घनश्याम छंद "दाम्पत्य-मन्त्र" विवाह पवित्र, बन्धन है पर बोझ नहीं। रहें यदि निष्ठ, तो सुख के सब स्वाद यहीं।। चलूँ नित साथ, हाथ म...
घनश्याम छंद "दाम्पत्य-मन्त्र"
विवाह पवित्र, बन्धन है पर बोझ नहीं।
रहें यदि निष्ठ, तो सुख के सब स्वाद यहीं।।
चलूँ नित साथ, हाथ मिला कर प्रीतम से।
रखूँ मन आस, काम करूँ सब संयम से।।
कभी रहती न, स्वारथ के बस हो कर के।
समर्पण भाव, नित्य रखूँ मन में धर के।।
परंतु सदैव, धार स्वतंत्र विचार रहूँ।
जरा नहिं धौंस, दर्प भरा अधिकार सहूँ।।
सजा घर द्वार, रोज पका मधु व्यंजन मैं।
लखूँ फिर बाट, नैन लगा कर अंजन मैं।।
सदा मन माँहि, प्रीत सजाय असीम रखूँ।
यही रख मन्त्र, मैं रस धार सदैव चखूँ।।
बसा नव आस, जीवन के सुख भोग रही।
निरर्थक स्वप्न, की भ्रम-डोर कभी न गही।।
करूँ नहिं रार, साजन का मन जीत जिऊँ।
यही सब धार, जीवन की सुख-धार पिऊँ।।
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लक्षण छंद:-
"जजाभभभाग", में यति छै, दश वर्ण रखो।
रचो 'घनश्याम', छंद अतीव ललाम चखो।।
"जजाभभभाग" = जगण जगण भगण भगण भगण गुरु]
121 121 211 211 211 2 = 16 वर्ण
यति 6,10 वर्णों पर, 4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत।
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गिरिधारी छंद "दृढ़ संकल्प"
खुद पे रख यदि विश्वास चलो।
जग को जिस विध चाहो बदलो।।
निज पे अटल भरोसा जिसका।
यश गायन जग में हो उसका।।
मत राख जगत पे आस कभी।
फिर देख बनत हैं काम सभी।।
जग-आश्रय कब स्थायी रहता।
डिगता जब मन पीड़ा सहता।।
मन-चाह गगन के छोर छुए।
नहिं पूर्ण हृदय की आस हुए।।
मन कार्य करन में नाँहि लगे।
अरु कर्म-विरति के भाव जगे।।
हितकारक निज का संबल है।
पर-आश्रय नित ही दुर्बल है।।
मन में दृढ़ यदि संकल्प रहे।
सब वैभव सुख की धार बहे।।
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लक्षण छंद:-
"सनयास" अगर तू सूत्र रखे।
तब छंदस 'गिरिधारी' हरखे।।
"सनयास" = सगण, नगण, यगण, सगण
112 111 122 112 = 12 वर्ण
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गाथ छंद "वृक्ष-पीड़ा"
वृक्ष जीवन देते हैं।
नाहिं ये कुछ लेते हैं।
काट व्यर्थ इन्हें देते।
आह क्यों इनकी लेते।।
पेड़ को मत यूँ काटो।
भू न यूँ इन से पाटो।
पेड़ जीवन के दाता।
जोड़ लो इन से नाता।।
वृक्ष दुःख सदा बाँटे।
ये न हैं पथ के काँटे।
मानवों ठहरो थोड़ा।
क्यों इन्हें समझो रोड़ा।।
मूकता इनकी पीड़ा।
काटता तु उठा बीड़ा।
बुद्धि में जितने आगे।
स्वार्थ में उतने पागे।।
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लक्षण छंद:-
सूत्र राच "रसोगागा"।
'गाथ' छंद मिले भागा।।
"रसोगागा" = रगण, सगण, गुरु गुरु
212 112 22 = 8 वर्ण
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गजपति छंद "नव उड़ान"
पर प्रसार करके।
नव उड़ान भर के।
विहग झूम तुम लो।
गगन चूम तुम लो।।
सजगता अमित हो।
हृदय शौर्य नित हो।
सुदृढ़ता अटल हो।
मुख प्रभा प्रबल हो।।
नभ असीम बिखरा।
हर प्रकार निखरा।
तुम जरा न रुकना।
अरु कभी न झुकना।।
नयन लक्ष्य पर हो।
न मन स्वल्प डर हो।
विजित विश्व कर ले।
गगन अंक भर ले।।
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लक्षण छंद:-
"नभलगा" गण रखो।
'गजपतिम्' रस चखो।।
"नभलगा" नगण भगण लघु गुरु
( 111 211 1 2)
8 वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत
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कुसुमसमुदिता छंद "श्रृंगार वर्णन"
गौर वरण शशि वदना।
वक्र नयन पिक रसना।।
केहरि कटि अति तिरछी।
देत चुभन बन बरछी।।
बंकिम चितवन मन को।
हास्य मधुर इस तन को।।
व्याकुल रह रह करता।
चैन सकल यह हरता।।
यौवन कलश विहँसते।
ठीक हृदय मँह धँसते।।
रूप निरख मन भटका।
कुंतल लट पर अटका।।
तंग वसन तन चिपटे।
ज्यों फणिधर तरु लिपटे।।
हंस लजत लख चलना।
चित्त-हरण यह ललना।।
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लक्षण छंद:-
"भाननगु" गणन रचिता।
छंदस 'कुसुमसमुदिता'।।
"भाननगु" = भगण नगण नगण गुरु
(211 111 111 2)
10वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
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कलाधर छंद "योग साधना"
दिव्य ज्ञान योग का हिरण्यगर्भ से प्रदत्त,
ये सनातनी परंपरा जिसे निभाइए।
आर्ष-देन ये महान जो रखे शरीर स्वस्थ्य,
धार देह वीर्यवान और तुष्ट राखिए।
शुद्ध भावना व ओजवान पा विचार आप,
चित्त की मलीनता व दीनता हटाइए।
नित्य-नेम का बना विशिष्ट एक अंग योग।
सृष्टि की विभूतियाँ समस्त आप पाइए।।
मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग,
पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।
ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य,
ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो बिराजिए।।
ईश-भक्ति चित्त राख दृष्टि भोंह मध्य साध,
पूर्ण निष्ठ ओम जाप मौन धार कीजिए।
वृत्तियाँ समस्त छोड़ चित्त को अधीन राख,
योग नित्य धार रोग-त्रास को मिटाइए।।
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लक्षण छंद:-
पाँच बार "राज" पे "गुरो" 'कलाधरं' सुछंद।
षोडशं व पक्ष पे विराम आप राखिए।।
ये घनाक्षरी समान छंद है प्रवाहमान।
राचिये इसे सभी पियूष-धार चाखिये।।
पाँच बार "राज" पे "गुरो" = (रगण+जगण)*5 + गुरु। (212 121)*5+2
यानि गुरु लघु की 15 आवृत्ति के बाद गुरु यानि
21x15 + 2 तथा 16 और पक्ष=15 पर यति।
यह विशुद्ध घनाक्षरी है अतः कलाधर घनाक्षरी भी कही जाती है।
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कण्ठी छंद "सवेरा"
हुआ सवेरा।
मिटा अँधेरा।।
सुषुप्त जागो।
खुमार त्यागो।।
सराहना की।
बड़प्पना की।।
न आस राखो।
सुशान्ति चाखो।।
करो भलाई।
यही कमाई।।
सदैव संगी।
कभी न तंगी।।
कुपंथ चालो।
विपत्ति पालो।।
सुपंथ धारो।
कभी न हारो।।
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लक्षण छंद:-
"जगाग" वर्णी।
सु-छंद 'कण्ठी'।।
"जगाग" = जगण, गुरु - गुरु
(121, 2 - 2), 5 वर्ण, 4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत
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इंदिरा छंद "पथिक"
तमस की गयी ये विभावरी।
हृदय-सारिका आज बावरी।।
वह उड़ान उन्मुक्त है भरे।
खग प्रसुप्त जो गान वो करे।।
अरुणिमा रही छा सभी दिशा।
खिल उठा सवेरा, गयी निशा।।
सतत कर्म में लीन हो पथी।
पथ प्रतीक्ष तेरे महारथी।।
अगर भूत तेरा डरावना।
पर भविष्य आगे लुभावना।।
मत रहो दुखों को विचारते।
बढ़ सदैव राहें सँवारते।।
कर कभी न स्वीकार हीनता।
मत जता किसी को तु दीनता।।
जगत से हटा दे तिमीर को।
'नमन' विश्व दे कर्म वीर को।।
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लक्षण छंद:-
"नररलाग" वर्णों सजाय लें।
मधुर 'इंदिरा' छंद राच लें।।
"नररलाग" = नगण रगण रगण + लघु गुरु
111 212 212 12,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
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असबंधा छंद "हिन्दी गौरव"
भाषा हिन्दी गौरव बड़पन की दाता।
देवी-भाषा संस्कृत मृदु इसकी माता।।
हिन्दी प्यारी पावन शतदल वृन्दा सी।
साजे हिन्दी विश्व पटल पर चन्दा सी।।
हिन्दी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।।
गोसाँई ने रामचरित इस में राची।
मीरा बाँधे घूँघर पग इस में नाची।।
सूरा ने गाये सब पद इस में प्यारे।
ऐसी थाती पा कर हम सब से न्यारे।।
शोभा पाता भारत जग मँह हिन्दी से।
जैसे नारी भाल सजत इक बिंदी से।।
हिन्दी माँ को मान जगत भर में देवें।
ये प्यारी भाषा हम सब मन से सेवें।।
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लक्षण छंद:-
"मातानासागाग" रचित 'असबंधा' है।
ये तो प्यारी छंद सरस मधु गंधा है।।
"मातानासागाग" = मगण, तगण, नगण, सगण गुरु गुरु
222 221 111 112 22= 14 वर्ण
दो दो या चारों चरण समतुकांत।
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परिचय -बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
शिक्षा - B. Com.
जन्म दिन - 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान - तिनसुकिया (असम)
रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। मुक्त छंद, पारम्परिक छंद, हाइकु, मुक्तक, गीत, ग़ज़ल, इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वार्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न हूँ।
परिचय - वर्तमान में मैँ असम प्रदेश के तिनसुकिया नगर में हूँ। मैं साहित्य संगम संस्थान, पूर्वोत्तर शाखा का सक्रिय सदस्य हूँ तथा उपाध्यक्ष हूँ। हमारी नियमित रूप से मासिक कवि गोष्ठी होती है जिनमें मैं नियमित रूप से भाग लेता हूँ। साहित्य संगम के माध्यम से मैं देश के प्रतिष्ठित साहित्यिकारों से जुड़ा हुवा हूँ। whatsapp के कई ग्रुप से जुड़ा हुवा हूँ जिससे साहित्यिक कृतियों एवम् विचारों का आदान प्रदान गणमान्य साहित्यकारों से होता रहता है।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती है। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रशस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
Blog - https: nayekavi.blogspot.com
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