ऊं कहानी बहुरंगी दुनिया · शेर सिंह “ अरे यार...शिट्ट... ” महेश ने अपने आप में बुदबुदाते हुए से कहा और अपने लंच बॉक्स को अपने हाथ में थाम ल...
ऊं
कहानी
बहुरंगी दुनिया
· शेर सिंह
“ अरे यार...शिट्ट... ” महेश ने अपने आप में बुदबुदाते हुए से कहा और अपने लंच बॉक्स को अपने हाथ में थाम लिया । उसे बहुत तेज मगर अजीब गंदी सी महक अपनी नाक के रास्ते अंदर तक घुसती महसूस हुई थी । वह ओवन के पास से पीछे हट गया । उसका सहकर्मी हो -चीन्ह अपने टिफिन को ओवन में डाल रहा था । हो -चीन्ह के लंच बॉक्स से ही वह अजीब सी महक आ रही थी ।
“ वाह्ट हेपंड ?” हो –चीन्ह उससे पूछ रहा था
“ नो... नथिंग... आई हेव अलरेडी हिटेड !” उसने झूठ बोला । उसका लंच बॉक्स गर्म नहीं हुआ था । यह लंच ब्रेक का समय था । हर कोई अपने साथ लाए लंच को हीटर और ओवन में गर्म कर रहा था ।
सिडनी शहर का यह खूबसूरत एरिया था । शहर का केंद्रीय स्थल ! अति व्यस्तता वाले टाऊन हॉल में सीबीडी यानी सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट है । इस कमर्शियल, बिजनेस, मन्टीनैशनल ऑफिसिस वाले इलाके की यह एक हाई राइज़ बिल्डिंग थी । बिल्डिंग की 15 वीं मंजिल पर महेश एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में जॉब करता था । चूंकि यह एक अति विकसित देश का अल्ट्रा मॉर्ड्रन तथा मल्टी कल्चरल शहर था, इसलिए ऑफिस में लगभग सभी देशों के लोग कार्यरत थे । अंग्रेज़, चीनी, जापानी, कोरियन, अमेरिकी, यूरोपियन, पाकिस्तानी, श्रीलंकाई, इंडियन, थाईलैंड, वीयतनामी, नेपाली आदि आदि । यानी कि दुनिया के अनेक देशों के लोग इस मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रहे थे । तकरीबन 200 लोगों का स्टाफ ! लगभग सभी लोग नॉनवेज खाने वाले । महेश तथा एक- दो और इंडियन को छोड़कर सभी ! महेश पूरा शाकाहारी तो नहीं था, लेकिन पूरा मांसाहारी भी नहीं था । बस ! अंडे आदि खा लेता था ।
आज लंच के समय उसका चीनी सहकर्मी हो -चीन्ह अपने लंच बॉक्स को पहले हीटर, फिर ओवन में गर्म करने लगा था । उसी की टिफिन से बड़ी सडी सी गंदी महक आ रही थी । शायह हो -चीन्ह ने आज लंच में पोर्क लाया था । पोर्क और बीफ यहां की पसंदीदा खाना था । परन्तु महेश को उनके नाम मात्र से उबकाई आ आती थी। वह अपने लंच बॉक्स को बिना गर्म किये लंच रूम में आ गया ।
एक टेबल पर लंच बॉक्स खोलकर ठंडा ही खाने लगा । यह आज कोई नई बात नहीं थी । उसके साथ अक्सर ही ऐसा होता है । वह विदेश में जॉब कर रहा है । डॉलर के रूप में वेतन मिलता है ।
अपने देश भारत के मुकाबले बहुत अच्छी तनख्वाह है । लेकिन खाने- पीने का क्या करे ? उसके संस्कार उसे यहां का खाना खाने नहीं देता । अपनी रूचि और पसंद को छोड़ने नहीं देता है । मां के हाथ का बना खाने की याद उसे मानसिक तौर पर मां के पास पहुंचा देती है । मन पवन से भी तेज़ है न ! लेकिन मां तो भारत में है । यहां वह अकेला है । बाहर डर -डर कर खाता है । पता नहीं कहीं नॉनवेज न मिला हो ? डर- डर कर पानी पीता है । कहीं एल्कोहल की मिलावट न हो ?
एक दिन उसके ऑफिस की ओर से एक मशहूर होटल के रूफ टॉप में सॉसेज की पार्टी थी । सॉसेज मतलब मिक्सड़ खाना । यानी शाकाहारियों के लिए कुछ भी नहीं ! बीफ और पोर्क वाला मिक्सचर खाने की पार्टी ! पीने के लिए वाइन और बियर ! उसने स्नैक्स को तो हाथ भी नहीं लगाया । स्नैक्स में भी नॉनवेज के कटे हुए टुकड़े रहते हैं । लेकिन अपने दाएं हाथ में जूस से भरा पतले कांच का डिजाइनदार पेग ग्लास थाम रखा था । गिलास का जूस हार्ड ड्रिंक की तरह लग रहा था । पार्टी में उसके अतिरिक्त सब आनंद उठा रहे थे । जाम से जाम टकरा रहे थे । प्लटों में पोर्क और बीफ पता नहीं क्या - क्या था ? वह किनारे –किनारे, इधर- उधर चलते, डोलते हार्ड ड्रिंक्स पीने का एक्टिंग करता रहा ।
“ हय महेश ! बट यू आर डूइंग ?” उसने अपनी पीठ की ओर से आती आवाज़ की ओर मुड़कर देखा । पीछे उसका भारतीय सहकर्मी रमन और उसकी पत्नी रजनी थी । दोनों ने हाथों में हार्ड ड्रिंक्स के भरे हुए गिलास पकड़ रखे थे ।
“ हई रमन...हई बेबी ...” वह उन दोनों को देखकर मुस्कराया ।
“बट्स दिस... ड्रिंक्स...आर यू ...?” रमण को शक था कि वह कोई रंगीन जूस या पानी पी रहा है ?
“ ड्रिंक्स है भई ! यह देखो...” उसने झूठ बोला । वह पानी से भरा पेग ग्लास उठाए हुए था ।
“ अरे वाह ! बहुत बढि़या ...” रमन ने कहा । उसकी पत्नी रजनी ने अपना दायां हाथ उसकी ओर बढ़ाया । उसने उससे हाथ मिलाया और फिर चीयर्स किया । वह ऐसा दिखा रहा था जिससे कोई यह न समझे कि वह दुनिया का कोई अनोखा या अजूबा है ! रजनी देखने में बहुत सुंदर और कमनीय लग रही थी । गुलाब के पंखुडि़यों सी रंगत ! हाथ भर छू जाए, तो मैला हो जाए ! रमण का गोरा रंग अक्सर अजनबियों को अचंभित करता था । उनके शौक, उनकी रूचि, उनकी पसंद भी ऊंची थी ।
“भई... कुछ खा रहे हो या नहीं ? लगता था रमन और रजनी को शराब चढ़ गई थी । दोनों के हाव -भाव से स्पष्ट लग रहा था ।
वसंत ऋतु का मस्त मौसम था । मादक, मदमाती हवा बाहर से छनकर अंदर पार्टी में बह रही थी । बहकर पार्टी में लुत्फ उठा रहे लोगों की शिराओं, उनके अंग -अंग में भर गई थी जैसे । लगता था, ये दोनों भी इन हवाओं में सवार होकर उड़ रहे हैं ! पूरा माहौल संगीत की स्वर लहरियों, लोगों के
थिरकते पांवों से मदहोश होता जा रहा था । रंगीन समां बंध चुका था । हर कोई जोड़े में था । कॉरपोरेट मीटिंग्स, पार्टियों में वैसे भी नजारा कुछ और ही होता है ! माहौल में घुली रंगीनियां, मुग्ध करते चेहरों को देख मन पानी की तरह किनारे तोड़ने लगता है । लगता, हर कोई कृष्णकला में माहिर है !
“ कम... वी विल हेव डिनर !”
“ ओह... याह... प्लीज फील कंफर्टेबल !” महेश ने कहा और वहीं खड़ा रहा । रमन और रजनी खाने की टेबल की ओर बढ़ गए । बीफ और पोर्क के लज़ीज व्यंजन तैयार थे । उन दोनों ने अपने हाथों में प्लेटें थामे । और डिशेज में से सर्विस स्पून से निकाल -निकाल कर अपने प्लेटों में भरने लगे । दूसरों के साथ वे दोनों भी अपने प्लेटों में भरे सॉसेज का आनंद उठा रहे थे । पोर्क और बीफ के साथ दूसरी और कई किस्म की गंध पसरी हुई थी । स्त्रियों के पास से आती तेज सेंट की गंध, वाईन की तीखी गंध के साथ मिलकर सभी को मदहोश कर रही थी । सब मस्ती में थे । किसी के हाथ में शराब से भरे हुए पेग गिलास, और किसी के हाथ प्लेटों में भरे बीफ, पोर्क को निगलने में लगे थे । कोई वेस्टर्न पॉप सिंगर अटकते शब्दों, पेग गटकते गले से कुछ गा रहा था ।
रमन और रजनी तीन -चार सालों से यहां हैं । अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह थी । दोनों यहां की संस्कृति में ढल गए थे । यहां के माहौल में रम गए थे । रमन ने अपने जनैऊ को उतार फैंका था । रजनी को स्कर्ट, शर्ट या टॉप के साथ मंगलसूत्र पहनना पसंद नहीं था । मंगलसूत्र उसने कहीं कपर्बोड़ में बंद कर रखा था । बैंक लॉकर में रख नहीं सकती थी । लॉकर का किराया उसकी मंगलसूत्र की कीमत से भी अधिक था । अपने देश में घर के लोगों, माता- पिता को उनकी जीवन शैली का पता चलेगा, तो वे क्या सोचेंगे ? इस मुद्दे पर उन्होंने अधिक ध्यान ही नहीं दिया था शायद ! पुणे में रह रहे रमण के पेरेंट्स पक्के शाकाहारी ब्राह्मण थे ।
रमन और रजनी की तरह अनेक भारतीय लड़के, लड़कियां यहां इस शहर में जॉब करते थे । सिडनी के अतिरिक्त ब्रिस्वेन, मेलबार्न, क्वींसलैंड, पर्थ और राजधानी केनबरा जैसे शहरों में जॉब करने वाले बहुत थे । जब से अमेरीका ने वीसा नियम कड़े किये हैं, अधिकांश भारतीय अब यहां को आ रहे हैं । महेश जिनको व्यक्तिगत रूप से जानता था, उन में से 80 प्रतिशत लोगों ने यहां की रीति- रिवाज, जीवन शैली, रहन- सहन, खान- पान को अपना लिया था । खाना- पीना, जीवन का आनंद लेना हर विकसित देश की निशानी है । यहां विभिन्न देशों के लोग हैं । चाहे किसी भी देश से माइग्रेट होकर आए हों, अधिकांश ने यहां की जीवन शैली, यहां की संस्कृति को अपना लिया था शायद ?
रात के 9 बज गए थे । सितंबर का महीना था । वातावरण में वसंत के फूलों की महक भर गई थी। ठंड धीरे -धीरे विदा होती जा रही थी । दुनिया के अन्य देशों में इन दिनों पेड़ों से पत्ते झड़ रहे थे । यहां नई कोंपले फूट रही थीं । फूल खिलने को बेताब थे । फूलों से पार्क, घर, बाहर की क्यारियां महकने लगी थी । खिलते सुंदर फूलों की भीनी- भीनी सुगंध आत्मा तक पहुंच रही थी । लेकिन फूल केवल एक बार खिलकर कुछ दिनों बाद झड़ जाते हैं । पेड़ से टूट गए पत्ते फिर से जुड़ नहीं सकते हैं । महेश भीड़ में होकर भी भीड़ से अलग लग रहा था । अपने ही विचारों, अन्तर्द्धन्द्ध में इधर- उधर भटक रहा था ।
वह रूफ टॉप में चल रही गहमा- गहमी से निर्लिप्त, एक कोने में खड़ा रमन और रजनी को जब -तब देख लेता था । सबकी तरह वे दोनों भी मस्ती में डूबे हुए थे । दोनों के पैर हल्के से लड़खड़ा भी रहे थे । अपने जीवन को भरपूर जी लेने, मन माफिक करने में उन्हें आनंद आ रहा था शायद ? अपनी संस्कृति, संस्कार उन्हें ढकोसला लग रहा था । संभवत: यह उनके स्वभाव, संस्कारों के विपरीत था ? महेश की अपनी आदत थी । आमतौर पर अपने सहकर्मियों, ऑफिस के लोगों, गोरे मित्रों से उनके पारिवारिक जीवन, व्यक्तिगत बातों को भूलकर भी नहीं पूछता है । अपने सहकर्मी फिलिप जो उससे उम्र में भी काफी बड़ा था, वह उसका मित्र, उसका गाइड भी था । लेकिन एक बार उससे उसके निजी जीवन के बारे आम बातचीत के दौरान पूछ लिया था । “हय ! मे आई आस्क समथिंग ?”
“ याह...” उसने हामी भरी थी । फिर उसने बताया था कि उसका पिता ग्रीक, मां इटालियन और वह स्वयं दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुआ था । वहीं पला, बढ़ा।अब पिछले तीस सालों से ऑस्ट्रेलिया में है ।
वह ऑस्ट्रेलियन नागरिक है । उसकी बीवी ऑस्ट्रेलियन है । बाप रे ! महेश सोच में पड़ गया था । इतने लोचे ? इतनी विविधता ! उसे एक और प्रसंग भी याद आ गया था । एक अन्य सहकर्मी स्मिथ सिंह की । स्मिथ और सिंह ? उसने बताया था कि उसके पिता भारत के सिक्ख हैं । मां न्यूजीलैंड की । इसलिए वह स्मिथ सिंह है । अब वह खुद एक चीनी लड़की से डेट कर रहा है । परन्तु महेश को अब इन सब बातों, जानकारियों से अधिक हैरानी अथवा ताज्जुब नहीं होता है ।
महेश अपने को यहां के लिए मिस्फिट मानता था । ऑफिस के नियम, रीति, नीति को वह बदल
नहीं सकता था । लेकिन मन में बसे संस्कारों को वह कैसे छोड़ सकता है ? हैरिस पार्क में गुजराती पटेल की दुकान थी । दुकान क्या ! शॉपिंग मॉल सरीखा सुपर मार्केट था । राधे का और भी बड़ा सुपर मार्केट ! खाने -पीने के सामान से लेकर सब भारतीय चीज़े यहां मिलती हैं । वह हर पन्द्रह दिन या महीने में किचन के सामान हेतु ट्रेन से 30 किलोमीटर दूर पटेल के सुपर मार्केट को जाता है ।
महेश अपने ही उधेड़बुन में खोया हुआ था । सॉसेज पार्टी शबाव पर थी । ठहाकों और बजते म्यूजिक के कारण कौन किसको क्या कह रहा है ? समझ नहीं आ रहा था । महेश ने हाथ में पकड़े पानी के गिलास से एक लंबा घूंट लिया । उसकी नजरें रमन और रजनी पर फिर से पड़ी । दोनों डांस फ्लौर पर हाथों में हाथ डाले अपनी टांगों को हिला- हिला कर कूल्हे मटका रहे थे । रजनी ने इतनी पी ली थी कि अब रमण को उसे संभालने में परेशानी हो रही थी । महेश की तरफ किसी का ध्यान नहीं था । उसने हाथ में थामे पानी के गिलास को धीरे से टेबल के ऊपर रखा । थिरकते सहकर्मियों के बीच से अपने आपको छिपाते, बचाते हुए बाहर निकल आया । बाहर आकर उसे तेज भूख का अहसास हुआ ! समय भी बहुत हो गया था । अब घर पहुंचकर ही रात के खाने में ब्रेड़ वटर या ऐसा ही कुछ खा लेगा । अपने आप में वह जैसे बड़बड़ाया !
· शेर सिंह
·नाग मंदिर कालोनी, शमशी, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश – 175126
E Mail: shersingh52@gmail.com
Sydney
13.09.2018
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परिचय
· शेर सिंह
जन्म : 01.12.1955, हिमाचल प्रदेश.
शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी) एवं शिक्षा स्नातक, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़.
संप्रति : दिसंबर- 2015 में सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक अभिरुचि : देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में कहानी, कविता, लघुकथा,
संस्मरण एवं आलेख आदि. कई कहानी एवं काव्य संकलनों में
रचनाएं शामिल. कुछ प्रतिष्ठित वेब पत्रिकाओं में भी रचनाएं. एक
कविता संग्रह , “मन देश है, तन परदेश” तथा दो कहानी संग्रह, “आस का पंछी” एवं
“शहर की शराफत” प्रकाशित । एक संस्मरण एवं एक कहानी संकलन प्रकाशनाधीन ।
पत्र - पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन ।
पुरस्कार : राष्ट्र भारती अवार्ड सहित कई पुरस्कार एवं सम्मान.
अनेक वर्ष अध्यापन एवं अनुवादक के पदों पर कार्य करने के पश्चात लगभग साढे तीन दशकों के बाद वरिष्ठ अधिकारी के रूप में एक राष्ट्रीयकृत बैंक से सेवानिवृत्त.
कार्य क्षेत्र : हिमाचल प्रदेश (कुल्लू, कांगडा), चंडीगढ़, उडुपि (कर्नाटक), भुवनेश्वर, अहमदाबाद, भोपाल, लखनऊ, हैदराबाद, नागपुर, गाजियाबाद, बनारस । लगभग संपूर्ण भारत को देखने - जानने एवं प्रवास का सौभाग्य.
संपर्क
नाग मंदिर कालोनी, शमशी
जिला कुल्लू,
हिमाचल प्रदेश – 175126
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