1. बन गए वे क्षण सभी बागी कथाएँ बन गए वे क्षण सभी बागी कथाएँ जो कभी गुजरे तुम्हारे साथ चलकर तानकर जब मुट्ठियाँ नारे लगातीं तब उबलता क...
1.
बन गए वे क्षण सभी बागी कथाएँ
बन गए वे क्षण सभी बागी कथाएँ
जो कभी गुजरे
तुम्हारे साथ चलकर
तानकर जब मुट्ठियाँ
नारे लगातीं
तब उबलता क्रोध
नस-नस में भरा था
जी रहा हूँ उन पलों को
आज तक भी
जिन्हें पा आक्रोश को
सिर पर धरा था
भ्रमित भी करता रहा हर मोड़ पर ही
सदा मायावी हिरन
आगे उछलकर
जो नहीं तुमको रहा
अनुकूल शायद
मैं उसी प्रतिवाद को
रचता रहा हूँ
लाख के घर भी बने
मेरे दहन को
पर समय से पूर्व मैं
बचता रहा हूँ
हम जिये प्रतिकूलताओं के नगर में
हर तरह के साँप के
फन को कुचलकर
जब हमारे सत्य ही
विपरीत हों तो
राग समरसता सुनाकर
क्या मिलेगा
तुम जिसे दुर्भेद्य
समझे हो अभी तक
उस किले की नींव का
पत्थर हिलेगा
उठ गए हैं फिर असहमत पाँव जिनसे
क्रूर खलनायक रहेगा
हाथ मलकर
---जगदीश पंकज
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2.
एक चुप्पी बुन रही है
एक चुप्पी बुन रही है
गर्म सन्नाटा
हवा की हर सतह पर
चिलचिलाती धूप में बहता पसीना चुन रहा है
खेत में बिखरी हुई संजीवनी को
और सहमी शाम के बढ़ते धुँधलके में छिपाकर
सुला देता है थकन की मुर्दनी को
हो रहा संचित घना
आवेश है जो
फैलता अब मुक्त बह कर
एक दमघोटू असह दुर्गन्ध पीकर सीवरों की
क्रूर पशुता की विवशता जी रहा है
स्वच्छता देता रहा जो सजग प्रहरी हर पटल पर
वह कहाँ संवेदनाएँ सीं रहा है
प्रश्न है क्यों पी रहा
इस दौर में वह
हर घुटन संत्रास सह कर
खोलती गठरी सहज जब चेतना की कसमसाहट
फेंकती वह तब सवालों को उठाकर
जब नहीं मिलता कहीं उत्तर पलटकर समय से भी
तब स्वयं उठती रही है ताप पाकर
न्याय को आशा भरी
नज़रें तरसती
यातना का पक्ष कहकर
---जगदीश पंकज
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3.
आदमी गुम हो न जाये
कर रहा अनुवाद जो
पीडा कसक, संवेदना का
भीड से लिपियाँ बचाता
आदमी गुम हो न जाये
हम जहाँ, उस क्षेत्र के जनपद
विवादित हो रहे हैं
आंचलिक विश्वास की
शब्दावली में खो रहे हैं
मोह के मन्तव्य
मनमाने कथन की कैद में हैं
इस विकट प्रतियोगिता में
आदमीयत खो न जाये
रिक्तता बढ़ने लगी है, कारुणिक
अनुभव व्यथित हैं
धड़कनों के वर्ण-क्रम से
अक्षरों के स्वर चकित हैं
बोलियों की ललक से
टूटे नहीं भावुक विरासत
अन्तरे से टेक तक
भावार्थ आकर सो न जाये
शब्द की सत्ता नहीं
शापित सृजन का मौन-व्रत हो
और सर्जक भी प्रलोभन
देखकर नादण्डवत हो
शुष्क अनुकृतियाँ न हों
पहचान मौलिक सर्जना की
नव्यता की होड़ में
विषबेल कोई बो न जाये
---जगदीश पंकज
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4.
जग गए हैं मौन की पदचाप सुनकर
जग गए हैं मौन की पदचाप सुनकर
स्वप्न वे जिनको
सुलाया था रुदन ने
योग्य कितना, कौन है
जब अर्हता ही
जन्म के अभिजात से
कसकर जुडी हो
किस प्रगति की घोषणाएँ
हो रही हैं
जो हमारे द्वार से
पहले मुड़ी हो
दूर हैं लोकोक्तियों के संकलन से
तथ्य जो छाँटे कभी
सच के चयन ने
साक्ष्य भी संदिग्ध
होते जा रहे हैं
यातना का वाद ही
जिन पर टिका है
अब गवाही के लिए
किसको टटोलें
पक्षधर ही जब
अदालत में बिका है
पक्ष-द्रोही हो गए वे अश्रु सारे
जिन्हें घुट-घुटकर
बहाया था नयन ने
हम सदा षड्यंत्र को
अपवाद समझे
दे नियति को दोष
अपने आचरण का
सुप्त अभिलाषा रखी
मन में दबाकर
टीसता है शूल भी
अन्तःकरण का
आज के आशय कलंकित हो न जाएँ
जो किये दूषित
किसी मिथ्या वचन ने
---जगदीश पंकज
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5.
सुखद साझे पल रखे दिन ने
सुखद साझे पल
रखे दिन ने
सांझ की धुँधली अटारी पर
एक दिन भर की
थकन को जब
रात की चादर मिली आकर
कुछ कथाएं
लोक भाषा में
ओढ़ लीं उपहार-सी पाकर
आज को तो
जी लिए जीभर
कल मिलेंगे फिर सवारी पर
जय-पराजय की
कभी गणना
कर नहीं पाये ज़रा रुककर
डाँट के किस्से
मिले जो भी
सह गए विष की तरह झुककर
चेतना का
हम पराजित शव
चल रहे लेकर दुधारी पर
चिन रहे हैं
हम पसीने से
महल की दीवार को निशदिन
मिल न पायी
छाँव भी हमको
जिन्दगी भर दर्द को गिन-गिन
सभ्यता को
मौन ही देखा
दर्द की बेबस खुमारी पर
---जगदीश पंकज
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जगदीश पंकज
परिचय :
पूरा नाम : जगदीश प्रसाद जैन्ड , जन्म : 10 दिसम्बर 1952
स्थान : पिलखुवा, जिला-गाज़ियाबाद (उ .प्र .) , शिक्षा : बी.एससी .
प्रकाशित कृतियाँ : 1. 'सुनो मुझे भी' (नवगीत संग्रह) 2. 'निषिद्धों की गली का नागरिक' (नवगीत संग्रह) 3. 'समय है सम्भावना का' (नवगीत संग्रह ) 4. ‘आग में डूबा कथानक’ (नवगीत संग्रह ) 5. ‘मूक संवाद के स्वर’ (नवगीत संग्रह )
नवगीत के समवेत संकलन 'नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध' , 'गीत सिंदूरी गन्ध कपूरी'
तथा 'सहयात्री समय के' ,'समकालीन गीतकोश', 'गुनगुनाएँ गीत फिर से', 'गीत प्रसंग' में नवगीत संकलित एवं साझा संग्रह 'सारांश समय का' और 'शतदल' में कवितायें प्रकाशित
'समकालीन भारतीय साहित्य','इन्द्रप्रस्थ भारती','गगनांचल','कथाक्रम','कथादेश', दिल्ली मासिक,मधुमती ,डाक तार ,पालिका समाचार ,शब्द ,जरूरी पहल ,उद्भावना ,संवेदन ,उत्तरायण, सार्थक, साहित्य समीर दस्तक,शिवम् पूर्णा ,संवदिया, पहला अन्तरा ,दलित दस्तक ,आजकल ,बाबूजी का भारतमित्र ,निहितार्थ ,शुक्लपक्ष,तीसरा पक्ष ,दलित अस्मिता ,साहित्य सागर ,कविता बिहान, परिंदे,लोकोदय ,मध्य प्रदेश सन्देश, वेबपत्रिका अनुभूति ,रचनाकार ,शब्द व्यंजना ,साहित्य रागिनी ,प्रतिलिपि ,पूर्वाभास ,हस्ताक्षर ,अभिव्यक्ति ,ओपन बुक्स ऑनलाइन ,जनकृति , परतों की पड़ताल , अनन्तिम,कविकुंभ ,एक और अंतरीप आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं/ वेब पत्रिकाओं में गीत,नवगीत,समीक्षाएं एवं कवितायें प्रकाशित . तथा आकाशवाणी दिल्ली से काव्य-पाठ का प्रसारण।
सम्पादन : साहित्यिक पत्रिका 'संवदिया' के नवगीत-विशेषांक का सम्पादन
सम्मान :
1. मुरादाबाद की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के द्वारा नवगीत कृति 'सुनो मुझे भी' एवं अमूल्य साहित्यिक साधना के लिए 'देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान -2015' से सम्मानित
2. भोपाल की साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सागर' के तत्वावधान में 'अर्घ्य कमलकांत सक्सेना जयंती उत्सव' द्वारा 'नटवर गीत साधना सम्मान- 2016 ' से सम्मानित
3. युवा रचनाकार मंच ,लखनऊ द्वारा 'नवगीतकार महेश 'अनघ' सम्मान -2018 से सम्मानित
4. मुरादाबाद की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के द्वारा 'माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान'
सम्प्रति : सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में वरिष्ठ प्रबन्धक के पद से सेवानिवृत्त एवं स्वतंत्र लेखन
संपर्क : सोमसदन ,5/41सेक्टर2,राजेन्द्रनगर,साहिबाबाद,गाज़ियाबाद-201005 .
, e-mail: jpjend@yahoo.co.in
, jagdishjend@gmail.com
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