सचमुच एक असंभव संभावना हैं गांधी! - महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष प्रसंग - प्रो. संजय द्विवेदी

SHARE:

  इतिहासकार सुधीर चंद्र की किताब ‘गांधी एक असंभव संभावना’ को पढ़ते हुए इस किताब के शीर्षक ने सर्वाधिक प्रभावित किया। यह शीर्षक कई अर्थ लिए ...

 

इतिहासकार सुधीर चंद्र की किताब ‘गांधी एक असंभव संभावना’ को पढ़ते हुए इस किताब के शीर्षक ने सर्वाधिक प्रभावित किया। यह शीर्षक कई अर्थ लिए हुए है, जिसे इस किताब को पढ़कर ही समझा जा सकता है। 184 पृष्ठों की यह किताब गांधी के बेहद लाचार, बेचारे, विवश हो जाने और उस विवशता में भी ‘अपने सत्य के लिए’ जूझते रहने की कहानी है।

जाहिर तौर पर यह किताब गांधी की जिंदगी के आखिरी दिनों की कहानी बयां करती है। इसमें ‘असंभव संभावना’ शब्द कई तरह के अर्थ खोलता है। गांधी तो उनमें प्रथम हैं ही, तो भारत-पाकिस्तान के रिश्ते भी उसके साथ संयुक्त हैं। ऐसे में यह मान लेने का मन करता है कि भारत-पाक रिश्ते भी एक असंभव संभावना हैं? सामान्य मनुष्य इसे मान भी ले किंतु अगर गांधी भी मान लेते तो वे ‘गांधी’ क्यों होते? प्रत्येक विपरीत स्थिति और झंझावातों में भी अपने सच के साथ रहने और खड़े होने का नाम ही तो ‘गांधी’ है।

आजादी के मिलने के कुछ समय पहले गांधी के निरंतर कमजोर और अकेले होते जाने की कहानी को जिस खूबसूरती से यह किताब बयां करती है, उसकी दूसरी नजीर नहीं है। अपने प्रार्थना प्रवचनों में गांधी ने खुद को खोलकर रख दिया है। वे सत्य को फिर से पारिभाषित नहीं करते, उसे यथारूप ही रखते हैं। इस पूरी किताब में गांधी के मन और देश में चल रही हलचलों का बयान दिखता है। हिंदू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान, कांग्रेस-मुस्लिम लीग की सत्ता राजनीति के बीच अकेले और तन्हा गांधी। गांधी पूरी जिंदगी सामूहिकता को साधते रहे और उनका भरोसा अपने समाज पर बना रहा। किंतु आजादी को निकट आता देख यह समाज जिस तरह बंटा उसे देखकर वे हैरत में थे। सही मायने में यह समाज अब भीड़ या अपने-अपने पंथों की जकड़बंदियों में कैद हो चुका था। गांधी इसलिए कई बार बहुत कातर दिखते हैं, कमजोर दिखते हैं। किंतु सत्य और इंसानियत में उनकी आस्था अविचल है। अपने उपवास और रोजों से वे सोते तथा भटके हुए समाज को फिर से उसी राह पर लाना चाहते हैं, जहां इंसानियत और भाईचारा सबसे अहम है। कई लोग मानते हैं कि गांधी ने बंटवारा स्वीकार कर लिया था, सच्चाई यह है कि बंटवारे को उन्होंने कभी मन से नहीं स्वीकारा। स्वीकारा इसलिए कि कम से कम रिश्ते तो बचे रहें। अफसोस समय के साथ अब जब हम देखते हैं तो भारत-पाक रिश्ते भी अब एक अंसभव संभावना ही दिखने लगे हैं। बल्कि घृणा की राजनीति ही लंबे समय से दोनों देशों की राजनीति का मूल स्वर रही है। पाकिस्तान और हिंदुस्तान में चुनाव भी इन्हीं नफरतों की हवाओं पर सवार होकर जीते जाते रहे हैं। कई युद्ध लड़कर और निरंतर अपरोक्ष युद्ध लड़कर पाकिस्तान ने इस जहर को और पुख्ता किया है। 7मई,1947 को जब कांग्रेस लगभग बंटवारे का फैसला कर चुकी थी तब गांधी ने शाम को कहा-“ जिन्ना साहब पाकिस्तान चाहते हैं। कांग्रेस ने भी तय कर लिया है कि पाकिस्तान की मांग पूरी की जाए... लेकिन मैं तो पाकिस्तान किसी भी तरह मंजूर नहीं कर सकता। देश के टुकड़े होने की बात बर्दाश्त ही नहीं होती। ऐसी बहुत सी बातें होती रहती हैं जिन्हें मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, फिर भी वे रूकती नहीं, होती ही हैं। पर यहां बर्दाश्त नहीं हो सकने का मतलब यह है कि मैं उसमें शरीक नहीं होना चाहता, यानी मैं इस बात में उनके बस में आने वाला नहीं हूं।... मैं किसी एक पक्ष का प्रतिनिधि बनकर बात नहीं कर सकता। मैं सबका प्रतिनिधि हूं।.. मैं पाकिस्तान बनने में हाथ नहीं बंटा सकता।” गांधी का मनोगत बहुत स्पष्ट है किंतु हालात ने उन्हें विवश कर दिया था। वे न तो बंटवारा रोक पाते हैं न ही आजादी के जश्न के पहले जगह-जगह हो रही सांप्रदायिक हिंसा। नोवाखली के दंगों के बाद कोलकाता, बिहार और फिर पंजाब। सांप्रदायिक हिंसा के विरूद्ध सबसे प्रखर आवाज के पास अब ‘उपवास’ के सिवा क्या था?

दूसरा संकट यह था कि गांधी नोवाखली में हिंदुओं के नरसंहार से दुखी होकर जब वहां पहुंचते तो मुसलमानों को बुरा लगता कि वे कोलकाता में मुसलमानों के लिए क्यों नहीं पहुंचते? जब वे कोलकाता में मुसलमानों की मदद में उतरते तो हिंदू उन्हें कोसते। ऐसे में गांधी चौतरफा आलोचना के शिकार थे। उनके साथी रहे कांग्रेस जन और राजनेता भी उनके इन देश व्यापी प्रवासों और उपवासों में कोई ‘शांति-संभावना’ देखने के बजाए ‘संकट’ ही देखते थे। ऐसे कठिन समय में गांधी को समझना और कठिन हो गया था। गांधी की बेचारगी यही है कि उन्हें आज तक सही अर्थों में समझा नहीं गया। वे अपने प्रति बनी गहरी नामसझी को लेकर ही विदा हुए। उन्हें लोग देवता का दर्जा तो दे बैठे थे किंतु उनके देवत्व से एक सचेतन दूरी बनाए रखना चाहते थे। शायद इसलिए कि तत्कालीन राजनीति की भाषा से गांधी कदमताल करने के तैयार नहीं थे।वे इसीलिए सत्ता का आरोहण नहीं करते, राजपथ नहीं चुनते क्योंकि उनका समाज पर भरोसा था। वे समाज की शक्ति को जगाना चाहते थे, जिसने उन्हें महात्मा बनाया था। किंतु इस दौर में वह समाज भी कहां बचा था, एक गहरा बंटवारा जो सिर्फ भूगोल का नहीं था, मन का भी था। गांधी की ‘रूहानी शक्ति’ इस ‘दुनियावी रोग’ के सामने बेबस थी। यह वही समय था जब गांधी को मंत्रमुग्ध सुनने वाला देश और समाज उनसे सवाल करने लगा था। लोग उनके मुंह पर कहने लगे थे कि आप मर क्यों नहीं जाते? उनसे पूछा जाने लगा किः “आपने चार-पांच दिन इतनी लंबी-लंबी बातें बनाई कि हम एक इंच भी पाकिस्तान मजबूरी से देना नहीं चाहते, बुद्धि से ह्दय को जाग्रत करके भले ही जो चाहें सो लें, लेकिन वह तो बन गया। अब आप इसके खिलाफ अनशन क्यों नहीं करते?” उनसे यह भी पूछा गया- “आप कांग्रेस के बागी क्यों नहीं बनते और उसके गुलाम क्यों बने हैं? आप उसके खादिम कैसे रह सकते हैं ?अब आप अनशन करके मर क्यों नहीं जाते?” महात्मा जी ने ये सारी बातें खुद 5 जून,1947 को अपने प्रार्थना प्रवचन में बतायीं। खुद पर बरसते सवालों से वे अविचल थे। अपनी आलोचना और निंदा को वे खुद अपने प्रवचनों में वे बताते और अपने उत्तर भी देते। किंतु उस समय गांधी को सुनने, समझने का धीरज तत्कालीन राजनीति और समाज दोनों खो चुके थे। अपने समय को पहचानने की जो अद्भुत क्षमता गांधी में थी उसी के चलते वे कह पाएः “बंटवारे से तो हम आज बच नहीं सकते चाहे वह हमें कितना ही नापंसद हो।” सच कहें तो गांधी का सबसे बड़ा दर्द यही है कि उन्हें समझा नहीं गया और आज भी उनकी रेंज को समझने वाला मन हमारे पास कहां है? एक राष्ट्रपिता की इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है जो समाज और राजनीति उनके पीछे चली, उनके इशारों पर चली वही आज उन्हें अप्रासंगिक तथा अनुपयोगी मान रही थी। गांधी अपने आखिरी दिनों में इतने कातर इसलिए भी थे, उनके अपने भी उनका साथ छोड़ चुके थे, या उन्हें अनसुना कर रहे थे। वे इस बात को समझ गए थे। इसीलिए अनेक मौकों पर आजमाए जा चुके अपने अमोध अस्त्र आमरण अनशन का इस्तेमाल भी वे नहीं करते। उनका मानना था इससे बंटवारा रूक भी गया तो मनों में पाकिस्तान बन जाएगा जो ज्यादा खतरनाक होगा। इसलिए भूगोल बंटने के बाद भी रिश्ते बने रहें, मन मिले रहें उसकी कोशिश वे आखिरी सांस तक करते रहे। वे बहुत साफ कहते हैः“जब मैंने कहा था कि हिंदुस्तान के दो भाग नहीं करने चाहिए तो उस वक्त मुझे विश्वास था कि आम जनता की राय मेरे पक्ष में है; लेकिन जब आम राय मेरे साथ न हो तो क्या मुझे अपनी राय जबरदस्ती लोगों के गले मढ़नी चाहिए?”

देश के बंटवारे के बाद गांधी चाहते तो एक निष्क्रिय बुजुर्ग की आदर्श भूमिका निभाते हुए चैन से रह सकते थे। उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य आजादी हासिल हो चुका था। किंतु वे स्वराज के लिए सक्रिय थे। शायद वे देश और उसकी सरकार के कार्य संचालन में कुछ बेहद जमीनी सुधार के सुझाव दे पाते किंतु आजादी मिलते ही उनके सामने हिंदु-मुस्लिम सद्भाव का प्रश्न बहुत विकराल बनकर खड़ा हो गया। दंगे, मारपीट, आगजनी, स्त्रियों से दुर्व्यवहार की खबरों से उनका मन रोज रो पड़ता। वे अकेले और विवश होने के बाद भी इस कठिन समय में अपने हस्तक्षेप से शांति और सद्भाव का संचार करते हैं। सांप्रदायिक तत्वों को विवश करते हैं कि वे राष्ट्र की मुख्यधारा में साथ आएं और अपनी जहरीली राजनीति से बाज आएं। तत्कालीन सरकार को पाकिस्तान के बचे 55 करोड़ रूपए देने के लिए मजबूर कर देते हैं। उनका नैतिक बल अक्सर भारी पड़ता है। किंतु अब उनकी जिद और हठ से उनके अपने लोग भी उनसे बचने लगे थे। गांधी की जिद क्या थी- सद्भावना, एकता, सौहार्द्र, भाईचारा, अहिंसा। शायद वे इसीलिए कहते हैः “मैं जानता हूं न तो पाकिस्तान नरक है न ही हिंदुस्तान नरक है। हम चाहें तो उन्हें स्वर्ग बना सकते हैं और अपने कामों से नरक भी बना सकते हैं और जब दोनों नरक जैसे बन गए तो उसमें फिर आजाद इनसान तो रह ही नहीं सकता। पीछे हमारे नसीब में गुलामी ही लिखी है। यह चीज मुझको खा जाती है। मेरा ह्दय कांप उठता है कि इस हालत में किस हिंदू को समझाऊंगा,किस सिख को समझाऊंगा, किस मुसलमान को समझाऊंगा।”

गांधी इस पीड़ा को लिए ही विदा हुए। आप देखें तो इस बात के सात दशक पूरे हो चुके हैं। बंटवारा और गहरा हुआ है। सिर्फ गांधी ही नहीं, भारत-पाक रिश्ते भी अब एक असंभव संभावना दिखने लगे हैं। गांधी की त्रासदी यह है कि वे 32 वर्षों तक जिस हिंदुस्तान के लिए अंग्रेजों से लड़ते रहे, उस आजाद देश में वे मात्र पांच महीने(169 दिन) जिंदा रह सके। गांधी को भूलने का, गांधी को न समझने का, भारत को न समझने का यही फल है। एक न समझे जाने वाले नायक गांधी- जिनकी हमने असंख्य मूर्तियां बनाईं, उनके नाम पर संस्थाएं बनाईं, गांधी रोड बनाए, नगर बनाए, नोटों पर उन्हें छापा,विश्वविद्यालय बनाए किंतु यह सब कुछ हमारी गहरी नासमझी के चलते बेमतलब है। अपनी हत्या से कुछ दिन पहले गांधी ने कहाः “मैं तो आज कल का ही मेहमान हूं। कुछ दिनों में यहां से चला जाऊंगा। पीछे आप याद किया करोगे कि बूढ़ा जो कहता था वह सही बात है।”


पुस्तक संदर्भः गांधी एक अंसभव संभावनाः सुधीर चंद्र,

मूल्यः199, पृष्ठः184

राजकमल पेपरबैक्स,1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग,

दरियागंज, नई दिल्ली-110002


(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग में प्रोफेसर हैं।)

संपर्कः प्रो. संजय द्विवेदी,

जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय,

बी-38, विकास भवन, प्रेस कांप्लेक्स, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल-462011 (मप्र)

ई-मेलः 123dwivedi@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सचमुच एक असंभव संभावना हैं गांधी! - महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष प्रसंग - प्रो. संजय द्विवेदी
सचमुच एक असंभव संभावना हैं गांधी! - महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष प्रसंग - प्रो. संजय द्विवेदी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglXaXIzzmZL903s6HSgd_R3_IW8wZE2cbik9rzFMg_jxYPaRgezNieaDvkNlsIsMx-ZVNVyiJcmpFn0IuFaP8LTmo4RqsAOvO0tGX8nuBC_mrduX6XHt4BXPaozM_wKWiLe4kT/s320/Gandhi+Ek+Asambhav+Sambhavna1-798284.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglXaXIzzmZL903s6HSgd_R3_IW8wZE2cbik9rzFMg_jxYPaRgezNieaDvkNlsIsMx-ZVNVyiJcmpFn0IuFaP8LTmo4RqsAOvO0tGX8nuBC_mrduX6XHt4BXPaozM_wKWiLe4kT/s72-c/Gandhi+Ek+Asambhav+Sambhavna1-798284.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/09/150.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/09/150.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content