भोर की महक - माह की कविताएँ

SHARE:

  राजेश माहेश्वरी माँ माँ का स्नेह देता था स्वर्ग की अनुभूति। उसका आशीष भरता था जीवन में स्फूर्ति। मुझे याद है जब मैं रोता था वह परेश...

 

राजेश माहेश्वरी

माँ

माँ का स्नेह
देता था स्वर्ग की अनुभूति।
उसका आशीष
भरता था जीवन में स्फूर्ति।

मुझे याद है
जब मैं रोता था
वह परेशान हो जाती थी।
जब मैं हँसता था
वह खुशी से फूल जाती थी।
वह हमेशा
सदाचार, सद्व्यवहार, सद्कर्म,
पीड़ित मानवता की सेवा,
राष्ट्र के प्रति समर्पण,
सेवा और त्याग की
देती थी शिक्षा।

शिक्षा देते-देते ही
आशीष लुटाते-लुटाते ही
ममता बरसाते-बरसाते ही
हमारे देखते-देखते ही
एक दिन वह
हो गई पंच तत्वों में विलीन।

आज भी
जब कभी होता हूँ
होता हूँ परेशान
बंद करता हूँ आंखें
वह सामने आ जाती है।
जब कभी होता हूँ व्यथित
बदल रहा होता हूँ करवटें
वह आती है
लोरी सुनाती है
और सुला जाती है।
समझ नहीं पाता हूँ
यह प्रारम्भ से अन्त है
या अन्त से प्रारम्भ।

    माँ

माँ की ममता और त्याग का मूल्य
मानव तो क्या
परमात्मा भी नहीं चुका सकता।
वह स्नेह व प्यार
वे आदर्श की शिक्षाएँ
जो उसने दी
और कौन दे सकता है ?
जननी की शिक्षा में ही छिपी है
हमारे जीवन की सफलता।
हमारी कितनी नादानियों को
वह करती है माफ।
हमारी चंचलता
हमारा हठ और
हमारी शरारतें
वह करती है स्वीकार।
वह है सहनशीलता की प्रतिमूर्ति
उसकी अंतर आत्मा के ममत्व में
प्रकाशित होती है अंतर ज्योति।
जीवन के हर दुख में
वह रही है सहभागी
लेकिन जब सुख के दिन आए तो
वह चलने लगी
प्रभु की तलाश में
एकांत प्रवास में।
हम उसे नहीं रोक सके
लेकिन उसके पोते पोतियों ने
कर दिया कमाल
जाग उठी उसकी ममता
और दादी रूक गई।
दादी के फर्ज ने उसे रोक लिया
और वह रूक गई।
संसार का नियम है
एक दिन तो उसे भी जाना है
अनन्त में
पर वह जाएगी
हमें अपने पैरों पर खडा करके
हमें स्वावलंबी बनाकर
हेगी वह अलविदा।

             माँ

जब तक साँस है
तब तक आस है।
आस है जब तक,
साँस है तब तक।
चिंता नहीं है उपाय
यह देती है परेशानी
और करती है दिग्भ्रमित।
कर्मों का प्रतिफल
भोगना ही होगा
इससे मुक्त नहीं हो सकते।
कर्तव्यों को पूरा करो
जो हार गया
उसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
पराक्रमी बनो,
संघर्षशील बनो,
सफलता अवश्य मिलेगी।
ये शब्द वह कह रही थी
हमें याद है उसका जीवन संघर्ष
अंतिम समय तक थी उसमें
जीने की चाह
समय पूरा हुआ
उसे मालूम था
फिर भी वह कर रही थी संघर्ष
उसने हमें आदेश दिया-
अब खिड़की खोल दो
मुझे जाना है प्रभु की शरण में
ये चिकित्सक,ये दवाएँ हटा दो
मुझे शांति दो, मुक्त करो
हिम्मत रखो, विचार मत करो।
उसका अंतिम संदेश
कहते-कहते वह विदा हो गई
हमें बतला गई
जीवन के सूत्र।

0000000000000000

दोहे रमेश के  दिवाली पर


-------------------------
संग शारदा मातु के, लक्ष्मी और गणेश !
दीवाली को पूजते, इनको सभी 'रमेश !!

आतिशबाजी का नहीं, करो दिखावा यार !
दीपों का त्यौहार है,… सबको दें उपहार !

आतिशबाजी से अगर,गिरे स्वास्थ्य पर  गाज !
ऐसे रस्म रिवाज को, .......करें नजर अंदाज !!

करें प्रदूषण वाकई, .....ऐसे रस्म रिवाज !
उनका करना चाहिए,झटपट हमें इलाज !!

पैसा भी पूरा लगे ,.......... गंदा हो परिवेश !
आतिशबाजी से हुआ,किसका भला "रमेश"!!

मंदी ने अब के किया , ऐसा बंटाधार !
फीकी फीकी सी लगे, दिवाली इस बार !!

सर पर है दीपावली, सजे हुवे बाज़ार !
मांगे बच्चो की कई ,मगर जेब लाचार !!

बच्चों की फरमाइशें, ......लगे टूटने ख्वाब !
फुलझडियों के दाम भी,वाजिब नहीं जनाब !!

दिल जल रहा गरीब का, काँप रहे हैं हाथ !
कैसे दीपक अब जले , बिना तेल के साथ !!

बढ़ती नहीं पगार है,....... बढ़ जाते है भाव !
दिल के दिल में रह गये , बच्चों के सब चाव !!

कैसे अब घर में जलें,... दीवाली के दीप !
काहे की दीपावली , तुम जो नहीं समीप !!

दुनिया में सब से बड़ा,. मै ही लगूँ गरीब !
दीवाली पे इस दफा, तुम जो नहीं करीब !!

दीवाली में कौन अब ,.... बाँटेगा उपहार !
तुम जब नहीं समीप तो, काहे का त्यौहार !!

आपा बुरी बलाय है, करो न इसका गर्व !
सभी मनाओ साथ में , .दीवाली का पर्व !!

लिया हवाओं से सहज, मैंने हाथ   मिलाय !
सबसे बड़ी मुंडेर पर, दीपक दिया जलाय !!

हुआ दिवाली पर सदा,माँ को बडा मलाल !
सरहद से जब घर नहीं, लौटा उसका लाल !!

रमेश शर्मा
0000000000000000

सुनील कुमार


।। दीप पर्व मनाना तुम ।।
******************************
दीप पर्व अबकी जब मनाना तुम
एक दीप स्नेह का भी जलाना तुम।
घर आंगन दीपों से सजाना तुम
पर एक दीप अपनत्व का भी जलाना तुम।
भोग लक्ष्मी गणेश को बेशक लगाना तुम
पर भूख किसी भूखे की भी मिटाना तुम।
खुशियां सिया राम घर वापसी की मनाना तुम
पर वनवास किसी और को न कराना तुम।
वचन सिया राम सा निभाना तुम
प्रीत भरत लक्ष्मन सी लगाना तुम
दीप पर्व अबकी जब मनाना तुम।
कलंक किसी सिया पर न लगाना तुम
दिल किसी का न दुखाना तुम
दीप पर्व अबकी जब मनाना तुम।
धन दौलत के खातिर
अपनों को न ठुकराना तुम
मार्ग सत्य का अपनाना तुम
दीप पर्व अबकी जब मनाना तुम।
दीप खुशियों के बेशक जलाना तुम
पर दर्द भी किसी का मिटाना तुम।
राग द्वेष सभी मिटाना तुम
दीप पर्व अबकी जब मनाना तुम।
********************************
प्रस्तुति- सुनील कुमार
पता- ग्राम फुटहा कुआं
निकट पुलिस लाइन
जिला- बहराइच, उत्तर प्रदेश।

000000000000000000

ब्रजेश त्रिवेदी

जग जीवन दायिनी
त्रिरत्न वर दायिनी

उर अंतर नित वासनी
सुरधारा सी पावनी

मनमोहित स्वरूपनी
मातु वीणावादनी

देवी तुम गिर वासनी
पाप शमित नाशनी

देवी तुम कमलासनी
दारिद दुख हारणी

000000000000000

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा


भोर की महक
------------------

भोर हुई बोल उठी कोयल मतवाली,
चहक गई बगिया की डाली - डाली |

चमक रही चाँदी सी ओस मनोहर,
मन को भाये सुनहरे खट्टे-मीठे बेर |

आलू, गोभी, बैंगन, गाजर - मूली,
भर जायेगी कृषक की खाली झोली |

दे-दे ताल बजे पीपल पात सारी रात,
भोर बड़ा निराला इन्द्रधनुष रंगी सात |

मोर नाचते खुले नील गगन के नीचे,
धनपत खेतों की फसलों को सींचे |

दूर - दूर तक फैली भोर की महक,
होती बड़ी निराली ग्राम की चहक |

--

------------

बाल कविता - मेला
-------------------------

नदी किनारे लगा था मेला,
सारे बच्चे मिलजुल गये घूमने |
धमा-चौकड़ी सबने खूब मचाई,
देखा जो हाथी बनाके साथी लगे चूमने ||

दही, जलेबी, पानी-पूरी, हलवा और कचौड़ी,
सब बच्चों ने चख-चखकर खाई |
फिर सर्कस जाने की पूरी करी तैयारी,
शेर, लोमड़ी, भालू, चीता और देखा बंदर भाई ||

एक जगह चटख रहे मक्का के फूले,
और थोड़ा आगे लाल, हरे, पीले गुब्बारे |
सब बच्चों ने थोड़े-थोड़े लिये खरीद,
धीरे-धीरे सांझ हो गई, शौक हुए न पूरे ||

चश्मा, चकरी, झुनझुना और बांसुरी,
खाकर आइसक्रीम लेली टोपी-बंदूक |
घूम-घामकर मेला, घर जाने की करी तैयारी,
गाँव के प्रधानजी खरीद लाये एक संदूक ||

संदूक रखा ट्रैक्टर की ट्राली में,
ऊपर चढ़ गये सारे बच्चे |
सरपट-सरपट दौड़ा ट्रैक्टर,
मेला देख हंसी-खुशी घर आये बच्चे ||


- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली,
फतेहाबाद, आगरा, उ. प्र. 283111
000000000000000000

निज़ाम-फतेहपुरी


वज़्न- 122 122 122 122
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

ग़ज़ल में नकल अच्छी आदत नहीं है।
कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।।

है आसान इतना नहीं शेर कहना।
हुनर है क़लम का सियासत नहीं है।।

नहीं छपते दीवान ग़ज़लें चुराकर।
अगर पास खुद की लियाक़त नहीं है।।

हिलाता है दरबार में दुम जो यारों।
कहे सच ये उसमें सदाक़त नहीं है।।

जो डरता नहीं है सुख़नवर वही है।
सही बात कहना बगावत नहीं है।।

अमन की है चाहत अमन चाहता हूँ।
हमारी किसी से अदावत नहीं है।।

दबाया है झूठों ने सच इस कदर से।
कि सच भी ये सचमें सलामत नहीं है।।

दरिंदे भी अब रहनुमा बन रहे हैं।
ये अच्छे दिनों की अलामत नहीं है।।

निज़ाम आज बिगड़ा है ऐसा यहाँ पर।
किसी की भी जाँ की हिफाजत नहीं है।।

निज़ाम-फतेहपुरी
ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर
ज़िला फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
0000000000000000

खान मनजीत भावड़िया मजीद

आजकल

आजकल सभी जगह मुझे
इंसान दिखाई नहीं देते
यह पता नहीं क्यों
इसके पीछे क्या हाथ है
वही हवस के शिकारी
लड़कियों के पीछे भागते रहते हैं
जैसे इन्होंने कभी लड़कियां देखी नहीं
क्यों ऐसा करते हैं
इस अपने समाज में
मुझे कोई बता तो दे
सोचे की जवान जवान काही हवश करताहै
पर उसके बारे में कैसे सोचे
जिसने दुनिया के कुछ ही साल देखे हैं
3 या 4 साल
वह हवस के पुजारी
तीन-चार साल की लड़की को
भी नहीं बकसते
क्या यही हमारा समाज है
या फिर वह 80 साल की
वृद्ध औरत
उसको भी नहीं बख्शते
यह कब तक होता रहेगा
मुझे इस जहालत की दुनिया से
कैसे निजात पा सकता हूं
है इसका कोई जवाब
मेरे मन में बहुत सारे सवाल है
वह यह सवाल है
किस जवान लड़का जवान लड़की से
मोहब्बत भी कर सकता है
प्यार प्रेम की बातें भी कर सकता है
उसके साथ रात भी बिता सकता है
पर वह 2व3 साल की लड़की
अर वो 70-80 साल की बुढ़िया
क्या चल रहा है दिमाग में
अपने मुल्क लोगों में
मुझे समझ में नहीं आता
आए दिन
पूरा अखबार
इन समाचारों का भरा रहता है
क्या करें
है कोई इसका जवाब
या फिर समय परिवर्तन है
पता नहीं
मुझे नहीं समझ में आ रहा
क्या बताऊं
मेरे मुल्क के लोगों
अब मैं भी थक गया हूं
सुनते सुनते कहते कहते
पर इसका जवाब नहीं
हर रोज
सुबह से लेकर शाम तक
मेरे दिमाग में
हजारों प्रश्न घूमते हैं
उन प्रश्नों का उत्तर नहीं है
क्या करें
आखिर क्या है इनका जवाब
मुझे बताओ.....................
---
सोच विचार

समझ मैं नहीं आता
लोगों के कैसे विचार
और कुछ है
इन विचारों में
पूरी दुनिया
समाई हुई है
लेकिन
इस संसार में
अलग-अलग चेहरे हैं
अलग अलग सोच है
अलग-अलग विचार हैं
पता नहीं मुझे
ऐसा क्यों लगता है
सभी के विचार
ज्यादातर के विचार
महिला विरोधी है
महिलाएं जींस पहनती है
महिलाएं टॉप पहनती है
और आजकल प्रचलन की सभी वस्तुएं पहनती है
लेकिन मर्दों की सोच
दिन प्रतिदिन
खराब होती जा रही है
वह कहते हैं
लड़कियों को यह खाना है
लड़कियों को यह पहनना है
लड़कियों को यहां जाना है
मतलब मतलब
सभी के सभी
काम
आज मर्दों के हाथ में है
आज भी वही टाइम है
जो आज से 100 वर्ष पहले था
मुझे लगता है
समाज
बदला तो है
और स्त्रियों या महिलाओं के पक्ष पर नहीं
आज भी वैसे ही सोच रखते हैं
जैसी पहले रखते थे
और पीछा करते हैं
सभी
मर्द उन लड़कियों का
घर से महाविद्यालय
विद्यालय पढ़ने के लिए आते हैं
हर रोज उन्हें प्रताड़ित किया जाता है
पता नहीं
कब मेरे देश की
सोच बदलेगी और आगे बढ़ेगी
महिलाओं का शोषण
आज भी जिंदा है
घरों में, मोहल्ले में
हर जगह
सभी जगह
क्या मेरा देश बदलेगा
बदलेगा यह सोचना….....….....।

खान मनजीत भावड़िया मजीद
गांव भावड तहसील गोहाना जिला सोनीपत

हरियाणा

0000000000000000

अविनाश तिवारी

#मलखम्भ #प्रतापपुर

है अद्भुत अदम्य मलंग मलखम्भ
ये वीर बाला मस्त निहाल हैं

इनके कौशल से दंग सभी
भारत के ये ही शान है।

है ध्यान योग में माहिर
नवनीत खेल दिखाते हैं
इनके अंग संचालन में
दिव्य जोश रगों में आते हैं

वीर बालाएं डोर पर
अद्भुत खेल दिखाती हैं।
सिरसाषन से पद्मासन की
मुद्रा नभ मण्डल में बन जाती है।

इनके सौम्य सन्तुलन से
दर्शक स्तब्ध रह जाते हैं
भारत के गौरव हो तुम
यही शुभकामना हम दे जाते हैं।
--


कल और आज

जी लो जीवन जी भरकर
कल को किसने देखा है

जो बीत गया सो बित गया
आज का पल ही सच्चा है।

मेरी गाड़ी मेरा बंगला सबको
मैने बनाया है
पेटकाटकर रुपया जोड़ा
बेटे के लिए बचाया है।

आई सी यू में लेटा अब
सांसे तन पर भारी है,
बेटा छोड़ परदेश गया
बंगला बिल्कुल खाली है।

रिश्ते नाते कोई नहीं है
मैने धन कमाया था
मेरे अपने साथ नही अब
जिस पर जीवन गंवाया था।

अब तो जी लें आज को हम
कल को कल पर छोड़ दे
आज सम्भालो खुशियों की पोटली
कल ईश्वर पर छोड़ दें।
---
आओ हम नवदीप जलाएं
प्रेम और विश्वाश का
जगमग ज्योति ज्ञान का
तमस हटे संसार का
जीवन में खुशियाँ फैलाएं
आओ हम नवदीप जलाएं
श्रद्धा तप और त्याग का
जतन करें इस बात का
रिश्ता कुछ ऐसा निभाएं
जिसमें सम्मान हो जज्बात का
अपने घर के मान का
फर्ज कुछ ऐसा निभाएं
आओ हम नवदीप जलाएं
देश के अभिमान का
मातृभूमी के यशगान का
समृद्ध भारत के निर्माण का
सुरभित हो जीवन सबका
पल्लवित सौरभ हो सुगंधा
सर्वे भवतु सुखिन: बन जाये हमारी वसुंधरा
दीप ऐसा सब जलाएं आओ हम नवदीप जलाये।।
दीपोत्सव की मंगल कामना*


@अवि
अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा

0000000000000

शक्ति त्रिपाठी"देव"

*मां शेरावाली की वन्दना*

हे जगदम्बे जग कल्याणी , दुनिया कहती शेरावाली।
हे दया की देवी शैलसुता , चंडी ज्वाला हे मां काली।
है नाम असंख्य भवानी मां, महिमा भी बड़ी निराली है,
भक्तों की लाज बचाने को, आती मां  जोता वाली है।।
                 
है रूप तेरा अति शोभित मां, वर्णन कित मैं कर सकता हूं।
बस तेरे चरणों में मइया , निज जीवन अर्पित करता हूं।
मैं अधम और अज्ञानी हूं, सत्मार्ग मुझे दिखला माता।
पथभ्रष्ट न हो जाऊं मैं कहीं, ऐसा ही ज्ञान सिखा माता।।

दरबार सजा है मां तेरा, भक्तों की भीड़ हुई भारी।
अर्पित करने को श्रृद्धा सुमन, है टूट पड़ी दुनिया सारी।
किरपा (कृपा)बरसा दो भक्तों पर, हर भक्त आपका मगन रहे।
चरणों में तेरे हे मइया, शक्ति की सच्ची लगन रहे।।
...................................
000000000000000

डां नन्द लाल भारती

फरियाद(कविता )
तुम कितने नसीब वाले हो गए हो
हमारी उपस्थिति तुम्हें
अनजान सी लगने लगी है
हम से हमारी नवपौध
दूर दूर किए जा रहे हो
ताकि मनहूस छाया से दूर रहे
तुम कितने नसीब वाले हो गए हो......
तुम्हें शायद अब याद न हो
क्योंकि तुम ठग मां बाप की
विषकन्या के जाल को जीवन का
चरम सुख मान बैठे हो........
वक्त फुर्सत के कभी मिले तो
अपनी मां के बारे में सोचना
तुम्हें जो सूखे मे और खुद गीले मे
रात काटती थी हंसी खुशी........
तुम्हें शायद वो आदमी याद न हो
जो तुम्हारे लिए जीता था
हर ख्वाहिशें तुम्हारी पूरी करता था
खुद तरसते हुए भी खुश रहता था
क्योंकि विश्वास था उसे तुम पर
एक दिन हर लोगे सारे दुख
तुमने क्या किया....?
मां बाप के हिस्से की ख्वाहिशें
सास ससूर पर कुर्बान कर दिया
विषकन्या के आतंक से डरकर........
खैर तुमने जो किया है
अच्छा किया होगा क्योंकि तुम
उच्च शिक्षित हो और विषकन्या भी
हम जानते हैं तुम्हारी प्रकृति
विषकन्या के भय से खो चुके हो साहस
गर तुम ऐसे ही रहे तो और भी
बहुत कुछ खो जाओगे
विषकन्या की असलियत को जानो
ठग कुनबे को अब तो पहचानो........
बूढ़ी मां के आंसू बरसों बाद
बाढ़ के पानी सरीखे बह रहे हैं
पिता निर्जीव से पड़े
सपने सीने में लगे हैं
बिना तुम्हारे सहारे के जीने के
तरीके सीख रहे हैं
प्यारे याद रखना विषकन्या के
दबाव मे लिया गया तुम्हाराफैसला
एक दिन ठग कुनबे की जड़े
सूखा देगा.............
तुम्हारी तरक्की और तन्दुरूस्ती
आज भी बूढी आंखों की
रोशनी हैं और रहेगी
तुम चिंता ना करना
बूढ़े मां बाप जिस कदर जी रहे हैं
आगे भी जी लेगें
तुमने विषकन्या के दबाव में
धकिया दिया है पर निराश्रित नहीं हैं वे
और भी अंगुली थामने वाले सर आंखों पर
बिठा रखें है प्यारे..............
तुम्हारी तन्दुरुस्ती और तरक्की की
बूढ़े करते हैं और करते रहेंगे कामना
तुम्हें ठगने और तुम्हारे सगे खून को
धोखा देने वालों की सात जन्म तक ना
पूरी होगी कोई मनोकामना
जिस प्रसव पीड़ा से गुजर रहे
तुम्हारे खून के रिश्तेदार
हजार गुना पीड़ा से गुजरेगें
ठग कुनबा और उसका सरदार...
प्यारे तुम्हें जब होश आ जाए
विषकन्या का जहर उतर जाए
अथवा ठग कुनबे के छल से
उबरने का साहस आ जाए
निश्छल मन से लगा देना गुहार
आ जायेंगे तुम्हारे खून के रिश्तेदार
तुम जैसे थे वैसे ही वापस आ जाना
विषकन्या के विष त्याग के बाद
सभ्य बहू के साथ
तुम्हारा सगा कुनबा मान लेगा फरियाद
ठग कुनबे का सदा के लिए त्याग कर
बूढ़े माता पिता का धरती छोडऩे से
पहले प्यारे ।।।।
--

।। देवदासी ।।
तुम्हें तो शर्म आती नहीं होगी
क्योंकि तुम भ्रम और डर
दिखाकर लूट लेते हो
आबरू.........
कर देते हो असहाय
पहना देते हो  पांवों में बेड़ियां
हाथ में हथकड़ियां
बना देते हो जीवन नरक......
तुम धरम की खाल में
चटकाते रहते हो
तन के पोर पोर
करते रहते हो अय्याशियां
खड़ी करते रहते हो
नाजायज औलादों की कतार
कह देते हो देवदासियां........
तुम हो धरम के शत्रु
कैसे कह रहे हो खुद को
धरम के झण्डावरदार
कौन है वो धरम कैसे देता है
आदेश यौन शोषण की
पराई बहन बेटी की....
देवदासी का नाम देकर
कन्या का शील भंग कर
रात के अंधेरे में मुंह काला करना
कैसा देवत्व........?
देवदासी का नाम देकर
किसी कन्या का जीवन तबाह करने वालों
अपने खून के रिश्ते की
बहन बेटियों का शील भंग कर देखना
तुम्हें जरूर शरम आएगी
तुम समझ जाओगे,
पराई बहन बेटी का दरद
डूब मरोगे शरम के समन्दर में
ना होगी तब कोई देवदासी......


डां नन्द लाल भारती
02/11/2019
000000000000

चंचलिका.

     " तुम एक स्त्री हो "

तुम
एक स्त्री हो
पराश्रयी हो ।
तुम्हारा परिचय
जुड़ा है पिता से,
भाई से, पति से
पुत्र से और कई
रिश्तों से .....

तुम
श्रृंखला बद्ध हो ।
किसी न किसी
परिचय के साथ
जुड़ी हो.....

तुम
अपनी
अलग पहचान
जब भी बनाना चाहोगी
बड़ी असहजता से लोग
तुम्हें देखेंगे
तुम पर उंगली
उठायेंगे ......

तुम्हारे
एकाकी के
इस परिचय को
लोग श्रृंखलाहीन की
नज़रों से देखेंगे .......

कहने को
हम शिक्षित हैं
मगर
दृष्टिकोण अब भी
समाज का
अपरिपक्व ही है.......

किसी
सहारे के बिना
तुम्हारा वजूद लोगों को
खोखला नज़र आयेगा ......

एक
पुरुष के
साथ के बिना तुम
संदिग्ध नज़रों से देखी
जाओगी .....

तुम्हें परित्यक्ता ,
विधवा और न जाने
कितने उपमाओं से
ये समाज अलंकृत करेगा .....

तुम्हारा
अपराध क्या है?
सिर्फ इतना ही कि
तुम एक स्त्री हो
पुरुष की तरह
इस समाज में
स्वावलंबी बनकर
रहना चाहती हो.....  
----
0000000000000000

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: भोर की महक - माह की कविताएँ
भोर की महक - माह की कविताएँ
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinmz6iYKLkVCOOESU0FpsqslWFBNTSbEiQuzPw2IKZH-zaewQiJgS-tnLsYJgQm_CnDCuRAqYkh3BNbkip4n1Wzry4DXwPIRei5NAn0iJBJfPz0wOnb9dH_kJ9aJK65NQwP7hP/s320/DSC_4929+%2528Large%2529-763680.JPG
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinmz6iYKLkVCOOESU0FpsqslWFBNTSbEiQuzPw2IKZH-zaewQiJgS-tnLsYJgQm_CnDCuRAqYkh3BNbkip4n1Wzry4DXwPIRei5NAn0iJBJfPz0wOnb9dH_kJ9aJK65NQwP7hP/s72-c/DSC_4929+%2528Large%2529-763680.JPG
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/11/blog-post_12.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/11/blog-post_12.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content