01- क्यों चैन नहीं मिलता, दिल को संभाला जाए अब परिंदे को दरख्तों से ना निकाला जाए मानवता की राह में ,जब सरहदें बाधक बनें तो क्यों ना सरह...
01-
क्यों चैन नहीं मिलता, दिल को संभाला जाए
अब परिंदे को दरख्तों से ना निकाला जाए
मानवता की राह में ,जब सरहदें बाधक बनें
तो क्यों ना सरहदों के ,हदों को ही टाला जाए
हर परिंदे को प्यारा ,होता है उसका घोंसला
आँधियों से कह दो कि ,घोंसला संभाला जाए
इस तरह की आबोहवा, तैयार हो इस सदी में
सकूँ से सब के , हलक तक निवाला जाए
खुदा ने दिल दिया है ,मोहब्बत के पैगाम को
आशिकों से कह दो कि, नफरत ना पाला जाए
मोहब्बत के चराग़ जले, इस कदर अंजुमन में
के बस्ती के आखिरी घर, में भी उजाला जाए
02-
सच तो यही है
जब सौ दो सौ साल बाद
आपकी तनें अपनी जड़ों को
तलाशेंगी तो उन्हें
आपके कर्मों का एहसास होगा
आपका का भौतिक संसार से
रुखसत हो जाना
कभी भी इस बात का द्योतक नहीं है कि
आपका यही अंत हो गया
क्योंकि आप तो अपने आने वाली
नई पौध के नसों में भी विद्यमान होंगे
और उन्हें सौ दो सौ साल बाद
गर्व हो अथवा ग्लानि
यह तो आज आपके हाथ में है
03-
सच की आग बुझने मत देना
किसी का भाग बुझने मत देना
जिससे रोशन हों हजारों मकां
वो चिराग बुझने मत देना
बड़ी शिद्दत से उम्मीद लगी है
वो फ़रियाद बुझने मत देना
तारा हूं जेहन में टिमटिमाऊंगा
बस तुम याद बुझने मत देना
वादा करो नाथ आखिरी मोहरा हैं
कोई घर मेरे बाद बुझने मत देना
04-
पास आना दुर जाना
जब भी मिलना, मुस्कुराना
जिंदगी के सारे शिकवे
हमसे करना भूल जाना
नीची ना हों ये निगाहें
इस तरह नजरें मिलाना
सामने से वार करना
खुलके मुझपे मुस्कुराना
हम सहें ,जिन्दा रहें
उतने नखरे ही दिखाना
साथ मेरा छोड़ देना
तब ना दिलको याद आना
05-
पद बढ़ेगा, कद बढ़ेगा।
तब हमारा, हद बढ़ेगा।।
आवारा मुझको कहने वालों वक्त हो तो ताड़ लेना।।
ज़द बढ़ेगा, मद बढ़ेगा।
लोगों में तब गद बढ़ेगा।।
पथ की करनी जब खुलेगी होनी का तब आड़ लेना।।
लोभ होगा, क्षोभ होगा।
मन में तो विक्षोभ होगा।।
पाप पथ पे पाँव पहुँचे , उससे पहले बाड़ लेना।।
वक्त होगा , सख़्त होगा।
पास ना दरख़्त होगा।।
सृष्टि को तब तुम बचाना धर्म झंडा गाड़ लेना।।
06-
उम्र का कोई भी तकाजा नहीं था
सियासत का हमें अंदाजा नहीं था
मुझ पर भी इश्के हुश्न मंडराता यारों
पर खुदा ने दौलत से नवाजा नहीं था
हम रोक ना पाए और वो चले भी गए
मोहब्बत के घर में दरवाजा नहीं था
उसकी हर गलती को मैं सही ठहराऊँ
इश्के प्यान्दा था मैं कोई राजा नहीं था
07-
चट्टानों को चीखते, फौलादों को टूटते देखा है
दौलत के खातिर , अपनों को रूठते देखा है
ना करो जिक्र हमसे , शहर की शराफत का
भरे बज़्म आबरू, औलादों को लूटते देखा है
तुमने देखा होगा पत्थरों से, शीशा टूटते हुए
मैंने इस जहां में शीशे से,पत्थर फूटते देखा है
कौन कहता है इस जहां में,कि वो रहेगा हमेशा
महफूज रहने वाले साँसों को भी छूटते देखा है
"नाथ" भूलता नहीं है , मेरे आंखों से वो मंजर
जबसे आदमी को मौत के साये में झूलते देखा है
08-
वर्षों बीत गए हैं जिसको बनाने में
दूसरों की रोशनी से अपना घर सजाने में
अब हम तो पीने के काबिल ही ना रहे
खुदा ने देर कर दी , दरिया दिखाने में
इश्क का मौसम बस यूं ही गुजर गया
और हम मशरूफ रहे बहाने बनाने में
मेरा मरना महज इक इत्तेफाक नहीं
तुमने बहुत देर की थी मेरे पास आने में
'नाथ' बताओ हम बुलंदी पर पहुंचे कैसे
बरसों बीत गए ,बस उल्लू बनाने में
खुद में जी रहे हो मगर इतना याद रहे
वक्त को वक्त कहां लगता है मिटाने में
09-
भला उससे कैसे घर संभाला जाए
जब परिंदे को दरख्त से निकाला जाए
मानवता की राह में जब सरहदें बाधक बनें
तो क्यों ना सरहदों के हदों को ही टाला जाए
हर परिंदे को प्यारा होता है उसका घोंसला
आँधियों से कह दो कि घोंसला संभाला जाए
खुदा ने दिल दिया है मोहब्बत के पैगाम को
आशिकों से कह दो कि नफरत ना पाला जाए
मोहब्बत के चराग़ जले इस कदर अंजुमन में
के बस्ती के आखिरी घर में भी उजाला जाए
इस तरह की आबोहवा तैयार हो इस सदी में
सकूँ से सब के हलक तक निवाला जाए
क्यों चैन नहीं मिलता दिल को संभाला जाए
अब परिंदे को दरख्तों से ना निकाला जाए
10-
सहस्त्र पथ हों झूठ के ,पर एक पथ सत्य का
आदि से अनंत तक वो नित्य है वो नित्य था
याद कर असत्य की , है राह पर ही जो बढ़ा
फला फूला पला बढ़ा ,अनीति बेली जो चढ़ा
माना नहीं तुरन्त था ,पर एक दिन अंत था
भला कभी कहाँ रहा , वर्ष भर बसन्त था
बल से वो बली रहा,मन से वो छली रहा
असत्य पथ जो चला, लंका जला लंका जला
त्याग दो अधर्म नीति , ये कहाँ फली फूली
पल को राज कर लिया,अंत है सज़ा मिली
ना कोई तारे तोड़ दो , न नदी न धारे मोड़ दो
हज़ार पथ हों झूठ के , हजार पथ को छोड़ दो
11-
इस धरा को खूबसूरत बनाया है तूने,
करिश्मे से अपने सजाया है तूने,
गगन चांद तारे और सागर बनाया
पर्वत हिमालय बनाया है तूने |
तेरी बस्ती की करें कोई हिफाजत ,
बनाया इंसान को और दिया है इजाजत,
दया भाईचारे का संदेश देकर ,
जहां में इंसान को उतारा है तूने |
मगर आज इंसा~ इंसा के दुश्मन बने हैं,
एक दूजे के खून से इनके हाथ सने हैं,
अरे इस इंसान ने तुझे बांट डाला,
जिसे प्यार करना सिखाया था तूने|
दिन का आलम ऐसा, रात मंजर क्या होगा,
दिल में नफरत है इतनी की, खंजर क्या होगा,
कभी सोचता हूं की त्याग दूं ,इस जहां को,
क्योंकि जो हुआ ना नाथ तेरा, वह मेरा क्या होगा
मगर मोह माया में फसाया है तू ने।
इस धरा को खूबसूरत बनाया है तूने।।
- नाथ गोरखपुरी
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