व्यंग्य लोकतंत्र की भीष्म प्रतिज्ञा प्रभात गोस्वामी आज अचानक हमारी मुलाक़ात देश के लोकतंत्र से हो गई . कुछ उदास , कुछ खिन्न और झुंझलाए से ...
व्यंग्य
लोकतंत्र की भीष्म प्रतिज्ञा
प्रभात गोस्वामी
आज अचानक हमारी मुलाक़ात देश के लोकतंत्र से हो गई . कुछ उदास , कुछ खिन्न और झुंझलाए से दिख रहे लोकतंत्र से हमने वैसे ही दुआ-सलाम कर हालचाल पूछ लिए तो वह किसी बादल से फट पड़े . बोले - आज़ादी के लिए गोरों से सन 1857 से 1947 तक 90 साल के लम्बे संघर्ष के बाद मेरा जन्म हुआ था . राजशाही तो उस वक़्त भी मेरा एबॉर्शन करवाना चाहती थी . उनकी चलती तो मेरा जन्म ही नहीं होता . पर, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के एक लोकतान्त्रिक देश के स्वप्न को पूरा करने के लिए संकल्पबद्ध पंडित जवाहर लाल नेहरु और लोहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जुगलबंदी के विरूद्ध उनकी एक भी नहीं चली . हार कर, राजशाही के विशाल महलों के आँगन में भी न चाहते हुए मेरे जन्म पर थाली बजानी ही पड़ी .
लोकतंत्र ने आगे बताया कि इस देश की जनता ने मुझे पलकों पर बिठाया . इस देश की राजगद्दी को लोकतान्त्रिक पायों पर खड़ा करने , इसकी आजीवन संरक्षा करने के लिए मैंने भी "भीष्म प्रतिज्ञा" ली थी कि मैं आजीवन शादी नहीं करूँगा . अगर मैं शादी कर लेता तो मेरे पुत्र-पुत्रियां राज गद्दी पर अपना हक़ जताने लगतीं और मैं भी आज मजबूर हो कर उनकी स्वार्थपूर्ति करता . पर, धरती पर जनता रूपी 125 करोड़ देवी-देवताओं ने मुझे देश हित में हर अच्छे-बुरे अवसर के लिए दृढ़ता से उनके साथ खड़े रहने का और जब तक चाहूँ जीवन जीने का वरदान दिया हुआ है . मैं जब तक जिंदा रहूँगा कोई भी इस देश को नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा .
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हमने पूछा कि - आप की छत्र-छाया में यह देश सकुशल तो है . हम लोकत्रंत्र की घनी छाँव तले विकास के नित नए सपने बुन रहे हैं . परमाणु शक्ति के साथ हमने कृषि , आधारभूत संरचना , विज्ञान, तकनीक, शिक्षा सहित हर क्षेत्र में तरक्की की है. विगत73 सालों के सफर को याद करते हुए लोकतंत्र अब थोडा भावुक होते हुए बोला - हाँ , ये सही तो है पर जब कोई ये कहता है कि 70 सालों में देश में कुछ भी नहीं हुआ तो दिल टुकडे-टुकडे हो कर बिखर जाता है . तब मुझे लगता है कि क्या आज़ादी के बाद से अब तक मैं इस देश में भार बनकर खड़ा हुआ हूँ ? इस दौरान मैंने एकल दलों के बहुमत और प्रचंड बहुमत का बल भी देखा और टुकड़े-टुकड़े दलों का दल-दल भी देखा. जब-तब जनता हुक्मरानों की आँखों से स्वार्थ की पट्टी उतारती है तब मुझे अपने होने का गर्व भी होता है .
लोकतंत्र आगे कहता है - मेरा जन्म इसलिए हुआ था कि मैं जनता के लिए , जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों से संचालित होता रहूँ और सबको विकास के सामान अवसर , न्याय दिलवाने के साथ देश को दुनिया का एक सशक्त लोकतंत्र बनाने के सपने को पूरा कर सकूँ . मुझे ख़ुशी भी है कि इस दिशा में मेरा मस्तक दुनिया में ऊंचा हुआ है . पर, दुःख भी है की मेरी इस अवधारणा के विपरीत कई -कई बार मुझे कहीं जातिवाद तो कहीं परिवारवाद की भूल-भुलैया में भटकने को मजबूर भी किया गया है . मुझे यहाँ से अब बाहर निकलने का रास्ता भी नहीं सूझ रहा . मुझे यह भी डर है कि कहीं सत्ता, अहंकार का रसपान कर मुझे दरकिनार करने की मुहिम में न जुट जाए ?
हमने पूछा - इतना भी मत सोचो यार , ऐसा थोड़े ही है कि देश में लोकतंत्र तार-तार हो कर बिखर जाए ?
लोकतंत्र बोला - नहीं ..नहीं मैं ऐसा नहीं कह रहा . आज भी देश में लोकतंत्र के पोषक मौजूद हैं , मेरे अस्तित्व को बनाए रखने के लिए लड़ने वालों की संख्या भी कम नहीं . पर , ऐसा भी होता है कि जब-तब उनकी इच्छा पूरी नहीं होती या उनके हितों पर कुठाराघात होता है तब-तब वो मेरी हत्या कभी दिन के उजाले में तो कभी रात के अँधेरे में करने से परहेज नहीं करते . लेकिन ये लोग नहीं जानते कि भीष्मपिता की तरह मुझे भी देश के 125 करोड़ लोगों ने इच्छा मृत्यु का वरदान दे रखा है .
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लोकतंत्र अब थोड़ी मजबूती के साथ बोला - मेरी मृत्यु तो मेरे चाहने पर ही होगी . वे मीडिया में चाहे जितने बयान दें कि लोकतंत्र की हत्या कर दी गई है , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता . मैं पुन:पुनः मजबूत होकर देश की जनता के सामने खड़ा रहूँगा . पिछले कुछ दशकों में पक्ष-विपक्ष ने मेरी हत्या के समाचार दिए पर मैं आज भी अजर -अमर हूँ . अपितु सारी विपरीत परिस्थितियों में, मैं और भी मजबूत हुआ हूँ , ये जनता का आशीर्वाद ही है .
हमने पूछा - फिर दुःख किस बात का है ? लोकतंत्र बोला - मेरे प्रति लोगों की आस्था को कम करने के षड्यंत्र से दुखी हूँ . मुझे शब्द बाणों की सरसैया में जबरन लिटाने के प्रयास किये जा रहे हैं , कुछ शक्तियाँ चाहतीं हैं कि मैं भी चुपचाप रहूँ . पर , जितना मेरा मुंह बंद किया जाएगा, मेरी आवाज़ उतनी ही मुखर हो कर दूर तलक जाएगी .
अंत में, लोकतंत्र ने संकल्प के साथ , ज़ोर देते हुए कहा कि-जब तक देश चहुंमुखी विकास के शिखर पर खड़ा नहीं हो जाता , इस देश के अंतिम छोर पर बैठे निर्धनतम व्यक्ति के घर में खुशहाली की रोशनी नहीं पंहुचती , जब तक इस देश में सामाजिक न्याय की अवधारणा पूरी नहीं होती , सबको बराबरी का हक़ नहीं मिल जाता तब तक मैं अपनी भीष्म प्रतिज्ञा पर अडिग खड़ा रहूँगा . मेरे विरुद्ध खड़ी कोई भी ताकत मुझे पराजित नहीं कर सकेगी . मुझे उम्मीद है कि एक दिन ऐसा भी ज़रूर - आएगा . तब तक हमारी पवित्र गंगा की सफाई भी हो जाएगी ?? और, मैं भी उसके पवित्र! किनारे इस महान भारत के सपने को पूरा कर मृत्यु की गोद में समा जाने की सोचूंगा !
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15/27, मालवीय नगर ,
जयपुर-302017 (राजस्थान)
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