एक दिन सीता जी सपना देखती हैं की लक्ष्मण जी स्त्री का भेस धारण करके लंका गढ़ पहुंचते हैं वहां राजा रावण की पुत्री रानी फुफैया के साथ विवाह कर रहे हैं।

दूसरे दिन सुबह होते ही सीता जी लक्ष्मण जी के पास अठारह द्वार पार करके डुंडा महल में अपने सपने के बारे में बताती हैं की आप लंका गढ़ के राजा रावण की बेटी रानी फुफैया के साथ विवाह करके वापस आ रहे हो।

लक्ष्मण जी कहते हैं देखने को तो अच्छा देखा है भौजी!पर यह तो सपना है कभी सच होता है कभी नहीं। तब सीता जी कहती हैं यह सपना कैसे सच नहीं होगा। मेरी छाती की आग तभी बुझेगी जब तुम रावण की बेटी को जीतकर लाओगे। तब लक्ष्मण जी कहते हैं भौजी यदि आप ऐसा कह रही हैं तो मैं अवश्य ही लंका जाकर रावण की बेटी को जीतकर लाता हॅू। मुझे आप अपने जेवर पहनने को दे दैं।सीता जी लक्ष्मण जी को अपने सभी जेवर पहनाती हैं।

लक्ष्मण जी सोलह श्रृंगार करके स्त्री का भेस धारण करके लंका गढ़ को चल देते हैं। लक्ष्मण जी जब समुद्र के किनारे पहुंचते हैं तो उनको समुद्र में जल मोती कन्या मिलती है । वह लक्ष्मण जी से कहती है - तुम वहां पर क्यों मरने जा रही हो। तुम्हारा पति नहीं है क्या! तुम लंका के राजा रावण को नहीं जानती उसके दस सिर हैं। पहाड़ के समान उसका शरीर हैं वह तुमको पकड़कर रख लेगा। अहरावण और महरावण उसके भाई हैं। तुम लौट कर अपने घर चली जाओ। लक्ष्मण जी कहते हैं मुझे लंका में बहुत जरुरी काम है। मुझे वहां जाना ही पड़ेगा। जल मोती कन्या लक्ष्मण जी को रगड़ती है लक्ष्मण जी थक कर समुद्र के किनारे बैठ जाते हैं। उसी समय एक केवट लक्ष्मण जी के पास आता है लक्ष्मण जी उसे बतलाते हैं की लंका के राजा रावण मेरे बाबा हैं। वहां मेरा मायका हैं तुम मुझे अपनी नाव से उस पार पहुंचा दो, नहीं तो मैं अपने बाबा रावण से कहकर तुम्हारी खाल में भूसा भरवा दूंगी। ऐसा सुनकर केवट घबड़ा जाता है। वह लक्ष्मण जी को अपनी नाव में बैठालकर समुद्र के उस पार ले जाता है।

लक्ष्मण जी सुन्दर स्त्री का रुप धारण करके रावण के दरबार में पहुंचते हैं। दरबार लगा है रावण ऊंचे आसन पर बैठे हैं। रावण उसे देखकर कहते हैं ये बाई तुम कहां से आई हो। लक्ष्मण जी कहते हैं बाबा आपने मुझे नहीं पहचाना ,राजा हो ना मेरी याद कैसे रखोगे। आपका दिमाग सठया गया हैं मैं आपकी सुंदरिया हूं। आपने मुझे अपनी गोद में खिलाया है कंघों पर बैठाला है और ड़ोली में चढ़ाकर मुझे समुद्र के उस पार दूसरे गांव में बिदा किया है। राजा रावण अपने मन में उस लड़की के बारे में बहुत सोचता हैं पर उसे कुछ भी याद नहीं आता। उसी समय लक्ष्मण जी की नौ सौ सिंघी रावण के ऊपर अपनी मोहनी ड़ाल देती हैं। मोहनी के कारण रावण का प्रेम पनपने लगता हैं तब रावण कहता है ये लड़की तुम ठीक कहती हो, मैं बूढ़ा हो गया हूं। मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है। तुम महल के अंदर जाओ वहां मेरी पुत्री फुफैया कन्या है तुम उसी के पास जाकर रहना। लक्ष्मण जी रानी फुफैया के महल में पहुंचते हैं।रानी फुफैया शंकर झूला में बैठकर झूला झूल रही हैं।एक सौ बीस सखियां रानी को झूला झुला रही हैं।

रानी फुफैया की सुन्दरता को देखकर लक्ष्मण जी अपनी सुध बुध खो देते हैं। रानी फुफैया की सहेलियां लक्ष्मण को चारों ओर से घेरकर बैठ जाती हैं । वे लक्ष्मण जी से कहती हैं ये बाई तुम कहां से आई हो । तब लक्ष्मण जी कहते हैं मैं समुद्र के उस पार से आई हूं रावण मेरे बाबा लगते हैं। अब लक्ष्मण जी भी रानी फुफैया को झूला झुलाने लगते हैं। उसका मनोरंजन करते हैं।

एक दिन लक्ष्मण जी अपनी नौ सौ सिंघी और भूतों को रानी फुफैया के पेट में प्रवेश करा देते हैं। जिससे रानी के पेट में जलन होने लगती हैं रानी दर्द के कारण व्याकुल हो जाती हैं।राज्य भर के गुनिया,जंतर-मंतर,टोना - टोटका ,जड़ी बूटी वाले अपना अपना नुस्खा अजमाते हैं पर रानी के पेट की जलन ठीक नहीं होती। सभी निराश होकर अपने धर वापस चले जाते हैं।

उसी समय स्त्री रुपधारी लक्ष्मण रावण से कहते हैं बाबा न होता तो मैं भी अपना टोटका अजमा कर देख लेती शायद कुछ आराम लग जावे। लक्ष्मण जी रानी फुफैया को झाड़ने - फूंकने लगते हैं।वे जैसे ही रानी के पेट में हाथ फेरते हैं रानी के पेट की जलन में राहत मिलने लगती हैं । रानी को कुछ आराम मिलता है तो लक्ष्मण जी रानी को सलाह देते हैं। कि वह सात समुद्र और नौ धार में स्नान करेगी तो वह पूर्ण स्वस्थ्य हो जायेगी। तुम अपने पिता रावण से पूंछ लो मैं तुमको स्नान कराके ले आऊंगी।

राजा रावण जब महल में आते हैं तब रानी फुफैया कहती है पिताजी आज मुझे अच्छा लग रहा है । मैं सात समुद्र और नौ धार में स्नान करने जाऊंगी तो मैं पूर्ण स्वस्थ्य हो जाऊंगी। ऐसा सुनकर रावण गुस्सा हो जाते हैं वे कहते हैं बेटी तुम कहां जाओगी समुद्र के रास्ते में घना और बियावान जंगल है । तुम लड़की की जात हो कुछ हो गया तो मैं क्या करुंगा। तुम कहीं नहीं जाओगी। रानी कहती है पिताजी मैं तो समुद्र स्नान करने जाऊंगी ही यह मेरा प्रण है । उसी प्रण के कारण मैं कुछ स्वस्थ्य हुयी हूं।यदि आपने मुझे नहीं जाने दिया तो मैं अपने पेट में कटार मार कर मर जाऊंगी।

तब रावण कहते हैं ठीक है जाओ पर अकेले मत जाना जो नई - नई मेहमान आयी है उसे अपने साथ में रख लेना । वह बहुत होशियार लड़की है। रानी फुफैया कहती है दादा मैं उसी के साथ जा रही हूं।

रानी फुफैया अपना पूरा श्रृंगार करके अपनी एक सौ बीस सखियों के साथ समुद्र में स्नान करने चल देती है।

लक्ष्मण जी अपने मन में सोचते हैं की मैं समुद्र में स्नान करते समय अपने शरीर को कैसे छुपाऊंगा। ये सभी लोग जान जायेंगी की मैं पुरुष हूं। इसलिये रानी और उसकी सखियों को अपने जादू के बल से कुत्ते के पिल्ले बना दूं। ऐसा सोचकर लक्ष्मण जी रानी फुफैया और उसकी सखियों पर जादू करते हैं जिससे रानी अपनी सखियों के साथ कुत्ते के पिल्ले बन जाती हैं। एक सौ बीस कुत्ते के पिल्ले काले रंग के और एक पिल्ला सफेद रंग का! लक्ष्मण जी सभी पिल्लों को एक टोकनी में ढ़ांक कर रख देते हैं। इसके बाद लक्ष्मण जी समुद्र में स्नान करते हैं। लक्ष्मण जी सफेद कुत्ते को गोद में रखकर खिलाते हैं।

समुद्र किनारे वही केवट मिलता है वह लक्ष्मण जी के पास आकर पूछता है। क्यों बाई तुमको समुद्र के उस पार जाना है क्या ? लक्ष्मण जी हां कहते हैं तो केवट लक्ष्मण जी को समुद्र पार करा देता हैं समुद्र पार आकर केवट अपनी उतराई मांगता है। लक्ष्मण जी कहते हैं मेरे पास तुम्हें उतराई देने के लिये कुछ भी नहीं है।मेरे पास ये कुत्ते के पिल्ले हैं। यदि तुम चाहो तो इनमें से एक कुत्ता का पिल्ला ले लो। केवट लक्ष्मण जी से सफेद पिल्ले को मांगता है । लक्ष्मण जी उसे देने के लिये मना करते हैं। दोनों में बहस होने लगती है। लक्ष्मण जी आवेश में आकर केवट को मार ड़ालते हैं।

इसके बाद लक्ष्मण जी कुत्ते के पिल्लों की टोकनी अपने सिर पर रखकर चल देते हैं।

यहां झिंझरी महल में सीता जी को लक्ष्मण जी की चिंता सताने लगती हैं सीता जी राम चंद्र जी के पास आकर कहती हैं। हमारे देवर लक्ष्मण को लंका गये बारह वर्ष हो गये हैं। आज तक उसकी कोई खबर नहीं आई है। आप इसका पता लगाओ। रामचंद्र जी हनुमान जी को लक्ष्मण का पता लगाने भेज देते हैं।

हनुमान जी बत्तीस मन का लोटा अपने कंधे में रखकर लक्ष्मण जी को ढूंढ़ने निकल पड़ते हैं। हनुमान जी देखते हैं की एक औरत सिर में टोकनी रखे उनकी ओर आ रही है। हनुमान जी दूर से ही उस औरत को आवाज लगाते हैं ! ऐ बाई औरत जात की हो तो रास्ता छोड़ दो । मैं लक्ष्मण मामा का लोटा रखा हूं। तुम्हारी छाया नहीं पड़ना चाहिये। हनुमान जी को देखकर लक्ष्मण जी कहते हैं मैं ही तुम्हारा मामा हूं भांजे चले आओ। ऐसा कहकर लक्ष्मण जी अपने सिर से टोकनी उतारकर जमीन में रख देते हैं। लक्ष्मण जी सोचते हैं इन कुत्तों के पिल्लों को मैं ढ़ो - ढ़ोकर परेशान हो गया हूं। ऐसा सोचकर लक्ष्मण जी मंत्र पढ़ते हैं जिससे वे कुत्ते के पिल्ले फिर से लड़कियों के रुप में आ जाती हैं। लड़कियां यह देखकर आश्चर्य करती हैं। सभी लड़कियां लक्ष्मण जी को घेर लेती हैं। वे लक्ष्मण जी से पूछती हैं की वे कैसे लड़की से कुत्ता का पिल्ला बन गई और समुद्र पार करके कैसे इस पार आ गई। रानी फुफैया अपनी सखियों के साथ निवेदन करती है। तब लक्ष्मण जी कहते हैं तुम लोग अपनी आंखें बंद करके खड़ी हो जाओ तब मैं बतलाऊंगी की मैं कौन हूं। सभी लड़कियां अपनी - अपनी आंखें बंद करके खड़ी हो जाती हैं। तब लक्ष्मण जी जमीन से धूल उठाकर मंत्र पढ़कर अपने ऊपर मारते हैं। जिससे साक्षात लक्ष्मण जी प्रगट हो जाते हैं।

जिस समय लड़कियों ने अपनी आंखें खोली वे साक्षात लक्ष्मण जी को अपने सामने देखकर आश्चर्य चकित हो जाती हैं। रानी फुफैया कहती है आपने ऐसा छल क्यों किया। तब लक्ष्मण जी कहते हैं यदि मैं यह छल नहीं करता तो लंका से तुमको कैसे ला पाता।

रानी फुफैया प्रसन्न हो जाती हैं लक्ष्मण जी रानी फुफैया और उनकी सखियों के साथ आगे बढ़ते हैं। वे रास्ता भूल जाते हैं और पुनः समुद्र के पास आ जाते हैं। लक्ष्मण जी समुद्र किनारे देखते हैं कि रेवला केवट अपने बावन लाख ढ़ीमरों के साथ उस समुद्र में मछली मारने आया है । उसने लक्ष्मण जी और उनके साथ रानी फुफैया और उसकी सुन्दर सखियों को देखा तो वह अपना जाल छोड़कर लड़कियों के पीछे दौड़ पड़ा। लक्ष्मण जी यह देखकर गुस्सा के कारण कांपने लगे। वे कहते हैं खबरदार जो भी इन लड़कियों को हाथ लगायेगा उसे समुद्र में डुबो दूंगा। कहां बावन लाख ढ़ीमर और लक्ष्मण जी अकेले। ढ़ीमरों ने लक्ष्मण जी को अपने जाल में फंसा लिया। लक्ष्मण जी जाल के अंदर छटपटाने लगे। रानी फुफैया ने मंत्र पढ़कर ढ़ीमरों को मारा तो ढ़ीमरों के हाथों में लड़कियों की जगह लकड़ी और खपरे आ गये। रानी फुफैया ने जादू से सभी लड़कियों को लकड़ी और खपरों में बदल दिया। सभी ढ़ीमर घबड़ाकर वहां से भाग गये। तब रानी फुफैया ने लक्ष्मण जी को जाल से बाहर निकाला। लक्ष्मण जी रानी फुफैया से पूछते हैं तुम्हारी सहेलियां कहां चली गयीं। रानी ने बतलाया की उसने सभी लड़कियों को जादू से लकड़ी और खपरा बना दिया हैं तब लक्ष्मण जी ने मंत्र पढ़कर लड़कियों पर मारा तो वे पुनः साक्षात लड़कियां बन गयीं।

सभी लोग वहां से चलकर झिंझरी महल में सीता जी के पास आ जाते हैं। रानी फुफैया और सीता जी आपस में गले मिलती हैं।। सीता जी रानी फुफैया से कहती हैं मैंने सुना है की तुम बहुत बड़ी जादूगरनी हो। तुम अपने कुछ जादू दिखलाओ तभी मैं तुम्हारी शादी अपने देवर लक्ष्मण जी के साथ करुंगी। रानी फुफैया कहती हैं पहले भांवर पड़ जाने दो विवाह के नैग दस्तूर हो जाने दो । इसके बाद मैं अपना जादू दिखलाऊंगी। तब सीता जी कहती हैं नहीं पहले तुम अपना जादू दिखलाओ इसके बाद ही शादी होगी। दोनों रानी अपनी - अपनी बातों पर अड़ गयी। जिससे रानी फुफैया चिढ़ गई और पढ़कर जब मारा है मंत्र उसी समय अपनी सभी सखियों के साथ पातालपुरी में चली गयीं।लक्ष्मण जी और रानी फुफैया की शादी नहीं हो पायी। सतलोकी तपसी लक्ष्मण जी का प्रण नहीं टूटा जैसे लक्ष्मण जी का प्रण बना रहा उसी प्रकार सभी भाई बहिनों की लाज बची रहै।

जै सीता राम जी की।

आलेख- डॉ. विजय चौरसिया

गाड़ासरई जिला ड़िंड़ौरी

 

मंड़ला एवं ड़िंड़ौरी जिले के गोंड़ प्रदेश में परधान जाति के लोगों द्वारा गायी जाने वाली रामायण में उक्त प्रसंग प्रचलित है। मैंने रामायनी का संकलन किया है जिसका प्रकाशन वन्या प्रकाशन संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा किया जा रहा है । उक्त प्रसंग रामायनी से ही लिया गया है।

डॉ. विजय चौरसिया

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बायोडाटा डॉ.विजय चौरसिया

सम्प्रति -ª चिकित्सा कार्य, पत्रकारिता, लोक संस्कृति पर लेखन, प्रदेश के लोक नृत्यों एवं लोक संस्कृति के संरक्षण हेतु प्रयासरत। म.प्र.तथा देश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं जैसे कादंबनी, धर्मयुग,हिन्दुस्तान टाइम्स, दिनमान,इंड़िया टूडे, दैनिक भास्कर, नवभारत,नई दुनिया में एक हजार से अधिक लेखों का प्रकाशन। ª मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में करीब 30 लोक नाट्य एवं लोक नर्तक दलों का नेतृत्व एवं देश - विदेशों तथा फिल्मों में लोक नृत्यों का प्रदर्शन। चीन,मलेशिया,इंडोनेशिया,सिंगापुर,मारिशस, म्यानमार, दक्षिण अफ्रिका हरारे एवं बंगला देशों की यात्रा।

उप्लब्धियां-ª म.प्र. की प्रसिद्व समाजसेवी संस्था सावरकर शिक्षा परिषद में अध्यक्ष।सावरकर लोक कला परिषद में निर्देशक। दैनिक भास्कर पत्र समूह के क्षेत्रीय संवाददाता। इंटरनेशनल रोटरी क्लब डिंड़ौरी में सदस्य।राजीव गांधी शिक्षा मिशन ड़िड़ौरी में जिला इकाई के सदस्य। पंचायत समाज सेवा संचालनालय म.प्र. द्वारा डिंड़ौरी जिले के वरिष्ट नागरिक समूह के सदस्य। प्रदेश प्रतिनिधी रेड़ क्रास सोसायटी, म.प्र.,राष्ट्रीय भारत कृषक समाज के आजीवन सदस्य।.,दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर भारत सरकार द्वारा लोक नृत्यों के लिये 2012.13 के लिये गुरु नियुक्त। चेयरमेन जूनियर रेड़ क्रास सोसायटी म.प्र.।

शोध पत्र -ª स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा स्वाधीनता फैलोशिप 2006.07, प्प्रचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग म.प्र., उच्च शिक्षा विभाग म.प्र. भाासन, मेरठ बाटनी कालेज मेरठ,रानी दुर्गावती विश्वविघालय जबलपुर,जवाहर लाल नेहरु कृशि विश्वविघालय जबलपुर, स्वराज भवन भोपाल एवं गौंड़ी पब्लिक ट्रस्ट मंड़ला, भाासकीय चंद्र विजय महाविघालय डिंड़ौरी,रानी दुर्गावती महाविघालय मंड़ला,भारतीय संस्कृति निधि दिल्ली,,गुरु घासीराम विश्वविद्यालय रायपुर,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविघालय अमरकंटक में आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार 28 फरवरी 2012 को शोध पत्र का वाचन।

प्रकाशित कृतियां -ª एशिया महाद्वीप की सबसे पुरानी जनजाति बैगा के जनजीवन पर आधारित भारत वर्ष की प्रथम हिन्दी पुस्तक 'प्रकृति पुत्र बैगा' का म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल द्वारा प्रकाशन। म.प्र. की प्रसिद्व जनजाति गौंड़ में प्रचलित बाना गीत पर आधारित 'आख्यान' (गोंड राजाओं की गाथा) पुस्तक का म.प्र. आदिवासी लोक कला अकादमी द्वारा प्रकाशन। म.प्र. की प्रसिद्ध जनजाति परधान द्वारा गायी जाने वाली गाथा रामायनी, पंडुवानी एवं गोंड़वाना की लोक कथाओं का वन्या प्रकाशन भोपाल द्वारा राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित। जनजातीय लोक गीतों में राजनैतिक एवं सामाजिक चेतना शोध पत्र का प्रकाशन स्वराज भवन संस्कृति संचालनालय भोपाल द्वारा.।

अप्रकाशित कृतियां -ª बैगा जनजाति में प्रचलित चिकित्सा पद्धति,सर्प विष तंत्र - मंत्र चिकित्सा,म.प्र. के आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आदि।

संर्पक-डॉ.विजय चौरसिया

चौरसिया सदन गाड़ासरई जिला ड़िड़़ौरी म.प्र.

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रचनाकार: लक्ष्मण जी हर के लाये रावण की बेटी को - डॉ. विजय चौरसिया
लक्ष्मण जी हर के लाये रावण की बेटी को - डॉ. विजय चौरसिया
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