बैगानी लोक कथा मोती की टोपी - डा. विजय चौरसिया एक गांव में एक कंजूस सेठ रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी। गांव के लोग उसकी पत्नी को बांझ...
बैगानी लोक कथा
मोती की टोपी
- डा. विजय चौरसिया
एक गांव में एक कंजूस सेठ रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी। गांव के लोग उसकी पत्नी को बांझ कहते थे। इससे सेठ बड़ा परेशान रहता था। उसने संतान के लिये कई प्रकार के जादू - टोना और सभी प्रकार की मानता करके देखा । परंतु उसकी पत्नी की कोख हरी नहीं हुयी। गांव के किसी जानकार व्यक्ति ने उसे सलाह दी की गांव के किनारे गणेश जी का मंदिर है। वहां जाकर मनौती करोगे तो तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जायेगी। सेठ सेंठानी दोनों गणेश जी के मंदिर गये। वहां जाकर मंदिर में झाडू लगाई सिंदूर लगाया और अगरबत्ती जलाकर आरती करके पूजा पाठ किया। एक जोड़ा नारियल भेंट करके मानता की हे गणेश महराज आप मेरे यहां लड़का दे दैं तो मैं आपको मोती की टोपी पहनाऊंगा।
दैवयोग से नौ माह बाद सेठानी के कोख में एक बच्चे का जन्म हुआ । सेठ - सेठानी ने उसका नाम मोती लाल रखा। घर में बधावे गाये गये मोहल्ले में मिठाईयां बांटी गयी। उस समय सेठानी ने सेठ से कहा अब तो गणेश जी ने आपकी सुन ली है। उनकी मानता अब पूरी कर देना चाहिये। सेठ बड़ा कंजूस था। वह बोला अभी इतनी जल्दी क्या पड़ी है। मोती को जरा बड़ा तो हो जाने दो उसे अपने पैरों से चलने दो। वह अपने पैरों से चलने लगेगा तब मोंती को साथ ले जाकर मानता पूरी कर देंगे । दिन बीतते देर नहीं लगती । सेठ का लड़का जवान हो गया। फिर सेठानी ने सेठ को याद दिलाई अब तो मोती जवान हो गया है । देवी देवताओं के काम में बिलंब करना कोई अच्छी बात नहीं है। सेठ बोला जब मोती की शादी होगी तब सभी देवी - देवताओं की पूजा करनी ही पड़ेगी। अत; उसी समय हम लोग गणेश जी की मानता पूरी कर देंगे।
आखिर वह दिन भी आ गया मोती की शादी हो गयी । तब सेठानी ने सेठ जी को याद दिलाया, अब तो आपके लाड़ले की शादी भी हो गयी है । आप कहें तो गणेश जी के दरबार में चलें।
सेठानी ने पूजा पाठ की तैयारी कर ली, ढ़ोल नगाड़े के साथ गांव में जलूस निकाला गया। गांव के सभी लोग गणेश जी के मंदिर में जमा हो गये। सेठ जी ने मंदिर में झाडू लगाई ,पानी छिड़का ,तेल और सिंदूर चढ़ाया ,होम धूप दी नारियल चढ़ाया । इसके बाद सेठ जी ने सफेद खादी की एक टोपी गणेश जी को पहनाई और साष्टांग प्रणाम किया।
गांव वालों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे बोले सेठ जी यह क्या? आपने तो मानता की थी की मेरे घर में यदि लड़का होगा तो मैं गणेश जी को मोती की टोपी पहनाऊंगा। सेठ जी ने बड़ी गंभीरता से कहा भैया मैंने तो मानता के हिसाब से ही काम किया है। मेरे बेटे का नाम मोती है और इस टोपी को मोती ही पहने करता था। इसलिये यह मोती की ही टोपी है । गांव वालों ने अपना सिर पीट लिया।
संकलन - डॉ. विजय चौरसिया गाड़ासरई जिला - ड़िंड़ोरी
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बायोडाटा डॉ.विजय चौरसिया
सम्प्रति -ª चिकित्सा कार्य, पत्रकारिता, लोक संस्कृति पर लेखन, प्रदेश के लोक नृत्यों एवं लोक संस्कृति के संरक्षण हेतु प्रयासरत। म.प्र.तथा देश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं जैसे कादंबनी, धर्मयुग,हिन्दुस्तान टाइम्स, दिनमान,इंड़िया टूडे, दैनिक भास्कर, नवभारत,नई दुनिया में एक हजार से अधिक लेखों का प्रकाशन। ª मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में करीब 30 लोक नाट्य एवं लोक नर्तक दलों का नेतृत्व एवं देश - विदेशों तथा फिल्मों में लोक नृत्यों का प्रदर्शन। चीन,मलेशिया,इंडोनेशिया,सिंगापुर,मारिशस, म्यानमार, दक्षिण अफ्रिका हरारे एवं बंगला देशों की यात्रा।
उप्लब्धियां-ª म.प्र. की प्रसिद्व समाजसेवी संस्था सावरकर शिक्षा परिषद में अध्यक्ष।सावरकर लोक कला परिषद में निर्देशक। दैनिक भास्कर पत्र समूह के क्षेत्रीय संवाददाता। इंटरनेशनल रोटरी क्लब डिंड़ौरी में सदस्य।राजीव गांधी शिक्षा मिशन ड़िड़ौरी में जिला इकाई के सदस्य। पंचायत समाज सेवा संचालनालय म.प्र. द्वारा डिंड़ौरी जिले के वरिष्ट नागरिक समूह के सदस्य। प्रदेश प्रतिनिधी रेड़ क्रास सोसायटी, म.प्र.,राष्ट्रीय भारत कृषक समाज के आजीवन सदस्य।.,दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर भारत सरकार द्वारा लोक नृत्यों के लिये 2012.13 के लिये गुरु नियुक्त। चेयरमेन जूनियर रेड़ क्रास सोसायटी म.प्र.।
शोध पत्र -ª स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा स्वाधीनता फैलोशिप 2006.07, प्प्रचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग म.प्र., उच्च शिक्षा विभाग म.प्र. भाासन, मेरठ बाटनी कालेज मेरठ,रानी दुर्गावती विश्वविघालय जबलपुर,जवाहर लाल नेहरु कृशि विश्वविघालय जबलपुर, स्वराज भवन भोपाल एवं गौंड़ी पब्लिक ट्रस्ट मंड़ला, भाासकीय चंद्र विजय महाविघालय डिंड़ौरी,रानी दुर्गावती महाविघालय मंड़ला,भारतीय संस्कृति निधि दिल्ली,,गुरु घासीराम विश्वविद्यालय रायपुर,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविघालय अमरकंटक में आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार 28 फरवरी 2012 को शोध पत्र का वाचन।
प्रकाशित कृतियां -ª एशिया महाद्वीप की सबसे पुरानी जनजाति बैगा के जनजीवन पर आधारित भारत वर्ष की प्रथम हिन्दी पुस्तक 'प्रकृति पुत्र बैगा' का म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल द्वारा प्रकाशन। म.प्र. की प्रसिद्व जनजाति गौंड़ में प्रचलित बाना गीत पर आधारित 'आख्यान' (गोंड राजाओं की गाथा) पुस्तक का म.प्र. आदिवासी लोक कला अकादमी द्वारा प्रकाशन। म.प्र. की प्रसिद्ध जनजाति परधान द्वारा गायी जाने वाली गाथा रामायनी, पंडुवानी एवं गोंड़वाना की लोक कथाओं का वन्या प्रकाशन भोपाल द्वारा राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित। जनजातीय लोक गीतों में राजनैतिक एवं सामाजिक चेतना शोध पत्र का प्रकाशन स्वराज भवन संस्कृति संचालनालय भोपाल द्वारा.।
अप्रकाशित कृतियां -ª बैगा जनजाति में प्रचलित चिकित्सा पद्धति,सर्प विष तंत्र - मंत्र चिकित्सा,म.प्र. के आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आदि।
संर्पक-डॉ.विजय चौरसिया
चौरसिया सदन गाड़ासरई जिला ड़िड़़ौरी म.प्र.
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