नारी भावों की सूक्ष्म विवेचना है पूनम शुक्ला जी की कविताएँ पूनम शुक्ला की पृष्ठभूमि विज्ञान की रही है, इसके साथ सूचना प्रौद्योगिकी की विशद ज...
नारी भावों की सूक्ष्म विवेचना है पूनम शुक्ला जी की कविताएँ
पूनम शुक्ला की पृष्ठभूमि विज्ञान की रही है, इसके साथ सूचना प्रौद्योगिकी की विशद जानकारी भी है, मगर मूलतः आप रचनाधर्मी हैं, कवयित्री हैं. अब तक आपके दो कविता संग्रह 'सूरज के बीज' व 'उन्हीं में पलता रहा प्रेम' प्रकाशित हुए हैं. 'उन्हीं में पलता रहा प्रेम' संग्रह की रचनाएँ मैंने पढ़ी हैं. इस संग्रह की अधिकांश रचनाएँ महिलाओं के भावों-अनुभावों व संचारी भावों के इर्द-गिर्द घूमती हैं. नारी का शोषण जन्म से मृत्यु तक किसी न किसी रूप में होता ही रहता है. हमारा समाज इतना ही निर्दयी है कि भले ही संसार की उत्पत्ति में नारी का सर्वाधिक योगदान हो, मगर अहमियत उसकी ही होती है. 'खबर' रचना में बेटे और बेटी के जन्म की मनोदशा को कितनी ख़ूबी के साथ निरूपित किया है-
रात के नौ बजे / बहु को ले गए अस्पताल / रात तीन बजे / बेटे का जन्म हुआ /
रात में ही / तीन बजकर पाँच मिनट पर / गाँव से यहाँ आ गया फोन / बेटा हुआ है.
दो साल पहले / बेटी हुई थी / बीस दिनों बाद / किसी और के मुँह से / यह खबर सुनी थी....
जीव विज्ञान में बी.एससी. हैं आप. 'शरीर धरने का दंड' कविता में जीव विज्ञान के माध्यम से यह बात सिद्ध की है कि-
शारीरिक संरचना के अनुसार / हम ज्यादा संतुलित थीं और अग्रणी /
ऐसा लिखा था / जीव विज्ञान की पुस्तक में
आगे इसी रचना में लिखती हैं-
यह शरीर धरने का दंड ही तो है / कि घर में रखते हुए सबका खयाल /
हम पा जाती हैं लड़कों से अधिक अंक / फिर भी असमय ही /
रोक दी जाती है हमारी पढ़ाई / कि कहीं हम सीख न जाएँ गुर / खुद भी खयाल रखने का.
नारी की प्रगति में पुरुष ही बंधक है. वो नहीं चाहता कि नारी उस पर शासन करे. अतः बीच में ही काट-छाँट करता रहता है. कदम-कदम पर स्पीड-ब्रेकर खड़े करता रहता है.
'नहीं लाऊँगी बोनसाई' रचना में इस बात को अभिव्यक्ति दी गई है-
प्रकृति ने तो नवीं कक्षा में ही / सौंप दी थी पाँच फुट छह इंच की लंबाई/
फिर भी रास नहीं आई / मेरे इर्द-गिर्द के लोगों को मेरी ऊँचाई /
छाँट दिया गया हर नई सोच की शाखा को / जो प्राकृतिक रूप से / बढ़ने की बाट जोह रह थी.
और अंत में कवयित्री बोनसाई न लाने की कसम खा ही लेती है-
नहीं, अब नहीं लाऊँगी बोनसाई का एक भी पौधा /
समझ आ गई है अब मुझको उसकी पीड़ा....
पुरुषों को महिलाओं का न तो ज्यादा पढ़ना और न ज्यादा बढ़ना यहाँ तक कि ठीकठाक वस्त्र पहनना भी रास नहीं आता. स्त्री खुलकर न तो हँस सकती है और न ही रो सकती है. 'छुपकर' कविता में इस बात को व्यक्त करती हैं कवयित्री-
वे हँसती हैं / किवाड़ ओटकर / सांकल लगाकर / पिछवाड़े अहाते में जाकर /
क्योंकि सामने हँसना / यानी किसी विवाद में फँसना / आ जाना किसी शक के दायरे में..
नारी कहने को तो गृहस्वामिनी है मगर सिवाय खाना बनाने और बर्तन माँजने के उसका घर में और कुछ काम नहीं है.
'मैं गृहस्थन – गृहविहीन' कविता में कवयित्री कहती हैं-
मैं गृहस्थ / घर बनाने वाली / एक स्त्री / गृहविहीन हो गई हूँ
बटियाँ बेटों से न केवल पढ़ाई-लिखाई में, सोच में बल्कि समझदारी में भी बहुत आगे होती हैं. 'चार स्त्रियां' कविता में इस बात को शब्द रूप दिया है-
तीनों स्त्रियाँ एक साथ बोल उठीं / बिटिया बहुत समझदार है /
अच्छा हुए उसे यह बात अभी से समझ आ गई / चौथी खड़ी-खड़ी सोचती रह गई /
स्त्रियाँ बनने से पहले ही / बेटियाँ इतनी समझदार क्यों होती हैं
इस संग्रह की शीर्षक कविता 'उन्हीं में पलता रहा प्रेम' उत्कृष्ट रचना है. इस कविता की शब्द बुनावट बेजोड़ है-
अपशब्दों ने कानों को सुना / गीतों ने सुना होठों को / हस्तलिपि को हाथों ने पढ़ा /
हृदय ने पढ़ ली वेदना / आँखों ने आँसुओं को पढ़ा / चूड़ियों ने कलाईयों को /
देर रात तक तैरती रहीं प्रतिलिपियाँ / अंततः हृदयलिपि पहचान ली गई...
x – x – x – x
सूरज दूर से झाँकता रहा / बोए गए बीज नफ़रत के / उन्हीं में पलता रहा प्रेम
महिलाओं के अतिरिक्त कुछ रचनाएँ इतर विषयों पर भी लिखी गई हैं. 'नापसंद' कविता के माध्यम से हरेक से नफ़रत करने वालों को एक संदेश दिया गया है.
नफ़रत करने वालों / नफ़रत करने से पहले / प्रकृति के इस नियम पर /
एक नज़र जरूर डाल लेना / जिस भी विषयवस्तु, व्यक्ति से /
तुम बेशुमार नफ़रत करते हो / कहीं तुम इतना न हावी हो जाए /
कि एक दिन वह तुम्हारी पहचान बन जाए.
'चुप्पी' कविता के माध्यम से चुप्पी के मनोभाव से बारीकी से व्यक्त किया गया है-
शिकारी शिकार से पहले हो जाते हैं चुप /
बाबा रहते हैं अपनी रोशनी की उजास पर चुप
कवयित्री ताजमहल को प्रेम का प्रतीक नहीं मानती. 'मत कहो इसे प्रेम का प्रतीक' कविता में वे कहती हैं-
मत कहो इसे प्रेम का प्रतीक / यह बस मकबरा है
जिसमें मरे हुए लोगों की बू आती है.
नारी-विमर्श की तो यह अनुपम कृति है ही, अन्य विषयों को भी गंभीरता से अभिव्यक्त किया गया है.
जहाँ तक छंद विधा का प्रश्न है इस संग्रह की लगभग सभी रचनाएँ अछांदस हैं लेकिन रचना प्रक्रिया बहुत अच्छी है. भाषा बड़ी ही प्रांजल और परिमार्जित है. अकादमिक लोगों की भाषा तो है ही, लेकिन आम पाठकों के लिए भी दुरूह नहीं है. वर्तनी की शायद ही कोई अशुद्धि हो पूरी किताब में.
मैं कवयित्री पूनम शुक्ला को इस अनुपम काव्य संग्रह 'उन्हीं में पलता रहा प्रेम' के लिए बधाई देता हूँ. अकादमिक विद्वज्जनों / अध्येताओं के लिए यह बहुत अच्छी कृति है. हिंदी में अब इस तरह की गंभीर रचनाएँ कम ही आ रही हैं. मैं कामना करता हूँ कि कवयित्री इस दिशा में आगे बढ़ती रहेंगी और नई कृति के साथ उपस्थित होंगी.
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. माणिक मृगेश
कविता संग्रह - उन्हीं में पलता रहा प्रेम
कवयित्री - पूनम शुक्ला
प्रकाशन - आर्य प्रकाशन मंडल
किताबघर प्रकाशन का उपक्रम
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