उम्दा नसीहत - प्रांत-प्रांत की कहानियाँ - संकलन व अनुवाद - देवी नागरानी

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प्रांत -प्रांत की कहानियाँ (हिंदी-सिन्धी-अंग्रेजी व् अन्य भाषाओँ की कहानियों का अनुवाद) देवी नागरानी -- कश्मीरी कहानी उम्दा नसीहत हमरा ख़लीक...

प्रांत-प्रांत की कहानियाँ

(हिंदी-सिन्धी-अंग्रेजी व् अन्य भाषाओँ की कहानियों का अनुवाद)

देवी नागरानी

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कश्मीरी कहानी

उम्दा नसीहत

हमरा ख़लीक

किसी ज़माने में कश्मीर में एक बादशाह रहता था जो शिकार का बहुत शौक़ीन था। एक दिन वह जंगल में शिकार खेलने गया और एक हिरन पर उसकी नज़र पड़ी। उसने हिरन का पीछा किया लेकिन वह इस तरह तेज़ रफ़्तार से भाग रहा था कि बादशाह उसे पकड़ न सका। हिरन उसकी नज़रों से ओझल हो गया। राजा ने वापस जाने का इरादा किया, लेकिन जब उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो वह बौख़ला गया।

‘ओ ख़ुदाया! शायद मैं रास्ता भूल गया हूँ।’

वह रास्ता तलाश करता रहा लेकिन जंगल में और फंसता चला गया। भटकते-भटकते उसे जंगल में शाम हो गई थी, इसलिये राजा ने जंगल में ही ठहरने का इरादा किया। अचानक उसकी नज़र एक साधु पर पड़ी जो एक दरख़्त के नीचे ध्यान में बैठा हुआ था।

‘यहाँ जंगल में किसी इन्सान का मिलना निहायत ख़ुशनसीबी है। शायद यह मेरी कुछ रहनुमाई कर सके।’ राजा यह सोचकर साधु के पास पहुँचा।

साधु ने जब उसकी कहानी सुनी तो वह फौरन उसके साथ चल पड़ा, क्योंकि वह जंगल से अच्छी तरह वाक़िफ़ था।

‘जनाब आपने इतनी मदद की है, मैं ज़िंदगी भर शुक्रगुज़ार रहूँगा। मेहरबानी करके आप मेरी सल्तनत में कुछ अरसा मेरे साथ गुज़ारें। आपके पधारने से मेरी इज़्ज़त अफ़ज़ाई होगी।’ पहले तो साधु ने इनकार कर दिया लेकिन बादशाह के बार-बार इसरार करने पर वह राज़ी हो गया।

बादशाह ने फौरन उसके लिये एक छोटा-सा मकान तैयार करवाया और उसका नाम ‘महाराज का मंदिर’ रखा। हर शाम बादशाह उसकी ख़िदमत में हाज़िर होता और उसकी नसीहत भरी वार्तालाप सुनता।

उसके मुल्क और दरबारियों को उसकी यह बात बिलकुल पसंद नहीं थी। उनका ख़याल था कि बादशाह की ज़रूरत साधु से ज़्यादा दरबार को है। लेकिन बादशाह उनकी बात बिलकुल नहीं सुनता था।

‘मैं साधु के पास जाकर सुकून और चैन महसूस करता हूँ’ वह कहता था। एक दिन जब बादशाह साधु के पास पहुँचा तो उसे महसूस हुआ कि साधु कुछ परेशान और मायूस-सा है।

‘महाराज जी क्या बात है?’ बादशाह ने साधु से सवाल किया।

‘मेरे बच्चे, यह वक़्त तुम्हारे लिये अच्छा नहीं है। तुम किसी आफ़त से घिरने वाले हो। तुम्हारे दरबारी तुम्हारे खिलाफ़ साज़िश कर रहे हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी ख़तरे में है, तुम फौरन दरबार छोड़ कर चले जाओ। जितनी रक़म और क़ीमती सामान साथ ले जा सकते हो, ले जाओ, लेकिन फ़ौरन महल छोड़ दो।’

बादशाह बेहद परेशान हुआ और साधु के क़दमों में झुक गया। साधु ने एक काग़ज़ उसे दिया ‘यह कागज़ ले जाओ। उसमें कुछ उसूल दर्ज हैं उन पर अमल करना। ये बहुत महत्वपूर्ण हैं, और तुम्हारे लिये कारगर सिद्ध होंगे। किसी अनजानी जगह चले जाओ, वहाँ तुम महफूज़ रहोगे। ख़ुदा तुम्हारी हिफ़ाज़त करे।’

बादशाह फ़ौरन महल में वापस आया और जाने की तैयारी करने लगा। उसने मुसाफ़िरों का लिबास पहन लिया। उसके ऊपर एक गरम लिबास पहना जिसे ‘पैरहन’ कहा जाता है।

उसने क़ीमती नग़ीने अपने लिबास की जेबों में टांक लिये, सिक्के थैले में रख लिये। अगली सुबह जल्दी ही वह महल से निकलकर झेलम दरिया की तरफ़ चल पड़ा। रास्ते में उसकी उत्सुकता बढ़ी और उसने साधु का दिया हुआ कागज़ निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया।

‘अजनबी इलाके में किसी पर भरोसा न करो। सिर्फ़ उन दोस्तों पर ऐतबार करो जिन्होंने परेशानी में तुम्हारा साथ दिया है। बुरे वक़्त में रिश्तेदार भी अपने नहीं होते।’ बादशाह ने सोचा कि उसे साधु की नसीहतों को याद कर लेना चाहिये। वह उन्हें याद करता हुआ चलता रहा। अगली सुबह होने तक वह अपनी सल्तनत से बाहर निकल चुका था और पहाड़ के दूसरी तरफ़ पहुँच गया। उसने देखा कि पहाड़ पर हरियाली थी और हल्के गुलाबी फूल खिले थे। चारों तरफ बड़े-बड़े दरख़्त लगे थे और सुबह के सूरज की मद्धिम रोशनी फूलों और हरियाली पर पड़ रही थी।

‘वाक़ई कश्मीर जन्नत है’ उसने सोचा और आराम करने वहीं बैठ गया। साथ लाया हुआ खाना खाने लगा। खाने के पश्चात् वह थोड़ी देर लेट गया। जब उठा तो काफ़ी ताज़गी महसूस की। बादशाह ने अपने भविष्य के बारे में ग़ौर किया और एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ा जो उसे हुकूमत और फरमान के अमल के दूसरी तरफ़ ले जाए। वह चलता रहा। चलते-चलते एक कस्बे में पहुँचा। दूरी पर एक मकान नज़र आया जो शायद सराय थी।

बत्तियाँ जल रही हैं, इसका मतलब है अब तक कोई जाग रहा है। मेरा ख़याल है मुझे यहाँ रात गुज़ारनी चाहिए।’ सोचते हुए उसने दरवाज़े पर पहुँचकर दस्तक दी।

दरवाज़ा निहायत ही बदसूरत औरत ने खोला, जिसे देखकर बादशाह ने बड़ी नफ़रत महसूस की, लेकिन वह इतना थक गया था कि आगे जाने की हिम्मत नहीं रही। उसने बड़ी मुश्किल से सवाल किया&‘क्या मैं यहाँ रात बसर कर सकता हूँ?’

‘अंदर आओ’ औरत ने मुस्कराकर जवाब दिया और एक कमरे की तरफ़ ले गई। कमरा बेहद छोटा-सा था लेकिन बहुत साफ़-सुथरा था।

‘तुम यहाँ सो सकते हो, मुझे यक़ीन है कि तुम्हें आराम मिलेगा। मेरी सराय इसी बात के लिये मशहूर है’ वह औरत मुस्कराते हुए बोली और कमरे से चली गई।

बादशाह बिलकुल बेहोश होने वाला था, लेकिन उसे अचानक साधु की नसीहत याद आ गई। उसने पलंग से चादर उठाकर देखी तो वह देखकर हैरान रह गया। पलंग के नीचे एक संदूक-सी थी जो ताबूत लग रही थी।

‘ओ ख़ुदा! अगर मैं इस बिस्तर पर लेट जाता तो मर जाता, शुक्र है कि मैंने अपने उस्ताद की बात पर अमल किया और बिस्तर उठाकर देख लिया। मैं उस मनहूस औरत को नही छोडूँगा।’

उसने गुस्से से सोचा और दाँत पीसते हुए अपना ख़ंजर बाहर निकाला। वह ख़ंजर लेकर उस औरत पर झपटा और उसे क़त्ल कर दिया। थोड़ी देर वहाँ आराम करके वह आगे चल पड़ा।

दो दिन बाद वह एक गाँव में पहुँचा जहाँ उसके बचपन का दोस्त रहता था। उसने अपने दोस्त को पैग़ाम भेजा था कि वह उससे मिलना चाहता है। उसका दोस्त यह सुनते ही बादशाह से मिलने आया।

‘ओ मेरे ख़ुदा, मैं तुम्हें बिलकुल नहीं पहचान सकता था। तुम इतने दुबले, कमज़ोर और थके लग रहे हो। चलो मेरे घर चलकर आराम करो।’

बादशाह अपने दोस्त के घर चला गया जहाँ उसकी बहुत आवभगत हुई। दोनों दोस्त अपने बचपन की बातें करते रहे। फिर बादशाह ने उसे सारी बात बताई।

‘लेकिन तुम्हें इस तरह नहीं करना चाहिए, हमें कुछ और सोचना चाहिए।’ उसके दोस्त ने कहा।

‘मैं क़रीब की सल्तनत में जाकर मदद लेना चाहता हूँ ताकि अपने वज़ीरों की साज़िशों से लड़ सकूँ।’ बादशाह ने अपने दोस्त को बताया।

इसी तरह तीन महीने गुज़र गए। अब बादशाह ने जाने का इरादा किया। ‘तुम पैदल मत जाओ, मेरा घोड़ा ले लो।’ दोस्त ने आग्रह किया।

बादशाह घोड़े पर सवार होकर रवाना हुआ। रास्ते में उसे फिर साधु की नसीहत का ख़याल आया कि सिर्फ़ उन दोस्तों पर भरोसा करो जो मुश्किल में काम आए हो।’ उसने सोचा कि यह दोस्त ऐसा ही है और मैं उस पर हमेशा भरोसा कर सकता हूँ।

थोड़ी देर बाद वह अपने चाचा की सल्तनत में पहुँच गया। जब वह बादशाह के दरबार में गया तो बादशाह ने उसके हुलिये को देखकर गर्दन हिलाई&‘तुम मेरे भतीजे नहीं हो। मेरे भतीजे तो बहुत रईस हैं’ कहकर बादशाह को बाहर निकलवा दिया।

‘यह मेरा अपना चाचा था जिसने इतनी बेहूदा हरक़त की है। साधु ने कितनी सच्ची बातें की हैं’, बादशाह ने सोचा। उसने हिम्मत नहीं हारी और पड़ोस की रियासत में गया। वहाँ के बादशाह ने उसके साथ बहुत अच्छा सुलूक किया और कहा&‘आपकी मदद करके मुझे बहुत ख़ुशी होगी और मेरी इज्ज़त अफ़ज़ाई होगी। मेरी पूरी फ़ौज आपकी मदद के लिये हाज़िर है। ख़ुदा करे आप विजयी हों।’

बादशाह ने फ़ौरन उस फ़ौज की मदद से कश्मीर पर हमला किया। घमासान जंग हुई जो सात दिन तक ज़ारी रही। आख़िरकार बाग़ियों को शिकस्त मिली। उसने बादशाह की फ़ौज को इनाम और इज्ज़त से नवाज़ा और वापस भेज दिया।

बादशाह ने मददगार दोस्त को अपना वज़ीर बनाया और अपने गुरु के पास आशीर्वाद लेने पहुँचा। बदक़िस्मती से गुरु सख़्त बीमार था और आखिरी साँसें ले रहा था।

‘बच्चे! ख़ुदा करे तुम्हें लंबी उम्र मिले और आराम व सुकून की ज़िन्दगी गुज़ारो। मैं तुम्हारी पुर-अमन और पुरसुकूँ सल्तनत में मरना पसंद करूँगा।’ यह कहकर साधू ने आख़िरी हिचकी ली और आँखें मूँद ली।

बादशाह ने उसकी एक यादगार इमारत बनवाई जो वहाँ के लोगों के लिये एक पवित्र स्थान बन गई।

स स स

लेखक परिचय

गर्शिया मारकुएज

जन्म : मार्च 6, 1927 कोलंबिया में&अप्रैल 17, 2014 मेक्सिको शहर में अंतिम दिन गुज़ारे। वे उपन्यासकार, कहानीकार, एक बेहतरीन स्क्रीन लेखक थे। बीसवीं सदी के रौशन मिनार रहे, स्पैनिश और अँग्रेजी में लिखने में वे सिद्धस्त थे। उनकी कहानियाँ जन-जीवन का सजीव चत्रण हैं। वह मजदूरों और मज़लूमों के साथी रहे। कोलंबिया उनका प्रवास क्षेत्र रहा। उनका कहना था.‘‘सब कुछ जो मैंने सोचा है, जो कुछ मैने जिया है वह मेरी किताबों में है। 1972 में उन्हें Neustadt International Prize for Literature और 1982 में Nobel Prize for Literature हासिल हुआ। उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास ‘A hundred years of solitude (1969) है। The Autumn of the patriarch (1975) Love in the time of cholera (1985) में स्पैनिश व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुए।

नसीब अलश्द सीमाब

किताब का नाम : अंजीर के फूल

बलोचिस्तान के अफ़साने (उर्दू अनुवाद व सम्पादनः अफ़्ज़ल मुराद)

नसीब अलश्द सीमाब पिशिन (Pishin) में पैदा हुए, पशतु ज़ुबान के अफसाना निगार हैं। बलूचिस्तान में पशतु ज़बान के लेक्चरर है।

पता : पशतु डिपार्टमेंट, जामह, बलूचिस्तान।

वहीद ज़हीर

किताब का नाम : अंजीर के फूल

बलोचिस्तान के अफ़साने&उर्दू अनुवाद व सम्पादनः अफ़्ज़ल मुराद

अफ़्ज़ल मुराद एक शायर, अफसाना निगार, उर्दू, बराहवी, और बलूची के हस्ताक्षर लेखक हैं। अकादमी अदबयात से जुड़े रहे। पता : अकेडमी ओडाबयात, क्वेटा, पाकिस्तान

वहीद ज़हीर, जन्मः 3 जून 1921 क्वेटा में। बराहवी और उर्दू के अफसाना निगार, बराहवी में उनका कहानी संग्रह&‘शानज़ह’ मंजरे आम पर तव्वजू पा चुका है। बलूचिस्तान की हुकूमत से जुड़े हुए हैं। पताः करीम साइकिल वर्क्स, प्रिंके रोड, क्वेटा।

आरिफ जिया

किताब का नाम : अंजीर के फूल

बलोचिस्तान के अफ़साने&उर्दू अनुवाद व सम्पादनः अफ़्ज़ल मुराद

आरिफ़ ज़िया असली नाम मुहम्मद आरिफ़, 1953 में क्वेटा में पैदा हुए। बराहवी (बलूचिस्तान की भाषा) के अफसाना निगार। उनका एक संग्रह ‘‘ज़राब’’ इसी भाषा में प्रकाशित हुआ है। पता : पोस्ट बॉक्स 21, क्वेटा

फरीदा राज़ी

फरीदा राज़ी ईरानी कहानी निगार हैं। उनकी कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया है। वे अपने आसपास के किरदारों को केन्द्रित करते हुए कहानी लिखती हैं, जो जीवन से सन्दर्भ रखते हैं।

भगवान अटलाणी

लारकाणा, सिंध। राजस्थान अकादमी के पूर्व अध्यक्ष। हिन्दी में 12, सिंधी में सात पुस्तकें प्रकाशित। इनमें चार उपन्यास, चार कहानी संग्रह, चार एकांकी संग्रह। दो संग्रह अनुवाद किये हैं। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा वात्सल्य बाल साहित्य पुरस्कार की सिंधी सलाहकार समिति के पूर्व संयोजक, 26 पुरस्कार और 50 से अधिक सम्मान।

पता : डी/183, मालवीय नगर, जयपुर-302017

खुशवंत सिंह

जन्मः 2 फरवरी 1915 हुदाली, पंजाब में हुआ (अब पाकिस्तान में)। पेशे से वे वकील रहे, लाहौर कोर्ट में आठ साल काम किया। लंदन में भी पत्रकारिता से जुड़े रहे। वे एक जाने माने पत्रकार, लेखक, व्यंगकार, कहानीकार, नॉवल निगार, और इतिहास के दायरे के हस्ताक्षर दस्तावेज़ रहे। कई साल अनेक पत्रिकाओं व अखबारों के सम्पादक रहे। 1980-1986 तक उन्होंने राज्यसभा में अपनी सेवाएं दीं। 1974 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से नवाज़ा गया। उनके प्रकाशित साहित्य का विस्तार वसीह है। उनका मशहूर नॉवल ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ 1956 में प्रकाशित हुआ। अन्य संग्रह थे&‘हिस्ट्री आफॅ सिख, रंजित सिंघ (1963), ब्लैक जैसमिन(1971), दिल्ली (नॉवल-1990), वुमेन व मेन इन माइ लाइफ (1995), नावल द् सनसेट क्लब (2010) में और अनेक संग्रह प्रकाशित हुए। उनका देहान्त मार्च 20, 2014 में हुआ।

इब्ने कंवल

उर्दू अदब के विस्तार में उनका योगदान उल्लेखनीय है। पुस्तकें/ मोनोग्राफ-1984 से 2015 तक उनके 22 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कृतियाँ हैं&तीसरी दुनिया (लघु कथाएँ), बंद रास्ते (लघु कथाएँ), हिन्दुस्तानी तहजीब&एक मुतालिया, रियाज़-ए-दिलरुबा (शोध), आओ उर्दू सीखें, दास्तान से उपन्यास तक (आलोचना)-एस एन भाषा अकादमी, दिल्ली से प्रकाशित अनेक ग्रंथावली उर्दू में उनके नाम को रौशन करती हुईं। साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें हासिल पुरस्कार&हरियाणा उर्दू अकादमी 2007 उर्दू अकादमी फिक्शन पुरस्कार 2006, दिल्ली उर्दू अकादमी पुरस्कार 2004, बेस्ट कथा लेखक 2001 के लिए 4. सर सैयद मिलेनियम अवार्ड, पी से 5. उर्दू अकादमी, लखनऊ, 1985, बिहार उर्दू अकादमी, पटना, 1985 द्वारा सम्मानित, पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी, कोलकाता, 1985 द्वारा सम्मानित, दिल्ली उर्दू अकादमी बुक अवार्ड 2010, दिल्ली उर्दू अकादमी बुक पुरस्कार 2012, हरीश चंद्र कथपलिया दिल्ली विश्वविद्यालय, 1979 तक पुरस्कार!

पता : 36-3 फ्लोर, लेन न. 2, जोहरी फार्म, नूर नगर, जामिया नगर, नई दिल्ली-110025 कार्यालय : प्रो. इब्ने कंवल, HOD, दिल्ली वि.वि.

Tel=01127666627, 27667725,1303 , Mob.:09891455448

email id: ibnekanwal@yahoo.com.

जगदीश

गोश्त का टुकड़ा&ताशकंद (जुबेकिस्तान)

उनका जन्म 1924 में जुबेकिस्तान में हुआ, बचपन वहीं बीता। पढ़ाई यू.के. में सम्पन्न की और वहीं कई वर्षों तक उनिवेर्सिटीएस में चान्सेलर के तौर स्थापित रहे। आपने वतन के, अपने इलाक़े में हो रही नाइंसाफ़ियों को उन्होंने उर्दू भाषा में ज़बान दी। अनेक संस्थाओं से सम्मानित अपनी अभिव्यक्त कहानी किस्सों को 3 संग्रहों में समोहित कर गए। हर कहानी में जन-मानस की कथा व्यथा दर्ज है। यही उनकी असली पहचान है।

बलवंत सिंह

जन्म : 1915 अमृतसर ज़िला, बावा बलवंत के नाम से ज्यादा जाने जाते थे। वे अपने समय के जाने माने लेखक और कवि रहे। मोहम्मद इकबाल की संगत में उन्होने उर्दू काव्य लिखना शुरू किया, पर बाद में धीरे धीरे अपनी मात्र भाषा पंजाबी में लिखने लगे। उनके पहले उर्दू संग्रह ‘शेर-ए-हिन्द’ पर ब्रिटिश गवर्नमेंट ने अपनी ओर से बंदिश लगा दी थी। उनके काव्य संग्रहों में शामिल थे ‘अमर गीत, महा नाच, ज्वालामुखी, सुगंध समीर और बंगलादेश’। उनका ‘किस तराँ दे नाच’ नामक आलेखों का संग्रह प्रकाशित हुआ।

वे जून 1972, न्यू दिल्ली, भारत में गुज़र गए। उनके बारे में उनके साहित्य के सिवा और कोई सूत्र व सुराग नहीं मिलता है। नेशता, पंजाब का बेहद पुरातन गाँव आजकल खंडहरों के रूप में पाया जाता है। उनकी दो बहिनें थीं पर वे गुमशुदा हैं।

अरुणा जेठवाणी

एक जाना माना नाम, क्षिशाशास्त्री, समृद्ध लेखिका, एक अनुवादक व चित्रकार- बहुगुणी शख्सियत की धनी, अवकाश प्राप्त-मीरा कॉलेज, पुणे की प्राध्यापिका, NCPSL, Ministry of HRD, DELHI की उपाध्यक्ष हैं।

अपनी कलम और कार्य से सिंधी समाज की सेवाओं में अपना योगदान दे रही हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में हैं- तीन नॉवल, दो काव्य संग्रह, प्रांतीय कहानियों का अनूदित संग्रह, और महान अदीब कविवर अब्दुल लतीफ पर लिखा संग्रह ‘द सूफी’। उन्होने दादा जे.पी. वासवानी की जीवनी लिखी है जिसके डॉ. करण सिंह के पुरोवक हस्ताक्षर के रूप में संग्रहित हैं। साधू टी एल वासवानी की आत्मकथा का अनुवाद, ‘दादा उनके अपने शब्दों में’ पुस्तक का अँग्रेजी में ECSTASY and EXPERIENCES, A mystical journey’ नाम से अनुवाद किया है। ‘‘Another Love, Another Key (AGI Award-2005), दूसरा नॉवेल Dance O’ Peacock, और At The Wedding प्रथा, प्यार और आगम के संगम का प्रतीक एवं बहुचर्चित नॉवेल रहे हैं। उनके लघुकथाओं के संग्रह ‘‘ब्रिज ओं रिवर कृष्णा’’ ने राजाजी कॉम्पटिशन में पहला इनाम हासिल। और उनका मराठी में किया हुआ अनुवाद चांदेरी घुरते, सोनेरी आकाश प्रकाशित है। रचनाएँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। अनेक बार पुणे में उनका आदर सम्मान हुआ है।

संपर्क: H-2 प्लूटो सोसाइटी, कल्याणी नगर, पुणे-6, फोनः 0986060733

रेणु बहल

जन्म 6 अगस्त 1958 कपूरथला, पंजाब

एम.ए. (बी-एड) एम.ए. उर्दू, पी.एच-डी.&‘इसमत चुगताई के अफसानों का फ़ानी व फ़िक्री जायज़ा’ पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ (2000)। उनके प्रकाशित कहानी संग्रह है : 1. आईना (2001), यू.पी. अकादमी से पुरस्कृत, 2. आँखों से दिल तक (2005), 3. कोई चारा साज़ होता (2008) यू.पी. उर्दू अकादमी से पुरस्कृत, 4. खुशबू मेरे आँगन की (2010) बिहार उर्दू अकादमी से पुरस्कृत, 5. बदली में छुपा चाँद (2012), 6. खामोश सदाएँ (2013), राजिंदर सिंह बेदी पुरस्कार, भाषा विभाग पंजाब तथा बिहार उर्दू अकादमी से पुरस्कृत, 6. हिंदी व उर्दू पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित होती हैं। ‘कस्तूरी’ नाम का कहानी-संग्रह हिंदी में प्रकाशित। अनेक राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय सम्मेलन व अधिवेशनों में भागीदारी। टी.वी. रेडियो पर कहानी पाठ।

सम्मान : लाला जगत नारायण अवार्ड (अक्तूबर 2003), अमृता प्रीतम सरस्वती सम्मान अवार्ड (2010)

संपर्क : 1505, सैक्टर 49-बी, चंडीगढ़-160047, फोन : 0978155

डॉ. नइमत गुलची

किताब का नाम : अंजीर के फूल&बलोचिस्तान के अफ़साने (उर्दू अनुवाद व सम्पादनः अफ़्ज़ल मुराद)

डॉ. नइमत गुलची 18 अप्रैल, 1929 को मकरान में पैदा हुए। पेशे से डॉक्टर। बलूची ज़बान में अफसाने पर बख़ूबी क़लम आज़माई है।

पता : डायरेक्टर जनरल हैल्थ बलूचिस्तान, क्वेटा

मैक्सिम गोर्की

मक्सीम गोर्की का जन्म 28 मार्च 1868&18 जून 1936 Moscow में निज़्हना नोवगोरोद (आधुनिक गोर्की) नगर में हुआ। 1892 में गोर्की की पहली कहानी ‘‘मकार चुंद्रा’’ प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। ‘‘बाज़ के बारे में गीत’’ (1895), ‘‘झंझा-तरंगिका के बारे में गीत’’ (1895) और ‘‘बुढ़िया इजेर्गील’’ (1901) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हो गई थीं। दो उपन्यासों, ‘‘फोमा गोर्देयेव’’ (1899) और ‘‘तीनों’’ (1901) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। गोर्की ने अनेक नाटक लिखे, जैसे ‘‘सूर्य के बच्चे’’ (1905), ‘‘बर्बर’’ (1905), ‘‘तह में’’ (1902) आदि, जो बुजुर्आ विचारधारा के विरुद्ध थे। नाटक ‘‘शत्रु’’ (1906) और ‘‘माँ’’ उपन्यास में (1906) गोर्की ने बुजुर्आ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वर्णन किया है। ‘‘मेरा बचपन’’ (1912-13), ‘‘लोगों के बीच’’ (1914) और ‘‘मेरे विश्वविद्यालय’’ (1923) उपन्यासों में गोर्की ने अपनी जीवनी प्रकट की। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया। गोर्की सोवियत लेखकसंघ के सभापति थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के उपासक थे।

. बा. मोकाशी

द. बा. मोकाशी का जन्म 1915 में हुआ। मराठी साहित्य के सिद्धस्त हस्ताक्षर, जिनके ज्ञान का सागर एक पैमाना है। उनकी कहानियों के संग्रह प्रकाशित हुए वे हैं : लामण दावा.1941/ कथा मोहिनी.1953/ आमोद सनासी आली &1960। बाल साहित्य पर भी उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हुईं। ‘‘आमोद सनासी आली’’ संग्रह पर महाराष्ट्र सरकार की ओर से इनाम व सम्मान मिला।

यह मराठी कहानी सिन्धी साहित्यकार निर्मल वासुदेव ने सिन्धी में अनुवाद की है, जिसका मैंने हिन्दी अनुवाद किया है।

दीपक कुमार बुड्की

जन्मः 15 फ़रवरी 1950, श्रीनगर, कश्मीर में।

कश्मीर विश्वविद्यालय से एम.एस-सी., बी.एड., अदीब-ए-माहिर (जामिया उर्दू, अलीगढ़), नेशनल डिफेंस कॉलेज, नई दिल्ली। देश के कई विभागों में, आर्मी डाक विभाग में अपनी सेवाएं दी हैं। श्रीनगर की पत्रिकाओं के लिए कार्टूनिस्ट रहे। श्रीनगर में ‘‘उकाब हफ्तेवार’ के सहकारी संपादक के रूप में कार्य किया है।

उर्दू में 100 कहानियाँ भारत, पाकिस्तान, और अन्य यूरोप के देशों में छपी हैं। पुस्तकों पर समीक्षाएं व उनकी पुस्तकों की समीक्षाएं ‘‘हमारी जुबान’’ में छपती रही हैं। प्रकाशित पुस्तकों की सूची कुछ इस तरह हैं&कहानी संग्रह-अधूरे चेहरे (2005), चिनार के पंजे के तीन संस्करण, रेज़ा रेज़ा हयात, रूह का कर्ब, मुट्ठी भर रेत। उनकी अनेक कहानियाँ अंग्रेजी, कश्मीरी, मराठी, तेलुगु में अनुदित हुई हैं। अनगिनत संस्थाओं व शोध विद्यालयों से सम्मानितः राष्ट्रीय गौरव सम्मान व कालिदास सम्मान 2008 में हासिल है।

पता : ए-102, एस.जी. इम्प्रैशंस, सैक्टर 4 बी, वसुन्धरा, गाजियाबाद-201012

फोन : 9868271199, ईमेल : deepak.budki@gmail.com

डॉ. अली दोस्त बलूच

किताब का नाम : अंजीर के फूल

बलोचिस्तान के अफ़साने (उर्दू अनुवाद व सम्पादनः अफ़्ज़ल मुराद)

डॉ. अली दोस्त बलूच 10 मई 1955 को पंजगुर (Panjgur) में पैदा हुए। बलूची ज़बान के शायर, कालम निगार हैं।

पता: M C Complex, Doctor’s Flats, Bolan Medical College, Queta.

हेनरी ग्राहम ग्रीन

जन्म : इंग्लैंड में 2 अक्तूबर 1904 में हुआ और उनका अंतकाल,

3 अप्रैल 1991 स्विट्ज़रलैंड में हुआ। उनका लेखन काल 1925-1991 तक रहा। वे जाने माने मशहूर अंग्रेज़ लेखक, नाटककर एवं बेहतरीन समीक्षक भी थे। उनका पहला काव्य 1925 में छपा व पहला नॉवल ‘थे मैन वीदिन’ 1929 में प्रकाशित हुआ। उसके उपरांत उनके दो संग्रह ‘The name in action’ (1930) and ‘Rumor at Nightfaal’ (1932) बहुत चर्चित रहे। 67 सालों के लेखन में उनके 25 नॉवल प्रकाशित होने के बाद भी उन्हें कभी Nobel Prize for Literature नहीं दिया गया। उनका पहला नाटक ‘The Living Room’ 1953 में रचा गया। Britain की ओर से उन्हें ‘Order Of Merit’ हासिल था।

हमरा ख़लीक़

हमरा ख़लीक़ का जन्म 1938, दिल्ली में हुआ। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से बी.ए., बी. एड. और एल.एल. बी किया। उनके अनेक अफसाने, और अनुवाद कार्य प्रकाशित हैं। रुसकिन बॉन्ड के नॉवेल ‘कबूतरों की परवाज़’ का अनुवाद भी प्रकाशित है। उनके पिता रबिया पिनहाँ उर्दू, फारसी के साहिब दीवान शायर थे।

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रचनाकार: उम्दा नसीहत - प्रांत-प्रांत की कहानियाँ - संकलन व अनुवाद - देवी नागरानी
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