सुबह हो चुकी थी। सूरज लाल गोला बनकर पूर्वदिशा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका था। चिड़ियों की तेज चहचहाहट सुन दिमान उवासी भरता हुआ जाग गया।...
सुबह हो चुकी थी। सूरज लाल गोला बनकर पूर्वदिशा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका था। चिड़ियों की तेज चहचहाहट सुन दिमान उवासी भरता हुआ जाग गया। जैसे ही उसने खेत की तरफ नजर दौडाई दस - पन्द्रह गौमाताएं बड़े आराम से फसल चरने में मस्त थीं।
लाठी उठाकर बिजली की गति से दिमान ने दौड़ लगा दी - ‘सारी रात सोने नहीं देतीं, दिन को भी फुर्सत लेने नहीं देतीं। पौष की हड्डी गलाने वाली ठण्ड में भी सारी रात खेतों पर हेर्रा - हेर्रा! करते काटनी पड रही है।’
‘अरे जनाब ! काहे अकेले-अकेले बडबडा रहे हो।’ पुरानी टूटी सी साईकिल को कच्ची डगर में खीचते हुए जुम्मन मियाँ ने दिमान को बोला।
‘राम-राम! मियाँ... सुबह-सुबह चूरन बेचने निकल पडे। शाम तक आराम से 200 रुपये छापोगे। तुम्हारा काम बढिया है। यहाँ तो रात को मरो, दिन को मरो। इन गौमाताओं ने तो जीना हराम कर दिया है।’ दिमान मुँह लटकाकर एक सांस में सारी बातें बोल गया।
थोड़ा सा मुस्कराते हुए मियाँ ने सलाम नमस्ते ली - ‘क्या दिमान... कैसी बहकी - बहकी बातें करते हो? गौमाताएं क्या आसमान से टपक कर आई हैं। सब तुम जैसे किसानों के द्वारा दूध पीकर छोड़ी गयीं हैं।’
‘सो तो है जुम्मन मियाँ, परन्तु बड़े किसानों की इस हरकत से हम जैसे छोटे किसानों का तो जीना हराम हो गया। अब देखो वे लोग डेरी फार्म चलाते हैं। विदेशी नस्लों की गायें खरीद कर लाते हैं और मोटा मुनाफ़ा कमाते हैं और बछड़ों को खुल्ला छोड़ देते हैं, जो बड़े होकर खच्चर सांड़ बन जाते हैं। ये खच्चर सांड बड़े खतरनाक साबित हो रहे हैं। सड़कों पर बहुत बड़े-बड़े भयानक एक्सीडेंट करवा रहे हैं। और तो और ये भैसों को भी खराब कर देते हैं। अब कल की ही बात है। वो अपना रमेश है ना... पंजाब से अस्सी हजार की भैंस कर्ज लेकर लाया था। बेचारे की रात में खराब कर दी। उसकी घरवाली का रो -रोकर बुरा हाल है। रमेश तो बोल रहा था, अगर समाज का ड़र न हो तो काटकर बोटी-बोटी कर दूं उस खच्चर की’...
‘जनाब! ये तो बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई। पर सरकार तो आवारा गौओं के लिए नयी-नयी गौशालाएं खुलवा रही है। फिर इनको पकड़कर गौशालाओं में क्यों नहीं दे आते।’ जुम्मन मियाँ ने दिमान को सलाह दी।
‘क्या कहते हो मियाँ ! सब अखबारी बाते हैं। देती होगी सरकार पैसा। परन्तु जमीनीस्तर पर तो जीरो बटा सन्नाटा है। जो गौशालाएं पहले से संचालित हैं, उनकी हालत बहुत खराब है और नई गौशालाओं का निर्माण सिर्फ कागजों पर ही हुआ है। सरकार द्वारा दिया गया पैसा कौन खा रहा है? पता ही नहीं चल रहा।’
जुम्मन मियाँ गम्भीर होते हुए बोले -
‘तो इसमें सरकार की तो कोई गलती है नहीं, वो तो गायों के लिए बजट निकाल रही है ना.. अब ये अलग बात है कि सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं, परन्तु सरकार तो दावा कर रही है कि हमने भ्रष्टाचार जड़ से खत्म कर दिया। झोल क्या है?’
दिमान बत्तीसी दिखाते हुए बोला -‘मियाँ भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ बल्कि बढ गया है और तो और अब गर्व के साथ भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार कर रहे हैं।’
दिमान और जुम्मन मियाँ का वार्तालाप चल ही रहा था कि उल्फत सिंह गायों का एक झुँड हांकता हुआ दिमान के खेत की तरफ ले आया।
‘अरे काहे कूँ उल्फत भैया! मेरे खेत की ओर हांकते हुए ला रहे हो। सारी रात हेर्रा हू करते बितायी है।’ दिमान झल्लाते हुए बोला।
थोड़ा सा गुस्से में उल्फत बोला -‘अरे! उस ओर वो ठाकुर नहीं निकालने दे रहा, उधर दोनों तरफ कटीलेतार लगे हैं। क्या उढ़कर निकल जायेगीं।’
‘ठीक है उल्फत भैया निकाल लो पर धीरे-धीरे खेत की मेंड पर निकालीओ।’ दिमान ने उल्फत के गर्म दिमाग का पारा भाप कर गायों को निकल जाने में ही भलाई समझी।
उल्फत सिंह गायों के झुंड को हांकता हुआ जंगल की तरफ़ ले गया। दिमान उसे तब तक देखता रहा जब तक कि वो आँखों से ओझल न हो गया।
‘पता है मियाँ’...
‘किस बारे में’... जुम्मन दिमान की ओर आश्चर्यभाव से देखते हुए बोले।
‘अरे! इसी उल्फत के बड़े लड़के के बारे में, कल ही तो हॉस्पीटल से पूरे एक महीने बाद आया है।’
‘हूं... क्या कहते हो? बात क्या बनी थी।’ जुम्मन मियाँ ने दिमान से सवाल किया।
दिमान -‘उल्फत का बड़ा बेटा रघु है न उसने बैंक में खेत गिरवी रखकर लोन (कर्ज) पर फोर व्हीलर टेम्पों खरीदा था। भाड़े के इन्तजार में वाई पास चौराहे पर खड़ा था। एक गाय का भाड़ा भी मिल गया। भाड़ा देने वाला पता देकर खुदकी मोटरसाइकिल से आगे निकल गया। और रघु पीछे-पीछे टेम्पों चलाने लगा। आगरा पहुंचते ही बजरंग दल वालों, विश्व हिंदु परिषद व आर. एस. एस. वालों के हत्थे चढ गया। गौकशी के शक में बेचारे रघु की हड्डी पसली एक कर दी, और पुलिस मूक दर्शक बनी सारा खेल-तमाशा देखती रही। 50-60 हजार हॉस्पीटल में इलाज कराने में खर्च हो गये और 20 हजार पुलिस थाने से टेम्पों छुडाने में... बेचारे रघु का तो सत्यानाश हो गया।’
‘अरे रे... तौबा- तौब, ये तो बहुत बुरा हुआ। बेचारा रघु ...!’ जुम्मन मियाँ चिन्तित होते हुए बोले।
तभी दिमान की घरवाली कलेवा (खाना) लेकर आ गई। ‘पंचायत पूरी हो गई हो तो खाना खा लो... कितनी देर से देखती आ रही हूं। बड़े घुट-घुटकर बतिया रहे हो।’
दिमान ने जुम्मन मियाँ को मुस्कराते हुए खाने के लिए आमंत्रित किया।
और जुम्मन ‘अल्लाह! बहुत दे’... कहते हुए अपनी टूटी साईकिल खींचते लगे।
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- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुजर,
फतेहाबाद, आगरा, 283111
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