पश्चिमी विक्षोभ की वज़ह से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बरस सर्दियों से जन-जीवन अभी और भी प्रभावित तथा भयभीत रहेगा। अभी जनवरी है और वसंत का दूर...
पश्चिमी विक्षोभ की वज़ह से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बरस सर्दियों से जन-जीवन अभी और भी प्रभावित तथा भयभीत रहेगा। अभी जनवरी है और वसंत का दूर-दूर तक कोई संकेत नहीं है। समूचा उत्तर भारत भीषण सर्दी की चपेट में है। हर कहीं, हर कोई ठिठुर रहा है। सर्दी से बचने के वैध-अवैध साधन तलाश रहा है। सर्दी-प्रकोप से निजात पाने के लिए अलाव की शरण में है। पहाड़ी इलाक़ों सहित मैदानी इलाक़ों तक में सर्दी के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। अलर्ट जारी है। देश की राजधानी दिल्ली में तक़रीबन 120 वर्षा का रिकॉर्ड टूट गया है। वर्ष 1901 से दर्ज़ आंकड़ों के मुताबिक़ दिल्ली का तापमान तक़रीबन पाँच डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया है, जो सामान्य तापमान से दो डिग्री कम है, जबकि देश के पाँच प्रदेशों में तापमान पाँच डिग्री सेल्सियस से भी नीचे दर्ज़ रहा है।
सर्दी और कोहरे के कारण हवाएँ दमघोंटू होती जा रही हैं। कोहरे में तक़रीबन बाईस क़िस्मों के ज़हर तैर रहे हैं। वायु-गुणवत्ता संकुचित हो रही है। दृश्यता घट रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार वायु-गुणवत्ता सूचकांक 430 पर आ गया है। इस स्तर की हवा को गंभीर वायु-गुणवत्ता की श्रेणी में रखा जाता है। कई प्रदेशों में अलर्ट जारी कर दिया गया है। कम से कम आधा दर्ज़न राज्यों में तो रेड अलर्ट जारी है, जहाँ का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर नीचे चल रहा है। उत्तर भारत के 74 फ़ीसदी लोगों में विटाममिन बी-12 की कमी पाई गई है।
इस बरस गर्मियों और बारिश ने जिस तरह बेतरतीब उपद्रव मचाया था, लगभग उसी तरह सर्दियाँ भी अपना कारनामा दिखा रही हैं। यह सब जलवायु परिवर्तन का ही नतीज़ा है। दिल्ली की सर्दियाँ अगर 120 बरस का रिकॉर्ड तोड़ रही हैं, तो उधर रूस की राजधानी मॉस्को में तक़रीबरन 130 बरस बाद यह दिसंबर बेहद गरम बीता है। यहाँ माइनस में रहने वाला तापमान पाँच डिग्री तक ऊपर पहुँच गया है। हालात ये हैं कि यहाँ नववर्ष की अगवानी के लिये बनावटी बर्फ़ का इंतज़ाम करना पड़ा है। वर्ष 2019 में गर्मी-सर्दी दोनों ने ही रिकॉर्ड तोड़े हैं। माह जून में जहाँ सबसे ज़्यादा गर्मी रिकॉर्ड दर्ज़ की गई थी, ठीक वहीं, अभी दिसंबर में सबसे ज़्यादा सर्द दिन भी रिकॉर्ड किया गया। राजधानी दिल्ली में दिसम्बर का अंतिम दिन 18 वाँ ’कोल्ड डे’ था, जबकि वर्ष 1997 में कुल सत्रह दिनों तक ’कोल्ड-डे’ की स्थिति रही थी। भूलना नहीं चाहिए कि इसी वर्ष जगह-जगह भयंकर ओलावृष्टि भी हुई थी। मौसम की निगरानी करने वाली यूरोपीय यूनियन एजेंसी ’कोपर निकस क्लाइमेट चेंज सर्विस’ के मुताबिक़ वर्ष 2016 के बाद वर्ष 2019 दुनियाभर में दूसरा सबसे गरम वर्ष रहा।
यह जानकर ज़रूर हैरानी हो सकती है कि देश की राजधानी दिल्ली में वायु-प्रदूषण सामान्य से चार गुना ज़्यादा ख़राब हो गया है। हवा की रफ़्तार कम होने और सर्दियों के चलते चारों तरफ़ धुंध और कोहरा है। हवा की रफ़्तार थमने से प्रदूषक कणों की मात्रा बढ़ जाती है और प्रदूषण प्राणघातक हो जाता है। प्रदूषण के लिए अलग-अलग कारक ज़िम्मेदार होते हैं। इन कारकों में वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले धुएँ को सबसे ज़्यादा ख़तरनाक ज़िम्मेदार माना जाता है; क्योंकि उक्त धुएँ में हानिकारक रसायनों की मात्रा सबसे ज़्यादा पाई जाती है।
धुंध और कोहरे में 22 क़िस्म के जो हानिकारक रासायनिक ज़हर पाए जाते हैं, वे इस प्रकार हैंः- अमोनिया, बैंजीन, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन, पी-जायलीन, सल्फर डाई ऑक्साइड, टोउलीन, कॉर्बन मोनोऑक्साइड, जिंक, सेलूनियम, लेड, निकेल, सोडियम, मैंगनीज़, मैगनीशियम, पेटेशियम, आयरन, कॉपर, क्रोशियम, कैडमियम और कैल्शियम।
धुंध और कोहरे से इस समय पाकिस्तान के लोग भी परेशान हैं। पाकिस्तान को दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रदूषित देशों में से एक माना जाता है। वायु-प्रदूषण के संकट से बचने के लिए पाकिस्तान के लोग शुध्द हवा के लिए नवनिर्मित ’इंडोर फॉरेस्ट’ एयर प्यूरीफायर ख़रीद रहे हैं। इस घरेलू उपकरण को बनाने में छः माह का वक़्त लग गया। इसका मूल्य 16,000 रूपए है। नक़दी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह देशी प्यूरीफायर आयातित की अपेक्षा बेहद सस्ता है, जबकि विदेशी एयर प्यूरीफायर दो से तीन गुना अधिक महँगा होता है। वर्ष 2015 में वायु-प्रदूषण की वज़ह से तक़रीबन डेढ़ लाख पाकिस्तानी अपनी जान गंवा चुके हैं। विज्ञान पत्रिका ’द लैन्सेट’ ने भी इस तथ्य की तस्दीक की है, जबकि इधर बीते कुछ बरस में वायु-प्रदूषण ने पाकिस्तान में भारी तबाही मचाई है। भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में मौसम की चरम गतिविधियों का सटीक पूर्वानुमान लगभग असंभव है।
सवाल सर्दी के मौसम से होने वाली उन समस्याओं को लेकर भी हैं, जिनका सामना हमें हर बरस ही करना पड़ता है, लेकिन सामाजिक संस्थाओं तथा सरकारों द्वारा ऐसा कोई भी सर्वमान्य व सर्वसुलभ समाधान किया ही नहीं जाता है कि अगले बरस फिर से वही समस्या हमारे सामने नहीं आ सके। देश में सर्दी, गर्मी, वर्षा, लू-लपट, बाढ़ और सूखा आदि की प्राकृतिक आपदाएँ अब बहुतायद से होने लगी हैं। इनके चलते कई तरह की बीमारियाँ भी आ रही हैं, जिस कारण हमारी अर्थ-व्यवस्था प्रभावित हो रही है; क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं की वज़ह से उत्पन्न होने वाली बीमारियों और अन्य बाधाओं की वज़ह से मज़दूरों तथा ख़ासतौर पर कृषि-मज़दूरों की कार्य-क्षमता प्रभावित होती है। सर्दियों की वज़ह से बच्चों को भी बहुत कुछ भुगतना पड़ता है। गुजरात के राजकोट और अहमदाबाद में दिसम्बर ने दो सौ बच्चों के प्राण ले लिए। अक्टूबर-नवम्बर में भी बच्चे मरे हैं। अभी-अभी राजस्थान के कोटा शहर में सौ से कुछ ज़्यादा बच्चों की मौत हो गई। इसकी पुख़्ता जानकारी तो व्यापक जाँच पड़ताल के बाद ही मिलेगी कि उन तमाम बच्चों की मौतें, चिकित्सा, चिकित्सालय अथवा चिकित्सकों की लापरवाही के कारण हुई या फ़िर उनकी इस असामयिक मृत्यु में कड़ाके की सर्दियों का भी कोई हाथ था? किंतु इतना तो ज़रूर ही तय हुआ जाता है कि इधर बरस-दर-बरस सर्दियाँ रिकॉर्ड तोड़ रही हैं और भविष्य में होने वाली क्षति कुछ अधिक भयावह हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्दियों के कारण श्रमिकों की कार्य क्षमता घटने से वर्ष 2030 तक भारत को लगभग साढे़ तीन करोड़ पूर्णकालिक रोज़गारों के बराबर नुकसान होगा। कृषि-क्षेत्र में श्रमिकों की कमी की वज़ह से किसानों ने तक़रीबन साठ फ़ीसदी से अधिक कृषि-कार्य मशीनों से आजमाना शुरू कर दिया है, जबकि बाक़ी चालीस फ़ीसदी काम के लिये भी कृषि-श्रमिकों की उपलब्धता का अभाव बना हुआ है और महिला श्रमिकों का इस क्षेत्र में आना तो लगभग बंद जैसा ही हो गया है। हाल ये हैं कि आकर्षक मज़दूरी के बावज़ूद श्रमिक नहीं मिल रहे हैं। वे कम मज़दूरी मिलने पर भी कृषि की बज़ाय कल-कारखानों में काम करना पसंद करने लगे हैं। रजिस्टार जनरल एंड सन्सेस कमिश्नर के मुताबिक़ वर्ष 2001 से वर्ष 2011 के बीच हमारे देश की आबादी में तक़रीबन अठारह करोड़ का इजाफ़ा हुआ है, लेकिन इसी अवधि में कृषि-श्रमिकों की संख्या लगभग साढे़ तीन फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा घटी हैं। ’यूरोपीय अर्थ जर्नलिज़्म नेटवर्क’ का सर्वेक्षण कहता है कि जलवायु-परिवर्तन के चलते उत्पन्न होने वाली बीमारियों से कृषि-श्रमिकों की कार्य क्षमता प्रभावित होती है।
पहाड़ी इलाके़ हों या मैदानी, सर्दी के सितम ने हर कहीं ग़रीबों और मज़दूरों का जीना मुश्किल कर दिया है। ख़ासतौर से देखा जाए तो, बीमारों, बूढ़ों और बच्चों को सर्दियों के मौसम में कुछ ज़्यादा ही परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसी परिस्थितियाँ आने पर शहरों में बेघरबार लोगों के लिए रेनबसेरों का ही एकमात्र आश्रय होता है। इसके लिए कहीं स्वयंसेवी संस्थाएँ, तो कहीं सरकार, कुछ उपाय करती हैं। स्थानीय प्रशासन द्वारा तैयार किए गए रैनबसेरों में कोई भी बेघर रात गुज़ार सकता है। यहाँ उसके लिये बिस्तर-कंबल आदि का भी इंतजाम किया जाता है, लेकिन नियम है कि यहाँ पहचान-पत्र दिखाकर ही जगह मिलती है, जबकि दूरदराज के छोटे गाँवों-कस्बों से काम की तलाश में आने वाले लगभग सभी जन सिर्फ़ ख़ाली पेट और अपनी समस्याएँ लेकर ही आते हैं। नतीज़ा यही होता है कि ज़रूरी क़ागज़ात के अभाव में इन बेघरों को यहाँ कोई जगह नहीं मिल पाती है और ये तमाम रैनबसेरे ख़ाली पड़े रहते हैं। ढ़ेर सारे ग़रीब और बेघर लोग भीषण सर्द रातें सड़कों तथा फुटपाथों पर ही गुज़ारते-गुज़ारते मर भी जाते हैं। जाँच-पड़ताल का काम, जाँच-अधिकारी परंपरानुसार अक़सर रात में ही करते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से यह जाँच ज़रूरी होती है; क्योंकि हमेशा ही यह आशंका बनी रहती है कि यहाँ कहीं कोई अपराधी अथवा असामाजिक तत्व छुप न गया हो। सर्दियाँ तो अपराधी को भी सताती हैं।
पश्चिमी विक्षोभ ठंडी हवाएं लाते हैं। पश्चिमी विक्षोभ इन दिनों दक्षिण की ओर बना हुआ है। पश्चिमी विक्षोभ का लगातार दक्षिण की ओर बने रहने का मतलब है कि मैदानी इलाक़ों में चलने वाली हवाएँ मौसम को बेहद ठंडा रखती हैं। कुछ ही दिनों में पूर्व से हवाएं आएंगी। बंगाल की खाड़ी से भी हवाओं को उठना अपेक्षित है। पश्चिम से आने वाली हवाएं भूमध्यसागरीय क्षेत्र से उत्पन्न होती हैं। पश्चिमी विक्षोभ से बर्फ़बारी और बारिश की संभावनाएं बनती हैं। इसलिए बहुत संभव है कि पहाड़ी इलाक़ों में बर्फ़बारी और मैदानी इलाक़ों में बारिश हो, जिससे सर्दियाँ बढे़। याद रखा जा सकता है कि मौसम की दृष्टि से वर्ष 2019 चरम सीमाओं का वर्ष था। वर्ष 2020 भी कुछ कम नहीं रहेगा।
सामान्यतः देखा जाता रहा है कि दिसम्बर अंत तक सर्दी के तेवर शुरू हो जाते हैं, लेकिन इस बार इस दिसम्बर और जनवरी ने सर्दी का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। तीन दशक पहले तक सर्दी की अवधि औसतन चार-पाँच माह रहती थी, किंतु बाद के दिनों में वह सीमित होती गई है। इस सबसे सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि समूचा संसार प्रभावित हो रहा है। धुंध और कोहरे से उत्पन्न होने वाले वायु-प्रदूषण ने हवा को ज़हरीला बना दिया है। ऐसे में सर्दी से बचाव बेहद ज़रूरी है, जबकि हम देख रहे हैं और महसूस भी कर रहे हैं कि इस बरस सर्दियाँ कुछ ज़्यादा ही बरस रही हैं।
सम्पर्क-331, जवाहरमार्ग, इंदौर-452002
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