रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020प्रविष्टि क्र. 5 -काफिला- ऋतु असूजा ऋषिकेश

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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020


प्रविष्टि क्र. 5 -

काफिला

पात्र परिचय -

पिताजी:- नाम चमनलाल उम्र ६५ वर्ष

बेटा:- अमन उम्र २५ वर्ष

टेलीविजन,समाचार वाचिका

शर्मा जी- पड़ोसी

पवन:- अमन का मित्र

भीड़,में शोर मचाते,नारे लगाते लोग

भीड़ में एक व्यक्ति

पुलिस की गाड़ी :- सायरन की आवाज

(पहला दृश्य)  भीड़ का दृश्य


कुछ लोग भीड़ के पीछे आंखे बंद करके चल देते हैं उनसे पूछा जाए कि तुम कहां और क्यों जा रहे हो तो जवाब मिलता है, जिस और सब जाएंगे वहीं तो जाएंगे, हम कोई अपनी डफ़ली अपना राग थोड़े अलापेंगे ।

  लोग कहते हैं कि देश देश बदल रहा है ,कुछ लोगों का कहना है की बड़े -बड़े बदलावों के होने से थोड़ी परेशानी तो होगी ही ।


        दूसरा दृश्य


पिताजी :-  खादी के कपड़े और चमड़े के सस्ते से जूते पहनने वाले पिताजी को उनके बेटे अमन ने ब्रैंडेड कपड़े और महंगे जूते लाकर दिए फिर क्या हुआ देखिए ।

पिताजी:-    आजकल देखो कुछ भी बदल जाता है कल तक मैं खादी का कुर्ता पाजामा और सस्ते से कपड़े के जूते पहनता था । और अब...

हे भगवान कैसा जमाना आ गया है ....बदल रहा है मेरा देश बदल रहा है।

पिताजी जूतों को अपने सीने से लगाए हुए  -

पिताजी नाम चमनलाल  - :   मेरे तो अच्छे दिन आ गए पूछो वो कैसे देखो सब लोग ये मेरे जूते पूरे हजार के हैं। मेरे बेटे ने मंगवाकर दिए हैं कहता है अब मैं कमाता हूं पिताजी आप चिंता ना करो मेरा स्टैंडर्ड बड़ गया है ।

पिताजी चमनलाल अपने आप से बतियाते हुए अब आप लोग ही बताइए मैं क्या करूं इतने मंहगे जूते पहनने में मानों डर लगता है अगर गंदे हो गए तो,ऐसा करता हूं इन जूतों को संभाल कर अलमारी में रख देता हूं ,बेटे की शादी में पहनूंगा

 पिताजी अपना जूते सम्भाल कर रख देते हैं ।


    पिताजी बैठक में प्रवेश करते हुए ...

 चमनलाल का बेटा नाम अमन टेलीविजन पर समाचार सुनने में इतना खोया हुआ था की उसको पता भी नहीं चला की उसके पिताजी ने उससे कुछ कहा है ।

पिताजी -: अपने बेटे अमन को हिलाते हुए

अमन:- अरे पिताजी इतनी जोर से क्यों हिलाया आवाज लगा देते मैं सुन लेता क्या पिताजी आपने तो मेरा सारा मूड खराब कर दिया ।

पिताजी:- मैं बोला था सबसे पहले मैंने तुम्हें आवाज ही लगाई थी पर तुम्हारे कान और आंखे तो टेलीविजन देखने और सुनने में खोए हुए थे ।

 पिताजी:- अच्छा ये बताओ क्या चल रहा है अब हमारे देश में कौन सा नया कानून आ रहा है कहीं अब तो कोई नोट बन्द नहीं हो रहे.....

 अमन:- टेलीविजन की तरफ देखते हुए ,पिताजी अब लगता है कुछ बड़ा होने वाला है इस देश में जब देखो तब नारेबाजी हड़ताल ।

  पिताजी :- बेटा तुझे क्या करना है ,तू क्यों इन चक्करों में पड़ता है तेरी अच्छी सी नौकरी उस पर ध्यान दे ...

तभी टेलीविजन :- से न्यूज रिपोर्टर और:-आज की सबसे बड़ी खबर ,बस वही तोड़-फोड़ पथराव आदि

पिताजी चमनलाल:- ये समाचार वाले कभी कोई अच्छी खबर नहीं देते


अमन:- नहीं पिताजी जरूर कुछ बड़ा होने वाला है  तभी इतना विरोध हो रहा है ।

 तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी ,अमन दरवाजा खोलते हुए पड़ोस के शर्मा जी को नमस्कार करते हुए  जाते शर्मा जी आ जाते थे घर पर कभी-कभी कोई नयी- ताजी सुनने -सुनाने  ।

चमनलाल :- और शर्मा जी कैसे हो आज बहुत दिनों में आए ।

शर्मा जी :- हां आजकल बस स्वास्थ्य भी ऐसा ही रहता है ।

चमनलाल :- जा अमन मां को बोल दो कप चाय बना दे

शर्मा जी और चमनलाल चाय की चुस्कियां लेते हुए ।

शर्मा जी अपनी बात कहते हुए घर से बाहर निकल कर देखो जगह-जगह दंगे फसाद हो रहे हैं ,तुम्हे पता भी है तुम्हारे देश में क्या चल रहा है ।

पिताजी क्या चल रहा है, मजाक करते हुए फाग चल रहा है ....और क्या दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे

शर्मा जी:- आज हमारे घर के आगे चौराहे पर कुछ लोग प्रदर्शन करेंगे , नगर पालिका के बाहर भी धरना होगा, चमनलाल मेरे साथ चलना ।

चमनलाल  :- देख शर्मा कहीं घूमने जाना हो तो मैं चलता तेरा कोई जरूरी काम होता तो भी मैं चलता पर इन फालतू के चक्करों में मैं नहीं पड़ता ।

मुझे तमाशा देखने का कोई शौक नहीं

अगर मैं अपने देश के लिए कुछ कर नहीं सकता तो कोई दुःख नहीं परंतु इस तरह बिना सोचे-समझे नहीं

शर्मा मेरी आत्मा गवाही नहीं देती

शर्मा जी टेड़ा सा मुंह करके लौट गए


अमन:- थोड़ी देर बैठने के बाद कुछ सामान लेने के बहाने पिताजी मैं बाजार से सामान लेकर आता हू ...


(तीसरा दृश्य)


 अमन घर से सामान लेने के बहाने निकल गया था ।

थोड़े आगे ही चला था की अमन को उसका मित्र जिसका नाम मदन मिल गया ।


 अमन और अमन का मित्र मदन दोनो में हाय ,हेलो हुई ।

अमन :- यार मदन आजकल तुम कहां रहते हो


मदन :- यार अमन मुझे गुड़गांव में अच्छी नौकरी मिल गई है ,अब मां ,पिताजी मेरी शादी की तैयारियां कर रहे हैं थोड़ा शर्माते और सिर खुजलाते हुए ...

अमन:- यार मेरी होने वाली भाभी कैसी है,कब मिलवा रहा है भाभी से ..

मदन :- जल्द ही अगले महीने की पांच तारीख को शादी है मेरी , मां ,पिताजी कार्ड देने आएंगे तुम जरूर आना

अमन :- हां यार तेरी शादी में तो जरूर आऊंगा क्या पता मुझे भी कोई अपने लायक लड़की मिल जाए

 हंसते हुए ...

अमन:- मदन चल थोड़ा आगे तक चलते हैं देखते हैं वहां क्या हो रहा है।

पवन:- नहीं यार मुझे कुछ सामान लेना है जल्दी है घर जाकर और भी काम हैं तू जा मैं सामान लेता हूं।


(चौथा दृश्य )

    भीड़ का दृश्य  भीड़ का आक्रोश , हाय-हाय मुर्दाबाद की आवाजें


अमन थोड़ी दूर से खड़ा भीड़ को देख रहा था


अमन थोड़ा आगे बड़ा और एक व्यक्ति से पूछने लगा ,यार ये भीड़ क्यों लगा रखी है तुम्हारी कौन से मांग दृश्यया फिर कौन सी ऐसी जातती हो रही है तुम्हारे साथ, जो तुम सब इतना आक्रोश दिखा रहे हो

भीड़ वाला व्यक्ति:-  बोला साहब जी हम तो कल भी मेहनत मजदूरी करके रोटी खाते थे और हर रोज यही करेंगें।   हमें तो हमारे ठेकेदार जो कहते हैं  वहीं करते हैं

हमसे कहा गया की जाकर ऐसे ऐसे नारे लगाओ शोर मचा ओ हम वहीं कर रहे हैं ।

 अमन:- तो तुम्हें यह काम करने यानि नारे लगाने के पैसे मिलते हैं

व्यक्ति:-  और क्या बिना पैसे के कोई पागल ही होगा जो यह सब करेगा

अमन को इतना तो समझ आ गया था इस आक्रोश को दिखाने वाली किसी धर्म जाति के नहीं यह तो किसी के मोहरे है जिन्हें जैसे चला जा रहा था वह चल रहे थे ।

   तभी पुलिस की गाड़ियां सायरन की आवाज करती हुई भीड़ के समीप पहुंच गई ,

पुलिस:- एक -एक कर सबको गाड़ियों में भरने लगी और डंडे भी चलाने लगी ।

पुलिस का एक डंडा अमन को भी लगा तभी एक पुलिस  वाला अमन को पकड़ कर गाड़ी में बैठाने लगा ,अमन चिल्ला रहा था में इस भीड़ का हिस्सा नहीं हूं । मैं तो यहां भीड़ क्यों लगी है देखने आया था ।

पुलिस वाला: अमन से अच्छा तमाशा देखने आए थे चलो तुम्हारा तमाशा तो हम पुलिस स्टेशन में ही देखेंगे ।

 (पुलिस स्टेशन का दृश्य)


इतने में अमन का मित्र मदन जो वहीं से होकर गुजर रहा था अमन को पुलिस को ले जाता देख मदन चिल्लाया सर ये निर्दोष है यह तो यहां भीड़ में क्या हो रहा है  ये देखने आया था पुलिस वाले यह कहते हुए आगे बड़ गए जो कहना है पुलिस स्टेशन में कहना ।

मदन पुलिस स्टेशन पहुंच गया था ,अमन को देखकर मदन ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई ।

पुलिस :- अरे भाईसाहब ये इमोशनल ड्रामा आप बाहर जाकर करिएगा चलिए इन कागजों पर साइन कीजिए और आगे से इन्हें समझा कर रखिएगा।


भीड़ के पीछे भागने में समझदारी नहीं होती

अच्छे काम करने वालों की भीड़ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती तोड़-फोड़ नहीं करती किसी को पत्थर नहीं मारती ।

 मदन अपने मित्र अमन को समझाते हुए देख अमन पहले देखो समझो की तुम्हे कहां जाना है सिर्फ भीड़ के पीछे चल देना कोई समझदारी नहीं

जिस तरफ सब चल रहे हैं भेड़ों की तरह उसी तरफ चल देना बेवकूफी है भगवान ने इंसान को ही दिमाग दिया की अपनी बुद्धि से वो अपना रास्ता खुद चुन सके ।

( भीड़ हिस्सा बनने से अच्छा है तुम अकेले ही अपना बेहतरीन रास्ता बनाओ जिससे भीड़ का काफिला तुम्हारे पीछे चल दे )


स्व रचित :- ऋतु असूजा ऋषिकेश

निवास स्थान :- उत्तराखंड ऋषिकेश 

जन्म तिथि:- 11-6-1968

शिक्षा:- स्नातक इंटरनेट पर अपना ब्लपोस्ट 

"ऊंचाईयां शीर्ष की आसमानी फ़रिश्ते

बेस्ट ब्लॉगर सम्मान I blogger द्वारा

इसके अतिरिक्त लेखन की कई प्रतियोगिताएं में हिस्सा लिया और सम्मान पत्र प्राप्त किया । 

एक सक्रिय लेखक 

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रचनाकार: रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020प्रविष्टि क्र. 5 -काफिला- ऋतु असूजा ऋषिकेश
रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020प्रविष्टि क्र. 5 -काफिला- ऋतु असूजा ऋषिकेश
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