मैं यह नहीं कहता हूँ कि मेरी तरह किसी और का जीवन नहीं बीता है। हो सकता है कई लोग होंगे, जो अपने जीवन में कई संघर्ष झेलकर धरातल से आसमां तक प...
मैं यह नहीं कहता हूँ कि मेरी तरह किसी और का जीवन नहीं बीता है। हो सकता है कई लोग होंगे, जो अपने जीवन में कई संघर्ष झेलकर धरातल से आसमां तक पहुंचे या यूँ कहें कि अर्श से फर्श तक पाया है। इन सबके जैसे एक सामान्य, छोटी-सी और ज्यादातर लोगों से मिलती-जुलती है मेरी कहानी।
एक छोटे से गाँव में, गरीब साक्षर माता-पिता के घर मेरा जन्म हुआ। धीरे-धीरे शैशवावस्था से बाल्यावस्था आ गयी। पता ही नहीं चला और किसी को भी याद नहीं रहता है कि यह समय कैसे गुजरा? केवल माता-पिता या किसी अन्य के द्वारा कहने पर ही पता चलता है। पाँच वर्ष का होने पर गाँव के ही सरकारी विद्यालय में प्रवेश हो गया। उस समय हमारे यहाँ तो शायद ही किसी को पता था कि शहर में बहुत अच्छे निजी स्कूल हैं और मान लें कि पता होगा, तो भी फीस जमा कराने की बात आने पर वही होता, जो आगे हुआ था। साल दर साल कक्षा बदलती गयी।
जब मैं आठवीं में पहुँचा। तब माँ के पेट का ऑपरेशन होने की वजह से एक प्रश्न उठा कि अब खेती के कार्यों में पिताजी का साथ देने के लिए मुझे स्कूल बंद करना होगा। उस वक्त मुझे कुछ ज्यादा तो पता नहीं था कि मुझे आगे क्या करना है? लेकिन मन में बार-बार यही बात आ रही थी कि दूसरे बच्चे एक कक्षा में दो-दो बार असफल हो गये। फिर भी उनका स्कूल नहीं छूटा। तो मेरा कैसे छूट सकता है? मैं तो अब तक असफल नहीं हुआ हूँ। माँ ने कहा कि मेरी वजह से इसका स्कूल नहीं छूटना चाहिए। जब तक मैं ठीक नहीं होऊँ, तब तक खेती कम कर देनी चाहिए। तो इस प्रकार मेरा कक्षा नौ में प्रवेश हो गया। अब पहली बार चुनौती सामने आयी कि अब तक गाँव के बहुत से बच्चे जो होशियार माने जाते थे। वह भी इस कक्षा में सफल नहीं हो पाये थे। तो मेरे मन में भी डर होना वाजिब था। लेकिन मैंने उस वक्त केवल एक ही बात मन में ठान ली थी कि चाहे कुछ भी हो, मुझे हर हाल में इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना ही होगा। ईश्वर की कृपा हुई और मेहनत रंग लायी। मैं सफल हो गया। वरना मेरी कहानी का वहीं पर खत्म होना तय था।
जब मैं दसवीं के बाद आगे कक्षा ग्यारहवीं में प्रवेश लेने के लिए पास के शहर में विद्यालय में गया। तब तक कई बच्चों के प्रवेश हो चुके थे, तो अब मुझे इच्छानुसार विषय नहीं मिल पाये। अंत में अध्यापक जी ने उनके हिसाब से जो भी विषय बताये, वही मुझे लेने के लिए बाध्य होना पड़ा। अब मेरी हालत ऐसी थी कि मेरी रुचि का जो पसन्दीदा विषय था हिंदी साहित्य। वही मुझे नहीं मिला था। तो इस समस्या का हल इस प्रकार निकला कि मैंने बिना इच्छा के ही दूसरे विषयों का अध्ययन किया और जो विषय नहीं मिला था, वह विषय भी दूसरे बच्चों की तरह खुद ही लगातार पढ़ता रहा। अपनी रुचि से, न कि अंक हासिल करने के लिए।
बाद में कॉलेज जाकर मैंने सबसे पहले वही विषय लिया। तब जाकर मुझे ऐसा लगा कि मेरे कटे हुए थे, जो एक बार पुनः आ गये हैं। इस प्रकार स्नातक पूरे तन-मन से हुई। अब तक मैंने केवल यही सीखा था कि यदि आपके खुद के मन में कुछ करने की इच्छा है, तो सब चाहकर भी तुम्हें नहीं रोक पायेंगे। साथ ही आपकी जिस कार्य में रुचि है, उसी कार्य को करना चाहिए। क्योंकि आपको अगर कुछ अलग नया करना है, तो आप दूसरे की देखादेखी कोई काम करके नहीं कर सकते हैं। इसलिए वही करो, जो दिल कहे। और उनमें अपना शतप्रतिशत योगदान दें।
मेरे जीवन में एक नया संघर्ष प्रारंभ हुआ था, जब मैंने बीएड के लिए प्रवेश लिया। पहली चुनौती थी लगभग पच्चीस हजार फीस भरने की। माता-पिता के पास पैसे नहीं थे, लेकिन कुछ अनाज बेचकर, कुछ उधार लेकर और कुछ गहने देकर पच्चीस हजार रुपये की व्यवस्था कर ली थी। लेकिन उस समय लोगों के ताने सुनकर मुझे तो बहुत दुख होता था। साथ ही माता-पिता के लिए भी मेरे मार्ग में अडिग रहना मुश्किल होने लगा। तब मैंने साफ-साफ कह दिया कि- आप लोगों की बकवास पर ध्यान न दें और मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मैं आपकी मेहनत की कमाई को व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। चाहे लाखों बच्चे बीएड करके घर पर बैठे हो। लेकिन मैं हिम्मत हारकर घर नहीं बैठूँगा। दिन-रात एक करके सीधी भर्ती परीक्षा में चयनित होकर दिखाऊँगा। इस बात पर मेरे माता-पिता ने यकीन कर लिया था। लेकिन गाँव के दूसरे लोग तो मजाक ही उड़ाते कि हम गाँव के लड़कों को कौन सरकारी नौकरी देगा? नौकरी के लिए तो बहुत जेक-चेक की आवश्यकता होती है। सच कहूँ कि लोग जितना नकारात्मक सोचते, उतनी ही मेरे भीतर सकारात्मकता आती। बार-बार मन में यही बात दोहराता कि सारे बच्चे तो सिफारिश से नौकरी नहीं लगते होंगे। यदि ऐसा होता, तो फिर सरकार परीक्षा क्यों करवाती? कुछ भी हो, जब मैं सबसे ज्यादा अंक लेकर आऊँगा। तब कौन रोकेगा मुझे? इस सपने को साकार करने के लिए मैंने घर पर ही अध्ययन शुरू किया। क्योंकि किसी कोचिंग में जाने के लिए रुपये जुटाना अब सम्भव नहीं था। जब आपके मन में किसी भी कार्य के प्रति असीम विश्वास और अटूट शक्ति के साथ अदम्य साहस आ जाता है। तो संसार की कोई भी ताकत आपको नहीं रोक सकती है।
आखिरकार मुझे सफलता मिली ही। तब जाकर उन लोगों की आँखें खुली और अपने को दांतों तले अंगुली दबाने से नहीं रोक पाये। सच कहूं, गाँव में यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। क्योंकि अब तक कोई भी सरकारी नौकरी में नहीं जा पाया था। अब उनको इस बात पर यकीन हुआ कि यदि बच्चे पूरे तन-मन से तैयारी कर। तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
अकसर देखा जाता है कि चाहे व्यक्ति कितनी ही योग्य और मेहनती हो, लेकिन जब तक आपको सफलता नहीं मिल जाती है। तब तक दुनिया आपको कुछ नहीं समझती है। इसलिए आपको सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयासरत रहना चाहिए और यह बात याद रखनी चाहिए कि जब आप सफलता से दो कदम दूर होते हो, तब आपकी परीक्षा लेने के लिए कुछ अधिक ही
मुसीबतें आती है। उस वक्त आप यह मानकर अपने हौसले को और बुलन्द कर दे कि अब मंजिल ज्यादा दूर नहीं है और दुगुने उत्साह और साहस से जुट जाना चाहिए। जबकि देखने में आता है कि अधिकतर लोगों के कदम इसी जगह आकर लड़खड़ाते हैं।
अंत में यही बात मुझे जिंदगी ने सिखायी है कि हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। एक रास्ता बंद होने पर नया रास्ता खोजना चाहिए। साथ ही हमेशा आगे की और अपनी नजर होनी चाहिए।
लेखक-परिचय
रतन लाल जाट S/O रामेश्वर लाल जाट
जन्म दिनांक- 10-07-1989
गाँव- लाखों का खेड़ा, पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पदनाम- व्याख्याता (हिंदी)
कार्यालय- रा. उ. मा. वि. डिण्डोली
प्रकाशन- मंडाण, शिविरा और रचनाकार आदि में
शिक्षा- बी. ए., बी. एड. और एम. ए. (हिंदी) के साथ नेट-स्लेट (हिंदी)
मोबाइल नं.- 9636961409
ईमेल- ratanlaljathindi3@gmail.in
बेहतरीन जीवनी, बहुत प्रसन्नता हुई श्री रतन जी की संघर्ष से सफलता की यात्रा पढ़कर ! रतन जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
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