घर-द्वार (अरुण कुमार प्रसाद) ------------- 1-घर-द्वार 2-हाइकू- भरता ज्ञान 3-प्रजातन्त्र जारी है 4-डर रह गया 5-एक संवाद 6-जानवर 7-कव...
घर-द्वार
(अरुण कुमार प्रसाद)
-------------
1-घर-द्वार
2-हाइकू- भरता ज्ञान
3-प्रजातन्त्र जारी है
4-डर रह गया
5-एक संवाद
6-जानवर
7-कविता
8-डर रह गया
9--प्रसंग-प्रेम का
10-ऐसे न काटो यार
1- घर-द्वार
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जिसने ईंट बनाए.
जिसने नींव खोदे.
जिसने पसीने बहाये.
पत्थरों, औजारों के खरोंच
सहे देह पर, जिसने।
धूल, माटी, सीमेंट के ‘पावडर’
भरे फेफड़ों में, जिसने।
गारा जिसने बनाया।
ईंटों को जोड़ा जिसने।
पानी में गला दिनभर जो।
आकाश में लटका और
घर पर गिरने से आकाश को
रोका जिसने।
औरतों ने शिशुओं को थप्पड़ जड़े
इसलिए कि
दूध पीने या चिपटे रहने की जिद पर
अड़ा था।
उधर ‘सुपरवाइज़र’ सिर पर खड़ा था।
और निर्जन, खामोश टुकड़े को
पृथ्वी के
अट्टालिकाओं से दिया भर।
दिन के अवसान पर
खाया या नहीं खाया
पर पीया तो जरूर आज,
अपने कल को,
अपने को कल,
दुहराने के लिए।
और पसर गया
उस आकाश के नीचे
जिसे
तोड़ने की जिद पर अड़ा था।
यही आकाश उसके सिर पर
उसके घर-द्वार सा
दृढ़ होकर खड़ा था।
इसमें आँसू खोजिए।
और पोंछने का जतन कीजिए।
श्रम संस्कार है।
इसे संस्कृति से जोड़िए।
इसे तिरस्कृत न कीजिए।
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2-हाइकू- भरता ज्ञान
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भरता ज्ञान।
कथा, शिक्षाविदों सी।
दादियो उठो।
टूटे दरख्त।
काट-कूट बांटने।
आबादी जुटी।
संबल मेरा।
धराशायी धड़ाम।
कटे दरख्त।
विलाप नहीं ।
बादल था रूआँसा।
निहार नदी।
कृषक-आँखें।
नभ में धँसी-आँखें।
रो बौने मेघ?
सत्र में मिले।
मुद्दा सुलझाने को।
भौंकने लगे।
3-प्रजातन्त्र जारी है
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बहस जारी रहे।
प्रजातन्त्र जारी है।
मुद्दा सुलगता रहे।
उत्तरोत्तर बढ़ता रहे।
सत्र जारी रहे।
तथ्य का क्या मतलब!
तर्क, जाये चूल्हे-भांड में।
ये कंठ नीलकंठ थोड़े है
विष जो पिये ।
ये तो धर्म या जाति का है
कंठ।
विष वमन है सौगंध।
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4-डर रह गया
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आज सुबह
कल जैसे ही मिले
रात में जो बीता
उसे लगे कहने-सुनने।
सुना।
मन भीगा।
शंकाएँ थी
सुलझ न पाया।
सुलझा लेंगे कल
कह लिए-
मुलाक़ात खत्म।
डर रह गया।
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5-एक संवाद
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वस्त्र और जेवर।
झुमके, बालियाँ।
पाँव के पायल, कंठ के हार।
बहुत तोहफे,
भेजे हैं प्रिय!
कैसा लगा लिखना,
फरमाईस भी।
पत्नी का पत्र
जल्द ही आ गया
लिखा था -
आओ। उदास है जिंदगी।
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6-जानवर
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रात और दिन
रक्तबीज हैं।
जितनी बार गिरते हैं,
उतनी ही बार ले लेते हैं जन्म।
उनकी भी संस्कृति है
हम छोटा मानते हैं।
सनातन संस्कृति का शुद्र जानते हैं।
महत्व तो है उनका;उसे।
संस्कृतियों का युद्ध
ढ़ूहों का युद्ध है।
है अमानवीय सोचों का युद्ध ।
युद्ध अपने अस्तित्व के लिए
तथ्य नहीं, तर्क को चुनता है।
अफवाहों के ‘गुप्त’ रहस्य को
एकाग्रता से सुनता है।
रक्तबीज रहेगा।
क्योंकि अमरत्व रहना है।
सृष्टि रहने के लिए।
देश भूगोल है कि इतिहास?
देश युद्ध से जन्म लेता है
या कि
शांत सभ्यता के विकसित होने से?
आपाधापी खेतों में
खर-पतवार की तरह
बेतरतीब बढ़ा हुआ है।
मैं कहाँ जाऊँ?
षडयंत्र पढ़ा नहीं।
गणतन्त्र में सड़ा नहीं।
सन्यास और दरिद्रता-
कुछ तो चुनना था
दुश्मन से कर ली मित्रता।
जानवर सा आदमी है।
जंगल, जानवर को
नियंत्रित करता है।
अपनी बलि देकर।
और आदमी।
उसकी बलि लेकर।
मैं या तुम, कोई
श्रेष्ठता तय करे।
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7-कविता
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कविताओं में क्या है
कि
लोग उसे चुनें।
सत्य या मिथ्या!
मेरे हृदय और मन के,
मस्तिष्क के भी
भावनाओं, इच्छाओं को
हवा दे दो जो।
यही न?
जल की कथाएँ
उसकी खुशियाँ या व्यथाएँ
हमारी जाती है हो।
शर्त ये है कि
प्यास बुझाएँ या ताप।
स्वार्थ कविताओं में
हावी है।
निर्दोष नहीं हैं वो।
8-डर रह गया
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आज सुबह
कल जैसे ही मिले
रात में जो बीता
उसे लगे कहने-सुनने।
सुना।
मन भीगा।
शंकाएँ थी
सुलझ न पाया।
सुलझा लेंगे कल
कह लिए-
मुलाक़ात खत्म।
डर रह गया।
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9--प्रसंग-प्रेम का
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भँवरा प्यासा।
भँवरों ने गाया
प्रणय गीत।
फूलों ने उठाए
घूँघट के पट।
खिली, खिलखिलाई।
छोड़ा शरमाना।
‘साजन आ जा ना!
खेलो न यूं,
आँखमिचौनी।
स्पर्श की लालसा,
लेने अँकवार ,
तरसा है मन।
अब तरसा ना। '
'हवा गुदगुदाए
मेरा बदन।
किरणों की ऊष्मा ।
भरे अकुलाहट।
आओ न मीत।
निभा जा रीत।
नया संसार
बसना-बसाना।
आओ रचें हम।
रचना नयी।‘
भँवरा मुसकाया।
थोड़ा सकुचाया।
आकुल आमंत्रण था
रोक न पाया।
आ गाया पास ।
बाँहों में भर।
रस का लेन-देन।
प्रेम प्रसन्न।
हो गया संपन्न।
अद्भुद उमंग से।
इस प्रेम प्रसंग से।
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10-ऐसे न काटो यार
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दरख्तों के साये
हमारा घर, दर और दीवार।
इसे ऐसे न काटो यार।
हमें अतीत की कथाएँ
अपने बच्चों को कहने हैं।
हमें भविष्य की
कहानियों के
तरीके गढ़ने हैं।
आकाश से बादलों का पता
पूछना है,
धरती से हमारा कल।
हम पहाड़ों से
पूछेंगे उसके ऊँचे होने का
रहस्य।
हमें भी होना है ऊंचा।
गहराइयों में जो अकूत
रत्न है सागर के
कितने कत्ल कर किए हैं हासिल।
हमें पूछना है।
हमें भी होना है उतना गहरा।
मेरा अस्तित्व तो रहने दो।
इसे ऐसे न काटो यार।
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अरुण कुमार प्रसाद
शिक्षा--- ग्रेजुएट (मेकैनिकल इंजीनियरिंग)/स्नातक,यांत्रिक अभियांत्रिकी
सेवा- कोल इण्डिया लिमिटेड में प्राय: ३४ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्यरत रहा हूँ.
वर्तमान-सेवा निवृत
साहित्यिक गतिविधि- लिखता हूँ जितना, प्रकाशित नहीं हूँ.१९६० से जब मैं सातवीं का छात्र था तब से लिखने की प्रक्रिया है.मेरे पास सैकड़ों रचनाएँ हैं.यदा कदा विभिन्न पत्र,पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ हूँ.
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