01- नव पल्लव पुष्पित हर शाखा खग कलरव की गुंजित भाषा सृजित सृष्टि की चाह लिये हो नूतन पल उत्साह लिये हो दूर हों सारी दुर्दिन...
01-
नव पल्लव पुष्पित हर शाखा
खग कलरव की गुंजित भाषा
सृजित सृष्टि की चाह लिये हो
नूतन पल उत्साह लिये हो
दूर हों सारी दुर्दिन रातें
सुसभ्य सुंदर सी हों प्रभातें
क्रियाशीलता वाह लिये हो
नूतन पल उत्साह लिये हो
मधुर मिलन आलिंगन पाओ
स्नेह नेह शिख चुम्बन पाओ
चन्दन सा अनुराग लिये हो
नूतन पल उत्साह लिये हो
"नाथ" नाश होवे दुर्बुद्धि
वीणापाणि भरें सद्बुद्धि
उन्नति नित नित राह लिये हो
नूतन पल उत्साह लिये हो
02-
नाम किसी का खास नहीं है,
मुझको ये विश्वास नहीं है
वो भी खुद को राणा कहते,
जिनके हिस्से घास नहीं है
जनता भोली सीधी-सादी ,
लूटने वाले अवसरवादी
महल मखमली सेज लगी है,
उनको क्या परहेज लगी है
पानी मोल को वो क्या जाने
जिनके हिस्से प्यास नहीं है
वो भी खुद को राणा कहते,
जिनके हिस्से घास नहीं है
नाच मंच से बोल रहे हैं,
मुख से शर्बत घोल रहे हैं
मंच से सब कुछ कर जायेंगे,
फिर तो ना ये नज़र आयेंगे
बार-बार तो यही हो रहा,
जनता को भी आस नहीं है
वो भी खुद को राणा कहते,
जिनके हिस्से घास नहीं है
निपट निरक्षर बोल रहा है ,
भारत का भूगोल रहा है
बाबर ऐसे भारत आया,
उसका भी सिर गोल रहा है
पढ़ा लिखा भी ताली मारे ,
तो कोई बकवास नहीं है
वो भी खुद को राणा कहते,
जिनके हिस्से घास नहीं है
मार मौसमी जनता झेले ,
पल-पल है प्राणों पर खेले
वक़्त मार सब झेल रही है ,
मगर सियासत खेल रही है
अपना अपना सब कोई देखे,
नाथ को भी एहसास यही है
वो भी खुद को राणा कहते ,
जिनके हिस्से घास नहीं है
03-
तेरे मेरे इस उल्फत को, अलविदा कर ही देते हैं
ये ख्वाबों की हकीकत है, अलविदा कर ही देते हैं
बहुत जालिम जमाना है , हमें मिलने नहीं देगा
चलो अब तो मोहब्बत को,अलविदा कर ही देते हैं
बहुत सोचा मगर मैंने , बस इतना ही समझ पाया
दिखावे की शराफत को , अलविदा कर ही देते हैं
मेरा क्या है ही इस जग में,तेरा भी है क्या इस जग में
बेमतलब की अदावत को , अलविदा कर ही देते हैं
ना तुमको घुटके मरना है,ना हमको घुटके मरना है
सनम फिर तो नजाकत को,अलविदा कर ही देते हैं
ना तुमने ही खुदा देखा, ना हमने ही प्रभु पाया
ये धोके की लियाक़त को, अलविदा कर ही देते हैं
04-
आशीष मंगलम है ,
चल रही कलम है।
ग़र स्नेह लिख ना पाऊं,
मैं नेह लिख ना पाऊं।।
ग़र कुछ ना लिख मैं पाऊं,
लिखूं कि तू अभय हो।
नव वर्ष मंगलमय हो , चतुर्दिक तेरी जय हो।।
ग़र दुख ना ले मैं पाऊं ,
ग़र सुख ना दे मैं पाऊं।
निवेदन करूं प्रभु का ,
वंदन करूं प्रभु का।।
विनती करूं कि तेरे ,
अनुकूल ही समय हो।
नव वर्ष मंगलमय हो , चतुर्दिक तेरी जय हो।।
05-
सूरत तेरी देखी तो ,
फूल खिले मन आंगन में।।
मोहनी मूरत देखी तो,
भंवरे नाचे तन मन में।।
मुखड़ा तेरा ऐसा है ,
कलियां खिली हैं उपवन में।।
नाथ भी व्याकुल हैं ऐसे,
प्यास लगी हो सावन में।।
06-
कदम मिलाकर चलना होगा,
झोपड़ी हो या महल रहे
पग पग पर हैं देश के दुश्मन,
भेस बदलकर टहल रहे
भारत देश के हर शाखा को,एक-एक करके काटेंगे
जाति धर्म पर हमें लड़ा कर, अपना हिस्सा बाटेंगे
ऊंच-नीच का पाठ पढ़ाया,
इन चोरों गद्दारों ने
वर्षों से है हमें लड़ाया,
पाप के भागीदारों ने
खुद को अगर बचाना है तो,जातिवाद का नाश करो
तभी बनेगा देश हमारा , यह मेरा विश्वास करो
खादीवाले सारे मिलकर
देश लूट कर खाएंगे
उनकी सत्ता बची रहे
तुम्हें आपस में लड़वायेंगे
ना समझोगे तो दुष्टों के, चंगुल में ही जलना होगा
नफरत की है आग बुझै तो,कदम मिलाकर चलना होगा
07-
तेरी गर्मी का , मुझे अंदाजा है
दूर भी होगा यह मेरा वादा है
कम पड़ता है उसका हर वार मुझ पे
मैं भी वार करूँ वो इस पे आमादा हैं
खलल डाला है तो तुझे चैन कहां
इसलिए तो तुझे बेचैनी ज्यादा है
गुरुर में हैं ,अब तो वह परिंदे भी
जिन्हें पता नहीं, वो नर हैं या मादा हैं
हम खामोश हैं पर नजरें टिकी हुई
उन्हें ढूंढ रहे , जिनके वह प्यादा हैं
ज्यादा नहीं आगाज का अंजाम लिखूं
"नाथ" का तो बस , इतना ही इरादा है
08-
फ़ासला कर देता है रिश्तों में,
दुख दर्द देता है किश्तों में
भेद कर देता है फरिश्तों में,
एक ग़लत फ़ैसला.........
जीवन में तूफ़ान लाता है
दुहरा इम्तहान लाता है
बुरा पहचान लाता है,
एक ग़लत फ़ैसला.........
अपनों में तान देता है
बुरों में बखान देता है
अधूरा सा ज्ञान देता है,
एक ग़लत फ़ैसला.........
सब कुछ छिन लेता है
खुशियों को बिन लेता है
सारे अच्छे दिन लेता है,
एक ग़लत फ़ैसला.........
09-
हम भी किरदार हैं तुम भी किरदार हो
कुछ पल के लिए ही, बने सरदार हो
पद पाए तो उसकी जिम्मेवारी उठा लो
तभी माने जाओगे, कि पहरेदार हो
किस रियासत को ले के जाओगे संग
धौंस देते हो कि , बड़े जागीरदार हो
पर्दे पर हो अभिनय करते ही रहो
बस नाम के ही ,तुम भी थानेदार हो
इस अभिनय में अगर खरे पाए गए
तो ही दुनिया में जीने के हकदार हो
मौका किसी को मिलता नहीं दुबारा
पर जीत जाओगे तुम, अगर वफादार हो
10-
सबसे पहले साथ चलो, एक दूजे के हाथ बनो
दुष्ट कहां टिक पाएगा, सज्जन जब हाथ लगाएगा
गलत गलत ही होता है, बस उसका प्रतिकार करो
सच की नईया पार करो।।
अपने हाथ धुले रखो, अपने नेत्र खुले रखो
सत्य डगर पर अड़ जाओ, पत्थर जैसा गढ़ जाओ
हाथ पर हाथ धरो मत तुम, व्यर्थ ना हाहाकार करो
सच की नईया पार करो।।
जीवन को तुम त्यागो ना,हिम्मत से तुम भागो ना
कर्म से काहें डरते हो ,घुट घुट के तुम मरते हो
बाधाएं हल हो जाएंगी, बाधाएं स्वीकार करो
सच की नईया पार करो।।
11-
"जीवन और रात में समानता"
चाँदनी रात हो ,
या काली रात हो
गूँजती रात या,
ख़ामोशी ओढ़े रात हो
तारों वाली हो या ,
सितारों वाली रात हो
चमकीली रात हो, बहारों वाली रात हो
गर्म रात हो या
बर्फ़ीली रात हो
अलसाई रात हो या
फुर्तीली रात हो
चाहे जैसी रात हमको नजर आती है
रात कैसी भी हो आखिर गुजर जाती है
- नाथ गोरखपुरी
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