इक्कीसवीं सदी के आते –आते तक मानव की विकास यात्रा ने कई क्षेत्रों में तरक्की की और सभ्यता के उस चरण पर पहुँचा जहाँ विकास और तकनीक ने उसकी दु...
इक्कीसवीं सदी के आते –आते तक मानव की विकास यात्रा ने कई क्षेत्रों में तरक्की की और सभ्यता के उस चरण पर पहुँचा जहाँ विकास और तकनीक ने उसकी दुनिया को क्रांतिकारी रूप मे प्रभावित किया है | विज्ञान और तकनीक का यह प्रभाव दुनिया की आधी आबादी यानी स्त्री के जीवन को भी कई मायनों में प्रभावित करता है जिसका असर परिवार , समाज और राष्ट्र के विकास, लक्ष्यों की प्राप्ति पर पड़ना स्वाभाविक है |
विज्ञान और तकनीक ने सबसे ज्यादा यदि स्त्री की दुनिया को प्रभावित किया है - वह है - सदियों पुराने अंधविश्वास और अंध परमपराओं को तोड़ा जाना और उनमें नई चेतना पैदा करना । चेतना का यह स्तर सिर्फ स्त्री के बदलने के साथ ही नहीं जुड़ा बल्कि स्त्री के साथ परिवार और समाज भी बदला । उनमें नई चेतना आई । यह तथ्यपूर्ण सोच थी कि स्त्री के ऊपर किए जा ने वाले विभिन्न हिंसक कृत्यों पर रोक लगाई जा सके । चाहे वह सती प्रथा हो या जादू टोना के नाम पर उनके साथ की जाने वाली हिंसा । चाहे उनके सम अधिकारों की वकालत हो या शिक्षा तथा जीवन जीने के समान अवसरों की प्राप्ति, अधिकारों की प्राप्ति- विभिन्न तथ्यपूर्ण और नवोन्मेष क्रांतिकारी विचारों, प्रयासों , संघर्षों का ही परिणाम है |
21 वीं सदी में स्त्री की बदलती दुनिया में विज्ञान और तकनीक का भी बहुत बड़ा योगदान है । विशेष ज्ञान 'विज्ञान' का प्रयोग सदियों पहले से भारतीय मनीषियों ने जीवन पद्धति के लिए विकसित किया जिसे सामान्य प्रयोग में भी लाया गया । प्रकृति के अनुसार खान -पान , रहन -सहन , जीवन शैली जीता हुआ कब भारतीय समाज किस तरह अंधविश्वास में जकड़ने लगता है और किस तरह विभिन्न कुरीतियों में जकड़ा इंसान अवैज्ञानिक जीवन जी ने लगता है - इसका सबसे बड़ा असर आधी आबादी स्त्री के जीवन पर भी देखने को मिलता है । सभ्यता के विकास के विभिन्न चरणों में 21 वीं सदी आते -आते जब कई अंधविश्वासों से पर्दा उठता है , अन्ध परंपराओं से मुक्ति मिलती है तब इस नई सदी में सबसे अधिक राहत स्त्री की दुनिया को मिलती है । विज्ञान जब विभिन्न रहस्यों पर से पर्दा उठाता है तब उसके कारण विभिन्न भ्रांतियाँ जो स्त्री की दुनिया के लिए रचे गए थे ,उसके मिथक धीरे -धीरे टूटते हैं - इसका सबसे बड़ा कारण है शिक्षा और ज्ञान ,विज्ञान ,तकनीक का विकास ।
21 वीं सदी का यह बीता दो दशक पिछली बीती कई शताब्दियों के सफर में कई मायनों में भिन्न है ,तो उसका सबसे बड़ा कारण है विज्ञान आधारित नई सूचना तकनीक जिसने क्रांतिकारी परिवर्तन की जो दस्तक दी तो आधी आबादी की दुनिया भी उस नई बयार से प्रभावित हुई ,हो रही है और सदियों पुराने मिथक टूटे । ये मिथक स्त्री के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक उसे विभिन्न मिथकों मे बाँधते थे ,जैसे की - स्त्री जन्म से लेकर मृत्यु तक बंधनों में होती है , उसे पिता ,पति ,पुत्र के बंधनों में जीवन पर्यंत रहना चाहिए , बेटी जन्म लेती है तो तो धरती काँपकर तीन हाथ नीचे चली जाती है , बेटी से मुक्ति नहीं मिलती बेटे से ही मुक्ति मिलती है , बेटी बोझ है और इतना ही नहीं विभिन्न बहानों से स्त्री के जीवन जीने के समान अवसरों को छीनने वाली सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने का काम किया तो वह इस सदी की ज्ञान- विज्ञान की चेतना जगाने वाली शिक्षा की वह ज्योति है जिसने सदियों पुराने अमानवीय अंध परंपराओं के सामने स्त्री प्रश्नों को जन्म दिया और उनपर सवाल उठाए । इन प्रश्नों के प्रति-उत्तर में स्त्री ने स्वयं को साबित किया कि ज्ञानार्जन से , अपनी बुद्धि से वे दुनिया में हर वह मुकाम पा सकती हैं जहाँ पुरुष अपनी बुद्धि से पहुँच सकते हैं । इन स्त्रियों ने यह साबित किया कि वे हवाई जहाज़ चलाने से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनकर देश दुनिया को नेतृत्व दे सकती हैं । अगर घर -परिवार , समाज को संभाल सकती हैं तो वैज्ञानिक , डॉक्टर , प्रोफेसर , वकील बनकर ब्रह्मांड और दुनिया की उलझनों को सुलझा भी सकती हैं ।
स्त्री की बदलती दुनिया में न सिर्फ़ स्त्री के स्वयं को बदलने की कोशिश है बल्कि परिवार , समाज के साथ सरकारें भी अपनी नवीन नीतियों में जेंडर पक्षों का समावेश कर रही है , जिसमें नवोन्मेष की वैज्ञानिक सोच भी शामिल है ।
चूल्हा -चौका , बर्तन -भांडे, घर -परिवार , रीति -रिवाज की अपेक्षाओं और जिम्मेदारियों के बीच भी स्त्री सूचना -तकनीक - विज्ञान के विचारों से प्रभावित ही नहीं हो रही बल्कि अपने और परिवार की उन्नति के लिए सूचनाओं की प्राप्ति , संचार के लिए , स्वास्थ्य शिक्षा के लिए विभिन्न तकनीकी उपकरणों और माध्यमों का प्रयोग कर रही है । चकला -बेलन चलाने वाले हाथ अब सिर्फ़ स्कूटी या कार की ड्राइविंग लाइसेंस संभालने तक ही सीमित नहीं रही है , बल्कि हज़ारों लोगों की कमान अपने हाथ में संभाली ट्रेन चलानेवाली स्त्री से लेकर हवाई जहाज़ उड़ाती ,हवा से बातें करती स्त्री की भी है । विज्ञान ,तकनीक के इस युग में स्त्री ने अपनी बुद्धि , कर्म से यह साबित कर दिया कि हम कोमल ज़रूर हैं पर कमज़ोर नहीं ।
चिकित्सा विज्ञान के विकास ने स्त्री स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा की वहीं विभिन्न तकनीकी उपकरणों का उपयोग अपनी ज़रूरतों के लिए कर रही हैं । 3 जी , 4 जी और 5 जी युग में स्त्रियाँ नवीन उपकरणों का प्रयोग सूचना , शिक्षा , संचार , अभिव्यक्ति के विभिन्न प्लेटफॉर्म , सोशल मीडिया , मनोरंजन के लिए कर रही हैं । मल्टिमीडिया तकनीक के प्रयोग द्वारा न केवल शब्दों से बल्कि ऑडियो , वी डियो, ग्राफिक्स , एनिमेशन द्वारा ख़ुद को दुनिया से जोड़ रही हैं , जुड़ रही हैं । उनकी यह चेतना सदियों पुराने अंधविश्वासों को रूपांतरित करते हुये देश और दुनिया में सभ्यता के विकास के उस चरण से गुज़र रही है जहाँ आज भी वह सपना देखा जा रहा है कि अगर स्त्री सशक्त होगी तो पूरा समाज सशक्त होगा , राष्ट्र और विश्व सशक्त , सुंदर होगा ।
परिवर्तन जब अपने साथ कई अच्छाइयाँ लेकर आता है वहीं कई बुराइयों को भी अपने साथ लेकर आता है । विज्ञान ,तकनीक के विकास के साथ उसके सकारात्मक परिणाम के साथ नकारात्मक परिणाम भी सामने हैं । एक तरफ प्रकृति का अंधाधुंध दोहन महिलाओं के सामने इको फ़ेमिनिज़्म के नए प्रश्नों के रूप मे सामने है वहीं स्त्री हिंसा के नए स्वरूप भी सामने हैं जिनका रिश्ता कहीं न कहीं विज्ञान तकनीक से भी जा के जुड़ते हैं । स्त्री हिंसा का वह क्रूरतम रूप जहाँ लाखों बेटियाँ कन्या भ्रूण के रूप मे ही ख़त्म कर दी गईं और की जा रही हैं जिसके लिए इन् विज्ञान ,तकनीक के उपकरणों की सहायता ली जाती है ।
निष्कर्षतः कह सकते हैं कि 21 वीं सदी में विज्ञान , तकनीक के नवोन्मेष ने स्त्री की दुनिया को सकारात्मक रूप में विभिन्न स्तरों पर बदल दिया है वहीं इसके दुष्परिणामों को भी स्त्री भुगत रही है । आधी आबादी की दुनिया को सशक्त ,शिक्षित होने के इस परिवर्तन का जो स्वरूप हम आज देख रहे हैं , वह सदियों का संघर्ष है , कोशिश है , जिसे समय - समय पर अलग -अलग समाजों में कई लोगों के प्रयासों , संघर्षों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । वे कोशिशें जो पीढ़ी -दर -पीढ़ी सफ़र करती हुई आज 21 वी सदी के दूसरे दशक में पहुँची । जहाँ विज्ञान , तकनीकी और सूचना क्रांति के युग में परिवर्तन के नए रूपों को सामने लाती है जिससे प्रभावित हम , हमारी दुनिया और आधी आबादी । कई तरह की आर्थिक , सामाजिक , भौगोलिक , शैक्षिक बाधाओं की वजह से कई महिलाएँ इनका लाभ भी नहीं ले पातीं लेकिन कहीं न कहीं उनकी आँखों में भी एक सुंदरतम दुनिया की ख़्वाहिश भी है , जहाँ वो भी अभावों के बीच भी उसका लाभ ले सकें ।
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डॉ. रेणु कुमारी ,वर्धा , महाराष्ट्र
सहायक ग्रंथ सूची
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