हँसो , मत हँसो हास्य व्यंग्य कवि हलीम आईना का दूसरा काव्य संग्रह है, इसके पूर्व वर्ष 2013 में राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से इ...
हँसो, मत हँसो हास्य व्यंग्य कवि हलीम आईना का दूसरा काव्य संग्रह है, इसके पूर्व वर्ष 2013 में राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से इनका हँसो भी...हँसाओ भी कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था। हास्य व्यंग्य कविता लेखक की प्रिय विधा है। हलीम आईना हास्य-व्यंग्य कविता के सशक्त हस्ताक्षर है। इनके लेखन का सफ़र बहुत लंबा है। विगत तीन दशकों से देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हास्य-व्यंग्य कवि की रचनाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। इस पुस्तक में 34 कविताएँ, 15 कुण्डलियाँ और 5 दोहे संकलित हैं। हलीम आईना अपनी पारखी नजर से अपने आसपास के परिवेश की विसंगतियों, विद्रूपताओं को उजागर करके अनैतिक मानदंडों पर तीखे प्रहार करते हैं। इस संग्रह की कविताओं में मानवीय अनुभवों-प्रसंगों को उभारने वाले बिंब है। लेखक के इस संकलन की कविताओं में जीवन के बहुत से रंग हैं। कवि ने कम से कम शब्दों में सारगर्भित बात अपनी रचनाओं के माध्यम से कही है। लेखक ने अनुकूल भाषा का सुन्दर प्रयोग किया है। इस कृति की रचनाओं की भाषा सहज, सरल और सम्प्रेषणीय है।
हास्य व्यंग्य कवि हलीम आईना आधुनिक दुनिया को अपने ही नजरिए से देखते हैं और भय का भूत...? शीर्षक से उनकी छोटी सी रचना से वे एक मंझे हुए रचनाकार लगते हैं :-
एड्स के / भय रुपी भूत का / आतंक / जब से / दुनिया में / फैला है, / "सुरक्षा कवच" / साथ में रखती / आधुनिक लैला है।
दादा की कब्र पर... रचना जीवन की तल्ख़ सच्चाइयों से और दिल्ली है बीमार, आज कल दिल्ली में हास्य व्यंग्य कविता दिल्ली की हकीकत से रूबरू करवाती कवि की अद्भुत रचनाएँ हैं।
अभी, रावण ज़िंदा है...?, घायल सड़क की गिट्टी...?, कबूतरी फण्ड...?, महाग्रन्थ, मोटापे का राज जैसी रचनाएँ व्यंग्य की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है। कई जगह उनके धारदार व्यंग्य के तीर गहरे चिंतन को विवश कर देते हैं। बानगी देखिए :-
अचानक स्वप्न टूटा, / तो गिट्टी के भीतर का / ज्वालामुखी फूटा- / "बेटे! / मेरे हिस्से का / डामर-सीमेन्ट / मंत्री-संत्री-तंत्री / यूरिया के साथ / चबैना बना कर / फाँक रहे हैं, / और / कुछ उलटे भेजे के / ईमानदारी के पुतलों को छोड़कर / अफ़्सर-बाबू-ठेकेदार / मेरी जिन्दा लाश को / चील-गिद्ध-कौओं की भाँति / ताक रहे हैं। / और तो और / मेरी इज्जत के रखवाले भी / राम-नाम की लूट में / पिछले दरवाज़ों से / अमृत कलश / मँगवा रहे हैं, / और / तुझ जैसे / टुच्चे! / कवी-लेखक-पत्रकार भी / अन्धे-बहरे-गूँगे की / भूमिका निभा रहे हैं।
(घायल सड़क की गिट्टी...?)
एक / गोल मटोल / चूहे से / एक मरियल / चूहे ने / पूछा - / " चूहे भाई! / तेरे मोटापे का / राज तो बता?" / गोलमटोल चूहे ने / फटाक से / दिया जवाब - / "मैं सरकारी / चूहा हूँ / जनाब! "
(मोटापे का राज)
हलीम आईना की रचनाओं में हाजिरजवाबी, हास्य-व्यंग्य और विनोद का पुट होने से नीरसता नहीं लगती है :-
वो बोले- / " मिस्टर आईना! / शादी के बाद / बेचारे पति की / बोलती / क्यों बन्द हो जाती है / ज़रा बताओ ना! " / हमने कहा- / " यार! / क्यों खोपड़ी चाटता है / बेकार? / तेरे भेजे में / सीधी-सी बात / क्यूँ नहीं आती है? / शादी के बाद / बीवी रूपी कलर टी.वी. / के आगे / पतिनुमा / पुराने ट्रांजिस्टर की / आवाज़ खो जाती है...! "
(बोलती बन्द...?)
लक्ष्मी जी वरदान की मुद्रा में आई / फिर वरदान देते हुए मुस्कुराई - / " तू भी याद करेगा? / बेटा, उल्लू जा! / तू प्रतिवर्ष मुझसे भी पहले / पूजा जाएगा / तू एक दिन के लिए / आदमी की शक्ल पायेगा, / तेरे जम के चूना लगाया जाएगा, / तुझे आदमी होकर भी / उल्लू बनाया जाएगा / और वह दिन कलियुग में / " करवा चौथ " कहलायेगा
(उल्लू बनाम आदमी)
गंगा मैली हो गयी...? कविता गंगा नदी को मैला करने वालों को चेतावनी और पर्यावरण के प्रति सीख है कि अभी तक भारतवासियों ने अनचाही चेष्टा करके मानवता को मृत्यु-पथ पर धकेल दिया है। लेखक इस कविता के माध्यम से सन्देश देते हैं कि भटके हुए लोगों को अब तो अपनी गंगा-जमनी सँस्कृति से नाता जोड़कर सृष्टि के वरदान, गंगा नदी की शुद्धता और पावनता को पहचानना चाहिए, जिस पर सारा हिन्दुस्तान टिका हुआ है।
माँ पावन गंगोत्री... माँ की ममता और उसकी महिमा को कवि ने बेहतरीन अंदाज में पिरोया है। मिलावट की माया...? कुण्डली में मिलावट करने वालों की कारगुजारियों पर प्रश्न-चिन्ह लगाया गया है। कविता की दृष्टि से कविता...? और पारस जीवन मूल्यों की शिक्षा देती सार्थक रचनाएँ हैं। इंसानियत, लोकतंत्र, कुर्सी की महिमा, भ्रष्टाचार, पर्यावरण, जल संरक्षण, आतंकवाद, मिलावट, गिरगिट जैसे रंग बदलते लोग, माँ की ममता जैसे अनेक विषय पर हलीम आईना ने अपनी कलम का जादू बिखेरा है। दिल को छूती इस संकलन की रचनाएँ पाठकों को बांधे रखती हैं। हँसो, मत हँसो हास्य-व्यंग्य कविता संग्रह पठनीय है। आशा है साहित्य जगत में इस कृति का स्वागत होगा, इसी मंगल कामना के साथ हलीम आईना को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
पुस्तक : हँसो, मत हँसो
लेखक : हलीम आईना
प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन, आईसीएस (रेमण्ड शोरूम), राधाकृष्ण मार्केट, एसबीआई बैंक के पास, गंगापुर सिटी - 322201
मूल्य : 100 रूपए
पेज : 84
दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
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