पूर्व खंड - खंड 1 | खंड 2 | खंड 3 | खंड 4 | खंड 5 | खंड 6 | खंड 7 | खंड 8 | खंड 9 | खंड 10 | खंड 11 | खंड 12 | भूली बिसरी लोक क...
पूर्व खंड -
खंड 1 | खंड 2 | खंड 3 | खंड 4 | खंड 5 | खंड 6 | खंड 7 | खंड 8 | खंड 9 | खंड 10 | खंड 11 | खंड 12 |
भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़–24
किस्सये चार दरवेश
अमीर खुसरो – 1300–1325
अंग्रेजी अनुवाद -
डन्कन फोर्ब्ज़ – 1857
हिन्दी अनुवाद -
सुषमा गुप्ता
अक्टूबर 2019
---
अंतिम खंड
8 चौथे दरवेश की कहानी[1]
चौथे दरवेश ने रोते रोते अपनी कहानी सुनायी —
अब मेरी बदकिस्मती की दुखभरी कहानी सुनो
थोड़ा ध्यान दे कर मेरी पूरी कहानी सुनो
कि किन वजहों से दुखी हो कर मैं यहाँ तक आया हूँ
मैं तुम्हें सब बताऊँगा तुम ध्यान दे कर सुनो
ओ अल्लाह का रास्ता बताने वालो। थोड़ा ध्यान दो। यह तीर्थयात्री जो अब इस नीच हालत तक पहुँच चुका है चीन के राजा का बेटा है। मुझे बड़े नाज़ों से पाला गया था। मुझे बहुत अच्छी शिक्षा दी गयी थी। मुझे इस दुनिया के अच्छे बुरे किसी का कुछ भी पता नहीं था और सोचता था कि मेरी सारी ज़िन्दगी ऐसे ही गुजर जायेगी।
जब मैंने इसके बारे में कभी सोचा भी नहीं ऐसे समय में यह बुरी घटना मेरे साथ घटी। राजा जो इस लावारिस का पिता था इस धरती को छोड़ गया। जाते समय उन्होंने अपने छोटे भाई यानी मेरे चाचा को बुलाया और कहा — “मैं अब अपना राज्य और सब सम्पत्ति छोड़ कर जा रहा हूँ। मैं तो अब जा रहा हूँ पर तुम मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर देना।
तुम अब एक बड़े की तरह से व्यवहार करना। राजकुमार जो मेरा वारिस है जब तक वह बड़ा हो और उसे राज करने की समझ आये तब तक तुम उसकी तरफ से राज करना। सेना और किसानों के साथ अच्छा बरताव करना। उनको कभी दबाना नहीं।
जब राजकुमार बड़ा हो जाये तो उसको ठीक से रास्ता दिखाना ठीक से सलाह देना और उसको राजकाज सौंप देना। तुम अपनी बेटी रोशन अख्तर[2] की शादी उससे कर देना और राज काज से आजाद हो जाना। तुम अगर इस तरह से काम करोगे तो राज्य अपने परिवार में ही रहेगा और उसे कोई और नहीं ले पायेगा। ”
यह कह कर राजा चले गये और मेरे चाचा राजा बन गये। अब वह सरकार चलाने लगे। उन्होंने मुझे जनानखाने में ही रखा और कहा कि मैं जब तक राज करने लायक न हो जाऊँ मैं वहीं रहूँ।
जब तक मैं 14 साल का हुआ तब तक में राजकुमारियों और दासियों के बीच रह कर बड़ा हुआ। मैं उन्हीं के साथ रह रह कर खेल खेल कर बड़ा हुआ। जब मैंने सुना कि मेरी शादी मेरे चाचा की लड़की से हो रही है तो मैं बहुत खुश हुआ।
इसी आशा में कि इस शादी के बाद मुझे राजगद्दी मिल जायेगी मैं बिल्कुल लापरवाह हो गया। मैं सोचता रहा कि अब मैं राजा बन जाऊँगा।
यह दुनिया तो आशा पर ही जीती है न। मैं फारस से आये हुए एक नीग्रो दास के पास जिसका नाम मुबारक था जा कर बैठ जाया करता था। यह दास मेरे पिता के समय में रहा करता था। हम सबको इसके ऊपर बहुत भरोसा था क्योंकि यह बहुत ही वफादार और समझदार था।
यह मेरी इज़्ज़त भी बहुत करता था और मुझे बड़े होते देख कर बहुत खुश था। वह कहता था — “अल्लाह का लाख लाख धन्यवाद है कि अब तुम एक नौजवान हो गये हो। अल्लाह ने चाहा तो अल्लाह के साये में तुम्हारे चाचा तुम्हारेे पिता की इच्छा पूरी करेंगे यानी वह तुम्हें अपनी बेटी भी देंगे और राज्य भी दे देंगे।
एक दिन ऐसा हुआ कि बहुत ही मामूली सी दासी ने मुझे बिना किसी वजह के इतनी ज़ोर का एक थप्पड़ मार दिया जिसकी पाँचों उँगलियाँ मेरे गाल पर छाप छोड़ गयीं।
मैं रोता हुआ मुबारक के पास गया। उसने मुझे गले लगाते हुए अपनी आस्तीन से मेरे आँसू पोंछे और कहा — “आइये आज मैं आपको राजा बनाता हूँ। हो सकता है कि आपको देख कर उनका मन कुछ पिघल जाये। और यह सोच कर कि अब आप राजा बनने के लायक हो गये हैं वह आपको आपके अधिकार दे दें। ”
यह कह कर वह मुझे तुरन्त ही मेरे चाचा के पास ले गया। मेरे चाचा ने दरबार के सामने मेरे लिये बहुत प्यार दिखाया। उन्होंने मुझसे पूछा — “बेटा तुम इतने दुखी क्यों हो। और तुम यहाँ आज किस वजह से आये हो। ”
जवाब मुबारक ने दिया — “यह यहाँ आज कुछ कहने आये हैं। ”
यह सुन कर उन्होंने अपने आपसे कहा — “मैं बहुत जल्दी ही राजकुमार की शादी कर दूँगा। ”
मुबारक बोला — “यह तो बड़ी खुशी का मौका होगा। ”
राजा ने तुरन्त ही ज्योतिषियों और भविष्य बताने वालों को बुला भेजा और झूठी रुचि दिखाते हुए उनसे पूछा — “इस साल में कौन सा महीना कौन सा दिन और दिन का कौन सा समय बेटे की शादी के लिये शुभ रहेगा ताकि मैं उसी दिन राजकुमार की शादी कर सकूँ। ”
उन्होंने यह सोचते हुए कि राजा अपने बड़े भाई की इच्छा को पूरा कर रहे हैं गुणा भाग किया और बोले — “ओ ताकतवर राजा। इस साल में तो कोई भी दिन मुहूर्त शुभ नहीं है। यह साल अगर किसी तरह से सुरक्षित निकल जाये तब अगले साल बहुत शुभ मुहूर्त है। ”
यह सुन कर राजा ने मुबारक की तरफ देखा और कहा — “इसको फिर से जनानखाने में ले जाओ। अगर अल्लाह ने चाहा तो इस साल के बाद मैं अपनी राजगद्दी उसको सौंप दूँगा। उससे कहो कि वह आराम से रहे और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे। ”
मुबारक ने राजा को सलाम किया और मुझे साथ ले कर जनानखाने की तरफ चल दिया। दो तीन दिन बाद मैं फिर से मुबारक के पास गया तो मुझे देख कर वह रो पड़ा।
यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ तो मैंने उससे पूछा — “अब्बू जी। सब ठीक तो है न। आप क्यों रो रहे हैं। ”
तो मेरा वह भला चाहने वाला जो मुझे अपने दिल और आत्मा से चाहता था बोला — “मैं उस दिन आपको उस अत्याचरी के पास ले कर गया था। अगर मुझे पता होता तो मैं आपको वहाँ कभी नहीं ले जाता। ”
यह सुन कर मैं चौंक गया और उससे पूछा — “मेरे वहाँ जाने से क्या नुकसान हो गया। आप मुझे सब कुछ सच सच बताइये। ”
वह बोला — “आपको देख कर आपके पिता के समय के सब मन्त्र्ी वजीर दरबारी कुलीन लोग सभी लोग बहुत खुश थे। आपको देख कर उन्होंने यह कहते हुए अल्लाह को धन्यवाद देना शुरू कर दिया “अब हमारा राजकुमार बड़ा हो गया है और राज्य करने के लायक हो गया। कुछ ही समय में राज्य ठीक वारिस को मिल जायेगा और वह हमारे गुणों का बदला ठीक से देगा। ”
यह खबर उस नीच राजा के कानों तक पहुँची और उसकी छाती में साँप की तरह से कुंडली मार कर बैठ गयी।
सो उन्होंने मुझे चुपचाप अकेले में बुलाया और मुझसे कहा — “मुबारक। अब तुम कुछ ऐसा करो कि किसी तरह से यह राजकुमार मर जाये और मेरे दिल में गड़ा यह काँटा निकल जाये और मैं अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सकूँ। उस दिन से मैं चुप हो गया हूँ क्योंकि आपका चाचा ही अब आपका दुश्मन बन गया है। ”
जब यह भयानक खबर मैंने मुबारक से सुनी तो मैं तो बिना मारे ही मरे जैसा हो गया। मैं अपनी जान के लिये डर कर उसके पैरों पर मरे जैसा पड़ गया। मैं बोला — “अल्लाह के लिये मैं अपनी राजगद्दी छोड़ता हूँ पर मुझे बचा लो। ”
उस वफादार गुलाम ने मेरा सिर पकड़ कर मुझे उठाया और अपने गले से लगाते हुए कहा — “आप डरिये नहीं राजकुमार। मेरे दिमाग में एक विचार आया है। अगर वह ठीक से काम कर जाता है तो फिर डरने की कोई जरूरत नहीं है। जब तक हममें जान है तब तक हमारे पास सब कुछ है।
बहुत मुमकिन है कि मेरी इस तरकीब के अनुसार आपकी जान भी बच जाये और आपकी इच्छाएँ भी पूरी हो जायें। ”
इस तरह की तसल्ली दे कर वह मुझे अपने साथ ले गया और मेरे मरे हुए पिता के कमरे में ले गया जहाँ वह बैठा और लेटा करते थे और मुझे बहुत तसल्ली दी।
वहाँ एक स्टूल रखा हुआ था। उसने मुझसे उस स्टूल की एक टाँग पकड़वायी और दूसरी टाँग उसने खुद ने पकड़ी और हम दोनों ने उसको वहाँ से हटा दिया।
उसको वहाँ से हटाने के बाद उसने वहाँ बिछा हुआ कालीन हटाया और फर्श को खोदना शुरू किया। जल्दी ही उसमें एक खिड़की दिखायी देने लगी। उस खिड़की में एक जंजीर और एक ताला लगा हुआ था।
मुबारक ने मुझे अपने पास बुलाया तो एक पल को तो मुझे ऐसा लगा जैसे वह मेरा कत्ल करने जा रहा हो और कत्ल करके वह मुझे यहाँ दफ़न कर देगा। इस तरह मौत मेरी आँखों के सामने नाच रही थी पर मैं क्या करता। कोई और रास्ता न देख कर मैं अल्लाह की प्रार्थना करते हुए चुपचाप उसकी तरफ बढ़ा।
वहाँ पहुँच कर मैंने देखा कि उस खिड़की के नीचे चार कमरों की एक इमारत थी और उसके हर कमरे में सोने के 10 बरतन जंजीर से बँधे लटक रहे थे। हर बरतन के मुँह पर एक एक सोने की ईंट रखी हुई थी और हर ईंट पर जवाहरातों से जड़ा एक एक बन्दर बैठा हुआ था।
उन सब कमरों में मैं केवल 39 बरतन ही गिन पाया। उनमें से एक बरतन में सोने के सिक्के भरे हुए थे। उस पर न तो कोई ईंट थी और न ही कोई बन्दर। एक बहुत बड़ा बरतन रखा था जिसमें बहुत सारे कीमती पत्थर भरे हुए थे।
मैंने मुबारक से पूछा — “अब्बू। यह तलिस्मान सा क्या है। और ये जो बन्दरों की शक्लें बनी हुई हैं इनका क्या मतलब है। ”
वह बोला — “इन बन्दरों की कहानी यह है —
“तुम्हारे पिता की अपने जवानी के दिनों से ही जिन्नों के राजा मलिके सादिक से जान पहचान थी। इसके लिये हर साल वह मलिकए सादिक के पास जाया करते थे और उसके पास एक महीना रह कर आया करते थे।
वे अपने साथ उनके लिये तरह तरह के इत्र और मुश्किल से मिलने वाली चीज़ें आदि[3] ले जाया करते थे। जब वह मलिक से विदा ले कर घर वापस लौटते थे तो मलिक उनको पन्ने का बना एक बन्दर दिया करता था। वे उसको यहाँ ला कर इन नीचे वाले कमरों में रख दिया करते थे।
इस बात को मेरे सिवा और कोई नहीं जानता था। एक बार मैंने आपके पिता से कहा — “आप उनके लिये हजारों रुपये की इतनी सारी मुश्किल से मिलने वाली चीजे, ले कर जाते हैं और आप उनसे केवल एक बन्दर की पत्थर की मूर्ति ही ले कर आते हैं। आखिर अन्त में इसका क्या फायदा है। ”
मेरे इस सवाल के जवाब में उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा — “सावधान रहना और इस भेद को किसी के ऊपर भी नहीं खोलना। इनमें से हर बन्दर की मूर्ति के पास हजारों ताकतवर राक्षसों की ताकत है। वे उसके एक हुकुम पर उसका काम करने को तैयार रहते हैं।
पर एक बात और, और वह यह कि जब तक यहाँ 40 बन्दर एक साथ इकठ्ठे न हों तो इनकी कोई कीमत नहीं। ये मेरा कोई काम नहीं कर सकते। ” सो जब राजा मरे तब इनमें से एक बन्दर कम था। ये केवल 39 ही रहे, पूरे 40 नहीं हो पाये थे।
इसलिये ओ राजकुमार। अभी ये सब बेकार हैं। इनको तो दिखाने का भी कोई फायदा नहीं है। आपकी यह हालत देख कर मुझे इस घटना की याद आ गयी कि आपके पिता की तो उस जिन्न के राजा से दोस्ती थी।
सो अगर मैं आपको किसी तरह से मलिके सादिक के पास भेजने में कामयाब हो सकूँ और आप उसको अपने चाचा के अत्याचार के बारे में बतायें तो उनकी दोस्ती को याद करके शायद वह आपको इन बन्दरों की गिनती 40 करने के लिये एक बन्दर और दे दे
और फिर अगर कुछ और नहीं हो सकता तो उनकी सहायता से कम से कम आप अपना राज्य लेने में कामयाब हो जायें और आप फिर से चीन और मचीन[4] पर राज कर पायें। इस तरह से आपकी जान बच जाये।
मुझे इस समय आपके चाचा के अत्याचार से बचने का इस तरकीब के अलावा जो अभी मेंने आपको बताया और कोई तरीका नजर नहीं आ रहा।
मुबारक से यह सुनने के बाद मैंने उनसे कहा — “मेरे दोस्त। अब तो तुम ही मेरी जान बचाने वाले हो। वही करो जो मेरे लिये सबसे अच्छा हो। ”
मुझे अच्छी तरह से तसल्ली दे कर वह बाजार गया। वहाँ से उसने कुछ इत्र और अगरबत्तियाँ खरीदीं। और भी कुछ खरीदा जिनको वह मलिके सादिक के लिये जरूरी समझता था।
अगले दिन वह मेरे नीच चाचा के पास गया जो एक दूसरा अबू जहाल[5] था और बोला — “ओ दुनिया की रक्षा करने वाले। राजकुमार को मारने के लिये मैंने अपने मन में एक तरकीब सोच ली है। आप अगर मुझे इजाज़त दें तो मैं कुछ कहूँ। ”
मेरा नीच चाचा यह सुन कर बहुत खुश हुआ और बोला — “वह कौन सी तरकीब है। ”
मुबारक बोला — “इस तरह से मारने पर योर मैजेस्टी हर तरीके से बहुत खुश होंगे पर मैं उनको जंगल ले जाऊँगा वहीं उनको मार दूँगा और वहीं दफ़न भी करके वापस आ जाऊँगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा। ”
मुबारक की यह तरकीब सुन कर चाचा बहुत खुश हुआ और बोला — “यह तो बहुत अच्छी तरकीब है। मैं ऐसा ही चाहता हूँ कि बस वह किसी तरह से मार दिया जाये।
मुझे उससे बहुत डर लगता है। और अगर तुम मेरी इस चिन्ता को दूर कर दो तो इस सेवा के बदले में मैं तुम्हें बहुत कुछ दूँगा। उसको तुम जहाँ ले जाना चाहो वहाँ ले जाओ पर उसको मार दो और मुझे उसके मारे जाने की खबर ला कर दो। ”
राजा को इस तरह सन्तुष्ट करके मुबारक मुझे और जिन्नों के राजा के लिये भेंट साथ ले कर चला। वह आधी रात के समय शहर से बाहर निकला और उत्तर की तरफ चला। वह बिना रुके लगातार एक महीने तक चलता रहा।
एक रात जब हम चल रहे थे मुबारक ने महसूस किया और बोला — “अल्लाह की मेहरबानी से बस अब हम अपनी यात्रा खत्म करने वाले हैं। ”
यह सुन कर मैंने पूछा — “ओ दोस्त। यह तुम क्या देख कर कह रहे हो। ”
मुबारक बोला — “राजकुमार क्या आप यहाँ जिन्नों की सेना नहीं देख रहे। ”
मैं बोला — “नहीं तो। मुझे तो यहाँ आपके सिवा और कुछ दिखायी नहीं दे रहा। ”
मुबारक ने तब सुलैमानी सुरमा निकाला और एक सलाई से उसे मेरी दोनों आँखों में लगा दिया। तुरन्त ही मुझे वहाँ जिन्नों की सेना दिखायी देने लगी। वहाँ वे अपने अपने तम्बुओं में एक पड़ाव डाले हुए थे। वे सब बहुत सुन्दर थे और बहुत अच्छे कपड़े पहने थे।
उन्होंने मुबारक को पहचान लिया। उन्होंने उसको खुशी खुशी गले से लगाया। वहाँ से हम आगे चले तो शाही तम्बुओं तक पहुँचे और उनके दरबार में घुसे।
मैंने देखा कि वहाँ बहुत सारी रोशनी हो रही है। कई तरह के स्टूल वहाँ दो दो की लाइनों लगे हुए हैं जिन पर विद्वान लोग दार्शनिक दरवेश कुलीन लोग और भी बहुत सारे औफीसर बैठे हुए थे। कुछ नौकर लोग अपनी छाती पर हाथ बाँधे हुए हुकुम के इन्तजार में खड़े हुए थे।
बीच में एक जवाहरात जड़ा सिंहासन रखा हुआ था जिस पर एक आदमी बड़े शान से बैठा हुआ था। वह राजा मलिके सादिक था। उसके सिर पर ताज था और उसके कपड़ों पर मोती लगे हुए थे। मैं उसकी तरफ बढ़ा और उसे सलाम किया। उसने मुझसे बैठने के लिये कहा।
फिर उसने खाना लाने का हुकुम्,ा दिया। खाना खत्म होने के बाद दस्तरख्वान हटा दिया गया। फिर उसने मुबारक की तरफ देखते हुए मेरी कहानी पूछी।
मुबारक बोला — “आजकल राजा की जगह राजकुमार के चाचा राज्य पर राज करते हैं और इस बेचारे राजकुमार की जान के दुश्मन हो गये हैं। इसी लिये मैं वहाँ से इनको साथ ले कर यहाँ योर मैजेस्टी के पास दौड़ा आया हूँ।
यह अनाथ है। यह सिंहासन इसका है पर कोई इसके लिये कुछ नहीं कर पा रहा क्योंकि आपके सिवाय वहाँ इसकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है। यह दुखी नौजवान अपने अधिकार ले सकता है।
इसके पिता की सेवाओं को याद कीजिये और मेहरबानी करके इसकी सहायता कीजिये। इसको 40वाँ बन्दर दे दीजिये ताकि हमारे राजा के पास रखे बन्दरों की गिनती पूरी हो जाये और राजकुमार उनकी सहायता से अपना अधिकार पा ले।
वह योर मेंजेस्टी के ज़िन्दगी भर गुणगान करेगा और आपकी लम्बी ज़िन्दगी और खुशहाली की दुआ मनाता रहेगा। इसके पास आपके सिवा और कोई इसकी सहायता करने वाला नहीं है। ”
यह सब हाल सुन कर मलिके सादिक कुछ देर तक तो चुप रहा फिर बोला — “सच बात तो यह है कि मरे हुए राजा की सेवाएँ और दोस्ती तो मेरे लिये बहुत बड़ी चीज़ थी
यह सोचते हुए कि यह राजकुमार तो बेचारा बदकिस्मती का मारा हुआ है। इसने अपनी जान बचाने के लिये अपनी पिता की राजगद्दी तक छोड़ दी है। और अपनी सुरक्षा ढूँढते हुए यहाँ मेरे पास इतनी दूर तक आया है तो न तो मैं उसको उनके बदले में किसी तरह की भी सहायता में कमी करूँगा जो भी मुझसे बन पड़ेगी और न मैं उसे अनदेखा करूँगा।
पर मेरे पास एक काम है उसे अगर वह कर सकता है और मुझे धोखा नहीं देगा तो… अगर वह उसको ठीक से और तरीके से कर पाता है तो मैं वायदा करता हूँ कि मैं उसका उसके पिता के दोस्त से ज़्यादा अच्छा दोस्त बन जाऊँगा और फिर मैं उसको वही दे दूँगा जो वह चाहेगा। ”
मैंने खुशी से हाथ जोड़ कर उनसे कहा — “आपका यह नौकर आप जो भी कहेंगे वह करेगा। जो भी सेवा योर मैजेस्टी चाहें यह नौकर आपका वही हुकुम बिना धोखा दिये बजा लायेगा। और यह काम उसके लिये दोनों दुनियाओं में सबसे ज़्यादा खुशी का काम होगा। ”
जिन्नों के राजा ने कहा — “तुम तो अभी केवल एक लड़के हो इसलिये मैं तुम्हें यह बात बार बार कहता हूँ कि तुम मुझे धोखा मत देना कहीं तुम किसी मुसीबत न पड़ जाओ। ”
मैं फिर बोला — “ओ अल्लाह। आपकी खुशकिस्मती मेरे उस काम को आसान बना देगी। और जहाँ तक मेरा सवाल है आपको सन्तुष्ट करने की मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा।
मलिके सादिक ने मेरे मुँह से जब ये बातें सुनी तो उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और अपनी नोटबुक में से एक कागज निकाल कर मुझे दिखाया और कहा — “इस लड़की जिसकी यह तस्वीर है उसको ढूँढना है। देखो तुम इसे कहाँ ढूँढ सकते हो। इसे ढूँढो और मेरे पास ले कर आओ।
जब तुम उसका नाम और रहने की जगह का पता चला लो तब तुम उसके पास जाना और उससे मेरा बहुत प्यार जताना। अगर तुम मेरा यह काम कर सकते हो तो जिस किसी चीज़ की तुम मुझसे उम्मीद रखते होगे मैं तुम्हें उससे कहीं ज़्यादा दूँगा। नहीं तो तुमको वही मिलेगा जिसके मिलने के अधिकारी तुम होगे। ”
मैंने उनसे कागज लिया और उस तस्वीर की तरफ देखा तो मुझे वह किसी बहुत सुन्दर लड़की की तस्वीर लगी। उसको देख कर एक बार तो मैं बेहोश होते होते बचा। मैं डर के मारे काँप गया और गिरते गिरते बचा।
फिर मैंने उनसे कहा — “ठीक है मैं चलता हूँ। अगर अल्लाह ने चाहा तो योर मैजेस्टी ने जो काम करने के लिये मुझसे कहा है मैं वह कर लाऊँगा। ”
यह कह कर मैंने मुबारक को साथ लिया और वहाँ से जंगल की तरफ चल दिया। मैं एक गाँव से दूसरे गाँव एक शहर से दूसरे शहर एक देश से दूसरे देश घूमता फिरा। जो भी मुझे रास्ते में मिलता मैं उस लड़की के बारे में हर एक से पूछता पर किसी ने भी यह नहीं कहा कि “मैं इसे जानता हूँ। ” या “मैंने इसके बारे में किसी से सुना तो है। ”
इस तरह घूमते घूमते मुझे सात साल निकल गये। इस बीच मैंने बहुत मुश्किलें सहीं। आखिर मैं एक शहर पहुँचा जिसमें बहुत सारे लोग रहते थे।
वहाँ बहुत बड़ी बड़ी इमारतें बनी हुई थीं पर वहाँ का हर आदमी इस्मे आज़म[6] यानी अल्लाह का नाम जप रहा था और उसकी पूजा कर रहा था।
वहाँ मुझे हिन्दुस्तान का एक अन्धा भिखारी भीख माँगता हुआ मिल गया। कोई उसको एक कौड़ी[7] भी नहीं दे रहा था और न कुछ खाना ही दे रहा था। मुझे आश्चर्य भी हुआ और साथ में उसके ऊपर दया भी आयी।
मैंने अपनी जेब से सोने का एक सिक्का निकाला और उसको दे दिया। उसने उसे ले कर कहा — “ओ यह सिक्का देने वाले। अल्लाह तुम्हें खुशहाल रखे। लगता है तुम यहाँ के रहने वाले नहीं हो कोई यात्री हो। ”
मैंने जवाब दिया — “मैं सात साल से घूमता फिर रहा हूँ। मुझे उस चीज़ का ज़रा सा पता नहीं मिल रहा जिसे मैं ढूँढने निकला हूँ। आज में इस शहर में हूँ। ”
बूढ़े ने मुझे बहुत सारी दुआएँ दीं और चला गया। मैं भी उसके पीछे पीछे चल दिया। शहर के बाहर एक बहुत ही शानदार इमारत खड़ी थी। वह उस इमारत में घुस गया और उसके पीछे पीछे मैं भी उस इमारत के अन्दर घुस गया। अन्दर जा कर मैंने देखा कि वह इमारत तो बहुत टूटी फूटी थी। उसको तो मरम्मत चाहिये थी।
मैंने अपने मन में कहा “अरे वाह यह तो क्या ही बढ़िया इमारत है। जब यह ठीक से बन जाये तब तो यह एक राजकुमारी के रहने लायक है जगह है। हालाँकि अभी भी जब यहाँ कोई नहीं रहता फिर भी यह कितनी शानदार है। पर मेरी यह समझ में नहीं आ रहा है कि यह ऐसी खंडहर ही क्यों पड़ी है और यह अन्धा आदमी यहाँ क्यों रहता है। ”
वह अन्धा आदमी अपनी छड़ी से रास्ता ढूँढता ढूँढता चला जा रहा था कि तभी मैंने एक आवाज सुनी जो कह रही थी — “अब्बू आज आप इतनी जल्दी घर कैसे लौट आये सब कुछ ठीक है न। ”
यह सवाल सुन कर बूढ़े ने जवाब दिया — “बेटी सब ठीक है। आज अल्लाह ने एक यात्री के मन में दया पैदा कर दी तो उसने मुझे एक सोने का सिक्का दे दिया।
मैंने उससे माँस मसाले घी नमक खरीदा और तेरे लिये कुछ जरूरी कपड़े भी खरीद लिये। उनको काट कर सिल लेना और पहन लेना। अच्छा अब तू खाना बना ले ताकि फिर हम साथ साथ खाना खा सकें और उस दयावान आदमी को धन्यवाद दे सकें जिसने हमारे ऊपर मेहरबान हो कर मुझे एक सोने का सिक्का दिया।
हालाँकि मैं यह तो नहीं जानता कि उसकी क्या इच्छा है पर अल्लाह तो सब कुछ जानता है और देखता है वह हम जैसे गरीब लोगों की प्रार्थना का जवाब जरूर देगा। ”
मैंने जब इन लोगों को इतना भूखा देखा तो मेरी बहुत इच्छा हुई कि मैंने इसको 20 सोने के सिक्के क्यों नहीं दे दिये। पर उस रहने की जगह को देखते हुए जहाँ से यह आवाज आ रही थी मैंने देखा कि वहाँ तो उस तस्वीर जैसी ही एक स्त्री खड़ी हुई थी।
तुरन्त ही मैंने अपनी जेब से वह तस्वीर निकाली जो जिन्नों के राजा ने मुझे दी थी तो मैंने देखा कि उस स्त्री की सूरत तो उस तस्वीर से हूबहू मिलती थी। उन दोनों में बाल भर का भी भेद नहीं था। मेरे दिल से एक गहरी आह निकल गयी और मैं बेहोश सा हो गया।
मुबारक ने मुझे अपनी बाँहों में सँभाल लिया और नीचे बिठाया। वह मुझे हवा करने लगा। जैसे ही मुझे ज़रा सा होश आया तो मैं उस स्त्री को फिर से घूरने लगा।
मुबारक ने पूछा — “अरे आपको क्या हो गया है। ”
मैंने अभी तक उसको जवाब भी नहीं दिया था कि उस सुन्दर स्त्री ने कहा — “ओ नौजवान। अल्लाह से डरो और एक अजनबी स्त्री की तरफ इस तरह मत घूरो। कुछ शर्म लिहाज़ करो। यह हर एक के लिये बहुत जरूरी है। ”
वह इतने अधिकार के साथ बोल रही थी कि मैं तो उसकी सुन्दरता और तौर तरीके का दीवाना बन गया। मेरे ऊपर तो उसने जैसे जादू सा डाल दिया था। मुबारक ने मुझे तसल्ली तो बहुत दी पर उस बेचारे को मेरे दिल की हालत का क्या पता।
कोई और रास्ता न देख कर मैं बोला — “ओ अल्लाह के बनाये प्राणियों और इस देश के रहने वालो। मैं एक गरीब यात्री हूँ। अगर तुम लोग मुझे अपने पास बुला कर यहाँ ठहरा लो तो मेरे लिये बहुत बड़ी बात होगी। ”
बूढ़े ने मुझे अपने पास बुलाया और मेरी आवाज पहचानते हुए मुझे गले से लगा लिया। फिर वह मुझे वहाँ ले गया जहाँ वह सुन्दर स्त्री बैठी हुई थी। वह वहाँ से उठ गयी और एक कोने में जा कर बैठ गयी।
बूढ़े ने मुझसे पूछा — “अब तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ कि तुमने अपना घर क्यों छोड़ा। तुम अकेले इस तरह क्यों घूम रहे हो। तुम किसको ढूँढ रहे हो। ”
मैंने मलिके सादिक का नाम भीे नहीं लिया और उसके बारे में कुछ कहा भी नहीं पर बस उसको मैंने केवल अपनी कहानी बतायी। कि मैं चीन और मचीन के राजा का बेटा हूँ। मेरे पिता अभी भी उस देश के राजा हैं।
मेरे पास यह एक तस्वीर है जिसे उन्होंने चार लाख रुपये में खरीदा था। पर जिस पल से मैंने इसे देखा तो मेरे दिल का चैन खो गया। मैंने एक तीर्थयात्री की पोशाक पहनी और इसको ढूँढने निकल पड़ा। अब यह मुझको यहाँ आपके पास मिल गयी है। ”
यह सुन कर बूढ़े ने एक भारी सी साँस ली और बोला — “ओ दोस्त। मेरी बेटी तो बदकिस्मती के चंगुल में फँसी हुई है। कोई इसके साथ शादी नहीं कर सकता। ”
तो मैंने जवाब दिया — “क्या आप मुझे इस बात को पूरी तरीके से खोल कर समझाने की कोशि करेंगे। ”
तब उस बूढ़े ने मुझे अपनी यह कहानी सुनायी —
“सुनो ओ राजकुमार। मैं इस बदकिस्मत शहर का एक बहुत बड़ा सरदार हूँ। मेरे पुरखे यहाँ के एक बहुत बड़े परिवार के और बहुत मशहूर लोग थे।
अल्लाह ने मुझे यह बेटी दी थी। जब यह बड़ी हो गयी तो इसकी सुन्दरता और इसके तौर तरीकों के चर्चे चारों तरफ फैल गये। देश के सारे लोग यही कहते थे कि जिस किसी के घर में ऐसी बेटी हो जिसकी सुन्दरता के आगे परियाँ और देवदूत भी पानी भरते हों उसके सामने किसी आदमी का क्या मुकाबला।
इस शहर के राजकुमार ने भी उसकी सुन्दरता की कहानियाँ सुनी तो वह तो उसकी केवल कहानियाँ सुन कर ही बिना उसके देखे ही उसके पीछे पागल हो गया। उसने खाना पीना छोड़ दिया और उसके लिये बेचैन हो गया।
आखिर यह बात राजा के कानों तक पहुँची तो एक रात राजा ने मुझे अपने पास बुलाया और अपनी मीठी बातों से मुझे इतना कोंचा कि मैं ना न कह सका और उसने मुझे इस रिश्ते के लिये राजी कर लिया।
मैंने भी सोचा कि क्योंकि मेरे घर में बेटी पैदा हुई है तो एक न एक दिन तो उसे किसी न किसी से शादी करके जाना ही है तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि उसकी शादी एक राजकुमार से हो जाये। राजा के बहुत कहने पर मैं उनका प्रस्ताव मान लिया और मैं वहाँ से चला आया।
उस दिन से दोनों घरों में शादी की तैयारियाँ शुरू हो गयीं। फिर एक शुभ घड़ी में सारे काज़ी और मुफ्ती[8] जमा हुए। विद्वान लोग कुलीन लोग भी आये और शादी की रस्में पूरी की गयीं।
शादी की सब रस्में पूरी की जाने के बाद दुलहिन को बड़ी शान से दुलहे के घर ले जाया गया। रात को जब दुलहा दुलहिन के कमरे में जाने लगा तो बाहर बहुत ज़ोर का शोर सुनायी दिया। इतना शोर कि चौकीदारों के अलावा सारे लोग घबरा गये।
उनकी इच्छा हुई कि वह दरवाजा खोल कर यह देखें कि क्या मामला है पर सब कुछ अन्दर से इतना बन्द था कि वे कुछ खोल ही नहीं सके।
कुछ देर बाद में जब रोने धोने की आवाज कुछ कम हुई तब दरवाजे को उसके कब्जे तोड़ कर खोला गया। लोगों ने देखा कि दुलहे का सिर उसके शरीर से अलग हुआ पड़ा है और उसके शरीर के दूसरे हिस्से अभी भी काँप रहे हैं। दुलहिन के मुँह से झाग निकल रहे हैं और वह अपने पति के खून के साथ में धूल में लिपटी पड़ी है।
यह भयानक दृश्य देख कर जो कोई भी वहाँ मौजूद थे वे सब वहाँ से भाग लिये। यह भयानक खबर राजा को दी गयी तो वह बेचारा भी वहाँ अपना सिर पीटते पीटते दौड़ा दौड़ा आया। राज्य के सारे आफीसर भी आये पर कोई भी यह नहीं बता सका कि वहाँ क्या हुआ होगा।
काफी देर के बाद राजा ने इस बदकिस्मत दुलहिन का सिर काटने का हुकुम दिया। जैसे ही राजा के मुँह से यह हुकुम निकला तो एक बार फिर से शोर उठ खड़ा हुआ। राजा यह देख सुन कर डर गया और वहाँ से भाग निकला और दुलहिन को महल से बाहर निकाल देने के लिये कहा। दासियों ने इस बदकिस्मत को मेरे घर पहुँचा दिया।
बहुत जल्दी ही इस घटना का हाल राज्य भर में सब जगह फैल गया। जिसने भी यह सुना उसी को यह सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। राजकुमार की मौत की वजह से देश के सारे लोग मेरी जान के दुश्मन हो गये।
जब जनता का दुख का समय खत्म हो गया, 40 दिन पूरे हो गये तब राजा ने खुद ने राज्य के सब औफीसरों कुलीन लोगों आदि से सबसे पूछा — “अब हम इसके बाद क्या करें?”
सबने एक सुर में जवाब दिया — “अब इसके आगे क्या किया जा सकता है। हाँ योर मैजेस्टी की दिमागी हालत को शान्त रखने के लिये और धीरज से उसमें जान डालने के लिये लड़की और उसके पिता को मरवा दिया जाये और उनकी हर चीज़ कब्जे में कर ली जाये।
जब मेरा और मेरी बेटी की यह सजा निश्चित हो चुकी और मजिस्ट्रेट को इसको लागू करने का हुकुम दे दिया गया तो वह आया और उसने मेरा घर चारों तरफ से घेर लिया। मेरे घर के चारों तरफ पहरेदार लगा दिये गये। मेरे घर के दरवाजे पर एक भौंपू बजने लगा।
जैसे ही वह राजा का हुकुम बजा लाने के लिये मेरे घर में घुसने लगा तो पता नहीं कहाँ से पत्थर आने शुरू हो गये। वे पत्थर इतने ज़्यादा थे कि वहाँ खड़े हुए सारे लोग कोई भी उनकी मार नहीं सह सका और वे सब इधर उधर भाग गये।
और इस सबके साथ एक इतनी भयानक आवाज आयी कि राजा ने खुद ने भी इसको अपने महल में सुना —
“कौन सी बुरी किस्मत तुझ पर आ पड़ी है। किस राक्षस ने तुझे अपने काबू में कर रखा है। अगर तू अपनी भलाई चाहता है तो उस सुन्दर लड़की को तू तंग मत कर नहीं तो तू भी अपने बेटे की किस्मत जो उसने उससे शादी करके भोगी है भोगेगा। अगर तू उसे तंग करेगा तो उसके नतीजे के लिये तैयार भी रह। ”
यह सुन कर राजा को डर के मारे बुखार चढ़ गया और उसने अपने लोगों को हुकुम दिया कि कोई भी उन बदकिस्मत लोगों को तंग न करे। कोई उनको कुछ कहे नहीं कोई उनसे कुछ सुने नहीं। उनको जहाँ वे रहें रहने दें। उनको कोई नुकसान न पहुँचाये।
उस दिन के बाद से जादूगरों ने इस घटना को शैतानी घटना समझ कर उसका असर खत्म करने के लिये बहुत सारे जादू टोने आदि इस्तेमाल किये। शहर के सब आदमियों ने कुरान में से बहुत सारी प्रार्थनाएँ कीं अल्लाह के नाम लिये।
इस घटना के बहुत समय बाद से ले कर अब तक उस तरह की फिर कोई वैसी घटना नहीं हुई और न मुझे उसके बारे में कुछ पता है।
मैंने एक बार अपनी बेटी से पूछा था कि उस रात उसने अपनी आँखों से क्या देखा या क्या सुना तो वह बोली कि जैसे ही मेरे पति मेरे पास आये तो छत खुल गयी और कीमती जवाहरातों से जड़ा हुआ एक सिंहासन नीचे उतरा जिसमें एक शाही नौजवान राजकुमार बहुत ही बढ़िया कपड़े पहने बैठा था।
उसके साथ और भी बहुत सारे लोग थे। वे सब कमरे में आये और वे सब राजकुमार को मारने के लिये तैयार थे।
उसी समय वह नौजवान मेरे पास आया और बोला — “अब तुम मुझसे बच कर कहाँ जाओगी। ”
उन सबकी आदमियों जैसी शक्ल थी पर उनके पैर बकरे के पैर जैसे थे। मेरा दिल बहुत ज़ोर से धड़क उठा और मैं डर के मारे बेहोश हो गयी। उसके बाद मुझे नहीं मालूम कि क्या हुआ। ”
उसके बाद फिर तभी से हम इस खंडहर में रहते हैं। हमारे सब दोस्तों ने हमें छोड़ दिया है। जब मैं भीख माँगने के लिये बाहर जाता हूँ तो कोई मुझे एक कौड़ी भी नहीं देता। इतना ही नहीं मुझे किसी दूकान के सामने भी खड़ा नहीं हुआ देने जाता।
इस बदकिस्मत लड़की के पास अपना शरीर ढकने के लिये कोई फटा कपड़ा भी नहीं है और न भूख शान्त करने के लिये कोई खाना ही है। मैं अल्लाह से केवल यही दुआ माँगता हूँ कि बस किसी तरह हमें मौत आ जाये या फिर यह धरती फट जाये तो यह उसमें समा जाये। इस तरह से ज़िन्दा रहने से तो मौत ही अच्छी है।
अल्लाह ने शायद तुम्हें हमारे भले के लिये भेजा है ताकि तुम हमें देख कर हमारे ऊपर दया कर सको। और तुमने हमको एक सोने का सिक्का दिया जिससे मैं अपनी बेटी के लिये कुछ खाना और कपड़ा खरीद सका।
अल्लह की मेहरबानी है और अल्लाह तुम्हें खुश रखे अगर यह किसी जिन्न के कब्जे में नहीं होती तो मैं इसे तुम्हें तुम्हारी नौकरानी के रूप में तुम्हारी सेवा में दे कर बहुत खुश होता।
यही मेरी बदकिस्मती की कहानी है। तुम इसके बारे सोचना भी नहीं। ”
बूढ़े से उसकी यह दुखभरी कहानी सुन कर मैंने बूढ़े से प्रर्थना की कि वह मुझे अपना दामाद समझे। और अगर मेरा भविष्य इतना ही खराब है तो उसे आने दे। पर वह बूढ़ा मेरी प्रार्थना बिल्कुल भी सुनने को तैयार नहीं था। जब शाम हुई तो मैंने उससे विदा ली और सराय चला गया।
मुबारक बोला — “राजकुमार खुश हो जाइये। अल्लाह ने आपकी सुन ली है। वह आप पर मेहरबान है। आपकी मेहनत बेकार नहीं गयी। ”
मैंने जवाब दिया — “मैंने आज बहुत सारी सुन्दर बोली इस्तेमाल की हैं पर वह बूढ़ा तो मेरी कोई बात सुन कर ही नहीं दे रहा। अल्लाह ही जानता है कि वह मुझे अपनी बेटी मुझे देगा या नहीं। ”
मेरे मन की हालत ऐसी थी कि मैंने रात बड़ी मुश्किल से गुजारी। मैं सारी रात यही दुआ मनाता रहा कि यह रात कब जल्दी से खत्म हो और कब दिन निकले और फिर मैं कब उसे देखने जाऊँ।
कभी कभी मुझे लगता कि शायद उसका पिता दया करके मेरी प्रार्थना सुन ले मुबारक उसे मलिके सादिक के पास ले जाये। मैंने फिर सोचा “खैर पहले हम उसे अपने काबू में तो कर लें। मुबारक को तो मैं बाद में देख लूँगा। फिर मैं उससे शादी कर लूँगा। मेरा दिल फिर से बहुत सारे विचारों से भर गया “अगर मान लो कि मुबारक मेरे प्लान पर राजी हो भी गया तो क्या जिन्न मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा कि उन्होंने राजकुमार के साथ किया था।
इसके अलावा इस देश का राजा इस बात के लिये कभी राजी नहीं होगा कि उसके बेटे के खून होने के बाद में कोई दूसरा आदमी उसके बेटे की पत्नी से शादी कर ले। ”
मेरी सारी रात यही सब सोचते सोचते निकल गयी। जब सुबह दिन निकला तो मैं बाहर निकला और चौक गया और वहाँ से कुछ बढ़िया कपड़े खरीदे लेस खरीदी कुछ सूखे और ताजे फल खरीदे और यह सब ले कर बूढ़े के पास पहुँचा।
वह उन सबको देख कर बहुत खुश हो गया और बोला — “हर एक को अपनी ज़िन्दगी से ज़्यादा और कोई चीज़ प्यारी नहीं है पर अगर मेरी ज़िन्दगी तुम्हारे किसी काम की हो तो मुझे उसे तुम्हें देने में कोई दुख नहीं होगा। मैं तुम्हें अपनी बेटी देता हूँ पर देते हुए डरता हूँ क्योंकि ऐसा करके मैं तुम्हारी ज़िन्दगी खतरे में डाल रहा हूँ। और इस बात की बदनामी का धब्बा जजमैन्ट के दिन[9] तक मेरे सिर रहेगा। ”
मैंने कहा — “मैं अब इस शहर में हूँ। मेरे पास कोई सहायता नहीं है यह सच है। आप हर तरीके से मेरे पिता हैं – दुनियावी तरीके से भी और आध्यात्मिक तरीके से भी।
पर सोचिये कि कितने दुखों मुश्किलों और मेहनतों को झेल कर आज मेरी इच्छा पूरी हुई है। अल्लाह ने भी आपको मेरे लिये दयावान बनाया कि आपने मुझे उससे शादी करने की इजाज़त दे दी है। आप बस मेरी सुरक्षा के लिये डरते हैं।
एक पल के लिये सोचिये कि प्यार की तलवार से हमारे सिरों को बचाने के लिये और उस खतरे से हमारी ज़िन्दगियों को बचाने के लिये किसी भी धर्म में नहीं लिखा है। जो होता है होने दीजिये। अपनी प्यारी चीज़ लेने के लिये जो मेरी ज़िन्दगी है मैंने तो हर तरीके से अपना सब कुछ खो ही दिया है।
मुझे इस बात की कोई चिन्ता नहीं है कि मैं मरता हूँ या जीता हूँ। इसके अलावा निराशा भी तो मेरी किस्मत की सहायता के बिना मेरी ज़िन्दगी के दिन खत्म कर ही देगी और फिर जजमेंट के दिन मैं आपका दोषी बन कर खड़ा होऊँगा। ”
थोड़े में कहो तो ऐसी ही बातें करते करते यानी हाँ ना में एक महीना गुजर गया। यह मेरे दिमाग पर बड़ा भारी था। भविष्य की आशाओं और डर के बीच में मैं रोज उस बूढ़े की सेवा में जाता था। उससे चापलूसी भरी बातें करता था और अपनी इच्छा पूरी करने की विनती करता था।
यह सब चल ही रहा था कि बूढ़ा एक दिन बीमार पड़ गया। मैं उसकी बीमारी में सेवा करता रहा। मैं उसके बारे में डाक्टर से बात करता और जो भी दवा वह लिखता मैं उन्हें खरीद कर लाता और उन्हें उसे देता। मैं उसे अपने हाथों से कपड़े पहनाता। उसे दाल चावल खिलाता।
एक दिन वह मुझ पर असाधारण रूप से मेहरबान था। वह बोला — “तुम बहुत जिद्दी हो। मैंने तुमसे कितनी बार उन सब मुश्किलों को बता दिया जो आगे आ सकती हैं पर तुम अपनी प्रिय चीज़ लेने से नहीं हट रहे। तुमको मैंने कितनी बार चेतावनी भी दे दी कि तुम इसके बारे में सोचो भी नहीं पर तुम सुनते ही नहीं।
जब तक हमारी ज़िन्दगी तब तक हमारे पास सब कुछ है पर तुम तो जान बूझ कर अन्धे कुँए में छलाँग लगा रहे हो। खैर आज मैं तुम्हारे बारे में अपनी बेटी से बात करूँगा। देखें वह क्या कहती है। ”
चौथा दरवेश आगे बोला — “सो ओ पवित्र दरवेशो। उसके ये प्यारे शब्द सुन कर मैं खुशी से इतना फूल गया कि मुझे लगा कि मेरे तो कपड़े भी तंग हो गये। मैं बूढ़े के पैरों पर गिर पड़ा और बोला — “आज आपने मेरे आने वाले जीवन की और भविष्य की खुशी की नींव रख दी। ” फिर मैंने उनसे विदा ली और अपने घर वापस लौट आया।
सारी रात मैं मुबारक से इस बारे में बात करता रहा। उस समय न तो मेरी आँखों में नींद थी न पेट में भूख।
सुबह सवेरे जल्दी उठ कर मैं फिर से बूढ़े के पास गया जा कर उन्हें सलाम किया। बूढ़ा बोला — “ठीक है मैं तुम्हें अपनी बेटी देता हूँ। अल्लाह उसके साथ तुम्हें खुशी दे। मैंने तुम दोनों को उसकी रक्षा में सौंप दिया है। जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तुम मेरे साथ रह सकते हो। जब मैं नहीं रहूँगा तब तुम लोग जो चाहे करना। उस समय तुम लोग अपने कामों के जिम्मेदार अपने आप होगे। ”
इस बातचीत के कुछ दिन बाद वह बूढ़ा मर गया। हम लोगों ने उसका दुख मनाया और उसको दफ़ना दिया। तीजा होने के बाद मुबारक उस सुन्दर लड़की को डोली में बिठा कर सराय में ले आया और बोला — “यह बल्किुल पवित्र है और मलिके सादिक की है। ध्यान रहे कि आप इसके साथ कोई खेल नहीं खेलें। कहीं ऐसा न हो कि आपकी इतनी सारी मेहनत का फल बिल्कुल ही बेकार जाये। ”
मैं बोला — “मलिके सादिक यहाँ बीच में कहाँ से आ गया। मेरा दिल नहीं मानता और फिर मुझमें इतना धीरज भी नहीं है। जो होता है होने दो। मैं चिन्ता नहीं करता अभी तो मुझे उसके साथ आनन्द ले लेने दो। ”
मुबारक गुस्से में भर कर बोला — “बच्चों की तरह से बरताव मत करिये। एक पल में ही सारा खेल बदल सकता है। आप क्या समझते हैं कि मलिके सादिक बहुत दूर हैं जो आप उसके हुकुम को न मानने की हिम्मत कर सकते हैं।
आपके उससे विदा लेने से पहले ही उसने आपको सारे हालचाल बता दिये थे और चेतावनी भी दे दी थी कि अगर आपने उसे धोखा दिया तो आपके साथ क्या हो सकता है।
इसलिये अच्छा तो यही होगा कि आप इसे सुरक्षित उसके पास पहुँचा दें। वह एक शाही दिमाग का आदमी है। आप जिन जिन परेशानियों से गुजरे है वह उनको समझ सकता है और फिर यह भी हो सकता है कि वह इसे आपको ही दे दे। सोचिये तब यह मामला कितना अलग होगा।
इस वफादारी से आपको उससे अपनी दोस्ती भी वापस मिल जायेगी और अपना प्यार भी वापस मिल जायेगा। ”
आखिर इस समझाने और धमकियों के बाद मैं कुछ चुप हो गया। मैंने दो ऊँट खरीदे और हम उनके हौदों[10] पर चढ़ कर मलिके सादिक के घर चल दिये।
चलते चलते हम एक मैदान में पहुँच गये। वहाँ बहुत सारा शोर मच रहा था। मुबारक बोला — “अल्लाह की जय हो। हमारी मेहनत कामयाब हो गयी। क्योंकि लो हमारे जिन्नों की सेना भी आ गयी। ”
आखिर वह उनसे मिला और उनसे पूछा कि वे कहाँ जा रहे थे। उन्होंने कहा कि “हमारे राजा ने हमें आपका स्वागत करने के लिये भेजा है। अब आप जो कहेंगे वही हम करेंगे। अगर आप इजाज़त दें तो हम आपको अभी अपने राजा के पास लिये चलते हैं। ”
मुबारक ने मेरी तरफ घूमते हुए कहा — “देखो न। कितनी सारी मुसीबतें और खतरे सहने के बाद अल्लाह ने हमारे ऊपर कितनी मेहरबानी दिखायी है। अब हमें जल्दी करने की जल्दी क्या है। अगर कोई बुरी बात हो भी जाती है तो अल्लाह न करे हमारी तो सारी मेरी मेहनत ही बेकार जायेगी और राजा हम लोगों पर गुस्सा होंगे। ”
उन्होंने एक साथ जवाब दिया — “अब तो आप ही हमारे मालिक हैं जो आप कहेंगे वही हम करेंगे। ”
हालाँकि हम सब तरह से ठीक थे फिर भी हम रोज सुबह शाम चलते रहे। जब हम उस जगह के पास पहुँचे जहाँ राजा रहता था तो एक दिन मुबारक को सोता हुआ देख कर मैं उस लड़की के पैरों पर गिर पड़ा और रोते रोते मैंने उसे अपने दिल का हाल बताया जिस दिन से मैंने उसकी तस्वीर देखी थी। मलिके सादिक की धमकियाँ भी बतायीं।
मैंने उससे कहा कि मेरी रातों की नींद उड़ गयी है भूख नहीं लगती किसी चीज़ से आराम नहीं मिलता। और अब अल्लाह ने मुझे यह दिन दिखा दिया है तभी भी मैं उसके लिये बिल्कुल अजनबी था। ”
उसने जवाब दिया — “मैं भी तुम्हें दिल से चाहती हूँ क्योंकि मेरे लिये तुमने जो तकलीफें सही हैं जिन खतरों का तुमने मुकाबला करके मुझे वहाँ से निकाला है। अब अल्लाह को याद रखना और मुझे भूल मत जाना। देखते हैं कि इस रहस्यमय परदे के पीछे से क्या निकलता है। ”
यह कह कर वह इतनी ज़ोर से रो पड़ी कि उसका गला रुँध गया। तो ऐसी मेरी हालत थी और ऐसी उसकी हालत थी।
इतनी देर में मुबारक उठ गया और हम दोनों को रोते देख कर उस पर बहुत असर पड़ा। वह बोला — “तसल्ली रखिये। मेरे पास एक मरहम है जो मैं इसके शरीर पर मल देता हूँ। उसकी बू से मलिकए सादिक का दिल इससे फिर जायेगा। हो सकता है कि इसको वैसा देख कर वह इसे तुम्हारे लिये छोड़ दे। ”
मुबारक की यह तरकीब सुन कर मैं फिर से खुश हो गया। बड़े प्यार से उसे गले लगाते हुए मैंने कहा — “ओ दोस्त। अब तुम मेरे पिता जैसे हो गये। तुमने मेरी जान बचा ली। मैं तो तुम्हारा हमेशा के लिये ऋणी हो गया। अब तुम मेरे लिये उसी तरह से काम करो जिससे मैं ज़िन्दा रह सकूँ वरना तो मैं इस दुख से मर ही जाऊँगा। ”
उसने मुझे बहुत तरह से तसल्ली दी। जब दिन निकला तो हमने देखा कि मलिकए सादिक के बहुत सारे जिन्न वहाँ आ गये। वे हमारे लिये दो बहुत ही कीमती खिलात लाये थे और साथ में मोतियों की झालर से ढकी एक पालकी ले कर आये थे।
मुबारक ने अपना मरहम लड़की के शरीर पर मल दिया था। उसे बहुत कीमती कपड़े पहना दिये थे। फिर उसने उसको मलिकए सादिक को सौंप दिया। उसको देख कर जिन्नों के राजा ने मुझे बहुत सारा इनाम दिया।
मुझे इज़्ज़त देने के बाद उसने मुझे अपने पास बिठा लिया और कहा — “आज मैं तुम्हारे साथ ऐसा बरताव करूँगा जैसा कभी किसी ने किसी के साथ नहीं किया होगा। तुम्हारे पिता का राज्य तुम्हारा इन्तजार कर रहा है। इसके अलावा यहाँ तुम मेरे बेटे के बराबर हो। ”
वह मुझसे इस तरह से शान से बात कर ही रहा था कि वह सुन्दर लड़की उसके सामने आ गयी। अचानक आयी गन्ध की वजह से उसके दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया और उसने कुछ और सोचना शुरू कर दिया।
वह बाहर गया और उसने मुबारक को बुलाया और उससे कहा — “जनाब यह तो जो कुछ मैंने आपसे कहा था आपने सचमुच में ही उसका पूरा पूरा पालन किया है। मैंने तुम लोगों से पहले ही कहा था कि अगर तुमने मुझे धोखा देने की कोशिश की तो तुम्हें मेरी नाराजगी का शिकार होना पड़ेगा। यह किस तरह की गन्ध है। अब तुम देखो कि मैं तुम्हारे साथ कैसा बरताव करता हूँ। ”
वह मुबारक से बहुत गुस्सा था। मुबारक तो डर के मारे काँप गया उसने तुरन्त ही अपना पाजामा खोल कर उसे अपने हालात दिखा दिये।
वह बोला — “ओ ताकतवर राजा। जबसे मैंने यह काम शुरू किया, आपके हुकुम के अनुसार तभी मैंने अपने शरीर का यह हिस्सा कटवा दिया था और उसे एक बक्से में बन्द करके ताला लगा कर आपके खजाँची को दे दिया था। उसके बाद ही काटे हुए हिस्से पर सोलोमन के मरहम को लगा कर मैं यह काम करने चला था। ”
यह सुन कर और देख कर जिन्नों के राजा ने मेरी तरफ देखा और कहा — “इसका मतलब है कि यह सब तुमने किया है। ”
और गुस्से में भर कर मुझे कोसना शुरू कर दिया। मुझे उसके शब्दों से तुरन्त ही यह समझ में आ गया कि वह मुझे मार देने वाला है। जब मुझे इस बात का विश्वास हो गया तो मुझे अपनी ज़िन्दगी की आशा जाती रही और इस हालत में मैंने मुबारक की कमर से खंजर निकाला और उसे जिन्नों के राजा के पेट में मार दिया।
जैसे ही खंजर उसके पेट में घुसा तो वह झुका और लड़खड़ाया। मुझे तो लगा कि वह उससे जरूर ही मर गया होगा पर बाद में मैंने देखा कि जैसा कि मैंने सोचा था उससे बना वह घाव उसको मारने के लिये काफी गहरा नहीं था। उसको वह कुछ ज़्यादा महसूस भी नहीं हुआ था।
मुझे तो यह देख कर और भी आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा कि वह जमीन पर लुढ़क गया और एक टैनिस की गेंद की शक्ल में बदल कर आसमान में उड़ गया। वह इतना ऊँचा उड़ गया कि फिर वह आँखों से ओझल हो गया।
पर एक पल बाद ही वह बिजली की तेज़ी के साथ गुस्से में भर कर वह बहुत शोर करता हुआ और कुछ बेमतलब शब्द बोलते हुए नीचे उतरा और मुझे एक ऐसी ठोकर मारी कि मैं बेहोश हो कर पीठ के बल गिर पड़ा। मैं बिल्कुल मरा हुआ सा हो गया था।
अल्लाह जाने उस हालत में में वहाँ कितनी देर पड़ा रहा पर जब मैं कुछ होश में आया और मैंने अपनी आँखें खोलीं तो देखा कि मैं तो एक जंगल में पड़ा हूँ जहाँ केवल काँटे और झाड़ियाँ थे और कुछ दिखायी नहीं देता था।
उस समय मेरी समझ कुछ काम नहीं कर रही थी। इतनी निराशा की हालत में मैं अभी यही सोच रहा था कि मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ कि मेरे मुँह से एक आह निकल गयी। मुझे जो पहला रास्ता दिखायी दिया मैं वही रास्ता ले कर चल दिया।
अगर मुझे कहीं कोई मिला तो मैंने हर एक से मलिके सादिक का नाम पूछा तो उसने मुझे पागल समझते हुए यही जवाब दिया कि उसने तो यह नाम भी कहीं नहीं सुना था।
X X X X X X X X
एक दिन जब मैं एक पहाड़ पर चढ़ रहा था पिछली बार की तरह से मेरे मन में आया कि मैं इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे देता हूँ। और जैसे ही मैं वहाँ से नीचे कूदने वाला था कि वही परदे वाला घुड़सवार वहाँ आ गया जिसके पास ज़ुलफ़कर[11] थी।
उसने कहा — “तुम अपनी ज़िन्दगी खोने पर क्यों लगे हुए हो। लोगों के ऊपर अक्सर दुख आते है उन्हें मुश्किलें उठानी पड़ती हैं पर इसका यह मतलब नहीं है कि तुम उनकी वजह से अपनी जान दे दो।
आओ अब तुम्हारे खराब दिन खत्म हुए और तुम्हारी खुशी के दिन अब बहुत जल्दी आने वाले हैं। इसलिये अब तुम रम चले जाओ। वहाँ तीन दुखी लोग तुम्हारे वहाँ पहुँचने से पहले से ही आये हुए हैं।
तुम उनसे मिलना। वहाँ के राजा से भी मिलना और तुम पाँचों की इच्छाएँ वहीं पूरी हो जायेंगी। ”
यह मेरी कहानी है जिसे मैंने अभी आप सबको सुनाया। आखीर में हमारी मुश्किलों का हल बताने वाले[12] ने मुझेे यह बताया और मैं अब आप सबके पास आया हूँ। राजा जो अल्लाह की परछाँई होता है उसने भी हमारा प्रेम से स्वागत किया है। अब हम सबको सुख मिलना चाहिये। ”
X X X X X X X
जब आजाद बख्त और चारों दरवेशों में इस तरह की बातें चल रही थीं तभी अजाद बख्त का एक खास नौकर उसके जनानखाने से वहाँ भागा भागा आया और इज़्ज़त के साथ सलाम करके राजा की खुशी की इच्छा की और बोला — “अभी अभी राजकुमार का जन्म हुआ है जिसकी सुन्दरता के आगे सूरज चाँद भी शरमाते हैं। ”
राजा तो यह सुन कर आश्चर्य में पड़ गया। उसके मुँह से निकला — “अरे देखने में तो किसी को तो बच्चे की आशा नहीं थी फिर यह बच्चा किसके हुआ है। ”
खास नौकर बोला — “मेहरू। आपकी वह दासी जिससे योर मैजेस्टी कुछ दिनों से गुस्सा थे। वह अकेली एक कोने में पड़ी रहती थी। आपके डर की वजह से कोई उसके पास उसका हाल पूछने भी नहीं जाता था। उसी पर अल्लाह की मेहरबानी हुई है कि उसने चाँद सा बेटा पैदा किया है। ”
राजा यह सुन कर इतना ज़्यादा खुश हुआ कि बस खुशी के मारे मर सा ही गया।
चारों दरवेशों ने उसको बधाइयाँ दीं। उन्होंने कहा — “अल्लाह करे आपका घर हमेशा खुशियों से भरा रहे। आपका बेटा बहुत अमीर बने। वह आपके साये में बढ़ता रहे। ”
राजा बोला — “यह सब आपके यहाँ शुभ आगमन से ही मुमकिन हुआ नहीं तो मुझे तो इस घटना का पता ही नहीं था। अगर आप लोग मुझे इजाज़त दें तो अपने बेटे को देख आऊँ। ”
दरवेश बोले — “हाँ हाँ क्यों नहीं। अल्लाह का नाम ले कर जाइये। ”
राजा अपने महल पहुँचा और अपने बेटे राजकुमार को अपनी गोद में उठाया और अल्लाह को धन्यवाद दिया। अपनी छाती से चिपकाये हुए वह दरवेशों के पास आया और उसे उनके पैरों में डाल दिया। उन्होंने उसको बहुत दुआएँ दीं और उसको बुरी आत्माओं से बचाने के लिये बहुत उपाय किये।
इस खुशी के मौके पर राजा ने एक बहुत बड़ी दावत का इन्तजाम किया। शाही संगीत गूँज उठा। खजाने का मुँह खोल दिया गया। उसने बहुत सारे गरीबों को बहुत अमीर बना दिया। राज्य के औफीसरों को उसने दुगुने दुगने ऊँचे पद दिये उनको बहुत सारी जमीनें दीं। शाही सेना को उसने पाँच साल की तनख्वाह इनाम के रूप में दी।
विद्वानों और पवित्र लोगों को उसने पेन्शन और जमीनें दीं। गरीबों के बटुए सोने चाँदी के सिक्कों से भर दिये गये। खेतों से मिलने वाले अगले तीन साल के टैक्स माफ कर दिये गये और जो कुछ वे उस समय में उगाते वह सब उन्हीं को दे दिया गया।
सारे शहर में सभी बड़े और छोटे लोगों के घरों में हर जगह खुशियाँ मनायी जा रही थीं। इस खुशी में हर आदमी अपने आपको राजकुमार समझ रहा था।
इन खुशियों के बीच जनानखाने से अचानक ही रोने चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। दास दासियाँ खास दास आदि सब अपने अपने सिरों पर धूल डालते हुए बाहर की तरफ भागे।
राजा के पूछने पर उन्होंने बताया कि जब वे राजकुमार को नहला धुला कर आया को उसको दूध पिलाने के लिये दे रहे थे तो एक बादल आसमान से उतरा और आया के चारों तरफ लिपट गया। पल भर वाद ही हमने देखा कि आया तो जमीन पर बेहोश लेटी पड़ी थी और राजकुमार गायब थे। कितनी बुरी घटना हो गयी है हमारे साथ।
यह सुन कर राजा के ऊपर तो जैसे बिजली गिर पड़ी। सारा देश दुख के समुद्र में डूब गया। राजकुमार के इस तरह चले जाने पर किसी ने भी अच्छे कपड़े नहीं पहने बल्कि केवल अपना दुख ही खाया और अपना खून ही पिया।
थोड़े में कहो तो वे सभी लोग अपनी ज़िन्दगियों से हताश हो गये थे। इस तरह से रहते रहते जब दो दिन हो गये तब तीसरे दिन वही बादल फिर से आया। उसमें जवाहरात जड़ा एक पालना था और पालने में था राजकुमार अपना अँगूठा चूसते हुए।
उसकी माँ ने तुरन्त ही उसको दुआएँ देनी शुरू कर दीं। उसने उसको गोद में लिया और प्यार से अपनी छाती से लगा लिया। उसने देखा कि वह मलमल की बनी हुई एक बहुत सुन्दर जैकेट पहने हुए था और उस पर मोती टँके हुए थे।
उसके गले में नौ रत्नों का एक हार पड़ा हुआ था। उसके पास सोने का एक झुनझुना था जिसमें सोने के ही घुँघरू लटके हुए थे। सारी दासियाँ यह खबर ले कर बाहर दौड़ीं और सबने फिर से प्रार्थनाएँ कहनी शुरू कर दीं — “अल्लाह करे तेरी माँ की हर इच्छा पूरी हो और तू बहुत बड़ी उम्र जिये। ”
राजा ने एक और नया शानदार महल बनाने का हुकुम दिया जिसमें बहुत बढ़िया कालीन लगवाये गये थे। उसने चारों दरवेशों को उस महल में ठहरा दिया।
जब वह राज्य के काम नहीं कर रहा होता था तो वह उनके पास जा कर बैठा करता था। उनके लिये बहुत सारी तरीकों की चीज़ें ले जाता था और उनका इन्तजार करता था।
लेकिन हर महीने के पहले बृहस्पतिवार को वही बादल ऊपर से आता राजकुमार को दो दिन के लिये ले जाता और फिर उसके पाालने को बहुत कीमती खिलौनों और और भी बहुत सारी अच्छी अच्छी चीज़ों के साथ वापस छोड़ जाता।
जब कोई उसका पालना देखता तो उसका तो आश्चर्य से दिमाग ही घूम जाता। इस तरह से बड़े होते होते राजकुमार ने अपने सातवें साल में कदम रखा।
उसके जन्मदिन के दिन राजा आजाद बख्त ने चारों दरवेशों से कहा — “ओ पवित्र लोगों। मैं यह नहीं समझ पाता कि हर महीने के पहले बृहस्पतिवार को राजकुमार को कौन ले जाता है और फिर कौन वापस छोड़ जाता है। यह बहुत आश्चर्यजनक है। देखते हैं कि यह कहाँ तक जाता है। ”
दरवेशों ने कहा — “राजा साहब आप एक काम कीजिये। आप एक दोस्ताना सन्देश लिखिये और उसे राजकुमार के पालने में रख दीजिये।
आप उसे लिखें — “मेरे बेटे की तरफ आपकी दोस्ती और मेहरबानी देख कर मेरे दिल में यह इच्छा होती है कि मैं ऐसे आदमी से मिलूँ। अगर आप अपने इस मेल जोल के सहारे अपने विचार मुझे बतायें तो मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा और मेरा आश्चर्य भी खत्म हो जायेगा। ”
दरवेशों की सलाह के अनुसार राजा ने इस बात का एक नोट कागज पर लिखा उस पर सोने का चूरा छिड़का और उसको राजकुमार के सोने के पालने में रख दिया।
हर बार की तरह से राजकुमार के गायब होने के दिन राजकुमार गायब हो गया। शाम को राजा जब अपने दरवेशों के साथ बैठे हुए बात कर रहे थे कि एक मुड़ा हुआ कागज राजा के पैरों के पास आ कर गिर गया।
उन्होंने वह कागज उठाया और खोल कर पढ़ा तो वह तो उनके नोट का जवाब था। उसमें ये दो लाइनें लिखी थी — “तुम मेरे बारे में भी तुमसे मिलने के लिये उतना ही उत्सुक समझो जितने कि तुम मुझसे मिलने के लिये हो। एक सिंहासन नीचे आ रहा है।
अच्छा होगा कि तुम अभी आ जाओ ताकि हम एक दूसरे से मिल सकें। खुशी और आनन्द की सब तैयारियाँ की जा चुकी हैं। बस योर मैजेस्टी की जगह खाली है। ”
राजा आजाद बख्त ने चारों दरवेशों को साथ लिया और उस दैवीय सिंहासन पर चढ़ गया। वह तो क्या सिंहासन था जैसा राजा सोलोमन का सिंहासन[13] था। सबके बैठते ही वह ऊपर उड़ चला।
आगे बढ़ते बढ़ते वह एक ऐसी जगह पहुँच गया जहाँ बहुत सारी और बढ़िया बढ़िया स्वादिष्ट खाने की चीज़ें लगी हुई थीं। पर वहाँ कोई था भी या नहीं ऐसा कुछ दिखायी नहीं दे रहा था।
इस बीच किसी ने हम पाँचों की आँखों मे सुलेमानी सुरमा लगा दिया। सबकी आँखों से दो दो बूँद आँसू निकल पड़े। उसके बाद सब लोगों ने देखा कि वहाँ तो बहुत सारी परियाँ इकठ्ठी थीं। वे सब बहुत अच्छे और कीमती कपड़े पहने हुए थीं और सबके हाथों में गुलाब जल की एक एक शीशी थी।
आजाद बख्त हजारों परियों के बीच से हो कर चला। सब परियाँ बड़ी इज़्ज़त से खड़ी हुई थीं। बीच में एक ऊँचा सिंहासन रखा हुआ था जिसमें पन्नेे जड़े हुए थे। उस सिंहासन पर बड़ी शान से तकियों के सहारे शाह रुख का बेटा मलिक शाह बल[14] बैठा हुआ था।
परियों की जाति की एक बहुत सुन्दर लड़की उसके सामने बैठी हुई थी और बच्चा राजकुमार बख्तियार[15] के साथ खेल रही थी। सिंहासन के दोनों तरफ बैठने के लिये कुरसियाँ सब बड़ी तरतीब से लगी हुई थीं जिन पर कुलीन परियाँ बैठी हुई थीं।
मलिक शाह बल राजा आजाद बख्त को आता देख कर खड़ा हो गया। फिर वह सिंहासन से नीचे उतरा और आजाद बख्त को गले से लगा लिया। फिर वह उसको हाथ पकड़ कर ले गया और अपने साथ अपने सिंहासन पर ही बिठा लिया। फिर वे बहुत देर तक प्रेम से बात करते रहे। इस तरह खाते पीते नाचते गाते सारा दिन बीत गया।
जब राजा शाह बल से मिला तो शाह बल ने राजा से पूछा कि उसके इन चारों दरवेशों को साथ लाने का क्या मतलब था। राजा आजाद बख्त ने उसको इन चारों दरवेशों के बारे में सब कुछ बता दिया – उनकी कहानियाँ भी। जैसी कि उन्होंने उसे सुनायी थीं।
उसने उनके लिये यह कहते हुए शाह बल से सिफारिश की — “इन लोगों ने बहुत तकलीफें सही हैं और अगर अब आपकी सहायता से उनकी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं तो यह एक बड़ा पुन्य का काम होगा। और मैं खुद भी आपका ज़िन्दगी भर बहुत आभारी रहूँगा। आपकी मेहरबानी से सबको खुशियाँ मिल जायेंगी। ”
मलिक शाह बल ने उनकी कहानियाँ सुन कर कहा — “हाँ हाँ क्यों नहीं। मैं बहुत खुशी से यह काम करूँगा। मैं आपकी बात मानने में कोई कमी नहीं छोड़ूँगा। ”
ऐसा कह कर मलिक शाह ने वहाँ बैठे हुए सभी देवों और परियों की तरफ देखा। फिर उसने उन बड़े बड़े जिन्नों के नाम चिठ्ठियाँ लिखी जो अलग अलग जगहों के सरदार थे कि उसका हुकुम मिलते ही वे वहाँ से जल्दी से उसके पास आ जायें। और अगर कोई आने में देर करेगा उसे सजा दी जायेगी। उसको बन्दी बना लिया जायेगा।
इसके अलावा अगर किसी के पास आदमी जाति की चाहे वह आदमी हो या स्त्री वह उसको भी साथ ले कर आयेगा। अगर किसी ने छिपाने की कोशिश की तो वह चोर समझा जायेगा और उसकी पत्नी और परिवार को मार दिया जायेगा और उनका नामो निशान भी नहीं बचेगा। ”
यह लिखा हुआ हुकुम ले कर देव वहाँ से चारों दिशाओं में चल दिये। दोनों राजाओं में दोस्ती हो गयी और वे आपस में बहुत देर तक बात करते रहे।
इसके बीच मलिक शाह बल ने चारों दरवेशों की तरफ देखते हुए कहा — “मेरी बहुत इच्छा थी कि मेरे बच्चे हों। अल्लाह से मैंने प्रार्थना की कि वह मुझे एक बेटा या बेटी दे दे जिसको मैं आदमी की जाति में ब्याह सकूँ।
जैसे ही मैंने यह प्रार्थना की कि मुझे पता चला कि मेरी पत्नी को बच्चे की आशा हो गयी। बस उसके बाद से मैं हर पल उत्सुकता में जीता रहा। समय आने पर उसने एक बेटी को जन्म दिया।
अपने वायदे के अनुसार मैंने जिन्नों को दुनिया के चारों कोनों में यह पता लगाने के लिये भेजा कि किसी भी राजा के कोई बेटा हो तो वे मुझे बतायें और उसे मेरे पास ले कर आयें। कुछ दिनों में वे लोग इस राजकुमार को मेरे पास ले कर आये।
मैंने अल्लाह को धन्यवाद दिया बच्चे को अपनी गोद में लिया और उसे अपनी बेटी से भी ज़्यादा प्यार दिया।
मैं उसे अपनी आँखों से एक पल भी दूर नहीं करना चाहता था पर फिर भी मुझे उसे इसलिये वापस भेजना पड़ता था कि अगर उसके माता पिता उसको नहीं देखेंगे तो उनको बहुत दुख पहुँचेगा। इसलिये मैं उसको महीने केवल एक बार बुलवा लेता था और दो दिन उसे अपने पास रख कर वापस भेज देता था।
अब अगर अल्लाह खुश हों तो हम लोग आपस में मिल गये हैं अब मैं इन दोनों की शादी कर देता हूँ। हम सबकी मौत तो होनी ही है तो जब तक हम ज़िन्दा हैं तब तक हम इनको खुश खुश देख लें। ”
राजा शाह बल की बात सुन कर और उसके गुण देख कर आजाद बख्त ने उसकी बहुत तारीफ की फिर बोला — “पहले तो राजकुमार को गायब होते और फिर दोबारा प्रगट होते देख कर बहुत घबरा गया पर अब आपकी बातें सुन कर मेरा दिमाग शान्त हो गया है। मैं पूरी तरीके से सन्तुष्ट हूँ। यह बेटा अब आपका है। आप इसको जैसे चाहें रखें। ”
इस तरह दोनों राजाओं का मिलन ऐसा हो गया जैसे चीनी और दूध का होता है। वे आपस में बहुत आनन्द से रहे। दस दिन के भीतर भीतर सारे राजा, ईराम के गुलाब के बागीचे[16] के जिन्नों का और पहाड़ों और टापुओं के राजा मलिक शाह बल के दरबार में इकठ्ठे हो गये।
सबसे पहले मलिके सादिक से कहा गया कि जो भी आदमी की जाति का उसके पास हो वह उसको पेश करे। इस बात से वह बहुत दुखी हुआ पर और कोई चारा न देख कर उसने बूढ़े की गुलाबी गालों वाली लड़की को पेश कर दिया।
उसके बाद उमान के राजा[17] से कहा गया कि वह जिन्न की बेटी को पेश करे जिसके लिये बैल पर चढ़ने वाले नीमरोज़ का राजकुमार पागल था। उसने उसको न देने के लाख बहाने बनाये पर आखिर उसको पेश कर ही दिया।
पर जब फ्रैंक्स के राजा की बेटी और बिहजाद खान के बारे में पता किया गया तो सोलोमन की कसम खा कर लोगों ने कहा कि उनको उन दोनों में से किसी का पता नहीं था।
आखिर जब कुलज़ुम सागर यानी लाल सागर के राजा से पूछा गया कि क्या उसको उन दोनों का कुछ पता है तो उसने अपना सिर नीचे कर लिया और चुप रह गया। मलिक शाह बल उसकी बहुत इज़्ज़त करता था से उसने उससे प्रार्थना की कि वह उनको उसे दे दे वह उसे बाद में उसका इनाम देगा फिर धमकी भी दी।
तब कहीं जा कर वह हाथ जोड़ कर बोला — “योर मैजेस्टी। उनके बारे में यह पता है कि जब फारस का राजा कुलज़ुम सागर पर अपने बेटे से मिलने के लिये आया तो राजकुमार ने उत्सुकता से अपना घोड़ा पानी में घुसा दिया।
इत्तफाक की बात कि मैं उस दिन घूमने के लिये बाहर निकला हुआ था और उस समय उधर से गुजर रहा था तो मैं वहाँ का दृश्य देखने के लिये रुक गया। जब राजकुमारी की घोड़ी उसके पीछे पीछे भागी तो मेरी आँखें उसकी आँखों से मिलीं और मैं उसे देखता ही रह गया।
तुरन्त ही मैंने परियों को हुकुम दिया कि वह उसको उसकी घोड़ी सहित पकड़ कर मेरे पास ले आयें। उसके पीछे बिहज़ाद खान अपने घोड़े से पानी में कूद गया। मैंने उसकी बहादुरी और शान की बहुत तारीफ की और उसको भी पकड़ लिया पकड़ कर मैं उसे अपने घर ले आया इसलिये दोनों मेरे पास सुरक्षित हैं। ” यह कह कर उसने दोनों को वहीं बुलवा लिया।
इसके बाद सीरिया के राजा की बेटी की ढूँढ की गयी। सबसे उसको ढूँढने के लिये कहा गया पर किसी ने यह नहीं कहा कि वह उसके पास है या वह उसके बारे में यह बता सकता है कि वह कहाँ है।
मलिक शाह बल ने फिर पूछा — “ क्या यहाँ कोई राजा गैरहाजिर है या फिर यहाँ सारे राजा हाजिर हैं?”
जिन्नों के राजा ने कहा — “जनाब। यहाँ सब मौजूद है सिवाय एक राजा के और वह है मुसल्सल जादू[18] जिसने काफ़ पहाड़ पर जादू से किला बनवाया है। वह अपनी अकड़ की वजह से नहीं आये हैं।
और हम तो आपके गुलाम है हमारे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं है कि हम उनको जबरदस्ती ला सकें। उनका महल बहुत मजबूत है और वह खुद एक बहुत बड़े शैतान हैं। ”
यह सुन कर मलिक शाह बल बहुत गुस्सा हुआ। इसने जिन्न और परियों की एक बहुत बड़ी सेना उसको लाने के लिये भेजी कि अगर वह उस लड़की को साथ ले कर अपने आप आता है तो ठीक है वरना उसको गले से ले कर एड़ी तक बाँध कर जबरदास्ती ले आना।
इसके अलावा उसके महल को वहाँ से उठा कर धरती पर रख देना और एक गधे से उसके ऊपर हल चलवा देना। ”
जैसे ही उनको यह हुकुम मिला कि इतने सारे लोग वहाँ से उसको लेने के लिये गये कि एक दो दिन में ही वह ताकतवर मलिक शाह बल के सामने लोहे की जंजीरों से बाँध कर ले आया गया।
मलिक शाह बल ने उससे बार बार राजकुमारी के बारे में पूछा पर उस ताकतवर बगावत करने वाले ने कोई जवाब नहीं दिया। आखिर राजा बहुत गुस्सा हो गया तो उसने उसके टुकड़े टुकड़े कर देने का हुकुम दिया और फिर उसकी खाल में भूसा भरने का हुकुम दिया।
एक परियों के झुंड को काफ़ पहाड़ पर जाने के लिये कहा गया कि वह वहाँ उसके महल में राजकुमारी को ढूँढें। वे लोग वहाँ गये और उसे ढूँढ लिया और उसे मलिक शाह बल के सामने ले आये।
सारे बन्दी और चारों दरवेश राजा मलिक शाह बल का रौब और उसके राज चलाने का ढंग देख कर बहुत खुश हुए।
इसके बाद मलिक शाह बल ने सब आदमियों को महल में और स्त्रियों को शाही जनानखाने में जाने का हुकुम दिया। सारा शहर खूब सजाया गया और सबको शादी की तैयारी करने का हुकुम दिया गया। यह सब काम एक पल में ही हो गया जैसे बस राजा के हुकुम की देर थी।
एक दिन एक बहुत ही खुश दिन तय किया गया और राजकुमार बख्तियार की शादी राजकुमारी रोशन अख्तर से हो गयी। पहले दरवेश यानी यमन के नौजवान राजकुमार की शादी दमिश्क की राजकुमारी से हो गयी। दूसरे दरवेश यानी फारस के राजकुमार की शादी बसरा की राजकुमारी से हो गयी।
तीसरे दरवेश यानी अजम के राजकुमार की शादी फ्रैंक्स की राजकुमारी से हो गयी। बिहज़ाद खान की शादी राजा नीमरोज़ की बेटी से हो गयी। और नीमरोज़ के राजकुमार की शादी जिन्न की बेटी से हो गयी। चौथे दरवेश की यानी चीन के राजकुमार की बेटी की शादी हिन्दुस्तान के गरीब भिखारी की बेटी से हो गयी जो मलिके सादिक के कब्जे में थी।
मलिक शाह बल की सहायता से हर निराश राजकुमार की इच्छाएँ पूरी हो गयी। इसके बाद सबने वहाँ 40 दिन खूब खुशी से गुजारे।
आखीर में मलिक शाह बल ने सब राजकुमारों को कीमती और मुश्किल से मिलने वाली चीज़ों की भेंटें दीं और उनको विदा किया। सब बहुत खुश थे सन्तुष्ट थे। सभी अपने अपने घर सुरक्षित पहुँच गये और अपने अपने राज्य में राज करना शुरू कर दिया।
पर बिहज़ाद खान और यमन के सौदागर का बेटा अपनी इच्छा से राजा आजाद बख्त के पास रुक गये। बाद में यमन का नौजवान सौदागर हिज़ मैजेस्टी यानी राजा बख्तियार के नौकरों का सरदार बना दिया गया। और बिहज़ाद खान सेना का जनरल बना दिया गया। जब तक वे वहाँ रहे उन्होंने वहाँ की सारी सुविधाओं का इस्तेमाल किया।
ओ अल्लाह जैसे तूने आजाद बख्त और चारों दरवेशों की इच्छाएँ पूरी की इसी तरीके से तू पाँच आत्माओं[19] 12 इमामों और 14 भोलेभालों[20] की सहायता से सबकी इच्छाएँ पूरी कर जो कोई तुझसे कोई इच्छा रखता हो। आमीन।
अनुवादक :
अल्लाह की मेहरबानी से जब यह किताब खत्म की गयी मैंने अपने दिमाग में इसको कुछ ऐसा नाम देने की सोचा जिससे इसकी तारीख पता चल सके। [21]
जब मैंने गुणा भाग किया तो मैंने देखा कि मैंने इसे हिजरी सन् 1215 के आखीर में शुरू किया था और आराम की कमी की वजह से इसे 1217 के शुरू से पहले खत्म नहीं किया जा सका। मैं इस मामले पर काफी विचार करता रहा।
फिर देखा कि “बागो बहार” शब्द इस तरह का नाम रखने के लिये बिल्कुल ठीक बैठता है क्योंकि यह साल की वह तारीख बताता था जिस दिन इसे खत्म किया गया था इसलिये मैंने इसे यह नाम दे दिया।
जो भी इसको पढ़ेगा उसको ऐसा लगेगा जैसे वह कोई बागीचे में सैर कर रहा हो। यहाँ यह बागीचा ठंड के मौसम का बागीचा है – पर यह किताब नहीं। अब जैसा कि इसका नाम है बागो बहार यह ठंड के तूफानों में आपको कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगा। यह हमेशा ही वसन्ती मौसम जैसा रहेगा।
जब यह बागो बहार मैंने खत्म किया था तब 1217 सन् था। अब आप इसे दिन या रात कभी भी पढ़ सकते हैं। यह बहार तो सदाबहार ताजा बहार है। इसे मेरे दिल के खून से सींचा गया है। इसके हिस्से इसके पत्ते और फल हैं।
सब मेरी मौत के बाद मुझे भूल जायेंगे पर इस किताब को सब एक यादगार की तरह से याद रखेंगे। जो भी इसे पढ़ेगा वह मुझे याद करेगा यह मेरा पढ़ने वालों से वायदा है।
अगर इसमें कोई गलती ही तो मुझे माफ करें क्योंकि फूलों के बीच में काँटे तो होते ही हैं। आदमी गलतियों का पुतला है इसलिये उसको हमेशा सावधान रहना चाहिये।
मेरी बस यही एक इच्छा है और यह मेरी दिल से प्रार्थना है कि मैं हमेशा ही तुझे यानी अल्लाह को याद करता रहूँ और इस तरह अपने दिन रात गुजारूँ। जब मेरा मरने का समय आये तो मुझे बहुत दुख न मिले। और मरने के बाद दोनों दुनिया मुझ पर फूल बरसायें।
GLOSSARY
Some very common words to understand Arabian literature -
12 Imams
12 Imams were, according to the Shiahs :—
1. Ali, son in -law of Muhammad
2. Hasan, his eldest son
3. Husain, his younger son
4. Ali Zainu’ l- abidin, eldest son of Husain
5. Muhammad Bakir, son of Zainu’ l- fibidin
6. Jafar Sadik, son of Bakir
7. Musa, son of ll Jafar
8 . Ali Riza, son of Muszi
9. AbuJafar Muhammad, son of Riza
10. Ali Askari, son of the above
11. Hasan Askari, son of the above
The 12th will be Mahdi, who is yet to appear
Cowrie
Cowrie or cowry (plural cowries) is the common name for a group of small to large sea snails. The term porcelain derives from the old Italian term for the cowrie shell (porcellana) due to their similar appearance. Cowries were formerly used as means of exchange in Africa and in India. In Bengal, India, where it required 3840 cowries to make a rupee, the annual importation was valued at about 30,000 rupees.
Dastar-khwan
"Dastar-khwan" literally signifies the "turband of the table". How they manage to make such a meaning out of it is beyond ordinary research; and when done, it makes nonsense. They forget that the Orientals never made use of tables in the good old times. The dastar-khwan is, in reality, both table and table-cloth in one. It is a round piece of cloth or leather spread out on the floor. The food is then arranged thereon, and the company squat round the edge of it, and, after saying Bism-Illah, fall to, with what appetite they may; hence the phrase dastar-khwan par baithna, to sit on, (not at) the table.
Day of Judgment
The Muhammadans believe that on the day of judgment all who have died will assemble on a vast plain, to hear their sentences from the mouth of God; so the reader may naturally conceive the size of the plain.
Qaf Mountain
The mountain of Qaf (or Koh-Qaf), is the celebrated abode of the jinns, parees (fairies), and divs (devis), and all the fabulous beings of oriental romance. The Muhammadans, as of yore all good Christians, believe that the Earth is a flat circular plane; and on the confines of this circle is a ring of lofty mountains extending all round, serving at once to keep folks from falling off, as well as forming a convenient habitation for the jinns, aforesaid. The mountain, (I am not certain on whose trigonometrical authority) is said to be 500 farasangs or 2000 English miles in height.
Karoon
A personage famed for his wealth, like the Croesus of the Greeks, or Kuber in Hindus, etc.
Khil'at
Khilat is a dress of honour, in general a rich one, presented by superiors to inferiors. In the zenith of the Mughal empire these Khil'ats were expensive honours, as the receivers were obliged to make rich presents to the emperor for the Khil'ats they received. The Khil'at is not necessarily restricted to a rich dress; sometimes, a fine horse, or splendid armour etc may also form an item of it.
Masanad
Masanads are round long thick pillows
Shabarat
The Shabarat is a Mahommedan festival which happens on the full moon of the month of Shaban; illuminations are made at night and fire-works displayed; prayers are said for the repose of the dead, and offerings of sweetmeats and viands made to their manes. A luminous night-scene is therefore compared to the Shabrat. Shaban is the eighth Mahomedan month.
Siddi
Ethiopian, or Abyssinian slaves, are commonly called Sidis. They are held in great repute for their honesty and attachment.
Tales of Four Derwesh
The list of all its translations is given on the following site :
http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urdu/baghobahar/bibliography.html
1300+ Kissaye Chahar Darwesh
By Amir Khusro. In Persian. After 1300, as he died in 1325.
1770s Nau Tarz-e-Murassa
First translated by Mir Husain Ata Tehseen in Urdu. 1770s. Thickly inlaid with Arabic and
Persian
1804 The Tale of the Four Durwesh
Translated by Mir Amman from Mir Husain Ata’s Urdu translation in speaking Urdu.
1813 Translation of the Bagh-O-Bahar Or Tales of the Four Darwesh
Translated by Lewis Ferdinand Smith. from Urdu by Mir Amman of Dilhi (1851). 296 p.
1832 Bagh-O-Bahar
Edited by Firoz Ahmed (in Urdu/Persian/Arabic). 1832. 256 p.
https://www.rekhta.org/ebooks/bagh-o-bahar-mir-amman-ebooks-2
1851 Tales of Four Darwesh
Translated by Duncan Forbes in English – (from Mir Amman ’s copy). London : Wm H Allen.
1851.
1852 Bagh-O-Bahar Or The Garden and the Spring Being the Adventures of the King Azad Bakht
and the Four Darweshes
Literally Translated from Urdu Mir Amman of Dihli by Edward B Eastwick. London :
Crosby Lockwood. 1852. 270 p.
1874 Bagh-O-Bahar, or Tales of the Four Derweshes
Translated by Ducan Forbes – (from the Hindustani of Mir Amman of Dilli). 1874.
http://www.gutenberg.org/cache/epub/12370/pg12370-images.html AND
http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urdu/baghobahar/index.html#index
This book in English can be read at and downloaded from this site :
https://archive.org/details/baghobaharortale12370gut
1994 A Tale of Four Dervishes (Bagh-o-Bahar)
Translated by Mohammed Zakir in English. Penguin Books India. 1994. 172 p.
2004 किस्सा चार दरवेश : Stories of the Four Dervishes
Translated by Balwant Singh in Hindi. Delhi : Rajkamal Prakashan. 2004. 119 p.
2010 Bagh-O-Bahar
By Meer Amman Dehlavi. Edited by Krishn Kumar Jhari in Hindi. Delhi : Parag Prakashan.
2010. 184 p.
2013 किस्सा चार दरवेश : Stories of Four Dervish
Translated by Ganga Prasad Sharma in Hindi. Delhi : Manoj Publications. 2013. 136 p
These three books, translated or edited in Hindi, available in the market, do not seem to me like the full translation of any original book. Athough I have not seen these books myself, but it can be assured from their details that these books are not the translations, because the original book is of 260 pages long. It seems that these people have written these stories in their own words after reading it somewhere.
2016 Story of the Four Saints
Translated by Muhammad Asim Butt in English. 2016.
2019 किस्सये चार दरवेश
Translated by Sushma Gupta in Hindi from Duncan Forbes’ translation in English.
Available free in PDF form from the translator. Write to : folktalesinhindi@gmail.com
Films Based on Char Derwesh
1964 Char Dervesh. Indian Film. It only vaguely matches with Amir Khusro’s “Tale of Char Dervesh”, not much.
भूली बिसरी लोक कथाओं की सीरीज़ में प्रकाशित पुस्तकें —
1. Zanzibar Tales: told by the Natives of the East Coast of Africa.
Translated by George W Bateman. Chicago, AC McClurg. 1901. 10 tales. Available in English at :
https://www.worldoftales.com/Tanzanian_folktales.html
ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ। अनुवाद – जौर्ज डबल्यू बेटमैन। 1901। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
2. Serbian Folk-lore : popular tales
Translated by Madam Csedomille Mijatovies. London, W Isbister. 1874. 26 tales.
Available in English at : https://books.google.ca/books?id=lC4CAAAAIAAJ&pg=PR4&redir_esc=y&hl=en#v=onepage&q&f=false
सरबिया की लोक कथाएँ। अंगेजी अनुवाद – मैम ज़ीडोमिले मीजाटोवीज़। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता।
जनवरी 2019
---------------------
“Hero Tales and Legends of the Serbians”. By Woislav M Petrovich. London : George and Harry. 1914 (1916, 1921). Available at the Web Site : http://www.hellenicaworld.com/Serbia/Literature/WoislavMPetrovitch/en/HeroTalesAndLegendsOfTheSerbians.html
Out of 26 tales it contains 20 folktales and some other material.
3. The King Solomon: with Solomon and Markolf
राजा सोलोमन और सोलोमन और मारकोफ़। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता – प्रभात प्रकाशन। जनवरी 2019
Solomon and Markolf is available at :
4. Folktales of Bengal. By Rev Lal Behari Dey. 1889. 22 tales. Available in English at :
https://en.wikisource.org/wiki/Folk-tales_of_Bengal
बंगाल की लोक कथाएँ — लाल बिहारी डे। 1889। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता – नेशनल बुक ट्रस्ट। । जनवरी 2019
5. Russian Folk-Tales. By Alexander Nikolayevich Afanasief. 1889. 64 tales.
Translated by Leonard Arthur Magnus. 1916. Available in English at :
htthttps://en.wikisource.org/wiki/Russian_Folk-Tales
रूसी लोक कथाएँ – अलैक्ज़ैन्डर निकोलायेविच अफ़ानासीव। 1916। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
6. Folk Tales from the Russian. By Verra de Blumenthal. 1903. 9 tales. Available in English at :
http://www.sacred-texts.com/neu/ftr/index.htm
रूसी लोगों की लोक कथाएँ – वीरा डी ब्लूमैन्थल। 1903। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
7. Nelson Mandela’s Favorite African Folktales. 2002. 32 tales
नेलसन मन्डेला की अफ्रीका की प्रिय लोक कथाएँ। 2002। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
8. Fourteen Hundred Cowries. By Fuja Abayomi. Ibadan: OUP. 1962. 31 tales.
चौदह सौ कौड़ियाँ – फूजा अबायोमी। 1962। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
9. Il Pentamerone. By Giovanni Battiste Basile. 1893. 50 tales. Available in English at :
http://www.surlalunefairytales.com/facetiousnights/foreward.html
इल पैन्टामिरोन – जियोवानी बतिस्ते बासिले। 1893। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
10. Tales of the Punjab. By Flora Annie Steel. 1894. 43 tales. Available in English at :
http://digital.library.upenn.edu/women/steel/punjab/punjab.html
पंजाब की लोक कथाएँ – फ्लोरा ऐनी स्टील। 1894। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जनवरी 2019
11. Folk-tales of Kashmir. By James Hinton Knowles. 1887. 64 tales. Available in English at :
https://books.google.ca/books?id=ChaBAAAAMAAJ&pg=PR3&redir_esc=y&hl=en#v=onepage&q&f=false
काश्मीर की लोक कथाएँ – जेम्स हिन्टन नोलिस। 1887। हिन्दी अनुवाद — सुषमा गुप्ता। जून 2019
12. African Folktales. By Alessandro Ceni. Barnes & Nobles. 1998. 18 tales.
अफ्रीका की लोक कथाएँ – अलेसान्ड्रो सैनी। 1998। हिन्दी अनुवाद — सुषमा गुप्ता। जून 2019
13. Orphan Girl and Other Stories. By Buchi Offodile. 2001. 41 tales
लावारिस लड़की और दूसरी कहानियाँ – ओफ़ोडिल बूची। 2001। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जून 2019
14. The Cow-tail Switch and Other West African Stories. By Harold Courlander and George Herzog.
NY: Henry Holt and Company. 1947. 143 p. 17 tales
गाय की पूँछ का चँवर – हैरल्ड कूरलैन्डर जौर्ज हरज़ौग। 1947। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जून 2019
15. Folktales From Southern Nigeria. By Elphinstone Dayrell. 1910. 40 tales. Available in English at:
http://www.worldoftales.com/Nigerian_folktales.html
दक्षिणी नाइजीरिया की लोक कथाएँ – ऐलफिन्स्टोन डेरैल। 1910। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जून 2019
16. Folk-lore and Legends : Oriental. By Charles John Tibbitts. London, WW Gibbins. 1889.
13 Folktales. Available in English at the following Web Sites : https://www.worldoftales.com/Oriental_folktales.html AND
http://www.sacred-texts.com/asia/flo/index.htm AND
https://fairytalez.com/cobbler-astrologer/ presented in a different order
अरब की लोक कथाएँ – चार्ल्स जौन टिबिट्स। 1889। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जून 2019
17. The Oriental Story Book. by Wilhelm Hauff. Tr by GP Quackenbos. NY : D Appleton. 1855.
7 long Oriental folktales.
Available in English at : https://www.worldoftales.com/Oriental_story_book.html
18. Georgian Folk Tales. Tr by Marjorie Wardrop. London: David Nutt. 1894. 35 tales. Its Part I was published in 1891, Part II in 1880 and Part III in 1884. Available in English at : http://www.archive.org/stream/cu31924029936006#page/n19/mode/2up
जियोर्जिया की लोक कथाएँ – मरजोरी वारड्रौप। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जून 2019। दो भाग
19. Lobo’s Ethiopia of 1625. By Sushma Gupta
(Along with Some Modern History of Ethiopia)
लोबो का इथियोपिया 1625 में — सुषमा गुप्ता। जून 2019।
http://www.gutenberg.org/files/1436/1436-h/1436-h.htm AND
https://lobo.thefreelibrary.com/Voyage-to-Abyssinia
20. West African Tales. By William J Barker and Cecilia Sinclare. 1917. 35 tales. Available in English at : http://www.surlalunefairytales.com/books/africa/barker/howwegotspidertales.html
पश्चिमी अफ्रीका की लोक कथाएँ — विलियम जे बार्कर और सिस्ीालिया सिन्क्लेयर। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। जून 2019
21. Nights of Straparola. By Giovanni Francesco Straparola. 1550, 1553. 2 vols.
First Tr: HG Waters. London: Lawrence and Bullen. 1894. Available in English at :
https://books.google.ca/books?id=e5lBAAAAYAAJ&pg=PA18&lpg=PA18&dq=salardo+and+the+Falcon+story&source=bl&ots=99bbAEiBBh&sig=L51_L6uYBqFuFLj4W5leDmpsrAA&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjzD2z9LXAhVBImMKHS_KB24Q6AEIQTAE#v=onepage&q=salardo%20and%20the%20Falcon%20story&f=false AND
http://www.surlalunefairytales.com/facetiousnights/
स्ट्रापरोला की रातें — जियोवानी फ्रान्सैस्को स्ट्रापरोला। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। अक्टूबर 2019
22. Deccan Nursery Tales or Fairy Tales from Deccan. By Charles Augustus Kincaid. 1914. 20 tales.
Available in English at : http://www.gutenberg.org/files/11167/11167-h/11167-h.htm
दक्कन की नर्सरी की कहानियाँ — सी ए किनकैड। 1914। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। अक्टूबर 2019
23. Old Deccan Days or Hindoo Fairy Legends. By Mary Frere. 1868. 24 Tales.
London, John Murray. (5th edition 1898)
पुराने दक्कन के दिनः हिन्दू परियों की कहानियाँ — मैरी फ्रेरे। 1868। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता।
अक्टूबर 2019
24. Kissaye Char Darwesh. By Amir Khusro. 1300-1325. 5 Tales.
My translation is from it English translation “Bagh-O-Bahar or The Tales of Four Darweshes”. Translated by Duncan Forbes from Mir Amman version. 1857. This book is available at : http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urdu/baghobahar/index.html#index
किस्सये चार दरवेश — अमीर खुसरो। हिन्दी अनुवाद – सुषमा गुप्ता। अक्टूबर 2019
Facebook Group
https://www.facebook.com/groups/hindifolktales/?ref=bookmarks
Updated on Dec, 2019
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता
इनका जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र् और अर्थ शास्त्र् में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भि्ान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। सन 2018 तक इनकी 2000 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया है।
आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।
विंडसर, कैनेडा
जनवरी 2019
[1] Adventures of the Fourth Darwesh (Tale No 5) – Taken from :
http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urdu/baghobahar/06_fourthdarvesh.html
[2] Roshan Akhtar
[3] According to the fabulous system of Jinns, Devis, Paris, in Asia, it is supposed that the Jinns and Paris live on essences etc. The Devis are malignant spirits or beings, and live on less delicate food.
[4] Chin and Machin is the general name of China among Persians.
[5] Abu Jahal. Abu-Jahal, or "the father of obstinacy," or "of brutality," was the name of an Arab. He was uncle to the prophet Muhammad, and an inveterate opposer of the latter's new religion.
[6] Isme Azam – one of the greatnames of Allah.
[7] Cowrie or cowry (plural cowries) is the common name for a group of small to large sea snails. The term porcelain derives from the old Italian term for the cowrie shell (porcellana) due to their similar appearance.
[8] The qazis and muftis are the judges in Turkey, Arabia, Persia and Hindustan, of all civil and religious causes; they likewise marry, divorce etc.
[9] Judgment Day
[10] A kind of litter for travelling in Persia and Arabia; two of them are slung across a camel or a mule; those for camels carry four persons. Similar to them is shown above to be used to ride on elephant.
[11] Zu-l-Faqar - Zu-l-faqar, the name of a famous sword that 'Ali used to wear.
[12] Ali Mushkil Kusha
[13] Read the account of the wonderful Throne of Solomon in the book “Raja Solomon” by Sushma Gupta in Hindi. Delhi : Prabhat Prakashan. 2019. 144 p.
[14] The son of Shah Rukh – Malik Shah Bal
[15] Azad Bakht’s son Bakhtiyar
[16] Rose Garden from Iram – a famous garden in Arabia Felix; it is also applied to the garden in Paradise, in which all good Mahommedans, according to their belief, are to revel after death.
[17] 'Umman is the name of the southern part of Yaman or Arabia Felix; the country which lies between the mouth of the Persian Gulf and the mouth of the Red Sea; the sea which washes this coast is called the sea of 'Umman in Persia and Arabia, as the Red Sea is called the sea of Qulzum.
[18] Musalsal Jadu
[19] The five pure bodies are Muhammad, the prophet; Fatima, his daughter; 'Ali, her husband; and Hasan and Husain, their chidren.
[20] The 14 innocents are the children of Hasan and Husain.
[21] By an arithmetical operation called in Persian, Abjad; as Persian letters have arithmetical powers, the letters which compose the words Bagh O Bahar, added up, produce the sum 1217. From the inscription on most Muhammadan tombs, and those on the gates of mosques, the dates of demise and erection can be ascertained. We had the same barbarous custom in Europe about the thirteenth and fourteenth centuries; see the Spectator (No. 60,) on this ridiculous subject, which was considered as a proof of great ingenuity.
(समाप्त)
COMMENTS