आय की परिभाषा आय एक पारिश्रमिक हैं। श्रम अथवा सेवा के बदले मिलने वाली मजदूरी, वेतन, भत्ता आदि पारिश्रमिक कहलाता है।’ बस इतनी सी परिभाषा? लो,...
आय की परिभाषा
आय एक पारिश्रमिक हैं। श्रम अथवा सेवा के बदले मिलने वाली मजदूरी, वेतन, भत्ता आदि पारिश्रमिक कहलाता है।’
बस इतनी सी परिभाषा?
लो, और विस्तार से बता देता हूं।
आय, यानी मुद्रा या उसके अनुरूप वस्तुयें जो श्रम, सेवा अथवा पूंजीनिवेश से मिलती है और जिसे प्रतिदिन के खर्चों व उन्नति के लिए कमाया जाता है उसे आय कहते हैं। इनमें पूंजी निवेश, पेंशन, सोशल सिक्योरिटी, ब्याज भी सम्मिलित है। लेकिन सामान्यतः वेतन और मजदूरी को आय कहा जाता है। समझ गये?’
भीख मांगना भी आय है, चोरी करना भी आय है और दान लेना भी आय है। आप जरा दान लेकर तो देखो किसी से? दान के लिए दो कदम बढ़ो तो पता चल जायेगा कि यह चीजें बेचने से भी बहुत टेढा काम है। इसलिए आय और दान की परिभाषा करने में बहस करना ठीक नहीं है।
‘तो 72 हजार जिसे न्यूनतम आय कहा जाता है। मिनिमम इनकम स्कीम के नाम से जानते हैं इसे। यह आय कैसे हुई? इसमें किसी ने कौन-सी मेहनत की। ये तो सरकारी दान है। कुछ लोग इसे खैरात कहते हैं, तो आप इन गरीबों को आय दे रहे हैं कि दान दे रहे हैं? इनमें से जो गरीब स्वाभिमानी हैं वे नहीं चाहते कि उन्हें दया का पात्र बनना पड़े। वे कहते हैं कि हमसे काम लो और उसके बदले में रकम दो। इस तरह इन गरीबों में भी दो दल हो गये हैं। एक जुझारू दल और दूसरा लुटारू, निकम्मा दल।’
अर्थशास्त्र के यहां विद्यार्थियों में ‘दान और आय’ पर चर्चा चल रही थी। यह रिसिप्ट और पेमेंट के तहत खातों में लिखा जाता है। बाकी किसी संस्था को दिया दान उस संस्था की आवक राशि ही होती है। आप जो कहें पर ये दान है।
एक गरीब कमर में धोती लपेटे, छाती से नंगा था। सिर पर पगड़ी थी, बोला, ‘हम गरीब जरूर हैं, पर स्वाभिमानी हैं, हम दान या भीख मांगकर गुजारा नहीं करना चाहते। हमें काम दो बदले में जो मजदूरी मिले, ले लेंगे। हम इतने लाचार नहीं हैं। हम पुरुषार्थ से धन अर्जन करना चाहते हैं।
मनरेगा से मन टूटा
सुदामा एक गांव में चबुतरे के पास खड़ा था। कुछ गरीब, मजदूर किसान, अनाथ बातें कर रहे थे।
‘अब मनरेगा में काम करने का मन नहीं है।’
‘क्यों?’
‘जब ऐसे ही छः हजार महिना मिलेंगे तो वहां भरी धूप या बर्फिली ठंड में पत्थर काटने से क्या मतलब? अब मनरेगा में मन रहेगा की नहीं कह नहीं सकते। कुछ ना कुछ खांसी-बुखार का बहाना तो बनाना ही पड़ेगा।’
अरे साल में सौ दिन ही तो करना है, वो नहीं करोगे तो रजिस्टर में तुम्हारा नाम कट जायेगा।
ना ना, नाम नहीं कटेगा, तनख्वाह भी नहीं कटेगी। अभी भी वहां चार भ्रष्टाचारी बैठे हैं। रिश्तेदारी और मित्रता बनाये रखनी पड़ती है। सब कुछ कर देंगे।
रसुलमियां की तकरीर
आज सुदामा वृंदावन से आगरा गया। हींग की मंडी में मुस्लिम लोग बहुत हैं। यहां पर मौलाना रसुल तकरीर कर गरीब मुसलमानों को मश्वरा दे रहे थे। ‘दोस्तो, सरकार बनाने का टाईम आ गया है। इस समय सियासतदार कुछ नरम पड़ गये है। जम्मुरियत की यही खासियत है। इसलिए गरीबों को भी अपना हक अदा करने का बराबर मौका मिलता है। हक के मामले में, वोट के मामले में गरीब और अमीर बराबर हो जाते हैं। रोजी-रोटी से मोहताज लोगों को भी अपने अख्तियार का फायदा मिलता है। अगर वोट हमारा कीमती है तो हमारी जिल्लत भी कीमती है। मैं आप सभी से दरख्वासत करता हूं कि इस मौके का फायदा उठाना चाहिए। जिससे हमारे सियासतदार अतिगरीब की लाईन बता रहे हैं उसमें कौम की गिनती के हिसाब से बटवारा बराबर होना चाहिए। यानी हिन्दुओं के बाद भारत में मुसलमानों की तादाद सबसे ज्यादा है। इसलिए ‘गरीबी की रेखा’ के तहत आनेवाले लोगों में हिन्दुओं के बाद मुसलमानों की तादाद आती है। लिहाजा हिन्दुस्तान में जितने भी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं उसमें हमारे मुस्लिम भाई कम से कम 24 फीसद होने चाहिए।’
ये जो मैं 24 फीसद कह रहा हूं, हिसाब से कम है। क्योंकि अगर हिन्दुस्तान का इलाका दर इलाका घूम आओ तो आपको सबसे ज्यादा गरीब मुस्लिम परिवार मिलेगा। बस इतना ही इस मौके पर कहना था। ऐसा ना हो ये बीजेपी वाले हमारी कौम की गरीबी को भुला दें।’
‘इसलिए इस मौके को चूकना भारी नुकसान होगा इससे हमारी ताकत को कम से कम समझी जायेगी। मैं तो कहता हूं हमारे मुस्लिम भाई जिस तरह की जिल्लत की जिन्दगी जीते हैं वे हिन्दुओं से भी बुरे हालात में हैं। इसलिए हमें एक-दो परसेंट ज्यादा लोगों को 72 हजार रुपये मिलने चाहिए। याद रखो, हमारे 95 परसेंट मुसलमान भाई बड़ी मेहनत से जि़न्दगी काटते हैं और घिनौनी जिंदगी गुजारते हैं।
पिछड़ों के अगड़े नेता के विचार
सुदामा उधर नेहरू नगर गये, वहां पर छोटे-छोटे चर्मकार जूते चप्पल बनाते हैं। वहां पर गरीब, शिल्पकार और श्रमिक रहते हैं। वहां पिछड़ों के अगड़े नेता कह रहे थे, ‘यह हमारे लिए बहुत अच्छा अवसर है, हमें अपनी गरीबी को छुपाना नहीं है, उसे खुलकर सामने लाना है। भिखारी मेकअप करके भीख मांगते हैं। क्या तुम गरीब बनने के लिए इतना काम भी नहीं कर सकते?’
‘हम संख्या बल से सबसे अधिक हैं। इसलिए गरीबी की संख्या भी सबसे अधिक होना चाहिए। याद रखो गरीब का वोट भी प्राईम मिनिस्टर के बराबर है। अपने वोट को छोटा ना समझे।
यह हमारे नाक के साथ-साथ अधिकारों का सवाल है। 72 हजार सालाना कम रकम नहीं है। ऐसा ना हो नेता लोग अपने फायदे के लिए मुस्लिमों को इसका ज्यादा फायदा पहुंचाये और हम, एक दूसरे को ताकते रह जाये।’
इस बीच पंडित सोमदत्त भी कहने लगे, ‘भाईयो वैसे भी यदि हम पिछड़ी जाति, जनजाति और आरक्षण का ध्यान में रखें तो 27 प्रतिशत से ज्यादा गरीब और पिछड़े, तो हम गरीब हिन्दु ही हैं। इसलिए भी हमारा अधिकार है कि हम अपने आपको अतिगरीब, दीनहीन और दया के पात्रा साबित करें। कुछ लोग भाग्यशाली हैं जो टिकडमबाजी से पिछड़े बने, दलित बने और उनके बाल-बच्चे भी दलित हुए हैं। अब उन्होंने जोर से नारा लगाने का आग्रह किया-
‘न हल चलायेंगे, ना पत्थर फोड़ेंगें
‘हम गरीबी के 72 हजार ले के रहेंगे।’
पादरी के विचार
आगरा के अकबर चर्च के पास हजारों गरीब इकट्ठे हुए थे। यहां पादरी अपने विचार व्यक्त कर रहा था।
‘इशू ने जो कहा उसी को मदर टेरेसा ने निभाया है। यदि कोई सरकार पूअर पब्लिक को इयर्ली 72000 देने का वादा करती है, तो ये गुड न्यूज है। हम भी भारत में सालाना 25000 करोड़ रुपये गरीबों में खर्च करते हैं। कुछ अपोजिशन वाले कमेंट करते हैं कि हम यह रकम कन्वर्जन के लिए कर रहे हैं। यह बात रांग हैं। हम उनके वे ऑफ लीविंग को चेंज करते है। उनकी बहुत जरूरी नीड्स को पूरा करते हैं। हमें अपोज करने वालों की सोच में मिस्टेक है। हम गरीबों के माईंड को स्ट्रांग बनाना चाहते हैं। सो देट दे शुड लीव प्रॉपर्ली देअर लाईफ एंड विद रिस्पेक्टफूली।
बिशप आगे कहता है, ‘ओ जिजस गॉड ब्लेस यू’ यू केन चूज एनी गवरमेंट। आप कोई भी सरकार चुनें। सरकार हमारी होगी। हमें लगता है, ‘ये सरकार हमारी मिशन का ही कुछ काम लाईट करना चाहती है। बट, वी नो, इंडिया में इससे भी ज्यादा पुअर लोग हैं। हम उन्हें जंगल में, दूर-दराज के गांव में, इंडिड, डीप में जाकर गरीबों को ढूंढ़ेंगे। अगर इंडियन गवर्नमेंट उनके लिए सेवेंटी टू थाउजेंड दे रही है तब भी हमारा मिशन काम करता रहेगा। हम पुअर के साथ-साथ है। इशु पुअर के साथ है। हमारा गॉड सबकी हेल्प करता है। तो हम भी उसमें कुछ कंट्रीब्यूशन करना चाहेंगे।’ इतना कहकर बिशप ने इत्तरदानी से पानी छिड़कना शुरू किया, जो लीडर 72 थाउजंड रुपीज पर ईयर देने की बात कर रहा है हमें लगता है वह हमारा ही काम कर रहा है। अगर सरकार के पास बजट की कमी हो तो हम भी मदद करने को तैयार हैं।’
सरदार दर्शनसिंह
सुदामा जब दिल्ली की ओर आने लगे तो पंजाब मेल में बैठा। शाम के आठे-साढ़े आठ का समय था। जनरल डिब्बे में सुदामा किसी तरह एडजेस्ट हुआ। बड़ी भीड़ थी। चुनाव की सरगर्मी थी। कुछ मोदी-मोदी कह रहे थे, कुछ राहुल-राहुल।
सरदार दर्शनसिंह ने इस कम्पार्टमेंट को अपने कब्जे में ले लिया था। बोला, ‘ये लीडर हमारे देश को पता नहीं कहां ले जाना चाहते हैं। सरकार गरीबों के लिए कुछ नहीं करना चाहती। बल्कि सरकार देश में इसाईयों की संख्या बढ़ाने का काम करना चाहती है। सारे धर्म के लोग अपने-अपने झंडे तले इन गरीबों को उकसा रहे हैं, क्योंकि इसी से उनकी जीत और हार तय होती है।’
‘मेरे प्यारे दोस्तो, मेरी बात समझो जरा ध्यान से। हमारे देश में ही नहीं दुनिया के देशों में थलसेना, जलसेना और वायु सेना के अलावा धर्मसेना की जरूरत बढ़ गयी है। ये धर्मसेनायें सारी दुनिया के तमाम मजहबों में इसीलिए बार-बार फल-फूल रही है। इसकी आड़ में आप सब कुछ कर सकते हो।’
‘बंदुकें और हथगोले चलाने के बजाय नारे चलाने पड़ते हैं। आंदोलन करना पड़ता है। 72 हजार सालाना देकर वे हम गरीबों की आबरू, इज्जत लूटना चाहते हैं। हमारा ईमान खरीदना चाहते हैं। हमें मानसिक रूप से गरीब, गुलाम और पंगु बनाना चाहते हैं। क्योंकि धर्म के झंडे तले भागने वाले गरीब लोग अंधे हो जाते हैं। ध्यान रखो, ये 72 हजार सालाना का शगुफा आपकी तरक्की रोक देगा। आपका स्वाभिमान मर जायेगा।’
इतना कहते ही कुछ लोग उठे और सरदार दर्शनसिंह को चुप कर कहने लगे, ‘नई बातें ना करो सरदारजी। हमें सालाना 72 हजार रुपये मिलने वाले हैं, आप को क्यों जलन हो रही है?’
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