5. बघ्घराज और बच्छराज डां.विजय चौरसिया बहुत पुराने समय की बात है। एक गांव में एक ब्राम्हण और एक ब्राम्हणी रहते थे। ब्राम्हण गांव में भिक्षाव...
5. बघ्घराज और बच्छराज
डां.विजय चौरसिया
बहुत पुराने समय की बात है। एक गांव में एक ब्राम्हण और एक ब्राम्हणी रहते थे। ब्राम्हण गांव में भिक्षावृत्ति करता था। ब्राम्हण को एक गाय दान में मिली। वह गाय लेकर अपने घर आया। वह अपनी पत्नि से गाय की सेवा करने के लिये कहा! पति की आज्ञा मानकर ब्राम्हणी गाय को अच्छा अच्छा भूसा और बचा हुआ दाना देने लगी।
एक दिन गाय अपना भोजन समाप्त कर बैठी बैठी जुगाली कर रही थी। ब्राम्हणी भी घर के कार्य से निर्वत होकर गाय की तरफ मुंह करके बैठी थी। ब्राम्हणी ने गाय के जुगाली करने का बुरा माना और वह सोचने लगी की गाय मुझे चिढ़ा रही है। बस फिर क्या था। ब्राम्हणी ने आव देखा न ताव जैसे ही पंड़ित जी भिक्षावृत्ति करके घर आये! तो ब्राम्हणी ने गुस्सा होकर कहा कि इस घर में यह गाय रहेगी या मैं रहूँगी। यह गाय रोज बैठी - बैठी मुझे चिढ़ाती है। पंड़ित जी ने बहुत समझाया, परन्तु ब्राम्हणी के कुछ समझ में नहीं आया।
बहुत सोच - समझकर पंड़ित जी ने गाय को कजली वन बिंद्रा दोना गिरी पहाड़़ में छोड़ दिया। गाय जंगल में हरा - हरा घास खाती और झरने का पानी पीकर अपना समय बिताने लगी। पंड़ित जी ने गाय के आस - पास सुरक्षित हाता बंदी कर दी। एक दिन उस हाता बंदी के किनारे से एक शेरनी निकली और हट्टी - कट्टी गाय तथा सुरक्षित हाता बंदी देखकर आश्चर्य में पड़ गयी और सोचने लगी की क्यों न मैं भी इसी गाय के साथ रहने लगूं। क्योंकि उस समय शेरनी भी ग्याभन थी। शेरनी ने गाय से मीठी - मीठी बातें करके उसे अपने साथ रखने के लिये राजी कर लिया। इसके बाद गाय और शेरनी साथ - साथ रहने लगी। प्रतिदिन शेरनी अपने शिकार पर चली जाती और रात में वापस आकर उसके साथ रहने लगी! समय आने पर दोनों ने एक - एक बच्चे को जन्म दिया। उन्होंने गाय के बछड़े का नाम बच्छराज एवं शेरनी के बच्चे का नाम बघ्घराज रखा।
बघ्घराज और बच्छराज दोनों उस हाता बंदी में रहते तथा गाय और शेरनी अपने अपने भोजन की तलाश में जंगल चली जातीं थी ।
एक दिन क्या होता है कि एक नदी में शेरनी और गाय पानी पीने गयी। शेरनी नीचे घाट में तथा गाय ऊपर घाट में पानी पी रहीं थी। गाय के मुंह की लार पानी में बहते - बहते शेरनी के मुंह में चली गयी। शेरनी को गाय की लार बहुत मीठी लगी। लार के चखते ही शेरनी ने सोचा कि जब गाय की लार इतनी मीठी है। तो तो इसका मांस कितना मीठा होगा। तब उसने गाय से कहा बहन कल मैं तुझे खाऊंगी।
यह सुनकर गाय दुखी हो गयी। शाम को दोनों अपने अपने घर गयीं और अपने - अपने बच्चों को दूध पिलाया। सुबह गाय काफी दुखी थी। उसने रोते- रोते अपने बछड़े से कहाः बेटा आज मैं मर जाऊंगी। शेरनी मुझे खा लेगी। ऐसा कहते हुये उसने थोड़ा सा दूध बछड़े के खुर में ड़ाल दिया। वह बछड़े से कहने लगी। जब तक यह दूध तेरे खुर में रहे। तब तक समझना तेरी मां जिंदा है। जैसे ही यह दूध सूख जाये वैसे ही समझना मेरी मां मर गयी है। ऐसा कहकर उसने अपने बछड़े को खूब प्यार किया और शेरनी के साथ जंगल चली गयी। उस दिन दिन भर शेरनी और गाय घूमती फिरती रही । शाम को शेरनी ने गाय को खा लिया गाय के मरते ही बछड़े के खुर का दूध सूख गया।
उस दिन बच्छराज दिन भर रोता रहा बघ्घराज ने बच्छराज से कई बार पूछा कि मित्र तुम क्यों उदास हो कारण बताओ मैं तुम्हारी मदद करुंगा। मैं तुम्हारे पीछे अपनी जान तक दे सकता हूं। बघ्घराज के ऐसा कहते ही बच्छराज दहाड़ मार कर रोने लगा। वह बघ्घराज से कहने लगा मित्र क्या बताऊ। बड़े दुख की बात है। तुम्हारी मां ने आज मेरी मां को खा लिया है। बघ्घराज यह सुनकर सन्न रह गया। उसने बच्छराज को सांत्वना देते हुये कहा मित्र तुम चिंता मत करो। यदि मेरी मां ने तुम्हारी मां को खाया है। तो मैं भी अपनी मां को जिंदा नहीं छोडूंगा।
उसी समय शेरनी गाय को खाकर खुशी - खुशी बघ्घराज के पास आयी और कहने लगी - बेटा आज तू पेट भर कर दूध पी ले! बघ्घराज ने कहा नहीं मां,जब मेरे मित्र बच्छराज की मां आयेगी! तब दोनों एक साथ दूध पियेंगें! तब शेरनी ने समझाया तुम्हें उससे क्या करना है। वह आ जायेगी। तब बघ्घराज ने अपनी मां शेरनी से कहा मां तुम दिन भर शिकार के लिये चली जाती हो कभी कोई दुष्ट शिकारी मेरी जान लेने आ जाये तो मैं अपना बचाव कैसे करुंगा। आज तुम मुझे शिकार करने तथा लड़ने के सारे दांव पेंच सिखा दो। जिससे मैं अपनी रक्षा कर सकूं । शेरनी ने खुशी - खुशी अपने बेटे बघ्घराज को सारे दांव - पेंच सिखा दिये। तब बघ्घराज ने खूब छककर अपनी मां का दूध पिया और एक ही बार में शेरनी को मार ड़ाला।
इस प्रकार दोनों की मां खतम हो गयी। अब रह गये दोनों मित्र बघ्घराज और बच्छराज।
बच्छराज उसी हाते बंदी में घास खाता और पानी पीता तथा बघ्घराज रोज अपने शिकार के लिये जंगल चला जाता। एक दिन बघ्घराज ने एक बैल का शिकार किया। उस बैल के गले में एक घंटी बंधी थी। बघ्घराज उसे निकालकर ले आया और बच्छराज के गले में बांधते हुये कहा कि - मित्र तुम्हारे ऊपर कोई मुसीबत आये तो कूद कूद कर तुम इसे बजाना। तो मैं घंटी की आवाज सुनकर तुम्हारी मदद के लिये आ जाऊंगा।
एक दिन बघ्घराज अपने शिकार के लिये चला गया। उसी समय बच्छराज खूशी से कूदने लगा। जिससे घंटी बजने लगी। उसी समय बघ्घराज अपने शिकार को छोड़कर भागता हुआ बच्छराज के पास आया। और पूछा- क्यों मित्र क्या हुआ। उसने कहा - मित्र गलती हो गयी। धोखे से घंटी बज गयी। अब ऐसा नहीं होगा। तब बघ्घराज पुनः अपने शिकार पर वापस चला गया।
इस प्रकार दोनों मित्र बड़े प्रेम से अपना समय बिताने लगे। एक दिन जैसे ही बघ्घराज बाहर गया। उसी समय वहां से चार कसाई निकले और हट्टे कट्टे बच्छराज को देखकर कहने लगें- देखो कितना हट्टा कट्टा बछड़ा है। इसे काटकर बेचा जावेगा तो बहुत पैसा मिलेंगे। एस प्रकार चारों कसाईयों ने सलाहकर बच्छराज के ऊपर कुल्हाड़ियों से वार करना प्रारंभ कर दिया। कुछ समय बाद बच्छराज के प्राण पखेरु उड़ गये। कसाइयों ने उसके मांस के टुकड़े - टुकड़े कर दिये और बच्छराज के गले की घंटी को एक पत्थर पर रख दिया।
उसी समय आकाश में एक चील उड़ रही थी। उसकी नजर घंटी पर पड़ीं उसने सोचा की वह कोई मांस का टुकड़ा है। चील ने नीचे उतरकर घंटी को उठाया और आकाश में उड़ने लगी। घंटी की आवाज सुनते ही बघ्घराज दहाड़ते हुये हाताबंदी के पास पहुंचा। वह वहां का दृश्य देखकर क्रोध से आग बबूला हो गया। परंतु क्रोध शांत करते हुये बघ्घराज सोचने लगा। यदि मैं चारों कसाईयों को मार भी ड़ालूं। तो भी मेरा मित्र तो मिलेगा नहीं। इससे इनको मारना ठीक नहीं है।
बहुत सोच विचार और धीरज रख कर बघ्घराज ने चारों कसाईयों को दहाड़ते हुये कहाः जो बघ्घराज के आते ही थर-थर कांप रहे। थे कि - चारों लोग अपनी - अपनी कुल्हाड़ियां उठाओ और जाकर चंदन वन से चंदन की लकड़ी काट कर लाओ। चारों कसाई जंगल जाकर खूब चंदन की लकड़ी काटकर ले आये। इसके बाद बघ्घराज ने उन कसाईयों से एक चिता बनवाई! चिता बन जाने के बाद बघ्घराज ने चारों कसाईयों से कहा - कि एक - एक मांस और हड्डी का टुकड़ा उठाकर चिता पर रखो। यहां तक की खून के निशानों तक को खोद - खोद कर चिता पर रखवाया और कहा कि - अब चिता में आग लगा दो। कसाईयों ने चिता में आग लगा दी। जब खूब जोरों से आग जलने लगी। उसी समय बघ्घराज उस जलती चिता में कूद गया। इस प्रकार बघ्घराज और बच्छराज की जीवन लीला समाप्त हो गयी।
जिस जगह पर दोनों का दाह संस्कार हुआ था। उसी राख के अंदर से दो बांस के अंकुर निकले और धीरे - धीरे इतने मोटे बांस तैयार हो गये की संसार में उनकी तुलना नहीं की जा सकती थी। उसी समय उस राज्य के राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि - जाओ हाताबंदी के लिये जंगल से बांस काट कर ले आओ। सिपाही चले गये। चलते - चलते वे उन्हीं बांसों के किनारे से गुजरे! वे उन दो विशाल बांसों को देखकर आर्श्चय में पड़ गये। उन्होंने सोचा कि हजारों बांस न ले जाकर ये दो बांस ही लेकर चलें तो पूरी हाताबंदी हो जावेगी। इस प्रकार सिपाहियों ने दोनों बांस काटकर राजा की घुड़साल में लाकर रख दिया।
उसी दिन से रात को बारह बजे दोनों बांसों में से दो बालक निकलते हैं और राजा के घोड़े पर सवार होकर बारह कोस का चक्कर लगाकर, सुबह होते - होते वापस आकर घोड़ा बांधकर फिर बांसों में घुस जाते थे। उस राज्य का राजा परेशान था, कि उनकी सवारी का घोड़ा दिनों दिन कमजोर होता जा रहा था। राजा ने सिपाहियों को आदेश दिये की घोड़ा के कमजोर होने का कारण खोजा जावे। राजा ने उस घोड़े का बहुत इलाज करवाया पर घोड़ा ठीक नहीं हुआ। तब एक बूढ़े सिपाहियों ने अपने साथियों से कहा कि आज रात को घुड़साल में जागकर देखा जावे। उसी रात से सभी सिपाही बारी - बारी से घुड़साल की रखवाली करने लगे। उस रात भी आधी रात को दोनों बांसों से दो बालक निकले और घुड़साल से घोड़ा खोलकर उसमें सवारी करने चल दिये। वे सुबह होते ही घुड़साल में वापस आ गये और घोड़ों को घुड़साल में बांध दिया। उसके बाद दोनों बालक पुनः उस बांस में प्रवेश कर गये। पहरेदारों ने जब यह सब देखा तो उन्हें राजा के घोड़े को कमजोर होने का कारण मालूम हो गया।
सुबह राजा की आज्ञा से दोनों बांस फाड़े गये। जिसमें से दो सुन्दर बालक निकले। उस राजा की कोई संतान नहीं थी। उसने दोनों बालकों को गोद ले लिया। राजा रानी बहुत खुश हुये। पूरे राज्य में खुशियां मनायीं गयी। दोनों बालक उस राज्य के राजकुमार बनकर रहने लगे।
एक दिन दोनों राजकुमारों ने रानी मां से कहा हम लोग आज शिकार खेलने जायेंगें!दोनों राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर शिकार खेलने चले गये। चलते - चलते वे एक घनघेार जंगल में पहुंच गये। वे उस जंगल में रास्ता भटक गये। वे भूख प्यास से तड़फते हुये। एक पेड़ के नीचे बैठ गये। उसी पेड़ के ऊपर एक चिरवा और चिरैया आपस में बात कर रहे थे कि देखो ये दोनों कोई राजकुमार है। जो रास्ता भूल गये हैं। देखो ये कितना परेशान हैं। ठंड़ भी आज अधिक है। क्यों न इनकी मदद की जावें ऐसा कहकर चिरवा उसी समय वहां से उड़ा और एक गांव में जाकर तुलसी कोट से जलता दिया उठा लाया। उसने दिया को उस पेड़ के नीचे पड़े सूखे पत्तों में ड़ाल दिया। दोनों राजकुमारों ने आग देखकर कहा चलो मित्र ईश्वर ने आग तापने को दी। उन्होंने और पत्ते इकट्ठे करके खूब आग जलायी। वे आपस में कहने लगे मित्र कहीं से कुछ खाने को मिल जाता तो भूख मिट जाती। यह सुनते ही ऊपर बैठे चिरवा,चिरैया ने कहा क्यों न अपन इस आग में कूंद जावें जिससे इन राजकुमारों की भूख मिट जाये और इनका पेट भर जावें तब चिरवा ने कहा जो राजकुमार मुझे खायेगा। वह प्रातः होते ही राजपाट पायेगा। तो चिरैया ने कहा जो राजकुमार मुझे खायेगा। उसके मुंह से दातौन करते समय हीरे जवाहरात गिरेंगे। ऐसा कहकर दोनों उस जलती आग में कूद गये। उनके गिरते ही दोनों राजकुमारों ने कहा चलो मित्र भगवान ने खाने का भी इंतजाम भी कर दिया है। उसके बाद चिरवा को भूंज कर बघ्घराज ने खाया और चिरैया को भूंज कर बच्छराज ने खाया।
बघ्घराज ने चिरवा खाया था। तो उसकी मती पलटी और उसने अपने मित्र बच्छराज से कहा कि मित्र तुम यही रुकना मैं अभी जाकर पानी का पता लगाकर आता हूं। चलते - चलते बघ्घराज एक तालाब के किनारे पहुंचा ही था! उसी समय चार लोग आये और उसे पकड़कर ले जाने लगे। तब बघ्घराज ने उनसे पूछा क्यों भाई मुझे कहां ले जा रहे हो। तो उन्होंने कहा तुम्हें हम लोग राजा बनाने ले जा रहे हैं। इस राज्य में रोज राजा बदलता है। रोज सुबह जो आदमी हमें पहले मिलता है। उसे हम लोग राजा बना देते हैं। उसे इस राज्य की राज गद्दी पर बैठा दिया जाता है। तब बघ्घराज ने सोचा क्या किया जावे। इस राज्य में रोज राजा मर जाता है और रोज नया राजा बनाया जाता है। बहुत सोचने विचारने के बाद वह उनके साथ चला गया।
राजमहल में पहुंच कर सबसे पहले उसे राज गद्दी में बैठाला गया। तब बघ्घराज ने सबसे पहले अपने राज्य के लोहारों को बुलवाया और उनसे कहा तुम लोग मेरे लिये एक ऐसी तलवार बनाओ की उसके एक ही वार से दुश्मन का काम तमाम हो जावे। तब लोहारों ने अनेकों मन लोहा गलाकर एक अच्छी तलवार तैयार कर राजा को दे दी।
राजा रात में रनिवास में रानी के साथ सोया जरुर पर नींद का बहाना करके चारों तरफ देखते हुये सर्तक रहा। उसी समय रानी को गहरी नींद लग गयी। रानी नींद में घुरकने लगी। रानी के घुरकते ही उसके मुंह से एक काली नागिन निकलने लगी। राजा तैयार हो गया जैसे ही वह नागिन पूर्ण रुप से निकल कर राजा की तरफ बढ़ी! उसी समय राजा ने तलवार से उस नागिन के दो टुकड़े कर दिये। और पलंग के नीचे एक टोकनी में ढ़ंक कर रख दिया।
प्रातः राज दरबार के लोग रानी से राजा की लाश मांगने आये। रानी सोकर उठी तो देखती है। राजा गहरी नींद में सो रहे हैं। वे मरे नहीं! रानी आश्चर्यचकित हुयी और दरबारियों से कहा कि तुम लोग भाग जाओ! आज राजा जिंदा हैं। पूरे राज्य में आश्चर्य छा गया।
उस दिन सुबह राजा उठकर राज दरबार में गये। वहां जाकर राजा ने घेाषणा की कि आज से राजा नहीं बदलेग। राजा ने सिपाहियों से कहा की जाकर मेरे पलंग के नीचे जो कुछ हो उसे उठाकर ले आओ। तब सिपाही जाकर पलंग के नीचे रखी टोकनी को लेकर आये! तो राजा ने टोकनी खोलकर सभी को बतलाया। सभी दरबारी टोकनी में मरी हुयी नागिन देखकर आश्चर्य चकित हो गये। तब राजा ने दरबारियों को रात की पूरी घटना के बारे में बतलाया। रोज राजा के मरने का कारण वह नागिन थी। अब बघ्घराज अपने राज का कारोबार सम्हालने लगा।
यहां पर बच्छराज अपने मित्र बघ्घराज की रास्ता देखते - देखते थक गया। तब वह आगे बढा और चलते - चलते उसी राज्य में पहुंच गया। वहां जाकर वह राज्य के सबसे धनी सेठ के घर पहुंचा। उसके पास पहुंचकर बच्छराज ने उससे नौकरी मांगी। वह सेठ वहां के राजा का मित्र था। सेठ ने उसे अपने यहां गाय चराने के लिये रख लिया। बच्छराज रोज गायों को चराने नदी किनारे ले जाता। वह वहीं पर नदी किनारे गाय चराते - चराते एक पेड़ के ऊपर बैठकर बांसुरी बजाया करता था। बांसुरी की धुन सुनकर गायें नाचती कूदती और अच्छे से चारा चरती रहती।
उस सेठ की एक पुत्री थी। वह रोज अपने महल की अटारी से बच्छराज को देखती और उसकी बांसुरी की धुन सुनकर मस्त हो उठती थी। एक दिन सेठ की पुत्री ने अपनी दासी को बुलाया, उसे एक कांसे की थाली में खूब मेवा, मिष्ठान रखकर उससे कहा की जा उस चरवाहा को देकर आ जा। वह दासी बच्छराज के पास पहुंची और कहने लगी मेरी मालकिन ने तुम्हारे लिये यह मेवा भेजा है। बच्छराज पेड़ से उतर कर नीचे आया और उस कांसे की थाली का समान लेकर अपनी जेब से हीरा - मोती और जवाहरात निकालकर थाली में ड़ाल दिये और उस दासी से कहा की मेरी ओर से यह उपहार उस कन्या को दे देना।
सेठ की पुत्री ने जब हीरा - जवाहरात उस चरवाहा के पास देखे तो वह उस पर मोहित हो गयी। वह जाकर अपने पलंग पर लेट गयी। उसके मां - बाप ने पूछाः बेटी तुम क्यों लेटी हो तो उस कन्या ने कहा मां मेरे सिर में दर्द है। यह दर्द तभी ठीक होगा, जब मेरी शादी उस चरवाहा से होगी। इस पर सेठ - सेठानी बहुत हैरान हो गये कि मेरी लड़की उस चरवाहा से क्यों विवाह करना चाहती है। उस लड़की ने जिद पकड़ ली की वह शादी करेगी तो उसी चरवाहा से! वह कन्या सेठ - सेठानी की इकलौती संतान थी। इस कारण सेठ उसकी जिद पूरी करने को तैयार हो गये। तब उन्होंने उस चरवाहा को बुलाकर अच्छे - अच्छे कपड़े पहनायें सेठ ने पूरे राज्य में मुनादी कर दी की। मैं अपनी पुत्री की शादी कर रहा हूं। तब सेठ ने अपनी पुत्री की शादी उस चरवाहा से कर दी उसने पूरा कारोबार अपने दमाद बेटी को सौंपा और नर्मदा जी की परिक्रमा पर निकल गया।
अब सेठ के स्थान पर बच्छराज राजा बघ्घराज के दरबार में जाने लगा। कई दिनों तक उनकी बातें होती रही। एक दिन राजा बघ्घराज ने सेठ बच्छराज को अपने महल में सपरिवार भोजन की दावत दी। जब राजा और सेठ भोजन करने बैठे! तब राजा ने अपनी कहानी बताना शुरु किया और कहा कि दोस्त मेरा एक दोस्त था जो मुझसे बिछड़ गया है। तब बच्छराज ने उसकी अधूरी कहानी को पूरी की। इसके बाद दोनों आपस में गले मिले। उस दिन से दोनों मित्र बघ्घराज और बच्छराज साथ - साथ रहने लगे। दोनों ने जनम - जनम की दोस्ती निभाई। किस्सा हुआ खतम अब सब लोग जाकर सो जाओ ।
(समाप्त)
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