पूर्व खंड - खंड 1 | खंड 2 | भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़ –24 किस्सये चार दरवेश अमीर खुसरो – 1300–1325 अंग्रेजी अनुवाद - डन्कन फोर्ब्ज़ – 1857...
पूर्व खंड -
भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़–24
किस्सये चार दरवेश
अमीर खुसरो – 1300–1325
अंग्रेजी अनुवाद -
डन्कन फोर्ब्ज़ – 1857
हिन्दी अनुवाद -
सुषमा गुप्ता
अक्टूबर 2019
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खंड 3
अमीर खुसरो कौन?
अमीर खुसरो का जन्म 1253 में हुआ था और ये 1325 में अल्लाह को प्यारे हो गये थे। ये एक बहुत ही प्रसिद्ध सूफ़ी गवैये कवि और विद्वान थे। ये निज़ामुद्दीन औलिया के एक बहुत ही प्रसिद्ध शिष्य थे। वैसे तो इनकी मुख्य भाषा फारसी थी पर कुछ इन्होंने हिन्दवी भाषा[1] में भी लिखा है।
अमीर खुसरो को लोग “हिन्दुस्तान की आवाज” या “हिन्दुस्तान का तोता” भी कहते हैं। ये “उर्दू के पिता” के नाम से मशहूर हैं। [2] इन्होंने गजल और कव्वाली संगीत भी शुरू किया।
इन्होंने संगीत में तराना नाम की शैली की भी शुरूआत की। यह कैसे हुआ इसकी बड़ी ही रोमांचक कहानी है। एक बार जब ये अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में थे तो इनका मुकाबला देवगिरि के राजा के दरबार के संगीतज्ञ गोपाल नायक से हुआ। अलाउद्दीन ने गोपाल नायक को छह शाम लगातार राग कादम्बरी गाने के लिये कहा।
कहते हैं कि अमीर खुसरो छहों शाम बादशाह के सिंहासन के नीचे लेटे रहे और वह सब बड़े ध्यान से सुनते रहे जो गोपाल नायक ने गाया। सातवें दिन उन्होंने सबको आश्चर्यचकित कर दिया जब उन्होंने गोपाल नायक के गाये हुए को ऐसा का ऐसा ही दोहरा दिया। पर क्योंकि वह गोपाल नायक की भाषा नहीं समझ सके सो उन शब्दों की जगह उन्होंने कुछ निरर्थक शब्द प्रयोग कर दिये थे। इस तरह से तराने का जन्म हुआ। तराने में अधिकतर अर्थहीन शब्द या अक्षर ही होते हैं – तोम तानाना दारे दीन दीन आदि।
इनका जन्म उत्तर प्रदेश में एक तुर्की परिवार में एटा के पास पटियाली में 1253 में हुआ था। इनके पिता का बचपन समरकन्द में बीता जो आजकल उज़बेकिस्तान में है। जब इनके पिता थोड़े बड़े हो गये थे तब चंगेज़ खाँ का आक्रमण हुआ था। उस समय बहुत सारे लोग तितर बितर हो गये थे। तब इनके पिता भी वहाँ से अफगानिस्तान चले गये थे।
फिर क्योंकि वह स्थान भी सुरक्षित नहीं था सो उन्होंने देहली के राजा से शरण माँगी। उस समय हिन्दुस्तान में अल्तमश का राज्य था और क्योंकि वह भी एक तुर्क था और उसने भी यह सब सहा था तो उसने इन लोगों का केवल स्वागत ही नहीं किया बल्कि उनको ऊँचे ऊँचे सरकारी पद भी दिये।
1230 में इनके पिता पटियाली आ गये थे। वहाँ उन्होंने शादी की उनके चार बच्चे हुए जिनमें से एक अमीर खुसरो थे। इनका पूरा नाम अबुल हसन यामीनुद्दीन खुसरो था पर ये अमीर खुसरो देहलवी के नाम से ही जाने जाते हैं।
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ये शुरू से ही बहुत अक्लमन्द थे। इन्होंने बहुत बचपन से ही, यानी लगभग आठ साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। 1273 में इनके बाबा की मृत्यु हो गयी थी। कहते हैं कि उस समय इनके बाबा की उम्र 113 साल की थी।
हिन्दुस्तान में उस समय गयासुद्दीन बलबन का राज था सो उनकी मृत्यु के बाद ये उसकी फौज में भरती हो गये। वहाँ इनकी कला शाही दरबार में पहली बार पहचानी और सराही गयी। इनकी कविता को वहाँ कई सम्मान भी मिले।
1276 में बलबन के दूसरे बेटे ने खुसरो को सुना तो वह तो उनके पीछे पागल सा हो गया। बलबन का दूसरा बेटा 1277 में बंगाल का राजा घोषित कर दिया गया था। 1279 में खुसरो उससे मिलने गया। वहाँ से आने के बाद बलबन के सबसे बड़े बेटे ने जो मुलतान का राजा था अपने देहली के दौरे पर खुसरो को सुना तो उसने उनको 1281 में अपने दरबार में बुलाया।
मुलतान उस समय हिन्दुस्तान में आने का रास्ता था। बगदाद अरब फारस सभी जगहों से जो लोग हिन्दुस्तान आते थे वे सब वहीं से हो कर हिन्दुस्तान में घुसते थे। 1287 में वह अपने दूसरे चाहने वाले अमीर अली हातिम के साथ अवध चले गये।
1290 में जलालुद्दीन खिलजी का राज आ गया। वह कविताओं का बहुत शौकीन था। उसके दरबार में बहुत सारे कवि और गवैये थे। उसने भी खुसरो को अपने दरबार में रख लिया और उनको “अमीर” का खिताब दे दिया। इस तरह से उनका नाम अमीर खुसरो पड़ा।
उसी समय से उनका साहित्यिक कार्य शुरू हुआ। वे रोज़ गजल लिखते थे और उनकी गजलें दरबार में गाने वाली लड़कियाँ रोज उनको सुलतान के सामने गाया करती थीं। उस समय में उन्होंने बहुत कुछ लिखा। हम यहाँ उनकी हर रचना का तो नाम तो नहीं दे पा रहे हैं।
1296 में अलाउद्दीन खिलजी फिर से राजा बन गया। उसके राज में भी उनका लिखना जारी रहा। वहाँ उन्होंने पाँच मसनवी[3] लिखीं जिनकी वजह से उनका नाम कवियों की दुनियाँ में सबसे ऊपर पहुँच गया। अलाउद्दीन उनसे इतना खुश था कि उसने उनको बहुत इनाम दिया।
अमीर खुसरो ने हिन्दुस्तान की सात सल्तनतें देखीं। आखीर में अमीर खुसरो की टोपी में एक और पंख –
“अगर फिरदौस बार रूए ज़मीन अस्त
हामिन अस्त ओ हामिन अस्त ओ हामिन अस्त। ”
इसका अर्थ यह है “अगर जमीन पर कहीं स्वर्ग है तो बस वह यहीं है यहीं है यहीं है। ”
यह श्रीनगर के शालीमार बाग की सबसे ऊँचे छज्जे पर खुदा हुआ है। और यह केवल वहीं नहीं बल्कि मुगलों की बनवायी हुई दूसरी इमारतोंं पर भी लिखा हुआ है।
तो ऐसे थे अमीर खुसरो।
[1] Hindavi language was the mixture of Persian, Arabic and some Hindi words.
[2] Voice of India, or Parrot of India, Father of Urdu language
[3] Masnavi, a Persian word, means the “Spiritual Couplets” – a collection of anecdotes and stories derived from the Quran, Hadith sources and everyday tales. Stories are written to illustrate a point and each moral is discussed in detail. Some famous Masnavis are “Shahnama of Firdausi” and “Masnavi-e-Rumi” in Persian, “Zehar-e-Ishq” in Urdu. His Masnavis are known as “Khamsa-e-Khusro”
(1) “Matla-ul Anwar” (Rising Place of Lights) of 3310 verses completed in 15 days;
(2) Khusro Shirin of 4000 verses; (3) Laila Majnu; (4) Aina-e-SikandarI of 4500 verses; and (5) Hasht Bahisht – based on legends about Baharam V (the 15th King of Sasanian Empire).
(क्रमशः अगले खंडों में जारी...)
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