कहानी- बंद लिफाफा रतन लाल जाट शर्मा जी सवेरे-सवेरे उठकर अपने घर से बाहर निकले। किसी ने आवाज दी थी- शर्मा जी है। फिर मन में बुदबुदाया-पता नही...
कहानी- बंद लिफाफा
रतन लाल जाट
शर्मा जी सवेरे-सवेरे उठकर अपने घर से बाहर निकले। किसी ने आवाज दी थी- शर्मा जी है। फिर मन में बुदबुदाया-पता नहीं यहाँ कौन-से शर्मा रहते हैं? आवाज सुनकर उनको आश्चर्य हुआ। क्योंकि उनके वहाँ आने-जाने वाले लोग बहुत ही सीमित पाँच-सात ही थे, उनमें से यह किसी की आवाज नहीं थी और पास-पड़ोस में कोई ज्यादा रहने वाले भी नहीं थे और जो दो-चार घर थे। उन लोगों को इनसे कोई विशेष मतलब नहीं था। हाँ, कभी-कभी जरूर इनके बारे में बातें करते थे- यह कैसे लोग हैं? परिवार में कोई किसी की नहीं सुनता है। हर रोज लड़ाई-झगड़ा होता रहता है और देखो, उन पाँच-सात लोगों को मजे से दिन काट रहे हैं। इतना कहकर फिर जोर-से हँसकर मन को हल्का कर लेते थे।
जिन पाँच-सात मुख्य लोगों का नाम आता है, उनकी गिनती सबसे निकम्मे और चरित्रहीन में होती है, जो एक-दो करके आते-जाते हैं। सुबह-शाम, रात-आधी रात कोई निश्चित समय नहीं होता है। इस पर न मेजबानों को कोई परेशानी होती है और न ही नित के मेहमानों को। लेकिन मन ही मन पड़ोसी जरूर दुखी होते रहते हैं।
इनमें एक महाशय, जिनकी उम्र साठ से ऊपर और कुंवारे हैं। तो दूसरे विधुर हैं और अब विवाह की कोई संभावना नहीं है। तीसरे इनसे अलग हैं, जो कोई प्राइवेट काम करते हैं। लेकिन खुद को किसी साहब से कम नहीं समझते हैं। इन साहब के एक नहीं, दो पत्नियाँ हैं। लेकिन दोनों से परेशान होकर उनसे दूर भागते हुए यहाँ कुछ आराम महसूस करते हैं। इसी तरह तीन-चार विशेष लोग और हैं। इनके बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी। वैसे चोर-चोर मौसेरे भाई वाली कहावत चरितार्थ होती है।
शर्मा जी ने देखा। कोई डाकिया था, जो कोई रजिस्टर्ड डाक लिए खड़ा था। क्या है? शर्मा जी आप ही हैं? हाँ, मैं ही हूँ। यहाँ हस्ताक्षर कीजिए। फिर बन्द लिफाफा हाथ में थमाकर कुछ परेशान-सा डाकिया लौट गया।
उन्होंने लिफाफे को अन्दर आकर खिड़की के नीचे रख दिया। फिर उसे देखते हुए अनुमान लगाने लगे। कोई निमंत्रण होगा। लेकिन मेरे लिए कौन भेजने वाला है? शायद कोई सरकारी कागज आया होगा, लेकिन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के लिए ज्यादातर ऑफिस में ही आता है।
फिर ज्यादा अपने को रोक नहीं पाये और लिफाफे को खोला। शहर के नवीन संचालित राजकीय मॉडल स्कूल प्रिंसिपल का पत्र था। जिनमें उनकी छोटी लड़की पढ़ती है। पहले तो विद्यालय का नाम देखते ही मन में दुखी हुए। फिर यह सोचकर कि क्या लिखा हैं? कुछ रूपये-पैसे मिलने की बात हो सकती है। सरकारी स्कूल में न जाने क्या-क्या योजनाएँ चलती रहती है?
अभिभावक महोदय! हमें यह कहते हुए अत्यंत शर्म महसूस हो रही है कि हमारे विद्यालय में आपकी बेटी पढ़ रही है और कई बार आपको कॉल करके सूचना दी गयी कि आप विद्यालय में पधारें। लेकिन सत्र बीतने को आया, तब तक आप एक बार भी नहीं आये। हो सकता है, आप बहुत कामकाजी होंगे और समय नहीं मिल पाया होगा। लेकिन अपनी बेटी के लिए तो समय निकालना चाहिए। अगर अपने बच्चों के लिए हमारे पास समय नहीं होगा। तो फिर किसके लिए हम समय निकाल पायेंगे। वैसे आपकी बेटी पढ़ने में होशियार है और आगे बढ़ने की हिम्मत भी रखती है। हमें विश्वास है कि आप घर पर तो उसकी पढ़ाई पर ध्यान रखते होंगे और विद्यालय के बारे में भी जानकारी लेते होंगे। लेकिन हम एक बार आपके विद्यालय में पधारने की आशा करते हैं। इसी के साथ आपके और आपकी बेटी के उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ।
शर्मा जी ने पढ़ना शुरू किया। तो ज्यादा अभ्यास न होने के कारण रूकते-अटकते हुए पढ़ते रहे। आखिर उन्होंने पूरा पढ़कर ही चैन की साँस ली थी। फिर उसे बन्द करके बड़े प्यार से सीने से लगाते हुए जेब में रख दिया। इस समय उनकी आँखों से आँसू छलकते दिखायी दे रहे थे। इसकी वजह कम रोशनी में अधिक देर तक जोर देकर पढ़ने की थी या कुछ और पता नहीं।
शर्मा जी एक लम्बी साँस लेकर बैठ गये और उनके सामने पुरानी कुछ यादें सजीव हो उठी थी। उनके एक बेटा और दो बेटियाँ हैं। इन्होंने छोटी बेटी की तरह उन दोनों को भी पढ़ाया-लिखाया था। लड़का मुश्किल से आठवीं तक पहुँच पाया। स्कूल में ही बीड़ी-तम्बाकू पीना सीख गया था और खूब आवारागर्दी करता था घर और स्कूल दोनों ही जगह। लेकिन कभी स्कूल से किसी ने कुछ नहीं कहा। न लड़के को और न मुझको। बड़ी लड़की वैसे स्नातक कर चुकी हैं। लेकिन केवल नाममात्र की डिग्री पायी हैं। अब वह घर की रही न घाट की। उसे एक-दो साल हो गये हैं, जो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने जा रही है। उस स्कूल संचालक ने पता नहीं कैसे बिना किसी ट्रेनिंग कॉर्स करने के बावजूद रख लिया और स्नातक करने के बाद भी उसी ने बीएड करने से रोककर एमए के लिए कहा। इसकी वजह यह थी कि उसे बीएड न होने पर ज्यादा रूपये नहीं देने पड़ेंगे और न वह स्कूल छोड़कर कहीं जायेगी।
शर्मा जी पत्नी के द्वारा बर्तन धोते समय किसी एक बर्तन के नीचे गिरने की आवाज़ से चौंक पड़े थे। फिर उनको रास्ते में हमेशा की तरह कुछ कानाफूसी करते हुए वही साठ साल के बुढ़े महाशय और प्राइवेट काम-धंधे वाले साहब इनके घर की तरफ आते दिखाई दिये। तो शर्मा जी को पता चला कि ऑफिस का समय हो गया है। क्योंकि वह रोज उनके आने से पहले ही रवाने हो जाते हैं। तभी अचानक उनकी कच्ची छत से एक मिट्टी का ढेला नीचे आकर गिरा। जिससे बाहर निकलते शर्मा जी और अन्दर आते वे दोनों महानुभाव ठिठक गये। इसी बीच बड़ी लड़की और पत्नी जोर-से हँस पड़ी। कारण मिट्टी गिरने से या उन दोनों के आने से, पता नहीं है।
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लेखक-परिचय
रतन लाल जाट S/O रामेश्वर लाल जाट
जन्म दिनांक- 10-07-1989
गाँव- लाखों का खेड़ा, पोस्ट- भट्टों का बामनिया
तहसील- कपासन, जिला- चित्तौड़गढ़ (राज.)
पदनाम- व्याख्याता (हिंदी)
कार्यालय- रा. उ. मा. वि. डिण्डोली
प्रकाशन- मंडाण, शिविरा और रचनाकार आदि में
शिक्षा- बी. ए., बी. एड. और एम. ए. (हिंदी) के साथ नेट-स्लेट (हिंदी)
ईमेल- ratanlaljathindi3@gmail.in
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