600 ईसवी का काल था। मगध नरेश सूर्य वर्मा की विजय पताका चहुं और फहरा रही थी। उनकी युवा हो रही राजकुमारी वासटा की सौंदर्य कीर्ति भी दूर-दूर तक...
600 ईसवी का काल था। मगध नरेश सूर्य वर्मा की विजय पताका चहुं और फहरा रही थी। उनकी युवा हो रही राजकुमारी वासटा की सौंदर्य कीर्ति भी दूर-दूर तक फैली हुई थी। कई प्रतापी राजकुमार वासटा से विवाह के इच्छुक थे। लेकिन मगध नरेश सूर्य वर्मा दक्षिण कौशल के राजा हर्षगुप्त के विवाह प्रस्ताव को लेकर गंभीर हैं। वे राजकुमारी का विवाह हर्षगुप्त से करना चाहते हैं।
लेकिन ये कैसे संभव हो? राजगुरु के मस्तक पर चिंता की लकीरें देखकर सूर्य वर्मा भी विचलित हैं। क्यों संभव नहीं हो सकता राजगुरु? सूर्य वर्मा प्रतिप्रश्न करते हैं। हम वैष्णव हैं, वे शैव। दोनों की पूजा पद्धति, रीति-रिवाज भिन्न हैं, इष्ट भिन्न हैं। राजगुरु का उत्तर सुनकर मगध नरेश कुछ बोलते, उसके पहले ही राजकुमारी वासटा उपस्थित हो जाती हैं। अत्यंत रूपवती, धर्मानुरागी, वीरांगना पुत्री को देखकर सूर्य वर्मा का मस्तक ऊंचा होता हुआ प्रतीत हो रहा है। मन में उमड़ रहे प्रश्नों को वे सीधे राजकुमारी के सम्मुख रखने का निर्णय लेते हैं। राजकुमारी पिता के मन में चल रहे भावों से अच्छी तरह परिचित है, पिता कुछ बोलें, इसके पूर्व ही पुत्री निर्भीक होकर अपने मन की बात कह देती है। राजकुमारी वासटा कहती हैं कि पिताजी, आप चाहे वैष्णव कुल में मुझे ब्याहें या शैव कुल में। मैं केवल इतना कहना चाहती हूं कि आपकी ये पुत्री कभी आपका मस्तक झुकने नहीं देंगी। पिता के मन के सारे उहापोह समाप्त हो जाते हैं। वे धूमधाम से मगध की राजकुमारी का विवाह दक्षिण कौशल के शैव धर्मावलंबी श्रीपुर (मौजूदा सिरपुर) के राजा हर्षगुप्त से कर देते हैं। और इसी के साथ आरंभ होती है एक अमर प्रेम कहानी। जिसका गवाह खुद चीनी यात्री ह्वेन सांग है। जिसने अपनी यात्रा वृंतात में इसका वर्णन किया है।
वासटा श्रीपुर की रानी बनकर हर्ष गुप्त के जीवन में आ गईं। चित्रोत्पला महानदी के घाट पर बसे श्रीपुर में चहुं और समृद्धि के ही दर्शन होते थे। कभी कोई अपराध श्रीपुर में सुनाई तक नहीं देता था। वासटा और हर्ष गुप्त के प्रेम की मिसालें दी जाने लगी थीं। सब कुछ अच्छा ही चल रहा था, लेकिन ईश्वर को शायद कुछ और ही मंजूर था। राजा हर्ष गुप्त की श्वांस ईश्वर ने कम लिखीं थी। वे रानी वासटा को छोड़कर सदा सर्वदा के लिए दुनिया से कूच कर गए। ये ईसवी ६३५-६४० का वक्त था। जब श्रीपुर यानि सिरपुर की रानी वासटा ने राजा हर्षगुप्त की याद में अगाध प्रेम के प्रतीक लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया। अचानक राजा की मृत्यु से शोक में डूबी रानी वासटा प्रण लेती हैं कि वे पति की याद में स्मारक का निर्माण करवाएंगी। रानी वासटा लाल पत्थरों से लक्ष्मण स्मारक या मंदिर का निर्माण करवाती हैं, ताजमहल से भी 11 सौ वर्ष पूर्व। आज भी श्रीपुर में रानी वासटा के अमर प्रेम की गाथा गूंज रही है। सदियां बीतने के बाद भी लक्ष्मण स्मारक वैसे ही पूरे वैभव के साथ खड़ा है, जैसा कि अपने निर्माण के वक्त था।
(शैव धर्मावलंबी श्रीपुर (मौजूदा सिरपुर) में मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी वैष्णव धर्मावलंबी वासटादेवी की प्रेम कहानी का उल्लेख हालांकि चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपनी यात्रा वृतांत किया है। लक्ष्मण मंदिर में दक्षिण कौशल की शैव और मगध की वैष्णव संस्कृति का अनूठा मिश्रण स्पष्ट परिलक्षित होता है।
आगरा में अपनी चहेती बेगम मुमताज की स्मृति में शाहजहां ने ईसवी १६३१-१६५४ के मध्य ताजमहल का निर्माण कराया। सफेद संगमरमर के ठोस पत्थरों को दुनियाभर के बीस हजार से भी अधिक शिल्पकारों द्वारा तराशी गई इस कब्रगाह को मुमताज महल के रूप में प्रसिद्धि मिली। ताजमहल से लगभग ११ सौ वर्ष पूर्व शैव नगरी श्रीपुर में मिट्टी के ईंटों से बने स्मारक में विष्णु के दशावतार अंकित किए गए हैं और इतिहास इसे लक्ष्मण मंदिर के नाम से जानता है। लक्ष्मण मंदिर की सुरक्षा और संरक्षण के कोई विशेष प्रयास न किए जाने के बावजूद मिट्टी के ईंटों की यह इमारत चौदह सौ वर्षों के बाद भी शान से खड़ी हुई है। १२वीं शताब्दी में भयानक भूकंप के झटके में सारा 'श्रीपुर जमींदोज़ हो गया। चौदहवीं-१५वीं शताब्दी में चित्रोत्पला महानदी की विकराल बाढ़ ने भी वैभव की नगरी को नेस्तानाबूद कर दिया लेकिन बाढ़ और भूकंप की इस त्रासदी में लक्ष्मण मंदिर अनूठे प्रेम का प्रतीक बनकर खड़े रहा है। हालांकि इसके बिल्कुल समीप बने राम मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया और पास ही बने तिवरदेव विहार में भी गहरी दरारें पड़ गई। साहित्यकार अशोक शर्मा ने ताजमहल को पुरूष के प्रेम की मुखरता और लक्ष्मण मंदिर को नारी के मौन प्रेम और समर्पण का जीवंत उदाहरण बताया है। उनका मानना है कि इतिहास गत धारणाओं के आधार पर ताजमहल और लक्ष्मण मंदिर का तुलनात्मक पुनर्लेखन किया जाए तो लक्ष्मण मंदिर सबसे प्राचीन प्रेम स्मारक सिद्ध होता है।)
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प्रियंका कौशल
संक्षिप्त लेखक परिचय -लेखिका पिछले 15 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। नईदुनिया, दैनिक जागरण, लोकमत समाचार, जी न्यूज़, तहलका जैसे संस्थानों में सेवाएं दे चुकी हैं। वर्तमान में भास्कर न्यूज़ (प्रादेशिक हिंदी न्यूज़ चैनल) में छत्तीसगढ़ में स्थानीय संपादक के रूप में कार्यरत् हैं। मानव तस्करी विषय पर एक किताब "नरक" भी प्रकाशित हो चुकी है।
रायपुर छत्तीसगढ़-492001
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