।। श्री चित्रगुप्त चालीसा ।। लेखक व प्रकाशक गौरी शंकर श्रीवास्तव निवासी -परसोन तहसील -खुरई, जिला सागर म.प्र. सर्वाधिकार लेखक द्व...
।। श्री चित्रगुप्त चालीसा ।।
लेखक व प्रकाशक
गौरी शंकर श्रीवास्तव
निवासी-परसोन
तहसील-खुरई, जिला सागर म.प्र.
सर्वाधिकार लेखक द्वारा सुरक्षित
पहली बार १००० प्रतियां वर्ष १९७२
।। श्री गणेशायः नमः।।
।। श्री चित्रगुप्त चालीसा।।
दोहा- जय गणेश शंकर सुवन, सरस्वती बुद्धि निधान।
गौरी शंकर कहत हैं, देव अभय वरदान ।।१।।
चालीसा चित्रगुप्त का, लिखूं मन हरषाय।
बुद्धि हृदय में दीजिये, शारद होव सहाय।।२।।
श्लोक- ऊॅ श्री यमाय नमः धर्म राजाय नमः।
चित्राय नमः चित्रगुप्ताय नमः।।
मर्षी भांजन रूयेनः ध्याये स्वेतम महीतले।
लेखनी पट्टिका हस्ते, चित्रगुप्त नमोस्तुते।।
चित्रगुप्त नमो स्तुंभ्य, लेखा अक्षर दायकं।
कायस्थ जाति मयं सध्य चित्रगुप्त नमोस्तुते।।
ऊॅ अनादि ह्य्पारं नमन्तं उदारं सदा निर्विकारं।
तथा वेद सारम अखंड उदम्भं रिथि ब्रवृम्ह डिम्भं।।
सनत्वाम लियाखप्तं नमो चित्रगुप्तं।।
ऊॅ भूर्भुवः स्वः चित्रगुप्ताय विद्यम्हे महादेवाय।
धीमहि तन्नो चित्रगुप्तः प्रचोदयातू।।
बुद्धिवनितः सुचिर धीरः दाता अरूउपकारकः।
ब्रम्हक ज्ञान सम्पन्नो कायस्थ सहित लक्षणः।।
लिखूं चित्रगुप्त चालीसा।
गौरीशंकर पद धर शीशा।।१।।
ब्रम्हा के चित्त में स्थित थे।
नाम चित्रगुप्त भव इससे।।२।।
थे काया में स्थित माही।
काया से प्रगटे तुम ताही ।।३।।
श्याम स्वरूप चतुर्भुज धारी।
कमल नयन शोभा अति प्यारी ।।४।।
कलम दवात हाथ में सोहत।
रूप देख सकल जगमोहत।।५।।
ब्रम्हा आयस्थ जाति दरषानी।
क्षत्री धर्म दानी अरू ज्ञानी ।।६।।
अवन्तपुरी में तुम तपयं कीन्हा।
दुर्गा पूजन कर वर लीन्हा।।७।।
धर्मराज के हो तुम प्यारे।
चौदह यम में हो उजयारे ।।८।।
जय श्री चित्रगुप्त गुण सागर।
धर्मराज ढिगरहत उजागर ।।९।।
चौरासी लख योनि भुवन में।
जीवन विचरत सकल जगत में ।।१०।।
जीव-जीव के चित्रकारा।
करते तुम सबका निरधारा।।११।।
मुंशीगिरी का काम तुम्हारा।
तुम्हरि जुम्मे है संसारा।।१२।।
पाप-पुण्य के लेखाकारी।
खाता बही लिखत नित न्यारी।।१३।।
धर्मपुरी के जज्ज कहाते।
हरजीवन जजमेंट बनाते ।।१४।।
जो नित तुम्हरी पूजन करते।
आत्मा में अहिंसक रहते।।१५।।
रात-दिवस हरि का गुण गाते।
उनको तुम वैकुण्ठ पठाते ।।१६।।
जो-जो जन मदरा नित पीते।
जीव मार मांस हैं खाते ।।१७।।
पर निंदा पर जीव सताते।
पराई आत्मा को हैं दुखाते।।१८।।
मिथ्या भाषा चोरी करते।
आठ विशुन में जो रत रहते ।।१९।।
पर अकाज गणिका के कामी।
विश्वासघात परस्त्री गामी।।२०।।
अठारह नर्क हैं मुख्य बताते।
इनखों नर्कन में पहुंचाते ।।२१।।
यत्र युग अभ्यवरीघ सन्ताना।
रूद्र माथुर तुम दये वरदाना।।२२।।
दीवान रहो अभीध्नीस पुस्त तक।
राब्य करी तुम दस पुस्त तक ।।२३।।
त्रेता धनन्तर अवतारा।
आयुर्वेद किया प्रचारा ।।२४।।
इनके सुत सुषेन कहलाये।
रावण राज्य मंत्री पद पाये ।।२५।।
सुशर्मा श्रीवास्तव राजा।
महाभारत के समय समाजा ।।२६।।
भीष्म पिता तुम पूजन कीन्हा।
तुमने इनको दर्शन दीन्हा ।।२७।।
प्रसन्न होय भीष्म वर दीन्ना।
काल रहे तुम्हरे अधीना ।।२८।।
जब इच्छा कर हो मन माही।
मृत्यु होयगी तुम मन चाही ।।२९।।
हर्षवर्धन तुम पूजन कीन्हीं।
तुमने इन पर कृपा कीन्हीं ।।३०।।
राज्य दिया इनको बहुतेरा।
अफगानिस्तान तक भारतकेरा ।।३१।।
रामप्रताप माथुर महाराजा।
तुमने ही सारे इन काजा ।। ३२।।
भगदत्त गौड़ अरू भोज कहाये।
बहुत दिनों तक राज्य कराये।।३३।।
अरविंद घोष तुम शक्ति पाई।
अमरत्व पर पहुंचे जाई ।।३४।।
विवेकानंद तुम शक्ति दीन्हीं।
वेद प्रचार राष्ट्र इन कीन्हीं।।३५।।
तुम्हरी कृपा स्वामी पद पाया।
सब देशन में नाम जमाया।। ३६।।
भये राज नीति के नेता।
सुभाष चंद बोस विख्याता ।। ३७।।
पल्टन को आजाद बनाया।
भारत को स्वतंत्र करवाया।।३८।।
राजेन्द्र प्रसाद तुम शक्ति पाई।
राष्ट्रपति होकर शांति पाई ।।३९।।
लाल बहादुर ने तुम्हें चीन्हा।
प्रधानमंत्री पद तुम दीन्हा ।।४०।।
।। पूजन।।
कातक शुक्ल चैत्र यम दोज।
दवात कलम पूजे इस रोज।।
चित्रगुप्त पूजन मन लावे।
साष्टांग से शीश नवावे।।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावे।
जन्म-जन्म के पाप नसावे।।
चित्रगुप्त जो नाम जपत हैं।
नर्क वेदना सभी मिटत है।।
चंद्रग्रहण गंगा अस्नाना।
सूर्यग्रहण कुरूक्षेत्र बखाना।।
अश्वमेघ यज्ञ सौ करही।
इनका फल जो जो जन लहही।।
यह निश्चय ही नर पाही।
चित्रगुप्त पूजन मन लाही।।
जो यह पाठ करे मन लाई।
उनके पातक सब मिट जाई।।
यह चालीसा होवे जिस घर।
होय न वास यमो का उसघर।।
चित्रगुप्त चालीसा गाया।
चैत्र सुदी नो दुर्गा दाया।।
बीस आगे इकतीस कोराखो।
सम्बद सोई कह कर भाखो।।
चालीसा श्रीवास्तव गाया।
गौरीशंकर फल यह पाया।।
।। आरती ।।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
जय श्री चित्रगुप्त श्यामले स्वरूप की।।
कलम दोत कागज वही जय चतुर्भुज रूप की
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
सिर मुकुट गले माल सोहत, शोभा फेंट कटार की।
इष्ट हैं देवी का नित पूजन करत तलवार की।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
श्री दक्षण शोभा आवती जय हो इन्हीं मतान की।
जय हो इसी कायस्थ कुल बारह सभी सन्तान की।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
करते विनय हम तन सभी मिल चाहत कृपा सब आपकी
हम हैं तुम्हारे अंश से, सो सदा रहे सातकी।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
दीन्हीं कलम अरू दोत सो भूले न सुधि वरदान की।
पदवी अटल वह बनी रहे जो दी हमें प्रधान की।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
जो हो हमारे पास तो चर्चा करें हम ज्ञान की
व्यापे नहीं कुछ पाप नित पूजन करें भगवान कीं।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
आरती जो गाये नित धर ध्यान तुम्हरे रूप की।
व्यापे नहीं वह वेदना गौरी कहे नर्क कूप की।
आरती श्री चित्रगुप्त जी की।
।। स्तुति ।।
ब्रम्ह पुत्र वरदायक स्वामी चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
जय चित्रगुप्त जी न्यायधीश जय कर्मलेख प्रभु नमो-नमो
हर जीवन के तुम हो स्वामी चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
लेखक विद्या देने वाले चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
भूले मार्ग बताने वाले चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
सुंदर ज्ञान सिखाने वाले चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
कृपा करो प्रभु हमे जगाओ चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
भव सागर से पार लगाओ चित्रगुप्त प्रभु नमो-नमो
जय-जय चित्रगुप्त स्वामी जयति जय प्रभु अंतर्यामी
शीष पर दिव्य मुकुट धारी बदन छवि श्याम गगन प्यारी
जनेऊ दिव्य वसन धारी लेखनी घटिका करधारी
नजर तुम मृत्यु लोक डारी देखते गुण-अवगुण यारी
नृपति सौदास दिया तारी शुभा शुभ कर्म न्यायकारी
भीष्म सम राखो हितकारी पुकारत हैं संतान तुम्हारी
।। प्रभाती ।।
जय-जय श्री चित्रगुप्त जीवन हितकारी।
तुम्हरो जो ध्यान धरत सकल विघ्न टारी।।
जय-जय श्री चित्रगुप्त जीवन हितकारी।
भार पड़ा धर्मराज चिंता करी तब अपार।
विधि से कीन्हीं पुकार शरण हूं तुम्हारी
जय-जय श्री चित्रगुप्त जीवन हितकारी।
ब्रम्हा यह बात जान कीन्हा मन गुप्त ध्यान।
तुम्हरे ही जन्म हेतु कीन्हा तप भारी।
जय-जय श्री चित्रगुप्त जीवन हितकारी।
ब्रम्हा की काया अरू चित्त से यह रूप पाय।
श्याम वर्ण कमल नयन चतुर्भुज धारी
जय-जय श्री चित्रगुप्त जीवन हितकारी।
विधि का वरदान पाय धर्मराज पास आय।
धर्म कर्म जीवन के भय में लेखाकारी
जय-जय श्री चित्रगुप्त जीवन हितकारी।
हमारे प्रेरणा पुंज
दादा जी
मार्गदर्शक
माता-पिता
श्री रघुवीर सहाय श्रीवास्तव एवं श्रीमती राधा देवी श्रीवास्तव
आशीर्वाद और शुभकामनाओं का सदैव अभिलाषी
प्रकाशन सहायक : आशीष श्रीवास्तव
भोपाल मप्र
कृष्ण सहाय श्रीवास्तव (अधिवक्ता)
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