देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अशोक व्यास की व्यंग्य रचनाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। विचारों का टैंकर लेखक का पहला व्यंग्य स...
देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अशोक व्यास की व्यंग्य रचनाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। विचारों का टैंकर लेखक का पहला व्यंग्य संग्रह है जो इस इस वर्ष अयन प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। व्यंग्यकार ने इस संग्रह की रचनाओं में वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं, खोखलेपन, पाखण्ड इत्यादि अनैतिक आचरणों को उजागर करके इन अनैतिक मानदंडों पर प्रहार करने के प्रयास किये हैं। वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री ज्ञान चतुर्वेदी ने इस संग्रह पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी में लिखा हैं " व्यंग्य एक बेहद जटिल और चुनौतीपूर्ण विधा है। अशोक व्यास जी व्यंग्य में कुछ नया करना चाहते हैं। बस कोशिश अभी उस तरह मैच्योर नहीं हो पाई है और उसमें यत्र-तत्र बहुत सारा कच्चापन है। पर यह भी सच है कि वे बेहद ईमानदारी से जो प्रयास करते हैं वह उनकी हर रचना में झलक जाता है। " इस व्यंग्य संग्रह की भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार श्री कैलाशचन्द्र पन्त ने लिखी है। उन्होंने लिखा हैं " विचारों का टैंकर के व्यंग्यों को पढ़ते हुए लगा कि लेखक में व्यंग्य लेखन की असीम संभावना है। बस उन्हें भाषा पर अधिकार प्राप्त करना शेष है। " इस पुस्तक पर मूर्धन्य साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि व्यंग्यकार श्री अशोक व्यास ने इस संकलन में डान-माफियाओं से सावधान करने का सार्थक प्रयास किया है। उनका यह प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है।
शीर्षक रचना “ विचारों का टैंकर ” व्यंग्य में मुफ्त में सलाह देने वाले लोगों पर व्यंग्यकार ने कटाक्ष किया है। युवा नेता से साक्षात्कार व्यंग्य इस संग्रह का सबसे श्रेष्ठ व्यंग्य कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस रचना में व्यंग्यकार ने राजनीति का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया है। इस व्यंग्य कथा में लेखक लिखते है “ वो शर्मा आजकल सरकारी दफ्तर में बाबूगिरी कर रहा है। क्योंकि कुछ लोग अच्छे कोच हो सकते हैं, अच्छे खिलाड़ी नहीं। ” ठेकेदार का साहित्य व्यंग्य रचना साहित्य के ठेकेदारों के गाल पर करारा तमाचा है। कर्ज की राशि, राहत की राशि, दान-अनुदान की राशि को बिना डकार लिए इस देश के कर्णधार किस प्रकार हजम करते हैं इस पर विनोदपूर्ण और चुटीली भाषा में रोशनी डाली गई है राग मालखेंच व्यंग्य रचना में। संसार का पहला एंटी हीरो रावण दहन पर एक व्यंग्य कथा है। इस व्यंग्य कथा में लेखक लिखते है “ एक राज की बात तुम्हें बताता हूँ। ये सब जानते हैं मैं मरता नहीं हूँ तो जलूँगा कैसे? राम बने कोमल युवक के हाथ से जलता हुआ बाण लगते ही मैं जलने ज़रूर लगता हूँ परन्तु उसके बाद ही मेरी जीवन्त होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। क्योंकि वो सिर्फ पुतले को ही मारते हैं।
पुतला क्या है? एक प्रतीक, जस्ट सिंबल ही तो है। प्रतीकों को मारने से विजय भी प्रतीक स्वरूप होती है। प्रतीकों को मारने से युद्ध नहीं जीते जाते। इन लोगों के मारे मैं नहीं मरने वाला। ये मुझे झूठ-मूठ मारते हैं और मैं झूठ-मूठ मर जाता हूँ। दोनों को मज़ा आ जाता है, जनता भी खुश हो जाती है और क्या चाहिए! " सरकारी मकान की तनाव रहित जिंदगी और लोन लेकर अपना मकान में रहने की व्यथा का व्यंग्यकार ने रोचक चित्रण किया है व्यंग्य कथा सरकारी और गैर सरकारी मकान में। बारात की संस्कृति रचना में बारात और शादी समारोह में हमेशा दिखने वाली विसंगतियों पर व्यंग्यात्मक प्रहार किये हैं। जेल छूटने की पटकथा में सरकारी अधिकारी द्वारा किये गए भ्रष्टाचार, कुचक्र और तथाकथित आदर्श की विकृतियों का विस्तृत खुलासा किया गया है। एक घोटाले का सवाल है बाबा व्यंग्य रचना में व्यंग्यकार देश में हो रहे करोड़ों के घोटालों के प्रति चिंतित दिखाई देते हैं। वे लिखते हैं " घोटाले करके बेफिकर रहिये, कुछ नहीं होगा, एक पत्ता भी नहीं हिलेगा। कहीं पहाड़ नहीं टूटेगा, कहीं बिजली नहीं गिरेगी। " जित देखूँ उत मेरा लाल, कट आउट होने का दुख, टाइम नहीं है, दास्तान-ए-साडी, घर का मुर्गा, भ्रष्टाचार की जड़, आम आदमी की तलाश, रिमोट कंट्रोल, चुप ! बहस चालू है, सरकार एक चिन्तन, माँगना एक श्वेत-पत्र का, ज्ञापन से विज्ञापन तक, राजनीति के श्वेत बादल, सम्मानित होने का भय, कुत्तों के रंगीन पट्टे, साहित्य माफिया, कटौती प्रस्ताव, इक जंगला बने न्यारा, क्रिकेट का असली रोमांच, आई डोंट केअर, वी.आई.पी. कल, आज और कल भी, नई सदी का नयापन, मरना उर्फ़ महान होना, ऐसा क्यों होता है?, नागिन डांस वाले मुन्ना भाई, चर्चा चुनाव की, लेखन का संकट जैसे व्यंग्य अपनी विविधता का अहसास कराते है और पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाते हैं। व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। राजनीति में वंशानुगत परंपरा, क़ानून-कायदों का उल्लंघन, देश के आर्थिक क्षेत्र में नित्य नए प्रयोग, चुनावी प्रक्रिया, सोशल मीडिया, भ्रष्टाचार, घोटाले, सामाजिक नये रिवाज, वी.आई.पी. संस्कृति, क्रिकेट का रोमांच, साहित्य माफिया इन सब विषयों पर व्यंग्यकार ने अपनी कलम चलाई हैं।
अशोक जी ने व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों को बहुत नजदीक से देखा है, उसी यथार्थ को उन्होंने अपनी व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से उजागर किया है। लेखक ने इस संग्रह की व्यंग्य रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक समेत तमाम तरह की विसंगतियों, विडम्बनाओं पर अपनी भाषा में प्रहार किया है। कहीं-कहीं मुहावरों का सुंदर प्रयोग किया है। व्यंयकार ने संग्रह की सभी रचनाओं को रोचक शब्दों में सामर्थ्य के साथ व्यक्त करने का प्रयास किया है। इस पुस्तक की कुछ रचनाएँ पाठकों को समाज और देश में व्याप्त विसंगतियों, विडम्बनाओं पर सोचने को मजबूर कर देती हैं, यही व्यंग्यकार की सफलता है। आशा है कि भविष्य में अशोक व्यास के व्यंग्य और अधिक चुटीले व धारदार दिखाई देंगे।
पुस्तक : विचारों का टैंकर
लेखक : अशोक व्यास
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030
मूल्य : 260 रूपए
पेज : 132
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दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
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