[मारवाड़ का हिंदी नाटक] यह चांडाल चौकड़ी, बड़ी अलाम है। लेखक - दिनेश चन्द्र पुरोहित पिछले खंड - खंड 1 | खंड 2 | खंड 3 | खंड 4 | खंड 5 | खं...
[मारवाड़ का हिंदी नाटक]
यह चांडाल चौकड़ी, बड़ी अलाम है।
लेखक - दिनेश चन्द्र पुरोहित
पिछले खंड -
खंड 1 | खंड 2 | खंड 3 | खंड 4 | खंड 5 | खंड 6 | खंड 7 | खंड 8 | खंड 9 | खंड 10 |
खण्ड ११
कालियो भूत लेखक – दिनेश चन्द्र पुरोहित
[मंच रोशन होता है, भूतिया नाडी का मंज़र सामने आता है। आंधी चलने से चारों तरफ़ धूल छा जाती है, जिससे नभ पीला दिखायी दे रहा है। चारों ओर फ़ैली हुई धूल के अलावा, अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। भूतिया नाडी की ओर जा रहे मोहनजी, चलते ही जा रहे हैं..रुकने का नाम ही नहीं। उनको तो बस, कमलकी के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता..वे उससे मिलने की आशा लिए चलते ही जा रहे हैं। इस कमलकी के मोह-ज़ाल में फंसे मोहनजी भूतिया नाडी पर लगा चेतावनी का सूचना-पट्ट भी पढ़ नहीं पाते, और बड़बड़ाते हुए नाडी की तरफ़ क़दम बढाते जा रहे हैं।]
मोहनजी – [होंठों में ही कहते हैं] – कैसी मुश्किल में फंस गए, रामा पीर ? अब तो कढ़ी खायोड़ा, मुझे तो लग गयी भूख। भूख लगने का अगर मालुम होता, तो काहे बैग को मेडीकल वालों की जीप में छोड़ आता ? मेले में मिली यह जुलिट, उसको बैग सम्भलाकर मैने उससे कहा ‘मैं तो भूतिया नाडी में स्नान करने जा रहा हूं, क्योंकि मुझे लग रही है अधिक गर्मी। वापस आकर, मैं मेडिकल बूथ का बचा हुआ काम संभाल लूंगा। मगर यह काम निपटते ही, मुझे दे देना उपस्थिति प्रमाण-पत्र.. वो भले दो दिन का।’ बेचारी जुलिट भली थी..मान गयी, मेरी बात। ऊपर से आते समय बहुत प्रेम से उसने कहा ‘जल्दी आना जी।’ अब देखो उसका भलापन, आते वक़्त उसने ट्वाल और लक्स साबुन की टिकिया..थमा दी मुझे। फिर क्या ? मोहनजी तो ये गए, और ये आये।
[अचानक आस-पास की झाड़ियां हिलती है, उस निर्जन स्थान पर उन झाड़ियों के हिलने से मोहनजी एका-एक चमकते हैं। बेचारे भयभीत हो जाते हैं, डर के मारे उनके मुख से चीख निकल उठती है।]
मोहनजी – [चीखते हुए, कहते हैं] – बचा रे रामा पीर, ज़रख आ गया..मैं तो अकेला हूं, अब मैं क्या करूंगा मेरी ओ मेरी जामण ?
[अचानक झाड़ियों के पीछे से, एक ख़ूबसूरत युवती निकलकर बाहर आती है। यह युवती ग्रामीण वेश-भूषा में हैं, और वह करीब सत्रह-अठारह साल की लगती है। वह कमर लचकाती हुई, धीरे-धीरे मोहनजी के नज़दीक आती दिखायी देती है। थोड़ी देर में अब, आंधी का ज़ोर ख़त्म हो गया है। जिससे नभ में चढ़ी हुई धूल, धरती पर चादर की तरह बिछने लगती है। मोहनजी का पहना सफ़ारी सूट, धूल से भर जाता है। मगर, रसिक मोहनजी को इसकी कहां परवाह ? वे बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हैं, इन धूल भरे कपड़ो का। वे तो उस ख़ूबसूरत बला को पटाने के लिए, तैयार हो जाते हैं। झट ज़ेब से सौभाग मलसा का दिया हुआ इत्र निकालते हैं, और उसे अपने वस्त्रों पर छिड़ककर..उसे वापस, ज़ेब के हवाले करते हैं। उधर आसमान में बादलों की ओट से बाहर आये सूर्य देव, दर्शन दर्शन दे रहे हैं। धीरे-धीरे अस्ताचल में जाने के लिए, उनका तेज़ कम होता जा रहा है, और वे लाल होते जा रहे हैं। कुछ समय बाद, सिंझ्या आरती का वक़्त हो जाता है। सूर्यास्त हो जाने से, आसमान में लालिमा छा जाती है। इस लालिमा की फ़ैली रौशनी में, वह बला अपने कोमल पांवों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाती जा रही है। जलती हुई मोमबत्ती हाथ में लिए, वह सुन्दरता की बहारे बिखेरती हुई उनके सामने आती है। मोमबत्ती की मंद-मंद रौशनी में हंस जैसे उसके धवल वस्त्र, कटि तक छाये घने काले केश और उसके चन्द्र-मुख पर लहराती हुई उसकी जुल्फें उसकी सुन्दरता पर चार चाँद लगाती जा रही है। अब आंधी का ज़ोर ख़त्म हो जाने से, सरयू पवन बहती जा रही है। यह पवन इस बला को छूकर, चारों तरफ़ मनभावनी सुगंध फैला देती है। इस तरह मोहनजी इस सुगंध की तरफ़, खींचे चले ज रहे हैं। वे ऐसे वशीभूत हो रहे हैं, इस तरह उनके क़दम स्वत: उस सुन्दर बला की तरफ़ बढ़ जाते हैं। वह बला अपनी ओर मोहनजी को आते देखकर, मधुर सुर में गीत गाना शुरू कर देती है। गीत गा रही इस बला की सुन्दर केश राशि, काले बादलों की तरह उसके चंद्रमुख पर छाती जा रही है। हवा के वेग से उसके ये नागिन जैसे बाल कभी उसके चंद्रमुख को ढक देती है, तो कभी यह केश राशि दूर हटकर उसके चंद्रमुख का दीदार ऐसे होने दे रही है जैसे बादलों की ओट में खोया चाँद बादलों हटने से वह अपना सुन्दर मुख दिखला रहा हो ? ऐसी प्रकृति की मनोहर छटा देखते ही, मयूर अपने सुन्दर पंखों को फैलाकर नाचता जा रहा है। पपीहा पक्षी ‘पिव पिव’ का मधुर सुर निकालता हुआ, विरहणी को उनके प्रियतम की याद दिलाता जा रहा है। और साथ में उसके दिल की, विरहाग्नि को बढ़ाता जा रहा है। पूरी भूतिया नाडी के क्षेत्र में, मयूर और पपीहा के मधुर सुर गूंज़ रहे हैं]
मयूर – मै आवो मै आवो..! [ज़मीन पर पंख फैलाकर, वह नाचता जा रहा है]
पपीहा – पिव..आवो SS पिव आवो SS..!
[अब यह पपीहा एक डाल से उड़कर, दूसरी डाल पर जाता है। उस पपीहा के लगातार “पिव आवो, पिव आवो” के सुर निकाले जाने से वह बला अपने प्रियतम को भूल नहीं पा रही है, उस विहरिणी की की दशा जल बिन मछली की तरह लग रही है। वह अपने दिल के अन्दर दहक रही विरहाग्नि को, कम करने के लिए मधुर सुर में गीत गाती हुई दिखायी दे रही है।]
वह बला – [बरगद की तरफ़ बढ़ती हुई, गीत गाती है] – आ जा..रेऽऽ आऽऽ जा। मेराऽऽ प्रेSSम दीवानाऽऽ.. आ जा रेऽऽऽ आऽऽ जा। दिल को जला मत, तू आ जा रेऽऽ आऽऽ जा..
[उसको बरगद की तरफ़ आते देखकर, मोहनजी अपने लबों पर मुस्कान बिखेर देते हैं। इस बला की ख़ूबसूरती को देखते हुए, उन्हें ऐसा लगता है, के ‘वे अपना होश खोते जा रहे हैं।’ उसकी सुन्दरता में ऐसे खो जाते हैं, बस अब उनको हर तरफ़ वह ख़ूबसूरत बला ही दिखायी देती है। वह बला बरगद के और नज़दीक आ रही है, और साथ में गाती जा रही है]
बला – [गाती हुई आगे बढ़ रही है] – करम के लेख ना मिटे रे, आ जा आ जा रे मेरे प्रेम दीवाने। आ जा रेऽऽ आ जा रेऽऽ..तुझको पुकारे मेरा प्यार..ओ दीवाने आ जा रे...
[मोहनजी आगे बढ़कर उस बला के कंधे पर हाथ रखने की कोशिश करते हैं, मगर जैसे ही वे उसके नज़दीक आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हैं..मगर यह क्या ? वह बला हाथ नहीं आ पाती, वह तो बरगद की जटा पकड़कर, झूले खाती हुई आगे बढ़ जाती है। और बेचारे प्रेम-दीवाने मोहनजी, सूखे पत्ते की तरह आकर ज़मीन पर गिरते हैं। फिर, वे किसी तरह ज़मीन पर हाथ रखकर उठते हैं। अब वापस उस बला को पकड़ने का, एक और प्रयास करते हैं। मगर बदक़िस्मत से, वह उनके हाथ नहीं आती..वह झूले खाती हुई आगे बढ़ जाती है। फिर, यह क्या ? वह बला झूले खाती हुई, उस विरह गीत का अगला मुखड़ा गाती है।]
वह बला – [झूले खाती हुई, गा रही है] – जल जायेगा पंछी, तू नेड़ा मत आ रे। विरह की आग तूझे, भस्म कर देगी रे। आ जा रे आजा, मेरे प्रेम दीवाने..
[इस वीरान इलाके में इस बला के सुर, ऐसी तारवता लिए हुए हैं...जिसको इंसान क्या ? अन्य जीव-जंतु भी, उसके प्रभाव में आ रहे हैं। उधर इस बरगद की डाल पर, एक नाग रेंगता हुआ आगे बढ़ रहा है। जैसे ही वह सांप रेंगता हुआ पपीहा के काफ़ी नज़दीक पहुंचता है, और फिर अक्समात वह पपीहे पर छलांग लगा बैठता है..मगर, यह क्या ? पपीहा उड़ जाता है, और वह सांप धडाम से आकर उस बला के ऊपर गिरता है। डरकर वह चिल्लाती है, और डर के मारे वह बरगद की जटा को को छोड़ देती है। पकड़ छूटते ही वह बला आकर गिरती है मोहनजी के ऊपर, व भी उनके गले का हार बनकर। मोहनजी के बदन पर लता की तरह लिपटी हुई यह बला, टकाटक मोहनजी को देखती है। थोड़ी देर बाद वह होश में आने का स्वांग करती है, फिर वह अपने-आपको पराये मर्द की गोद में पाकर शर्मसार हो जाती है। शर्म के मारे, उसके रुख़सार लाल-सुर्ख हो जाते हैं। वह झट अपनी ताकत लगाकर, मोहनजी के बाहुपोश से मुक्त हो जाती है। यह पपीहा इस कालंदर सांप का शिकार न बना, तब वह सांप धीमे-धीमे रेंगता हुआ बरगद के नीचे बने चूहे के बिल के पास कुंडली मारकर बैठ जाता है। अब जैसे ही चूहा, बिल से बाहर आता है..उसी वक़्त वहां शिकार के लिए तैयार बैठा यह कालंधर सांप, उसे पकड़कर निगल जाता है। आख़िर यह सांप पपीहा की जगह, उस चूहे को शिकार बना देता है। बस इसी तरह यह बला भी, मोहनजी को अपने मोह-ज़ाल में फंसाकर उन्हें अपना शिकार बनाने की योजना बना डालती है। मगर यह शिकार तो ख़ुद, उस बला का शिकार बनने को तैयार है। इस कारण उस बला के दूर हटते ही, वे मुस्कराकर उसे कह रहे हैं]
मोहनजी – [मुस्कराकर कह रहे हैं] – ए सुन्दरी, तू है कौन ?
वह बला – [शर्माती हुई कहती है] – साहब, मैं एक अबला नारी हूं। अपनी मां के भड़काने पर, मेरे घरधणी ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया। मेरा ससुराल है, दो फलांग दूर..मीणों के झूपे में। [सर को रिदके से ढकती हुई] अब मैं बेचारी जगह-जगह भटक रही हूं, जंगल-जंगल। हाय राम, अब मैं क्या करूं ?
[मोहनजी नज़दीक आकर उसकी हिचकी पर अपनी उंगली रखते हैं, इधर बादलों की ओट से चन्द्रमा बाहर निकल आता है। उसकी किरणें उसके चंद्रमुख पर इस तरह गिरती है कि, उसका सुन्दर चेहरा और मदवाले उरोज मोहनजी को बावला कर देते हैं। अब वे इस नारी के और नज़दीक आकर, उसकी पेशानी चूम लेते हैं। उसकी पेशानी चूमकर, वे उसे कहते हैं]
मोहनजी – ए सुन्दरी। तेरे अन्दर मुझे, मेरी पत्नी लाडी बाई की सूरत दिखायी देती है। [बावले होकर कहते हैं] तू तो मेरी लाडी ही है, मेरी जान। ए मेरी लाडी, मेरी जीव की जड़ी। मेरे गीगले की मां, थोड़ा और पास जाओ। [और नज़दीक आकर अपने होंठ, उस बला के होंठों के पास ले जाने का प्रयास करते हैं]
[मोहनजी के होंठ नज़दीक आते ही, वह अपनी हथेली उनके होंठों पर रख देती है। फिर, वह बला कहती हैं]
वह बला – [उनके नज़दीक आते उनके होंठों पर, हथेली रखती हुई कहती है] – नहीं..नहीं। मेरे दीवाने, मैं लाडी नहीं हूं। मैं प्यारी हूं, यही मेरा नाम है। मुझे अच्छी तरह से जान लीजिये, पहचानिये मुझे...मैं कौन हूँ...? [होंठों में ही, कहती है] अरे जीजाजी। आपके दिमाग़ में सारे दिन, मेरी बहन लाडी बेनसा छायी रहती है। आप जिस किसी ख़ूबसूरत नारी को देखते हैं, आपके लिए तो वही लाडी बाई बन जाती है ? है भगवान, आप इतना चाहते हैं मेरी बहन को ? क्या भाग्य पाए, मेरी बहन लाडी बेनसा ने ?
[मोहनजी के दिमाग़ में छायी हुई है, लाडी बाई। दिमाग़ में छायी हुई लाडी बाई, उनको असलियत देखने नहीं देती। वे लाडी बाई का जाप करते-करते भूल गए, अभी यहां वे किस मक़सद से आये हैं ? अब भूल गए वे, कर्नल रंजित के उपन्यास। और भूल गए, वे सारी जासूसी बातें। मोहनजी झट प्यारी को, अपने बाहुपोश में झकड़ लेते हैं। बाहुपोश में झकड़ते हुए, मोहनजी कहते हैं]
मोहनजी – [बाहुपोश में झकड़ते हुए, कहते हैं] – लाडी बाई मेरे जीव की जड़ी। मेरे ख़ानदान को चिराग़ देने वाली मेरे बेटे गीगले की मां, मैं आपका दास कढ़ी खायोड़ा मोहन लाल हूं..
[अब प्यारी, मोहनजी का मुंह देखती-देखती मुस्कराती जा रही है। फिर मोहनजी, पीछे रहने वाले कहाँ ? “नारी मुस्कराई, और पटी” बस, फिर क्या ? वे झट उस प्यारी को अपनी गोद में उठाकर बैठ जाते हैं, बरगद के चबूतरे के पर। फिर दबाते जाते हैं, प्यारी के कोमल पांव। पांव दबाते-दबाते, वे उससे कहते हैं]
मोहनजी – [पांव दबाते-दबाते कहते हैं] – लाडी बाई ये आपके पांव नहीं है, ये गुलाब के पुष्प की पंखुड़िया है। आप इनको ज़मीन पर मत रखना, ये मैले हो जायेंगे।
[आदतों से लाचार मोहनजी प्यारी के पांव दबाते-दबाते, अपने हाथ उसकी जांघो से ऊपर ले जाने की कोशिश करते हैं। तभी तड़ाक करता दामिनी की तरह, प्यारी का थप्पड़ उनके गालों पर रसीद हो जाता है। थप्पड़ लगाकर, प्यारी बोलती है आँखें तरेरकर।
प्यारी - [थप्पड़ लगाकर, कहती है] – दूर रखो, अपना वासता मुंह। बदबू आ रही है, आपके मुंह से। ऐसा लगता है, मेरे पास कोई हिड़किया कुत्ता [पागल-कुत्ता] आकर बैठ गया है ?
मोहनजी – [अपने गाल सहलाते हुए, कहते हैं] - लाडी बाई यों बेकार का गुस्सा मत कीजिये, मेरे मुंह से जो गंध आ रही है, वह बदबू नहीं है,,,.अरे लाडी बाई, यह तो ज़र्दे की सौरम है, राम कसम इसे बदबू कहकर आप देसी जर्दे को बेइज़्ज़त न करें। आपकी कसम, मैं सच्च कह रहा हूं, के...
प्यारी – [चिढ़ती हुई, कहती है] - यह कैसी सौरम, गीगले के बापू ? मुझे तो यह, कीचड़ से निकल रही दुर्गन्ध लगती है। अगर आप मेरे निकट आना चाहते हैं...
मोहनजी – [ख़ुश होकर, कहते हैं] – आपके पास आ जाऊं, क्या ?
प्यारी - [हाथ हिलाकर, मना करती है] – ना..ना..यह कैसी उतावली ? जाओ इसी वक़्त, और जाकर कूद पड़ो नाडी में। नहाने के बाद, नीम का दातुन लेकर अपने दांत साफ़ करना। समझे ?
मोहनजी – यहाँ कहाँ है, नीम का पेड़ ? [होंठों में ही] सारा मज़ा किरकिरा कर डाला, इस ख़ातून ने।
प्यारी – [झुंझलाती हुई, कहती है] – इतना भी न जानते ? यहाँ से पंद्रह क़दम आगे चलिएगा, आपको नीम का वृक्ष दिखाई दे जाएगा। उसकी डाल से दातुन तैयार कर लेना।
मोहनजी – [हाथ जोड़कर, कहते हैं] – हुकूम, आप जैसा कहेंगी...वैसे ही मैं करूंगा। बस, एक बार कह दीजिये, आप इस कढ़ी खायोड़ा मोहन लाल की, जीव की जड़ी हैं।
प्यारी – [आँखें तरेरती हुई, कहती है] – क्या कहा ?
मोहनजी – [डरते हुए] – ना, ना...कुछ नहीं। बस, आप रुख़्सत दीजिये। अभी आपके हुक्म की तामिल करके जस्ट आ रहा है यह आपका गुलाम मोहन लाल।
[दो क़दम आगे चले ही थे, मोहनजी..और प्यारी को कुछ याद आ जाता है। वह उन्हें आवाज़ देकर, वापस अपने पास बुलाती है। फिर, उनसे कहती है]
प्यारी – [आवाज़ देती हुई कहती है] – ओ साहब, ज़रा रुकिए। यों कैसे जा रहे हैं, जनाब ? खोलिए, अपने वस्त्र।
मोहनजी – [ख़ुश होते हुए, कहते हैं] – क्या आप रज़ामंद हैं ? सच्च...? आ जाऊं, आपके पास ? ठीक है, अभी आपको दिखा देता हूं फिल्म..मोहनजी ख़ुश, और आप भी ख़ुश। फिर और क्या देखना, अपुन को ? मोहनजी ने ये उतारे वस्त्र, और बन जाते हैं दिगंबर..और क्या ? [अपने वस्त्र खोलने लगते हैं]
प्यारी – [होंठों पर मुस्कान बिखेरते हुई, कहती है] – अरे जनाब रुकिए, यहां नहीं। [दस कदम दूर इमली के पेड़ की तरफ़, उंगली का इशारा करती है] उस पेड़ के तले वस्त्र खोलकर, रख दीजिये। [ओढ़ने के पल्ले से नाक ढांपती हुई, कहती है] दूर हटो, मुझे आपके बदन से बदबू आ रही है। गीगले के बापू, जल्द नहाकर आ जाइये।
[मोहनजी जुलिट का दिया हुआ ट्वाल और लक्स साबुन की टिकिया लिए जाने की तैयारी करते हैं, तभी प्यारी की निग़ाह ट्वाल और लक्स टिकिया पर गिरती है, वह तत्काल उन्हें रोकती हुई कहती है]
प्यारी – यह ट्वाल और नहाने की टिकिया मुझे देकर जाइये, गीगले के बापू। [फिर ट्वाल और साबुन की टिकिया उनसे लेकर, उन्हें प्यार से टिल्ला देती हुई कहती है]
प्यारी – अब जाइये ना, मगर याद रखना..आपको अपने सारे वस्त्र, उस इमली के वृक्ष के नीचे ही रखने हैं। अब जाओ, जाओ..मेरा मुंह क्या देख रहे हो ? अब मैं अपना हाथ-मुंह लक्स टिकिया से मल-मलकर धोऊँगी, फिर इस ट्वाल से...[न जाने पर, वह प्यार से एक बार और टिल्ला देती है]
[मोहनजी जाते हुए दिखाई देते हैं, और सीधे पहुंच जाते हैं इमली के तले..वहां उस प्यारी की ख़ूबसूरती को दिल में संजोये, अपने पहने हुए कपड़े खोलते हुए नज़र आते हैं। मंच पर अब रौशनी मंद हो जाती है, जिसमें केवल परछाइयां उभरती नज़र आती है। सारे कपड़े खोलकर मोहनजी, उन कपड़ो को इमली के पेड़ के नीचे रख देते हैं। अब उनकी वस्त्र-हीन परछाई, फ़िल्मी-गीत गाती हुई नाडी की ओर बढ़ती दिखाई देती है।]
मोहनजी – [गीत गाते हुए जाते हैं] – “याद करेगी दुनिया, यह तेरा अफ़साना..” [अब दूसरा फ़िल्मी गीत गाना शुरू करते हैं] “हम दोनों, दो के बीच दुनिया छोड़ चले..”
[बेसुरा गीत गाते हुए मोहनजी, नाडी में कूद जाते हैं। फिर नंग-धड़ंग स्थिति में मछली की तरह नाडी में मस्ती से तैरते जा रहे हैं, और अपने मानस में उस प्यारी के सुन्दर बदन को छूने का अहसास करते जा रहे हैं। उसे याद करते-करते वे पुलकित हो रहे हैं, के ‘नहाने के बाद उनको, उसके शरीर को छूने अवसर एक बार और मिलेगा ?’ इस तरह कल्पना करते हुए, वे तैरते जा रहे हैं। उन्हें यह भी भान नहीं, के ‘वह प्यारी चुप-चाप कब आकर, इमली के पेड़ के नीचे रखा मोहनजी का सफ़ारी सूट लेकर पहन चुकी है। अब वह अपने खोले गए जनाने कपड़े, ट्वाल और लक्स की टिकिया ओढ़ने की गांठ बनाकर उसमें में रख देती है। इस तरह मर्दाने कपड़े पहनकर, अब वह प्यारी से प्यारे लाल हवलदार बन गया है। इसके बाद बाद वह प्यारे लाल हवलदार गांठ को ऊंचाये, महल के खण्डहर की तरफ़ अपने क़दम बढ़ा चुका है। मगर मोहनजी को कहां मालुम, इस प्यारे लाल की करतूत ? वे तो तन्मय होकर तैरते जा रहे हैं, और साथ में यह गीत ‘याद करेगी दुनिया, यह तेरा अफ़साना..’ बेसुरी आवाज़ में गाते जा रहे हैं। और साथ में वे प्यारी के बदन की सुगंध को अहसास करते हुए, वे उसे अपने बाहुपोश में लेने की तरकीब सोचते जा रहे हैं। इस कल्पना में रहते हुए, उनको यह भी भान नहीं होता के “संध्या ढल चुकी है, अब आसियत का अंधेरा फैलता जा रहा है। और यह रात डरावनी रात में बदलती जा रही है। पेड़ो पर नीड़ डाले सारे परिंदे, अब अपने नीड़ में लौट चुके हैं। और अब निशाचरों की डरावनी आवाजें, भूतिया नाडी में गूज़ती जा रही है।” कभी-कभी इन वृक्षों की डालियों पर उल्टे लटके चमगादड़, शीआओsss की आवाज़ करते फरणाटें से उड़ जाते हैं...रात को, शिकार करने। अचानक मोहनजी को ऐसा लगता है, सामने की झाड़ियों के पीछे कोई जंगली जानवर चल रहा है ? उस जानवर के चलने की आवाज़ ‘हड्डियों के चरमराने जैसी’ सुनायी देती है, इस आवाज़ को सुनकर मोहनजी का दिल दहल जाते हैं। तभी एक बड़ी मछली तेज़ी से, उनकी रानों को छूती हुई निकल जाती है। इस मछली के गुज़रने से उन्हें, बिजली का झटका लगने का अहसास होता है। बेचारे मोहनजी घबरा जाते हैं, और उसी वक़्त वे नंग-धड़ंग स्थिति में बाहर निकल आते हैं। बाहर, मोहनजी क्या आये ? यहां भी..इस डरावनी आवाज़ को सुनकर, उनकी घबराहट बढ़ती जा रही है, कभी झाड़ियों के पीछे हड्डियों के चरमराने जैसी कड़क कड़क करती आवाजें सुनायी देती है, तो कभी जंगली भैंसों के रंभाने की आवाज़ नज़दीक आती हुई सुनायी देती है, उन्हें ऐसा लगता है कि, कोई भैंसों का झुण्ड नाडी में पानी पीने आ रहा है ? भैंसों के पीछे-पीछे सियारों के एक साथ कूकने की आवाज़ सुनायी देती है, तभी केसरी सिंह नाहर [बब्बर शेर] की दहाड़ सुनाई दे जाती है। इस दहाड़ को सुनकर, मोहनजी का पूरा शरीर जड़ी के बुख़ार की तरह कांपने लगता है। न जाने क्यों झाड़ियों के पीछे, तेंदुए की ‘चिहुक चिहुक’ करती आवाज़ आने लगती है ? ऐसा लगता है शिकार की टोह में, यह जंगली जानवर और नज़दीक आता जा रहा है। तभी चमगादड़ो का झुण्ड, पेड़ के झुरमुट से निकलकर एक साथ उड़ता है। जो मोहनजी के बालों को छूता हुआ, ‘शीआओsss’ की आवाज़ करता हुआ वहां से गुज़र जाता है। रामा पीर जाने यह वाकया अक्समात घटित होने के बाद, उनकी मानसिक स्थिति कैसी रही होगी ? आख़िर होश दुरस्त होने के बाद वे इमली के पेड़ के नीचे, अपने कपड़े ढूंढ़ने का निरर्थक प्रयास करते हैं। मगर, उन्हें कपड़े कहीं नज़र नहीं आते ? इतने में झाड़ियों के पीछे तेंदुए की चिहुक-चिहुक करती आवाज़, उनके कानों को और नज़दीक से सुनायी क्या देती है ? बेचारे मोहनजी के होश, फाख्ता हो जाते हैं। डरकर बेचारे पाळ पर कभी इधर दौड़ते हैं, तो कभी उधर। डरते-डरते मोहनजी को ऐसा लगता है, के ‘वे बावले हो गए हैं...?’ बस, फिर क्या ? भयभीत मोहनजी नंग-धड़ंग अवस्था में कभी इधर दौड़ते हैं, तो कभी उधर। अब वे डरे हुए, ज़ोर-ज़ोर से रामसा पीर को पुकारते-पुकारते..आसमान को, गूंजा देते हैं। तभी मंच पर, अंधेरा छा जाता है। थोड़ी देर बाद, मंच पर रौशनी फैलती है। गौतमजी के मेले का मंज़र, सामने दिखायी देता है। मेले में, भगदड़ मची हुई दिखायी देती है। मेडिकल वालों का शिविर दिखाई देता है, जुलिट भगदड़ की आवाज़ सुनकर बाहर आती है। और देखना चाहती है..के, मामला क्या है ? वह देखती है, दो-चार पुलिस के हवलदार अपनी जान बचाते हुए, दौड़कर शिविर की तरफ़ आ रहे हैं। उनके पीछे-पीछे आठ-दस मेणा लाठी लिए हुए, उनको पीटने के लिए दौड़ते आ रहे हैं। इस शिविर में जनता की तरफ़ से, खीमला और रूपला नाम के दो स्वयंसेवक लगे हुए हैं। इस वक़्त वे भी, इस भगदड़ को देख रहे हैं। इन पुलिस के हवलदारों के नज़दीक आते ही, वे इस जुलिट को शिविर में ज़बरदस्ती ले जाकर कुर्सी पर बैठा देते हैं..फिर, इलाज़ लेने आये सभी रोगियों को समझा-बुझाकर रुख़्सत देते हैं। फिर वे दोनों, वापस बाहर आ जाते हैं। बाहर आकर उन पुलिस के हवलदारों को शिविर के अन्दर आने देते हैं, फिर पीछे आ रहे लठैतों को वहीँ दरवाज़े के पास रोककर उन्हें समझा-बुझाकर कहते हैं]
खीमला – [लठैतों को समझाता हुआ, कहता है] – नौजवानों, ज़रा रुको। बताओ कहां से आ रहे हो, और कहां जा रहे हो ? कहीं, हमला तो नहीं हो गया...?
एक लठैत – खीमला भाई, बीच में आकर क्यों खड़े हो गए ? क्या, आपको ध्यान नहीं ? हमें सरदार के हुक्म से वर्दीधारी पुलिस वालों को जन्तराकर, ले जाना है पंचों के पास।
दूसरा लठैत – भाई खीमला, दूर हट जा। सुपर्द किये गए काम को, हमें करने दे।
रुपला – यहां क्या पड़ा है, मेरे भाई ? कुछ नहीं है, यहां। आपको वर्दीधारी पुलिस ही चाहिए, ना ? तो इसी वक़्त चले जाओ मेले की पुलिस चौकी। वहां आपको वर्दीधारी और बिना वर्दी, वाले सारे पुलिस वाले बैठे मिल जायेंगे। जिन वर्दीधारी पुलिस वालों को आप ढूंढ़ने आये हैं, वे भी वहीँ है..अभी-तक उन्होंने, कपड़े नहीं बदले होंगे ?
खीमला – फ़िक्र कीजिये मत, यहां आ गए तो हम दोनों यहीं बैठे हैं। उनको पकड़कर ला देंगे, आपके पास। आप सभी, हम दोनों पर भरोसा कीजिये।
[उन दोनों पर भरोसा करके, सभी लठैत पुलिस चौकी की तरफ़ दौड़ लगा बैठते हैं। ख़तरा टलने के बाद, दोनों ख़ुश होकर शिविर में दाख़िल होते हैं। अन्दर आकर वे शिविर में रखी डॉक्टरों और कम्पाउडरों की वर्दियां उठाकर, उन फर्जी पुलिस वालों को थमा देते हैं। यह ग़लत काम होते देखकर, जुलिट उठती है। और आगे बढ़कर, वह वापस उन वर्दियों को छीनने का प्रयास करती है। बनते काम में विध्न पड़ते देख, वे दोनों इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। दोनों अपनी ज़ेब से रामपुरी चाकू निकालकर, उसे धमकाते हैं। रुपला अपना रामपुरी चाकू दिखाता हुआ, जुलिट को धमकाता हुआ कहता जा रहा है]
रुपला – [चाकू दिखाता हुआ, ज़ोर से कहता है] – चुप-चाप बैठ जा, जुलिट। नहीं बैठी तो यह चाकू, तेरे आर-पार। समझ गयी, या नहीं ?
[खीमला नज़दीक आता है। फिर वह धब्बीड़ करता, थप्पड़ जुलिट के गाल पर जमा देता है। फिर, वह उससे कहता है]
खीमला – [थप्पड़ रसीद करके, कहता है] – अब बीच में आयी, तो एक और ज़ोर से पड़ेगा धब्बीड़ करता थप्पड़। अब फटा-फट दे दे जीप की चाबी, नहीं तो फिर एक और...
[डरती-डरती जुलिट, जीप की चाबी खीमले को थमा देती है। फिर क्या ? इनके साथी थोड़ी देर में वर्दियां पहनकर बन जाते हैं, कोई डॉक्टर तो कोई कम्पाउंडर। उनके वर्दियां पहनने के बाद, लपकू आ जाता है वहां। तभी वह खीमला उस जुलिट को एक बार और, धमकाता हुआ उससे कहता है]
खीमला – [धमकाता हुआ, कहता है] – अब जा, अपना बैग लेकर आ। फिर चुप-चाप बैग लेकर बैठ जा, जीप की अगली सीट पर।
[जुलिट बैग लाकर, जीप की अगली सीट पर बैठ जाती है। इसके बाद खीमला, पास आते लपकू से कहता है]
खीमला - ए रे, लपकू। तेरा प्लान तो बड़ा तगड़ा बना रे, जैसे सुअर चर जाते हैं खेत को..और पीछे से, पाडो [भैंसों] को मार पड़ती रहती है। अब किसी को भनक नहीं पड़ेगी, के ‘यह सारी कारश्तानी, हम लोगों की है।’
लपकू – बाद में करता रहना, मेरी तारीफ़ें। काम के वक़्त बेफिजूल की बातें करनी, अच्छी नहीं है रे। अब तू फटा-फट गांजे के कार्टून लेकर आ जा, और लाकर रख दे इस जीप में।
रुपलो – यार लपकू। जो माल पहले भेजा गया था, उस माल के और अभी जा रहे इस माल के रुपये तो देता जा।
लपकू – रुपये-पैसों का हिसाब करेंगे, सौभाग मलसा। यह काम बोस के जिम्मे है, अब तू फटा-फट लेकर आ जा कार्टून। [अपने साथियों से कहता है] अब आप लोग डॉक्टर और कम्पाउंडर बन गए हो तो, जाकर बैठ जाओ जीप में।
[रुपला और खीमला, अब गांजे के कार्टून जीप में लाकर रखते हैं। साथियों के बैठने के बाद, लपकू आकर ड्राइवर की सीट पर बैठ जाता है। गाड़ी स्टार्ट करता हुआ लपकू, रूपले से कहता है]
लपकू – देख रुपला, हम इस जुलिट को अपने साथ ले जा रहे हैं। इससे गाँव वालों को शक नहीं होगा, के अपुन इस जीपड़ी को गांजे के कार्टून पहुंचाने के लिए काम में ली है। और सुन, तेरी इस नर्स जुलिट को बोस के साथ भेज देंगे वापस। जो काम बाकी रह जाय, उस काम को तुम-दोनों संभाल लेना आराम से।
[अब जीप रवाना होती है, थोड़ी देर में वह हवा से बातें करने लगती है। जीप के निकल जाने के बाद, रुपला और खीमला शिविर के बाहर आकर बैठ गए हैं। फिर वहां बैठे-बैठे, गुफ़्तगू करते जा रहे हैं]
खीमला – यार रुपला, लपकू बहुत होशियार हो गया है रे। गांजे के रुपये देकर गया नहीं, और ऊपर से बोस से बात करने का कह गया। हम इस कुतिये के ताऊ बोस से, बात करें भी कैसे ?
रूपला - उसका नाम लेते, हमारा मूत उतरता है। अगर यह कमबख़्त बोस यह सुन ले, के ‘हम दोनों, उसके बारे में क्या-क्या बोल रहे हैं..?
खीमला – बात सही है, तेरी। वह नालायक, यह बात सुनकर हमें कुत्तो से नुचवा देगा..कमबख़्त।
रूपला – क्या करें, यार ? बोस से डरते, हम कुछ नहीं कर सकते। इसलिए, ज़बान संभालकर ही बोलना अच्छा।
[सामने से जीप का ड्राइवर, डोलर हिंडे की तरह झूमता हुआ आ रहा है..इनके पास]
ड्राइवर – [उनके पहलू में, बैठता हुआ कहता है] – खीमसा, डॉक्टर साहब पधारे या नहीं ? [ललाट से टपक रहे पसीने के एक-एक कतरे को, साफ़ करता हुआ कहता है] क्या करूं, खीमसा ? मेला देखने का मन हो गया, और वहां मिल गए पुराने यार-दोस्त...
खीमला – और, फिर क्या ? उनके साथ बैठकर, चढ़ा ली दारु दाखों की।
ड्राइवर – [मुस्कराता हुआ, कहता है] – कैसे बचता यार, उन लोगों से ? अरे जनाब, जानते हो ? जब चार दोस्त बैठ जाए, कहीं। तब अपने-आप जम जाती है, महफ़िल और छलक जाते हैं दारु के जाम। वाह जनाब, दारु भी क्या चीज़ बनायी है...इस ख़ुदा ने ?
खीमला – दारु, या कुछ और भी ?
ड्राइवर – जहां जमती है महफ़िल दारु दाखों की, वहां बिना नाच-गाने..मज़ा आने का सवाल नहीं, जनाब ? वहां पूरी व्यवस्था थी पक्की, मगर सारा मज़ा किरकिरा हो गया..ये खोजबलिये...
खीमला – मेणे आ गए क्या, आपके पिछवाड़े की ढोलकी बजाने...?
ड्राइवर – आप लोगों को, परिहास की मीठी चिमटियां काटने में मज़ा आता है ? यार [खीमले की तरफ़ देख़ता हुआ, कहता है] कभी जनाब आपने, ऐसे नाच-गाने होते कहीं देखे हैं..कभी ?
खीमला – अब इन नाच-गानों को, क्या देखना ? आप कहो तो मैं ख़ुद नाच लूं, और यह रूपला गीत गा लेगा। मगर ध्यान रखना, आप। हम दोनों पर बरसात करनी होगी, आपको..कड़े-कड़े नोटों की। बोलो मंज़ूर है, या नहीं ?
रुपला – इन बातों को छोड़िये अभी, खीमला भाई। पहले इनको थमा दो, बीड़ी। चार फूंक मारकर अपनी थकावट दूर कर लेंगे, फिर पूरा किस्सा बयान करके आपको सुना देंगे। कुछ रहम खाओ, इन पर..बेचारे ठोक खाकर, यहां तशरीफ़ लाये हैं।
[ज़ेब से बीड़ी का बण्डल निकालकर, रूपला एक बीड़ी ख़ुद लेता है और दूसरी बीड़ी थमा देता है ड्राइवर को..फिर तीसरी बीड़ी पकड़ा देता है खीमले को। अब तीनों ही बीड़ी जलाकर, धुंए के बादल बनाते जा रहे हैं। ड्राइवर बीड़ी का एक लंबा कश खींचकर, आगे कहता है]
ड्राइवर – [बीड़ी का लंबा कश खींचकर, कहता है] – मेरे साथ बहुत बुरा हुआ, रामा पीर। मैं करमठोक गया ही क्यों, इस मेले में ? इधर मैने अपने हलक में उतारा, दारु का एक जाम। और ये कमबख़्त मेणे आ गए वहां, लाठी लिए हुए। मेरे बदन पर ख़ाकी वर्दी देखकर, उन्होंने..
खीमला – [होंठों पर मुस्कान छोड़ता हुआ, कहता है] – फिर क्या ? जनाब की पिछली दुकान पर ढोलकी बजा दी, इन मेणों ने ?
ड्राइवर – [चौंकता हुआ कहता है] – आपको, क्या पता ? कहीं आप, वहां खड़े तो न थे ? मैं बेचारा ग़रीब आदमी ख़ाकी वर्दी पहने पी रहा था, दारु। अरे, रामा पीर। इन खोजबलियो ने पीट दिया मुझे, तेल पायी हुई लाठी से। [कमीज़ ऊपर करके पीठ पर लगे चोटों के घाव दिखलाता है] देखिये, मार-मारकर मेरी कमर नीली कर डाली इन कमीनों ने।
खीमला – [हंसता हुआ, दूसरी बार और कहता है] – फिर क्या हुआ, इन मीणों ने आपकी पिछली दुकान छोड़ दी क्या ? बोलिए जनाब, कमर की तरह पिछली दुकान क्यों नहीं दिखला रहे हैं..आप ? कहिये, फिर क्या हुआ ?
[“फिर क्या हुआ ?” जैसे शब्द बार-बार बोलकर, खीमले ने ड्राइवर का दिमाग़ ख़राब कर डाला, फिर क्या ? बेचारा ग़रीब ड्राइवर क्या कहे, ऐसे बेअक्ल के लौंडों को ? जिन्हें सात्वना के दो बोल बोलने तो दूर...मगर, ये कमबख़्त मुझसे परिहास करते जा रहे हैं ? मगर, यह क्या ? अचानक इस रूपले को उस पर रहम कैसे आ गया ? वह रहम खाता हुआ, ज़ोर से खीमले से डांटता हुआ कहता है।]
रूपला – [खीमले को डांटते हुए, कहता है] – ‘फिर फिर’ क्या बोलता है, कौए ? बेचारे की खैरियत पूछनी गयी धेड़ में, ऊपर से इस बेचारे का जला डाला पाव भरा खून...व्यंग-बाण चला-चलाकर।
ड्राइवर – रुपसा, आप सच कह रहे हैं। मैने इन लठैतों से कई बात कहा के ‘भाइयों, मैं पुलिस वाला नहीं हूं। मैं तो बेचारा, ग़रीब ड्राइवर हूं। मुझे मत मारो, बेटी के बापां।’ मगर मेरी एक नहीं मानी, उन्होंने..यहां ..अब यहाँ आकर, मैने अब ली है सांस।
खीमला – अब क्या करेगा, भाई ? नर्स बहनजी सा को मूव ट्यूब थमाकर, मसलायेगा अपनी कमर..? मुझे भी आती है, मसलनी...मेरे हाथ, बहुत अच्छे पड़ते हैं। ट्यूब नहीं हुई तो, क्या हुआ ? तेल मसल दूंगा, तुम्हारी पक्की हुई कमर पर। इतने में डॉक्टर साहब आकर, तेरी खैरियत पूछ लेंगे।
ड्राइवर – [होंठों में ही, कहता है] – आटा वादी करता है तेरा, खीमला ? डॉक्टर साहब के सामने, मेरी आपबीती का किस्सा बयान करके मुझे मरवा डालेगा..कमबख़्त ?
खीमला – फिर क्या करूं रेSS, सुबह से हम आप लोगों की सेवा में लगे रहे..एक निवाला रोटी का, नहीं गिटा ? अब मर रहे हैं भूखे, बेटी के बाप। मगर, आप अपनी दवा पीकर आ चुके हैं। रामा पीर की कसम, हम दोनों को यह दवा भी हासिल नहीं हुई है।
[ड्राइवर अपनी ज़ेब से निकालता है, एक कड़का-कड़क नोट दस का।]
खीमला – यह क्या ? इससे, अंगूरी क्या ? हाथकडी दारु की थैली भी, नहीं आती। डॉक्टर साहब के प्रकोप से आपको बचाने के लिए, अब विलायती दारु ही जमेगी मेरे बाप। अब इस सूखे कंठ में इससे कम, किसी किस्म की दारु असर नहीं करेगी। नहीं तो यार, यह लालकी मचल रही है...
[दस का नोट वापस अपनी ज़ेब में रखकर, अब ड्राइवर अन्दर की ज़ेब से एक सौ का नोट निकालकर थमा देता है। फिर हाथ जोड़कर, कहता है]
ड्राइवर – [हाथ जोड़कर कहता है] – लीजिये, अब पधार जाइये मालिक। अब आप वापस पधारना मत, यहां। डॉक्टर साहब और नर्स बहनजी सा के समाचार, मैं ख़ुद अपने-आप ले लूंगा।
[रुपये लेकर खीमला और रूपला रुख़्सत होते हैं, और अब जाते-जाते वे दोनों गीत गाते जा रहे हैं]
खीमला – [गीत गाता हुआ] – फागुन आयो रे, आयो SS रे आयो रे..फागुन आयो रे।
रुपला – [झूम-झूमकर, गाता है] – ठौड़ ठौड़ मदिरा के, अब छलकते जाते जाम रे SS..।
खीमला – [झूमकर गाता है ] – लपक लपककर पीते हम तो, दारु मुफ़त का, के भायों दारु दाखों का।
खीमला – [ऊंची तान लेकर गाता है] - धूसो बाजे रे बाबोसा, आपके मेड मेणों का...के धूसो बाजे रे। रंग अबीर गुलाल उड़े रे, मेणी नाचे चौक में। चारों ओर भभक रहे हैं, दारु दाखों का के भायों दारु दाखों का।
रूपला – [गीत गाता हुआ] - फागुन आयो रे, आयो SS रे आयो रे..फागुन आयो रे। ठौड़ ठौड़ मदिरा के, अब छलकते जाते जाम रे SS..।
खीमला – [साथ देता हुआ, गाता है] - पीओ रे भय्या, दारु दाखों का...
[थोड़ी देर बाद, वे दोनों आंखों से ओझल हो जाते हैं। मंच पर, अंधेरा छा जाता है। थोड़ी देर बाद, मंच पर रौशनी फ़ैल जाती है। अब बाबजी के झूपे का मंज़र, सामने दिखायी देता है। इस ढाणी में, मेढ़ मीणे रहते हैं। ये सभी मेढ़ मीणे, गौतम मुनि के भक्त हैं। कई सालों पहले, रूपला और खीमला के लकड़दाजी ने यह बस्ती बसायी थी। ये लकड़दाजी “बाबजी” के नाम से जाने जाते थे। इस करण, इस ढाणी का नाम “बाबजी की ढाणी” रखा गया। यह किदवंती है, के ‘बाबजी की दाढ़ी, उनके पांव के तालू तक पहुंचा करती थी।’ इनका नाम सुनकर, इस इलाके के सेठ-साहूकारों और ठाकुरों के रोंगटे खड़े हो जाया करते थे। कहा जाता है, वे नींद में सो रही ठकुराइनो के सर की चोटियां काटकर ले आते। उस वक़्त उनके आने से, किसी परिंदे को भी इनके आने की भनक नहीं पड़ती। इसके पास ही, ‘मेणों का झूपा’ नाम की ढाणी है। बाबजी की ढाणी से लगभग डेड-दो फलांग दूर, भूतिया नाडी है। अब संध्या ढल चुकी है, और आसियत का अंधेरा फैलता जा रहा है। रात चांदनी है, चांद की रौशनी में बहुत दूर से धूल उड़ती हुई दिखाई देती है। कुछ ही देर में मोटर साइकल साफ़-साफ़ नज़र आती है, जिस पर बैठे सौभाग मलसा मोटर साइकल की रफ़्तार बढ़ाते जा रहे हैं। अब गाड़ी बाबजी के झूपे के काफ़ी नज़दीक आ चुकी है, मोटर साइकल की आवाज़ सुनकर ढाणी के निवासी अपने झोपड़ो से निकलकर बाहर आते हैं। फिर वे सभी, सौभाग मलसा के स्वागत-सत्कार तैयारी में जुट जाते हैं। इन लोगों में रूपला के भईजी लाखाजी मौजूद है, जो इस बस्ती के मुखिया है। ‘सिर पर सफ़ेद पगड़ी, घुटनों तक सफ़ेद दाढ़ी और सफ़ेद ही धोती-अंगरखी पहने लाखाजी इस चांदनी रात में जिन्न जैसे दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है, मानो इस चांदनी रात में कोई जिन्न अपना भोग लेने आया हो ?” सौभाग मलसा मोटर साइकल से नीचे उतरकर, गाड़ी को खड़ी करते हैं। तभी ढाणी की औरतें मंगल गीत गाती हुई, आगे बढ़ती है। श्रद्धा से वे सभी, उनकी अगवानी करती है। हाथ में स्वागत थाल लिए, एक सुन्दर युवती आगे बढ़कर सौभाग मलसा की आरती उतारती है। कई औरतों के हाथ में ढोलकी और थालियां है, जिन्हें बजाती हुई, वे उनका स्वागत मंगल-गीत के साथ करती जा रही है। आरती उतारने के बाद, सौभाग मलसा ज़ेब से पांच हज़ार के नोट निकालकर, आरती की थाली में रख देते हैं। अब ढाणी के बड़े-बुजुर्ग उनको मान-मनुआर के साथ ढाणी के चौपाल में ले आते हैं, उनके पीछे-पीछे औरतें घूंघट निकाले चली आती है। चौपाल में एक बड़ा पलंग बिछा हुआ है, और उसके पहलू में बड़े बुजुर्गों के बैठने के लिए पांच-छ: मूढ़े रखे हैं। सौभाग मलसा के पलंग पर बैठ जाने के बाद, सभी बड़े-बुजुर्ग मूढो पर बैठ जाते हैं। संकेत पाने पर सारी औरतें, नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है। अब अपनी ज़ेब में हाथ डालकर, सौभाग मलसा इत्र लगा हुआ रुमाल बाहर निकालते हैं। फिर वे, उससे ज़ब्हा से टपक रहे पसीने के एक-एक कतरे को साफ़ करते हैं। पसीने को साफ़ करने के बाद, रुमाल को वापस ज़ेब में डाल देते हैं। फिर, पास पड़े स्टूल पर रखे पानी के ग्लास को उठाते हैं..और ऊपर से पानी पीकर, वापस उसे यथा-स्थान रख देते हैं। अब सौभाग मलसा हाथ का इशारा करते हैं, हुक्म पाकर मंगल गीत गा रही औरतें चुप-चाप बैठ जाती है। मंगल-गीत बंद होते ही, सौलह-सत्रह साल का किशोर चांदी की थाली लेकर आता है। इस थाली में, अंगूरी शराब से भरे चांदी के जाम रखे हैं। वह आकर स्टूल पर उस थाल को रख देता है। फिर झुकर, वह सौभाग मलसा का अभिवादन करता है। इनका इशारा पाकर, सौभाग मलसा और बैठे बड़े-बुजुर्गों को शराब के जाम थमा देता है। दारु पीते-पीते वे सब, अब इस किशोर का कमाल देखना चाहते हैं। सौभाग मलसा उस किशोर को, आवाज़ का कमाल दिखाने का इशारा करते हैं। इस किशोर का नाम है, झमकू। आदेश पाकर वह, पलंग के पास ही नीचे ज़मीन पर बैठ जाता है। फिर क्या ? झमकू सबसे पहले, रामसा पीर का जयकारा लगाता है। अब वह कई जंगली जानवरों की डरावनी आवाज़े, निकालनी शुरू करता है। अत: सबसे पहले वह आँखें बंद करके, जरख के चलने की आवाज़ निकालता है, यह आवाज़ ऐसी है मानो हड्डियां चरमरा रही हो ? इसके बाद, तेंदुए की आवाज़, और इसके बाद सियारों के झुण्ड के कूकने की आवाजें निकालता है। फिर परिंदों के उड़ने की आवाज़, निकाल बैठता है। उसके बाद वह शेर के दहाड़ने की गूंज सुनाकर, बैठे लोगों के दिल में भय समा देता हैं। चीता, तेंदुआ व जंगली कुत्तों की डरावनी आवाजें निकालकर, भय का वातावरण पैदा कर देता है। इसके बाद, एक बार और लकड़बग्गे के चलने की आवाज़ ऐसी निकालता है, मानो हड्डियों के चरमराने की कड़क-कड़क करती आवाज़ कहीं से आ रही हो ? जंगली भैंसों के रंभाने की आवाज़ ऐसे निकालता है, मानो इनका झुण्ड नाडी पर पानी पीने आया हो ? इस तरह भयानक आवाजें सुनकर, बेचारे नन्हे बच्चे अपनी मां की गोद में सहमकर बैठ जाते हैं। इस ठंडी रात में, झमकू द्वारा निकाली गयी आवाजें कई कोसों दूर तक जाती है। और वहां धोरो से टकराकर, वापस लौट जाती है। इधर यह सायं-सायं की आवाज़ करते ये हवा के झोंके, बदन की सिहरन को बढ़ा रहे हैं। उधर लकड़बग्गे के चलने की आवाजें, दूर-दूर तक पहुँच जाती हैं। जो इस वनीय-क्षेत्र में लकड़बग्गों की, उपस्थिति का साक्ष्य देती जा रही है। अपना कमाल दिखाने के बाद, अब झमकू उठता है और सौभाग मलसा को तैयार किया गया हुक्का थमा देता है। इसके बाद, वह उनसे अर्ज़ करता है।
झमकू – [हाथ जोड़कर कहता है] – अन्नदाता हुकूम। खम्मा घणी आपका हुक्म, तामिल हो गया। इस ढाणी से कई कोसों दूर तक इंसान क्या, कोई जानवर भी नज़र नहीं आयेगा। अब मेरे लायक, और कोई हुक्म ?
[सौभाग मलसा झट ज़ेब से निकालते हैं छ: हज़ार रुपये, फिर इन रुपयों को झमकू को देते हुए कहते हैं]
सौभाग मलसा – ले बेटा, तेरा इनाम। वाह रे, वाह। क्या गला दिया है, रामा पीर ने ? तेरे इस गले से निकले सुर, कई कोसों दूर जाते हैं। देख बेटा अब तूझे एक काम और सौंप रहा हूं, तू तेरे मोटियार हट्टे-कट्टे आदमियों को साथ लेकर पहुंच जा भूतिया नाडी। वहां तूझे करीब ५७-५८ साल का आदमी दिखायी देगा, जिसके...
झमकू – हुज़ूर, कोई निशानी हो तो बताइये..ताकि, हम सब मिलकर, उसे ऐसी फोड़ी चखाएंगे, ऐसी फोड़ी चखाएंगे के..
सौभाग मलसा – बेटा, पीटने की कोई ज़रूरत नहीं। उस आदमी का नाम है, मोहन लाल। काली सफ़ारी सूट, पहन रखी है उसने। बस अब तू और तेरे साथी, उस आदमी को पकड़कर यहां ले आओ। एक बार तू उसे हाज़िर कर दे, मेरे सामने..
झमकू – जो हुक्म, मेरे मालिक।
[थोड़ी देर बाद, झमकू अपने लठैत साथियों के साथ भूतिया नाडी की तरफ़ जाता हुआ दिखाई देता है। झमकू और उसके लठैत साथियों के जाने के बाद, वहां एक सरकारी जीप आकर रुकती है। लपकू और उसके साथी, उस जीप से नीचे उतरते हैं। इन लोगों के उतर जाने के बाद, अब लपकू सम्मान के साथ जुलिट को नीचे उतारता है। फिर सभी सौभाग मलसा के सामने हाज़िर होते हैं, सौभाग मलसा इन लोगों को यहां देखकर नाराज़ हो जाते हैं। फिर, अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहते हैं]
सौभाग मलसा – [नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए, कहते हैं] – क्या इस ढाणी में, मेडिकल कैम्प रखा गया है..जो आप नर्स बैनजीसा को लेकर, यहां आ गए ?
लपकू – [हाथ जोड़कर, कहता है] – हुज़ूर इनकी आँखों पर पट्टी बांधकर लाता था, मगर मैने सोचा..के, यह अजनबी इंसानों में औरत जात है। इसको क्या मालुम, यहां आने के रास्ते ? फिर भी जनाब, इस जीप को घुमा-घुमाकर यहां लाया हूं। इस तरह हमारे काम में, किसी तरह का विध्न नहीं आयेगा हुज़ूर।
सौभाग मलसा – लपकू मैं जो बात पूछ रहा हूं, तू उसी सवाल का जवाब दे। बाकी, बेकार की झकाल कर मत।
लपकू – इनको यहां लाना, बहुत ज़रूरी था मालिक। [साथियों के ऊपर नज़र डालता हुआ] तब ही मैं इन लोगों को और अपना माल, वहां से निकालकर ला सका। देखिये जनाब, इन लोगों ने कैसे-कैसे स्वांग रचे हैं ? कोई बन गया, डॉक्टर..तो कोई बन गया कम्पाउंडर ? इन कपड़ों के कारण ही, गाँव वाले इनको पहचान न सके।
सौभाग मलसा – [थोड़ा नरम पड़कर, धीरे से पूछते हैं] - किसी आदमी को मालुम तो नहीं हुआ, हमारे माल के बारे में ? करें, क्या ? इस मेले में, कमबख़्त सी.आई.डी. पुलिस अलग से तैनात है। इस कारण ही, पूछ रहा हूं लपकू...के ‘माल हिफ़ाज़त से, अपने गोदाम में रख दिया गया या नहीं..?
लपकू – जनाब, माल हिफ़ाज़त से रखने के बाद ही, इस जीप को इधर मोड़कर लाया हूं। अगर साथ में नर्स बहनजी को नहीं लाता, ख़ुदानख्वास्ता अपुन के सब लोग पकड़े जाते। मालिक गांव वाले संदेह कर लेते, और हमारा काम खटाई में पड़ जाता।
जुलिट – [उत्सुकता ज़ाहिर करती हुई] – कौनसा काम ?
सौभाग मलसा – नाटक का, ये बेचारे नाटक खेल नहीं पाते। [लपकू से कहते हैं] अब ठीक है, लपकू। आगे से मेरी बिना मेरी इज़ाज़त लिए, कोई काम किया मत कर। [अब मुस्कराते हुए, जुलिट से कहते हैं] नर्स बहनजी सा, मेरे आदमियों की नादानी के करण आपको ज़हमत उठानी पड़ी।
[फिर क्या ? वे कुर्सी मंगवाकर, जुलिट को बैठाते हैं। फिर ज़ेब से निकालते हैं, चांदी की डिबिया। उसमें रखी चांदी के बर्क लगी, मसाले वाली मीठे पान की गिलोरी जुलिट को थमा देते हैं। और ख़ुद अपने लिए बर्क लगा मीठा पत्ता, जिसमें चेतना ज़र्दा मिला हुआ है..वह पान का बीड़ा, ख़ुद अपने मुंह में ठूंस लेते हैं। फिर वे, हाथ जोड़कर जुलिट से कहते हैं।]
सौभाग मलसा – नर्स बहनजी सा, कृपया आप मेरे आदमियों को माफ़ करावें। बेचारे इस ढाणी में नाटक खेलना चाहते थे, इसलिए इनको चाहिए थी डॉक्टर-कम्पाउंडरों की वर्दियां। ठोकिरे जानते नहीं, सरकारी नियम-क़ायदे। कमबख़्त उज्ज़ड़ ठहरे, इस कारण ज़बरदस्ती उठा लाये आपके कैम्प से..ये वर्दियां।
[अब सौभाग मलसा अपने साथियों को फटकारते हुए, उनसे कहते हैं]
सौभाग मलसा – [फटकारते हुए, कहते हैं] – क्यों रे, हरामखोरों। आप लोगों की नादानी के कारण, बेचारी नर्स बाईसा को तकलीफ़ उठानी पड़ी ? [लपकू से कहते हैं] लपकू, तू तो इनके पांव छूकर माफ़ी मांग। साले गधे, यह सारी ग़लती तेरी है।
[अब इनके हुक्म की तामिल करते, सभी तस्कर साथी जुलिट के पांव छूकर अपनी ग़लती के लिए माफ़ी मांगते हैं।]
लपकू – [पांव छूकर, कहता है] – माफ़ कीजिये, नर्स बहनजी सा। भारी ग़लती हो गयी, हमसे। आप फ़िक्र नहीं करें, मैं ख़ुद ये सारी वर्दियां आपके कैम्प में पहुंचा दूंगा।
जुलिट – हो गया, जो हो गया लपकू। अब तू आगे की सुध ले, फ़िक्र इस बात की है...अगर डॉक्टर साहब कैम्प में आ गए, और मुझे वहां नहीं देखा तो...? [पर्स से लिपस्टिक और छोटा दर्पण बाहर निकालकर, अपना मेक-अप ठीक करती हुई कहती है] मुझे वहां न पाकर, बेचारे डॉक्टर साहब क्या सोचेंगे ?
सौभाग मलसा – [हाथ जोड़कर, कहते हैं] – नर्स बहनजी सा, एक बार आप कह दीजिएगा..के, हम लोगों को आपने माफ़ किया या नहीं ? [कान पकड़कर कहते हैं] हम लोगों से बहुत भारी ग़लती हो गयी, बहनजी सा।
जुलिट – सौभाग मलसा, आप अच्छे समझदार व्यवहार-कुशल आदमी हैं। मुझे कोई रंज नहीं, कृपया आप अपना दिल न दुखाएं। बस आप मुझे हमारी जीप के साथ, शिविर तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दीजिये।
सौभाग मलसा – [ख़ुश होकर लपकू से कहते हैं] – लपकू जा जल्दी, नर्स बहनजी सा को जीप में बैठाकर इनके कैम्प में छोड़ दे। और सुन [पांच सौ रुपये थमाते हुए कहते हैं] ये ले, पांच सौ रुपये। जीप में तेल भरवाकर ही, इस जीप को इन्हें सुपर्द करना। [साथियों से कहते हैं] अब खोलिये, इन वर्दियों को। बहुत हो गया नाटक। [साथियों को आंख का इशारा करते हुए, कहते हैं] रख दो, इन्हें जीप के अन्दर।
[उनके साथी डॉक्टर-कम्पाउण्डरों के कोट खोलकर, जीप में रख देते हैं। अब लपकू, बहुत मान-मनुआर के साथ, जुलिट को जीप में बैठाता है। रवाना होते वक़्त सौभाग मलसा झट ज़ेब से हर्जाने के पांच हज़ार रुपये निकालकर, जुलिट को थामाते हैं। फिर हाथ जोड़कर, जुलिट से कहते हैं]
सौभाग मलसा – [हाथ जोड़कर, कहते हैं] – नर्स बहनजी सा। ये हर्जाने के रुपये तो आपको लेने ही होंगे, क्योंकि ग़लती हम लोगों की है। फिर आप, नुक्सान क्यों भुगतेंगे ? [रूपये थमाते हुए, कहते हैं] यह लीजिये बहनजी सा, पूरे रोकड़े रुपये पांच हज़ार।
जुलिट – इसकी क्या ज़रूरत, सौभाग मलसा..बस आपने ग़लती मान ली, बहुत है।
[रुपये लेकर जुलिट उन्हें अपने पर्स में रख देती है, लपकू गाड़ी स्टार्ट करता है। अब वह गाड़ी हवा से बातें करती हुई, तेज़ रफ़्तार से चलती दिखाई देती है। मंच पर, अंधेरा छा जाता है। थोड़ी देर बाद, मंच पर रौशनी फैलती है। अब सामने मंज़र आता है, महल के खण्डहर का। वहां अब यह प्यारे लाल, सीढ़ी से कुए में उतरता हुआ दिखाई देता है। उसके उतरने के बाद, प्यारे लाल को एक सुरंग दिखाई देती है। अब यह हवलदार, उस सुरंग में गांठ ऊंचाये चलता नज़र आता है। यह सुरंग इतनी चौड़ी है, के इसमें आसानी से घोड़े दौड़ सकते हैं। गौतम मुनि के मंदिर से करीब सौ क़दम दूर एक कुआ है, इसमें यह सुरंग खुलती है। इस कुए के नज़दीक कई झोपड़े है, और कई कच्चे मकान भी हैं। इस बस्ती से कुछ दूर ही, एक हवेली दिखायी देती है। इस हवेली के बाहर खड़ा होकर, वह तीन बार सीटी बजाता है। इसके जवाब में हवेली से, पपीहे की आवाज़ बाहर आती है। फिर क्या ? वह इशारा समझकर, झट हवेली के अन्दर दाख़िल हो जाता है। अन्दर पहुंचने के बाद, यह हवेली छोटी न होकर काफी बड़ी टणकार हवेली नज़र आती है। इस हवेली के अन्दर कई कमरे, गलियारे और होल है। अब यह प्यारे लाल सीधा पहुंच जाता है, होल के अन्दर। इस बड़े होल में, नाच-गाने का पक्का इंतजाम दिखायी दे रहा है। उस होल में बैठने के लिए, कई गद्दे बिछाए गए हैं। एक गद्दे के पास, कई साज़ के सामान रखे हैं। एक गद्दे पर बुढा किन्नर बैठा-बैठा पान की गिलोरी चबाता जा रहा है, उसके पास ही पान की गिलोरियों से भरी चांदी की तश्तरी रखी है। जिसके पास ही, चांदी का हुक्का और पीकदान भी रखा है। गलियारे में कई किन्नर रंग-बिरंगी पौशाक पहने, होल की तरफ़ अपने क़दम बढ़ा रहे हैं। अब होल में यह बुढा किन्नर पान की पीक, चांदी के पीकदान थूकता नज़र आ रहा है। फिर पास रखे, हुक्के की नली उठाता है। और, हुक्का गुड़गुड़ाता जाता है। अब एक-एक करके सारे किन्नर, होल में दाख़िल होकर गद्दों पर बैठ गए हैं। कई किन्नर साज़ के सामान उठाकर, बजाने लगे हैं। और अब साज़ के सुर से ताल-मेल बैठाता हुआ, सब्बू नाम का किन्नर नाचता जा रहा है। अब चम्पाकली भी, उसका साथ देने के लिए उठता है। फिर दोनों हाथ पकड़े, घुमर लेकर नाचना शुरू करते हैं। नाचते हुए दोनों किन्नर, कुशल नर्तकी के समान नज़र आ रहे हैं। कुछ देर बाद इस बूढ़े किन्नर को, सामने से प्यारे लाल आता दिखाई देता है। उसको देखकर बुढा किन्नर, ताली बजाकर नाच-गाना रुकवा देता है। अब प्यारे लाल, होल में दाख़िल होता है। वह गांठ को नीचे रखकर, हाथ ऊपर करके अंगड़ाई लेता है। तभी गुलाबा होल में दाखिल होता है, और आते ही..वह उसे अपने बाहुपोश में, झकड़ लेता है। फिर वह, उससे कहता है।]
गुलाबा – [बाहुपोश में झकड़कर, कहता है] – प्यारे मेरे दुलारे। मुझे लगता है, तू अपना काम पूरा करके आ गया है ? अब यार, तू फ़टाफ़ट ये मोहनजी के कपड़े उतारकर मुझे दे दे।
प्यारे लाल – [शर्माता हुआ कहता है] – अरे गुलाबो बी, क्या आप मुझे नंगा करेगी क्या ?
गुलाबा – [हंसता हुआ कहता है] – तूझे नंगा नहीं करूंगी, तो मैं काम कैसे करूंगी ?
[इतना कहकर, गुलाबा ज़ोर-ज़ोर से हंसता है। मगर बूढ़े किन्नर को, इन दोनों की हरक़ते अच्छी नहीं लगती। वह झट तकिये के नीचे रखी लुंगी निकालकर, उसे प्यारे लाल की तरफ़ फेंककर कहता है]
बुढा किन्नर – यह ले रे, लुंगी। लुंगी पहन ले, फिर जल्दी कपड़े बदल दे। इन मोहनजी के कपड़ो को संभला दे, गुलाबा बी को। [गुलाबा से कहता है] सुन ए, गुलाबा। फटा-फट, कपड़ो की तलाशी ले ले। अब आगे से ध्यान रख, अब ऐसी ओछी हरक़ते करना मत..मुझे तेरी छोरछिंदी हरक़तें पसंद नहीं। बस, तू अपने काम से मतलब रखा कर।
[गांठ खोलकर प्यारे लाल अपने जनाने वस्त्र निकालता है, फिर इन जनाने वस्त्रों को पहनकर वह वापस प्यारी बन जाता है। उधर गुलाबा मोहनजी की कमीज़ और पतलून की जेबें टटोलता है, उधर वह बुढा किन्नर प्यारी को अपने पहलू में बैठाता है। फिर उसके काम पर ख़ुश होकर, उसके ज़ब्हा पर बोसा लेता है। फिर उससे मज़ाक करता हुआ, कहता है।]
बुढा किन्नर – प्यारी, तू आज़ बहुत ख़ूबसूरत दिखायी देने लगी है। यह मोहन लाल तुझको कैसा लगा ? वाह प्यारी, तू तो इस मोहन लाल के दिल की रानी बन गयी। अब तेरा, क्या कहना ?
[तलाशी लेने पर, मोहनजी की कमीज़ और पतलून की ज़ेब से कई काम की चीजें मिलती है। जिसमें डायरी और ऐसे कई काग़ज़ात है, जो सौभाग मलसा और फ़क़ीर बाबा के धंधे से गहरे ताल्लुकात रखते हैं। इतनी सारी काम की चीजें एक साथ देखकर, गुलाबा ख़ुश होता है। फिर क्या ? वह डग-डग हंसता जाता है। उसको खिल-खिल हंसते देख, वह प्यारी नाराज़ हो जाती है। फिर वह गुस्से में कह देती है]
प्यारी – [गुस्से में कह देती है] – क्यों छक्के की तरह हंसती जा रही हैं, आप ?
गुलाबा – [हंसता हुआ जवाब देता है] – अरे गेलसफ़ी, अभी इस वक़्त अपुन सब हिज़ड़े ही हैं, यानि छक्के। फिर अपुन छक्के की तरह, क्यों नहीं हंसेगे ? अब, हंसना क्या ? तालियां भी पीटेंगे, जब तक सौभाग मल और फ़क़ीर बाबा का प्रकरण निपट नहीं जाए ?
[इतना कहकर, वह पांच बार तालियां बजाता है। तालियों की आवाज़ सुनकर, ५-६ किन्नर होल में दाख़िल होते हैं। अब वह गुलाबा सभी किन्नरों से कहता है]
गुलाबा – देखिये, आज़ का दिन बहुत महत्त्व पूर्ण है। अब आपको यह जानकर ख़ुशी होगी, के ‘आज़ इस मोहन लाल के कपड़ो की तलाशी लेने पर, सौभाग मल और फ़क़ीर बाबा से मिलने वाले सारे वांछित दस्तावेज़ अपुन को मिल गए हैं।’ अब आप सभी को, इसके सन्दर्भ में और क्या कहूं ?
प्यारी – कह दीजिये, मेरे जीजाजी के खिलाफ़ जो ज़हर उगलना है..उगल दीजिये, गुलाबो बी। आपको, क्या फ़र्क पड़ता है ? आपको मज़ा आता है, किसी इज्ज़तदार आदमी का पानी उतार लेने में ?
गुलाबा – पहले मेरी बात सुन, फिर बाद में तू बोलती रहना। यह गधा ऊपर से दिख़ता है, सीधा-सादा..जैसे यह हो, अल्लाह मियाँ की गाय ? यह जितना दिख़ता है ऊपर, उससे ज़्यादा तो यह ज़मीन के नीचे गड़ा हुआ है। साला मोहन लाल है, पूरा गज़ब का गोला।
प्यारी – गज़ब का गोला मत कहिये, आप।
गुलाबा – [होंठों पर मुस्कान बिखेरता हुआ, कहता है] – बीच में मत बोला कर, मेरी प्यारी जान। तू नहीं जानती, इसकी नीयत कैसी है ? यह कमबख़्त इतना होशियार है, प्यारी..के ‘इसने चुप-चाप बैग से, डायरी और ज़रूरी काग़ज़ात निकालकर अपने कब्ज़े में ले लिए..! और उस बेचारी जुलिट को, वहम होने नहीं दिया..के, सीक्रेट क्या है ?’ और अब...
बुढा किन्नर – [बीच में बोलता हुआ, कहता है] - अब तू पाबूजी की पुड़ की तरह रोंगत मत बांच, थोड़े में समझा दे इन सबको।
गुलाबा – मैं थोड़े में ही समझा रही हूं, बड़ी बी। आप फ़िक्र न करें। मैं कह रही थी, सौभाग मल के पास यह मोहन लाल..किस तरह, गेलसफे इन्सान की तरह घुमता रहा ? उसको पता नहीं, के ‘यह गधा उसके काले कारनामों से, वाफ़िक हो चुका है।’ मगर, सौभाग मल रहा भोला। इस गधे को मौज-मस्ती के लिए, छ: हज़ार रुपये दे डाले।
चम्पाकली – [रोनी सूरत बनाकर, थूक से बने बनावटी आंसू निकालकर कहता है] – हायSS, मोहन लाल सेठ। आप बड़े होशियार निकले, पहले मुझे ध्यान होता तो मैं चली आती प्यारी की जगह। और छीन लेती आपसे, पूरे छ: हज़ार रुपये।
गुलाबो – [आंखें मटकाता हुआ, कहता है] – ए छमक छल्लो। बयान तो करने दे, ना ? अगर मैं तूझे, इस मोहन लाल के पास भेज देती..तो गेलसफ़ी, तुझको मसल डालता..फिर, तू रोती-रोती आती मेरे पास।
चम्पाकली – गुलाबो बी, मैं क्यों रोती..? मैं तो..
गुलाबा – [उसकी बात काटता हुआ कहता है] – अब तू चुप-चाप बैठ जा। ले अब मुझे बताने दे इनको, पूरी बात..[किन्नरों से कहता हुआ] सुनो, जब सौभाग मल को मालुम हुआ, के ‘इस मोहनजी के पास कमलकी सांसण के मोबाइल नंबर आ गए हैं, और यह बेवकूफ उससे मिलना चाहता है।’ बस, फिर क्या ?
चम्पाकली – आगे कहिये, गुलाबो बी।
गुलाबो – उसने बना डाला, तगड़ा प्लान..के, ‘भूतिया नाडी पर, इस मोहन लाल को बुलाना है। फिर किस तरह इस कमलकी और मोहन लाल का, आपस में रोमांस करवाना है। इस तरह यह कमलकी इसको, अपने मोह-ज़ाल में फंसा देगी। रोमांस करते वक़्त यह कमलकी, मोहन लाल की जेबों से डायरी और धंधे से सम्बंधित काग़ज़ात निकाल लेगी।’
चम्पाकली – डायरी नहीं मिली, तो ?
गुलाबा - फिर मोह-ज़ाल में फंसे मोहन लाल से वह, पूरी जानकारी ले लेगी के ‘उसने डायरी और सम्बंधित काग़ज़ात कहां रखे हैं ? या, उसने किसको को दे रखे हैं ? मगर बात हुई, कोई दूसरी। मुझे जैसे ही इसके प्लान के बारे में मालुम हुआ, और मैने ...
प्यारी – [बीच में बोलती है] – कह दीजिये, कैसे आपने मेरे भोले जीजाजी को अपने ज़ाल में फंसाने का प्लान..आख़िर, बना ही डाला।
गुलाबा – बीच में बोलकर, मेरी लय को तोड़ मत। [दूसरे किन्नरों से कहता हुआ] लीजिये सुनिए, जैसे ही मैने इस मोहन लाल को आस करणजी का मोबाइल मचकाते देखा..उसी वक़्त मैने प्यारी को फ़ोन लगाकर समझा दिया, अपना अगला प्लान।
सब्बू किन्नर – क्या प्लान था, आपका ?
गुलाबा – फिर यह हुआ, आस करणजी के मोबाइल पर इस प्यारी ने मोहन लाल से मीठी-मीठी बातें करनी शुरू की। और साथ में उसे भूतिया नाडी आने के लिए, तैयार कर डाला। आगे, अब क्या हुआ ? अगला हाल अब आप, प्यारी से सुनिए। प्यारी ख़ुद बतायेगी, अपने रोमांस के बारे में।
[प्यारी झट अपने सर को रिदके से ढकती है, फिर अपने पर्स से लिपस्टिक और कांच निकालकर चेहरे का मेक-अप सही करने लगती है। इसके ये हाल देखकर, बूढा किन्नर खीजकर कहता है]
बुढा किन्नर – [खीज़ता हुआ कहता है] – ये तेरे बनाव-श्रंगार बाद में करती रहना, यहां नहीं है तेरा आशिक मोहन लाल। जो तू, नखरे करती जा रही है ? अब बता, आगे क्या हुआ ?
प्यारी – [शर्माती हुई, कहती है] – वह लम्हा कितना हसीं था, मगर फ़िज़ूल गया...! मुझे शर्म आती है, बड़ी बी। यों कैसे, मैं अपनी प्रेम-गाथा सुना दूं ? [बूढ़े किन्नर के अलफ़ाज़ काम में लेती हुई कहती है] मुझे छोर-छिंदी बाते करनी, अच्छी नहीं लगती।
[कहते-कहते प्यारी के गाल, शर्म के मारे लाल-सुर्ख हो जाते हैं। पास खड़ा गुलाबा उसके लाल-सुर्ख गालों को चूम लेता है। फिर उसे पुचकारता हुआ, उसे कहता है]
गुलाबा – कह दे, मेरी जान। क्यों छुपा रही है, अपने दिल में ?
प्यारी – [शर्माती हुई, कहती है] – मेरी पतली कमर पर हाथ रखकर, मोहन लाल सेठ मेरे इन रसीले होंठों को चूमने के लिए अपने होठ नज़दीक लाये..और..[होंठ नज़दीक आने का अहसास करती हुई, आगे कहती है] आहाss...मैं तो अब आगे कुछ नहीं कह सकती, मुझे आ रही है शर्म।
चम्पाकली – [गुस्सा दिखाता हुआ, कटु शब्द सुना बैठता है] – अरे ए करमज़ली, यह क्या कर डाला तूने ? यह सेठ मोहन लाल मेरा है, तू दाग लगाकर कैसे आ गयी ?
प्यारी – [ज़ोर से हंसी का ठहाका लगाती हुई, कहती है] – दाssग ? क्या..? क्या कहा, दाग लगाया ? अरी चम्पाकली, मैं चम्पाकली नहीं हूं..जो दाग लगाती रहूं, फिर गली-गली में यह गीत गाती चलूं के “लागा चुनरी में दाग, छुपाssऊं कैसेss।” मगर, मैं हूं..
चम्पाकली – फिर, बोल दे। आख़िर, तू है क्या ?
प्यारी – मैं हूं प्यारी, चम्पाकली से सौ गुना ज़्यादा होशियार। उनके होंठ नज़दीक आते ही, मैने उनके गाल पर यों [नक़ल करती-करती, पास खड़े चम्पाकली के गाल पर, धब्बीड़ करता थप्पड़ रसीद कर देता है] मारा मैने धब्बीड़ करता झापड़। फिर कहा, ज़ोर से “आपके मुंह से, बदबू आ रही है।”
चम्पाकली – [अपना गाल सहलाता हुआ, कहता है] – इसके बाद क्या हुआ, प्यारी ?
प्यारी – बेचारे सेठ मोहन लाल, डर के मारे, धूजने लगे। और मुझसे कहने लगे “हुक्म दीजिये, मेहरारू। मैं आपकी, क्या ख़िदमत कर सकता हूं ?” तब मैंने कहा “खोलो अपने, तमाम कपड़े और कूद पड़ो नाडी में..नहाने के लिए।” स्नान कर लोगे, तब मैं आपसे बोलूंगी।
चम्पाकली – वाहss ए, प्यारी। तूझमें मर्द को शीशी में उतारने की, औरतों की सारी कलाएं आ गयी ? अरे तूने तो, उसके तमाम कपड़े खुलवा डाले ? अब इसके बाद, तूने क्या किया ?
प्यारी – फिर क्या ? सेठ मोहन लाल नाडी में कूदकर, बिना कपड़े पहने मछली की तरह तैरने लगे। फिर क्या ? मैं इसी मौक़े की तलाश में थी, चुप-चाप दबे पांव चलती हुई जा पहुंची वृक्ष तले..जहां सेठ मोहन लाल ने, अपने सारे कपड़े खोल रखे थे। बस मैने अपने ओढ़ने की गठरी बनाकर उसमें अपने जनाने वस्त्र और साबुन आदि लेकर..
चम्पाकली – [चकित होकर, कहता है] – यह कर डाला, तूने ? गेलसफ़ी, ट्वाल तो छोड़ आती ? है राम, तब बेचारे सेठ मोहन लाल की, क्या गत बनी होगी ?
प्यारी – अरे मैं चम्पाकली नहीं हूं, जो उनके लिए साबुन की टिकिया या ट्वाल छोड़कर चली आती ? पहने हुए जनाने वस्त्र खोलकर, ओढ़ने की गांठ में डाल दिए। फिर, सेठ मोहन लाल के मर्दाना कपड़े मैं ख़ुद पहनकर आ गयी यहां। अब आगे, क्या करना है ? अब यह बात, सविस्तार गुलाबो बी कहेगी।
गुलाबा – सुनिए, अब चम्पाकली के साथ, पूरी टीम जायेगी भूतिया नाडी। अब इस बार, हमें पूरी तैयारी करके चलना है। क्या कहूं, आपको ? ग्रेनेड, पिस्तोलें आदि, सब साथ लेकर चलना है।
चम्पाकली – [हंसता हुआ कहता है] – अब यह क्या, रासो ? तालियां पीटते-पीटते, अब गोली मारेंगे क्या ? [गीत गाती है] “अंखियों से गोली मारे..” अरे गुलाबो बी, अब हम, अपनी इन कजरारी आंखों से आसानी से गोली मार सकती हैं..और बेचारा आदमी, घायल हो जाता है। फिर, इन विस्फोटक चीज़ों की कहां ज़रूरत ?
गुलाबा – अब मज़ाक का वक़्त नहीं है, चम्पाकली। अब वक़्त ही ऐसा आ गया है, तू जानती नहीं ? भूतिया नाडी से करीब डेड फलांग आगे, सौभाग मल का अड्डा है..बाबजी का झूपा। वहां इन तस्करों की बैठक चल रही है। इस ढाणी में जब कभी इन तस्करों की बैठक होती है..तब गाने-बजाने का प्रोग्राम अवश्य होता है।
चम्पाकली – अब आप, आगे कहिये।
गुलाबा – आज़ ये इकट्ठे हुए सारे तस्कर, पकड़े जाने चाहिए। अब आप सभी प्लान के मुताबिक़, आगे जाओ। और मैं पीछे से, वहीँ आ रही हूं। मगर याद रखना, आप सभी बहनों को अपने मोबाइल ओन रखने है।
मंच के ऊपर अंधेरा छा जाता है, थोड़ी देर बाद, मंच पर वापस रौशनी फ़ैल जाती है। वस्त्रहीन मोहनजी, बरगद की जटा थामे खड़े हैं। इधर लकड़बग्गे के चलने की आवाज़ सुनायी देती है, इस सन्नाटे में यह कड़क-कड़क हड्डियां चरमराने जैसी आवाज़ बहुत डरावनी लग रही है। इस आवाज़ को सुनकर, मोहनजी भयभीत हो जाते हैं। अब बचने के लिए, वे बड़े पत्थर के पीछे छुप जाते हैं। थोड़ी देर बाद, जंगली जानवरों की आवाज़ें सुनायी देनी बंद हो जाती है। अब मोहनजी पत्थर के पीछे से निकलते हैं, अब उनकी ऊंची चढ़ी हुई सांस सामान्य हो जाती है। वे होंठों में ही, बड़बड़ाते नज़र आते हैं।]
मोहनजी – [होंठों में ही, बड़बड़ाते हुए कहते हैं] – कैसी कोजी हुई रे, रामापीर ? अब अपुन नंग-धड़ंग घुमते भद्दे लग रहे हैं, मेरे बाप ? अरे रेss रेss दिल के अन्दर पाप समाया, राम राम रामा पीर आपने कठोर सज़ा दे डाली मुझे। अब माफ़ कीजिये, मेरे रामा पीर..ओ अजमालजी के कुंवर, रुणेचा के धणी। मेरी ग़लती माफ़ कीजिये, मेरे बाबजी..आपको, घणी घणी खम्मा।
[नाडी की पाळ पर चलते मोहनजी को दिखाई दे जाती है, काली गीली मिट्टी। वह भी भले, काली कीट मिट्टी। फिर क्या ? वे झट उस मिट्टी को अपने पूरे बदन पर मलते हैं, मलते-मलते वे अपने दिल में सोचते जा रहे हैं..]
मोहनजी – [दिल के अन्दर, सोचते जा रहे हैं] – ये दिगम्बरिये, फिर करते क्या हैं ? इसी काली मिट्टी को भबूत की तरह, अपने पूरे बदन पर मलकर कर लेते हैं सर्दी और मच्छरों से बचाव। फिर मैं कढ़ी खायोड़ा, क्यों पीछे रहूं मिट्टी मलने में ? मैं तो बन जाऊंगा दो मिनट में, ‘मसाणिया बाबा कढ़ी खायोड़ा’।’
[अगले पल, क्या देखते हैं ? दिल में ऐसे विचार लाते हुए मोहनजी, पूरे बदन पर काली गीली मिट्टी मलते जा रहे हैं। मलने के बाद, वे खड़े होकर आभा को देखते हैं। अब बादल हट जाने से, मोहनजी को पूर्णमासी के चन्द्रमा के दर्शन होते हैं। इस चन्द्रमा की रौशनी में उनकी निग़ाह, उनके काले नग्न बदन पर निग़ाह गिरती है। चांदनी रात में उनका यह नंगा बदन..? ऐसा स्यामल सा दिखाई देने लगता है, के ‘उनको अब यह चन्द्रमा की चांदनी, खलने लगती है।’ उन्हें तो यह अंधेरा, चांदनी से अच्छा लगने लगा। अब वे अपने काले बदन को देखते-देखते विचारमग्न हो जाते हैं, के “वे कितने बदसूरत है, उनके सामने उनकी पत्नी लाडी बाई ऐसी लगती है..मानो वह कोई हूर की परी हो, और वे ख़ुद है सांवले यम-दूत सरीखे ? इस करण अब उनको इस चांदनी रात से तो, काली अमावस की रात ही अच्छी लगने लगी है।” इस चांदनी रात में डालियों पर बैठे उल्लूओं की कुहुक-कुहुक आवाज़, अब उन्हें ज़हर के माफ़िक लगती है। उनको तो ऐसा लग रहा है, मानो ये परिंदे उनकी हंसी उड़ा रहे हैं। यह विचार दिल में आते ही, झट शर्म के मारे अपनी राने हथेलियों से ढक देते हैं। अपनी राने ढाम्पते हुए, वे उन उल्लूओं को देखते हुए कहते हैं]
मोहनजी – मुझे क्या देखते हो, कढ़ी खायोड़ो ? आप और हम एक से हैं, फिर आप ठिठोली क्यों करते हो मेरे बाप ?
[इतना कहकर, शर्म के मारे मोहनजी वापस बरगद तले उसकी जटा पकड़कर खड़े हो जाते हैं..ताकि, वहां छाये अंधेरे में किसी को दिखाई न दे ? मगर कुछ ही मिनट बीते होंगे, तेज़ हवा का झोंका आता है और बरगद की डालियां ज़ोर से हिलती है। डालियों के हिलने से, चन्द्रमा की चांदनी बरगद के चबूतरे पर गिरती है, वहां उन्हें प्यारी के हाथ का रखा हुआ पान का बीड़ा दिखाई देता है। इस ख़िलक़त में नशा करने वालों की ऐसी दशा होती है, जब नशे की चीज़ उनके पास नहीं होती..तब उन्हें नशे की तलब, अवश्य परेशान कर डालती है। यही दशा जनाबे आली मोहनजी की है, प्यारी द्वारा उनके कपड़े ले जाने से ज़र्दे की कोथली उनकी पतलून की ज़ेब में रह जाती है। अब नशे की चीज़ न होने से बेचारे मोहनजी, तलब के मारे परेशान हो जाते हैं। इस स्थिति में, उन्हें यह पान का बीड़ा क्या दिखायी दे गया ? बस, उन्हें ऐसा लगता है ‘मानो, उन्हें जन्नत मिल गया है..!’ बस, फिर क्या ? झट लपककर उसे उठा लाते हैं, और झट उसे अपने मुंह में ठूंस देते हैं। अब उनको, किस्मत पर भरोसा हो जाता है। वे अपने दिल में बाबा रामसा पीर को दंडोत करते हैं, और होंठो में ही कहते हैं “रामा पीर ने उनकी इस दुर्दशा में भी, पान का बीड़ा भेजकर इनका ख़्याल रखा है।” अब पान ठूंसते ही, उनका दिमाग़ काम करने लगता है। अब उनको याद आता है, प्यारी के होंठ लाल-सुर्ख थे..हो सकता है, वह पान का नशा करती हो ? और ग़लती से वह एक पान का बीड़ा, यहां रखकर भूल गयी हो ? कुछ नहीं, बाबा भली करेगा। अच्छा हुआ, बाबा रामसा पीर के मेहर से यह पान का बीड़ा मुझे मिला। यह सोचकर, वे इस संकट की वेला में भी मुस्कराते हैं। अब वे सोचते जा रहे हैं, के...]
मोहनजी – [होंठों में ही कहते हैं] – भला किया, रामा पीर ने। अब आराम से, वक़्त कट जाएगा। अरे रामा पीर, कहीं जंगली जानवर टहलते हुए इधर आ गए तो..? और कोई मुझे मारकर खा गया तो, मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा मेरे रामा पीर ? कुछ नहीं, बाबा रामसा पीर की जय हो। अब बरगद के पेड़ के ऊपर चढ़कर कर लेते हैं, अपना बचाव। अब यह विचार दिमाग़ में आते ही, वे झट जटाएं पकड़कर चढ़ जाते हैं बरगद के ऊपर। उनके चढ़ते ही, नीड़ में बैठी चिड़ियों की नींद खुल जाती है। और तब वे सब पंखों से फुर्रर रर की आवाज़ निकालती हुई, एक साथ आभा में उड़ जाती है। इनके उड़ने से दूसरे पक्षी भी अपना बसेरा छोड़कर, फरणाटे की आवाज़ निकालते हुए एक साथ उड़ना शुरू करते हैं। सामने से आ रहे सौभाग मलसा के साथी, बेचारे डर जाते हैं इस फरणाटे की आवाज़ से। और दूसरी बात यह है, के इन लोगों के सर से अड़कर ये पक्षी गुज़रे हैं। बेचारे इन साथियों का दिल, डर के बारे मारे ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है। एक तो यह सूनी रात, दूसरा यह स्थान ठहरा कालिए भूत का ? बस वे कालिए भूत की संभावना से ही भयभीत हो जाते हैं, और उनका बदन कांपने लगता है। उस वक़्त उनके दिमाग़ में, भूतिया नाडी का कालिया भूत ऐसा छा जाता है, के ‘वे हर छोटी से छोटी आहट को, कालिए भूत के आगमन की सूचना समझ बैठें हैं।’ फिर तो जनाब, मज़बूत दिल रखने वालों का भी कलेज़ा कांप जाता है। इन लोगों में लम्बी-लम्बी डींग हांकने वाले, झमकू के काकाजी “कानजी बा” का बदन तो पीपली के पान की तरह कांपता जा रहा है। उनका एक तरह से डरना भी वाज़िब है, क्योंकि बरगद से उड़ा एक चमगादड़ उनकी कमीज़ के ऊपर जो चिपक गया है। इस कारण वे डरकर, ज़ोर से चिल्लाते हैं, और बेचारे दौड़ लगा देते हैं बरगद की तरफ़। मगर, झमकू रख़ता है, मज़बूत दिल। यों तो वह, काकाजी को कैसे डरकर भागने देता ? वह झट दौड़कर, कानजी बा को पकड़ता है। इधर कानजी बा पहले से डर रहे हैं, उस कालिये भूत से। वे बेचारे सोच रहे हैं “कहां आ गए, जीवड़ा ? यहां इस भूतिया नाडी में रहता है, महा राक्षस कालिया भूत।” अब जैसे ही झमकू कानजी बा को पकड़ता है, और उन्हें लगता है के ‘कालिया भूत, उनके पीछे लग गया है।’ फिर क्या ? झट झमकू को धक्का देकर, वे अपने-आप को छुड़ा लेते हैं। फिर दौड़कर जा पहुंचते हैं, बरगद के तले। मगर यहां तो जनाब अलग से पैदा हो जाता है, नया खिलका। वह चमगादड़ कानजी बा को छोड़कर, चिपक जाता है झमकू की पिछली दुकान पर। फिर क्या ? अचानक आयी आफ़त से अनजान यह बेचारा झमकू डरकर ज़ोर से चिल्लाता है, अब उसे पूरा वसूक हो जाता है..के, ‘इस नाडी में, कालिया भूत का वासा ज़रूर है।’ जो चमगादड़ बनकर, हम सबको डराता जा रहा है। और, फिर क्या ? वह डरकर, ज़ोर से बोलता है “कालियो भूत।” उसकी ऐसी हालत देखकर, उसके शेष साथी डरकर लाठियां वहीँ फेंक देते हैं। और बरगद के पेड़ की तरफ़ भागकर, अपनी जान की हिफ़ाज़त करते हैं। इस तरह सभी आदमी, बरगद तले पहुंचकर आराम की सांस लेते हैं। थोड़ी देर बाद, हलक में आया हुआ कलेज़ा..आता है, ठिकाने। फिर क्या ? वे सभी एक-दूसरे की, खैरियत पूछने लग जाते हैं। अब बरगद के पास आने पर, वह चमागादड़ उड़कर बरगद की डाली पर जाकर बैठ जाता है। फिर रामा पीर जाने, क्यों अभी-तक कानजी बा हाम्फते-हाम्फते इस खोजबलिया सौभाग मलसा को भद्दी-भद्दी गालियां देते जा रहे हैं ?]
कानजी बा – [हाम्फते-हाम्फते बोलते हैं] – भूतिया नाडी भेजने वाले सौभाग्या..ss भंडलाग्या, तूने तो मेरी एक तरह से जान ही निकाल दी। गधा तू यह कहकर ख़ुश हुआ, के लेकर आओ मोहनजी को यहां। [ज़ोर से कहते हैं] अब यहां, कहां बैठे हैं मोहनजी ?
[बरगद की डाल पर बिराजे मोहनजी, के कानों में कानजी के शब्द सुनायी देते हैं। और सुनते ही, वे बहुत ख़ुश हो जाते हैं। रामसा पीर को दिल से दंडोत करते, उनको देते हैं धन्यवाद। के, ‘रामसा पीर कोई तो ऐसा है कढ़ी खायोड़ा इस ख़िलक़त में, जो इस विपत्ति के वक़्त मुझे याद कर रहा है। ऐसा भला आदमी आख़िर है, कौन ?’ इतना सोचकर, वे ज़ोर से गरज़ना करते हुए बोलते हैं।]
मोहनजी – [ज़ोर से गरज़ना करते हुए, वे कहते हैं] – लोss, मैं यह आयाss।
[और कूद पड़ते हैं, सौभाग मलसा के साथियों के ऊपर..जो बरगद तले खड़े हैं। एक तो मोहनजी ख़ुद सांवले वर्ण के, मानो किसी कोयले की खान के कोयले हो ? उनका पूरा बदन काला, ऊपर से उनके बदन पर मली हुई काली मिट्टी अलग। फिर इनके मुंह में ठूंसा हुआ पान का बीड़ा..जिससे हो जाते हैं, उनके होंठ पूरे लाल-सुर्ख। ऐसा लगता है, यह राक्षस किसी जिंदे आदमी को खाकर आया है। उस आदमी के ताज़े खून से, इस राक्षस के होंठ हो गए हैं लाल-सुर्ख। और इन होंठों से टपकती जा रही है लाल पीक, जो ताज़े खून की बूंदो की तरह दिखाई दे रही है। अब ऐसे बदन के ऊपर, चन्द्रमा की किरणें गिरती है..फिर, क्या कहना ? अब तो ये जनाबे आली मोहनजी, वास्तव में साक्षात यम राज़ ही लगते हैं। फिर होना, क्या ? बेचारे सभी उनसे डरकर भागते हैं, भागते-भागते वे किलियाते हुए कहते जा रहे हैं “मर गए, मेरी जामण। कालिया भूत आ गया।” बात सत्य है, कोई अपने सामने जिंदे जिन्न या ख़बीस को अक्समात अपने ऊपर कूदता देख ले, तो मज़बूत से मज़बूत कलेज़ा रखने वाले लोगों के हौसले पस्त हो जाया करते हैं। अब सामने जो मंज़र आ रहा है, उसकी कल्पना करना आसान नहीं है। आगे-आगे सौभाग मलसा के साथी, और उनके पीछे काले रंग के नंग-धड़ंग कालिया भूत बने मोहनजी..दौड़ते ही जा रहे हैं। ऊपर से, वे इनका पीछा करते हुए कहते जा रहे हैं]
मोहनजी – [पीछा करते हुए, ज़ोर से कहते जा रहे हैं] – रुको रेss रुको रेss। मैं भूखा हूं, रात से कुछ नहीं खाया है। मैं भूखा हूं..
कानजी बा – [दौड़ने की रफ़्तार बढ़ाते-बढ़ाते, कहते जाते हैं] – दौड़ो रे दौड़ो। कोई रुकेगा नहीं, पीछे आ रहा है..कालिया भूत। पूरा ही निगल जाएगा, दौड़ो रे दौड़ो।
[सौभाग मलसा को गालियां बकते, उनके साथी जान बचाकर दौड़ते जा रहे हैं। अचानक तालियां पीटते हिज़ड़े नज़दीक आते दिखाई देते हैं। रामसा पीर ने कैसी कोज़ी की, आगे हिज़ड़े और पीछे कालिया भूत। इधर हिज़ड़ों के पास जाए तो वे कमबख़्त, इन सबका चीर-हरण करके इनको नंगा कर दे ? और पीछे जाए तो यह कालिया भूत, उन लोगों को पूरा ही निगल जाए..इधर कुआ, उधर खाई ? सारे साथी रामसा पीर का ध्यान लगाते हुए, उन्होंने अपने हाथ ऊंचे कर डाले। और साथ-साथ वे डर के मारे, किलियाते जा रहे हैं ? रामसा पीर जाने, अचानक गुलाबा को न मालुम क्यों चढ़ जाता है जोश ? वह उछलता है, और हवा में उसका घाघरा छाते की तरह लहराता है..और वह सीधा आकर, कानजी बा के ऊपर कूद पड़ता है। उसके नीचे आते वक़्त, बेचारे कानजी बा घाघरे के नीचे दब जाते हैं। इस तरह उनका किलियाना, स्वत: बंद हो जाता है। अब उधर, इस चम्पाकली का क्या कहना ? वह भी जोश में आ जाता है, वह आकर झमकू की लचकती कमर को इस तरह पकड़ता है..के, ‘उसका डर के मारे नाचना-कूदना, अपने-आप बंद हो जाता है।’ फिर क्या ? वह दोनों हाथों से उसके पायजामें को पकड़कर, उसका तीज़ारबंद [नाड़ा] खोल देता है..फिर उस तीजारबंद को हाथ में लेकर, उसे हंटर की तरह लहराता हुआ तांडव डांस कर बैठता है। डांस करता हुआ वह चम्पाकली, उस झमकू को डराता जा रहा है। अब बेचारा झमकू झमक-झमक करता हुआ, पायजामा थामे फुदकता जा रहा है। अक्समात काले भैरव समान मोहनजी को जोश आ जाता है, ऐसा लगता है उनके पिंड में भैरव देव ने प्रवेश कर लिया है। वे छलांग लगा देते हैं, झमकू के ऊपर। कूदते वक़्त, उनके मुख से रक्त समान पीक निकल जाती है। इस तरह सौभाग मलसा के साथियों को लगता है, के ‘कालिया भूत बने मोहनजी के मुख से, किसी भक्षण किये गए इंसान का रक्त बहता जा रहा हैं ?’ उनका यह भयानक रूप देखकर, झमकू का पूरा बदन कांप जाता है। और वह चिल्लाता है, ज़ोर से “मर गया, मेरी जामण। कालिया भूत खावे रेss।” अब तो इस झमकू को बचानी है, अपनी जान। किसी तरह से मोहनजी के चंगुल से बच जाता है, मगर कहां बीच में आ गया...यह बिना नाड़े का, पायजामा ? उस पायजामे को पकड़कर, उसका भागना भी हो गया है..मुश्किल ? बेचारा झमकू, भागता भी कैसे ? बस, फिर क्या ? झट पायजामे को फेंककर वह इस तरह भागता है, जैसे किसी बिल्ली को देख चूहा दौड़ जाता है ? मगर भागकर, वह जाए भी कहां ? गुलाबा उसका रास्ता रोककर, एक लात मारता है उसकी रानो पर...और उसके गिर जाने पर, दूसरी लात जमा देता है उसकी पिछली दुकान पर। लात खाते ही, झमकू हो जाता है चारों खाना चित्त। फिर मोहनजी चेत जाते हैं, झट ज़मीन पर पड़े झमकू का पायजामा उठा लेते हैं। मगर, उसका तीज़ारबंद नदारद ? तब वे तांडव डांस कर रहे चम्पाकली के हाथ से, नाड़ा छीन लेते हैं। नीम के डांखले से नाड़ा पिरोकर, पायजामा में डाल देते हैं। नाड़ा डालकर, वे झट पायजामा पहन लेते हैं। इधर इस खींच-तान में गुलाबा के हाथ में आ जाता है, झमकू का कमीज़। गुलाबा उस कमीज़ को मोहनजी के ऊपर फेंकता है, वे बेचारे आशामुखी की तरह इंतज़ार कर ही रहे थे..के कोई भला आदमी उन्हें कमीज़ लाकर दे दे तो, बाबा रामापीर उसका भला करे। फिर, क्या ? वे झट कमीज़ पहनकर, हो जाते हैं अड़ीजंट तैयार। अब ये आशामुखी बने मोहनजी, गुलाबा को ढेरों दुआएं देते हैं।]
मोहनजी – गुलाबा, तू जीता रह। कढ़ी खायोड़ा, रामा पीर तेरी लम्बी उम्र करे। तूने पायजामा लाकर मुझे दिया, रामा पीर करे तू लोगों का पतलून-पायजामा उतारता रह और मेरे जैसे नंग-धडंग लोगों को पहनाता रह..मेरे बाप।
[उधर दूसरे हिंजड़े, कहां ख़ाली बैठने वाले ? वे सभी हिंजड़े तो असल में जंग-ए-मैदान के जंगजू लगने लगे ? सौभाग मलसा के एक-एक साथी को पकड़कर, वे उन लोगों को छठी का दूध पिलाते जा रहे हैं। अब तो मोहनजी अगली लड़ाई के लिए, हो गए हैं तैयार। उधर कानजी बा की सांसें धौकनी की तरह चल रही है, वे ज़ेब से निकालते हैं, दारु की बोतल। फिर वे दो घूंट ही पीते हैं, तभी अगला हमला करने के लिए..यह चम्पाकली आ जाता है उनके नज़दीक। फिर क्या ? बेचारे कानजी बा उसी बोतल को फेंक देते हैं चम्पाकली के ऊपर, और इस तरह वे अपना बचाव कर लेते हैं। मगर चम्पाकली ठहरा, अलामों का चाचा। वह झट नीचे झुककर, अपना कर लेता है बचाव। तब कानजी बा की फेंकी गयी बोतल, उसके पास खड़े अमरिये के ऊपर गिरती है। यहां तो बोतल का ढक्कन अच्छी तरह से कसा नहीं गया है, इस कारण इस बोतल की थोड़ी दारु उस अमरिये के वस्त्रों पर गिर जाती है। यह गिरी हुई दारु झट वायु के संपर्क में आकर चारों तरफ़ फैला देती है, ऐसी गंध..जो हर दारुखोरे का, मन लुभाती जाती है। यह गंध, अमरिये को क्या ? यहां तो यह गंध, सभी साथियों को बावला बना देती है। अब ये लोग उस बोतल से एक-दो घूंट दारु पीकर, फिर उस बोतल को दूसरे साथी की तरफ़ उछाल देते हैं। अब हरेक साथी दो-दो घूंट दारु के पीकर, बोतल दूसरे साथी की तरफ़ बोतल उछालता हुआ मस्ती लेता जा रहा है, और सभी भूल गए हैं के “सौभाग मलसा ने इन लोगों को, यहां क्यों भेजा है ?’ बस अब यहां “दारु पीकर बोतल फेंकना और बोतल केच करना” यही गेम थोड़ी देर तक चलता है, आख़िर बोतल में भरी दारु भी ख़त्म हो जाती है। इन लोगों ने दारु के दो घूंट क्या पी लिये हैं, अब इनको दारु पीने की इच्छा घटने के स्थान पर निरंतर बढ़ती जा रही है। क्योंकि इतने लोगों के बीच यह दारु, कहां पर्याप्त ? आख़िर बेचारा आशामुखी बना हुआ अमरिया, कानजी बा का मुंह ताकता है। कानजी बा ठहरे, पक्के दरुखोरे। वे यहां आते वक़्त, लाखाजी के झूपड़े में पड़े जरीकन से छ: बोतले यहां भरकर लाये हैं। मगर उतावली के चक्कर में यहां हो जाती है, उनसे एक भूल..उन्होंने किसी से पूछा नहीं, के ‘इस जरीकन में, क्या भरा है ?’ एक तो यह बात है, पूरे दिन कानजी बा रहते हैं दारु के नशे में। इनको दारु और पेट्रोल में, कोई फ़र्क महसूस नहीं होता..? कारण यह है, लाखाजी ने सौभाग मलसा की गाड़ियों के लिए एक बड़ा जरीकन पेट्रोल से भरवाकर अपने झोपड़े में रखा है। और वे इन लोगों से कहना भूल गए, यह दारु का जरीकन न होकर पेट्रोल का है। बस अब नासमझी में कानजी बा, इसी पेट्रोल से भरी बोतले अपने साथियों को थमा देते हैं। इन साथियों को क्या मालुम, यह दारु न होकर पेट्रोल है ? वे बेचारे पहले से, दारु के दो घूँट पीकर मदमस्त हाथी की तरह मतवाले बन चुके हैं। ऊपर से यह कपड़ो के ऊपर गिरी दारु की गंध, उनके सर पर चढ़कर बोलने लगी है। इस कारण, अब वे सभी एक-दूसरे को गाली-गलोज करते हुए आपस में झगड़ते जा रहे हैं...के, तूने पहले दो घूँट दारु मुझसे ज़्यादा क्यों पी ? इधर कानजी बा ने थमा दी उन्हें, पेट्रोल से भरी बोतलें। फिर क्या ? वे एक-दूसरे के ऊपर, बोतल के ढक्कन खोलकर फेंकने लगे। इस तरह अब उनको कोई भान नहीं, इस झगड़े में सभी साथियों के कपड़ों पर ज्वलनशील पेट्रोल गिरता जा रहा है। ये सभी होली के हुड़दंग की तरह, एक-दूसरे के ऊपर बोतले फेंककर मस्ती लेते जा रहे हैं। सभी साथियों के ऊपर, मतवाले हाथी की तरह मद चढ़ चुका है। उधर मोहनजी हाथ डालते हैं, पायजामे की जेबों में। ज़ेब में हाथ डालते ही, उनके हाथ लग जाता है, एक बीड़ी का बण्डल और माचिस की डिबिया। एक तो यह बीड़ी का बण्डल, मोहनजी के मुफ़्त में हाथ आ गया..ऊपर से ख़ुद मोहनजी ठहरे, कंजूस नंबर एक। ज़र्दे जैसा सस्ता नशा करने वाले मोहनजी ने, कभी बीड़ी का नशा किया नहीं। इन्होंने तो केवल इस वाचमेन कानजी को, बीड़ी पीते ज़रूर देखा है। अब उनके दिमाग़ में इस नए नशे का, तुजुर्बा लेने का विचार पैदा होता है। फिर क्या ? वे एक-एक बीड़ी को माचिस से सिलागाकर दो-चार कश लेते हैं, फिर मस्ती लेते हुए उन सुलगती हुई बीडियों को वे सौभाग मलसा के साथियों के ऊपर फेंकते जा रहे हैं। फिर क्या ? सुलगती बीड़ियां उनके कपड़ों पर गिरे पेट्रोल और दारु को पाते ही, वे उनके कपड़ो को जलाने लगती है। इन जलते कपड़ो के कारण, अब उनका बदन भी जलने लगता है। अब इन साथियों की हालत, सांप-छछूंदर के समान बन जाती है। न तो वे इस जलन को बर्दाश्त कर पा रहे है, और ना वे इन जलते कपड़ो को उतारकर नंगे होने की हिम्मत जुटा पाते हैं ? बस, अब ये सारे गैंग के आदमी बंदरो की तरह कूदते-फांदते हैं। गुलाबा अपने साथियों को इशारा करता है, सभी साथी आगे बढ़कर उन सब गैंग के आदमियों को रस्सियों से बांधने लगते हैं। थोड़ी देर में ही सभी आदमी, रस्सियों से बांध लिए जाते हैं। अब रहम खाकर सभी हिज़ड़ों ने झट भौम से धूल उठाकर सौभाग मलसा के साथियों के सुलगते कपड़ों पर डाल देते हैं। इस तरह, आग ठंडी कर देते हैं। ऐसा लगता है, अभी-तक कानजी बा का नशा उतरा नहीं है। वे सौभाग मलसा को गालियां देते-देते, अब अपने साथियो भी गालियां देते जा रहे हैं। फिर अब, बेफालतू की गालियां सुने कौन ? नशा तो, उन्होंने भी किया है। वे भी उनको सुनाते जा रहे हैं, गालियां। इस तरह अब इनके बीच मच जाता है, जबरा वाक-युद्ध। अब वे एक दूसरे की ग़लतियाँ बताते बताते, झगड़ पड़ते हैं। वे सभी एक-दूसरे की कमज़ोरियां बताते हुए, भद्दी-भद्दी गालियां बकते जा रहे हैं। इस तरह काफ़ी देर बिना पैसे का मेला देखने के बाद, मोहनजी को अब अपने जूत्ते याद आ जाते हैं..जो उनको पांवों में कंकर चुभने से, सहसा याद आ गए हैं। वे बेचारे उन जूत्तों को, ढूढ़े भी कहां ? आख़िर बड़े पत्थर के पास जूत्ते रखने की बात, उन्हें याद आ जाती है। वे बड़े पत्थर के पास जाते हैं, जहां है चूहे का बिल। वहां रखे जूत्ते फटा-फट उठा लाते हैं, मगर जैसे ही वे उन जूत्तो में अपने पांव डालते हैं..उन्हें पावों में गुदगुदी महसूस होती है। जूत्तों में क्या है, कौन घुस गया है अन्दर ? बेचारे भयभीत होकर जूत्तों को फेंक देते हैं। फेंकते ही, उनमें से दो चुहियां कूदकर बाहर निकलती है। तब मोहनजी उन चुहियों को गालियां बकते हुए, अपना डायलोग सुना देते हैं।]
मोहनजी – रांडा, मर जाओ। मैं तो रहा भोला जीव, बचाया मुझे मेरे रामसा पीर ने। ओ रामसा पीर आपको घणी-घणी खम्मा, मेरे बाबजी।
गुलाबा – [हंसता हुआ, कहता है] – अच्छा हुआ, चुहिया ही घुसी इन जूत्तों में। मेरे सेठ मोहन लाल, कहीं कालंदर सांप नहीं घुसा आपके जूत्तो में..?
मोहनजी – यों क्या बोल रहा है, गुलाबा ? कढ़ी खायोड़ा, ऐसा बोल मत। गधेड़ा अगर सांप निकल जाता तो, भला आदमी तू तो मुझे मार डालता ?
गुलाबा – [हंसकर बोलता है] – सुनिए, मेरे सेठ। हम तो जनाब, सभी हैं हिज़ड़े। जैसी सेवा हम लोगों से होगी, वैसी कर लेंगे आपकी। [चम्पाकली से कहता है] जा ए, चम्पाकली। मोहनजी को ले जा दे, अपनी हवेली। और फिर, कीजिये इनकी ज़ोर की ख़ातिर।
चम्पाकली - आज़ की महफ़िल के ख़ास मेहमान समझकर, इनको ले जा रही हूं। इनको नहला दूंगी, अच्छे वस्त्र पहना दूंगी। फिर हम सब बहने खूब नाचेगी, गायेगी और इनको मिलेगा महफ़िल का आनंद।
प्यारी – चम्पाकली। तू फ़िक्र करना, मत। गैंग के आदमियों को हम ले जाकर, उन्हें बंद करवा देंगे हवालात के अन्दर। तू अकेली चली जा, मोहनजी को लेकर। बाकी हम सब चली जायेंगी,, बाबजी के झूपे।
[मोहनजी जाते हैं, चम्पाकली के साथ। गुलाबा हिज़डा और उसकी हिज़ड़ों की टीम बाबजी के झूपे की ओर जाती दिखाई देती है। मंच के ऊपर अंधेरा छा जाता है, थोड़ी देर बाद मंच पर रौशनी फ़ैल जाती है। अब हिज़ड़ों की हवेली का मंज़र सामने दिखाई देता है। बड़े होल में बूढ़े किन्नर के पहलू में, कई उछ्रंखल किन्नर बैठे हैं। बैठे-बैठे वे, बेचारे इस बूढ़े किन्नर से मज़ाक करते जा रहे हैं।]
सब्बू – यह क्या, बड़ी बी ? आप मर्दों को हिज़ड़े बना देती हैं, और हिज़ड़ों को बना देती हैं मर्द। यह क्या रासो चल रहा है, बड़ी बी ?
बुढा किन्नर – देख सब्बू, अभी तो मोहनजी “हिज़डा” बनने गए हैं।
सब्बू – [आश्चर्य से कहता है] – क्या कहा, बड़ी बी ? ये रसिक मोहनजी...इस प्यारी के प्रेमी ? कहीं आपने कोई नशे की चीज़ तो नहीं खिला दी, उनको ?
बुढा किन्नर – [हंसता-हंसता कहता है] – ले देख, दरवाज़े की तरफ़। [ज़ोर से] बाअदब होशियार, हिन्दुस्तान-ए-किन्नर मल्लिका हसीं मोहतरमा मोहनी बाई क़दमबोसी कर रही है..होशियार।
[औरतों के कपड़े पहने मोहनजी, चम्पाकली के साथ होल में आते हैं। उनके रुख़्सारों पर लाली, और होंठों पर लिपस्टिक लगी हुई है। इस वक़्त वे नशे में दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि उनके पांव लड़खड़ा रहे हैं। कभी वे इधर हिचकोला खा रहे हैं, कभी उधर। बेचारा चम्पाकली उनको संभालता हुआ, लाकर उनको गद्दे पर बैठा देता है। उनके पास चांदी की थाली रख देता है, जिसमें कई पान के बीड़े रखे हैं। वे उस थाली से एक-एक पान लेकर, अपने मुंह में ठूंसते जा रहे हैं। अब करते भी क्या, बेचारे ? आख़िर मोहनजी है, आदत से लाचार..यह उनकी आदत मुफ़्त का माल खाने की है भी, बुरी। मुफ़्त की चीज़ को मोहनजी छोड़ नहीं सकते, भले पास रखे थाल में हो नशे के पान। नशीली चीज़ से उनको कोई लेना-देना नहीं, बस एक बात का उन्हें ध्यान रहता है के ‘खाने की चीज़ पर, उनकी ज़ेब की पैसे नहीं लगने चाहिए ?’ उनको पान खाते देखकर, बुढा किन्नर ख़ुश होता है। और ख़ुश होकर, वह ढोलकी बजाने लगता है। फिर क्या ? मोहनजी का दिल ख़ुश करने के लिए, सब्बू तेज़ गति से नाचने लगता है। नाचता-नाचता वह मोहनजी के निकट आता है, फिर उन्हें झुककर पातरियों की तरह कोर्निश करता है। इस सब्बू में, तवायफों की अदाएं पाकर मोहनजी ख़ुश हो जाते हैं। फिर वे उठकर, झट सब्बू को अपनी बाहों में लेकर नाचते हैं। और नाचते-नाचते वे, गीत भी अलग से गाते जा रहे हैं।]
मोहनजी – [नाचते हुए गाते हैं] – प्यारी ए प्यारी, तू तो है जग की रानी। तूझे क्या कहूं मैं, प्यारी। तू तो है, मेरी लाडी। तेरे पास है काली सफ़ारी, और मेरे पास है नंगी देह। दे दे प्यारी आज मुझे तू, दे दे मेरी काली सफारी। मेरी लाज़ रखना, तेरे हाथ में.. तू तो है, मेरी लाडी। तेरे पास है मेरा दिल, और मेरे पास है रुली ज़िंदगी। दे दे मेरी काली सफारी, प्यारी ए प्यारी, तू तो है जग की रानी।
[पर्दे के पीछे प्यारी खड़ी है, उसके नयनों से ढलक रहे आंसूओं से कजरारे नयन नम हो जाते हैं। वह पास खड़ी चम्पाकली, से कहती है]
प्यारी – [एक-एक आंसू के कतरे को, हाथ से साफ़ करती हुई] – देख ए चम्पाकली, ये मोहनजी मुझे कितना याद कर रहे हैं ? तू कहती है, तो मैं उनके सामने चली जाऊं ?
चम्पाकली – अरे ए गधी नंबर ६३६, जनाना वस्त्र पहनकर क्या तूझमे औरतों के गुण आ गए ? ला दूं मोहनजी को यहां, फिर ले लेंगे तूझे अपने आगोश में। सोच ले, पहले। इसके बाद तेरी इज़्ज़त बचाने के लिए, कोई आगे आएगा नहीं।
[नशा वाले पान ज़्यादा ठोकने से, उनको नशा चढ़ जाना वाज़िब है। क्योंकि मोहनजी ठहरे ऐसे आदमी, जो कभी मुफ़्त की चीज़ नहीं छोड़ते। भले यहां रखे मीठे पत्ते के बीड़ो में, नशे की चीज़ डाली हुई है ? इस कारण मोहनजी को नींद आनी वाज़िब है, फिर क्या ? बेचारे मदहोश होकर, गद्दे पर आकर गिर पड़ते हैं। अब गुलाबा नज़दीक आता है, नाच गाना स्वत: बंद हो जाता है। आस-पास खड़े किन्नरों को, वह कहता है]
गुलाबा – सौभाग मल और उसके साथी पकड़े गए हैं, इन लोगों को मैं कोतवाली में छोड़कर आयी हूं। [चम्पाकली और प्यारी पर्दे के पीछे से निकलकर, सामने आ जाती है] ए चम्पाकली, अब तू मोहनजी को उनका सफारी सूट पहना दे। कपड़ो की तलाशी, पूरी हो गयी है। अब सुन, ख़ुश-खबरी यह है..
चम्पाकली – [मुस्कराकर कहती है] - क्या ख़ुश-ख़बरी है, बताइये ना।
गुलाबा – अब अपुन पूरी गैंग का मटियामेट कर देंगे, देख कल तू ऐसे करना..जब भी तूझे चपकू गैंग के आदमी दिखाई दे जाय, तब तू उनको यह सुनाते हुए कहना के “चपकू गैंग के आदमियों ने सौभाग मलसा की गैंग पर हमला किया, और सौभाग मलसा और उनके आदमियों को उठाकर वे ले गए।” इस तरह..
चम्पाकली – इस तरह, क्या ? आगे कहिये।
गुलाबा – इस तरह अपुन का कारनामा, किसी को मालुम नहीं होगा। फिर इन दोनों गैंग के आदमी आपस में लड़ते रहेंगे, और अपुन इनकी फूट का फ़ायदा उठाते रहेंगे।
चम्पाकली – मगर, विवाद का कारण क्या बताऊंगी ? अभी इस समय, दोनों गैंग के बीच सदभाव है..
गुलाबा – देख चम्पाकली, अभी मेरे पास जी.आर.पी. के थानेदार साहब प्रेम सिंहजी सा के भेजे समाचार आये हैं, के “इस चपकू गैंग के हलके के अन्दर, मंजु कंवर के बावन हज़ार रुपये और स्वर्ण आभूषण चुरा लिए गए हैं।”
चम्पाकली – कोई पकड़ा गया, या नहीं ?
गुलाबा – चपकू गैंग के रघुवीर सिंह और वीरेंद्र राव नाम के आदमी, पकड़े गए हैं। ये लोग मुसाफ़िरों को, उनके सामान ऊंचाने में मदद करते-करते वे उनका कीमती सामान बहुत कुशलता से चुरा लिया करते।
चम्पाकली - यह मैंने भी सुना है, गुलाबो बी। इस गैंग की खारची वाली टीम, एक रुट पर चोरी करने के बाद..वह उस रूट पर, कई महिनों तक वारदात नहीं करती। मगर इस बार इन लोगों ने मंजु बाई का माल चुराया है, और यह मंजु बाई है सौभाग मलसा की रिश्तेदार।
गुलाबो – बस, यह बात ही मैं तूझे समझाना चाहती हूं..के, तेरी फैलाई गयी अफ़वाह ज़रूर असर करेगी। क्योंकि, यह सौभाग मल मंजु बाई का रिश्तेदार है। अब तेरे दिमाग़ में यह बैठा ले, किसी तरह इन दोनों गैंग के बीच गैंग-वार हो जानी चाहिए।
चम्पाकली – जी हां, तब ही हम इस झगड़े का फायदा उठा सकती हैं। साथ-साथ, गैंग के बचे हुए आदमियों को भी, हम पकड़ सकती हैं।
सब्बू – अरे, गुलाबो बी। अगर सौभाग मल के समाचार इस चपकू गैंग के पास पहुंच गए हो तो, फिर...
गुलाबा – अरे..अरेSS कागली जैसे क्यों बोल रही है, सब्बू बाई ? पहले असल बात सुन ले यह सौभाग मल न तो इस मंजु बाई का रिश्तेदार है..अगर होता भी तो यह सौभाग मल कभी अपने धंधे में, रिश्तेदारी को लाता नहीं है।
चम्पाकली – तब क्या ?
गुलाबो – बस अपुन को केवल अफ़वाह फैलानी है, के “यह सौभाग मल, इस मंजु बाई का रिश्तेदार है। चोरी होने के बाद, इसने खोज-बीन करके इस वीरेंद्र और रघुवीर की जन्म-पत्री निकाल डाली। फिर यह पूरा ब्यौरा, जी.आर.पी. के थानेदार साहब प्रेम सिंहजी को दे डाला।
चम्पाकली – इस कारण ही, ये दोनों नालायक पुलिस के हत्थे चढ़े हैं। इस अफ़वाह के फ़ैल जाने से, यह फ़क़ीर बाबा ज़रूर इस सौभाग मल का दुश्मन बन जाएगा। फिर दोनों गैंग के बीच, ज़ोरों की जंग होगी, और इसका फ़ायदा हमको ज़रूर मिलेगा। गुलाबो बी, क्या आप यही बात कहना चाहती हैं ?
गुलाबा – एक बात और, तेरे दिमाग़ में बैठा देना के ‘यह मोहन लाल बैठा है पुलिस के हिरासत में...रिमाण्ड पर। इसलिए कहता हूं, उसके मिलने का सवाल ही नहीं..बस राज़ की बात, राज़ ही रहेगी। इस तरह फ़क़ीर बाबा अपनी गैंग के साथ पकड़ा जाएगा, और सौभाग मल के बचे-खुचे आदमी भी पकड़ लिए जायेंगे।
[अब दूसरे लोगों को हिरासत में लेने की बातें सुनते ही प्यारी का दिल खट्टा हो जाता है, के यह ‘गुलाबा बी दूसरे लोगों को गिरफ्तार करने की बात करती जा रही है, मगर ख़ास बात यह है कि, यह निपराध सिद्ध होने के बाद भी मोहनजी को छोड़ने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है ?’ आख़िर, हताश होका वह हाथ जोड़कर, गुलाबा से कहती है]
प्यारी – [हाथ जोड़कर कहती है] – गुलाबो बी अब तो आप, मेरे जीजाजी को छोड़ दीजिये ना।
गुलाबा – अब मुझे भी भरोसा हो गया है, के ‘जुलिट इसको प्रेम से नहीं देखती।’ मगर फिर भी मैं एक बार, मोहन लाल की परीक्षा ज़रूर लूंगी। अब ऐसा करते हैं, इस मोहन लाल को इसके कपड़े पहना देते हैं। और तड़के इसे, खारची स्टेशन पर छोड़ देते हैं। नींद खुलने पर, यह अपने-आप चला जाएगा जोधपुर।
प्यारी - यों कैसे छोड़ रही है आप, गुलाबो बी ? अभी तो इनका बैग और टिफिन पड़ा है, जुलिट के पास। फिर कौन लाएगा, बैग और इनका टिफ़िन ?
गुलाबा – तू फ़िक्र मत कर, बैग और टिफ़िन मैं ले आयी हूं। बस तू अब, इस मोहन लाल की विदाई की तैयारी कर।
[मंच पर अंधेरा छा जाता है, थोड़ी देर बाद मंच पर रौशनी फैलती है। और सामने आता है, खारची [मारवाड़-जंक्शन] स्टेशन का प्रथम श्रेणी का प्रतीक्षालय, जहां मोहनजी आराम से एक सोफे पर लेटे हुए दिखाई दे रहे हैं। अचानक, सीटी देती हुई जम्मू-तवी एक्सप्रेस प्लेटफोर्म पर आकर रुकती है। सीटी की आवाज़ से मोहनजी की नींद खुल जाती है। जगते ही उनकी नज़र, सामने सोफे पर बैठे यात्रियों पर गिरती है। वे मोहनजी की सूरत को देखकर, हंसते जा रहे हैं। बेचारे मोहनजी उन लोगों को हंसता पाकर चमक जाते हैं, के ‘यह क्या खिलका है ?’ इस वक़्त मोहनजी के मुंह पर औरतों का मेक-अप देखकर, एक यात्री दूसरे यात्री से कह रहा है]
एक यात्री – नहीं रे छोगा, मुझे तो यह आदमी हंडरेड परसेंट हिज़डा ही लगता है। देख इधर, कैसे लगायी है इसने..अपने गालो पर, लाली ?
छोगा – [हंसता हुआ, कहता है] – बात सही है रे, देख इधर इसके होंठों पर विदेशी लिपस्टिक अलग से लगी है।
[यह सुनते ही, मोहनजी भड़क जाते हैं। और फिर, उसको कटु वचन सुना देते हैं।]
मोहनजी – [भड़ककर कहते हैं] - मैं तो मर्द हूं, कढ़ी खायोड़ा। तू क्या है, जरख़ ?
छोगा – [हंसकर कहता है] – हम लोगों को, क्या भरोसा ? के, आप औरत हैं या मर्द ? मुझे तो आप, ना मर्द लगते हैं और ना औरत। हम यों कह सकते हैं, आप हिज़ड़े ही हैं।
[इतना सुनना, राठोड़ी मूंछ्या वाले मोहनजी के लिए नाक़ाबिले बर्दाश्त है। वे गुस्से में बकते हुए, कहते हैं]
मोहनजी – [क्रोधित होकर, कहते हैं] – नीचे झुककर, देख ले। देख लेSS, देख़ लेSS...
[अब चारों तरफ़ हंसी के ठहाके गूंजते हैं, जिससे बेचारे मोहनजी की नींद खुल जाती है। और उनकी आँखों के सामने, बीती घटना के चित्र आने बंद हो जाते हैं। वे खारची के वोटिंग-रूम की जगह, अपने-आपको रेल गाड़ी में पाते हैं। सामने अपने साथियों को देखकर, उन्हें बहुत आश्चर्य होता है..के ‘क्या अभी-तक वे, बीती हुई यादों को सपने स्वप्न में संजोते आ रहे थे..? अब उनको याद आता है, इस गाड़ी में बैठे वे आंसू ढलका रहे थे..तब ओमजी ने बड़े मंगवाने का आर्डर मारा और रशीद भाई ने एम.एस.टी.कट चाय लाने का।’ अब मोहनजी को पागल की तरह निहारते देख, रतनजी कहते हैं।]
रतनजी – [हंसते हुए कहते हैं] – साहब, आपने यह क्या कर डाला ? दाल के सारे बड़े नीचे डाल दिए, और ऊपर से बेटी का बाप आप यों कहते जा रहे हैं..के, “नीचे झुककर, देख ले। देख लेSS, देख़ लेSS...
रशीद भाई – साहब, आपको खाना हो तो आप ही देख लीजिये। हम तीनों तो, अपने हिस्से के गरमा-गरम बड़े ठोक चुके हैं। और अपने हिस्से की, चाय भी पी गए। अब आपकी चाय ठंडी हो रही है, और बड़े आपने नीचे गिरा दिए हैं। जो तख़्त के नीचे चले गए, खाना हो तो आप ख़ुद नीचे झुककर एक-एक बड़ा बीन लीजिये..
ओमजी – करमठोक है साहब, बाबा के हुक्म से बड़े मंगवाए...इन्होने नीचे आँगन पर फेंककर, प्रसाद का निरादर किया है। ऊपर से जनाब, लेते जा रहे हैं खर्राटे ?
रशीद भाई – साहब, आपको नहीं खाने हैं तो आप नीचे झुककर एक-एक बड़े को बीन लीजिये, और फिर किसी भूखे मंगते-फ़क़ीर को दे दीजियेगा। बेचारा ग़रीब आपको दुआ देगा, जनाब।
[यह सुनकर मोहनजी फ़िक्र में डूब जाते हैं, के “ये मुफ़्त के बड़े कैसे मंगते-फकीरों को थमा दें ? कहीं इन बेवकूफों के बोलने से, कोई मंगता-फ़क़ीर इधर आ न जाय ? इस तरह मुफ़्त के बड़े, हाथ से निकल जायेंगे ?” यह सोचकर, वे ज़ोर से चिल्लाते हुए कहते हैं]
मोहनजी – [ज़ोर से चिल्लाते हुए, कहते हैं] – बड़े, मैं क्यों नहीं खाऊं...? मैं तो भूखा हूं, कालिये भूत की तरह।
[इतना कहकर, वे नीचे झुकते हैं। और नीचे आंगन में पड़े, एक-एक बड़े को बीन लेते हैं। फिर क्या ? गपा-गप सारे बड़े खाकर, ऊपर से ठंडी चाय गटा-गट पी जाते हैं। केबीन में खड़ा एक देहाती, इनका यह स्वांग देख़ता जा रहा है। बरबस उसके मुंह से, ये शब्द निकल उठते हैं]
देहाती – अरे रेSS रेSS, ये साहब इंसान है या राक्षस ? मुझे तो लगता है, इनके पिंड में कालिया भूत आ गया है। जो कमबख़्त, कई बरसों से भूखा है। [दूसरे बैठे यात्रियों से कहता है] अरे मेरे बाप, आप इस केबीन में क्यों बैठे हैं ? यहां बैठे रहे, तो साहब के पिंड से यह कालिया भूत निकलकर आपका भख ले लेगा।
[इतना कहकर वह देहाती, दौड़कर चला जाता है दूसरे केबीन में। इस देहाती की बात सुनकर, कई यात्री अपना सामान उठाकर चल देते हैं दूसरे केबीनों की ओर। बेचारे ये यात्री भैरू बाबा का स्मरण करते हुए, दूसरे केबीनों की तरफ़ ऐसे दौड़ पड़े हैं..मानो किसी चूहे के पीछे बिल्ली आ रही हो..! फिर क्या ? वहां बैठे यात्रियों को, वे चिल्ला-चिल्लाकर सुनाते जा रहे हैं]
दौड़ रहे यात्री गण – [चिल्लाते हुए कहते हैं] – बचा रेSS, लूणी वाले भैरू बाबा। इस कालिये भूत से बचाओ, बाबजी। तेरे थान पर आकर सवा मणी करेंगे, बाबा।
[कहते-कहते कई लोग उस केबीन से गुज़रते हैं, जहां बैठे हैं कालबेलिये..जो मेहरान-गढ़ में आये आगंतुकों के समक्ष अपना प्रोग्राम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, अत: अभी वे यहां बैठे गीत गाते हुए नृत्य का रियाज़ कर रहे हैं। इस रियाज़ में उनके मर्द गीत गा रहे हैं, और उनकी औरते नृत्य करती जा रही है।]
कालबेलिया के मर्द-औरत – [नाचते-गाते हैं] – कालियो कूद पड़ियो मेला में, साइकल पंचर कर लायो हर्ररर हर्ररर र..! बाजो बाज रियो डूंगर में छोरी चटक-मटक ने हाली, कमर में लचक न पड़ जाई हर्ररर हर्ररर हर्ररर..कालियो कूद पड़ियो मेला में..!
[उन कालबेलियों के नाच-गाने को देखकर, यात्री गण डरते हुए वहां से जाने का ही इरादा बना लेते हैं। उनको भय है, के “कहीं यह कालिया भूत इनका गाना सुनकर, यहां धमककर आ नहीं जाए ?” यहां तो ये कालबेलिये उसी कालिये भूत का गीत गाते जा रहे हैं, जिस कालिये भूत से ये यात्री भयभीत होकर इधर आये हैं। बस, फिर क्या ? वे सारे यात्री, गधे के सींग की तरह वहां से ओझल हो जाते हैं। इन लोगों के जाने के बाद, मोहनजी ज़ोर से ठहाके लगाकर हंसते हैं..एक बार तो इनके साथी इनके ठहाके सुनकर, भयभीत होकर यह सोच लेते हैं..के “कहीं इनके पिंड में, कालिया भूत तो नहीं आ गया ?” अब इंजन की सीटी सुनायी देती है, इस सीटी के आगे मोहनजी की हंसी दब जाती है। इधर अब, मंच पर अंधेरा छा जाता है।]
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