व्यंग्य - - सब गोलमाल है - प्रभात गोस्वामी आदमी की फितरत और आदत कभी नहीं बदलती. अब हमारी आदत कैसे बदले !! हम भी आखिर तो बन्दर से आदमी बने है...
व्यंग्य -
- सब गोलमाल है -
प्रभात गोस्वामी
आदमी की फितरत और आदत कभी नहीं बदलती. अब हमारी आदत कैसे बदले !! हम भी आखिर तो बन्दर से आदमी बने हैं. बंदर बूढ़ा हो जाए फिर भी उछलना-कूदना बंद नहीं करता. तो , हमारी आदतें कैसे बदल सकतीं हैं? पूरी ज़िन्दगी ऑडिट महकमे में रहकर निरीक्षण करते रहे. सरकार ने 60 साल की दहलीज़ लांघते ही रिटायर कर घर भेज दिया. अब घर का निरीक्षण कर नहीं सकते क्योंकि वहां तो सदा हमारा ही निरीक्षण होता रहता था. दिनभर नौकरी कर जब घर आते थे तो हमारे चेहरे के भावों से लेकर जेब तक का निरीक्षण श्रीमती जी ऑडिटर जनरल की तरह तीस साल तक करती रही. क्या करें यहाँ सब गोलमाल जो है?
एक रोज हम भी घर से निकल पड़े कि आज हम कुछ जगहों का निरीक्षण करेंगे. देखें तो सही आखिर क्या चल रहा है? सबसे पहले हम मिश्री लाल के ऑफिस जा पहुंचे. एक कमरे में कुछ कर्मचारी टेबल पर सर टिकाकर निश्चिन्त हो कर खर्राटे भरते हुए सोने का आनंद ले रहे थे. बाहर बेंच पर प्रतिबंधित तम्बाखू का गुटखा खाते सहायक कर्मचारी से जब हमने पूछा - अरे भाई क्या इस दफ्तर में किसी के पास कोई काम नहीं है क्या? वो बड़े गर्व से बोला - काम ही तो कर रहे हैं. भारत सोने का देश रहा है.” जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करतीं हैं बसेरा, वो भारत देश है मेरा". क्या आपने ये गाना कभी सुना नहीं? अंग्रेज़ सारा सोना (स्वर्ण) तो लूट कर ले गए अब हम दुनिया को ये थोड़े कहेंगे कि हम गरीब देश के फकीर लोग हैं. सो,' सोने' के भाव बाज़ार में ऊँचे बनाए रखते हैं. हमने माथा ठोक लिया - क्या करें सब गोलमाल है.
हमारे घर से थोड़ी दूर पर एक नई बिल्डिंग अचानक किसी असहाय बुजुर्ग सी भर- भराकर गिर पड़ी. थोड़ी देर में ही निवेशक इकठ्ठा हो गए. सभी लोग हारे जुआरी की मानिंद बिल्डर का गिरेबान पकड़ कर उससे जूतमपैजार करने लगे. सब की शिकायत थी कि बिल्डिंग की कमज़ोर नींव की वजह से ये गिर गई. पर, बिल्डर बड़ी ढीठता से इनकार कर रहा था कि - ऐसा हो ही नहीं सकता. झगडा इतना बढ़ गया कि थानेदार जी अपने दल-बल के साथ मौका-ए-वारदात पर पहुंच गए. हवा में लाठियां भांजी गई. थानेदार ने बिल्डर की गिरेबान पकड़ कर दो-चार करारे थप्पड़ जड़कर, लाल आँखों से अंगारे बरसाते हुए पूछा - बोल साले, नींव इतनी कमज़ोर क्यूँ डाली? बिल्डर फिर चीखा कि- नींव कमज़ोर होने का सवाल ही नहीं. इतने में सब लोग उस पर फिर से पिल पड़े. जूते-चप्पलों की आवाज़ के बीच बिल्डर कराहते हुए बोला - अरे , जब नींव डाली ही नहीं तो कमज़ोर कैसे होगी?? हम सर पीटते वहां से घर की ओर निकल पड़े - सब गोलमाल है.
फिर एक दिन की बात है. हमारे एक मित्र धर्मचंद के घर आयोजित किट्टी पार्टी में भी अज़ब नज़ारा देखने को मिला. पुराने ज़माने के लोग मुग़ल-ए-आज़म और नए दौर के लोग यहाँ तक कि बच्चे भी फिल्म 'शोले' के डायलॉग अभी तक नहीं भूले हैं. पार्टी में खानपान के बाद जब मनोरंज़न सत्र शुरू हुआ. धर्मी भाई की पत्नी सितारा देवी ने डांस के लिए कमर कसी ही थी कि उनका छह साल का नन्हा बच्चा गोलू अचानक चीख पड़ा - बसंती ! इन कुत्तों के आगे नहीं नाचना. सब को काटो तो खून नहीं. हंसी के फव्वारे के बीच शर्म से नहाते हुए धर्मचंद बोलते भी क्या? सब गोलमाल है भाई.
मेरे एक और जानकर हंसमुख लाल आजकल स्टैंडिंग कॉमेडी के किंग बनने के सपने देख रहे हैं. शारीरिक श्रम, एक्सरसाइज के अभाव और बवासीर से पीड़ित होने की वजह से उन्हें ज़मीन पर बैठने में भारी दिक्कत जो होती है. सो, स्टैंडिंग कॉमेडी ही उन्हें मुफ़ीद लगी. मगर कुछ दिन इधर-उधर शो करने के बाद एक दिन बड़े रुआंसे हो कर अल सुबह हमारे घर आ टपके. बोले- पंडित जी इतनी मेहनत करने के बाद भी दर्शक मेरी कॉमेडी पर हंसते नहीं. उनका मौन हमारा चैन लूट रहा है. उन्होंने आगे कहा कि- पंडित जी एक बार आप चलिए हमारे शो में. लोगों से न हंसने की वजह आप ही पूछें तो बेहतर होगा.
हमने भी पड़ोसी धर्म निभाया और हंसमुख लाल के शो में जा पहुंचे. बेचारे दे दनादन की तर्ज़ पर कॉमेडी की गंगा बहा रहे थे और सभागार में किसी की असमय मृत्यु- सा सन्नाटा छाया हुआ था. शो के आखिर में हमने दर्शकों से नहीं हंसने का कारण पूछा तो एक बंदा बोला - हुजूर , आजकल हर चीज़ के पैसे लगते हैं. कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में पहले नवजोत सिंह सिद्धू और आजकल अर्चना पूरण सिंह हंसने के लाखों रुपए ले रही हैं, शो में आने वाले कलाकार भी अपने प्रमोशन की मजबूरी में हँसते हैं तो हम भी मुफ्त में क्यों हंसें?
वैसे भी आजकल लोगों की हंसी पैट्रोल-डीज़ल , प्याज, सब्जियों के दामों और ट्रेफिक के चालान ने छीन ली है. तभी तो हर कॉमेडी शो में परदे के पीछे से ही ठहाके गूंजते हैं. फिर स्टैंडिंग कॉमेडी शो वाले भी तो ऊँची दरों में टिकट बेचकर हंसी तो टिकट के साथ ही छीन रहे हैं. हमने भी हंसमुख भाई को समझाया कि आजकल हर चीज का प्रबन्धन किया जाता है. वैसे भी ये देश आजकल जुगाड़ पर चल रहा है. भद्रजन इसे 'प्रबंधन', कह कर इस पर शालीनता का मुल्लमा चढ़ा देते हैं.
हंसने के लिए अपने खास दोस्तों का एक कोर ग्रुप बनाओ , जो शो की अग्रिम पंक्ति में बैठकर ज़ोरदार तरीके से आपकी हर कॉमेडी पर खिलखिलाकर हँसेंगे. गला थकने के बाद सबका गला तर कर उन्हें डिनर या लंच दे कर तृप्त करो. फिर कुछ प्रमुख अख़बारों में सेटिंग बिठाकर न्यूज़ छपवाने की जुगत भिड़ानी पड़ती है. आजकल साहित्य के क्षेत्र में भी एकाध बड़ा गुरु बनाने के साथ कुछ चेले बनाने पड़ते हैं जो आपकी तारीफ़ के पुल बांधकर ये साबित कर सकें कि आपसे बड़ा कोई लिखाड़ ही नहीं. बड़ी मेहनत करनी पड़ती है जमने और नाम कमाने के लिए. यदि इस दौर के साथ नहीं चलोगे तो आपको भी रोज़ - मिर्गी जैसे दौरे पड़ने लगेंगे. क्यूंकि यहाँ सब गोलमाल है भैया.
ये गोलमाल पता नहीं कब से चल रहा है ! हमारे यहाँ नेत्रहीन का नाम 'नयनसुख' होता है. दूध-सा सफ़ेद बच्चा पैदा होता है तो लोगों की बुरी नज़र से बचने के लिए उसका नाम 'कालू' होता ही रहा है. अमीर व्यक्ति का नाम भी फकीरचंद रखा जाता रहा है. दौलतराम ग़रीबी की कोठरी में जीवनभर दारिद्य भोग रहे हैं. मुआ ये गोलमाल हमारी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बना हुआ है. अब इससे छुटकारा पाने के सभी रास्ते भी गोलमाल ही लगते हैं.
प्रभात गोस्वामी ,
15/27, मालवीय नगर , जयपुर -302017
राजस्थान.
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