1...धरती हिन्दुस्तान की लहराती रहे बलखाती रहे ये फसलें खेत खलिहान की युगों युगों तक मुस्काती रहे ये धरती हिन्दुस्तान की ...3 हिन्दू मुस...
1...धरती हिन्दुस्तान की
लहराती रहे बलखाती रहे
ये फसलें खेत खलिहान की
युगों युगों तक मुस्काती रहे
ये धरती हिन्दुस्तान की ...3
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
मिल के रहें सदा ये भाई
भेदभाव सब मिट जायें
उंच नीच जात पात सब हट जायें
और मिट जायें दूरियां
सारे जहान की
मुस्काती रहे युगों युगों तक गाती रहे
ये धरती हिन्दुस्तान की
हो राष्ट्रभक्ति दिलों में सबके
राष्ट्र के सम्मान की
शान न जाने पाए कभी
भारत देश महान की
अमर रहे गणतंत्र हमारा
ये गाती रहे धरती हिंदुस्तान की
ये धरती हिंदुस्तान की
ये धरती हिंदुस्तान की
राजेश गोसाईं
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2........गोदी
बड़ी तमन्ना थी कि
सेवा वतन की मिले
मैंने जब कदम बढ़ाया
मुझे हम-वतन मिले
भरोसा जिन्दगी का तो
कुछ भी नहीं है
ये सौभाग्य होगा मेरा
मुझे तिरंगे का कफन मिले
पैदा हुआ जब से
इक लाश बन के रह गया
ज़िन्दगी के सफ़र में
मुसाफिर ही रह गया
उम्र वतन से ज्यादा ना हो किसी की
दामन में लेकर मौत चले
ये सौभाग्य होगा मेरा
मुझे तिरंगे का कफन मिले
आंचल में मां का प्यार
मिले ना मिले
मगर वतन का प्यार
मुझे हर पल मिले
सोया रहा था मां की
ठण्डी छांव में
गोदी मुझे
मां भारती की अब मिले
ये सौभाग्य होगा मेरा
मुझे तिरंगे का कफन मिले
राजेश गोसाईं
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3...** अर्जुन ***
शब्दों के बाण
कलम के धनुष पर चढ़ा
निशाना कविता पर लगाता हूँ
मिला नहीं द्रोण कोई
प्रयत्न में एकलव्य बन जाता हूँ
साध कविता की आँख
अंगूठा
कलम प्रत्य्ंचा चढ़ा
श्रोताओं के वट वृक्ष पर
क्रिया ये दोहराता हूँ
कविता के स्वयंवर में
कमी नहीं कवियों की
छवि द्रोण की हृदय बसा
मैं एकलव्य से
अर्जुन बन जाता हूँ
राजेश गोसाईं
फरीदाबाद
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4......दुल्हन बनी रचना
भावनाओं के परिधान में
विचारों का घूंघट ओढ़
भाषा का कंठ हार पहन
शब्दों के आभूषण और
कला के कर्ण फूल धर
संस्कृति की मेंहदी रच कर
मांग में कलम से सिंदूर भर
नवश्रृंगार किये नव वर्णों से
मात्राओं की पायल बांध
दुल्हन बनी रचना नई नवेली
बाबुल कवि को छोड़
पग बदन समेटे हुये
पंक्तियों की माला में
सुसज्जित कागज की सेज पर
अपने पिया के समक्ष है
राजेश गोसाईं
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5......माटी का पुतला
इक दिन मिल जायेगा
माटी में तू
माटी का पुतला है
माटी बन जायेगा तू
इस पावन
मिट्टी का सम्मान कर ले
देश की मिट्टी है तू
देश के नाम कर ले,
मौका ये फिर ना मिलेगा
पछतायेगा बाद में तू
जग में तू
जब से आया
रोता ही आया
जायेगा इस जग से
रो कर भी तू
और कोई मौत पे तेरी
हंसता ना पायेगा तू
आज जान
वतन के नाम कर ले तू
राजेश गोसाईं
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6........शमशान
मैं चला शमशान की ओर
कफन अर्थी पे अपनी ओढ़
ले के चार कंधों का सहारा
सोया हुआ हूं मैं थका हारा
है ये अंतिम यात्रा का दौर
चला मैं शमशान की ओर
थम गया मेरी सांसों का रेला
रुका नहीं जिन्दगी का मेला
चला मैं अकेला चला मैं अकेला
ना कोई संगी ना साथी ओर
इक भीड़ ले जा रही है
मुझको शमशान की ओर
फूलों में सज के अर्थी चली
जग को तज के
मौत की मर्जी चली
ज़िन्दगी के अंतिम पड़ाव की ओर
रुका नहीं सांसों का दौर
चला मैं शमशान की ओर
राजेश गोसाईं
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7.....कुसुम क्यारी
हमें रख लेना
अपने वट वृक्ष की छाँव में
हम अभी नये हैं
तुम्हारे साहित्य के गाँव में
इस गुल को भी
खिलने दो अपने गुलिस्तां में
लिखता है दिल की कलम से
अलफाज राजेश
रख देना अपनी
कुसुम क्यारी में
बड़ी खुशबु है रचना तुम्हारी में
ना जाने क्या क्या लिख देता हूँ
पर आ पहुँचा हूँ उम्मीदों की
वाह वाह में
राजेश गोसाईं
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8.....शहनाई
दूर कहीं शहनाई गाती है
तेरे लबों से मेरे दिल तक आती है
लगता है तू मुझे कहीं बुलाती है
पर पास आने से थोड़ा शर्माती है
धुन प्यार की कानों में रस भरी
जिस दिन से सुनी मैंने मन से सुनी
माना लगी खुशी की झड़ी है
लगता है कि तू पास आ खड़ी है
काहे इतना तू मन भाती है
गीत प्रेम के छुप छुप के गाती है
जरा करीब आ लें
थोड़ा प्रेम बरसा ले
इस गरीब से भी मिल के
नज़र कुछ तो मिला ले
दूर रह के भी तू क्यों
करीब नजर आती है
बेकरार दिल की धड़कने ये
प्यार के संगीत बजाती है
राजेश गोसाईं
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9.......काफिले
शब्दों के काफिले में
उलझ कर रह गया हूं मैं
कागज के पथ पर
कल्पना के रथ पर
कलम के अश्व की
लगाम पकड़ कर
रह गया हूं मैं
कभी माथे की राह पर
कभी कागज की धरा पर
धीमी गती से आते हैं
कलम के पांव
दिल की आवाज से
मिल कर रह गया हूं मैं
जच्चा के दर्द की भांति
दिमाग के गर्भ में आती
कोई शिशु रचना बन जाती
प्रसूति काल में बेचैन सी
रहा पर ठहर गया हूं मैं
साहित्य के गाँव में
रचना की छाँव में
लिख कर ये पंक्तियां
कागज की चौपाल पर
ठहर गया हूं मैं
राजेश गोसाईं
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10......कलम का जख्म
कलम का जख्म गहरा हो गया
कल्पनाओं की गूंज में
हर शब्द बहरा हो गया
क्या लिखूं , कैसे लिखूं
बेचैन कलम पर
उंगलियों का पहरा हो गया
कागज़ के खेतों में
लड़खड़ाते कदम
टूटे अलफाजों का डेरा हो गया
आज हवा में कोई रंग नहीं मिला
कागज की बगिया में
कलम का कोई सुमन नहीं खिला
चमन में यह सैहरा हो गया
राजेश गोसाईं
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11.....सहारा
है कुर्बान इसपे जान सदा
हर सांस भारत से आता है
भारत है प्राण हमारा
भारत ही अन्न दाता है
ये मेरा सौभाग्य है
या मैं किस्मत वाला हूं
लिया जन्म भारत में
मैं भारत का रखवाला हूं
बहा कर अपने लहू की बूंदे
जिन्होंने वतन को संवारा है
बलिदान उनका भी
हमको जान से प्यारा है
हर सांस में
हर दिल में
हर जान ओ तन में
भारत का ही सहारा है
राजेश गोसाईं
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12....रेला
चार दिनों का
खेल है ज़िन्दगी
पांचवां दिन कोई
होता नहीं है
जो जग में आया
रोता ही आया
हंसता हुआ कोई
आया नहीं है
सांसों का खेल है ज़िन्दगी
हार जीत कोई
यहां होता नहीं है
चार दिनों का
मेल है ज़िन्दगी
फिर बिछुड़ जाता
यहां हर कोई है
टूटे हुये फूल सभी हैं
सज जाते हैं मेले में
दर पे लगा लें या
चढ़ जाता अर्थी पे कोई है
आया ले के सांसों का रेला
रुक गया तो चला अकेला
खुशी हो या गम
संग कोई जाता नहीं है
राजेश गोसाईं
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