नमक पात्र परिचय सफिया - एक भारतीय मुसलमान औरत सिख बीबी - सफिया के अम्मा के समान भारतीय नागरिक सैयद - सफिया का भाई, पाकिस्तानी पुलिस अफस...
नमक
पात्र परिचय
सफिया - एक भारतीय मुसलमान औरत
सिख बीबी - सफिया के अम्मा के समान भारतीय नागरिक
सैयद - सफिया का भाई, पाकिस्तानी पुलिस अफसर
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी
भारतीय कस्टम अधिकारी
अमृता - सफिया की हिन्दुस्तानी सहेली
रुकसाना - सफिया की पाकिस्तानी सहेली
दृश्य: 1
स्थान - अमृता का घर
आज अमृता के यहां कीर्तन है, औरतें इकट्ठा होकर कीर्तन कर रहे हैं। सफिया सिख बीबी को देखती हैं, तो देखते ही रह जाती है, उसे अपनी अम्मा की याद आ जाती है।
सफिया: मन ही मन - कैसे दो मनुष्य एक दूसरे से इतनी ज्यादा मिल सकते हैं, मेरी मां को मरे तो बहुत साल हो गए, मेरी मां के हुबहू ये कौन औरत है, वही भारी भरकम जिस्म, नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी से जगमगाती छोटी छोटी चमकदार आंखे, चेहरा जैसे कोई खुली हुई किताब, वैसा ही सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा जैसा मेरी अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थी।
सफिया सिख बीबी को एकटक देखती रहती है, उसे एकटक देखकर सिख बीबी भी उसे देखती है और अमृता से पूछती है।
सिख बीबी: अमृता, वो कौन छोरी है, जो मुझे एकटक होकर देख रही है।
अमृता: ये मेरी सहेली सफिया है, मुसलमान है, कल ही सुबह लाहौर जा रही है,
अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा।
सिख बीबी उठकर सफिया के पास आकर बैठ जाती है।
सिख बीबी: हां तो बेटी तू लाहौर जा रही है, हमारा लाहौर बहुत प्यारा है बेटी, वहां के लोग बहुत खूबसूरत होते हैं, अच्छा खाने और सुंदर कपड़ों के शौकीन, सैर सपाटें के रसिया, जिन्दादिली की तस्वीर।
सफिया: माता जी, आपको तो यहां आए बहुत साल हो गए होंगे।
सिख बीबी: हां बेटी! जब हिन्दुस्तान बना था, तभी आए थे। वैसे तो अब यहां भी हमारी कोठी बन गई है। बिजनेस है, सब ठीक ही है, पर लाहौर बहुत याद आता है। हमारा वतन तो जी लाहौर ही है। साडा लाहौर।
कीर्तन शुरू होता है, औरतें गाना शुरू करती हैं।
जिनके जुड़े होते यहां, आपस में भावना के तार।
वो मानव ही करते हैं, सरहद परे असीम प्यार।।
बंटा हुआ है नक्शा पर, हिन्दुस्तान पाकिस्तान।
नहीं बंटेगा ये हृदय अपना, मेरा कहना मान।।
हम सब हैं एक इंसान, हम सब हैं एक इंसान।
हम सब हैं एक इंसान, हम सब हैं एक इंसान।।
नमक में यहां मिठास है, नमक ही सबसे खास है।
अपने नमक की सभी को, लगते यहां सब प्यास है।।
जिसकी यहां खाते नमक, उसकी गाना गाते हैं।
नमकहलाली करके नर, खुदा के पास जाते हैं।।
मनुष्य हो कभी वतन से, नमकहरामी मत करना।
हिन्दु यवन भाई भाई, मिल जुल कर तुम सब रहना।।
हम सब मिलकर के गाएं, कौमी एकता का गान।
हम सब हैं एक इंसान, हम सब हैं एक इंसान।
हम सब हैं एक इंसान, हम सब हैं एक इंसान।।
कीर्तन खत्म हुआ, जब सिख बीबी प्रसाद लेकर उठने लगी, सफिया बोली।
सफिया: आप लाहौर से कोई सौगात मंगाना चाहें तो मुझे हुक्म दीजिए।
सिख बीबी: हिचकिचाकर - अगर ला सको तो थोड़ा-सा लाहौरी नमक ला देना।
दृश्य: 2
स्थान: बाजार
रुकसाना और सफिया दोनों आपस में बात कर रहे हैं।
रुकसाना: तो तुम कल चली जाओगी?
सफिया: हां!
रुकसाना: अब कब आओगी?
सफिया: मालूम नहीं, शायद अगले साल। शायद कभी नहीं।
रुकसाना: कीनू की टोकरी देते हुए - ये लो कीनू! यह हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की एकता की मेवा है।
दृश्य: 3
स्थान: सैयद का घर
सफिया सामान पैक कर रही है, वहां सैयद भी उसका मदद कर रहा है।
सफिया: क्यों भैया, नमक ले जा सकते हैं?
सैयद: नमक? नमक तो नहीं ले जा सकते, गैरकानूनी है और ---- और नमक का आप क्या करेंगी? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज्यादा नमक आया है।
सफिया: मैं हिस्से-बखरे की बात नहीं कर रही हूं, आया होगा। मुझे तो लाहौर का नमक चाहिए, मेरी मां ने यही मंगवाया है।
सैयद: मन ही मन - मां तो बंटवारे से पहले ही मर चुकी थी, मां का क्यों जिक्र कर रही है।
सैयद: देखिए बाजी! आपको कस्टम से गुजरना है और अगर एक भी चीज ऐसी-वैसी निकल आई तो आपके सामान की चिन्दी-चिन्दी बिखेर देंगे कस्टमवाले! कानून जो ---?
सफिया: निकल आने का क्या मतलब, मैं क्या चोरी से ले जाउंगी? छिपा के ले जाउंगी? मैं तो दिखा के, जता के ले जाउंगी?
सैयद: भई, यह तो आप बहुत ही गलत बात करेगी। --- कानून ----।
सफिया: अरे फिर वही कानून - कानून कहे जाते हो! क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते? आखिर कस्टमवाले भी इंसान होते हैं, कोई मशीन तो नहीं होते।
सैयद: हां, वे मशीन तो नहीं होते, पर मैं आपको यकीन दिलाता हूं, वे शायर भी नहीं होते। उनको तो अपनी ड्यूटी करनी होती हैं।
सफिया: अरे बाबा, तो मैं कब कह रही हूं कि वह ड्यूटी न करे। एक तोहफा है, वह भी चंद पैसों का, शौक से देख ले, कोई सोना चांदी नहीं, स्मगल की हुई चीज नहीं, ब्लैक मार्केट का माल नहीं।
सैयद: अब आपसे कौन बहस करे। आप अदीब ठहरी और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो जरूर ही घूमा हुआ होता है। वैसे मैं आपको बताए देता हूं कि आप ले नहीं जा पाएंगी और बदनामी मुफ्त में हम सबकी भी होगी। आखिर आप कस्टमवालों को कितना जानती है?
सफिया: गुस्से से - कस्टमवालों को जाने या न जाने, पर हम हम इंसानों को थोड़ा-सा जरूर जानते हैं। और रही दिमाग की बात सो अगर सभी लोगों का दिमाग हम अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो यह दुनिया कुछ बेहतर ही जगह हो जाती, भैया।
मारे गुस्से के उसके आंखों से आंसू बहने लगे। सैयद सिर हिलाकर चुप हो गया।
दृश्य: 4
स्थान: सैयद का घर
सफिया सामान बांध रही है। सब सामान बांध ली। बच गई कीनू की टोकरी और नमक की पुड़िया।
सफिया: नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा अगर इसे हाथ में ले ले और कस्टमवालों के सामने सबसे पहले इसी को रख दे? लेकिन अगर कस्टमवालों ने न जाने दिया। तो मजबूरी है, छोड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी मां से किया था? हम अपने को सरदार कहते हैं। फिर वायदा करके झूठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियां तो आते वक्त भी किसी ने नहीं देखी जा रही थी। उधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा।
सफिया कीनुओं के नीचे नमक की पुड़िया रखी।
दृश्य: 5
स्थान: लाहौर का प्लेटफार्म
सफिया फस्र्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी है, देहली तक का किराया सैयद ने दिया है, वह हाथ में टिकट दबाए वेटिंग रूम से बाहर प्लेटफार्म पर टहल रहा है।
सफिया: मन ही मन - मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं ले जाएगा, नमक कस्टमवालों को दिखाएगी वह।
कीनू की टोकरी से नमक की पुड़िया निकालकर अपने हैंडबैग पर रखती है। वह पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी के पास आती है।
सफिया: हिचकिचाकर - मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूं।
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी: फरमाइए।
सफिया: आप -- आप कहां के रहने वाले हैं।
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी: मेरा वतन देहली है, आप भी तो हमारी तरफ की मालूम होती है, अपने अजीजों से मिलने आई होंगी।
सफिया: जी हां, मैं लखनऊ की हूं, अपने भाईयों से मिलने आई थी। वे लोग इधर आ गए हैं। आपको -- आपको भी तो शायद इधर आए---?
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी: जी, जब पाकिस्तान बना था, तभी आए थे, मगर हमारा वतन तो देहली ही है।
सफिया: नमक को निकालकर - हिन्दुस्तान में मेरी सहेली के यहां मां के समान एक सिख बीबी मिली थी, जब उसे मैंने बताया कि मैं लाहौर जा रही हूं , तो वो यहां कि रहने वाली थी, उसे अपने वतन की नमक पसंद करती है, इसलिए उसने मुझे लाने के लिए बोली, तो मैंने उसे हां कहा और ये नमक मैं उसके लिए ले जा रही हूं।
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी: नमक के पुड़िया को सफिया के बैग में रखकर देता है - मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।
सफिया जाने लगी।
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी: जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उस खातून को यह नमक देते वक्त कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता रफ्ता ठीक हो जाएगा।
दृश्य: 6
स्थान: अमृतसर का प्लेटफार्म
सफिया: देखिए, मेरे पास नमक है, थोड़ा-सा। देहली में मेरी सहेली के यहां मां के समान एक सिख बीबी मिली थी, जब उसे मैंने बताया कि मैं लाहौर जा रही हूं , तो वो यहां कि रहने वाली थी, उसे अपने वतन की नमक पसंद करती है, इसलिए उसने मुझे लाने के लिए बोली, तो मैंने उसे हां कहा और ये नमक मैं उसके लिए ले जा रही हूं।
नमक निकालती है।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: इधर आइए जरा।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: दूसरे कस्टम अधिकारी से- इनके सामान का ध्यान रखिएगा।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: सफिया से - आइए, आइए न।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी जेब से रूमाल निकालकर झाड़ता है - बैठिए।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: पुलिसवाले से- दो चाय लाओ, अच्छी वाली।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी मेज के दराज से एक किताब पहला पेज निकालकर उसकी ओर बढ़ाया।
सफिया: शमसुलइसलाम की तरफ से सुनील दास गुप्त को प्यार के साथ, ढाका 1946, तो आप क्या ईस्ट बंगाल के हैं?
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: हां, मेरा वतन ढाका है।
सफिया: तो आप यहां कब आए?
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: जब डिवीजन हुआ तभी आए, मगर हमारा वतन ढाका है, मैं तो कोई बारह-तेरह साल का था। पर नजरुल और टैगोर को हम लोग बचपन से पढ़ते थे। जिस दिन हम रात यहां आ रहे थे उसके ठीक एक वर्ष पहले मेरे सबसे पुराने, सबसे प्यारे, बचपन के दोस्त ने मुझे यह किताब दी थी। उस दिन मेरी सालगिरह थी। फिर हम कलकत्ता रहे, पढ़े, नौकरी भी मिल गई, पर हम वतन आते-जाते थे।
सफिया: वतन?
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: मैंने कहा था न कि मेरा वतन ढाका है।
सफिया: हां- हां ठीक है। ठीक है।
हिन्दुस्तानी कस्टम अधिकारी: तो पहले तो बस इधर ही कस्टम था, अब उधर भी कुछ गोलमाल हो गया है। वैसे तो डाभ कलकत्ता में भी होता है, जैसे नमक यहां भी होता है, पर हमारे यहां के डाभ की क्या बात है। हमारी जमीन, हमारे पानी की मजा ही कुछ और है।
नमक का पुड़िया सफिया के बैग में रख दी और खुद उस बैग को उठाकर आगे आगे चलने लगे। सफिया उसके पीछे पीछे चलने लगी।
सफिया: मन ही मन - किसका वतन कहां है, वह जो कस्टम के इस तरफ है या उस तरफ।
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रजिया सज्जाद जहीर की कहानी नमक से
एकांकी रूपान्तरण -सीताराम पटेल सीतेश
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