1...अंधेरों के बगीचे.... खिल रहे है चाँद सितारे अंधेरों के बगीचे में कहीं झूम रही है कलि कलि चाँदनी की भी यहीं इन मदहोश हवाओं ने उड़ा...
1...अंधेरों के बगीचे....
खिल रहे है चाँद सितारे
अंधेरों के बगीचे में कहीं
झूम रही है कलि कलि
चाँदनी की भी यहीं
इन मदहोश हवाओं ने
उड़ा दी हैं नींदें भी
के बहार बेचैन है
जमीं पे कहीं
वो देखो चोटी से अजब नजारे
खिल रहे हैं जमीं पर सितारे
ये आसमां भी झुक रहा है धरती पर
टिमटिम जुगनू के लगे हैं फल यहीं पर
झिलमिल रोशनी भी
आ रही है घरों से
क्या खूब लग रहे हैं
बाग ये अंधेरों के
मुस्कुरा रहे हैं अधर
यहाँ मौसम के
दीये जल रहे हैं देखो
पानी में भी यहीं
राजेश गोसाई
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.2....लिखी...
हाँ मैंने लिखी
इक कविता लिखी
तेरे नाम की
कोई फूलों की
कोई गजरों की
हाँ मैंने लिखी
कोई सावन के झूलों की
कोई मदहोश शाम की
महकी हुई सुबह की
ओस की लड़ियों की
हाँ मैंने लिखी
इक कविता लिखी
बारिश की बूंदों की
पानी में कश्ती की
सुनहरी सी धूप की
मनुहारी छाँव की
गोरी के गाँव की
इक कविता लिखी
राजेश गोसाईं
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3....बस्ती...
मैं ढूंढता हूँ जिनको
लफ्जों की बस्ती में
वो मिल सके ना मुझको
कलम की बस्ती में
उठा था तूफान दिल में आ के
कलम की नोक पे जा के
डगमगा रहे थे हिण्डोले
शब्दों की बस्ती में
सोचा था जो भी मैंने
वो मुझको रास ना आया
जुनून था फिर भी
मगर कुछ लिख ना पाया
मिला नहीं किनारा
बैठा हूँ अब मस्ती में
हंसती है दुनिया
बना नहीं कोई हस्ती मैं
राजेश गोसाईं
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.4....सफर....
मंजिल नजर आती नहीं
है सफर में बहुत अंधेरे
कह दो कोई उस चाँद से
वो साथ रहे मेरे
माना कि राह में.. है ये लम्बी दूरी
मगर सब्र करना फिर भी है जरूरी
कट जायेंगे रस्ते सारे
मुश्किल में भी बढ़ जायेंगे कदम
जो तू साथ है मेरे
मिल जायेंगे निशां रोशनी के
छुपे हुये कहीं टेढ़े मेढ़े
हमें चलना होगा आगे और आगे
कहीं चाँद भी लगा लेगा
अंधेरों के फेरे
सफर में हमसफर के
संग होंगी आसान ये राहें
हों जुल्फों के घेरे
तेरी बांहों के फेरे
कह दो कोई उस चाँद से
वो साथ रहे मेरे
राजेश गोसाईं
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.5....खाक हो जाऊँ...
है मेरा वतन है मेरा वतन
सांसों की महक दिल की अगन
तुझे है मेरा शत शत नमन
ये जान तुझपे कुर्बान हो जाये
हर मोड़ पे तू सुन्दर जिन्दगानी
सजी हुई दुल्हन की कहानी
कहीं फूलों का चमन
कहीं ठण्डी पवन
कहीं देखूं नदियों का दर्पन
कहीं भी तुझसे मोहब्बत हो जाये
हो खाक मेरा यहाँ जिस्म और जान
तेरे कदमों में ऐ दिल ए जान
हो चारों तरफ मेरा वतन मेरी शान
हो मेरा दीवाना पन
सौ बार लूं मैं यहाँ पे जन्म
इस जमीं पे ये जीवन सफल हो जाये
राजेश गोसाईं
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6.......
...रात काली....
काला है आसमां रात काली
हो ना जाये बात कोई प्यार वाली
ये रात काली....2
देखो कह रहा है चाँद भी तन के
कोई मीत मिलें यहाँ मन के
हों बातें भी मोहब्बत वाली
फैली फैली है चाँदनी निराली
ये रात काली....2
हो ना जाये बात कोई प्यार वाली
काला है आसमां रात काली
सइंया जुल्फें भी है काली
झुकी झुकी हैं पलकें काली
आजा आजा मिलन को मतवाली
ओ काली काली नयनों वाली
रात काली मुलाकात वाली
हो ना जाये बात कोई प्यार वाली
काला है आसमां रात काली
देखो छाया है घोर अंधेरा
उस पे चाँद का लगा है पहरा
इन सितारों ने भी लड़ियाँ सजा ली
रह ना सकोगी दूर दिलवाली
ये रात काली
हो ना जाये बात कोई प्यार वाली
काला है आसमां रात काली
हो ना जाये बात कोई प्यार वाली
राजेश गोसाईं
7...
..जलते दीये...
ये जलते हुये दीये
तेरी राहों के लिये
सजाये आज हैं मैंने...2
पग पग में तेरे
ये रौशनी के घेरे
चारों ओर सजाये है मैंने...2
चाँद तारों की चाह में
अंधेरा ही था पाया
चाँदनी में मिला
काली रातों का साया
कोई प्यार की है भाषा
कोई दिल की अभिलाषा
काजल की गठरी में टुकड़े
रौशनी के सजाये है मैंने
टुकड़े रौशनी के बिखरे
इस दिल की तह में
दीप नैनों के जला के
सजाये है मैंने
राजेश गोसाईं
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8.. मेहमां अंधेरा..
रात भर का है मेहमां अंधेरा
फिर मुस्कुराता मिलेगा सवेरा
रात चाहे कितनी भी घनी हो
गम के बादल मे भी नमी हो
खत्म होगा सब अश्कों का डेरा
फिर मुस्कुराता मिलेगा सवेरा
आ चलें हम साथ मिल के
ले के टुकड़े कुछ रौशनी के
रस्ता होगा आगे सुनहरा
फिर मुस्कुराता मिलेगा सवेरा
अब शिकवा ना कर
संगीन रात से ना डर
हट गया है बादल घनेरा
फिर मुस्कुराता मिलेगा सवेरा
चाँद कितने भी मुँह फेरे
कुछ तो रौशनी के मिलेंगे घेरे
पड़ेगा हर कदम जहाँ तेरा
फिर मुस्कुराता मिलेगा सवेरा
राजेश गोसाई
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9..
....तारों के गहने...
तारों के गहने रातों ने पहने
देखो धरती चली चंदा से कहने
अंधेरों में होने लगी जगमग
आँचल चाँदनी का लगा लहराने
धरती के मधुबन में फूल
चाँद तारों के लगे मुस्कुराने
रौशनी के दीवाने अंधेरों ने पहचाने
देखो जुगनू भी लगे टिमटमाने
दिवाली भी तो आती है अमावस में
तब आसमां लगता है जगमगाने
राजेश गोसाईं
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10...
....काजल...
अंधेरे हैं चले जाओ जहाँ हो
जहाँ राहें हों ना रौशन
वहाँ कुछ दीये तो जलाओ
ये बिखरा हुआ है काजल
उसपे थोड़ा कुमकुम फैलाओ
जरा सी आंच दिखा के
राह रौशन बनाओ
ये अंधेरों का आलम
और उसमें रौशनी का मिलन
उम्मीदों पर ही तो चल रहे हैं हम
जहाँ नजर आये ना लौ कोई
वहाँ पे लौ जलाओ
राजेश गोसाईं
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11.....बढ़ते ही जाओ...
जला के दीये तुम बढ़ते ही जाओ
जहाँ हों अंधेरे वहाँ लौ जगाओ
अभी तो यहाँ पर साये हैं काले
ना जाने कहाँ पर मिलेंगे उजाले
राह में जरा तुम कदम तो बढ़ाओ
जला के दीये तुम बढ़ते ही जाओ
जहाँ हों अंधेरे वहाँ लौ जगाओ
रौशनी के दम पर चल रहें हैं
अंधेरों से हम लड़ रहे हैं
काली रातों अब हमें ना भटकाओ
जला के दीये तुम बढ़ते ही जाओ
जहाँ हों अंधेरे वहाँ लौ जगाओ
राजेश गोसाई
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